• मुखपृष्ठ
  • समालोचन
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • बातचीत
    • संस्मरण
    • आत्म
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • बातचीत
    • संस्मरण
    • आत्म
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
No Result
View All Result
समालोचन

Home » निज – घर : जापान डायरी : प्रत्यक्षा

निज – घर : जापान डायरी : प्रत्यक्षा

संवेदना के भी कई स्तर हैं. स्पर्श, शब्द, रंग और राग उसके कुछ आयामों का अहसास   कराते हैं. अक्सर चित्रकारों ने संवेदनशील लेखन किया है. प्रत्यक्षा युवा कथाकार – कवयित्री हैं, पेंटिग भी बनाती हैं, अपनी जापान यात्रा को उन्होंने शब्द-चित्रों से अभिव्यक्त किया है. इसे  पढना ऐसा है जैसे आप झींसी में भींग रहे […]

by arun dev
September 16, 2014
in Uncategorized
A A
फेसबुक पर शेयर करेंट्वीटर पर शेयर करेंव्हाट्सएप्प पर भेजें










संवेदना के भी कई स्तर हैं. स्पर्श, शब्द, रंग और राग उसके कुछ आयामों का अहसास   कराते हैं. अक्सर चित्रकारों ने संवेदनशील लेखन किया है. प्रत्यक्षा युवा कथाकार – कवयित्री हैं, पेंटिग भी बनाती हैं, अपनी जापान यात्रा को उन्होंने शब्द-चित्रों से अभिव्यक्त किया है. इसे  पढना ऐसा है जैसे आप झींसी में भींग रहे हों, अकेलेपन की अनुभूति में धीरे – धीरे.   





सपने में  कोहाकू  मछलियाँ                                  
(ज़रा सा जापान )  

प्रत्यक्षा



एक छोटा बोतल पॉल सापाँ की .. नींद टुकड़ों में गिरती है, बेचैनी और कँधे में एक ढीठ दर्द के साथ और आश्चर्य,  मेरे दाहिने पैर में भी. शायद किसी पुराने दर्द की प्रेत छाया.. कि मीलों लँगड़ाते चले और वहीं पहुँचे जहाँ से चले थे. मैं असम्बद्ध उठती हूँ बीच रात में. मैं किसी न होने वाली जगह में हूँ. अधजागी फिल्म देखती हूँ,  हेलेन मिरेन और जॉन मल्कोविच की. कम्बल ओढे पूरा विमान सोया है




***

कावासाकी में अच्छी शानदार ठंड है. कमरा एक्दम कॉपैक्ट, छोटा और सुविधायुक्त है. आरामदायक और गर्म भी. हरी चाय अच्छी है. मुझे कुछ देर सो लेना चाहिये. रात भर के सफर और बिना नींद के बाद. टीवी पर कुछ जापानी में चल रहा है. शायद क्रिसमस के बारे में 





***

टॉयलेट्स  स्मार्ट हैं. कमोड के बगल में आर्मरेस्ट सा है,  सीट को गुनगुना रखने के, बिदे से पानी स्प्रे करने के बटन. कम गर्म, ज़्यादा गर्म,  तेज़ी से,  कम तेज़ी से, फुल फ्लश और हाल्फ फ्लश, कुछ संगीत 





*** 

रात को एक बोल जापानी मील लिया,  मेसो सूप,  सलाद जिसे सेंधा नमक में लगाकर फिर मीठे सॉस में डुबा कर खाया जाता है,  डम्पलिंग मूली का,  और गीले चावल का एक बड़ा कटोरा जिसके ऊपर तली हुई मछलियाँ,  सब्ज़ी और उबला अंडा सजा है. मछली, सब्ज़ी और अंडा मैदे की कोटिंग में डुबा कर कुरकुरा तला हुआ है. आज सुशी नहीं खाई. 



*** 
रात को मुझे ट्रेन के गुज़रने की आवाज़ आती है. अब सुबह है और मैं बेचैन हूँ. मेरे उन्नीसवें तल की खिड़की से नज़ारा हैरत अंगेज़ है. शहर जाग रहा है. गाड़ियाँ सड़क पर जानवरों की तरह रेंग रही हैं. एक तरफ को खेल मैदान खाली है. सड़क पर बत्तियों की जगमगाहट बिखरी हुई है. पूरब के तरफ आसमान में गुलाबी दीप्ती है. हरी चाय के धीमे घूँट भरती, खिड़की के बाहर देखती सोचती हूँ,  ये ट्रेन कहाँ जा रही है. लोगों को किस सुदूर प्रदेश लिये जाती. पिछले हफ्ते बैगलोर के होटल से ठीक ऐसे ही मेट्रो का नज़ारा था. मुझमें एक अजीब सी अनुभूति होती है,  अकेलेपन की, पीछे छूट जाने की.

 


***.
कॉनफरेंस रूम में मिनरल वाटर की बोतल जो रखी है उसपर कैंसर वाला गुलाबी रिबन बना है. अंग्रेज़ी में लिखा है,  एनरिच वोमंस हेल्थ. अंग्रेज़ी में लिखा है ये हैरानी की बात है. यहाँ हर चीज़ जापानी में लिखी होती है, लगभग हर.




***
फुचू ठंडा और उदास है. पेड़ों की फुनगियों को काट दिया गया है, और उनकी पत्तियाँ, सब झर चुकी हैं. उनके नीचे जैसे सुनहरी  कालीन बिछी हो. हवा बहुत तेज़ तीखी है. अनुमान है कि बर्फ गिरेगी,  जोकि यहाँ के लिये असामन्य बात है. मैं इस ठंडी  हवा का आनंद लेती हूँ. ये मुझमें आहलाद भर देता है. पतझड़ के लाल और सुनहरे रंग.

 


***  
मैं जापान और भारत के बीच के समय अंतर  के बारे में सोच रही हूँ. जापान साढ़े तीन घँटे आगे है. इसका मतलब यहाँ आने पर मैंने साढ़े तीन घँटे गँवाये हैं अपने जीवन के. तो वो समय किसी ब्लैक होल में गया. बिना समय का अंतराल,  एक झपकी,  एक निमिष मात्र का तनाबाना. और जब मैं वापस भारत पहुँच जाऊँगी तब मेरे पास इतने समय का ही बोनस होगा. तो जो लगातार सफर में है अलग टाईम जोंस में वो लगातार कुछ समय पा या गँवा सकता है. ये उसे जवान या बूढ़ा बना सकता है बिना सच मुच के समय के बीते हुये. मुझे ये सब सोचना किसी साईंस फिक्शन जैसा लगता है,  जैसे समय के लहरों की सवारी कर रहे हों  




***.
रात हम एक भारतीय रेस्तरां गये. पता चलता है कि आज तादाशी का जन्मदिन है. हम बीयर पीते हैं और समोसा खाते हैं. खाने के बारे में बात करते हैं, जापान के चीन और कोरिया के साथ के सम्बंधों की बात करते हैं, तोक्यो में घरों और किराये की बात करते हैं. तादाशी बताता है कि वो अपने मातापिता के साथ रहता है एक अलग तल्ले पर और ये कि घर बहुत महंगे हैं तोक्यो में और ये कि हमें क्योतो जाना चाहिये अगर घूमना हो तो, और ये कि हर कोई, क्रिश्चियन हों या बौद्ध,  वो शिंतो मंदिर ज़रूर जाते हैं,  कि वो ये जानता है राधा वल्लभ पाल कौन हैं लेकिन ये नहीं जानता था कि वो भारतीय थे,  और ये भी कि जापानी औरतें कोरियन आदमियों को खूबसूरत समझतीं हैं. मैं खुशनुमा थकान से भरी हूँ. बाहर झीसी सी बरसने लगी है. कल मुझे तोक्यो जाना है.  


*** 

ठंड है लेकिन मधुर है. सुमितोमो मित्सुबिशी बैंक जहाँ मुझे काम है, विशाल है. ये चियोदा कू में है. बैंक के वरिष्ठ अधिकारियों से मिलती हूँ. यहाँ सब चीज़ें बहुत औपचारिक हैं. वो सब ज़रा असमंजस में हैं क्योंकि मैंने उनसे कुछ दस्तावेज़ माँग लिये हैं. वो आपस में कुछ बात कर रहे हैं. आखिरकार मेरे समझाने पर वो मान जाते हैं. कवासाकी के वापसी का रास्ता लगभग पूरा फ्लाईओवर्स पर ही है. लगता है किसी साईंस फिक्शन की दुनिया है. तोक्यो बे की एक झलक मिलती है.



***
फोरकास्ट के मुताबिक बर्फबारी होनी चाहिये थी. बर्फ तो नहीं गिरी लेकिन बारिश  हो रही है, तेज़ झमाझम नहीं बल्कि हल्की झीसी लगातार. दिन के खाने में फिर जापानी चावल है, उबले अंडे, झींगा मछली,  सब्ज़ी और शीशामो मछली. सब कुरकुरा और मज़ेदार. तादाशी हमें एक लम्बोतरा बक्सा दिखाता है. ये गीले छतरियों को सुखाने के लिये है. हर कोई सफेद पारदर्शी छतरी साथ  लिये  घूमता है. यहाँ रंग मोनोक्रोम में हैं. दफ्तर की पोशाक फॉरमल सफेद और काला . और  भी जो रंग  दिखते  हैं वो भूरे और  ग्रे के  करीब. पिछले  तीन  दिनों में मैंने शायद दो पीले जैकेट और एक लाल देखा है. मैं कुछ बेढंगे पने से बिलकुल आउट ऑफ प्लेस महसूस कर रही हूँ अपने चटख रंगीन कपड़ों में. मुझे लगता है कि उनके सेंस ऑफ फॉरमैलिटी को मैं आउट्रेज़ कर रही हूँ. लेकिन साथ ही साथ मुझे चुहलभरे  तरीके से नियम के परे के तोड़फोड़ का सुख भी देता है.  ये और बात है कि अब तक मैंने किसी को मुझ से अजूबे को घूरते नहीं देखा है.  भारतीय जिज्ञासा के संसार से कितना अलग जहाँ हम ताक झाँक करने में बहुत बार सारी मर्यादा और तहज़ीब ताक पर रख देते हैं.   

 


*** 
पाँच बजे शाम तक मेरा काम खत्म हुआ. अकीतोमी और मैं कॉफी पीते लगातार बातें करते हैं. व ह मुझे अपने परिवार के बारे में बताता है,  उसके माता पिता,  बहन, उसकी बीवी मिसाको जो एयर होस्टेस है. वो शरारत से मुस्कुरा कर कहता है कि सप्ताहांत में उसको खुश करने के लिये खाना पकाता है. हम नोट्स का आदान प्रदान करते हैं और इस नतीजे पर पहुँचते हैं कि पारिवारिक ढाँचा, सामाजिक परिवेश सब दोनों देशों में एक सा है. रहन सहन का खर्चा, टोक्यो में आसमान छूता किराया, साठ प्रतिशतसे ज़्यादा जनसंख्या साठ साल से ऊपर के बुज़ुर्गों की वजह से उपजी अन्य दिक्कतें, पारंपरिक लिबास किमोनो और याकुता,  खाने का तरीका, क्यों जापानी औरतों को कोरियन पुरुष खूबसूरत लगते हैं, हॉलीवुड फिल्में और बॉलीवुड सिनेमा, तहज़ीब, दो हज़ार ग्यारह का भूकँप और  सुनामी .. हम सब बात करते हैं, लगातार.   वह मुझे अपनी पत्नी की तस्वीर दिखाता है ,पारंपरिक वेशभूषा में. मैं उसे भारत के बारे में बताती हूँ और ये कि हम एशियन देश कितना एक समान हैं, यूरोप और अमरीका से भिन्न. अकीतोमी एक साल स्पेन में रहा है पढ़ाई के लिये. वह मुझे वेहेमेंस से कहता है कि कभी वापस नहीं जाना. हम अपनी बात एक भाईचारे और दोस्ती के नोट पर खत्म करते हैं. 




*** 
जैसे रात घिरती है, हम वापस लौटते हैं. दूर क्षितिज में, नीची पहाड़ियों पर बादल मुकुट से टंगेहैं. रौशनी तारों की मुट्ठी भर फेंकी जगमगाहट है. आसमान नीला है, गहरा. गहरे तक सुकून और शाँति भरता हुआ इस तेज़ भागती गाड़ी में भीतर सब ठहरा हुआ है. ड्राईवर को छोड़ हम छह लोग हैं पर सब चुप हैं. ये एक बेहद अद्भुत  तरीके से अकेला होना है, अपने ख्यालों में लिपटे हुये, ताने बाने बुनते, सब असम्बद्ध और बेतरतीब. मुझ में अचानक एक तीखी और विकट स्मृति उठती है अपने पिता की. रात का नीलापन और मेरा  नरमी देता मन एकदम शाँत और निर्मल है जैसे एक सफर अंतरतम प्रदेश की.




*** 
मुरामोतो और अकीतोमी  आज हमारे गाईड्स हैं. हम शहर घूमते हैं. टोक्यो टॉवर जो कि आईफिल टॉवर की नकल है. एकदम ऊपर फर्श पर एक लुकिंग ग्लास है. उससे नीचे की धरती दिखाई देती है. उसपर खड़े होना ऐसा है जैसे हवा में टँगे हों नीचे तेज़ी से गिरने को तैयार.  मैं बिना किसी वाजिब तर्क के डर जाती हूँ. बगल की रेलिंग मजबूती से पकड़े मैं डरते हुये उसपर पाँव रखती हूँ. फोटो में मैं उत्साह और उत्तेजना में मुस्कुराती दिखती हूँ. कैसे कलाकार होते हैं हम भी.





***
इसके बाद हम शिंतो श्राईन जाते हैं. मौसम बेहद खुशनुमा है. मेजी बगीचे में घूमना कितना दिलकश. महारानी का टी हाउस और उसके आगे तालाब. पेड़ों पर पत्ते ललछौंह हैं और धरती पर रक्ताभ भूरे और कत्थई मेपल पत्तों का कालीन बिछा है




*** 
मंदिर में शादियाँ हो रही हैं. पारंपरिक किमोनो और याकुता में दुल्हा दुल्हन, पुजारी, रिश्तेदार और दोस्त संजीदगी से एक पवित्र जुलूस में मंदिर के प्रांगण में आगे बढ़ रहे हैं. मैं एक तरफ से तस्वीरें खींच रही हूँ. बीच में दुल्हा  दुल्हन को खड़ा कर पारिवारिक फोटो खींची जा रही है. दुल्हन की माँ बारबार आगे बढ़कर दुल्हन का कपड़ा ठीक करती है. बिलकुल वैसे जैसे हमारे यहाँ होता है. ग्रुप फोटो लिया जा चुका है. अचानक एक व्यक्ति उस ग़्रुप से मुझे इशारा करता है आने के लिये. मैं मुड़ कर पीछे देखती हूँ किसे बुला रहा है. वह फिर बुलाता है. ओह मुझे ही बुला रहा है. उस पारिवारिक फोटो में हिस्सेदारी करने. मुझे लगता है मेरा दिन बन गया. मैं भी उनके समूह का हिस्सा हूँ. फोटो खिंच जाने के बाद मुझे टूटी अँग्रेज़ी में कहता है मुझे फोटो मेल करेगा. मैं उसे अपना विज़िटिंग कार्ड पकड़ाती हूँ.

वो कहता है उसका नाम टाई है. टाई पहनने सा नकल करता है और खूब चौड़ा मुस्कुराता है. इस औचक आवेग के छोटे से साझेदारी दिलदारी का भाव,  कुछ एक पल बाँट लेने की कोशिश मेरे दिन को कितना अमीर बना देती है. मैं खुश हूँ, बहुत.  

फिर हम बाकी टूरिस्ट वाली चीज़ें करते हैं. अगला नम्बर असाकुसा का है अपने शानदार खुशनुमा बाज़ार के साथ. मंदिर के प्रांगण में अगर्बत्ती का जलता खूशबूदार धुँआ है. वहाँ खड़े लोग उस धुँये को हाथों से अपनी ओर खींचते हैं,  बहुत कुछ हमारे यहाँ की आरती लेने जैसी. ठीक बगल में एक मूर्ति है जिससे पानी का फव्वारा निकल कर नीचे के चहबच्चे में इकट्ठा जो रहा है. लम्बे हैंडल वाले अल्मूनियम के करछुल रखे हैं. मैं पूछती हूँ ये क्या. अकीतोमी बताता ह कि इनसे पानी लेकर हाथ धोया जाता है. कुछ लोग पानी लेकर एक घूँट भी भर रहे हैं. मैं भी अपना हाथ भिगाती हूँ . 

फिर हम बाज़ार घूमते हैं  





***
खाने के बहुत सारे स्टॉल्स हैं. एक में एक नन्हा सा मशीन का ढाँचा रखा है जिससे छोटे छोटे कूकीज़ बन कर निकल रहे हैं इनके भीतर मीठा सोय बीन का पेस्ट भरा है. मैं एक लिफाफा भर खरीदती हूँ. उनका स्वाद अच्छा है. फिर मैं किमोनो देखती हूँ , लकड़ी की छतरियाँ, ब्रेसलेट, चाभी के चेन , जापानी प्लेट , विंड चाईम , नेल कटर और लकड़ी के तलवार , टीशर्ट और बहुत सा मीठा नमकीन नाश्ते का सामान ..

एक तीन सौ येन का ब्रेसलेट खरीदती हूँ, उनतीस सौ येन के मीठे नमकीन समुद्री पत्तों से सुवासित मठरियाँ और बिस्किट और एक पैकेट हरी चाय. खाने पीने का सामान मुझमें हमेशा एक उत्साहित उत्तेजना भरता है. मैं चखना चाहती हूँ वो सारे स्नैक्स जो दुकानों में सजे रखे हैं. एक गीले चावल का गोला चखती हूँ जिसपर सी वीड का फ्लेवर है. फिर दूसरा जो एक लकड़ी के स्टिक पर लपेटा हुआ है जैसे कुल्फी. उसपर गाढ़े सोया चटनी का लेप है. मुझे यहाँ का खाना पसंद आ रहा है. गीले चावल, तली मछलियाँ , सुशी, मड़गीले चावल का दलिया जिसमें समुद्री पत्ते और बेकन और सालमन के टुकड़े तैरते हों , ताज़ा  सलाद, जापानी अचार और आत्मा तक तृप्ति भरता गाढ़ा क्रीमी भुट्टे का सूप और हरी चाय ज़रूर  





***. .
हम बाहर सड़क पर निकल आते हैं. एक कतार से चमचामाते हुये रिक्शे लगे हैं, ऐसे जैसे मैंने कभी नहीं देखे. रिक्शा चालक अच्छे पोशाकों में लैस हैं और सबके सर पर पारंपरिक टोपियाँ हैं. कोई ड्रेस कोड है जैसे वेनिस में ग़ोंडोला चलाने वाले धारियों वाले टीशर्ट और काले पतलून पहनते हैं. एक औरत रिक्शे पर बैठती है. उसके पैरों पर लाल कँबल लपेटा जाता है फिर सीट बेल्ट लगता है. ये रिक्शा हाथ से खींचने वाले रिक्शे हैं जैसे मैंने सिर्फ तस्वीरों में देखा है
  



***
अगला पड़ाव स्काई ट्री है , पर वहाँ बहुत भीड़ है. लम्बी लाईन. हम इडो टोक्यो म्यूज़ियम की तरफ बढ़ जाते हैं. अगले कुछ घँटे वहाँ आसानी से निकलते हैं. पुराने जापानी तरीके का रहन सहन , घर , व्यापार के तरीके , बाज़ार ..सब के छोटे मॉडेल्स, इतने खूबसूरत और पूरे डिटेल्स में. शोगन के दिनों से लेकर विश्व युद्ध से होते हुये आज के आधुनिक समय तक




***
थकान मिटाते सुस्ताते हम कॉफी पीते हैं और मीठे आलू के केक जो दिखने में गुझिया से हैं, खाते हैं. मैं अकीतोमी और मुरामोतो से पूछती हूँ कि आज का अधुनिक जापान अमेरिका के लिये क्या महसूस करता है ? अभी कुछ पहले मैंने डॉक्यूमेंटरी देखी कैसे अमेरिका ने लगातार जापान पर बमबारी की थी और एक समय ऐसा था कि पूरा टोक्यो शहर आग के ऐसे विकट दावानल में घिर गया था कि अमरीकी बॉम्बर्स उसकी रौशनी में अपनी घड़ियों पर समय देख सकते थे ऊपर आसमान में उड़ते हुये.





***.
मेरे इस सवाल से दोनों अचकचा जाते हैं. अकीतोमी जो दोनों में ज़्यादा बड़बोला है, अपने मज़ेदार स्पेनी भारतीय लहज़े में कहता है,  मेरी समझ में अब हम दोस्त हैं. मैं समझदारी में सर डुलाती हूँ, सही ठीक वैसे ही जैसे हम अंग्रेज़ों के साथ हैं, बरसों के औपनिवेशीकरण के बाद. वो हामी में तेज़ सर हिलाता है, सेम सेम.

 


***
अकीतोमी बताता है कि लोग कहते हैं कि उसकी अंग्रेज़ी बोलने का लहज़ा भारतीयों सा है और उसने ये लहज़ा अपने भारतीय सहकर्मियों से उठाई है. पर वो बहुत सा ज़िस और ज़ैट बोलता है. मैं हँस कर कहती हूँ , ये ज़िस ज़ैट तो स्पेनी उच्चारण है.




 *** 
मुरामोतो ज़्यादा एहतियाती और सतर्क है. वो बहुत कुछ टिन टिन सा लगता है. आज उसने टखनो पर मुड़े हुये जींस पहने हैं .उसके  डिज़ाईनदार  ज़ुराबें पतलून के नीचे से झलक रही हैं. एक जैकेट और लाल चेक का मफलर. और दिनों के कामकाजी लिबास से एकदम फरक.

हर कोई हमेशा काले सूट में दिखता है, हमेशा. हम कॉफी खत्म करते हैं. नारिता एयर्पोर्ट के लिये निकल पड़ने का वक्त हुआ. दोनों संजीदगी से झुक कर अभिवादन करते हैं. 
फ्लाईट में मैं साके पीती हूँ और प्यार से खाना खाती हूँ. फिर आराम से पहले फ्रेड आस्टेयर और ऑड्रे हेपबर्न की फनी फेस देखती हूँ  उसके बाद क्रौउचिंग टाईगर. सोने की हर कोशिश नाकाम है जबकि दिन भर की बेतरह थकान है और साके का नशा भी , फिर भी. 



***

मेरी फ्लाईट अबूधाबी बारह घँटे बाद पहुँचती है. किसी पल मैं नींद में गिरी होउँगी , अपने शरीर को तोड़ मरोड़ कर आराम की स्थिति में पहुँचने की कोशिश. सपने में लाल कोहाकू मछलियों को देखती हूँ जिन्हें मैंने मेजी तलाब में  देखा था. और ……



ज़रा सा, जापान  

________________________


 

नीली ठंडी रात में सुबह की धूप का ख्याल
कितना दूर है
मेरे हाथों में जबाकुसुम के फूल हैं
जैसे उँगली के पोर पर आल्पिन चुभाता
और रक्त की एक खिलती बूंद का
अनवरत समय
हम सब हँसते बेबात और सर झुकाते
शरीर को दोहरा करते
चॉपस्टिक से गीले चावल उठाते
फिर दुखी होते
कहते भूकम्प हमारे जीवन की
अब आम बात है
***
समुद्री पत्तों  का स्वाद
समुद्र की मछलियों सा है
गहरा और हल्का
और थोड़ा सा हरा
और बहुत सा रोमाँच
और तूफान और बुलबुले
और बहुत बड़ी फेनिल लहर
मेरी जीभ पर जो मचलती है
सरसों की खट्टी चटनी के साथ
जो माँ बनाती थी , बहुत अरसा हुआ
बचपन में , मेरे दिल के भीतर
जो फूल , माँ सात समंदर पार भी
बसती हो मेरे भीतर जैसे
समुद्र में ये हरे कच पत्ते
***
ढलते सूरज की एक रेख
हवा में हिलते मेपल के पेड़
जैसे ब्लर किया गया फोटोग्राफ
सूखे घास का पीला रंग
और हाथों में थामे साके की एक ग्लास
सोचते , घर कितनी दूर है
***
काली कॉफी,  तली हुई मछली तेम्पूरा
ओहायो ओहायो , सुप्रभात
बारिश में तनी सफेद छतरियाँ
काले सफेद ग्रे कोट
मैं , लाल , नीली और कभी पीली
अचरज़ कि कोई मुझे देखता नहीं
***
ये ज़रा सा जापान
ये ज़रा सा मेरा दिल
ये ज़रा सा जाने कौन सा दिलदारपुर
ये ज़रा सा , मेरी साँसों के पार
इस रंगीन कागज़ पर
किसी ने लिख दिया
जैसे फूलों से
शायद मेरा ही नाम
जैसे चालीस बरस पहले
किसी जहानाबाद में
किसी ने लिखा था
जीते रहो
और आज तक मैं
जीती रही
मोड़ कर दबा लिया था
गिलौरी अपने गालों में
चू गया था थोड़ा सा रस
ओह ये बस ज़रा सा जापान
_________________________________________________

2008 में भारतीय ज्ञानपीठ से कहानी संग्रह जंगल का जादू तिल तिल प्रकशित.
पहर दोपहर, ठुमरी (कहानी संग्रह) २०११ में हार्पर इण्डिया से
कहानियों का भारतीय भाषाओ के अलावा इंग्लिश में अनुवाद
पावरग्रिड कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड में मुख्य प्रबंधक वित्त, गुड़गाँव

ई-पता : pratyaksha@gmail.com  

ShareTweetSend
Previous Post

शिल्प की कैद से बाहर : अशोक कुमार पाण्डेय

Next Post

लंबी कविता : ब्रेक-अप: बाबुषा कोहली

Related Posts

फटी हथेलियाँ : जितेन्द्र विसारिया
समीक्षा

फटी हथेलियाँ : जितेन्द्र विसारिया

बेगम अख़्तर की याद में: आग़ा शाहिद अली : अनुवाद : अंचित
अनुवाद

बेगम अख़्तर की याद में: आग़ा शाहिद अली : अनुवाद : अंचित

स्वधर्म, स्वराज और रामराज्य : अजित कुमार राय
समीक्षा

स्वधर्म, स्वराज और रामराज्य : अजित कुमार राय

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

समालोचन

समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

  • Privacy Policy
  • Disclaimer

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2023 समालोचन | powered by zwantum

No Result
View All Result
  • समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • आलोचना
    • आलेख
    • अनुवाद
    • समीक्षा
    • आत्म
  • कला
    • पेंटिंग
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • शिल्प
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • संपर्क और सहयोग
  • वैधानिक