लोकमित्र गौतम का पहला कविता संग्रह मैं अपने साथ बहुत कुछ लेकर जाऊँगा .. प्रकाशित हुआ है.गौतम की कवितायेँ आकार में अपेक्षाकृत बड़ी है. लम्बी कविताओं को साधना मुश्किल काव्य-कला है, वे कितना सफल हुए हैं यह आप कवितायेँ पढ़कर देख सकेंगे. कविताओं का वितान विस्तृत है , चिंताएं बहुवर्णी हैं.
मेरे सपनो अब तुम विदा लो
मेरे सपनो
तुम्हारा बोझ ढोते ढोते
मैं थक गया हूं
अब तुम विदा लो…
मेरी हकीकतो
तुममें कल्पनाओं का रंग भरते भरते
मैं ऊब गया हूं
अब मुझे बख्शो
मेरा सब्र जवाब दे रहा है
ढांढस मुझे झांसे लगने लगे हैं
मैं उस सुबह की इंतजार में जो अब तक नहीं आयी
…और कब तक अपनी मासूम शामों का कत्ल करूंगा
मैं अब जीना चाहता हूं
अभी, इसी वक्त से
मेरे सपनो मुझे माफ़ करना
तुम्हारा इस तरह यकायक साथ छोड़ देने पर
मैं शर्मिंदा हूँ
पर क्या करता तुम्हारी दुनिया का
इतना डरावना सच देखने के बाद
मेरे पास और कोई चारा भी तो नहीं था
हालांकि मैंने सुन रखा था
कि सपनों की दुनिया खौफनाक होती है
मगर जो अपनी आँखों से देखा
वह सुने और सोचे गए से कहीं ज्यादा भयावह था
मैंने तुम्हारी दुनिया में खौफनाक जबरई देखी है
मैंने देखा है
एक तानाशाह सपना
अनगिनत कमजोर सपनों को लील जाता है
तानाशाह सपनों की खुराक भी बहुत तगड़ी होती है
और कमजोर सपनों की बदकिस्मती यह है
कि किसी सपने की खुराक
कोई दूसरा सपना ही होता है
शायद इसीलिए
सपनों के आदिशत्रु सपने ही हैं
ताकतवर सपने
कमजोर सपनों को सांस नहीं लेने देते
ताकतवर सपने जानते हैं
सपनों का सिंहासन
सपनों की लाशों पर ही सजता है
फिर सपना चाहे कलिंग विजय का हो
या आल्पस से हिमालय के आर पार तक
अपनी छतरी फैलाने का
इन शहंशाह सपनों की पालकी
तलवार की मूठ में कसे कमजोर सपने ही ढोते हैं
फिर चाहे
मुकुटशाही की रस्मों को वो देख पाएं
या थककर तलवार की मूठ पर ही
हमेशा हमेशा के लिए सो जाएं
इसकी परवाह कौन करता है ?
मेरे बाबा कहा करते थे
एक जवान सपना
घने साये का दरख्त होता है
इसकी ठंडी छांव और मीठी तासीर के लालच में
कभी मत फंसना
इसके साये में कुछ नहीं उगता
इसका नीम नशा होश छीन लेता है
फिर यहूदी इंसान नहीं
गैस चैंबर का ईंधन दिखता है
इसका खौफनाक सुरूर
कुछ याद नहीं रहने देता
याद रखता है तो बस
मकुनी मूंछों को ताने रखने की जिद
क्योंकि जिदें सपनों की प्रेम संताने होती हैं
मुझे पता है
सपनों के खिलाफ जंग में
मैं अकेला खड़ा हूं
क्योंकि सपनीली प्रेम गाथाएं
बहुत आकर्षक होती हैं
सफेद घोड़े पर सवार होकर आता है राजकुमार
और सितारों की सीढि़यों से उतरती है सोन परी
सुनने और सोचने में कितना दिलकश है ये सब
मगर मैं जानता हूं
कितना हिंसक है यह सब
ऐसे सपने सिर्फ सपनों में ही सच होते हैं
हकीकत में नहीं
जब भी कोई उतारना चाहता है इसे हकीकत की दुनिया में
पानी का इन्द्रधनुषी बुलबुला साबित होता है, यह सपना
आंखें खुलते ही
सितारों से उतरी सोनपरी की हथेलियां
खुरदुरी मिट्टी की हो जाती हैं
और सफेद घोड़ा नीली आंखों वाले राजकुमार को
जमीन पर पटक घास चरने चला जाता है
इसीलिए मैं परियों और राजकुमारों वाले सपनों से
तुम्हें बचाना चाहता हूं
इसीलिए मैं तुम्हें सपनीली नहीं बनाना चाहता
मैं तुमसे
सर्द सुबहों के उनींदे में
बांहों में कसकर भींच ली गई
गर्म रजाई की तरह लिपटना चाहता हूं
मैं तुम्हें लार्जर दैन लाइफ नहीं बनाना चाहता
इसलिए मैं अपने सपनों से कह रहा हूँ
अब तुम विदा लो …
मै नया कुछ नहीं कह रहा
मुझे पता है मै नया कुछ नहीं कह रहा
फिर भी मै कहूँगा
क्योंकि
सच हमेशा तर्क से नत्थी नहीं होता
छूटे किस्सों और गैर जरुरी संदर्भों से भी
ढूंढ़कर निकालना पड़ता है
तो कई बार उसे
तर्कों की तह से भी कोशिश करके निकालना पड़ता है
मुस्कुराहट में छिपे हादशों की तरह
जब चकमा देकर पेज तीन के किस्से
घेर लेते हैं अख़बारों के पहले पेज
तो आम सरोकारों की सुर्ख़ियों को
गुरिल्ला जंग लड़नी ही पड़ती है
फिर से पहले पेज में जगह पाने के लिए
मुझे पता है तुम्हे देखकर
सांसों को जो रिद्दम और आँखों को जो सुकून मिलता है
उसका सुहावने मौसम या संसदीय लोकतंत्र की निरंतरता से
कोई ताल्लुक नहीं
फिर भी मै कहूँगा
संसदीय बहसों की निरर्थकता
तुम्हारी गर्दन के नमकीन एहसास को
कसैला बना देती है
जानता हूँ
मुझे बोलने का यह मौका
अपनी कहानी सुनाने के लिए नहीं दिया गया
फिर भी मौका मिला है तो मै दोहराऊंगा
वरना समझदारी की नैतिक उपकथाएं
हमारी सीधी सादी रोमांचविहीन प्रेमकथा का
जनाजा निकाल देंगी
और घोषणा कर दी जाएगी की यह प्रेमकथा
अटूट मगर अद्रश्य
हिग्स बोसान कणों की कथा है
इसलिए दोहराए जाने के आरोपों के बावजूद
मै अपना इकबालनामा पेश करूँगा
क्योंकि इज्ज़त बचाने में
इतिहास के पर्दे की भी एक सीमा है .
इसलिए मेरा मानना है की
मूर्ख साबित होने की परवाह किये बिना
योद्धाओं को युद्ध का लालच करना चाहिए
मुझे पता है
मै नया कुछ नहीं कह रहा
फिर भी मै कहूंगा
ताकि इंतजार की बेसब्री और खुश होने की
मासूमियत बची रहे
ताकि कहने की परंपरा और सुने जाने की
सम्भावना बची रहे
ताकि देखने की उत्सुकता और दिखने की लालसा बची रहे
असहमति चाहे जितनी हो मगर मै नहीं चाहूँगा
बहस की मेज़ की बायीं ओर रखे पीकदान में आँख बचाकर
साथ सा थ निपटा दिए जाएँ
गाँधी और मार्क्स !
चिट्ठी
एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहे जाने वाले
उस पुलिस सब इंस्पेक्टर को
अब भी यकीन नहीं हो रहा
कि मारे गये आतंकवादी की कसकर बंद मुट्ठी से
मिला पुर्जा,उसके महबूब की चिट्ठी थी
उसकी आखिरी निशानी
जो उसने उसे आखिरी बार बिछुड़ने से पहले दी थी
न कि किसी आतंकी योजना का ब्लू प्रिंट
जैसा कि उसके अफसर ने कान में फुसफुसाकर बताया था
पुलिस अफसर के जानिब तो भला
कागज के एक टुकड़े के लिए भी भला कोई अपनी जान देता है ?
नामुमकिन !
ऐसा हो ही नहीं सकता!!
काश ! अघाई उम्र का वह अफसर कभी समझ पाता
महज लिखे हुए कागज का टुकड़ा
या निवेश पत्र भर नहीं होती चिट्ठी
कि वक्त और मौसम के मिजाज से
उसकी कीमत तय हो
कि मौकों और महत्व के मुताबिक
आंकी जाए उसकी ताकत
काश! सिर्फ आदेश सुनने और निर्देश पालन करने वाला
वह थुलथुल पुलिस आफीसर
जो खाली समय में अपनी जूनियर को
अश्लील एसएमएस भेजता रहता है
कभी समझ पाता कि चिट्ठी के कितने रंग होते हैं ?
उसकी कितनी खुश्बुएं होती हैं
कि कैसे बदल जाते हैं
अलग अलग मौकों में चिट्ठी के मायने
सरहद में खड़े सिपाही के लिए चिट्ठी
महज हालचाल जानने का जरिया नहीं होती
देश की आन बान के लिए अपनी जान से खेलने वाले
सिपाहियों के लिए महबूब का मेहंदी लगा हाथ होती है चिट्ठी
निराशा से घिरे क्रांतिकारी के लिए उसमें
हौसला भर देने वाला विचार होती है चिट्ठी
चूमकर चिट्ठी वह ऐलान कर देता है
‘शून्य थेके शुरु’
साथी! चलो फिर शुरू करते हैं सफ़र शून्य से
सब इंस्पेक्टर से झूठ कहता है उसका ऑफिसर
कि कोई मुट्ठी में दबी मामूली चिट्ठी के लिए
जान नहीं दे सकता
उसे पता नहीं
प्रेमियों के लिए क्या मायने रखती है चिट्ठी ?
उसके लिए चंद अलफाजों की ये दुनिया, समूचा कायनात होती है
जो उन्हें जीने की हसरत देती हैतो मौका पड़ने पर
मरने का जज्बा भी देती है
क्योंकि चिट्ठी महज कागज का टुकड़ा भर नहीं होती…