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Home » पाउला (इसाबेल एलेंदे) : यादवेन्द्र

पाउला (इसाबेल एलेंदे) : यादवेन्द्र

पेशे से वैज्ञानिक और हिंदी के लेखक-अनुवादक यादवेन्द्र ने महत्वपूर्ण लैटिन अमेरिकी लेखक इसाबेल एलेंदे की चर्चित कृति \”पाउला\” के कुछ हिस्सों का अनुवाद किया है. आपके लिए आज यही. दो साल  पहले जीवन के 75 वर्ष पूरे करने वाली लैटिन अमेरिकी लेखक इसाबेल एलेंदे को यूँ तो अमेरिका में रहते हुए दो दशक से ज्यादा  हो गए पर वे अब भी अपने […]

by arun dev
December 24, 2018
in अनुवाद
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पेशे से वैज्ञानिक और हिंदी के लेखक-अनुवादक यादवेन्द्र ने महत्वपूर्ण लैटिन अमेरिकी लेखक इसाबेल एलेंदे की चर्चित कृति \”पाउला\” के कुछ हिस्सों का अनुवाद किया है.
आपके लिए आज यही.
दो साल  पहले जीवन के 75 वर्ष पूरे करने वाली लैटिन अमेरिकी लेखक इसाबेल एलेंदे को यूँ तो अमेरिका में रहते हुए दो दशक से ज्यादा  हो गए पर वे अब भी अपने को पूरी तरह चिली का लेखक मानती हैं.

वे शुरू से लेकर अबतक अपनी मातृभाषा स्पैनिश में लिखती रही हैं जिनकी दो दर्जन कृतियों के  विश्व की चालीस  से ज्यादा बड़ी भाषाओँ में अनुवाद प्रकाशित हैं. उनकी किताबों की बिक्री का आँकड़ा सात करोड़ को पार कर गया है – पिछले कई वर्षों में उन्हें साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए नामित भी किया गया. गैब्रियल गार्सिया मार्खेज़ के बाद जादुई यथार्थवाद की वे सबसे समर्थ सशक्त पुरोधा मानी जाती हैं जिनकी कृतियों में लैटिन अमेरिका की ज़मीनी राजनीति, रहस्य रोमांच और रोमांस का भरपूर अंश होता है. 
चिली के संभ्रांत राजनैतिक परिवार में जन्मी इसाबेल एलेंदे ने अपना करियर एक पत्रकार के रूप में शुरू किया और आत्मकथात्मक शैली में पहला उपन्यास \”हॉउस ऑफ़ द स्पिरिट्स\” लिखा  जिसने उन्हें अचानक साहित्यिक आकाश का सितारा बना दिया. वैसे पेशे के तौर पर वे पत्रकारिता करती रहीं. देश के पहले निर्वाचित वामपंथी राष्ट्रपति सल्वाडोर एलेंदे उनके निकट परिवारी थे और जब सैनिक तख्ता पलट में उनकी हत्या कर दी गयी तो जान बचाने के लिए उन्हें परिवार सहित देश छोड़ कर बाहर जाना पड़ा- वेनेजुएला, बोलीविया और लेबनान होते हुए वे अंततः अमेरिका जाकर बस गयीं. लैटिन अमेरिकी राजनीति से तो उनका  सक्रिय सम्पर्क बना ही रहा साथ साथ अमेरिका की राजनीति  में डोनाल्ड ट्रंप के उदय पर उनकी बहुचर्चित बड़ी तीखी प्रतिक्रिया सामने आयी थी.
1994 में प्रकाशित उपन्यास/संस्मरण \”पाउला\” अपनी इसी नाम की बेटी के लाखों में एक को होने वाली बीमारी के चलते लगभग साल भर तक चेतनाशून्य अवस्था(कोमा) में रहने के बाद असमय चले जाने के सदमे से उबरने की एक कोशिश के अंतर्गत पूरी तरह बेटी के सिरहाने बैठ कर अस्पताल में लिखा गया- वे पूरी अवधि के दौरान बेटी के बगल में उपस्थित रहीं और हताशा से उबरने के लिए  इस उम्मीद में उसको लम्बी चिट्ठी लिखनी शुरू की कि जब वह स्वस्थ होगी तो अपनी माँ और उसके खानदान के बारे में विस्तार से जानेगी. बेटी साल भर तक शरीरी तौर पर जिन्दा जरूर रही पर मानसिक रूप में अनुपस्थित अदृश्य. 

उसको लिखी चिट्ठी धरी की धरी रह गयी – माँ इसाबेल इस सदमे को बर्दाश्त नहीं कर पायीं और खुद बीमार होने लगीं. तब उनकी माँ ने कहा – तुमने जो लिखा है उसपर आगे काम करने में खुद को लगाओ नहीं तो मर जाओगी.
परिवार के दबाव में उन्होंने बेटी पाउला को लिखी चिट्ठियों को कथात्मक तरतीब देकर यह उपन्यास पूरा किया जो आज भी उनकी सर्वश्रेष्ठ कृतियों में शुमार की जाती है. इस किताब में पाउला तो है ही खुद इसाबेल और उनका खानदान भी है – बाहरी तौर पर और आंतरिक दुनिया भी. यहाँ प्रस्तुत पुस्तकांश में माँ को लिखी चिट्ठी की पंक्तियाँ उद्धृत हैं जिसे बीमार पाउला ने इस शर्त के साथ लिखी कि इसे उसके न रहने पर खोला जाए.

यादवेन्द्र
___________________________
उपन्यास अंश
पाउला                      

इसाबेल एलेंदे





कल रात  अंतिम बार पाउला मेरे कमरे में आयी …. मैंने उसके पदचाप सुने, और तहस नहस कर देने वाली बीमारी से पहले वाली चमत्कृत कर देने वाली शालीनता के साथ वह नाइटगाउन और चप्पल पहने दबे पाँव कमरे के अंदर दाखिल हुई. बिस्तर के ऊपर चढ़ कर वह मेरे पैताने बैठ गयी और अपने चिर परिचित अंदाज़ में बोली :
\”सुनो ममा, अब उठ जाओ. मैं नहीं चाहती कि तुम इस मुगालते में रहो कि सोये सोये  सपना देख रही हो. मैं यहाँ तुम्हारी मदद माँगने आयी हूँ….. 

मैं मरना चाहती हूँ पर मर नहीं पा रही हूँ. मुझे अपने सामने दूर तक जाता प्रशस्त मार्ग दिखाई पड़ रहा है फिर भी मैं अपने कदम उठा नहीं पा रही हूँ… 

एक भी नहीं, लगता है कोई है जो मुझे पीछे से पकड़ रहा है. मेरे बिस्तर पर जो शेष है वह सिर्फ़ मेरी बीमार देह है जो रोज़ रोज़ नष्ट होती जा रही है. मुझे अथाह प्यास लगती है और मैं सुकून के लिए तड़पती कराहती हूँ …. 

पर कोई नहीं है जो मेरी  पुकार सुने. मैं बेतरह थक चुकी हूँ…. 
क्यों हो रहा है मेरे साथ यह सब? ममा, तुम तो हमेशा अपनी दोस्त आत्माओं की बात करती रहती हो – उनसे पूछो मेरी मंजिल क्या है, क्या करना है और मुझे?”

मेरा मन कहता है भयभीत होने की कोई बात नहीं, मृत्यु भी वैसे ही एक पड़ाव है जैसे जीवन है. मुझे अफ़सोस है कि अपनी याददाश्त नहीं सहेज पायी और धीरे धीरे उस से मुक्त हो रही हूँ…. जब मैं दुनिया से कूच  करूँगी बिलकुल नंगी जाऊँगी. मेरे साथ साथ पीछे छूट रहे सिर्फ़ अपने प्रियजनों की स्मृतियाँ रहेंगी, और कुछ भी नहीं. तुम मेरे साथ किसी न किसी रूप में हमेशा रहोगी. याद है इस काली लम्बी रात में फिसलने से पहले अंतिम बात दुर्बल आवाज़ में फुसफुसा कर मैंने तुमसे क्या  कहा था ? 

\”मैं तुमसे बेपनाह प्यार करती हूँ ममा\”, तुम्हारे कान के पास आकर मैंने कहा था. यही बात अभी इस वक्त भी दुहरा रही हूँ…. और हर रोज़ तुम्हारे सपनों में आ आकर यही जुमला  जीवन भर दुहराती रहूँगी. बस एक ही चीज़ मुझे थोड़ा असहज करती है और वह है कि आगे मुझे बिलकुल अकेला जाना है…. यदि तुम मेरा हाथ थाम लेतीं तो उस पार जाना मेरे लिए आसान हो जाता. मृत्यु का अपरिमित अंधेरापन मुझे डराता है. ममा, एक बार और मुझे सहारा दे दो. मुझे मौत के मुँह से निकाल लाने के लिए तुम किसी शेरनी की तरह दुर्द्धर्ष संघर्ष करती रहीं पर सच्चाई के सामने तुम्हें भी हार माननी पड़ी. मान लो कि अब और कुछ करना निरर्थक है … 

छोड़ दो अब उम्मीदें, डॉक्टर और दवाओं से अब कुछ नहीं होना, दुआओं में भी असर नहीं रहा अब क्योंकि मेरी नियति में फिर से स्वस्थ होना नहीं है. अब कोई चमत्कार नहीं होना, मेरी किस्मत बदल डाले ऐसा कोई नहीं बचा धरती पर- दरअसल मैं भी अब इसकी बिलकुल इच्छुक नहीं हूँ. मैं जितना बदा था अपना जीवन जी चुकी हूँ और अब सबको हाथ हिला कर विदा हो जाना चाहती हूँ. परिवार के सभी लोग मेरी नियति को देख पा रहे हैं पर एक तुम हो जो उसके आगे किसी अनहोने  चमत्कार की आस लगाए बैठी हो. 
मैं मुक्त होने को बेकरार हो रही हूँ पर अब भी तुम्हारी उम्मीद टूटी नहीं है और तुम माने बैठी हो कि  मैं पहले जैसी हालत में लौट जाऊँगी. ममा, नज़रें उठा कर मेरे जर्जर शरीर को देखो… समझने की कोशिश करो कि मेरी आत्मा देह की कैद से बाहर निकलने को छटपटा रही है. मैं जानती हूँ कि ऐसा कहना मेरे लिए कितना मुश्किल है … जाहिर है तुम्हारे लिए भी होगा पर हम इसके सिवा और कर भी क्या सकते हैं. चीले में मेरे दादा दादी मेरी सलामती की दुआएँ कर रहे हैं और मेरे पिता जीवन के हाथ से लगभग निकल गयी बेटी को कविताओं में स्मरण कर रहे हैं.वहीं देश के दूसरे सिरे पर अर्नेस्टो अनिश्चय के ऊहापोह में गोते लगा रहा है….. 



उस बेचारे को यह एहसास ही नहीं कि मैं उसके जीवन से सदा के लिए विदा हो गयी हूँ. वास्तव में देखें तो वह विधुर हो चुका है पर जबतक मेरा शरीर यहाँ तुम्हारे घर में साँस ले रहा है तब तक वह बेचारा न तो रो सकता है, न किसी दूसरी स्त्री को प्यार कर सकता है. जो थोड़ा समय हमने साथ साथ बिताया हम खूब खुशी खुशी रहे- उस साथ की इतनी खुशनुमा स्मृतियाँ मैं छोड़े जा रही हूँ कि सालों साल उनकी खुशबू  से वह मुक्त नहीं हो पायेगा. तुम उसको भरोसा दिलाना कि मैं उसको कभी अकेला नहीं छोड़ूँगी, उसके साथ बनी रहूँगी. मैं उसकी निगेहबान फ़रिश्ता बन कर जिन्दा रहूँगी …. वैसे ही तुम्हारी भी. एक दो नहीं कुल जमा अट्ठाइस साल हम तुम पल पल साथ रहे हैं- आनंद के वे अनमोल पल थे-  यह सोच कर खुद को कभी यातना मत देना कि ऐसा नहीं वैसा करती तो नतीज़ा यह नहीं कुछ और होता …… 

ये सारी  फ़िजूल की  बातें हैं, उन्हें अपने दिमाग से निकाल दो. जब मैं नहीं रहूँगी तब भी हम एक दूसरे से जुड़े रहेंगे, बिलकुल वैसे ही जैसे तुम अपने नाना नानी से या दादी के साथ संपर्क में रहती हो. मैं तुम्हारे अंदर अनवरत एक कोमल एहसास के रूप में जिन्दा रहूँगी- बल्कि तब हमारे बीच संवाद कहीं ज्यादा सहज हो पायेगा क्योंकि तब तुम्हारी आँखों के सामने मेरी जर्जर काया नहीं होगी…. तुम मुझे पुराने दिनों में जैसा देखती थीं मैं उसी सुंदर रूप में तुम्हारी स्मृतियों में वास करुँगी. 
क्या तुम्हें वह दिन याद है ममा जब तोलेदो में सड़क बीच  छतरी टिका कर भरी बरसात में हम तुम नाचे थे? और यह भी कि अचरज से भरे जापानी सैलानियों ने हमारी ढ़ेर सारी फ़ोटो खींची थीं? आज के बाद से मैं चाहती हूँ तुम मुझे जब भी देखो उसी रूप में देखो- दो अंतरंग दोस्त, दो जिंदादिल औरतें जिन्हें बरसात की कोई परवाह नहीं ! जहाँ तक मेरी बात है मैंने खूब उम्दा और मज़ेदार जीवन जिया …. 

और अब इतनी सुंदर दुनिया से विदा होने का मन बिलकुल नहीं हो रहा. पर मैं डॉ शिमा ने जैसा कहा इसी जलालत में सात साल घिसटते रहने को तैयार नहीं हूँ – भाई इस बात से अच्छी तरह वाकिफ़ है और सच्चाई यह है कि मेरे आसपास के लोगों में सिर्फ़ और सिर्फ़ वही है जो राजी खुशी मुझे इस दुनिया  से विदा करने की  हिम्मत रखता  है. इस मामले में मैं भी उसकी भरपूर मदद करुँगी. हमारा बचपन का दोस्ताना संग साथ निकोलस कभी नहीं भूला- वह एकदम साफ़ दिल और समझदार इंसान है. याद है बरसों पहले जब खिड़की पर मुझे प्रेत छाया दिखाई पड़  रही थी उसने मुझे उससे किस तरह बचाया था?
तुम्हें मालूम ही नहीं कितनी कितनी खुराफ़ातों की हवा हमने तुम तक पहुँचने ही नहीं दीं, एक दूसरे को  बचाने के लिए हमने क्या क्या किस्से गढ़े ,एक की बदमाशी पर दूसरे ने  कितनी बार डाँट खायी. मैं अपनी मृत्यु के लिए तुमसे कुछ नहीं माँग रही हूँ ममा….. 


मैं क्या कोई भी नहीं कह सकता, बस इतना करो कि मैं विदा होऊँ तो रोकना मत …. चुपचाप चले जाने देना. निकोलस को एक चांस दो …. चौबीस घंटे मुझे अपने साथ चिपकाए  रहोगी तो वह भी क्या कर पायेगा बेचारा. अफ़सोस मत करो …. रोना बिलकुल नहीं ममा !
\”नींद से जागो, तुम सोये सोये रो रही हो.\”, मुझे विली की आवाज़ बहुत दूर से आती हुई सुनाई पड़ी. मैं अपनी ऑंखें और जोर से मूँद लेती हूँ कि अंधेरा न बिखरने पाए  वरना मेरी बेटी उजाले में कहीं गुम हो जायेगी. जाने मुझे क्यों लग रहा है यह उससे  अंतिम बार की मुलाकात है,अब बिछुड़ी तो फिर कभी नहीं मिल पाएगी …. उसकी आवाज़ सदा के लिए मुझसे दूर चली जायेगी. 

\”उठो, नींद से जागो …. यह महज़ सपना है, सच नहीं.\”, मेरे पति मुझे झगझोड़ कर जगाने की कोशिश कर रहे हैं. 
\”पाउला रुको …. जरा ठहरो, मैं भी आ रही हूँ …. मुझे तुम्हारे साथ चलना है.\”, मैं बिना रुके बड़बड़ा रही हूँ ….. विली लाइट जला देते हैं और मुझे बाँहों में समेटने को आगे बढ़ते हैं. पर मैं हूँ कि पूरी ताकत लगा कर उनको झटक कर दूर कर देती हूँ – दरवाज़े पर पाउला मुस्कुराते हुए मेरे साथ आने का इंतज़ार करती खड़ी दिखाई देती है….. एक हाथ ऊपर उठा कर वह सबको अलविदा कहने की मुद्रा में घर से बाहर देखने लगती है. उसका सफ़ेद नाइटगाउन किसी बड़े पंख जैसा हवा में लहरा  रहा है और उसके नंगे पाँव कालीन को मुश्किल से छू पा रहे हैं. बिस्तर के बगल में  खरगोश के फ़र वाली उसकी चप्पल अनछुई पड़ी है.        
\”मैं अपनी देह की कैद में अब और नहीं रहना चाहती, इस से आज़ाद होना चाहती हूँ ममा. ऐसा कर के मैं उन सब से ज्यादा निकट रह सकती हूँ जिन्हें मैं प्यार करती हूँ भले ही वे दुनिया के किसी सुदूर कोने में ही क्यों न हों. मैं अपने पीछे कितना प्यार छोड़ जाऊँगी इसको शब्दों में बाँधना बहुत मुश्किल है …. अर्नेस्टो, भाई और दादा दादी के लिए मेरे मन में कितनी गहरी भावनाएँ हैं इनको भी मैं कैसे व्यक्त करूँ ? मुझे भली प्रकार इस बात का एहसास है कि जब तक संभव हो पायेगा …
अपनी आखिरी साँस तक तुम मुझे याद करती रहोगी और मैं भी तुम्हारे आस पास ही रहूँगी. पर मेरी दिली ख़्वाहिश है कि  अब मेरी अंत्येष्टि कर  दी जाये और मेरी राख बाहर खुले में बिखेर दी जाये. मेरा नाम लिखा हुआ कोई पत्थर कब्र बना कर  लगा दिया जाये इसकी मुझे बिलकुल इच्छा नहीं है- मैं अपने प्यारों के दिलों  में बसे रहना चाहती हूँ. …. 


और बाद में मिटटी में विलीन हो जाना चाहती हूँ. मेरे बैंक खाते में कुछ पैसे पड़े हैं उनको आगे पढ़ने वाले और भूखे बच्चों के लिए खर्च कर लेना. मेरी जो चीजें हैं- बहुत थोड़ी हैं- उन्हें जरूरतमंदों के बीच बाँट देना. तुम उदास बिलकुल नहीं होना, मैं तुम्हारे साथ साथ हूँ, पहले से भी कहीं ज्यादा निकट. कभी ऐसा समय आएगा जब हम दोनों आत्माओं के रूप में एक दूसरे से मिलेंगे पर अभी की बात करें तो जब जब तुम मुझे याद करोगी मुझे अपने आस पास पाओगी.
अर्नेस्टो …. मैंने मन की अतल गहराइयों से तुम्हें प्यार किया है … अभी भी उसमें कोई कमी नहीं आयी है …. भलमनसाहत  में तुम्हारा जवाब नहीं है और मुझे पक्का यकीन  है कि मेरे जाने के बाद भी तुम उदास और दुखी नहीं रहोगे. ममा,पापा, निको, दादी, तिओ रेमोन, और तुम खूब गुँथे हुए मुकम्मल परिवार हो और मुझे जीवन में ऐसा परिवार मिला इसका बहुत गर्व है. मुझे कभी अपने दिल से भुलाना नहीं … और उन सभी चेहरों पर निरंतर मुस्कराहट दिखती रहनी चाहिए ! 

यह याद रखना है कि शरीर से मुक्त हो जाने वाली आत्माएँ लोगों की मदद कर सकती हैं, जब जरुरत पड़े उनका साथ दे सकती हैं, उनकी हिफ़ाजत कर सकती हैं- पर उन्हीं लोगों की जो खुशमिजाज़  हैं. 

मैं तुम्हें बेहद प्यार करती हूँ ममा ….\”
पाउला 
______________

yapandey@gmail.com
यादवेन्द्र को यहाँ भी पढ़ें.
१.‘द  ब्रिजेज ऑफ़ मेडीसन काउन्टी’ 
२,माया संस्कृति की कविताएं
3. फराज बेरकदर
Tags: इसाबेल एलेंदेयादवेन्द्र
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