रूआता मिजो का घर
रीतामणि वैश्य
रूआता सुबह उठकर घर बनाने के काम में लग गया. वर्षों बाद उसकी ख्वाहिश पूरी होने जा रही है. उसका घर बनने जा रहा है, अपना घर. घर के बनते ही उसकी शादी जौवी से होगी. जौवी उसके बचपन की दोस्त है. जौवी का घर रूआता के घर के पीछे की चोटी पर है. दोनों एकसाथ बड़े हुए हैं. उम्र में जौवी रूआता से पाँच साल बड़ी है. बचपन से ही जौवी ने रूआता को संभाला है. रूआता जौवी का हाथ पकड़कर स्कूल जाया करता था. जौवी का साथ होता था तो रूआता को लेकर उसके माँ-बाप बिलकुल निश्चिंत रहते थे. रूआता ने जौवी के साथ जाकर जंगल में लकड़ी बीनना, मछली पकड़ना आदि सब सीखा है. जौवी बचपन से ही रूआता के लिए स्नेह लुटाती आई है. रूआता को भी अपने भाई-बहनों के साथ रहने की अपेक्षा जौवी के साथ घूमना-फिरना,खेलना अच्छा लगता था. यह स्नेह बड़ा होने पर प्यार में बदल गया.
रूआता घर का तीसरा बेटा है. उसके कुल आठ भाई-बहन हैं. दीदी सबसे बड़ी थी,जिसकी शादी करा दी गयी है. दो बड़े भाई हैं, उनकी शादी भी हो चुकी है. अब दो छोटे भाई, दो छोटी बहनों और माँ-बाप के साथ वह रहता है. शादी के उपयुक्त समय में बाप ने रूआता के सबसे बड़े भाई से कहा था-‘अब तेरी शादी की उम्र हो गयी है. तू जिस लड़की को चाहे शादी कर सकता है. शादी के लिए एक रून1 की जरूरत होती है. परिवार तेरा होगा, इसीलिए रून बनाने का काम तुझे करना है. शादी के समय मर्द को इतना काबिल बन ही जाना चाहिए कि वह अपनी औरत को एक रून दे सके.’
उसने कहा था-‘बाबा मैं कर लूँगा.’
रूआता के बड़े भाई जुआला ने बाप के कहने के अनुसार पहली चोटी पर घर बना लिया, शादी कर ली और वहाँ बस गया . यही बात दूसरे बेटे के साथ भी हुयी. वह दूसरी चोटी पर घर बनाकर रह रहा था . अब जब रूआता की शादी का समय हुआ तो उससे भी यही कहा गया- ‘तू जनता ही है. जुआला घर का बड़ा बेटा है. इसीलिए मैंने पहली चोटी उसे दी है. उसे भी मैंने शादी के समय रून बना लेने के लिए कहा था.’
‘मैं सब जानता हूँ. आपने हम सबके सामने भाई को यह कहा था.’
फिर बाप ने चबूतरे पर खड़ा होकर कुछ दूर की चोटी की ओर इशारा करते हुये कहा– ‘तू घर का तीसरा है. इसीलिए वह तीसरी चोटी तेरी है. तू उस पर अपना रून बना ले. रून बन जाने के बाद शादी कर लेना. समाज को भोज मैं खिलाऊँगा. समझ गया?’
‘जी बाबा.’
‘क्या समझा?’
‘कि मैं तीसरी चोटी पर रून बना लूँ और फिर शादी कर लूँ.’
‘शादी जौवी से ही करेगा?’
‘जी बाबा.’
‘अच्छी बात है. काम शुरू कर दे.’
‘मैं बहुत अच्छा रून बनाऊँगा बाबा.’ कहकर रूआता वहाँ से निकल गया.
रूआता को कब से इस दिन की अपेक्षा थी. रूआता मिजो राजा का वंशज है. उसे मिजो होने का बड़ा गर्व महसूस होता है. उसका परदादा राजा हुआ करता था. रूआता के बाप को अपने राजा परदादा का घर बपौती के रूप में मिला था. मिजो राजा का घर सुंदर और बड़ा होता है. मिजो घर मचाननुमा होता है, जिसके फर्श बाँस के फट्टों से बनाया जाता है. घर तक चढ़ने के लिए लकड़ियों की मोटी टहनियों को एक-दूसरे के साथ जोड़कर ढलान बनाई जाती है,जो सीढ़ियों का काम करती है. ढलान एक मचाननुमा चबूतरा तक जाती है. चबूतरे की एक और बैठका होता है, जिसके आधे तक दीवार होते हैं,ऊपर का हिस्सा खुला होता है. इसी बैठकखाने में राजा लोगों से मिलते हैं,बातें करते हैं. लकड़ी से बनी ढलान की दूसरी ओर मूल घर होता है. घर एक कमरे का होता है, जो बहुत बड़ा होता है. जरूरत के मुताबिक वहाँ टट्टी लगाई जाती है. घर में एक ही दरवाजा होता है. सामने टट्टी लगाकर कुछ जगह निकाली जाती है, जो बरामदा का काम करता है. वहाँ में ऊखल, मुर्गी के चूजे रखने का बाड़ा आदि रखे जाते हैं. अंदर भाड़ के लिए बाँस के फर्श पर मिट्टी डालकर उसे चारों तरफ से लकड़ी से घेरा जाता है. उसके ऊपर परत दर परत टाँड़े होती हैं. उस पर कच्ची लकड़ी,चैला,मछली आदि रखे जाते हैं,जो नीचे के धुवे से सूखते जाते हैं. उनके बिस्तर बाँस से बने हुये होते हैं.
रूआता ऐसे राजकीय माहौल में बड़ा हुआ है. जौवी राज घराने की नहीं है. इसीलिए बड़े घर में रहने का जो सुख रूआता को मिला है, उसे वह होने वाली पत्नी जौवी को भी देना चाहता है. बाप का परिवार बड़ा है तो उसका घर बड़ा है. रूआता का परिवार अभी छोटा है तो वह छोटा घर बनाएगा. पर वह एकमिजो घर की सारी जरूरतों को पूरा करने वाला घर होगा, जिसमें वह जौवी को दुल्हन बनाकर लाएगा.
(दो) |
मिजोरममिजो लोगों की भूमि है.मिजो का अर्थ हैमिजो लोग और रम का अर्थ है भूमि. इसतरह मिजोरम का अर्थमिजो लोगों की भूमि है.मिजो लोग सहज सरल होते हैं. उनके जीवन की जरूरतें बहुत कम होती हैं. प्रकृति से साथ वे सहवास करते हैं. छोटे-छोटे पहाड़ियों से भरा है यह प्रदेश. ये पहाड़ियाँ ऊँची-ऊँची होती हैं, ढलानें खड़ी होती हैं. पहाड़ियों की ढलानों पर वे घर बनाकर रहते हैं. खेती-बाड़ी उनकी आजीविका का मूल साधन है. पहाड़ियों में लोग झूम खेती करते हैं और वहाँ जो थोड़ा-सा मैदानी इलाका है, वहाँ वे अन्य खेती भी करते हैं. आइजल शहर में अभी भीड़-भाड़ मिलती है, पर बाकी इलाकों में जनसंख्या बहुत कम है. हरियाली से भरे इस प्रदेश का मौसम सुहाना है.
उस दिन रूआता बहुत खुश हुआ. वह जौवी से इस खुशी का इजहार करने उसके घर की ओर जाने वाला था कि उसने उसे रास्ते में देख लिया. वह पानी भरने के लिए बड़े बाँस से बने दो लंबे-लंबे चोंगे दोनों हाथों में लटकाए जा रही थी. रूआता हँकारा- ‘जौवी, ठहर जा.’
जौवी ने पीछे की ओर देखा तो रूआता तेजी से उसके पास आ रहा है. वह रुक गयी. रूआता ने उसके पास पहुँचकर कहा – ‘दो-दो तुइऊम हून्ना2 उठा लायी है? वे भी इतने बड़े-बड़े ! इनमें पानी ला पाएगी?’
‘हाँ. मैं तो हर दिन दो-दो तुइऊम हून्ने भरकर पानी लाती हूँ.’
‘मेरी नजर इतनी कमजोर नहीं है जौवी. ये नये हैं और बहुत बड़े भी . पहले वाले तुइऊम हून्ने छोटे थे. ये तेरी जांघ तक आने को हैं. पानी भरने से ये बहुत भारी हो जाएँगे.’
‘हाँ, तुझे मैं बताना भूल गयी. आज मिलना भी नहीं हुआ. कल रात को माँ को और एक बच्चा हुआ है. अब हमें पानी ज्यादा चाहिए. सुबह ही पुराने तुइऊम हून्नों में पानी लायी थी. खत्म हो गया. इसीलिए बाबा ने ये नए तुइऊम हून्ने बनाकर दिये हैं. नहीं तो मुझे दो-दो बार पानी लाने जाना पड़ता.’
‘मुझे एक दे दे.’ रूआता ने जौवी से पानी भरने के बाँस का एक चोंगा ले लिया.
‘मुझे बाबा ने रून बनाने के लिए कहा है. मैं जल्द ही रून बना लूँगा और तुझसे शादी करूँगा.’
‘यह तो अच्छी खबर है. कब तक बन जाएगा रून?’
‘जल्द ही.’
‘रून बनाने के लिए बहुत सारे बाँस, खड़, काठ और लकड़ी की जरूरत होगी. तुझे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी.’
‘शादी करने लायक बन गया हूँ. इतना करना पड़ेगा.’ रूआता ने दृढ़ता से कहा.
‘एक काम करती हूँ. मैं भी दुकान से लौटकर तेरे साथ जंगल चलूँगी. तेरा हाथ बटाऊँगी.’
‘ऐसा नहीं होगा.’
‘क्यों?’
‘रून बनाने का काम मेरा है, तेरा नहीं.’
‘रून मेरा भी होगा.’
‘अगर तू जंगल जाएगी तो तुझे जल्दी दुकान से लौटना होगा. तेरे मालिक को बुरा लगेगा. तू अपने काम में ध्यान दे.’
जौवी ने तुइऊम हून्ना को बाईं कमर पर टिकाया और उसे हाथ का सहारा देती हुयी आगे बढ़ती रही. फिर बोली-‘बता तुझे मेरी तरफ से शादी में क्या चाहिए?’
‘बचपन से तो तू ही देती आई है. अब भी तू ही देगी?’
‘बता न! शादी है हमारी. कुछ देने का मन कर रहा है.’
‘मेरी चीजें मैं ले लूँगा. बस तू उस दिन बहुत सुंदर दिखनी चाहिए. नयी लाल पुआन3 और कोर4 में तू परी जैसी लगेगी. अच्छी पुआन और कोर बन गईं तो बाद में ये चेराव5 नाचने में भी काम आएंगी.’
‘ठीक है.’
‘अब तू बता मैं तुझे क्या दूँ?’ रूआता ने पूछा.
‘मुझे बचपन से तेरे जौ6 में खेलना पसंद था. तू राजा नहीं है, पर राजा का वंश से तो है. इसीलिए जौ बनाने का हक तुझे भी है. मैं तेरी बीबी बनूँगी तो जौ में बैठने का हक मेरा भी है. तू अपने घर में एक सुंदर जौ बनाना.’
‘तुझे जौ बहुत पसंद है?’ रूआता ने प्यार भरी नजर से जौवी को देखा.
‘हाँ. सुबह हम दोनों जौ मैं बैठकर चाय पिएंगे. शाम को काम से लौटकर थके मांदे हम घर लौटेंगे तो दोनों जौ में साथ बैठकर एक-दूसरे को दिन भर की कहानी सुनाएँगे, बादल यहाँ से गुजरेंगे तो कुछ पल यहीं बैठने को कहेंगे,रोशनी बिखेरते हुये चाँद और तारे को देखेंगे, पंछी का गीत सुनेंगे.’
‘मैं एक बहुत सुंदर रून बनाऊँगा जौवी. उसमें बरामदा,रसोई,बाड़ा,ऊखल सब होंगे. मैं तुझे किसी चीज की कमी महसूस करने न दूँगा. अब उसमें जौ भी बनेगा.’
जौवी खुशी से रूआता के गले लग गयी.
‘हमारी शादी कब हो रही है?’
‘अगले महीने की पूर्णिमा के दिन.’
रूआता के इन शब्दों से जौवी का चेहरा शर्म से लाल हो गया. पर शाम ढल जाने के कारण रूआता को उसका चेहरा दिखाई नहीं दिया.
‘क्या सोच रही है?’ रूआता ने पूछा.
‘समय तो बहुत कम है! तू मुझे भी साथ देने के लिए मना कर रहा है. इतने समय में तू इतना सारा काम कैसे कर लेगा?’
‘कैसे करूँगा नहीं जानता. पर करना है.’
‘पर बटुए को मत छूना.’
‘मैं मिजो हूँ जौवी. गरीब हो सकता हूँ,समझ कम हो सकती है,पर हूँ ईमानदार और मेहनती.’ जौवी की बात से रूआता को ठेस पहुँची तो वह बोला.
‘मैं जानती हूँ रूआता. पर पैसों की कमी इंसान को कभी कमजोर कर देता है. इसीलिए मेरे मुँह से निकल गया.’
साल भर पहले आइजल में लगे एक मेले में रूआता को रुपयों से भरा हुआ एक बटुआ मिला था. आइजल में मेले बहुत कम लगते हैं. ऐसे यहाँ लोगों की संख्या भी बहुत कम है. मुश्किल से पंद्रह लाख मिजो लोग होंगे पूरे मिजोरम में. भीड़ न होने से दूकानदारों को लाभ नहीं होता. इसीलिए यहाँ मेले कम लगते हैं. वह मिजोरम का पहला ऐसा मेला था, जहाँ देश-विदेश की सैकड़ों दुकानें लगी थीं. मेले के अंतिम दिन कुछ भीड़ जमी थी. उस दिन रूआता और जौवी भी मेला देखने गए थे. वे दोनों भुने मकई खा-खाकर टहल रहे थे. इतने में रूआता का पैर एक चीज पर पड़ा. उसने चीज पर से पैर हटाकर नीचे देखा तो पाया कि एक बटुआ है,जो किसी के जेब से वहाँ गिरा था. बटुए को उठाते हुये उसने कहा- ‘यह तो किसी का बटुआ है….पैसों से भरा हुआ है!’
जौवी ने देखा कि बटुए बड़े-बड़े नोटों से भरा है. उसके मुँह से निकल गया-‘इतने सारे पैसे !’
‘हाँ. बहुत पैसे हैं ! ’
‘कितने होंगे?’
‘जाने कितने होंगे!’
‘आठ-दस हजार तो होंगे ही!’
‘धत्. देखा नहीं सारे नोट गुलाबी हैं. दो हजार के नोट लगते हैं. नहीं नहीं तो तीस-चालीस हजार से कम नहीं होंगे .’ बटुए से बाहर निकलते हुये नोटों के छोर देखकर उसने कहा था.
रूआता ने आस-पास के लोगों से पूछा तो वह बटुआ किसी का नहीं था. मिजोरम के लोग बड़े ही सीधे और साधू प्रकृति के होते हैं. वे किसी दूसरे की चीज पर अपना हक नहीं जमाते. किसी की चीज अगर खो जाती है, वे उसे इस आशा से संभालकर रखते हैं कि जब भी उसका मालिक मिल जाय, वे उसे वापस करेंगे. रूआता को बटुए का मालिक नहीं मिला तो उसने उसे अपने पास रख लिया था. साल भर बीत जाने के बाद बटुए का मालिक उसके पास नहीं पहुँचा. पर उसने बटुए को ज्यों का त्यों संभालकर रखा था.
‘मैं भी एक अच्छा पुआन और एक कोर लूँगी. कपड़े खरीदूँगी और अपनी मर्जी से खुद सिलूँगी. कुछ पैसे हैं और इन दिनों कुछ कमाकर मैं इसका बंदोबस्त कर लूँगी.’
जौवी को पुआन और कोर के लिए कम से कम 3000 हजार रुपयों की जरूरत है. उसके पास 2000 रुपये हैं. इन दिनों उसे बाकी 1000 रुपये कमाना है. उसने उँगलियों में दिन गिने और बोली-‘हो जाएगा.’
बात करते–करते वे झरने के पास पहुँच गए. रूआता और जौवी ने तुइऊम हून्नों में पानी भरा और लौट आए.
तीन |
उस दिन से रूआता अपना घर बनाने में लग गया. और जौवी भी मन लगाकर दिन रात काम करने लगी. रूआता पहाड़ियों पर खेती करता है. पहाड़ियों पर झूम खेती ही किया जाता है. पहाड़ी झरनों से पानी बहाकर खेती तक ले आने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है. फिर हर एक खेती के बाद नयी जमीन में जाना, उसका जंगल जलाना,जमीन साफ करना बहुत काम करना पड़ता है रूआता को. उसके बाबा और दूसरे भाई भी इसी तरह खेती करते हैं. जौवी आइजल शहर के चाँदमारी की एक दुकान में काम करती है. दुकान बेग,मिज़ो कपड़े, और परंपरागतमिजो सजावट की सामग्रियों की है. जौवी वहाँमिजो जैकेट,बेग आदि की सिलाई करती है.
शादी के हफ्ते भर पहले एक शाम रूआता और जौवी मिले. पिछले कुछ दिनों से दोनों अपने काम में इतने व्यस्त थे कि उनका मिलना नहीं हुआ था. ऐसे तो एक-दूसरे को दूर से देख लेते थे,पर बातें नहीं हुयी थीं. रूआता बोला-‘कितना अच्छा लग रहा है न कि अगले हफ्ते हम शादी कर रहे हैं ! मुझे मुनादी करने का मन हो रहा है कि हम दोनों जल्द शादी करने वाले हैं.’
रूआता जोर से चिल्लाया-‘सुन लो पहाड़, झरने, पेड़-पौधे, तितली, पंछी, हवा, बादल, चाँद, सूरज, तारे जौवी और एक होने जा रहे हैं. शादी में तुम सबको आना है. हमें आशीर्वाद देना है. तुम्हारे होने से ही महारंभ होगा.’
‘मैं भी मानो आसमान में उड़ रही हूँ.’ जौवी ने खुशी से कहा.
‘तब हम सुबह से लेकर रात तक हर दिन एकसाथ रहेंगे. एकसाथ बैठेंगे, एक साथ सोएँगे, एक साथ सारा काम करेंगे.’ रूआता ने कहा.
‘घर के समान इकट्ठे हो गए?’
‘बरछा, गंडासा, बिसात, टोकरा, झाबर, खाँचा, दाँती, धरन सब आ गए.’
‘तूने अपना सारा जुगाड़ कर लिया !’
‘तेरे लिए डौआ, तई, छलनी, दीवट, फुँकनी, बट्टी, लोहँडा सब लाकर रख दिये हैं. सरियाने का काम तेरा है.’
‘ये सब तो हो जाएंगे. यह बता काईटेन7 बन गया?’
‘बन गया.’
‘कैसा बना है?’
‘महीन डालियों से बनाया है ताकि उस पर चढ़ते समय तेरे पैरों को दर्द न हो.’
‘और लेइकापुइ8?’
‘बना है ! वह बड़ा बनाया है. तू रानी की तरह इठलाती हुयी रून से जौ तक जा सकेगी. मन हुआ तो कभी हम वहाँ भी रात काट सकेंगे.’
‘मुझे तो जौ में बैठना है.’
‘हाँ, वही नहीं बन पाया. सारे पैसे खत्म हो गए. पर वह भी हो जाएगा. तूने मुझसे जिंदगी में पहली बार कुछ करने को कहा है.’
‘तब तो घर बन ही गया.’
‘क्यों तुझे ख़ुमपुइ9 नहीं चाहिए? मैं तुझे फर्श पर सुलाऊँगा क्या?’
‘वह तू बना लेगा. मैं जानती हूँ.’
‘आज से आरछियर10 का काम करूँगा. तू खाना पकाती हुयी मुर्गियों को खड़े-खड़े भाड़ से दाना खिलाती रहना. रपचुङ11 कल-परसो के अंदर बन जाएगा. मैं जंगल से लकड़ी लाकर उस पर रख दूँगा.’
‘मछली पकड़ने मैं जाऊँगी. और फिर मछलियों को भी रपचुङ पर रख दूँगी. मछली सूखती जाएगी और मैं तरह-तरह की सब्जियाँ बनाकर तुझे खिलाती रहूँगी.’
‘तेरे कपड़े आ गए.’
‘शादी से पहले वे भी आ जाएँगे.’
जौवी ने रूआता के हाथों को अपने हाथों में ले लिया. बोली-‘तेरे हाथों में तो फफोले पड़ गए हैं ! तूने बताया ही नहीं?’
‘फफोले तो मर्दों के गहने होते हैं जौवी.’
‘देख न रात होने वाली है. तेरे साथ बात करते हुये समय कैसे उड़ जाता है पता ही नहीं चलता. इन दिनों हम नहीं मिलेंगे. दोनों अपना-अपना काम निपटा लेते हैं. शादी की अगली शाम हम यहाँ मिलेंगे.’
‘तू ठीक कहता हैं.’ जौवी ने हामी भरी.
चार |
‘कल ही शादी है.’ पहाड़ी की तलहटी पर बैठकर रूआता ने मुट्ठी भर थैते12 जौवी की ओर बढ़ाते हुये कहा.
जौवी ने थैतै हाथ में ले लिए. कहा- ‘ये तो पिलपिले हो गए हैं. बहुत मीठे होंगे.’
‘मीठे हैं. मैं चुन-चुनकर लाया हूँ.’
जौवी ने एक थैते रूआता को खिला दिया और एक अपने मुँह में डालती हुयी बोली- ‘यकीन नहीं हो रहा न!’
‘हाँ. तेरे कपड़े बन गए?’
‘नहीं’. उदास स्वर में जौवी बोली.
‘क्यों?’ आश्चर्य से रूआता ने पूछा.
‘पुआन सील दिया है. कोर नहीं बना पायी.’
‘कल ही तो शादी है!’
‘बड़ी उम्मीद थी कि शादी में पुआन और कोर दोनों नयी पहनूँगी.’
‘आज दुकान नहीं गयी थी क्या?’
‘गयी थी.’
‘काम नहीं मिला?’
‘मिला और काम किया भी. पर आज अपने लिए कुछ कर न पायी.’
‘काम भी किया और पैसे भी नहीं मिले? ऐसा कैसे हो सकता है?’
‘आज पैसे नहीं समय चाहिए था, जो मैं निकाल नहीं पायी. कपड़े कल ही खरीद लिए थे.’
‘क्या मतलब?’
‘पिछले हफ्ते गुवाहाटी से एक आदमी मिजोरम आया था. उसने हमारी दुकान से एक कोट खरीदा था. कोट में सामने की बाईं ओर ह्रूकपुआन13 की एक लंबी पट्टी लगाई गयी थी. इससे कोट बहुत ही सुंदर बना. कोट खरीदने के समय उस आदमी ने कहा था कि इस ह्रूकपुआन की पट्टी के कारण उसे वह कोट पसंद आया था. कल उसने कोट को पहना था. आज फिर से जब कोट पहनने लगा तो देखा कि कोट में से ह्रूकपुआन की पट्टी निकल आयी है. वह आज सुबह ही दुकान पहुँच गया. बोला-कि बहन एक दिन में यह हालत हो गयी. बड़ी उम्मीद से खरीदा था.’
‘तो तू उसी को टाँकने में लग गयी? उसने कहा और तू मान गयी?’
‘उसने मुझसे टाँकने के लिए नहीं कहा था. मैंने खुद टाँका. तू यह सोच वह अगर फटे कोट को लेकर यहाँ से चला जाता तो हम मिजो लोगों की बदनामी नहीं होती? वह अपनी जगह जाकर क्या बोलता कि मिजो लोग अनजान लोगों को लूटटे हैं,ठगते हैं?मैं भी मिजो हूँ.’
‘वह तो ठीक है. पर बता नहीं सकती थी कि दो दिन बाद आए?’
‘कल ही वह गुवाहाटी जा रहा है. इसीलिए आज ही काम को निबटना पड़ा . पूरा कोट खोलना पड़ा. कपड़े की सिलाई आसान होती है,टाँकना मुश्किल होता है.’
‘ओहो!’
‘कोई बात नहीं. मेरे घर में एक पुराना कोर है. उसीसे काम चला लूँगी.’
रूआता चुप रहा.
‘तू यह बता कि तेरा घर पूरा हो गया?’
‘नहीं हुआ. धराऊ पैसे खत्म हो गए और समय भी नहीं मिला. सुबह ही बटुए का मालिक हमारे घर आ पहुँचा. मैंने अपने दोस्तों को यह खबर फैलाने के लिए कहा था कि बटुआ जिसका भी है, प्रमाण देकर ले जाएँ. उसने बटुए में कितने रुपये हैं, कितने रुपये के कितने नोट हैं, सब बताया. मुझे तसल्ली हुयी तो दे दिया.’
‘अच्छा हुआ कि उसे अपना बटुआ मिल गया.’
‘तुझे पता है उसमें कितने रुपये थे?’
‘तूने तो कहा था कि तीस-चालीस हजार से कम नहीं होगा ! ’
‘अस्सी हजार तीन सौ दस रुपये थे.’
‘तुझे कैसे पता?’
‘अरे वह बोलता गया और मैं गिनता गया. सारी बातें सच निकलीं तब मैंने उसे बटुआ लौटाया.’
‘कौन कहता है कि तू समझदार नहीं है?’
‘आखिर सीख किसने दी है?’ रूआता ने प्यार से जौवी की नाक दबाते हुये कहा.
‘तूने तो बटुए के साथ कुछ किया नहीं न!’नाक को छुड़ाते हुये जौवी ने उसे छेड़ा.
‘अगर करता तो यहाँ तेरे साथ बैठकर जौ के लिए सर पटकता रहता?’
‘अरे, तू मज़ाक नहीं समझता क्या?’
‘कुछ लोग इतने गरीब और कुछ इतने अमीर क्यों होते हैं? देख न हम कैसे एक-एक रुपये के लिए तरसते हैं. शादी में मैं एक ही चीज तुझे देना चाहता था. वह भी नहीं दे पाया. और लोग इतने रुपयों से लदे हुये होते हैं कि लाखों का बटुआ गिड़ जाय और साल भर बाद याद आए.’
‘जो होता है भले के लिए ही होता है. वह नहीं आता तो उसके पैसे को कब तक हमें इस तरह संभालकर रखना पड़ता क्या जाने? उसकी भी अपनी मेहनत की कमाई है !’
‘पता है वह मुझे कुछ पैसे दे रहा था. बोल रहा था कि आजकल के जमाने में ऐसे लोग नहीं मिलते, जो पैसों से भरा हुआ बटुआ ज्यों का त्यों लौटाए.’
‘तूने क्या किया?’
‘मैंने मना कर दिया. बोला- हम लोग ऐसे ही होते हैं. हम किसी की चीज पर अपना हक नहीं जमाते. उसने बहुत ज़ोर दिया तो मैंने लालरून14 में जो मन चाहे देने के लिए कहा. उसने कुछ रुपये वहीं दे दिये.’
‘आदमी अच्छा है.’
‘ये सब करते-करते सारा दिन निकल गया. …. बाबा ने शादी का सारा काम कर लिया है. मैंने उससे कहा कि एक हफ्ता रुक जाओ. जौ बन जाएगा तो शादी करूँगा. वह बोला कि राजवंश के लोगों का वचन अटल होता है. एकबार कह दिया तो कह दिया. सबको बुला लिया तो शादी उसी दिन होगी. तूने जितना समय माँगा था दिया. पुइथियाम15 को बुला लिया गया है. लालरून सजाया गया है. तू अपनी हैसियत से बीबी को रखना.’
‘जौ नहीं बना तो नहीं बना. हमें शादी करनी है तो करनी है. इसमें हकबकाने की क्या बात है?’ जौवी ने कहा.
‘मुझे जिंदगी भर अफसोस रहेगा कि मैं तुझे एक पूरा घर नहीं दे पाया.’
‘असली घर तो दिल होता है. तू दिल का बहुत अच्छा है. मुझे तेरे दिल में रहना है. घर का क्या है? वह चार दीवारों से बनता है. आज नहीं है तो कल बना लेंगे.’
‘ऐसा कभी हो पाएगा?’
‘नहीं हुआ तो भी कोई बात नहीं.’
‘जौ नहीं रहेगा तो सुबह हम कहाँ चाय पिएंगे?
‘लेइकापुइ पर पी लेंगे.’
‘दोनों को इसतरह एकसाथ छोटे भैया देख लेंगे टोज? रूआता ने जौवी को आलिंगन करते हुये कहा.
‘भसुर इतते अनाड़ी नहीं हैं. देख लेंगे तो वे भी बीबी के पास चले जाएँगे.’
‘धूप तेज होगी तो?’
‘मैं तेरे सर पर ह्रूकपुआन डाल दूँगी.’
‘रात को चाँद ने हमें देख लिया तो?’
‘कह दूँगा कि तू तारे को देख.’
‘बारिश आएगी तो?’
‘भीग लेंगे.’
‘तू भी बहुत अच्छी है जौवी.’
‘तू मुझे अपना बच्चा जैसा लगता है. तू उम्र में भी इतना छोटा है. तुझे संभालना मुझे बड़ा अच्छा लगता है.’
‘मर्द और औरत की उम्र के अंतर का कोई मतलब नहीं होता. अपनी औरत के सामने हर मर्द बच्चा होता है. देखा नहीं, मेरे बाबा माँ से कितना बड़ा है? पचीस साल से कम नहीं होगा. मेरे नाना और बाबा दोस्त थे. उम्र में माँ बाबा की बेटी के समान है. पर बाबा का हर एक काम माँ देखती है. तभी बाबा को तसल्ली मिलती है. रात को जब तक माँ सोने नहीं जाती,बाबा भी नहीं जाता. जब तक माँ बाबा के बाल नहीं सहलाती, बाबा को नींद नहीं आती.’
शाम ढल चुकी थी. दोनों अपने-अपने घर की तरफ लौट रहे थे. रूआता ने कहा-‘मैं बहुत खुश हूँ. इस बार चपचार कुट16 में हम दोनों खूब चेराव नाचेंगे.’
‘याद कर कितने सालों से मैंने चेराव नहीं नाचा.’ जौवी ने कहा.
‘पर तुझे भी नाचना होगा.’
‘मैं भूल सी गयी हूँ.’
‘मैं सीखा दूँगा.’
‘मैं गिर जाऊँगी.’
‘मैं उठा लूँगा.’
‘पैर में मोच आ गयी तो?’
‘मैं मलहम लगा दूँगा.’
चाँद अपनी रोशनी बिखेर रहा था. चाँदनी में दोनों प्रेमी युगल भविष्य का सपना बुनते आगे बढ़ता गया.
(29 जून, 2023)
आइजल, मिजोरम
शब्दार्थ:
1 रून- मिजो घर
2 तुइऊम हून्ना- बाँस से बनी पानी भरने का चोंगा
3 पुआन-मिजो मेखला
4 कोर-मिजो ब्लाऊज
5 चेराव- मिजोरम का परंपरागत बाँस नृत्य
6 जौ-मिजो राजा का बैठका
7 काईटेन-मिजो घर में चढ़ने के लिए लकड़ी से बनी ढलान,जो सीढ़ी का काम करती है
8 लेइकापुइ- रून और जौ को जोड़ने वाला चबूतरा
9 ख़ुमपुइ-बाँस के फट्टों से बना बिस्तर विशेष
10 आरछियर -मुर्गी आदि रखने का बाड़ा,जो बाहर से रन से सटा होता है
11 रपचुङ- काठ का खुला रैक
12 थैते –प्लम की तरह एक फल मिजोरम में पाया जाने वाला फल
13 ह्रूकपुआन- मिजो गमछा
14 लालरून-मिजो का सामूहिक घर,जिसमें प्रार्थना की जाती है,सांस्कृतिक अनुष्ठान किया जाता है
15 पुइथियाम- मिजो धर्मगुरु
16 चपचार कुट-यह मिजोरम का एक त्योहार है,जिसे झूम खेती के लिए जंगल की सफाई के बाद मनाया जाता है
पूर्वोत्तर की रीतामणि वैश्य असमीया और हिन्दी, दोनों भाषाओं में लेखन कार्य करती हैं. मृगतृष्णा ( हिन्दी कहानी संकलन) लोहित किनारे (असम की महिला कथाकारों की श्रेष्ठ कहानियों का हिन्दी अनुवाद), रुक्मिणी हरण नाट, असम की जनजातियों का लोकपक्ष एवं कहानियाँ (असम की ग्यारह जनजातियों का विवेचन एवं सोलह जनजातीय कहानियों का हिन्दी अनुवाद), हिन्दी साहित्यालोचना (असमीया), भारतीय भक्ति आन्दोलनत असमर अवदान (असमीया), हिन्दी गल्पर मौ-कोँह (हिन्दी की कालजयी कहानियों का असमीया अनुवाद), सीमांतर संबेदन (असमीया में अनूदित काव्य संकलन), प्रॉब्लेम्स एज दीपिक्टेद इन द नोवेल्स ऑफ नागार्जुन (अँग्रेजी) आदि उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं. उन्हें असम की महिला कथाकारों की श्रेष्ठ कहानियों के अनुवाद ‘लोहित किनारे’ के लिए सन् 2015 में केंद्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा हिंदीतर भाषी हिन्दी लेखक पुरस्कार से तथा सन् 2022 में नागरी लिपि परिषद का श्रीमती रानीदेवी बघेल स्मृति नागरी सेवी सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है. सम्प्रति गौहाटी विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की सह आचार्य हैं. |
बहुत सुंदर कहानी है। राजवंश के लोग भी मेहनतकश। सरल लोगों का सरल सहज प्रेम, अपनी ईमानदारी पर गर्व और प्रेम की नींव पर ही घर बसाने का परस्पर निर्णय। मोहित करता है। सबसे बड़ी बात यह कि इसमें साफ होता है कि उम्र की कोई सीमा ना प्रेम पर है न दांपत्य पर। ऐसा नहीं है कि स्त्री का पति से कम उम्र होना जरूरी हो। पिता की पीढ़ी और रोऊता और जौवी की पीढ़ी में पितृसत्ता में आए सूक्ष्म परिवर्तन का भी रेखांकन है। यहां जौवी भी रून बनाने में मदद करना चाहती है पर रोऊता को मंज़ूर नहीं। जौवी की चेतना में परिवर्तन सुखद है।
एक नई दुनिया आंखों में खुल गई।
लेखिका को बधाई।
बहुत सुंदर और कोमल कहानी। मिजो लोगाें, उनके प्रेम, घर के प्रति उनकी आस्था और समाज को चित्रित करती एक भावपूर्ण कहानी। हिंदी साहित्य में ऐसी कहानियों की जरूरत है। इसे तो बच्चों के पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। हार्दिक बधाई रीतामणि वैश्य जी।
बेहद सहज और यथार्थ कहानी.लेखिका को हार्दिक बधाई
बहुत अच्छी लगी कहानी। शिल्प मारक। हालाँकि पढ़ते हुए कई दफ़े ओ हेनरी की क्लासिक ‘गिफ़्ट ऑव मागी’ और मंटो की ‘आर्टिस्ट लोग’ याद आई, यह कहानी सम-पृष्ठभूमि होने के बाद भी अलग खड़ी होती है। साथ ही प्रदेश विशेष से भी लोगों को जोड़ती है।
अधूरे होने के बाद भी प्रेम में परिपूर्ण होने का दृष्टांत बेहद ख़ूबसूरती से इसमें वर्णित है।
अच्छी कहानी के लिए बधाई।
2 में मिजोरम का सपाट विवरण अनावश्यक लगा।कहानी के flow में पैबंद जैसा।
बहुत ही प्यारी कहानी है। हमारे सामने उत्तरपूर्व के ट्राइबल जीवन और मिजो लोगों के संसार को खोलती सुंदर और रोचक कहानी। सादादिल, ईमानदार, पारंपरिक किंतु अपनी तरह के खुलेदिल लोगों से यह परिचय बहुत भला लगा। कहानी की ताज़गी इसके शिल्प, कथ्य और भाषा में निहित है जो कितने सारे मिजो शब्दों का रुचिकर परिचय प्रस्तुत करती है। लेखिका को हार्दिक बधाई। शुक्रिया समालोचन।
आपकी कहानी पढ़ी। रुआता और जौवी की कहानी आपने बड़ी सहजता से कही है।
सीधा-सादा रुआता… उलझनों और जटिलता ओं से अनजान… सरल-सुखद जीवन की तलाश में पहाड़ की तीसरी चोटी पर रून के निर्माण में दिन-रात व्यस्त…. अपने विशिष्ट वर्गीय सुख को जौवी को भी अर्पित करने की आकांक्षा पाले हुए… !
उत्फुल्ल-अल्हड़ जौवी… पहाड़ों और घाटियों में फैले आंतरिक सौंदर्य से जन्म लेने वाली जौवी… तुइऊम हुन्ना लिए पानी भरने जाती है, तो अनुभव होता है कि कोई अपरिभाषेय छवि हर किसी के किशोर-जीवन के कोमल अनुभव संजोने निकली है… उससे अपने हिस्से का पहला हुन्ना रुआता पा जाता है… वही उसका स्वाभाविक अधिकारी भी है… प्रेम के सुफल का प्रथम पुष्प…. शेष सभी पुष्प जौवी को जीवन-सहचरी बना लेने के अवसर की प्रतीक्षा में…. !
रुआता और जौवी जीवन के अभावों के भीतर भी सहजता से जीवन की ऊर्जा खोज लेते हैं। रुआता जौ नहीं बना पाता और जौवी नया कोर नहीं सिल पाती……, लेकिन कोई मलाल नहीं,कोई अफसोस नहीं,कोई निरुत्साहित भाव नहीं…. जो सुख नहीं मिल सका, उसके लिए मन में दुख क्यों पालना….!!!
प्रेम का पहला विस्फोट….. समस्त पहाड़, झरने, पशु-पक्षी, तारे, आकाश, समूची प्रकृति सुन ले रुआता और जौवी हमेशा के लिए एक-दूसरे के होने वाले हैं….. रुआता चिल्ल्ला कर सबको निमंत्रित करता है, सभी को आना है…… जौवी उड़ कर अनंत आकाश को बाँहों में भर लेने को आतुर है….।
प्रेम का दूसरा विस्फोट…. रुआता और जौवी युगल-जीवन की देहरी पर आलिंगन में बंध जाते हैं….। रुआता अधिक सचेत है, भाइयों में से कोई देख न ले…. लेकिन जौवी के भीतर एक ज्वार है… भसुर इस अनुभव से अपरिचित नहींं हैं, देख लेंगे, तो अपनी-अपनी जीवन-संगिनियों के पास चले जाएँगे…।
रोमानियत का समूचा विस्तार….. लेकिन कहींं कोई सायासता नहीं…. यही जीवन की स्वत: उफनती नदी है, यही पर्वती प्रेम है….!
सहचरी जौवी और सहचर रुआता नगरीय जीवन में नहीं मिलते… वे सुदूर… प्रकृति से घिरे… मिजोरम, असम, नागालैंड, मणिपुर,अरुणाचल, मेघालय जैसे कोमलकांत लोकांचलों में मिलते हैं….. आज भी…. शनै: शनै: वर्तमान की कृत्रिमताओं से प्रभावित होते जाने वाले समय में भी वे कहीं-न-कहीं मिल जाते हैं।….
और, मिज़ो संस्कृति, समाज-संरचना, परंपराएँ, शिल्प और कलाएँ, विवाह संस्था की बारीकियाँ…… और, चेराव में नाच लेने की अदम्य ललक…..! कहानी में मिज़ो-समाज का सांस्कृतिक सौंदर्य अपने आप चला आया है…अनायास…. बड़े अपनेपन के साथ।
आपकी रचनात्मकता निश्चय ही प्रशंसनीय है…… !
निरंतर लिखती रहिए।
—-
आपको मेरी अशेष शुभकामनाएँ।
दिल को सहलाती सी चलती कोमल कहानी,जो मिजो संस्कृति का परिचय देती चलती है।हमारे लिये सब कुछ अलग,अनूठा है जैसे मिजो का शादी के लिये घर बनाना,ल
ईमानदारी,एक युगल का निश्छल प्रेम ,उनकी गरीबी।रीता जी व अरुण जी को कहानी हम तक पहुंचाने के लिये धन्यवाद व बधाई
बहुत सुंदर कहानी. सहज परिवेश के साथ बहती ऐसी कहानी जो हमें बताती है कि सरल समाजों से हम क्या सीख सकते हैं.
प्रेम सबसे खूबसूरत होता है। यदि जीवन में कुछ न भी हो लेकिन प्रेमी या प्रेमिका का साथ हो तो सब कुछ आसान होता है । कोई अभाव फिर अभाव नहीं दिखता।
बेहद कोमल धागे से बुनी है यह प्रेम कहानी।
लेखिका को बधाई
मिजो समाज के सुंदर युगल की कहानी बहुत प्यारी है। इस कहानी ने मिजो समाज की सुंदर छवि प्रस्तुत की है। मिजो समाज का दृढ़ संकल्प और उनकी वैवाहिक संस्कृति मनोरम है। ईमानदारी की प्रतिमूर्ति मिजो समाज का ऐसा सुंदर चित्रण करने के लिए आपको बधाई हो। भाषा का आपने सहज, सरल और लायत्मकता के साथ प्रयोग किया है। कुछ जगहों पर त्रुटियां रह गई हैं उसे सुधार लेने से कहानी और परिपक्व हो जाएगी।
कहानी अत्यंत सुन्दर और भावुक है। आपकी कहानी में एक सजीवता है, जब भी आपकी कहानी पढ़ती हूं तब कहानी की घटना आंखों के सामने प्रत्यक्ष रूप में दिखाई देने लगती है। साथ ही हर बार कुछ नया जानने को मिलता है। इस कहानी से मिजो लोगों की व्यवहार, ईमानदारी और उनके संस्कृति को जानते को मिला। धन्यवाद मैम, आगे और भी कहानियां पढ़ने की आशा रखती हूं।