(Photo Credit S. Subramanium)
“मेरे अन्दर एक तरह का नैरन्तर्य (रहता) है”
बहुत खोजने पर उनका एक वक्तव्य, \’The New Generation\’ जो कॉण्ट्रा मैगज़ीन के तीसरे अंक में छपा है, मिला और उसमें भी रामकुमार कला पर बहुत कुछ कहते नहीं नज़र आते हैं. इस लेख में उनकी चिंता नयी पीढ़ी के कलाकारों द्वारा कुछ न कर पाने की मज़बूरी पर मुखर होती दिखती है. उन्नीस सौ त्रैसठ के इन दिनों रामकुमार के चित्र कहानी कहते दिखते हैं जिसके पात्र चित्र में यहाँ वहाँ उदास खड़े नज़र आते हैं. जिनकी शारीरिकता मोद्ग्लियानी के पात्रों सी है और बाद के चित्र जिन्हें हम अमूर्त कहते हैं, वे भी लम्बी कहानियाँ कहते दिख रहे हैं.
बनारस को लेकर रामकुमार का कहना है कि उसके बाद वे कई बार बनारस गए और हर बार अलग अनुभव हुआ, वे कहते हैं –
\”पिछले तीस बरस में मैं कई बार बनारस गया और हर बार मेरा अनुभव कुछ अलग रहा. यह मुश्किल ही था कि मेरे चित्रों की दृश्यात्मक धारणायें भी बदली उन अनुभव की मेरी व्याख्या के अनुरूप. अस्सी के दशक में मैं कुछ दिनों के लिए बनारस गया और मैंने तय किया कि इस बार यथार्थवादी रेखांकन ही करूँगा बिना किसी तोड़-फोड़ के. मैंने दस रेखांकन किये फिर रुक गया. मैंने सोचा मैं बनारस की आत्मा को दिखाऊंगा.\”
उधर हुसेन लिखतें हैं
\”साठ के दशक के प्रारम्भ में रामकुमार बनारस पहुँचे. अकेले नहीं, हुसेन उनके साथ था. दो चित्रकार, दो ब्रश. एक ब्रश गंगा की बैचेन लहरों से खेला. दूसरा स्थिर-मानो बनारस के घाट पर सदियों से धूनी जमाये है.\”
(बनारस) |
यह स्थिरता जिसे हुसेन ने शिद्दत से महसूस किया रामकुमार का स्थायी भाव बन गया. उनके चित्र ठहरे हुए हैं. किसी दृश्य को मानो जमा दिया गया हो. रावी नदी जिस तरह सात हज़ार फुट की ऊँचाई से जमी हुई दिखती है. उसका प्रवाह, चंचलता, वेग सब दूरी के कारण जम जाता सा दिखता है. रामकुमार के चित्रों में यही दृश्य स्थिर हो जाता है चाहे वो माचू-पीचू, इंका सभ्यता का अवशेष हो या बहती गंगा. ये स्थिरता रामकुमार की भी है उनसे मिलकर आपको यही लगता रहेगा कि किसी ठहरे हुए समय में आ गए हैं. ऐसा नहीं है कि रामकुमार बिलकुल ही उदास और स्थिर व्यक्ति हैं, उनसे ज्यादा सक्रीय और विनोदप्रिय शायद ही कोई होगा.
उदासी रामकुमार के चित्रों का स्थायी भाव है और इस उदासी को किसी भी रंग से प्रस्तुत करने का कौशल भी उन्ही के पास दिखाई देता है. रामकुमार के चित्र हमें खाली जगहें, सन्नाटा, बंजर वीरान इलाकें, सूनी, उखड़ी हुई स्मृतियाँ, उदास दृश्य, झरे वृक्ष और निपट एकान्त में बहती नदी की याद दिलातें हैं. इन सब में सन्नाटे का मौन फैला है. रामकुमार के चित्र बहुत बोलते हैं और अक्सर उदास रहते हैं. उनका प्रसिद्ध चित्र माचू-पीचूइस उदासी को चमकदार ग्रे रंग से आलोकित करता है. बनारस का असर दोनों चित्रकारों को अपने अतीत में छोड़ आया. हुसेन को वहाँ मिथक मिले और रामकुमार को ख़ामोशी. ये ख़ामोशी रामकुमार के शिमला में बीते बचपन की ख़ामोशी तो नहीं? रामकुमार के चित्रों की ख़ास बात यह भी है कि वे अपनी ख़ामोश उपस्थिति में भी आकर्षित करते हैं. ये दुर्लभ गुण है रामकुमार का.
(बनारस) |
वे एक चित्रकार की तरह अपने रंगों को बरतते हैं और उनमें से अधिकांश रंगों को उनके रूढ़ स्वाभाव के विपरीत लगाते हैं. एक दूसरा गुण किफ़ायत का है. उनकी रंग पैलेट में वैविध्य नहीं है. रंगों का आकर्षण उन्हें भरपूर है किन्तु अपने रंग प्रयोग में खुद को कुछ ही रंगों तक सीमित रखते हैं. यह भी नहीं है कि उन्होंने कभी रंग पैलेट के साथ प्रयोग नहीं किया. वो भी बहुत है और लगभग सभी रंग कुशलता से इस्तेमाल किये गए हैं. प्रमुख प्रक्षेपण ग्रे रंग का ही है. यह ग्रे रंग रामकुमार की पहचान बन गया हो ऐसा भी नहीं है. वे रंगों का इस्तेमाल चित्रकार की तरह ही करते हैं और उसमें अपना देखना डालते हैं.
\”मूलतः मेरी कहानियाँ मध्य-वर्गीय मनुष्य के मेरे निजी अनुभव से जुडी हैं. हमारा परिवार बड़ा था और समस्याओं, दिलचस्प घटनाओं की कोई कमी न थी. मैं इतना साहसी न था कि इनसे दूर भाग जाता.\”
रामकुमार सुश्री गगन गिल को दिए साक्षात्कार में कहते हैं
\”और इससे क्या फर्क पड़ता है कि एक चित्र का शीर्षक है \’फूलों के साथ लड़की\’ या \’नीले सूट में आदमी\’- इस तरह के शीर्षक का क्या अर्थ है? जब मैं चित्र बनता हूँ- मैं किसी विशेष तत्व के बारे में नहीं सोचता, चाहे वो आध्यात्मिक हो या प्रकृति का कोई अलौकिक तत्व, ये चित्र हैं, शुद्ध, साधारण, सहज, चित्रित रंगों के प्रस्ताव, जो किसी के अनुभव से उपज रहे हैं\”
२ मई २०१८ भोपाल