बहादुर पटेल जीवन से संलग्नता के सजीव, संवेनशील और सक्षम कवि हैं. उनमें एक खुरदरापन और जीवटता है जो आत्माभिमान से आलोकित है. जब वह कहते हैं –‘ और हम सबमें एक चापलूस की आत्मा भी उतर आई है.’ तो यह प्रतिकार की सच्चाई से उठती हुई लगती है. आक्रोश को धीरज से कविता में बुनने के लिए जो हुनर चाहिए उसे बहादुर पटेल ने अर्जित किया है.
बहादुर पटेल की कविताएँ
मैं इन दिनों बहुत चिडचिडा हो गया हूँ
किसी भी समय मेरे गुस्से का पारा जा सकता है
सातवें आसमान पर
इसकी वजह मुझे नहीं पता
जब शांत होता है जल तो गोते लगाकर जानना चाहता हूँ
कि तल में क्या है
क्या मेरी परछाई वहाँ पत्थर की तरह पड़ी हुई है
एक बूँद पानी उतरा है कई बरसों में
पत्थर के सीने में
आग की एक लपट उसके भीतर पहले से ही है मौजूद है
उसकी सख्ती में दोनों का बराबर हाथ है
एक दिन आग और पानी ही गलायेंगे उसे
यह एक किताब की तरह खुलेगा
और अपना इतिहास बताएगा
ओह बहुत उदास हूँ मैं आज
देखो इस वीणा का तार कितना ढीला हो गया
कितना कमजोर हो गया है यह जीवन भर रो गाकर
इसको कसने से मन लगातार डरता रहता है
किस कोने में रखूँ
जहाँ यह शोभा बढाता रहे
कोई राग अब इसके बस का नहीं
17 दिसम्बर, 1968 को लोहार पीपल्या गाँव (देवास, म.प्र.) में
शब्दों तुम आना
शब्दों तुम आओ मेरे पास
जो कोई और बुलाता है
जाओ उसके पास भी जाओ
जो किफ़ायत बरते तुम्हारे साथ
उसके पास संगीत की तरह जाओ
जो कोई और बुलाता है
जाओ उसके पास भी जाओ
जो किफ़ायत बरते तुम्हारे साथ
उसके पास संगीत की तरह जाओ
जो अपव्यय करते हैं
जाना तो होगा तुम्हे उनके भी पास
उनके मुंह से जब गिरो
तो हवा में नहाकर
चुपके से मेरी कविता में छुप जाना
जाना तो होगा तुम्हे उनके भी पास
उनके मुंह से जब गिरो
तो हवा में नहाकर
चुपके से मेरी कविता में छुप जाना
तुम्हे तो जाना ही होगा हर एक के पास
किसी बच्चे की तोतली भाषा में
इस तरह जाना कि वह तुम्हे सीख ले
इतनी जल्दी मत आना उसके पास से
कि वह तुम्हे भुला दे
तुम बच्चे से कुछ सीख लो
तो मेरे अवचेतन में बस जाना
मेरे बचपन की किसी कविता में
उसका बचपन गा जाना
किसी बच्चे की तोतली भाषा में
इस तरह जाना कि वह तुम्हे सीख ले
इतनी जल्दी मत आना उसके पास से
कि वह तुम्हे भुला दे
तुम बच्चे से कुछ सीख लो
तो मेरे अवचेतन में बस जाना
मेरे बचपन की किसी कविता में
उसका बचपन गा जाना
मेरी पंक्तियों में ऐसे आना
जो जगह तुम्हारी हो वहीँ बैठ जाना
किसी और शब्द की जगह पर मत बैठना
शिशु की तरह का शब्द आये तो पहले उसे जगह देना
मेरे आग्रह को ठुकराकर
कभी अपने मन से मेरी कविता में आना
जो जगह तुम्हारी हो वहीँ बैठ जाना
किसी और शब्द की जगह पर मत बैठना
शिशु की तरह का शब्द आये तो पहले उसे जगह देना
मेरे आग्रह को ठुकराकर
कभी अपने मन से मेरी कविता में आना
जो शब्दों का इतिहास न जानता हो
उसके पास बिना सोचे समझे चले जाना
मैं भी जानता हूँ और तुम भी जानते हो
उसकी मुर्खता के किस्से मुझे सुना जाना
एक कवि ही रखेगा तुम्हे सही जगह
तब तुम जनता को सही-सही बता जाना
उसके पास बिना सोचे समझे चले जाना
मैं भी जानता हूँ और तुम भी जानते हो
उसकी मुर्खता के किस्से मुझे सुना जाना
एक कवि ही रखेगा तुम्हे सही जगह
तब तुम जनता को सही-सही बता जाना
तानाशाह के पास भी जाना
अबोला न लेना उससे
पर उसकी बातों में ना आना
वह तुम्हे कीलों वाले जूते पहनायेगा
सन्नायेगा उन सारे शब्दों पर
जो तुम्हारे अपने ही हैं
फिर भी तुम आना
मेरी कविता में
दिखाने उसका भी चेहरा.
अबोला न लेना उससे
पर उसकी बातों में ना आना
वह तुम्हे कीलों वाले जूते पहनायेगा
सन्नायेगा उन सारे शब्दों पर
जो तुम्हारे अपने ही हैं
फिर भी तुम आना
मेरी कविता में
दिखाने उसका भी चेहरा.
पॉवर हाउस
हमारे प्रेम करने की कई जगहें थी
जहाँ मिलना होता हमारा
उन जगहों के भीतर भी
कई-कई छुपने की जगहें थी
जिनके पीछे चोरी-छुपे होता अक्सर प्रेम
जहाँ मिलना होता हमारा
उन जगहों के भीतर भी
कई-कई छुपने की जगहें थी
जिनके पीछे चोरी-छुपे होता अक्सर प्रेम
इस तरह हम उन जगहों से भी करने लगते प्रेम
दरअसल वे हमारे लिए ऐसा लोक थीं
जहाँ हमारे सपने अण्डों की शक्ल में रखे होते
हम उन्हें सेते रहते
उनके भीतर हमारे पंख पल रहे होते
जिनके सहारे हमें पार करना था
ढाई आखर का सफ़र
दरअसल वे हमारे लिए ऐसा लोक थीं
जहाँ हमारे सपने अण्डों की शक्ल में रखे होते
हम उन्हें सेते रहते
उनके भीतर हमारे पंख पल रहे होते
जिनके सहारे हमें पार करना था
ढाई आखर का सफ़र
दरअसल ये वे जगहें थीं
जो संसार के लिए फालतू थी
वे ऐसी जगहों से नफ़रत करते
उनके हिसाब से ये ऐसी पाठशालाएं थी
जो हम जैसे आवारा लोग बनाती थीं
वे ऐसी जगहों को मैदान
या किसी धर्मस्थल में बदल देना चाहते थे
जो संसार के लिए फालतू थी
वे ऐसी जगहों से नफ़रत करते
उनके हिसाब से ये ऐसी पाठशालाएं थी
जो हम जैसे आवारा लोग बनाती थीं
वे ऐसी जगहों को मैदान
या किसी धर्मस्थल में बदल देना चाहते थे
पर दीवाने मानते कहाँ हैं यारो
वे बार-बार इन जगहों पर ही जाते
और ये जगहें बदनाम होने के बावजूद धड़कती रहती
और बनी रहती हम लोगों की शरणस्थली
वे बार-बार इन जगहों पर ही जाते
और ये जगहें बदनाम होने के बावजूद धड़कती रहती
और बनी रहती हम लोगों की शरणस्थली
ऐसी ही थी यह जगह भी
पॉवर हाउस
जहाँ का सन्नाटा मुझे खींचता रहता
अक्सर हम वहाँ जाया करते
और ट्रांसफार्मर के पीछे होता
हमारा मिलना
जब कभी वह नहीं आती
तो भी घंटो वहाँ बैठा रहता मैं
मोबाईल पर सुनता रहता गाने
या उससे बतियाता रहता
पॉवर हाउस
जहाँ का सन्नाटा मुझे खींचता रहता
अक्सर हम वहाँ जाया करते
और ट्रांसफार्मर के पीछे होता
हमारा मिलना
जब कभी वह नहीं आती
तो भी घंटो वहाँ बैठा रहता मैं
मोबाईल पर सुनता रहता गाने
या उससे बतियाता रहता
पॉवर हाउस याने इस जमीं पर ऐसी जगहें
जैसे पृथ्वी का कोई उपग्रह
जैसे लोकधुन के बीच आवाज़
नृत्य के बीच की लचक
कविता के बीच कहा गया अनकहा अर्थ
पेंटिंग के बीच नाचता हुआ कोई स्ट्रोक
दूर किसी के पुकारने की आवाज़ के भीतर का दर्द
जैसे पृथ्वी का कोई उपग्रह
जैसे लोकधुन के बीच आवाज़
नृत्य के बीच की लचक
कविता के बीच कहा गया अनकहा अर्थ
पेंटिंग के बीच नाचता हुआ कोई स्ट्रोक
दूर किसी के पुकारने की आवाज़ के भीतर का दर्द
इस तरह ये जगहें होती रहती
प्रेम से आबाद
जब होता मैं उसके प्रेम में
तब चला जाता खुद से बहुत दूर
और बिलकुल उसके पास
प्रेम से आबाद
जब होता मैं उसके प्रेम में
तब चला जाता खुद से बहुत दूर
और बिलकुल उसके पास
वहीं से लगाता आवाज़
तुम पॉवर हाउस आ जाना अपनी आवाज़ लेकर
अपने कान भी लेती आना
मैं उनमे शहद की कुछ बूंदे डालूँगा
जिन्हें तुम गुनगुनाती रहना मेरी यादों के साथ
तुम पॉवर हाउस आ जाना अपनी आवाज़ लेकर
अपने कान भी लेती आना
मैं उनमे शहद की कुछ बूंदे डालूँगा
जिन्हें तुम गुनगुनाती रहना मेरी यादों के साथ
सबसे ताज़ी और खनकती हुई हंसी भी ले आना
मैं उसकी माला बनाऊंगा
और तुम मिलोगी तो अपने ही हाथों से
तुम्हारे जुड़े में सजाऊंगा
मैं उसकी माला बनाऊंगा
और तुम मिलोगी तो अपने ही हाथों से
तुम्हारे जुड़े में सजाऊंगा
अपने पांवों की थप-थप भी ले आना
मैं उन आवाजों के सहारे
पार करूँगा तुम्हारे और मेरे बीच की दूरी
मैं उन आवाजों के सहारे
पार करूँगा तुम्हारे और मेरे बीच की दूरी
इस तरह इन जगहों को
रखा हमने आबाद
ये जगहें हमारे भीतर धड़कती रहेंगी
और हमारी धडकनों की आवाज़ बुलाती रहेंगी उन्हें
जो हमारी तरह होना चाहते हैं ।
रखा हमने आबाद
ये जगहें हमारे भीतर धड़कती रहेंगी
और हमारी धडकनों की आवाज़ बुलाती रहेंगी उन्हें
जो हमारी तरह होना चाहते हैं ।
सारा नमक वहीँ से आता है
सारे समुद्रों का जल
मेरी प्यास से कम है
देखो मेरी आँखों की खिड़की से भीतर झांककर
कितना विस्तार है तुम्हारा
मेरी प्यास से कम है
देखो मेरी आँखों की खिड़की से भीतर झांककर
कितना विस्तार है तुम्हारा
कितनी लहरें हैं
जो सीधे टकराती हैं तुम्हारी आत्मा से
यह जानती हो तुम
और तुम्हारा बेखबर बने रहना
मेरे भीतर बजता रहता है
लहरों और पानी के बीच का सन्नाटा
मछलियों का रुदन सुना है तुमने
देखा है कभी
सारा नमक वहीँ से आता है
मेरी प्यास नमक के बिना अधूरी है
जो सीधे टकराती हैं तुम्हारी आत्मा से
यह जानती हो तुम
और तुम्हारा बेखबर बने रहना
मेरे भीतर बजता रहता है
लहरों और पानी के बीच का सन्नाटा
मछलियों का रुदन सुना है तुमने
देखा है कभी
सारा नमक वहीँ से आता है
मेरी प्यास नमक के बिना अधूरी है
सारे अवशेष मेरी उम्र के तल में विलंबित है
खंखोलने पर भी वे सतह पर नहीं आते
मेरी आकांक्षाएं एक विलोम के घेरे में फँसी रहती हैं
मेरे जीने का मकसद
कोई अर्थ पैदा नहीं करता
सारा नमक समुद्र ने मुझसे उधार लिया है .
खंखोलने पर भी वे सतह पर नहीं आते
मेरी आकांक्षाएं एक विलोम के घेरे में फँसी रहती हैं
मेरे जीने का मकसद
कोई अर्थ पैदा नहीं करता
सारा नमक समुद्र ने मुझसे उधार लिया है .
चिड़चिड़ाहट
मैं इन दिनों बहुत चिडचिडा हो गया हूँ
किसी भी समय मेरे गुस्से का पारा जा सकता है
सातवें आसमान पर
इसकी वजह मुझे नहीं पता
जब शांत होता है जल तो गोते लगाकर जानना चाहता हूँ
कि तल में क्या है
क्या मेरी परछाई वहाँ पत्थर की तरह पड़ी हुई है
कांटे का कोई झांकरा भी नहीं दिखता वहां
मेरे मन के कोटर में जहरीला जंतु तो नहीं बैठा है
बेवजह चिड़चिड़ाहट का सबब कोई कैसे जाने
यह मुझे कमजोर करती है
जैसे मुझे जिसपर गुस्सा होना चाहिए उसपर अचानक
प्रेम की बारिश करने लगता हूँ
और जो कमजोर और असहाय होता है
उसी पर उतर जाता है सदियों का गुस्सा
मेरे मन के कोटर में जहरीला जंतु तो नहीं बैठा है
बेवजह चिड़चिड़ाहट का सबब कोई कैसे जाने
यह मुझे कमजोर करती है
जैसे मुझे जिसपर गुस्सा होना चाहिए उसपर अचानक
प्रेम की बारिश करने लगता हूँ
और जो कमजोर और असहाय होता है
उसी पर उतर जाता है सदियों का गुस्सा
मेरे पास गुस्से और प्रेम करने की कई वजह हैं
जो अचानक सामने आती हैं
प्रायोजित कुछ भी नहीं होता
काम का बोझ तो होता ही है इन दिनों
कैसी दौड़ लगाता है यह जीवन
जो अचानक सामने आती हैं
प्रायोजित कुछ भी नहीं होता
काम का बोझ तो होता ही है इन दिनों
कैसी दौड़ लगाता है यह जीवन
सबको देखता हूँ गौर से तो लगता है
हर कोई चिडचिडा है
अपने से कमजोर पर निकालता है अपना गुस्सा
हर आदमी अपने गुस्से को प्रेम में बदलने की कला में माहिर है
ठीक उसी तरह प्रेम को गुस्से में
हर कोई चिडचिडा है
अपने से कमजोर पर निकालता है अपना गुस्सा
हर आदमी अपने गुस्से को प्रेम में बदलने की कला में माहिर है
ठीक उसी तरह प्रेम को गुस्से में
जैसे मुफलिसी में होता हूँ
तो गाली देता हूँ पूंजीपतियों को
और गांठ में आते है कुछ रुपये
तो गरिया लेता हूँ गरीबों को
तो गाली देता हूँ पूंजीपतियों को
और गांठ में आते है कुछ रुपये
तो गरिया लेता हूँ गरीबों को
फेरी वाले से मोल भाव करता हूँ
तो लूटने का इल्जाम लगता हूँ
मॉल में जाता हूँ तो गदगद भाव से खरीद लाता हूँ
गैरजरूरी सामान
तो लूटने का इल्जाम लगता हूँ
मॉल में जाता हूँ तो गदगद भाव से खरीद लाता हूँ
गैरजरूरी सामान
मेरी और आप सबकी चिड़चिड़ाहट में कोई खास अंतर नहीं हैं
यह समय ही ऐसा है
हम चिड़चिड़े हो गए हैं
और हम सबमें एक चापलूस की आत्मा भी उतर आई है.
यह समय ही ऐसा है
हम चिड़चिड़े हो गए हैं
और हम सबमें एक चापलूस की आत्मा भी उतर आई है.
पत्थर
एक बूँद पानी उतरा है कई बरसों में
पत्थर के सीने में
आग की एक लपट उसके भीतर पहले से ही है मौजूद है
उसकी सख्ती में दोनों का बराबर हाथ है
एक दिन आग और पानी ही गलायेंगे उसे
यह एक किताब की तरह खुलेगा
और अपना इतिहास बताएगा
हमारी सभ्यता के कई टूकडे बिखर जायेंगे आसपास
हम चुनने की कोशिश करेंगे
वे धुल में तब्दील हो जायेंगे
हमारा संदेह उनको कई परिणामों में बदल देगा
हम चुनने की कोशिश करेंगे
वे धुल में तब्दील हो जायेंगे
हमारा संदेह उनको कई परिणामों में बदल देगा
पत्थर ही आग पैदा करेगा
वही बचाएगा इस पृथ्वी को टूटने से
वही लौटाएगा हमें हमारा पानी
वह हमारे घरों को बनाएगा
और हम उनमें रहेंगे
वह शामिल रहेगा हमारे स्वाद में
जैसे वह कभी शामिल रहा था हमारे विकास में
वह अक्सर हमारी स्मृतियों में सन्नाता रहता है
वही बचाएगा इस पृथ्वी को टूटने से
वही लौटाएगा हमें हमारा पानी
वह हमारे घरों को बनाएगा
और हम उनमें रहेंगे
वह शामिल रहेगा हमारे स्वाद में
जैसे वह कभी शामिल रहा था हमारे विकास में
वह अक्सर हमारी स्मृतियों में सन्नाता रहता है
हमारा इतिहास पत्थर, आग और पानी के बिना अधूरा है
सभ्यता की किलंगी पर चढ़ा आदमी
इनसे बहुत पीछे है
इनकी गंध हमारे भीतर हवा की तरह रहती है
जब कोई स्त्री सिलबट्टे पर मसाला पीसती है
या घट्टी पीसती है
तब बजता है इन्ही में संगीत
जो सदियों तक हवा में रहेगा मौजूद
और हमारी सभ्यता के बहरे कान सुन नहीं पाएंगे.
सभ्यता की किलंगी पर चढ़ा आदमी
इनसे बहुत पीछे है
इनकी गंध हमारे भीतर हवा की तरह रहती है
जब कोई स्त्री सिलबट्टे पर मसाला पीसती है
या घट्टी पीसती है
तब बजता है इन्ही में संगीत
जो सदियों तक हवा में रहेगा मौजूद
और हमारी सभ्यता के बहरे कान सुन नहीं पाएंगे.
निवेदन करता हुआ आदमी
निवेदन करता हुआ आदमी
विक्षिप्त कहलाता है
वह कहीं भी मिलेगा इस समय में तो इससे कम क्या कहलायेगा
अपने जीवन के तमाम दुखों पर
हरा हुआ ये आदमी रिरियाता हुआ आयेगा नजर
अपने किसी अदने से सुख में भी वह पागल का पागल लगेगा
अपनी किसी जिद पर भी वह गिड़गिड़ाता नजर आयेगा
उसके रोने का तरीका भी हंसायेगा ही
विक्षिप्त कहलाता है
वह कहीं भी मिलेगा इस समय में तो इससे कम क्या कहलायेगा
अपने जीवन के तमाम दुखों पर
हरा हुआ ये आदमी रिरियाता हुआ आयेगा नजर
अपने किसी अदने से सुख में भी वह पागल का पागल लगेगा
अपनी किसी जिद पर भी वह गिड़गिड़ाता नजर आयेगा
उसके रोने का तरीका भी हंसायेगा ही
वह किसी पत्थर पर बैठ कर
इस सख्त दुनिया से एतराज जताएगा
तब उसके मन में झाँकेगी कोई तितली
जिसे वह पकड़ने दोड़ेगा
धीरे से मुस्काएगा अपने इस पागलपन पर
इस सख्त दुनिया से एतराज जताएगा
तब उसके मन में झाँकेगी कोई तितली
जिसे वह पकड़ने दोड़ेगा
धीरे से मुस्काएगा अपने इस पागलपन पर
वह किसी एकांत की और भागेगा अपने को बचाता हुआ
और फँस जायेगा भारी भीड़ में
वहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझेगा
खोया हुआ अपने को ढूँढ़ेगा
और अंततः नाकाम होकर अपना ही पता पूछेगा
और उसे कोई नहीं बताएगा
और फँस जायेगा भारी भीड़ में
वहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं सूझेगा
खोया हुआ अपने को ढूँढ़ेगा
और अंततः नाकाम होकर अपना ही पता पूछेगा
और उसे कोई नहीं बताएगा
बहुत लोग हैं जो इसी तरह निवेदन करते दिखाई दे जायेंगे
छोटी-छोटी बातों पर झल्ला उठेंगे
जब लोगों का व्यवहार अप्रत्याशित होगा
तो वे उदासी के किसी जंगल भटकते रहेंगे
अपने पर गुस्सा करते हुए दूर तक निकल जायेंगे
वे गुमनाम से घर लौटेंगे तो
अपने ही घर में घुसने से पहले
उनसे पूछा जायेगा कि वे कौन हैं
छोटी-छोटी बातों पर झल्ला उठेंगे
जब लोगों का व्यवहार अप्रत्याशित होगा
तो वे उदासी के किसी जंगल भटकते रहेंगे
अपने पर गुस्सा करते हुए दूर तक निकल जायेंगे
वे गुमनाम से घर लौटेंगे तो
अपने ही घर में घुसने से पहले
उनसे पूछा जायेगा कि वे कौन हैं
अपने जीवन में किये गए सारे काम
उन्हें अपराध की तरह लगेंगे
जिनका दंड उन्होंने आखिर अब तक भोगा है
एक अंधड़ ऐसे लोगों को घेर लेता है बार-बार
उन्हें अपराध की तरह लगेंगे
जिनका दंड उन्होंने आखिर अब तक भोगा है
एक अंधड़ ऐसे लोगों को घेर लेता है बार-बार
आँखों की पुतलियों पर धूल की परत दृश्य को कर देती है धुंधला
धूल के परदे के पार वह सत्य को देखने की करता है कोशिश
लेकिन यह हास्यास्पद आदमी
आज भी एक टिमटिमाते दीये को बुझने नहीं देता
एक आस लिए वह लगातार निवेदन कर रहा है.
धूल के परदे के पार वह सत्य को देखने की करता है कोशिश
लेकिन यह हास्यास्पद आदमी
आज भी एक टिमटिमाते दीये को बुझने नहीं देता
एक आस लिए वह लगातार निवेदन कर रहा है.
बहुत उदास हूँ मैं आज
ओह बहुत उदास हूँ मैं आज
देखो इस वीणा का तार कितना ढीला हो गया
कितना कमजोर हो गया है यह जीवन भर रो गाकर
इसको कसने से मन लगातार डरता रहता है
किस कोने में रखूँ
जहाँ यह शोभा बढाता रहे
कोई राग अब इसके बस का नहीं
दूसरे जीवन का कोई भरोसा नहीं
यही जनम था मेरे हिस्से का जिसे बहुत बेतरतीबी से जिया
कई दाग लगाये मैंने इस पर
ये दाग धोने के विचार कांपता रहता है वर्तमान
इनमें रंग भरना चाहता हूँ
किस फ्रेम में रखूँ
कौन सी वीथिका में टांगू
इन दाग से लिथड़े हुए रंगों से अब कोई चित्र नहीं उभरता
यही जनम था मेरे हिस्से का जिसे बहुत बेतरतीबी से जिया
कई दाग लगाये मैंने इस पर
ये दाग धोने के विचार कांपता रहता है वर्तमान
इनमें रंग भरना चाहता हूँ
किस फ्रेम में रखूँ
कौन सी वीथिका में टांगू
इन दाग से लिथड़े हुए रंगों से अब कोई चित्र नहीं उभरता
कितने-कितने नियम बनाये
मुझ जैसे लोगो के लिए
पर वे लोग यह कभी जान भी नहीं पाए कि
मैंने कैसे इनके परखच्चे बिखेरे हैं
दगे और धोखे के इस महल में असंख्य पंख बिखरे पड़े हैं
मुझ जैसे लोगो के लिए
पर वे लोग यह कभी जान भी नहीं पाए कि
मैंने कैसे इनके परखच्चे बिखेरे हैं
दगे और धोखे के इस महल में असंख्य पंख बिखरे पड़े हैं
हमेशा मुझे गुमान रहा मेरी कला पर
कलाकार होने की छूट हर बार मैंने ली
इसी बिना पर अपराधी होने से हर बार बचा मैं
मेरी यह ढाल अब मेरे काम नहीं आ रही
किस शोर्य की दीवार पर टांगू
इतनी तलवारें पहले ही टांग चुका हूँ यहाँ कि जगह कहाँ बची है
कलाकार होने की छूट हर बार मैंने ली
इसी बिना पर अपराधी होने से हर बार बचा मैं
मेरी यह ढाल अब मेरे काम नहीं आ रही
किस शोर्य की दीवार पर टांगू
इतनी तलवारें पहले ही टांग चुका हूँ यहाँ कि जगह कहाँ बची है
बहुत तेज दौड़ा हूँ मैं
थकान की दीवार कभी कुछ समझा ही नहीं मैंने
थकान की दीवार कभी कुछ समझा ही नहीं मैंने
मैं बहुत लाचार सा खड़ा हूँ
अपने को दुःख देता रहा
लगातार-लगातार अपने से ही लड़ता रहा हूँ
मैंने किसी व्यवस्था पर कभी एतबार नहीं किया
लगातार करता रहा प्रेम पर भरोसा
अब मैं किसी भी पल मारा जा सकता हूँ
किसी भी तरह भरोसा नहीं दिला सकता
अपने को दुःख देता रहा
लगातार-लगातार अपने से ही लड़ता रहा हूँ
मैंने किसी व्यवस्था पर कभी एतबार नहीं किया
लगातार करता रहा प्रेम पर भरोसा
अब मैं किसी भी पल मारा जा सकता हूँ
किसी भी तरह भरोसा नहीं दिला सकता
कि जो मैं कर रहा हूँ वही सही है.
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17 दिसम्बर, 1968 को लोहार पीपल्या गाँव (देवास, म.प्र.) में
वामपंथ से गहरा लगाव.
हिंदी की अधिकांश प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में कविताएँ प्रकाशित
उर्दू, मलयालम, नेपाली में कविताओं का अनुवाद
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सम्बद्ध: ओटला देवास, सम्पर्क: 12-13, मार्तंड बाग़,
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