१० कविताएँ
1.
दबोचने के बाद
वो नहीं करता परवाह
एक- एक कर टूटते जाते हैं उसके लिम्ब
असहाय जीव में अपने दांत गड़ाए
केकड़ा
अंतिम यात्रा तक जाता है साथ
मेरी ज्ञात भाषाओं में उसे
कर्कट, कर्क या कैंसर कहा गया.
2.
शायद
होता एक बिल्ली
आता दबे पांव चुपके से
कई बार झपट्टा मारने पर भी
बाल-बाल
बच जाता है शिकार मगर वो बरसों बरस
रहता प्रतीक्षा में
अपने पैने पंजे साधे
कैंसर केकड़ा नहीं
चालाक बिल्ली है
हम चूहे ही साबित हुए है अब तक.
3.
रगों में उतर
नसों में दौड़ते
केकड़े से लुका छिपी है
कीमोथेरेपी जिंदगी की बाट जोहते
किश्तों में मिली मौत है
कीमोथेरेपी.
4.
थोड़ी – थोड़ी देर में
तर कर लेते हैं अपना गला
घर से लायी पानी की बोतल से
बायोप्सी की रिपोर्ट के इंतज़ार में
उतारते हुए अपने होंठो की पपड़ी
नोच लेते हैं थोडा मांस भी
बेखबर बैठे रहते हैं
ठुड्डी तक बह आये
रक्त से.
5.
घर ऑफिस निबटा
पति बच्चो को सुला
देर रात फोन लगाती है माँ को
दोनों बेतुकी बातों पर हंसती हैं
हँसना आश्वस्ति है
सब ठीक है, सब ठीक होगा.
6.
दिन भर बुदबुदाती है
महामृतुन्जय मन्त्र
नीद में भी करवट लेने पर आती हैं आवाज
\”मृत्योर्माम्रतम भव\”
7.
अभिसार के क्षणों के सुख को आधा कर
वो देखती है
गहरे स्वप्न में
करोंदे सी दो लल्छहूँ गांठे
जो द्विगुणित बहुगुणित होते हुए
पसर जायेंगी पूरी देह में
विच्छेदन के बाद वहां बने ब्लैक होल में
एक – एक कर समा जा रहे हैं
सुख दाम्पत्य
अंत में जीवन भी
वो चौंक कर जागती है
धीरे से खिसका देती है है
पयोधरों पर रखे प्रिय के हाथ
बालकनी में बैठ ताकती है
सितारों के बीच
अपने लिए भी खोजती टिमटटिमाती
हुई सी एक जगह
मकान बनाने के लिए
जमीन चुनने के दिन याद आते हैं.
8.
कीमो से गंजे हुए सर पर भी टीक लेती है
सिन्दूर
अभी भी सुहागन मरने की इच्छा के जीव ने
९.
अड्डेबाजी
सब् जानते हैं साथ छूने खाने से
नहीं आता केकड़ा पास
अब तक तो कीमो भी नहीं शुरू हुई है
मगर एहतियात फिर भी जरुरी है
बस वो बचपन का पगला सा दोस्त
आता है बिला नागा
बहुत देर बैठा रहता है चुपचाप
थाम कर हाथ
गहरे अँधेरे में
माँ अचानक आकर जला देती हैं
बत्ती .
१०.
ओपरेशन के लिए
पैसे जमा करवाते हुए
पहले वो जमा करता है
पांच सौ के नोट की गड्डी
फिर सौ की
फिर दस और बीस रूपये के नोट
अंत में
काउंटर खनक उठता है सिक्के से
स्ट्रेट बालों वाली मेबेलीन की लिपस्टिक
लगाए रिसेप्शन पर बैठी तन्वंगी
कांपते हांथो से गिनती है वो सिक्के
कहना चाहती है
इसे आप रख लो
ऐसा
आज चौथी बार हुआ है सुबह से
उसने सी लिया है मुहं
कलेजा हो गया है
पत्थर का.
__________________
mridulashukla11@gmail.c