रेने माग्रित
काला चींटा सफेदपोश प्राणी हैं
आपके कंधे पर किसी सहारे के लिए नहीं चढ़ता
आप तो इसके रास्ते में आ गए
उन्हें लगा यह जिस्म साँस लेता कोई महाद्वीप है
वे उस पर केवल यात्राएं करते हैं अर्नगल
रास्ता भूल जाने पर काट कर देखता हैं
कहाँ है महाद्वीप का अंतिम छोर
महाद्वीप नहीं सहन करेगा कोई गुस्ताखी
हमारे घर में हमीं से बदमाशी
तुरंत रद्द कर दी गयी यात्राएं
और काले चींटे को नीचे झाड दिया गया
चींटा लडखडाती टांगों का संतुलन बिठाता है
अभी हम खड़े हैं उस बिंदु पर
और चींटे करते हैं कल्पनाएं
दुनिया की हर चीज़ काश बताशा हो जाए
बस इक पल भूल जाओ पश्च दृष्टि
इतिहास और अनुभव से लद जाओगे
मुझे भी निशब्द करने वाले तर्क दोगे
पश्च दृष्टि से निकलती हैं छनी- धुली बातें ( हर बार )
पर मुझे तो जानना है तुमसे
सब इतिहास को समझने के लिए
पके दानों में भरा इसका ताज़ा तेल
यूँ नरम थैलेनुमा जिस्म में दिल-ओ-जिगर सम्भालना
चेहरा जैसा कोई प्रौढ़ स्त्री
आँखों से दुनिया नापती हुई
और चुस्ती रखना चिड़िया सी
बचना बंदूक से, शिकारी की सवारी से
यह नरम नरम जो बचा है खरगोश में
तुमने किया है प्रेम मुझे से
प्रेम गुजरता रहा हमारी देहों पर से
बारिश जिसका केवल एक क्षण है
तुम सोच रहे मैं कितना तुम्हारे करीब आई
किसी भी बात से डर जाने पर
टटोल रहीं हूँ कमरे में मृत्यु की सुगंध
इसके आगमन से आश्वस्त होने को
तुम्हे दुःख है कल मेरी उँगलियाँ नहीं होंगी
जिसने किये तुमसे सौ चिठ्ठीयां लिखने के वादे
याद कर रही हूँ वे गाँव और शहर
जो अटल भाग्य की तरह जीवन में आये
तुम्हे स्मरण है केवल रेल और यात्रायें
जो शहरों की शहरों से सुलह कराती हैं
मेरी आँखों से दिखती है गुमनाम रेल पटरियां
तुम्हारी ऊँगली की नोक पर जमा है कन्याकुमारी का वादा
मृत्यु से मुझे भय था विशुद्ध
यात्रा आरंभ से ठीक पहले था जैसे छींक का डर
पर पहुंची मैं घर वापिस रोज ही की तरह
बच सकती है मेरी देह दहन से
मेरी देह को खा रहीं हैं मेरी प्रिय गिलहरियाँ
कलेजे में खून कम की शिकायत करती हुईं
कम खून कलेजे को अनुग्रहीत करती हुई
मनमोहिनी विरक्त गिलहरियों
जो नहीं जानता गुलाब का अर्थ
पढ़े-लिखे के बीच बौराया रहता है
अर्थ आने लगते है कमरे में तितलियाँ जैसे
आज का रहा बस उतना पाठ पठन
जितनी तितलियाँ हथेली समा सकी
बेसुआदी को बंदी बनाते हुए.
जीवन को देखने के यूँ तो हैं अनगिनत सलीके
इसे दाल चावल की नजर से देखना
खिचड़ी में लगे छौंक को भी
यह सोच भी विचलित कर सकती है
खेतों पर आपका नाम नहीं लिखती
किसान, एक जोड़ी बैल और अब ट्रेक्टर के लिए आप अज्ञात हैं
चक्कियां तो गजब की बेपरवाह है
बस पीसे जाती हैं खाने वाला कोई भी हो
फिर भी दाल चावल का आंकड़ा हिला देता है
तारों की गिनती भी वह परेशानी नहीं देती
जितना देती है चावल की गिनती
जीने मरने के बीच की महत्वपूर्ण तिथि है
पुलिस पीछा करती है अगर आप किसी का बटुआ चुरा लें
पर दाल चावल भूख से अधिक खा लें
तो केवल अपनी दी मौत मरते हैं
कुछ लोग दाल चावल की गिनती कम करने के लिए
कुछ कवितायेँ भी लिखते हैं
कुछ लोग इसी आत्मग्लानि में
लड्डुओं पर बैठी मक्खियाँ नहीं उड़ाते
सब कहते हैं उन्हें कयामत से डर लगता है
जिन्हें दाल चावल से डर लगता है.
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