लिखने के कारण और उसके दौरान
कुमार अम्बुज
II लिखने के कारण II
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- मेरे सामने दुनिया जैसी है, उसे वैसा ही दर्ज करना, पेश करना.
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- इससे पहले कि सब कुछ भुला दिया जाए, अपने अतीत को लिख देना.
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- जिन्होंने कभी मेरा उपहास किया उनसे बदला लेने की मेरी इच्छा पूरी करने के लिए.
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- क्योंकि मैं जानता था कि मुझे लिखते रहना होगा वरना मैं मर जाऊँगा.
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- क्योंकि लिखना जोखिम लेना है, और जोखिम उठाकर ही हमें पता चलता है कि हम जीवित हैं.
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- एक तरह की सर्जनात्मक अराजकता से व्यवस्था की कामना करना.
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- ख़ुद को अभिव्यक्त करने के लिए.
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- ख़ुद को ख़ूबसूरती से अभिव्यक्त करने के लिए.
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- कला को एक आदर्श काम, हस्तक्षेपमूलक बनाने के लिए.
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- कला के जरिये सज्जनों को पुरस्कार और दुर्जनों को दण्ड देने की आकांक्षा से.
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- दुनिया और प्रकृति के सामने दर्पण रखना.
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- पाठक के सामने दर्पण रखना.
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- समाज और उसकी बुराइयों का चित्र बनाने के लिए.
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- जनता के अव्यक्त जीवन को अभिव्यक्त करना. उनकी आवाज़ बनना.
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- अब तक के अज्ञात को और चीज़ों को नये नाम देना.
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- मानवीय भावना, मानवीय अखंडता और मानवीय सम्मान की रक्षा करना.
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- पैसे कमाने के लिए ताकि मेरे बच्चों के पास जूते हों. वे ज़रूरी चीज़ों के लिए न तरसें.
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- अमीर बनने के लिए ताकि मैं उन लोगों पर व्यंग्य कर सकूँ जो पहले मेरा मज़ाक़ उड़ाते थे.
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- क्योंकि सृजन करना मानवीय गतिविधि है.
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- क्योंकि सृजन करना ईश्वरीय कार्य है.
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- क्योंकि मुझे नौकरी करने के विचार से नफ़रत थी.
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- कोई नया शब्द कहना. कोई नई चीज़ बनाना मुझे आकर्षित करता है.
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- राष्ट्रीय चेतना का निर्माण करना.
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- स्कूल में और जीवन में अपनी असफलताओं से प्रेरित होकर, यह बताने के लिए कि मेरी अप्रतिम योग्यता यहाँ लिखने में है.
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- इतिहास का उत्खनन करना क्योंकि उसे भुला दिया गया है.
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- अपने और अपने जीवन के बारे में अपने दृष्टिकोण को सही ठहराने के लिए.
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- अपने आप को उससे अधिक दिलचस्प दिखाने के लिए जितना मैं वास्तव में था.
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- एक ख़ूबसूरत महिला, पुरुष या किसी को प्यार हेतु आकर्षित करने के लिए.
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- मेरे दुखी बचपन की खामियों को सुधारने के लिए, अब दुखी न रहने के लिए.
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- मेरे माता-पिता की मेरे प्रति आशंकाओं को विफल करने के लिए.
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- एक दिलचस्प कहानी बुनने के लिए क्योंकि मुझे यह अच्छा लगता है.
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- क्योंकि मैं लिखने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता.
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- पाठकों का मनोरंजन करने, उन्हें प्रसन्न बनाने के लिए.
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- ख़ुद को बहलाने और संतुष्ट करने के लिए.
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- समय गुज़ारने के लिए, भले ही वह वैसे भी बीत जाता.
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- अपने अनुभवों को साझा करने के लिए.
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- मैं संवेदनशील हूँ और किसी को भी दुख में देखकर मेरे मन में करुणा उपजती है. करुणा ही मुझसे लिखवा लेती है.
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- क्योंकि मेरे नियंत्रण से बाहर किसी शक्ति ने मुझे इस ओर धकेला.
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- क्योंकि मैं आविष्ट था. एक देवदूत ने मुझे आदेश दिया था.
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- यह बताने के लिए कि प्रतिभा कुछ नहीं है, सर्वशक्तिमान भी कोई नहीं है.
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- क्योंकि मैं म्यूज़ियम, भूदृश्य, स्मृति या तारों के मोह में पड़ जाता हूँ और उससे बाहर आने के लिए मुझे रोज़ लिखना पड़ता है.
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- क्योंकि मैं किसी प्रेरणा या विचार द्वारा ‘कंसीव’ हो जाता हूँ और तब मुझे एक कविता, कहानी या एक किताब को जन्म देना ही पड़ता है.
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- मैं कला की सेवा करना चाहता हूँ और मेरे पास शब्द हैं.
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- सामूहिक चेतन, अवचेतन और सृष्टि को बचाने के लिए.
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- इस संसार के इतिहास, वर्तमान और भविष्य की चिंता में.
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- मनुष्य के प्रति ईश्वर के तरीक़ों को और ईश्वर के प्रति मनुष्यों को उचित ठहराने हेतु.
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- रूप और शिल्प में महारत हासिल करने के लिए ताकि मैं नये पाठ तैयार कर सकूँ.
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- तानाशाही और अत्याचारी शक्ति संरचनाओं को पराजित करने के लिए.
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- अपनी पतंगें आसमान में उड़ाने के लिए ताकि धरती संबंधी मुझसे कोई सवाल न कर सके.
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- यह प्रदर्शित करने के लिए कि जो कुछ भी चल रहा है, वह सब सही है. और अपरिवर्तनीय है.
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- इसलिए कि दुनिया में सब कुछ को बेहतर किया जा सकता है. सब परिवर्तनीय है.
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- क्योंकि मैं शब्दों को संगीत में बदलना चाहता हूँ और मेरे भीतर के संगीत को शब्दों में.
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- क्योंकि मेरे बचपन के अनुभवों ने तय कर दिया कि मैं लेखक ही बन सकता हूँ.
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- धारणाओं, सपनों, और विचारों के नए रूपों के साथ प्रयोग करना, उन्हें अभिव्यक्त करना.
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- एक मनोरंजक जादुई दुनिया बनाने के लिए ताकि पाठक इसमें जा सकें और मज़ा कर सकें.
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- क्योंकि कहानी मुझ पर कब्ज़ा कर लेती है और लिखे बिना मेरी मुक्ति नहीं.
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- सभ्यता की रचनात्मक समीक्षा और सर्जनात्मक आलोचना करने के लिए.
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- घटनाएँ, अनुभूतियाँ और आशंकाएँ मेरा पीछा करती हैं, उन्हें लिखना ही पड़ता है.
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- पाठक और स्वयं की असमाप्त खोज करना ही मेरे लिखने का कारण है.
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- मेरे अवसाद से निपटने के लिए.
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- मुझे समाज और नौकरी में कुछ सम्मान और सुविधा मिल सके.
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- लोगों को लगे कि मैं भी एक बुद्धिजीवी हूँ और मेरा कोई महत्व है.
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- अपना ऐसा नाम और प्रसिद्धि बनाना जो अक्षुण्ण रहे.
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- किसी अल्पसंख्यक समूह, उत्पीड़ित वर्ग और अस्मिता की रक्षा करना.
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- अमानवीय राजनीति का प्रतिवाद करने के लिए.
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- लोकतंत्र, समानता, न्याय और स्वतंत्रता के पक्ष में अपनी आवाज़ मिलाने के लिए.
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- उन लोगों के लिए, उन लोगों की तरफ़ से बोलना जो अपने लिए नहीं बोल सकते.
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- इस संसार में चल रही भयावह ग़लतियों और नृशंसताओं को उजागर करना.
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- उस समय को लिपिबद्ध करने के लिए जिससे मैं गुज़रा हूँ और लगातार गुज़र रहा हूँ.
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- आगामी पीढ़ियों को शिक्षित करने के लिए, उन्हें आगाह करने के लिए.
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- उन भयानक घटनाओं का गवाह बनने के लिए जिनसे मैं बच गया हूँ.
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- बेगुनाह मृतकों और संतापग्रस्त उत्तरजीवियों के लिए न्याय प्राप्त करना.
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- क्योंकि मैं जहालत और अन्याय से मुक्ति दिलाना चाहता हूँ.
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- जीवन को उसकी समस्त जटिलताओं में समझने हेतु.
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- मैं कौन हूँ, क्या हूँ, क्या हो सकता हूँ की गुत्थी सुलझाने के लिए.
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- मेरे लिए लिखना एक प्रार्थना है.
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- इस महान ब्रह्माण्ड और अंतरिक्ष की स्तुति करने के लिए.
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- अपनी स्मृतियों, अभिशापों और इच्छाओं को प्रस्तुत करने के लिए.
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- आशा और मुक्ति की संभावना की खोज के लिए.
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- जो कुछ समाज ने मुझे दिया है, उसी अनुरूप कुछ वापस देने के लिए.
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- अपनी भाषा, संस्कृति, परंपरा को बचाने के लिए, उसे संपन्न करने के लिए.
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- अपने समय का संवाददाता और प्रवक्ता होने के लिए.
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- क्योंकि दिया गया यह यथार्थ मुझे स्वीकार्य नहीं है.
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- मैं एक वैकल्पिक संसार और यूटोपिया रचना चाहता हूँ.
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- यह वास्तविकता पर्याप्त नहीं है. सपने और कल्पनाशीलता ही पूरक विकल्प हैं.
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- क्योंकि मैं लिखने की ओट में छिपना चाहता हूँ.
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- क्योंकि मैं लिखकर वह प्रकाशित करना चाहता हूँ जो अभी अँधेरे में है.
II ओरहान पामुक II
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- क्योंकि लिखना मेरी एक आंतरिक आवश्यकता है.
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- क्योंकि मैं वे सारे साधारण काम-काज नहीं कर सकता जो अन्य दूसरे लोग करते हैं.
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- मैं लिखता हूँ क्योंकि मैं आप सबसे नाराज़ हूँ.
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- क्योंकि मैं इसी तरह वास्तविक जीवन में बदलाव लाने में अपनी हिस्सेदारी कर सकता हूँ.
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- मैं लिखता हूँ क्योंकि मुझे काग़ज़, क़लम और स्याही की गंध पसंद है.
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- क्योंकि अन्य किसी भी चीज़ से ज़्यादा मुझे साहित्य में विश्वास है.
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- मैं लिखता हूँ क्योंकि यह एक आदत है, एक जुनून है.
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- मैं लिखता हूँ क्योंकि मैं विस्मृत कर दिए जाने से डरता हूँ.
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- क्योंकि मैं उस यश और अभिरुचि को चाहता हूँ जो लिखने से मिलती है.
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- क्योंकि मुझे आशा है कि शायद इस तरह मैं समझ सकूँगा कि मैं आप सबसे बहुत ज़्यादा नाराज़ क्यों हूँ.
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- मैं लिखता हूँ क्योंकि मैं चाहता हूँ कि लोग मुझे पढ़ें.
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- क्योंकि जब एक बार कुछ लिखना शुरू कर देता हूँ तो मैं उसे पूरा कर देना चाहता हूँ.
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- मैं लिखता हूँ क्योंकि हर कोई मुझसे लिखने की अपेक्षा करता है.
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- क्योंकि मुझे पुस्तकालयों की अमरता में नादान-सा विश्वास है और मेरी उन पुस्तकों में, जो अलमारी में रखी हुई है.
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- क्योंकि जीवन की सुंदरताओं और वैभव को शब्दों में रूपायित करना एक उत्तेजित अनुभव है. मैं लिखता हूँ क्योंकि मैं कभी ख़ुश नहीं रह सका हूँ. मैं ख़ुश होने के लिए लिखता हूँ.
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- मैं अकेला होने के लिए लिखता हूँ.
II और लिखने के दौरान II
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- यह भूलभुलैया में चलने जैसा था, बिना यह जाने कि अंदर कौन सा दैत्य या देव हो सकता है जिससे निबटना होगा.
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- यह एक सुरंग में टटोलकर आगे चलने जैसा था. सुरंग बहुत तंग थी. खड़े होने तक की जगह नहीं, बैठना भी मुश्किल था लेकिन चलना था.
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- जैसे मुझे किसी मोरचे पर लेटकर, रेंगते हुए आगे बढ़ना था और इसी तरह उस पार पहुँचना था.
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- यह किसी गुफा में होने जैसा था. गोल और छोटे से मुहाने के जरिये दिन के उजाले का आभास होता था, लेकिन मैं ख़ुद अँधेरे में था.
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- यह पानी के नीचे, झील या समुद्र में होने जैसा था. वहीं तैरना है और साँस भी लेना है. फिर सतह पर आना है.
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- जैसे यह पूरी तरह से किसी अँधेरे कमरे में प्रवेश करना है. उसे अपने तरीके से महसूस करते हुए उसे कोई तरतीब और शब्द देना है.
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- जैसे अंधकार में पड़ी हुईं अनगिन चीज़ों को व्यवस्थित करना है. जब सब कुछ व्यवस्थित हो जाएगा तो रोशनी आ जाएगी.
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- यह भोर या गोधूलि के समय किसी गहरी नदी में तैरने जैसा था.
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- यह किसी स्वप्न से, दुस्वप्न से गुज़रना है. सारी तकलीफ़ों और घबराहटों से उसी तरह निबटना है जैसे सचमुच के यथार्थ से. और जैसे जागते हुए.
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- यह एक विशाल ख़ाली कमरे में होने जैसा था जो अनकहे शब्दों से, एक तरह की फुसफुसाहट से भरा हुआ था. उन्हें समझना और अनूदित करना है लेकिन अपनी भाषा में.
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- यह किसी अदृश्य प्राणी या देवदूत से कुश्ती करने जैसा था, जिस पर विजय पाकर वरदान मिल जाता है. या शाप.
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- यह बादलों के पार आसमान में देखने और धरती पर कोहरे के पार दृश्य देखने जैसी अजीब पहेली है.
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- यह किसी नाटक या फ़िल्म के शुरू होने से पहले ख़ाली थिएटर में बैठने और पात्रों के आने का इंतजार करने जैसा है.
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- जैसे किसी यान में बैठ गया हूँ जो गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध चला जा रहा है. और यह एक उत्तेजक, अजानी यात्रा है, मैं इस यात्रा का रिपोर्टर हूँ.
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- जैसे रात में एक अँधेरी पगडंडी पर चलना है और महसूस करना है कि चलते रहने से सूरज का उगना शुरू हो जाता है.
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- एक ऐसा कार्य जिसमें घायल होना, बेचैन होना, श्वासावरोध महसूस करना और ख़ुश होना, सब एक साथ घटित होता है, एकांतिक लेकिन अनिश्चित क्रम में.
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- आगे रुकावट, अस्पष्टता, ख़ालीपन, भटकाव, धुंधलका है. रास्ता देखने में असमर्थता, लेकिन पता है कि यहीं से राह आगे जाती है.
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- आगे भी अँधेरा है, पीछे भी. दूर उधर, उस किनारे पर रोशनी की रेखा है.
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- लगता है बहुत खुरदरी और नुकीली जगह पर आ गए हैं. चट्टानों, झाडि़यों और कठोर जगहों के बीच बहुत सारा लेखन होता रहता है.
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- जैसे अचानक गड्ढे में, ठंडी, नम जगह में रहना है, जहाँ से लेखन ही आपको उबार सकता है. वहाँ शब्द दबे हैं और उनका उत्खनन करना है.
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- एक विशाल रिक्तता, उसका सामना और एक संभावित किताब.
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- यह एक वशीकरण में फँसने जैसा है. कोई सम्मोहक शक्ति है जो काम कराती है.
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- अजीब व्यग्रता की मुश्किल है. इसे हल करना पड़ता है.
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- एक अनुभव ने घात लगाकर जैसे हमला कर दिया है. अब लड़ो और जीतो.
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- अँधेरे कमरे में लालटेन पकड़कर चलने जैसा है, यह कमरे में पहले से मौज़ूद चीज़ों को रोशन करता है. उसी रोशनी में उन चीज़ों और अनुभवों बारे में कुछ लिखना होगा.
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- एक संवेदना, एक दृश्य, एक विचार जिसने विवश कर दिया है, उसे लिखे बिना मुक्ति नहीं.
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- यह शिकार करना नहीं, शिकार होने जैसा है. जब तुम पूरे खा लिए जाओगे, बच जाओगे.
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- यह एक तरह के संगीत में रहना है. उसके सप्तक में, आरोह अवरोह में, उसके ज्वार भाटा में उतराना है.
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- यह जानबूझकर एक ऐसे सफ़र में जाना है जिसके अंत का कोई पता नहीं लेकिन उसका निर्वचनीय आनंद और आकर्षण भरा आतंक है.
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- रेत की खदान में उतरकर रेत खोदना है ताकि रेत खुद के ऊपर ही न ढह जाए.
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- जैसे मेरा किसी ख़याल के द्वारा अपहरण किया जा चुका है. लिखना ही फिरौती चुकाना है.
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- एक क्षण संतोष का, हज़ार क्षण असंतोष के. एक दिन प्रसन्नता का, दस दिन नाराज़गी के.
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- यह सुख है, किसी पीड़ा की तरह. एक तकलीफ़, ख़ुशी की तरह.
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- यह प्रसव वेदना है. मैं लेबर रूम में हूँ.
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- जैसे किसी कोलाहल भरी जगह आ गया हूँ लेकिन इतना पता है कि यह सब मेरे भीतर से उठता हुआ शोरगुल है. इसे मैं ही शांत करूँगा.
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- मानो मैं अपने ही प्रिय कल्पित पात्रों, रूपकों, सपनों और बिंबों में, अपने किसी वैकल्पिक घर में रह रहा हूँ.
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- नो एग्जिट.
लोकतांत्रिकता, स्वतंत्रता, समानता, धर्मनिरपेक्षता के मूल्यों और वैज्ञानिक दृष्टि संपन्न समाज के पक्षधर कुमार अम्बुज का जन्म 13 अप्रैल 1957 को जिला गुना, मध्य प्रदेश में हुआ. संप्रति वे भोपाल में रहते हैं. किवाड़, क्रूरता, अनंतिम, अतिक्रमण, अमीरी रेखा और उपशीर्षक उनके छह प्रकाशित कविता संग्रह है. ‘इच्छाएँ और ‘मज़ाक़’ दो कहानी संकलन हैं. ‘थलचर’ शीर्षक से सर्जनात्मक वैचारिक डायरी है और ‘मनुष्य का अवकाश’ श्रम और धर्म विषयक निबंध संग्रह. ‘प्रतिनिधि कविताएँ’, ‘कवि ने कहा’, ‘75 कविताएँ’ श्रृंखला में कविता संचयन है. उन्होंने गुजरात दंगों पर केंद्रित पुस्तक ‘क्या हमें चुप रहना चाहिए’ और ‘वसुधा’ के कवितांक सहित अनेक वैचारिक पुस्तिकाओं का संपादन किया है. विश्व सिनेमा से चयनित फिल्मों पर निबंधों की पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य. कविता के लिए ‘भारत भूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार’, ‘माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार’, ‘श्रीकांत वर्मा पुरस्कार’, ‘गिरिजा कुमार माथुर सम्मान’, ‘केदार सम्मान’ और वागीश्वरी पुरस्कार से सम्मानित. ई-मेल : kumarambujbpl@gmail.com |
अरुण जी “मैं क्यों लिखता हूँ”यह सवाल मेरे लिए हमेशा अबूझ रहा है।बस इतना ही कि कोई शै मुझसे यह सब करवाती रही है।कई बार मैंने साल-साल भर कविताएँ नहीं लिखीं,तो कई बार महीनों रोज़ कविताएँ लिखता रहा।अलबत्ता रचनाएं जीवन सत्य के साक्षात का ज़रिया ज़रूर बनी है।जहाँ तक रचनात्मक प्रतिरोध की बात है तो मुझे रघुवीर सहाय याद आते हैं-वह दिन भर उस टूटन को सहेजती है, जो राजनीति ने की है।(संभव है मैं रघुवीर सहाय को ठीक से उद्यरित नहीं कर पा रहा होऊँ)पर आशय लगभग यही था।
अपने जीवन की सार्थकता महसूस करने के लिए
जीने का एक कारण, जान प्यारी होती है।
और लिखने के इतने कारण! सबका संकलन!
जब कारण आधिक्य हो, तो लिखना ही मुख्य ठहरता है।
लेखन कारण संकलन स्पृहणीय है।
तुलसीदास कह गए हैं,
निज कवित्त केहि लाग न नीका
पहले हिस्से — “लिखने का कारण” के दूसरे बिंदु को पढ़ते हुए एक प्रतिध्वनि-सी सुनाई दी। क्षण-भर के लिए स्मृति की एक लकीर चमकी। मुझे याद आया कि मैंने यह आवाज़ शायद पहली बार ‘बस्ती’ (इंतज़ार साहब) के आख़िरी पन्ने पर सुनी थी। मैंने उसे अपनी नोटबुक में दर्ज कर लिया था :
“इससे पहले… इससे पहले कि उसकी माँग में चाँदी-सी भर जाये और चिड़ियाँ चुप हो जायें, और इससे पहले कि चाबियों को जंग लग जाये और गली के किवाड़ बंद हो जायें और इससे पहले कि चाँदी की डोरी खोली जाये और सोने की कटोरी तोड़ी जाये और घड़ा चश्मे पर फोड़ा जाये और चंदन का पेड़ और सागर में साँप और…।
” चुप क्यों हो गये?”, इरफ़ान उसे टकटकी बाँधे देख रहा था। ख़ामोश अफ़जाल ने उँगली होठों पर रखकर इरफ़ान को ख़ामोश रहने का इशारा किया। “मुझे लगता है कि बशारत होगी।” “बशारत?, अब क्या बशारत होगी?”, इरफ़ान ने कड़वे मायूस लहज़े में कहा। ” काके, बशारत ऐसे वक़्त में ही हुआ करती है, जब चारो तरफ़…।” कहते-कहते रुका। फिर सरगोशी में बोला ― ” यह बशारत का वक़्त है…।”
हम सब अपने-अपने गवाक्ष से दुनिया को देखते हैं और अपने-अपने भाव-बोध से उस में रंग भर देते हैं, जानते हुए भी कि समय का हर पल अनिश्चित है और अंत की ओर जा रहा है। लेकिन उसी अंत के आग़ोश से ज़िंदगी चुरा कर जीने का लुत्फ़ कलम को चिरयुवा बनाये रखता है।
भीतर कुछ बेचैनियां भी खदबदाती रहती हैं निरंतर। न समझे जाने के दुख से उपजी बेचैनियां! परतदार गुत्थियों में छुपे सच को न समझ पाने के असंतोष से उत्पन्न बेचैनियां! नैतिकता और भौतिकता के द्वंद्वात्मक दबाव से लिथड़ी बेचैनियां! कुछ बेहतर कर पाने के काल्पनिक सुख से सिहरती रचनात्मक बेचैनियां! लिखती हूं कि लिखने के बहाने बेचैनियों के बीहड़ में गुम हो गए अपने आप को लाउड थिंकिंग की टेरती आवाज से बुला सकूं। दिलचस्प है कि इस दौरान जो परछाई मेरे संग-संग चलती है, वह निरंतर फुसफुसाती है – पगडंडियों से उलझी ये राहें जिस मंजिल की ओर ले जाएंगी, वह भी बेचैनियों से झिलमिलाती कोई तिलिस्मी दुनिया ही होगी। और तब इठलाती कलम आसमान के अछोर पन्ने पर लिख देती है – चरैवेति! चरैवेति!
लिखने की वजहें जीवन भर बदलती रहती हैं।
कुछ समय पहले तक मैं सोचा करती थी कि सामाजिक अन्याय, असमानता, पशु जगत की मानुस के हाथों मारे जाने की (मेरे लिए) असह्य स्थितियां, अपने जादुई नक्षत्र का हमारे हाथों तिल-तिल कर मार दिए जाना जो मुझे सदैव त्रस्त किये रहता है …यह सब स्पष्ट रूप से मेरे लेखन में क्यों नहीं आता। मुझे जो जवाब मिलता है वह यही है कि मेरा लेखन मेरे हाथ मे नहीं है… मैँ उसपर कुछ भी मढ़ देने में असमर्थ हूँ।। इस सब के लिए मैंने जिस हद तक सम्भव हुआ एक्टिविस्ट होना चुना।
यह भी लगता रहा कि marguerite duras का उत्तर सबसे सुंदर है….”मैं लिखती हूँ क्योंकि मुझमें कुछ न करने की सामर्थ्य नहीं है.” हालाँकि अपनी तरह की एक्टिविस्ट तो वे भी ज़बरदस्त थीं।
पिछले कुछ वर्षों से मुझे अपनी माँ पर एकाग्र लेखन करते हुए महसूस होता है कि वे ही मेरा नक्षत्र हैं जिसे मार डाला जा रहा है।। उनपर एकाग्र लेखन मेरे ecological grief में जज़्ब हो चुका है।
यह लेखन मेरी थेरेपी तक नहीं कर पा रहा.. ..बहुत घुप्प अंधेरे में बैठी मैं लिखती रहती हूँ, ताकि मैं खुदकुशी को टाल सकूँ… वह भी इसलिए कि यदि मैं अपनी माँ के किसी संयुक्त परिवार के यातना-शिविर में बीते जीवन को लेकर अपने लेखन में न्याय दिला सकती हूँ तो मैं अपनी मृत्यु को टाल सकने की सामर्थ्य पैदा कर सकती हूँ।
” जब तुम पूरे खा लिए जाओगे, बच जाओगे। ”
कहीं अँधेरे में बेग़म अख़्तर गाती हैं, दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे…..