क्या गोलाबारी ख़त्म हो गई है! फ़िलिस्तीनी कविताएँ |
1.
पासपोर्ट
महमूद दरवेश
उन्होंने मुझे नहीं पहचाना. पासपोर्ट के धुँधलेपन ने
मेरे फ़ोटोग्राफ़ की रंगत मिटा दी थी.
उन्होंने मेरे घाव को प्रदर्शित किया
सैलानियों के लिए, जिन्हें फ़ोटोग्राफ़ जमा करने का शौक होता है
उन्होंने मुझे नहीं पहचाना.
आह…! मत छोड़ो मेरी हथेली बिना धूप के
क्योंकि वृक्ष मुझे पहचानते हैं.
सारी सरहदें
सारे हिलते रूमाल
सारी काली आँखें
मेरे साथ थीं
बारिश के सारे गीत मुझे पहचानते हैं
मुझे चाँद की तरह पियराया मत छोड़ो.
सारे पक्षी जो मेरे हाथों के पीछे आए
दूर हवाई अड्डे के दरवाज़े तक
सारे गेहूँ के खेत
पर उन्होंने उन सबको पासपोर्ट से हटा दिया.
सारे क़ैदख़ाने
सारे सफ़ेद क़ब्र के पत्थर
सारी काँटेदार बाड़ें
सारे हिलते हुए रूमाल
सारी आँखें मेरे साथ थीं
लेकिन उन्होंने उन्हें मेरे पासपोर्ट से उड़ा दिया.
मेरे नाम से, मेरी पहचान से वंचित?
ऐसी ज़मीन पर जिसकी मैंने दोनों हाथों से देखभाल की.
आज जेकब चीख़ा
आसमान के आर-पार .
मेरा फिर से इम्तहान मत लो.
ओह! भद्रजनो, पैग़म्बरो,
वृक्षों से उनका नाम मत पूछो
घाटियों से मत पूछो कौन है उनकी माँ .
मेरे माथे से फूटती है रौशनी की तलवार
और मेरे हाथ से फूटा पड़ता है नदी का सोता .
लोगों के दिल ही हैं मेरी राष्ट्रीयता .
सो मेरा पासपोर्ट ले जाओ.
अरबी से अंग्रेज़ी: अब्दुल्लाह अल-उज़री
हिंदी में: अशोक वाजपेयी
2.
कविता का काम आँसू पोंछना नहीं
ज़करिया मोहम्मद
वह रो रहा था, इसलिए उसे सँभालने के लिए मैंने उसका हाथ थामा और आँसू पोंछने के लिए
मैंने उसे कहा जब दुख से मेरा गला रुँध रहा था: मैं तुमसे वादा करता हूँ कि इंसाफ़
जीतेगा आख़िरकार, और अमन जल्दी ही क़ायम होगा.
ज़ाहिर है मैं उससे झूठ बोल रहा था. मुझे पता था कि इंसाफ़ नहीं मिलने वाला
और अमन जल्द नहीं आने वाला, पर मुझे उसके आँसू रोकने थे.
मेरी यह समझ ग़लत थी कि अगर हम किसी चमत्कार से
आँसुओं की नदी को रोक लें, तो सब कुछ ठीक ठाक तरह से चल निकलेगा.
फिर चीज़ों को हम वैसे ही मान लेंगे जैसी वे हैं. क्रूरता और इंसाफ़ एक साथ मैदान
में घास चरेंगे, ईश्वर शैतान का भाई निकलेगा, और शिकार हत्यारे का प्रेमी होगा.
पर आँसू रोकने का कोई तरीक़ा नहीं है. वे बाढ़ की तरह लगातार बहे जाते हैं और अमन की
रवायतों को तबाह कर देते हैं.
और इसलिए, आँसुओं की इस कसैली ज़िद की ख़ातिर, आइए, आँखों का अभिषेक करें
इस धरती के सबसे पवित्र संत के रूप में.
कविता का काम नहीं है आँसू पोंछना.
कविता को खाई खोदनी चाहिए जिसका बाँध वे तोड़ दें और इस ब्रह्मांड को डुबा दें.
अरबी से अंग्रेज़ी: लीना तुफ़्फ़ाहा
हिंदी में: निधीश त्यागी और अपूर्वानंद
3.
मैं तुम हूँ
रिफ़त अल-अरीर
दो कदम: एक, दो.
आईने में देखो:
वह वहशत, वह वहशत!
मेरे गाल की हड्डी पर तुम्हारे एम-16 का कुंदा
वह पीला धब्बा जो उसने छोड़ा
वह गोली के आकार का निशान फैलता हुआ
एक स्वस्तिक की तरह
सर्पीली लकीर बनाता मेरे चेहरे पर,
दिल का दर्द बहता हुआ
मेरी आँखों से टपकता हुआ
मेरे नथुनों से छेदता हुआ
मेरे कानों को डुबाता हुआ
इस जगह को
जैसे इसने तुम्हारे साथ किया था
70 साल या उसके कुछ आस पास.
मैं सिर्फ़ तुम हूँ.
तुम्हारा अतीत सताता हुआ
तुम्हारे वर्तमान और तुम्हारे भविष्य को.
मैं कोशिश करता हूँ जैसे तुमने की थी.
मैं लड़ता हूँ जैसे तुम लड़े थे.
मैं प्रतिरोध करता हूँ जैसे तुमने किया था
और एक लम्हे के लिए
मैं तुम्हारे जीवट को
अपना मॉडल मानता हूँ
क्या तुमने बंदूक़ की नली को
नहीं पकड़ रखा था
मेरी रक्ताक्त आँखों के बीच?
एक. दो.
वही बंदूक़
वही गोली जिसने मारा था तुम्हारी माँ को
जिसने मारा था तुम्हारे पिता को
इस्तेमाल की जा रही है
मेरे ख़िलाफ़
तुम्हारे द्वारा.
पहचानो इस गोली को और इस बंदूक़ को
इसे जब सूँघते हो, इसमें खून है मेरा और तुम्हारा
इसमें मेरा वर्तमान है इसमें तुम्हारा अतीत है
इसमें मेरा वर्तमान है इसमें तुम्हारा भविष्य है.
यही वजह है कि हम जुंड़वाँ हैं
वही ज़िंदगी की राह
वही हथियार
वही पीड़ा
वही चेहरे का अंदाज़
हत्यारे के चेहरे पर खींचा हुआ
हर चीज़ वही
सिर्फ़ कि तुम्हारे मामले में
पीड़ित विकसित हुआ है पीछे की तरह
एक पीड़क में.
मैं कहता हूँ तुम्हें
मैं तुम हूँ
सिर्फ़ यह कि मैं नहीं हूँ आज का तुम.
मैं तुमसे नफ़रत नहीं करता.
मैं तुम्हारी मदद करना चाहता हूँ कि तुम बंद करो
घृणा करना मुझसे और मारना मुझे
मैं तुम्हें कहता हूँ:
तुम्हारी मशीनगन का शोर
तुम्हें बहरा बना देता है
बारूद की गंध
दबा देती है मेरे खून की महक को.
चिंगारियाँ
मेरे चेहरे के भावों को बिगाड़ देती हैं.
क्या तुम बंद करोगे गोली चलाना?
एक क्षण के लिए?
क्या तुम करोगे ऐसा?
तुम्हें बस इतना करना है कि
आँखें बंद करो
(देखना इन दिनों आँखों को अंधा कर देता है)
आँखें बंद करो, कसकर,
जिससे तुम देख सको
अपने मन की आँखों में.
फिर शीशे में देखो.
एक. दो.
मैं तुम हूँ.
मैं तुम्हारा अतीत हूँ.
मुझे मार कर
तुम अपने को मारते हो.
मूल अंग्रेज़ी
हिंदी में: अपूर्वानंद
4.
मेरी सोलह साल की माँ
अहलाम बशारत
क्या कर रही है अस्सी के आसपास की मेरी माँ इन स्थितियों में?
वह काँच के पीछे से देखती है हालात को
बारिश जब रुकती है, वह अपनी प्लास्टिक की चप्पलें डाल बाहर निकलती है
अपना दुशाला कंधे पर डाले और कमर पर कसी हुए ड्रेस पहन
सोलह साल की लड़की की तरह
पीछा करती बारिश, पत्तों और
हवा भरी प्लास्टिक थैलियों का
कि हवा उखाड़ न दे उसकी दस नीली उँगलियाँ
जो फुहार में नाच रहीं ख़ूबसूरती से
मेरे नब्बे के आसपास के पिता क्या कर रहे हैं इन स्थितियों में?
वह घुसे हुए हैं कंबल में सोचते हुए:
कि इन हालात में बिस्तर से बाहर निकलने का क्या फ़ायदा
अगर मैं बीस साल का नौजवान नहीं हो सकता?
अगर मैं कुएँ से पानी निकाल नालियों के ज़रिए प्यासे पौधों तक नहीं पहुँचा सकता?
मैं क्या कर सकता हूँ इन हालात में?
मैं एक शब्द कसता हूँ
अपने अकेलेपन की ज़मीन पर
एक शब्द ठोंक कर गाड़ता हूँ
कि हवा कहीं उड़ा न दे
मेरे सर के ऊपर से
ज़िंदगी का वह तंबू
और मैं सोचता हूँ अपनी सोलह साल की माँ के बारे में
जो अभी भी खेल रही है, और मैं बुलाती हूँ उसे:
लौट आओ घर, बिटिया
और मैं सोचती हूँ अपने बीसेक साल के पिता के बारे में
अपने ज़ख़्मों का ख़्याल रखते ठिठके हुए हैं… मैं गले लगाती हूँ उन्हें
टाँके लगाती हूँ जिन ज़ख़्मों पर ज़रूरी है
वरना खून निकलेगा हथेलियों से
अभी जवान हो तुम
पूरी ज़िंदगी पड़ी है सामने तुम्हारे.
और मैं सोचती हूँ तुम्हें:
क्या कर हो इन हालात में
तुम शांति से जवाब दोगे सपाट ज़ुबान में
जिससे किसी की भी नींद में ख़लल पड़ जाए:
कुछ नहीं.
मैं कुछ नहीं कर रहा.
अरबी से अंग्रेज़ी: ओमनिया अमीन
हिंदी में: निधीश त्यागी
5.
काफ़ी है मेरे लिए
फ़दवा तूक़ान
काफ़ी है मेरे लिए
काफ़ी है उसकी ज़मीन पर मरना
उसमें दफ़्न होना
घुलना और ग़ायब हो जाना उसकी मिट्टी में
और फिर खिल पड़ना एक फूल की शक्ल में
जिससे एक बच्चा खेले मेरे वतन का.
काफ़ी है मेरे लिए रहना
अपने मुल्क के आग़ोश में
उसमें रहना करीब मुट्ठी भर मिट्टी की तरह
घास के एक गुच्छे की तरह
एक फूल की तरह.
अरबी से अंग्रेज़ी: माइकल बर्च
हिंदी में: अपूर्वानंद
6.
भाड़ में जाए तुम्हारा शिल्प पर व्याख्यान, मेरे लोग मर रहे हैं
नूर हिंदी
उपनिवेशवादी लिखते हैं फूलों के बारे में.
मैं बताती हूँ तुम्हें इज़राइली टैंकों पर पत्थर फेंकते बच्चों
के बारे में, गुलबहार के फूलों में बदलने से कुछ पल पहले.
मैं उन कवियों की तरह होना चाहती हूँ, जिन्हें परवाह है चाँद की.
फ़िलिस्तीनी चाँद नहीं देखते जेल की कोठरियों और पिंजरों से.
कितना ग़ज़ब खूबसूरत है, यह चाँद.
कितने सुंदर हैं ये फूल.
जब दुखी होती हूँ मैं फूल उठाती हूँ अपने मृत पिता के लिए
वे हमेशा अल जज़ीरा देखते हैं.
चाहती हूँ जेसिका मुझे मोबाइल पर ‘हैप्पी रमादान’ के टेक्स्ट भेजना बंद कर दे
जानती हूँ मैं अमेरिकी हूँ क्योंकि जब भी मैं किसी कमरे में जाती हूँ, कुछ मर जाता है.
मृत्यु को लेकर उपमाएँ उन कवियों के लिए है जो सोचते हैं कि भूत आवाज़ों का बड़ा ख़्याल रखते हैं.
जब मरूँगी, वादा है, तुम्हारा हमेशा पीछा करूँगी
एक दिन फूलों के बारे में ऐसे लिखूँगी, जैसे मेरी जायदाद हो.
मूल अंग्रेज़ी
हिंदी में: निधीश त्यागी
7.
रूमाल
ग़स्सान ज़क़तान
हमारे बीच कहने को कुछ न बचा
सब उस ट्रेन में चला गया जिसने अपनी सीटी
उस धुएँ में छुपा ली जो बादल न बन सका
उस चले जाने में जिसने तुम्हारे हाथ पाँव बटोरा किए
कुछ भी नहीं बचा कहने को हमारे बीच
इसलिए रहने देते हैं तुम्हारी मौत को
चमकती चाँदी की गहरी कौंध
और रहने देते हैं उन शहरों के सूरज को
तुम्हारे कंधों पर रखे गुलाब
के अक्स में.
अरबी से अंग्रेज़ी: फ़ादी जूदा
हिंदी में: निधीश त्यागी
8.
फ़िलिस्तीन
इब्तिसाम बरकत
ऑफिस में सामान मुहय्या कराने वाले स्टोर का
पुराने सामान की सेल वाला बही खाता खँगालते हुए
मैं तैयारी कर रही हूँ
कि खरीद लूँ सारी दुनिया
एक अदद ग्लोब
बस पचास डॉलर का ही तो है
विक्रेता कहता है 195 देश खरीद लीजिए
बस पचास डॉलर में
मैं सोचती हूँ:
इसका मतलब तो यह हुआ
कि कुल जमा पचीस सेंट का पड़ा
एक देश
यदि मैं आपको दूँ एक डॉलर
तो आप क्या इस ग्लोब में
शामिल कर लोगे फ़िलिस्तीन?
आप इसको किस जगह रखना चाहती हैं?
उसने पलट के पूछा.
वो तमाम जगहें जहाँ जहाँ भी रहते हैं
फ़िलिस्तीनी
मूल अंग्रेज़ी
हिंदी में: यादवेन्द्र
9.
जंगल में
मय ज़ियादे
मीठी ओस
इन नाज़ुक तनों की
मेरी आँखों को भर देती है.
बयार अपनी साँस रोके रखती है
फिर थरथराती गुज़रती है
बहिश्त की छिपी गहराइयों से.
एक वक्र शाख
उसकी आह से हिलती
मेरे पाँवों में घास गूँथती.
एक पत्ती
काँपती है
एक चिड़िया गाती है, इंतज़ार करती है, गाती है
अपनी इच्छाओं की लय में
कुछ फिसलता है
गिरता है
घनी हरी वेणी में.
कभी मैं गाती थी प्रेम के लिए.
अब मेरी आवाज़ कमज़ोर हो गई है
बहुत अधिक चोट खाकर.
वह सुदूर किनारा समंदर का
असमंजस में, मुसकुराता हुआ
खारे जल की अपनी भाप से.
लेकिन मेरी रूह
अनगुँथी
एक खाई में
फँसी है
और मेरे दिल से सिर्फ़ चीखें निकलती हैं.
अरबी से अंग्रेज़ी: रोज़ डेमेरिस
हिंदी में: अपूर्वानंद
10.
उम्र में युद्ध से छोटा
मोसाब अबू तोहा
टैंक धूल में से, बैंगन के खेतों में से लुढ़कते चलते हैं.
बिस्तर अस्त-व्यस्त पड़े हैं, आकाश में बिजली चमकती है, भाई
लड़ाकू विमानों को देखने के लिए खिड़की की ओर लपकता है
जो हवाई हमले के बाद धुएँ के बादलों के
बीच उड़ रहे हैं. लड़ाकू विमान जो चीलों जैसे दिखते हैं
बैठने के लिए, एक पल सांस लेने के लिए जो पेड़ की शाखा
ढूँढ रहे हों, मगर ये धातु की चीलें
रक्त और हड्डी के सूप के कटोरे में आत्माओं को
पकड़ रही हैं.
रेडियो की कोई जरूरत नहीं.
हम ही ख़बर हैं.
क्रुद्ध मशीनगनों से दागे हर गोले से
चींटियों तक के कान दुखते हैं.
सैनिक आगे बढ़ते हैं, किताबें जलाते हैं, कुछ कल के अखबार
के पन्नों को वैसे ही लपेट कर फूंकते हैं जैसे बचपन में
किया करते थे. हमारे बच्चे
कंकरीट के खंभों से पीठ टिका, सिर घुटनों के बीच दबा कर,
तहखाने में छिप जाते हैं, माता-पिता सब चुप हैं.
वहाँ नीचे उमस है और जलते बमों की गर्माइश
बचे रहने की उम्मीद की
साँसे गिनती है.
सितंबर 2000 में, रात के खाने के लिए ब्रेड खरीदने के बाद,
मैंने एक हेलीकॉप्टर को एक टॉवर में
रॉकेट दागते देखा, जो मुझसे बस उतना ही दूर था
जितनी मेरी डरावनी चीखें
जब मैंने ऊँचाई से कंकरीट और कांच गिरने की आवाज़ सुनी थी.
ब्रेड बासी हो गई थी.
मैं उस समय केवल 7 वर्ष का था.
मैं उम्र में युद्ध से दशकों छोटा था,
बमों से कुछ वर्ष बड़ा.
हिंदी में: रीनू तलवाड़
11.
गाज़ा निवासी होने से पहले
नाओमी शिहाब नाय
मैं एक बच्चा था
और मेरा होमवर्क कहीं खो गया था,
एक कागज़ जिस पर अंक थे,
पंक्तियों में क्रमबद्ध,
मैं अपने उस कागज़ के पर्चे को खोज रहा था,
ये जमा वो, फिर गुणा
फूला न समाता,
याद नहीं कर पा रहा था कि
चाचा को दिखाने के बाद उसे मेज़ पर छोड़ दिया था
या कंघी करने के बाद ताक़ पर
मगर वह कहीं था ज़रूर
और मैं उसे ढूँढ कर कल स्कूल में देने वाला था,
टीचर दीदी को खुश करने वाला था
पूरी कक्षा के सामने वे मेरा नाम लेने वाली थीं,
उस से पहले ही सब घटा दिया गया
एक ही पल में
यहाँ तक कि मेरे चाचा भी
यहाँ तक कि टीचर दीदी भी
यहाँ तक कि कक्षा का सबसे अच्छा गणित का छात्र
और उसकी छोटी-सी बहन भी
जो अभी बोल नहीं पाती थी.
और अब मैं कुछ भी कर सकता हूँ
एक ऐसे सवाल के लिए जिसे मैं हल कर सकूँ.
हिंदी में: रीनू तलवाड़
12.
गोलाबारी ख़त्म हो गई
नजवान दरविश
कल तुम्हें कोई नहीं जान पाएगा.
गोलाबारी ख़त्म हो गई
केवल तुम्हारे भीतर दोबारा शुरू होने के लिए.
इमारतें गिर गईं, क्षितिज राख हो गया,
केवल इसलिए कि तुम्हारे भीतर आग की लपटें तेज़ी से फैलती रहें,
लपटें जो पत्थर को भी भस्म कर देंगी.
क़त्ल किए गए लोग नींद में डूबे हैं,
मगर नींद तुम्हें कभी नहीं मिल पाएगी
हमेशा जागते रहो,
जागते रहो जब तक ढह न जाएँ, ये विशाल चट्टानें जो
कहा जाता है कि सेवानिवृत्त देवताओं के आँसू हैं.
क्षमा चुक गई है,
और दया खून से लथपथ है, समय से बाहर कहीं.
अब तुम्हें कोई नहीं जानता,
और कल भी तुम्हें कोई नहीं जान पाएगा.
तुम, पेड़ों की तरह,
एक जगह जड़ दिए गए थे
जब गोलाबारी हो रही थी.
हिंदी में: रीनू तलवाड़
13.
लगभग चार साल की बच्ची की डायरी से
हनान मिखाइल अशरावी
कल, पट्टियाँ
खुल जाएँगी. मैं सोच रही हूँ
क्या मुझे संतरा आधा दिखाई देगा,
सेब भी आधा, आधा ही
माँ का चेहरा भी
अपनी बची हुई एक आँख से?
मुझे गोली दिखाई नहीं दी
मगर अपने सर में विस्फोट-सा
उसका दर्द महसूस हुआ.
उसकी छवि गायब
नहीं हुई, उस बड़ी बंदूक
वाले सिपाही की, कांपते हुए
उसके हाथ, और उसकी आँखों
में क्या था
मैं समझ नहीं पाई
मैं उसे अब भी साफ़-साफ़ देख पा रही हूँ
बंद आँखों से,
हो सकता है कि दिमाग के भीतर
हम सब के पास एक अतिरिक्त जोड़ा है
आँखों का
जिन आँखों को हम खो चुके हैं
उनकी भरपाई के लिए
अगले महीने, अपने जन्मदिन पर,
मेरे पास कांच की एक बिलकुल नई आँख होगी,
शायद चीजें मुझे बीच से
गोल-मटोल दिखाई देंगी –
मैंने अपने सभी कंचों के बीच से देखा है,
वे दुनिया को अजीब बना देते हैं.
मैंने सुना कि एक नौ महीने की बच्ची
ने भी एक आँख खो दी है,
मैं सोच रही हूँ कि क्या मेरे वाले सैनिक
ने उसे भी गोली मारी थी — एक ऐसा सैनिक
जो ऐसी छोटी लड़कियों की तलाश कर रहा है जो
उसकी आँख में आँख डाल के देखती हैं –
मैं तो बड़ी हूँ, लगभग चार साल की,
मैंने जीवन बहुत देखा है,
मगर वह तो अभी एक बच्ची है
जिसे पता नहीं था कि क्या करना चाहिए.
हिंदी में: रीनू तलवाड़
14.
गाज़ा के दुष्ट खुराफ़ाती बच्चे
खालेद जुमा
ओ गाज़ा के दुष्ट खुराफ़ाती बच्चों
मेरी खिड़की के नीचे हर समय
तुम चीखते चिल्लाते रहते हो
कोई सुबह ऐसी नहीं बख्शी तुमने
जब दौड़ना शोर मचाना न हुआ हो
तुमने तोड़ फोड़ डाले मेरे फूलदान
यहां तक कि बालकनी में खिले फूल भी
जाते जाते नोंच लिए….
लौट आओ मेरे प्यारे बच्चों
अब जितना चाहो शोर मचाना
जितने फूलदान हैं सब तुम्हारे हवाले
तोड़ो फोड़ो जो चाहे सो करो
चुरा ले जाओ मेरी बालकनी के सारे फूल
पर आ जाओ मेरे बच्चों
लौट आओ मेरे प्यारे बच्चों.
हिंदी में: यादवेन्द्र
फिलिस्तीनी ज़ख्म , बेदखली, सूझ ,संताप, दुख और प्रतिकार को कहने वाली बेजोड़ कविताएँ |
फ़िलस्तीनी नागरिकों, वहाँ के भवनों, पेड़ों, नौ महीने की बच्ची की एक आँख को फोड़ देने और न जाने किन-किन उपमाओं में लिखी गयीं पीड़ा और दुख देखने हम ज़िंदा क्यों बचे हैं । ग्लोब में मुझे भी एक फ़िलिस्तीनी होने की जगह दे दो । मेरी आँखों के आँसू ग्लोब के उस बिंदु पर टपक रहे हैं जहाँ फ़िलिस्तीन 🇵🇸 है ।
फ़दवा तूक़ान इतना ‘काफ़ी है मेरे लिये’ कि मुझे गोद adopt कर लो । मैं तुम्हारी गोद में सदा के लिये सो जाना चाहता हूँ ।
ग़र ऐसा न कर सको तो मैं अगले जन्म में तुम्हारी कोख से जन्म लेना चाहूँगा । तुम सुन रहे/रही हो न फ़दवा तूक़ान ।
बेहतर और ज़रूरी उपक्रम। बधाई।
कविताएँ अपना काम, जैसे लाम पर कर रही हैं।
संग्रह पढ़ा जाएगा।
यह बहुत महत्वपूर्ण कविताएं हैं एक प्रतिरोध के रूप में इन कविताओं की जीवन में आवश्यकता है
गोलीबारी कभी ख़त्म नहीं होती,युद्ध सनातनी है।कवियों के मर्म में दर्ज दर्द,कविताओं को कब इंसाफ़ मिलेगा?
बहुत सुंदर। पहली कविता में जेकब (याकूब) की जगह शायद जोब (अय्यूब) होगा, क्योंकि इम्तहान जोब का लिया गया था।
बहुत सुंदर कविताएं । बहुत सुंदर अनुवाद । बधाई
फिलिस्तीनी कविताओं का यह जरूरी अंक है। कुछ माह पूर्व रामकृष्ण पाण्डेय द्वारा अनूदित फिलिस्तीनी कविताओं का संकलन पढ़ा था।
अनुवाद सुंदर हैं।
मुझे ये किताब चाहिए कहां मिले gi
इस अत्यधिक प्रासंगिक प्रस्तुति के लिए समालोचन और तमाम अनुवादकों का बहुत बहुत आभार. इसे कई बार पढ़ा. कई बार और पढ़ना है.