कभी हाली ने ग़ालिब के लिए लिखा था –
एक रौशन दिमाग था न रहा
शहर में एक चिराग था न रहा.
कहना न होगा हमारे तमाम शहर ‘रौशन दिमाग’ से ख़ाली होते जा रहे हैं वहां तमाम तरह की ज़हनी कालिख पुतती जा रही है.
लेखक और एक्टिविस्ट इक़बाल हिन्दुस्तानी वैसे तो अपने संजीदा और रौशन ख्याल लेखों के लिए जाने जाते हैं पर कभी-कभी वह मज़ाहिया अदाज़ में भी असरदार बातें कहते हैं. आज पेश है उनका एक व्यंग्य – खुशामद के खतरे
खुशामद के खतरे
इक़बाल हिन्दुस्तानी
चाहें तो ग़ालिब के बराबर तुम्हें कर दें
चाहें तो ग़ालिब के बराबर तुम्हें कर दें
वर्ना कभी हुटिंग भी करा सकते हैं चमचे. (अलीम खां)
इतिहास गवाह है कि चमचो की वजह से ही कई सरकारें बनीं तो कई हुक्मरानों के ताज छिन भी गये.
ख़बर है कि देहरादून के चम्मच कांड में एक दर्जन लोगों को उम्रकैद हो गयी. आपको याद दिला दें एक विवाह समारोह में इन लोगों ने चम्मच को लेकर हुए झगड़े में दो लोगों की हत्या कर दी थी. क्या ज़माना आ गया एक चम्मच ने पहले दो लोगों की जान ली. अब उसी चम्मच ने 12 लोगों को उम्रभर के लिये जेल के अंदर करा दिया. यह कम्बख़्त चम्मच चीज़ ही ऐसी होता है कि आदमी से ज़्यादा तवज्जो इसे दी जाने लगी है. अब देखिये ना अपने देश में कई सरकारें चमचो की वजह से बनी और उनकी मेहरबानी से ही चल रही है. हां यह अलग बात है कि जब कोई बड़ी आफत आती है तो चम्मच तोतों की तरह आंखे बदलने में ज़रा भी देर नहीं लगाते.
कार्यालयों में कुछ लोग काम की बजाये बॉस की चमचागिरी करके ही आगे बढ़ने में विश्वास रखते हैं. अब भले ही मेहनती और और उनसे अधिक योग्य बंदा जलभुनकर राख ही क्यों न हो जाये. उनकी बला से. लेकिन प्रमोशन चमचागिरी करने वाले का ही होता है. यह रास्ता आसान और हंडरेड परसेंट गारंटी से कामयाबी वाला जो है. संतरी से लेकर मंत्री तक चमचों का ही दबदबा चलता है. थाने में आईपीसी की धाराओं से अधिक चमचो की पौबारा हो रही है. सरकारी नौकरी में तो चमचागिरी का मज़ा ही कुछ निराला है. मिसाल के तौर पर प्राइमरी में टीचर हैं तो आराम से घर बैठकर मस्ती करें. बस बीएसए की चमचागिरी करना याद रखें. एमपी एमएलए के चमचे भी मज़े ले रहे हैं.
जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उससे राज़ी है
सच तो यह है कि ख़ुशामद से ख़ुदा राज़ी है. (नजीर अकबराबादी)
अगर आप किसी बदमाश के चमचे हैं तो क्या कहने? आप न केवल मुहल्ले में सब पर रौब गालिब कर सकते हैं. बल्कि पुलिस से भी आपकी खूब पटेगी. सियासत में तो जलवा ही चमचागिरी का है. टिकट लेना हो तो चमचागिरी से बड़ी काबलियत और कोई नहीं और मंत्री बनने से लेकर सीएम पीएम बनना हो तो भी यही हुनर काम आयेगा. मायावती तो चमचों की बातों में आकर ही यूपी का सीएम पद देश का पीएम बनने के सपने दिखाने से खो चुकी हैं. इसी चमचागिरी की नायाब खूबी से कई नाकाबिल लोग काबिल लोगों को टंगड़ी मारकर कई प्रदेशों में मनमानी सरकार चला रहे हैं तो केजरीवाल और ममता दीदी जैसे चंद सिरफिरे चमचागिरी न करने का नतीजा रोज़ केंद्र के हाथों परेशान होकर भोग रहे हैं.
हज़ारों कुर्सियां ऐसी कि हर कुर्सी पे दम निकले
जो इस पर बैठकर खुद से उठे ऐसे ही कम निकले (कैफ़ी आज़मी)
ज्यादा पुरानी बात नहीं है. आइरन लेडी कही जाने वाली पूर्व प्रधनमंत्री इंदिरा गांधी को उनके चमचो , आप चाहें तो उनको तहज़ीब के दायरे में सलाहकार भी कह सकते हैं, ने सत्ता में बने रहने के लिये जनता का मूड देखने की बजाये एमरजैंसी लगाने की नेक सलाह दे डाली थी. नतीजा यह हुआ कि वे उल्टे उसी एक गल्ती से सत्ता से बाहर हो गयी. चमचो का कुछ नहीं बिगड़ा. वे नारा लगाकर अपनी चमचागिरी का फर्ज अदा करते रहे ‘इंदिरा इज़ इंडिया, इंडिया इज़ इंदिरा’. चमचो की कहानी लंबी है कि कैसे पंजाब में भिंडरावाला को आस्तीन का सांप बनाकर पालने की सलाह दी गयी और फिर जब इंदिरा जी की जान चली गयी तो चमचो ने राजीव जी को चमचागिरी करके पीएम बनवा दिया.
चमचागिरी के बल पर एक पायलट की सरकार हवा में चलती रही और एक दिन चमचो ने फिर वही पुराना खेल दोहराया कि बाबरी मस्जिद/ रामजन्मभूमि का जिन्न बोतल से बाहर निकालने की सलाह सीधे सादे राजीव गांधी को दे डाली. जिसका नतीजा सबके सामने है. ऐसा नहीं है कि हमारे देश मेें ही चमचो की इतनी चलती हो. बल्कि अमेरिका को देखो जो उसकी चमचागिरी करते रहते हैं. वे चाहे चुने हुए शासक न भी हों. तानाशाह हों और निकट भविष्य में उनका चुनाव कराने का इरादा भी न हो तो भी अपने अंकल सैम उनकी तरफ न खुद आंख उठाकर देखते हैं और न ही किसी को ऐसा करने की इजाज़त ही देते हैं.
जहाँ कुर्सी मिली फिरऔन हैं हम
समझते ही नहीं कौन हैं हम. (मजीद लाहौरी)
मिसाल के तौर पर सउदी अरब जैसे कट्टरपंथी और पाकिस्तान जैसे आतंकवाद के पालनहार को अंकल सैम चमचागिरी करने के इनाम के तौर पर अब तक बख़्शे हुए हैं. हां एक बात और जो उनकी चमचागिरी से इनकार करता है तो वे उसे नेस्तोनाबूद करने में कोई कोर कसर भी नहीं छोड़ते. ओसामा बिन लादेन को ही लो जब तक वह अंकल सैम के इशारे पर रूस को अफगानिस्तान से भगाने के लिये जेहाद रूपी चमचागिरी करता रहा तो सब ठीक चलता रहा. लेकिन जैसे ही उसने वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला कराया तो वह जेहादी से खूंखार आतंकवादी बन गया और चमचागिरी ख़त्म तो ओसामा भी ख़त्म.
मैं घुस जाऊँगा जन्नत में, खुदा से बस यही कहकर
यहीं से आये थे आदम, ये मेरे बाप का घर है. (शौक़ बहराईची)
ऐसे ही इराक के सद्दाम हुसैन ने चमचागिरी से मना किया तो बिना ख़तरनाक हथियार बरामद किये ही सद्दाम की छुट्टी कर दी गयी. ताज़ा मिसाल लीबिया के कर्नल गद्दाफी की है. ओबामा की चमचागिरी न कर पंगा ले रहा था. बेमौत मारा गया. आजकल पाकिस्तान चमचागिरी से ना नुकुर कर रहा है. उसका भी भगवान ही मालिक है. मियां नवाज़ शायद ज़िया उल हक़ की चमचागिरी से मना करने का हश्र भूल गये हैं. अंकल सैम को गुस्सा आ गया तो पाक के नवाज़ साहब को शरीफ़ से बदमाश का तमगा लगाकर अफगानिस्तान और ईराक बनने में देर नहीं लगेगी. तरक्की का आज एक मात्र रास्ता है चमचागिरी. जय हो चमचो की .
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इक़बाल हिंदुस्तानी
इकबाल हिन्दुस्तानी 15 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं. दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं. रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं. गज़ले लिखते हैं और तमाम सम्मान से नवाजे गए हैं. आजकल ये नवभारत टाइम्स डॉटकॉम पर ‘‘भली लगे या बुरी‘‘ नाम से ब्लॉग लिख रहे हैं.