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Home » मंगलाचार : सोनिया गौड़ (कविताएँ)

मंगलाचार : सोनिया गौड़ (कविताएँ)

(The Music Of Love. This picture was taken in Tenganan Village, Bali (2010). Tenganan is the most famous Bali Aga (original Balinese)village and is located close to CandiDasa in East Bali. A man was playing bamboo music to entertain a disabled child which is not his son, but he loves this child likes he loves […]

by arun dev
May 6, 2017
in Uncategorized
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(The Music Of Love. This picture was taken in Tenganan Village, Bali (2010). Tenganan is the most famous Bali Aga (original Balinese)village and is located close to CandiDasa in East Bali. A man was playing bamboo music to entertain a disabled child which is not his son, but he loves this child likes he loves his own son. (Photo and caption by ArioWibisono)




सोनिया गौड़ की कविताएँ                             


सोनिया गौड़ की कविताएँ आपके समक्ष हैं. एक युवा जैसे प्रेम को सबसे पहले पहचानता है ठीक उसी तरह से कलाओं में वह प्रेम कविताओं के पास पहले जाता है. और लिखता भी है. यह कलाओं से उसके लगाव की शुरुआत है.  इस शुरुआत में उसके इस लगाव के विकास के बीज भी दबे होते हैं.




एकात्म

जिद्दी पहाड़ों के बीच
घने देवदारु के नीचे \”एकांत\”
आदमखोर बाघ की तरह सुस्ताता है.
दूर गांव में कोलाहल जलती मशाल की तरह चमकता है
दब्बू आँखों में डर को समेटकर
शहर लांघ आता है \”आदमखोर\”
तुम्हारे ऑफिस के कमरे में….
घूरता है मुझे खा जाने के लिए.
अचानक शमशेर की कविताएं
बर्फ की तरह पिघलती हैं
और नदी बनकर मेरी मुझमे बहने लगती हैं.
तुम्हारा प्रेम चमकते तारों  का सा भाल बन जाता है
और गिरता है मुझपर, एकान्त खुद को समाप्त कर देता है!
एकांत की मौत पर, तुम्हारी आँखों के तारे टूट कर
ख्वाहिश बन जाते हैं.
एकांत पुनर्जीवित होता है,
नदी के आंचल में तुम्हारे नीले कुर्ते का रंग  गहरा नजर आता है.
शाम के दुपट्टे में दीपदीपाते हैं रौशनी के जुगनू
एकान्त हम दोनों का हाथ थामता है…
और फिर लांघता है शहर से गाँव
छोड़ देता है देवदारु के नीचे,
फिर गायब हो जाता है.
असल में एकान्त स्वभक्षी है,
जो दो प्रेमियों के \”एकात्म\” के बाद खुद को खा जाता है.

वसंत

मेरी आँखों से तुमको देखने के बाद
मेरे पास मेरा कुछ शेष नहीं….
अब अशेष तुम ही हो मुझमें.
तुम्हारी देह की सीपी से छलका था  प्रेम
जो समा गया मेरे देह के कैनवास में.
कुछ अंश छोड़ा तुमने माघ की हलकी सर्दी का
पीले फूलों की खुशबू का
तीखी सरसों की गंध और आम की बौरों का पागलपन!
पीले चावल की महक वाली तुम्हारी साँसों की खुशबु
कविताओं की तरह बिखर गई होगी कमरे में.
नदी सी ठहरी रही मैं और पहले सूरज की तरह डूब गए तुम, मेरी सम्पूर्ण सत्ता में.
अब क्या बचा मेरी निजी आँखों से तुमको देखने के बाद.
पृथ्वी से कांपते इस बदन पर आकाश की छाप….
सागर की असमाप्त लहरें…..मेरे मुँह में तुम्हारे मुँह से निकला प्रेम भरे नाटक का एक छोटा सा संवाद!
एक रूप कथा कि शुरुआत…. और मेरी तमाम शोकग्रस्त रातों का  उत्प्रवास

देह जो नदी बन चुकी रेड लाइट एरिया पर

 (1)
भूख से बेदम,
किसी सड़क ने
पिघलते सूरज की आड़ में,
घसीट के फेंका
एक ऐसी राह में जो दिन में झिझक से
सिकुड़ जाती है
और रातों में बेशर्मी से चौड़ी हो जाती है.
(2)
वह औरत ख्याल नहीं सोचती
बस बातें करती है चीकट दीवारों से
बेबस झड़ती पपड़ियों के बीच लटके बरसों पुराने कैलेंडर में अंतहीन उड़ान भरते पक्षियों से!
और हाँ, बेमकसद बने मकड़ियों के जालों से भी.
(3)
तेज धार वाली दोपहर जब, जीवन की सांझ को काटती है
वह घूरने लग जाती है रातों में ईश्वर को,
ठन्डे पक्षी के शव जैसे पड़ जाती है
जब उछलती है उस पर किसी की देह,
वह अक्सर चूल्हे की आग से परे
किसी के बदन की
भूख मिटाती है.
मृत्यु का काला रंग आर्तनाद करता है
फिर कुछ क्षणों बाद सब कुछ लाल लाल!
 (4)
रात का जहाज टूटता है, देह की नदी से टकराकर
क्षितिज गलने लगते हैं,
रंगबिरंगी रौशनी के बीच अचानक आनंदित होकर ईश्वर आँखें मूँद लेते हैं,
वह मुस्कराती है, और हाथ बाँध के
दार्शनिकता के नारंगी रंग में पुत जाती है.
(5)
ख्यालों, बातों और भूख में से वह अपने लिए भूख चुनती है
वही भूख जो उसके पेट में नारों की तरह चीखती है.
एक पुरुष जो बेहद गोपनीय है सबके लिए रातों में
पश्चिम से आता है,
औरत उसके लिए वह ख्याल, बातें और भूख तीनो छोड़ देती है,
ख्याल, जो क्षणिक है
बातें, जो बेहद उबाऊ
भूख, जो किसी रिश्ते को स्खलित करने के लिए काफी है.
पुरुष सिर्फ भूख चुनता है
जो देह बन चुकी नदी में तैरना चाहती है.

विरोधाभास

मैं रेत के किनारे, सलवटों की तरह मिली थी!
तुमने प्रेम की संभावनाएं तलाशी
मैं अलसाई नदी बन गई… तुमने मेरी नींद निचोड़ ली
और बो दिया अपने घरनके आँगन में.
सुबह वहां तुलसी की पौध जमी थी,
तुमने मेरे सारे वसन्त जला दिए, तुलसी की पत्तियां झड़ गईं.
मैं पाप और पुण्य का फैसला करते हुए
पाप बनी!
तुम अंतिम विचार करते हुए… प्रेम की सुनहरी बालियां तोड़ लाये….
पाप की समाधि बनी, प्रेम के गर्भ में!
रात भर बारिश हुई….
सुबह मैं पानी का शोर बन गई…. तुमने अपनी सांसो का कंपन शोर को सुनाया…..
मैं जीवन बनके धड़कने लगी
तुम ईश्वर बनकर मुझको पैदा करते रहे
मारते रहे.
मैं इंसान बनकर टालती रही प्रेम की मृत्यु भविष्य के लिए!
______________________
सोनिया गौड़
soniyabgaur@gmail.com/मोबाईल9887898879
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