| रैगिंग गोविन्द निषाद |
उस दिन पता नहीं किस दुःख से परेशान होकर जय हिंद कमरे में लेटा हुआ था. लेटा हुआ दुःखी आदमी और क्या कर सकता है. वह जो कर सकता है, वही वह भी कर रहा था. वह बिस्तर पर अधलेटे ही मोबाइल में इंस्टाग्राम पर रील पर रील देखे जा रहा था. आज उसकी रील की फीड में लगातार धोनी के रील आ रहे थे. ऐसा नहींं था कि वह सिर्फ धोनी के ही रील देखता है. वैसे उसकी सबसे प्रिय रीलों में से एक है आर्केस्ट्रा की रील. वह नई उभरती और वायरल आर्केस्ट्रा नृत्याँगनाओं के नृत्य बहुत देखता है. काजल राज उसकी सबसे पसंदीदा नृत्याँगना है. इतना कि एक बार उसने एक पत्र भी उसे लिखकर भेजा था, जिसे उसने शायद ही देखा होगा. देखती तो जरूर उसका रिप्लाई करती. खैर कोई बात नहीं. उसकी बड़ी तमन्ना है कि वह काजल राज को नृत्य करते हुए अपनी आँखों के सामने से देखें और वही पत्र अपने हाथों से उन कोमल हाथों को थमा दे.
अबकी बार आषाढ़ जमकर बरस रहा था. इतने साल हो गए उसे इलाहाबाद में रहते हुए लेकिन यह पहला आषाढ़ था, जिसमें जमकर बादल बरस रहे थे. जितने ही वह बादल बरस रहे थे, उतना ही उसका मन स्मृतियों से भीग रहा था. उसे अपनी वह प्रेमिका याद आ रही थी, जिसे उसने इसी आषाढ़ के महीने में भीगते हुए देखा था. वह मुस्करा रही थी. उसकी प्यार भरी मुस्कराहट वह आज भी नहीं भूल पाया था. उसने सोचा कि क्यूँ न एक कहानी लिखूं अपनी प्रेमिका की, जो मुझे यूँ ही मिल गई थी, फिर यूँ ही चली भी गई.
कहानी लिखते हुए उसे हूबहू वही मुसकुराता चेहरा याद आने लगा, जिसे उसने आज से बारह साल पहले देखा था. तब से आज तक उसे देख नहीं पाया. ऐसा नहीं था कि उसने देखने की कोशिश नहींं की. बहुत कोशिश के बाद भी वह असफल ही रहा. एक दिन बड़ी हिम्मत करके उसने उसकी दीदी से पूछा था कि छोटकी मौसी कैसी हैं? उन्होंने कहा कि क्या बताऊँ वह तो अपने से जंजाल में फंस गई. उसका मरद बहुत शक्की है. हमारे घर भी आने नहींं देता है. आज तक उसके पास मोबाइल नहींं है. वह कहता है कि हम लोगों से कोई रिश्ता नहीं रखना है क्योंकि वह यहाँ किसी से प्यार करती थी इसलिए वह यहाँ नहींं आएगी. जयहिंद हैरान रह गया अपने पहले प्यार की ऐसी दुर्दशा सुनकर.
फिर जैसे ही उन्होंने कहा कि वह जल गई है. इतना सुनना था कि उसका दिल धक से किया. वह पूछने लगा कि कैसे जल गई? अरे गरम पानी गिरा ली थी. उसने पूछा कि ठीक तो हैं न वह. उन्होंने कहा कि हाँ ठीक है. उसने कहा कि आप लोग ने भी कहाँ उन्हें भेज दिया. वह कहने लगी कि वही उसे पसंद आ गया था तो हम लोग क्या करें. अब भुगत रही है. जयहिंद ने सोचा था कि इसी बहाने से वह नंबर माँगने की कोशिश करेगा लेकिन यहाँ तो उन्हें खुद बात करने के लाले पड़ें हुए थे, वह खाक नंबर देती उसका. जयहिंद मन मसोस कर रह गया. कहानी लिखने से उसका मन उचट गया. उसने लैपटॉप को बंद करके गोडवारी रख लिया.
उदासी में हर बार उसे धोनी याद आता है. उसके दुःख के साथ धोनी का क्या रिश्ता है, उसे वह आज तक समझ नहीं पाया. उसने मोबाइल उठाई और इन्स्टाग्राम खोला. धोनी की पहली ही रील आ गई. ऐसा लगा की मोबाइल ने उसका मन पहले ही पढ़ लिया था. उसने जब दो बार लगातार धोनी के रील देख लिए तो मेटा का एल्गोरिथम आज उसका मूड समझ चुका था कि आज यह क्या देखने वाला है. मेटा ने धोनी के रील से उसके इंस्टाग्राम की फीड को भर दिया. वह जैसे ही स्क्रॉल करता दूसरी रील भी धोनी की आती और अपनी पूरी भावनाओं के साथ उस पर छा जाती.
वैसे वह धोनी का जबरा फैन है. बचपन से लेकर आज तक जब धोनी बयालीस साल का हो चुका है. वह अभी भी धोनी का इंतजार करता है कि आईपीएल की शुरुआत कब होगी. उसे मतलब ही नहींं होता किसी चीज़ से. बस वह इंतजार करता है कि धोनी आए और एक भी छक्का मार दे तो वह साल उसी एक छक्के को देखकर गुजार सकता है. वह धोनी को तब से खेलता हुआ देखता आ रहा है, जब वह कक्षा पांच में पढ़ता था. उसने क्रिकेट मतलब ही मान लिया था धोनी.
आज जब वह लगातार धोनी के रील देख रहा था. तब हर एक रील पर उसकी भावनाएं उफनती जा रही थीं. हर रील के साथ वह कहीं खो जाता. वह याद करने लगता कि इस मैच के दिन वह कहाँ था और क्या कर रहा था. जब उसके सामने से 2007 के टी-20 वर्ल्ड कप की रील गुजरी तो वह भावुक हो गया. उसे याद आया कि जिस दिन टीम ने वर्ल्ड कप जीता था वह अपने ननिहॉल में था. उसका ननिहॉल सरयू नदी के किनारे स्थित एक गाँव में है. तब वह उस क्षेत्र का एक पिछड़ा इलाक़ा हुआ करता था. उसी इलाके के प्रसिद्ध डकैत शिवदास यादव गरीबों के मसीहा हुआ करते थे. उसके ननिहॉल में तब बिजली भी नहींं आईं थी. एक भी घर पक्का नहीं था.
जब कुछ दिन बाद वह गांव लौटा तो पता चला कि धोनी ने वर्ल्ड कप जीत लिया है जबकि कुछ ही महीने पहले वन-डे वर्ल्ड कप में टीम पहले ही दौर में बाहर हो चुकी थी. उसे विश्वास ही नहींं हो रहा था कि धोनी ने वर्ल्ड कप जितवा दिया. वह ख़ुशी में पागल-सा दौड़ा बाज़ार की तरफ, जहाँ उसे अख़बार मिल जाने की उम्मीद थी. वह उस दिन के सभी अखबारों को पढ़ना चाहता था. उसने सभी दुकानदारों से जिनके यहाँ अखबार आता था, उनसे उस दिन का अखबार देने की गुजारिश की. चूंकि सभी दुकानदार उसे जानते थे कि यह लड़का रोज अखबार पढ़ने आता है इसलिए खोज-खोजकर उन्होंने उसे उस दिन के अखबार दे दिए. वह दिन भर उन अखबारों को ऐसे पढ़ता रहा. जैसे लोग IAS की मुख्य परीक्षा के लिए तैयारी करते हैं. उस दिन के सभी अखबार उसने चट कर डाले. खेल और धोनी से जुडी कोई खबर उसने नहीं छोड़ी. फिर वह दौड़ा-दौड़ा अपने उस दोस्त के पास गया जो बड़े कस्बे में पढ़ता था. उससे कहा कि क्या वह ‘क्रिकेट सम्राट’ पत्रिका उसके लिए ला देगा. उसने कहा हाँ वह ला देगा. उसके बाद वह महीनों तक एक ही पत्रिका को दुबारा-तिबारा पढ़ता रहा.
आज एक से एक भावनात्मक गानों से परिपूर्ण रील उसकी आँखों के सामने से गुजर रही थीं. तभी एक रील गुजरी जो धोनी द्वारा श्रीलंका के खिलाफ बनाएं गए 183 रन की थी, जिसमें मैच में मारे गए दस छक्कों को दिखाया गया था. उसने उस दिन को याद करने की कोशिश की. उसे कुछ धुंधला-धुंधला सा याद आने लगा. वह दिन-रात का मैच था. दिन में तो वह बैठा हुआ अपनी छोटी रेडियो पर कमेंट्री सुनता रहा, फिर शाम को भैंस लेकर चला गया. भैंस को चराते हुए ही मैच की कमेंट्री सुनता रहा कान के पास रेडियो लगाकर.
अब इंस्टाग्राम का एल्गोरिथम पूरी तरह सेट हो गया. उसे धोनी के एक से एक शाट के रील मिलते रहे. साथ में कुछ स्टंपिंग के तो कुछ विकेट के पीछे अपील के तो कुछ कैच के. इन सब रील की एडिटिंग इतने शार्प तरीके से की गई थी कि हर रील पर वह ठहर जाता. धीरे-धीरे उसे लगने लगा कि वह भावुक हो रहा है. 2011 के वर्ल्ड कप में फाइनल में लगाए गए छक्के की रील देखने के बाद वह दौड़ने लगा स्मृतियों के उस रास्ते पर, जब वह छक्का लगने के बाद बच्चो की टोली के साथ यूँ ही सड़क पर दौड़ता रहा. रात भर जश्न मनाने के लिए वह उस दिन सोया नहीं था. उस दिन उसकी आँखों से नींद गायब थी. उसका असर महीनों उस पर बना रहा. अगली रील न्यूजीलैंड के खिलाफ वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल की आ गई, जिसमें रन आउट होने के बाद धोनी का लौटते हुए उसका निराश चेहरा किसी मातमी गाने के साथ आ गया.
अब वह बस रोने ही वाला था कि तुरन्त ही चेन्नई सुपर किंग्स के 2023 के फाइनल की वह रील आ गई, जिसमें वह जीतने के बाद भावनात्मक होकर जड़ेजा को उठा लेते हैं. उसे याद आया कि किस तरह एक चुप रहने वाला लड़का उस दिन चिल्लाने लगा था. घर वाले तो यही सोचकर डर गए थे कि इसे कोई भूत तो नहीं पकड़ लिया है. आधी रात को क्यूँ चिल्ला रहा है. सब आयें उसके पास. वह रो रहा था. सबको लगा कि जरूर की कोई भूत पकड़ लिया है. जयहिंद ने उनसे कहा कि मैच देख रहा था. वह यह बोलते हुए छत से नीचे चले गए कि मैच देखकर भी कोई भला चिल्लाता है. हम लोगों को तो डरा ही दिया था इसने.
अब उसकी भावनाएं उबाल मारकर बाहर आने लगी. वह सोते-सोते ही रोने लगा. कुछ देर तक रोता रहा. उसे लग रहा था कि वह एक ही घंटे में पन्द्रह वर्षों की यात्रा करके वापस आ गया है. वह लगातार रोता और रील देखता रहा. कितना पागल लड़का था. भला रील देखकर कोई रोता है. उसके पिता जब चले गए तो महीनों तक वह गुमसुम रहा लेकिन रोया नहीं था. आज वह ऐसे रो रहा था जैसे उसके पिता आज ही चल बसे हो. तभी उसे एक पोस्ट पर कुछ तस्वीरों वाले वीडियो दिखाई देने लगे. वह ठहरकर उन्हें स्क्रॉल करता रहा. इसी में धोनी के वर्ल्ड कप में लगाए गए छक्के के बाद बल्ले को लहराते हुए एक तस्वीर दिखी. उसने तुरन्त उसका स्क्रीनशॉट लिया. तय किया कि पुस्तकालय जाकर आज रंगीन प्रिंट में इसकी तस्वीर निकालकर यहाँ दीवाल पर लगाएगा.
वह पुस्तकालय गया. पढ़ते हुए जब शाम हो गई तब उसे याद आया कि फोटो निकालने हैं. वह फोटो निकालने के लिए कम्प्यूटर पर बैठा. वहाँ पुस्तकालय सहायक बैठे हुए थे. उसने उन्हें बता दिया कि मुझे रंगीन फोटो निकालनी है. वह पूछने लगे कि कैसी फोटो है? किसकी फोटो है? क्या करेंगे निकालकर? वह भड़क गया कि इससे आपको क्या मतलब है कि मैं किसकी, क्यों और क्या करने के लिए फोटो निकाल रहा हूँ. उन्होंने कहा कि आपको अनुमति नहींं है रंगीन फोटो निकालने की. अनुमति नहींं है मतलब? उसने पूछा. उन्होंने कहा कि रंगीन फोटो निकालने के लिए आपको पुस्तकालय प्रमुख से अनुमति लेनी होगी.
वह बिफर पड़ा कि अब एक रंगीन फोटो निकालने के लिए भी अनुमति लेनी पड़ेगी. हाँ हम रंगीन फोटो नहींं निकाल सकते क्योंकि उसका कलर का रोल हमारे स्टाक में ज्यादा नहींं आता. अब जयहिंद का गुस्सा सातवें आसमान पर था कि विश्वविद्यालय के पास सबकुछ खरीदने के लिए पैसा है. बस कलर का रोल खरीदने का पैसा नहींं है. नहींं है तो मैं क्या करूं? पुस्तकालय सहायक ने कहा. हाँ आप क्या ही करेंगे लेकिन मुझे फोटो निकालनी ही है. हम नहींं निकाल सकते हैं. आप पुस्तकालय प्रमुख से अनुमति लेकर आइए. मैं निकाल दूंगा. उसने कहा कि ठीक है मैं आता हूँ. देखा तो पुस्तकालय प्रमुख हैं ही नहींं.
जयहिंद ने कहा वह तो नहींं हैं फिर कैसे होगा?
पुस्तकालय सहायक- “नहींं निकलेगा फिर?”
जयहिंद- “कहना क्या चाहते हैं?”
पुस्तकालय सहायक- “अरे यही कि अनुमति लेकर आइए. फिर निकाल लीजिए.”
जयहिंद- “कहाँ से अनुमति लेकर आऊं, जब वह यहाँ मौजूद ही नहींं हैं.”
पुस्तकालय सहायक- “मैं नहींं जानता.”
जयहिंद- “तो फिर मैं निकाल रहा हूँ. जिसको जो करना है, कर ले.“
उसने तुरंत फोन पुस्तकालय प्रमुख को लगा दिया. बताया कि मैं बिना अनुमति के ही रंगीन फोटो निकाल रहा हूँ. पुस्तकालय सहायक ने मोबाइल उसे थमाया. उधर से वह बोलें कि आप जबरदस्ती न कीजिए. पुस्तकालय से रंगीन फोटो निकालने की अनुमति नहींं है. क्योंकि हमारे पास कलर की मात्रा कम है. उसने गुस्सा होते हुए कहा कि हाँ बस विश्वविद्यालय के पास एसी, गाड़ी, कुर्सी, बड़ी-बड़ी एलईडी और फर्नीचर लगाने के लिए पैसा है लेकिन कलर के लिए नहींं है. वाह भाई क्या बात है. उन्होंने कहा कि कुछ भी हो लेकिन आप रंगीन फोटो नहींं ले सकते? नहीं ले सकते तो फिर क्यों चला रहें हैं यह विश्वविद्यालय. बंद कर दीजिए. एक रंगीन फोटो जहाँ नहींं निकाल सकते. वहाँ शोधार्थी क्या घंटा शोध करेगा. चले हैं विश्वविद्यालय की रैंकिंग सुधारने. ख़ाक सुधार पाएंगे रैंकिंग. और गर्त में न डूब जाए तो कहना.
2/
उसने उसी गुस्से में एक शिकायत पत्र लिखा. जिसे विभाग के प्रमुख को देना था. उसने यह शिकायत पत्र उन्हें थमाया. उन्होंने चश्मा लगाया और ध्यान से देखने लगे. आहिस्ता-आहिस्ता उन्होंने नज़र ऊपर उठाई. फिर उन्होंने भी ज्ञान देना शुरू कर दिया कि देखो ऐसे काम नहीं होता है. तुम पहले लिखकर दो कि कितने पेज तुम्हें निकालने हैं. फिर इंतजार करो. इतना जल्दी-जल्दी थोड़े न होता है ये सब. समय लगता है. हमारे जमाने में तो हफ्तों बाद मिलता था. कल ही उन्होंने एक भाषण दिया था कि कैसे तकनीकी और एआई ने दुनिया में क्रांति कर दी है. सारा काम सेकेण्डों में हो जा रहा है. फिर वही कह रहे हैं कि फोटो कॉपी के लिए हफ्तों तक इंतजार करो. रंगीन फोटो की तो बात ही छोड़ दीजिए. भाड़ में जाए यह शोध-वोध की दुनिया. वह बुदबुदाता हुआ वहाँ से बाहर निकला.
जयहिंद उदास था. साथ में गुस्से से भरा हुआ था कि उसे वह लड़का मिल गया जो कल उसके साथ व्हाट्सएप ग्रुप में बदतमीजी से बात करते हुए धमका रहा था कि शांत रहेंगे कि शांत कराऊं आपको. उसने सोचा कि पूछ ले कि भई कल क्या कह रहे थे. वह जयहिंद को ही समझाने लगा कि देखिए मुझे अंग्रेजी आती है. हिंदी समझ नहींं आती है. जयहिंद ने कहा कि भाई कहाँ के रहने वाले हो? बिहार का. तो भई बिहार में क्या फ़ारसी बोली जाती है. वह उसके ही ऊपर पिल पड़ा कि आपकी तरह कवि थोड़े न हूँ कि सभ्य भाषा का प्रयोग करूं?
तो तुम इस तरह बात करोगे. बात करने की तुम्हें तमीज भी है? आप मुझे तमीज़ सिखाएंगे. जानता हूँ कि कितने बड़े कवि हैं आप? अब तो उसका संयम चूक गया. उसने कहा कि तुम बदतमीज हो. आज के बाद मुझसे बात मत करना. उसने ठसक से कहा कि जाइए आप के जैसे बहुत देखें हैं. वह अपने आपको कोसने लगा कि मैं साला आज कितना अपमानित होऊंगा. पहले पुस्तकालय सहायक ने अपमानित किया, फिर पुस्तकालय प्रमुख ने, फिर विभाग प्रमुख ने और अब यह जुम्मा जुम्मा चार दिन का आया लौंडा भी मुझे सिखा रहा है. मेरे अपमानित होने की कोई सीमा भी है. मैं कोई गली का खंभा हूँ . जो कोई भी कुत्ता मूतकर और सांड रगड़ कर चला जा रहा है.
उसके दूसरे दिन वह अली की चाय की दुकान पर बैठा चाय पी रहा था. विभाग प्रमुख के सहायक का फोन आया कि साहब आपको बुला रहे हैं. आप आ जाइए. वह विभाग प्रमुख के पास गया. विभाग प्रमुख ने कहा कि तुम्हें हो क्या गया है पहले तुम पुस्तकालय प्रमुख की शिकायत लेकर आए और अब इस लड़के ने तुम्हारे खिलाफ शिकायत कर दी है. शिकायत किस बात की शिकायत? मैंने उनसे पूछा. वह कहने लगे कि तुमने उस लड़के को धमकाया और गाली दिया है. अरे यह कब हुआ. मुझे तो पता ही नहींं. पता नहींं कह रहे हो. वह आया था और रो-रोकर उसने बताया कि तुमने उसके साथ बदतमीजी की है. जयहिंद ने कहा कि मैंने बदतमीजी की? ये कब हुआ. हाँ यह जरूर था कि उसने मुझे और मेरी कविताओं पर अनाप-शनाप जरूर बोला तो मैंने उससे इतना जरूर कहा था कि तुम बदतमीज आदमी हो. आज के बाद मुझसे बात मत करना. फिर मैं चला गया.
विभाग प्रमुख ने कहा कि ऐसा नहींं है. उसने शिकायत में लिखा है कि तुमने उसकी पत्नी के सामने उसे जलील किया. गाली दी. इससे उसकी पत्नी को ट्रामा सेन्टर ले जाना पड़ा. अरे यह सब कब हुआ. उसकी पत्नी तो मस्त उधर किसी से बतिया रही थी. आपको विश्वास नहींं होतो आप सीसीटीवी कैमरे में देख सकते हैं कि मैं कहाँ था और उसकी पत्नी कहाँ थी. दूसरे कि मैंने उससे कोई और बात की ही नहींं. बस चार-पांच मिनट बात करने के बाद मैं चला गया. चलो कोई बात नहींं लेकिन आगे से ऐसी गलती मत करना. विभाग प्रमुख ने कहा. उसने भी कहा कि सर कोई मुझे अपमानित करेगा मेरे लिखने को लेकर तो मैं उसकी ऐसी-तैसी भी कर दूंगा. पीएचडी-उएचडी जाए चूल्हे भांड में. देखो तुमसे बड़े-बड़े लिखने वाले अभी हैं. क्या ही हैसियत है तुम्हारी अभी. तो ठीक है आगे से ध्यान रखना कि ऐसी ग़लती दोबारा न हो. ठीक है सर, कहते हुए वह बाहर निकल आया.
वह मानसिक रूप से ठीक नहींं होने के कारण दवा खाता था. उसका यह मानसिक रोग तब शुरू हुआ था, जिस दिन कुम्भ मेले में भगदड़ हुई थी और वह राहत कार्यों में जुट गया था. बाद में जब उसे पता चला कि कई सौ लोग मारे गए और सरकार ने आंकड़ा छुपा लिया तो दिन ब दिन उसका मानसिक संतुलन बिगड़ने लगा. आगे उसे कई मानसिक आघात लगे, जिसमें उसके परिवार की कठिनाइयाँ और बेबसी थी. वह जब भी दवा खाता उसे तेजी से नींद आ जाती. वह दोपहर में नींद से सोकर जगा था कि उसके मोबाइल पर एक ईमेल आया था. खोला तो पता चला कि उसके खिलाफ रैगिंग की शिकायत की गई है. वह चौंका. उस ईमेल में कहा गया था कि आपके खिलाफ यूजीसी में रैगिंग की शिकायत हुई है. आपको एंटी रैगिंग स्क्वॉड के सामने कल दोपहर में हाजिर होना होगा.
जयहिंद दोपहर में पहुंचा. एंटी स्क्वॉड की टीम एक साथ में बैठी हुई थी. पहले वह अंदर गया. बैठा तो थोड़ी देर बाद उससे कहा गया कि आप बाहर जाइए. बुलाया जाएगा तो आइएगा. वह बाहर आकर खड़ा हो गया. उसने देखा कि उसकी जूनियर एंटी स्क्वॉड टीम में है. वह अपना सिर नोचने लगा कि भगवान को भी न क्या-क्या दिन दिखाना मुझे बाकी रह गया है. थोड़ी देर बाद उसे अंदर बुलाया गया. उन्होंने बिल्कुल पुलिसिया कार्रवाई की तरह उसके साथ सलूक किया. आठ लोगों की एंटी रैगिंग स्क्वॉड के सामने वह पेश हुआ. उसे बताया गया कि अमुक छात्र ने आपके खिलाफ रैगिंग की शिकायत की है.
उन्होंने आरोप लगाया है कि आपने उन्हें जातिसूचक गालियाँ दीं. उनकी पत्नी के सामने उसे अपमानित किया. जयहिंद ने अपना संयम नहींं खोया. उसने शांति के साथ उनके सवालों के ज़वाब दिए. उसने कहा कि उस दिन वह दीपा मैडम से मिलने गया था. वह नहीं मिली तो वह घूमता हुआ इंग्लिश विभाग के पास पहुंचा. वहाँ मुझे यह लड़का दिखाई दिया. मैंने उससे पूछा कि भाई क्या हॉल है. कल आपने इस तरह की भाषा का प्रयोग व्हाट्सएप ग्रुप में क्यूं किया था. उसने ही मुझे उल्टा समझा दिया कि मुझे पहले तो हिंदी नहींं आती दूसरे मैं आपकी तरह कवि थोड़े न हूँ. वह मेरी कविताओं के साथ मेरा भी मजाक़ उड़ा रहा था. मैंने कहा कि देखो मै कवि-वबी नहीं हूँ लेकिन तुम बदतमीज जरूर हो. आज के बाद मुझसे बात मत करना.
एंटी स्क्वॉड टीम के एक सदस्य जो सुदूर पूर्व के रहने वाले हैं, उन्होंने कहा कि दूसरा आरोप है कि आपने उसे जान से मारने की धमकी दी है. इस पर आपका क्या जवाब है? यह सुनते ही वह सन्नाटे में आ गया कि जान से मारने की धमकी तो मैंने दी ही नहींं. जो बरसात में सड़क पार कर रहे घोंघे और केंचुए को रास्ता पार कराता हो, वह किसी की हत्या करने की भी धमकी दे कैसे सकता है. उसने कहा कि यह आरोप बेबुनियाद है. तभी एक कर्मचारी सबके लिए फल लेकर हाजिर हुआ. सभी के सामने फल रखे जाने के बाद जैसे ही उसने फल की प्लेट उसकी ओर बढ़ाई, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी ने मना कर दिया यह सोचकर कि एक आरोपी को आप फल कैसे दे सकते हैं, जबकि वह इस विभाग का एक होनहार छात्र था. वह फल चाभते हुए उससे सवाल पर सवाल करते रहें और वह जवाब देता रहा.
रमेश- “अच्छा आपने कभी शिकायतकर्ता से पहले कोई बात की है?”
जयहिंद- “नहींं.”
सुरेश जो मुख्य प्रशासनिक अधिकारी है. उसने पूछा- “आप उनकी पत्नी को जानते हैं?”
जयहिंद- “नहींं.”
छात्र प्रतिनिधि नेहा ने पूछा- “आप किसी भी तरह से पहले शिकायतकर्ता को कोई शारीरिक भाषा में जैसे कि घूरा या आंख दिखाया है?”
जयहिंद- “नहींं.”
उसके बाद जयहिंद से कहा गया कि आप जाइए. वह निकल गया. उसे चलते हुए लग रहा था कि किसी कैदखाने से बाहर आ रहा है. आरोपित होने के ग्लानि से वह भर गया था. उसे लग रहा था कि जैसे सिर पर किसी ने जोरदार हथौड़ा मार दिया हो. उससे बोला गया था कि आप हमेशा उपस्थित रहेंगे, जब भी आपको बोला जाएगा. बाहर निकलते हुए वह सोचने लगा कि कल का आया लड़का जो मुझे जानता भी नहींं है, वह इतना बड़ा आरोप कैसे लगा सकता है. उसने भी अपने बाल धूप में तो सफ़ेद किये नहीं थे. हालैंड हॉल हॉस्टल में रहकर वह आया था. वहाँ रहने वह तब आया था, जब बड़े-बड़े माफिया वहाँ रहा करते थे. वह भी तो एक समय रंगदार ही हुआ करता था. वह सोचने लगा की वो दिन होते तो अभी सबकी रंगदारी निकाल देता लेकिन अब वह बदल चुका था लेकिन आज उसने हालैंड हॉल वाला दिमाग लगाना शुरू कर दिया.
पता चला कि सारा मामला शिकायतकर्ता के कंधे पर बंदूक रखकर चलाने का है. दरअसल उसके विभाग में एक जगह है, जहाँ छात्र बैठकर कभी भी पढ़ सकते हैं. इधर के सालों में खूब लम्पट छात्रों को विभाग ने भरा था, वो भी अच्छे लोगो की कहने पर. यह लंपट किस्म के छात्र यूनिवर्सिटी के छात्रावासों से आते थे. कुछ तो उसके बैचमेट थे. कुछ उसके भी सीनियर लेकिन एक बात सबमें समान थी कि सभी लंठ और चूतिया किस्म की प्रजाति से संबंधित थे. वह दिन भर रीडिंग रूम में बैठकर लंपटई करते थे. उनके साथ में उनकी स्वाजातीय लड़कियाँ भी शामिल थीं.
वह ऐसा लगता था मनुस्मृति लोक से आए थे. वह इस बात से डरे रहते कि कही किसी उच्च जाति की लड़की का निम्न जाति के छात्र के साथ दोस्ती न हो जाए. दोस्ती हो गई तो प्यार भी हो सकता है और प्यार हो गया तो संभोग होने में कितना समय आजकल लगता है. लेकिन इसका ठीक उलटा कार्य करने को वह अपना परम कर्तव्य समझते थे. इसलिए वह हमेशा रक्त की शुद्धता को बचाएं रखे जाने के लिए अपनी लड़कियों की सुरक्षा में लगे रहते थे.
उसके चिबल्लपन से वहाँ पढ़ने वाले छात्रों को पढ़ने में दिक्कत होती थी. इन लोगों ने उसे अपनी बतकही का अड्डा बना लिया था. कोई पैर उठाकर डेस्क पर रखकर बैठता तो कोई गालियाँ देता. उनका काम ही था कि इतनी परेशानियाँ पैदा करो कि कोई भी हम लोगों के सिवा यहाँ न बैठे. वह सभी उच्च जातियों से थे सिवाय एक अहीर के. तो वह इसे अपना विशेषाधिकार भी समझते थे कि दलित और शूद्र साले यहाँ कैसे पढ़ेंगे. वह तो आरक्षित वर्ग पर अहसान कर रहे हैं कि इस यूनिवर्सिटी में उन्हें पढ़ने दे रहे हैं, वही बहुत है. इनका मन मायावती और अखिलेश ने बहुत बढ़ा दिया था लेकिन बेटा हम लोग अब वापस आ गए हैं. वह दिन भूल जाओ अब, जब तुम लोग हम लोगों के सिर पर बैठकर मूतते लगे थे.
एक दिन जयहिंद भी वहाँ पढ़ने गया. पहले वह अक्सर जाता रहता था लेकिन लाइब्रेरी में पाँच-छह घंटे पढ़ने के बाद उसका वहाँ जाकर पढ़ने का मन नहींं करता. वह पहुंचा तो उनकी बतकही चल रही थी. उसी में किसी ने एक कर्मचारी को गाली दी,
“वह साला बहुत मादरचोद है. अपने को क्या समझता है आंबेडकर की औलाद. क्या औकात है उसकी. आरक्षण से भोंसड़ी के नौकरी पा गए हैं, नहींं तो सड़क पर भीख माँगते.”
दूसरे ने कहा कि सब भोसड़ी वाले चूतिया है. वह तो सबसे बड़ा चूतिया है जो नीचे बैठता है. इन सालों को उनकी औकात दिखानी है. चारों ओर हँसी का फव्वारा फूट गया.
जयहिंद से यह सुना नहींं गया. साथ में और भी छात्र थे जो आरक्षित वर्ग से आते थे. किसी ने कुछ बोला नहीं. जयहिंद तो छात्र राजनीति से आया था. उसने सोचा कि यह बातें तो ऐसी है कि जिसे एक सेकेण्ड भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता, फिर आरक्षित वर्ग के छात्रों के कानों में क्या मनुस्मृति का शीशा डाल दिया गया है जो वह यह सब सुनकर भी चुप्पी साधे हुए हैं. उसने प्रशासनिक आधिकारी के नाम एक शिकायत लिखी कि रीडिंग रूम में शोर बहुत होता है. लोग आपस में गाली-गलौज करते हैं.
उसके बाद शोध कोआर्डिनेटर ने एक मीटिंग बुलाई. सभी छात्रों ने एक-एक करके जो कुछ भी वहाँ होता था, उन्हें बताया. वह इतने बेवकूफ किस्म के थे कि उन आरोपों के जवाब उन्होंने खुद ही देने शुरू कर दिए. जैसे कि वह आरोप उन्हीं के ऊपर लगाए गए हो. इससे स्पष्ट हो गया कि सारी गंदगी इन्हीं की फैलाई हुई है. एक बुजुर्ग लेकिन जूनियर छात्र ने कहा कि बैठे-बैठे देह अकड़ जाती है तो पैर को कहाँ रखें? डेस्क पर ही तो पैर रखकर आराम करूँगा. एक ने तो कमाल का रक्षात्मक रूख अपनाया और बोला कि हमें बात करने के लिए भी तो कोई जगह चाहिए न. इतना सुनना था कि जयहिंद ने तुरंत डपटकर कहा कि बात करने के लिए इतनी बड़ी युनिवर्सिटी है, घूम-घूम कर बतियाओ भाई कौन रोक रहा है.
सभी हँसने लगे. दरअसल वह समझाता बहुत अच्छा था. ऐसा उसे लगता था लेकिन सब उसे जानते थे कि यह एक नंबर का बकलोल है. पता नहीं कोई साफ्टवेयर सीख लिया था उसने, जिससे उसे लगता था कि दुनिया भर का सारा ज्ञान इसी के पास है.
जयहिंद के अपने सीनियर की कही बात याद आ गई कि नये-नये शोधार्थी को लगता है कि वह जो करने जा रहा है, उस पर आज तक किसी ने सोचा भी नहीं है जबकि उसके अकादमिक बापों ने इसी धरती पर सबकुछ करके छोड़ दिया है. तो उसे अभी ऐसा ही लगता था. वह सिर पर चुरकी रखता था जैसे कि कही भागवत कथा कहने जाने वाला हो लेकिन उसे कहाँ पता था कि अहीर कथावाचक का मुंडन कराके भाभी जी के मूत्र से उसका शुद्धीकरण कभी भी किया जा सकता है. चुरकी रखने से कोई पंडित थोड़े न हो जाता है. हाँ तो उसके बाद कोई बचाव पक्ष में बोलने नहीं आया.
तय हुआ कि रीडिंग रूम में चारों तरफ कैमरा और वाइस रिकार्डर लगाया जाएगा. इस तरह से उनका बकैती और लंठई का अड्डा उनसे छिन गया. इससे वह ज्यादा ख़फ़ा थे और भी कई कारण थे. जैसे कि जयहिंद का स्वभाव कि वह किसी को फर्ज़ी मुंह नहींं लगाता था. ऊपर से उसका प्रभाव थोड़ा ज्यादा था. पढने-लिखने में ठीक था. एक वही था जो इनके तिकडमों को तुरंत समझ जाता था. वह मौका ढूँढ रहे थे कि इस मादरचोद को सबक सिखाना जाए, नहीं तो हमारे उच्च जाति में पैदा होने का क्या फायदा.
उस दिन जब जयहिंद शिकायतकर्ता से बात करके निकला, तब यह गुट उसके पास गया और समझाया कि तुम उसके खिलाफ रैगिंग की शिकायत यूजीसी में कर दो. उन्होंने जयहिंद पर एक आरक्षित वर्ग के लड़के के कंधे पर बंदूक रखकर बढ़िया निशाना लगाया था. जयहिंद को यहाँ तक तो कोई दिक्कत नहीं थी. वह उच्च जाति के थे और उसके सारे दोषों को लेकर यहाँ आयें थे. वह तो चाहते ही थे कि आरक्षित वर्ग के बच्चों को नियंत्रित करके रखें ताकि उनकी सांस्कृतिक वर्चस्व बना रहे.
जयहिंद को बाद में पता चला कि शिकायतकर्ता के सुपरवाइजर ने उसके खिलाफ पूरा शिकायत का मसौदा तैयार करवाया है. जब यह बात उसे पता चली तो वह दंग रह गया कि एक पसमाँदा मुस्लिम ऐसा कैसे कर सकता है, वह भी तब; जब वह जे.एन.यू से पढ़कर आया है. उसके तो होश उड़ गए. वह यह सोचते हुए बेहोश होते-होते बचा कि जे.एन.यू. में जरूरी नहींं है कि सब पढ़ने वाले समझदार पाएं जाते हो. कुछ ऐसे बकलोल भी पाए जाते हैं जिन्हें पता ही नहींं है कि सांस्कृतिक वर्चस्व नाम की भी कोई चीज होती है. उसने सोचा कि उन्हें तो समझना चाहिए था. अब जो बात उसे पता चली उसके बाद तो उसे बेहोश ही हो जाना था.
उसे पता चला कि एक अनुसूचित जाति के अध्यापक उस पसमाँदा समुदाय से आने वाले अध्यापक के साथ बैठकर चाय-नाश्ता करते हैं. वह देशभर में जातीय भेदभाव के खिलाफ क्लास में और क्लास से बाहर बड़े-बड़े लेक्चर देते हैं. गाहे-बगाहे ज्ञान भी दे देते हैं कि देखो उच्च जातियों को कैसे आगे बढाया जाता है. इसके बाद तो उसे बेहोश होना ही था तो वह हो गया. सड़क के किनारे घंटो बेहोश पड़ा रहा. जब उसे होश आया तो पता चला कि वह सड़क के किनारे लिथड़ा हुआ लेटा है. उसे किसी ने नहींं उठाया यह समझकर कि दारू पीकर गिरा हुआ होगा. वह उठा तो उसकी हालत ऐसी हो गई थी जैसे कि गली का खुजली वाला कुत्ता. वह देखता है कि वही कुत्ता ठीक उसके बगल में सोया हुआ है. उसने मन ही मन सोचा कि आदमी से अच्छा तो यह कुत्ता है. उसने अपने कपड़े देखे तो देखा कि वह धूल से ओजित हो रहे थे. वह उठा और किसी तरह अपने कमरे पर आया.
3/
नहाकर जैसे ही बैठा था कि तभी मेल आया कि कल एंटी रैगिंग स्क्वॉड की बड़ी बैठक होगी, जिसमें बाहर से लोग शामिल होंगे जो तय करेंगे कि मैंने रैगिंग की है या नहींं. बैठक में एक पत्रकार, वकील, प्रशासनिक अधिकारी, नागरिक समाज का एक आदमी, एक छात्र और पुलिस के प्रतिनिधि शामिल रहेंगे. उसने कुछ नहींं किया. मोबाइल बिस्तर पर फेंककर रोने लगा. आंसू थमने का नाम ही नहींं ले रहे थे. जैसे ही उसकी माँ का चेहरा आँखों के सामने से गुजरता वह और रोने लगता. उसने मोबाइल उठाई और माँ के नाम एक चिट्टी लिखी जिसे माँ तो पढ़ नहींं सकती थी. उन्हें पढ़ना ही नहींं आता था. वह निपट गंवार थी. उसने अपनी पीड़ा को बताने और अपना दुःख कम करने के लिए ऐसा किया था. उसने लिखा कि
“हमार माई
कइसे हऊ? बाबू जी ठीक कहत रहनै कि बाबू रे का करबे पढ़ि के. सब केवटहिया के लड़िका काम करत हवै अउर इ पढै़ जइहै. हमहू कहनि रे माई का करब पढ़ि के. लेकिन तू ना मनलू. अ हमके पढ़वावय लगलू. इ दुनिया बड़ी बेरहम रे माई.हमके याद बा कि दसवीं क परिच्छवा के बाद तू पुछलू कि करे बाबू परीक्षवा त तोहार खत्म हो गइल, अब का करबा. हम कहनि कि हाँ कहत त सही बाटू. तू कहलू कि काहे न हरी के साथे चलि जाता कमाए. हम कहनि कि ठीक बा. यहाँ रहिके के का करब. ठीक बा परसों ऊ जात हवै चलि जा ओनका साथे.
पीओपी में हेल्फरिया करे के रहा. गांव वापस लौटनी चार महीन्ना बाद दस-बारह हजार रूपया पहिलका बार अपने पैसा क कमाए रहनि. तोहसे कहनि कि माई रे अब मैं ना पढ़ब. पढ़ि-लिखि के का करब. साधु भी त इहै चाहत रहै. तोहके पता न काहे लागत रहा कि हम कलेक्टर बनि जाब. तू कहलू कि पढ़ि ले बाबू. हम कहनि ना पढ़ब. तू रोवै लगलू कि बाबू पढ़ि ले. हम कहनि कि ना हम ना पढ़ब. हम कहले रहनि रे माई का करब पढ़ि के. काहे कहलू कि नामवै लिखवाइले. हम कहनि कि ठीक बा लेकिन हम कमाए जाब. फिर हम नमवो ना लिखववनि. आवारा मतिन घुमै लगनि. अगले साल फिर तू जिदियाय गइलू कि यह बार त नमवा लिखवाय ले.
हमहू सार बउरायल रहनि कि पढ़े लगनि. अब हमके समझ में आवत बा काहे पढ़े चलि आइनि. ना आवै के चाहत रहै. अब तक पीओपी क बढ़िया कारीगर होई गयल रहति. जवन लाखों रूपया पढ़ाई-लिखाई में लागल बा, ओसे ज्यादा त अब तक कमाय लेहले होती. सौचति हई कि अभिए देरी ना भइल बा. वापस चल चलि आपन दुनिया में. ऊ दुनिया में दुःख बा, बाकी अपमान त न बा. होइहो होई त वहाँ चलि जाई. तोहके लागत रहा कि कलेक्टर बनि जाब. इहाँ लागत बा कि पागल बनाय दीहै सब. ए माई हमके वापस बोलाय ला.”
फिर उसने इसे फेसबुक पर डाल दिया. पत्र उसने अवधी में लिखा था. बस कुछ लोगों ने उसे देखा. कोई सहानुभूति भी नहींं मिली तो और उदास हो गया. वह अपनी माँ को कोसने लगा कि अच्छा भला मैं दिल्ली में काम कर रहा था. पता नहींं क्यों मुझे जबरदस्ती पढ़ने के लिए भेज दिया. हजारों लोगों की केवटहिया में सभी तो काम ही करते आ रहे हैं फिर मुझे ही क्यूँ पढ़ाने की चुल्ल उन्हें मची हुई थी? उसकी माँ को लगता था कि वह पढ़कर कलेक्टर बन जाएगा. अब भुगतें, आरोप साबित हुआ तो कैरियर तो जाएगा ही जाएगा; जेल अलग से जाना पड़ेगा.
वह उठा और सीधा बाज़ार गया. उसे शराब छोड़े कई महीने हो गए थे लेकिन आज तो पीना बनता था, मौका भी था और दस्तूर भी. उसके घर में आधे लोग शराब पीकर मर गए और पीछे छोड़ गए भाभियाँ. इसलिए उसे लगता था कि अगर उसने भी शराब पी तो वह भी जल्दी ही पक्का मर जाएगा. उसका मानसिक संतुलन बिगड़ने के पीछे एक वजह यह भी थी. एक समय वह जमकर शराब पीने लगा था लेकिन एक दिन तबियत ख़राब होने के बाद उसे एहसास होने लगा कि वह भी पक्का जल्दी मर जाएगा. इसके बाद उसका ही नंबर है, अगर उसने पीना नहीं छोड़ा तो.
आज वह सबकुछ भूल गया. उसने सोचा कि वैसे भी वह मर ही रहा है तो क्यूँ न शराब की कुछ घूँट पीकर मरा जाय. ऐसे ही मर गए तो सब लोग कहेंगे कि कुछ खाता-पीता भी नहीं था फिर भी मर गया. वह ब्लंडर प्राइड का पूरा खंभा लेकर वापस कमरे पर आया. थोड़ी नमकीन और प्याज के साथ जब एक बार उसने पीना शुरू किया तो पीता ही गया. वह कब पीकर लुढ़क गया उसे भी नहींं पता. उसके दोस्त अक्सर उसे कहते थे कि तुम्हें तो दारू चढ़ती नहीं है. बात सच भी थी. उसके दोस्त जब पीकर लुढ़क जाते तो वही सबको खाना बनाकर खिलाता. आज उसे पहली बार पूरा नशा चढ़ा था.
उठा तो दिन के नौ बज रहे थे. बोतलें और शराब वैसे ही पड़ी हुई थी. उसने सोचा कि आज दिन की शुरुआत शराब से करना बनता है. अभी फैसला मेरे खिलाफ आया तो एफआईआर तुरंत होगी और जेल तो जाना ही पड़ेगा. ऐसे में अगर कोई मुझे संबल दे सकता है तो वह है यह शराब. उसने आधी बची हुई शराब बिना मंजन के पी लिया और फिर से सो गया. सोकर उठा तो देखा कि मोबाइल पर पचासों कॉल छूटी हुई पड़ी थीं. सभी अनजान नंबर थे. वह समझ गया कि मैं दोषी करार दिया जा चुका हूँ क्योंकि मैंने उसे बदतमीज बोल दिया था आंख से आंख मिलाकर. यूजीसी इसे रैगिंग मानती है तो वह कर भी क्या सकता था.
जयहिंद ने एक नंबर पर कॉल वापस लगाई. सामने से कोई बोला कि तुम तुरंत कुलानुशासक कार्यालय आओ. वह पहुंचा तो देखता है कि पुलिस एफआईआर की कॉपी लेकर खड़ी है. जयहिंद को उन्होंने दिखाया और गाड़ी में बैठाकर लेकर चलें गए. उसने पहली रात जब थाने में गुजारी तो पता चला कि मच्छर यहाँ तो और भी ज्यादा हैं. रात भर वह उसे खाते रहें. नोचते रहे. वह उन्हें मारता रहा. सुबह-सुबह ही तीन सीनियर जो हास्टल में उसके साथ रहते थे वह आ गए. उनको देखते ही वह रोने लगा. उन्होंने ढांढ़स बंधाया और कहा कि कुछ नहींं होगा. मैं हूँ ना. तुम हालैंड हॉल के अन्त:वासी होकर रो रहे हो. वहाँ के लड़के ऐसे नहीं रोते. उन्होंने बताया कि कल तुम्हें कोर्ट में पेश किया जाएगा. घबराओ नहींं मैं ज़मानत करवा दूंगा. वह था कि बस रोता रहा.
अगले दिन उसे कोर्ट में पेश किया गया. उसके सीनियर संदीप सर जिनके साथ वह हॉस्टल के दिनों में काफी नजदीक था उन्होंने अपनी ठोस दलील से उसकी जमानत करवा दी. वह वापस तो आया लेकिन आरोप साबित हो या न हो. लोगों की नजरों में तो वह अपराधी ही था. उसका मन विभाग जाने को अब बिल्कुल नहींं करता. उसे लगता कि सभी आंखें मुझे घूर रही हैं. सब उसके खिलाफ हो गए. एक तरह से उसका सामाजिक बहिष्कार कर दिया गया था. न कोई उसके साथ चाय पीता और न ही चाय पीने जाते समय बुलाता. सब कहने लगे कि बड़ा हीरो बनने चला था भोंसड़ी वाला. अब समझ आ गई न हीरोगिरी.
वह सोचने लगा कि पढ़ने-लिखने का यही सिला मिलना था तो मैं पढ़ने क्यों आया. कुछ दिनों तक वह शराब पीता और कमरे पर पड़ा रहता. एक दिन सुबह ही उसने शराब पी और निकल गया. पहुँच गया नए यमुना पुल पर. वहाँ बैठे-बैठे कुछ सोच रहा था. एक बार उसके दिमाग में आया कि कूद जाऊं लेकिन फिर उसने सोचा कि क्या फायदा, वह ठहरा मल्लाह; पानी में डूब ही नहींं सकता. कोई और जगह होती तो कूद भी जाता. वह सोच ही रहा था कि फेसबुक पर एक स्टोरी देखी- जिसमें उसके गांव का लड़का था, जो उसका चाचा लगता था. नाम था सागर. उसने तुरंत उस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अपना नंबर भेजो बात करनी है. उसने नंबर भेज दिया.
उसने कहा कि तुम्हारे यहाँ आ सकता हूँ?
सागर आश्चर्य से भर गया कि-“तुम यहाँ क्या करोगे?”
जयहिंद-“काम करूँगा और क्या. जो सालों पहले किया करता था.”
सागर-“क्या अब तुम हेल्परी करोगे?”
जयहिंद-“हाँ क्या हुआ?”
सागर-“अरे इतना पढ़-लिखकर अब यहीं काम बचा है?”
जयहिंद-“क्या पढ़ लिया है. घंटा पढ़ लिया है. कुछ भी पढ़ा-वढ़ा नहींं है. गांव वाले सही कहते थे कि मैं तो बस लौंडियाबाजी करता था.”
सागर-“कोई दिक्कत हो तो बताओ?”
जयहिंद-“क्या बताऊं तुम्हें. समझ पाओगे?”
सागर- “अरे गाँव वाले क्या कहेंगे कि तुम इतना पढ़-लिखकर हेल्परी कर रहे हो?”
जयहिंद- “भाड़ में जाए गाँव वाले और यह दुनिया वाले. वह साले मुझे लेकर जो सोचना हो सोचे. मुझे घंटा नहीं फर्क पड़ता है.”
सागर-“अरे बताओगे तब न समझूंगा?”
जयहिंद-“तुम जगह का पता बताओ. मैं वहीं आकर बताऊंगा.”
सागर-“ठीक है फिर आ जाओ.”
4/
उसने एक मेल विश्वविद्यालय के कुलानुशासक समेत सभी अधिकारियों को कर दिया कि मैं पढ़ाई छोड़ रहा हूँ. कानूनी तौर पर जब भी मुझे बुलाया जाएगा. मैं आ जाऊंगा. इसके बाद वह प्रयागराज एक्सप्रेस से दिल्ली आ गया. सागर के कमरे पर पहुंचा. कमरा क्या था साइट पर ही उन्होंने अपना झोपड़ीनुमा घर बना लिया था. साइट काम करने की जगह को कहते हैं. हेल्परी करते हुए उसे महीनों गुजर गए. वह पीओपी की हेल्परी कितने दिन करता. एक दिन उसने सागर चाचा से कहा कि तुम मुझे भी सिखा दो. उसने कहा कि ठीक है. पहले दीवाल पर लगाना सीखो. फिर धीरे-धीरे सब सीख जाओगे. उसने वैसा ही किया. अब वह धीरे-धीरे काम को सीखने लगा.
रविवार को मजदूर लोग कभी-कभी छुट्टी ले लेते हैं. एक रविवार उसका मन किया कि चलकर देख आऊं जे.एन.यू. कैसा है? छात्र जीवन में तो कभी देखा नहींं. उसने सोचा ही था कि ठेकेदार को जे.एन.यू. में पीओपी का काम कराने का ठेका मिल गया. अगले दिन से ही उसे वहाँ काम करने जाना था.
वह जे.एन.यू. में पहली बार दाखिल हुआ तो उसके एक हाथ में फंठी और दूसरे हाथ में बोरा था, जिसमें औजार भरे हुए थे. उसकी हरियाली देखकर वह अभिभूत हो गया. समझ गया कि लोग जे.एन.यू में पढ़ने के लिए क्यूं मरे जाते हैं. वह सामान लेकर साइट पर पहुंचा. संयोग कि उसे उसी बिल्डिंग में काम करना था, जहाँ इतिहास की महत्वपूर्ण किताबें और रिपोर्ट रखी हुईं थीं. अक्सर काम के बीच कोई किताब लेकर बैठ जाता. उसका काम ही क्या था. बस पीओपी घोलकर दे देना. बाकी समय किताबें उलट-पलटकर देखता रहता. इसी में उसे वह याचिकाएं मिल गईं, जो 1931 की जनगणना के बाद सभी जातियों ने क्षत्रिय होने का दावा करते हुए जनगणना कमिश्नर रिजले को भेजी थीं, जिन्हें शूद्र मान लिया गया था. वह इसका अब कुछ नहींं कर सकता था लेकिन उसका पागल मन कहाँ माने.
अगले दिन से वह डायरी लेकर आया और नोट्स लेने लगा. चाचा उसे डांटते कि सारे जब पढै़ के मन बा त पढ़ न त काम कर. वह हँसते हुए आता और पीओपी का घोल बनाकर उन्हें दे देता. धीरे-धीरे उसने ढेर सारे नोट्स डायरी में लिख लिए. अब उसने उसे एक शोध-पत्र का आकार देना शुरू किया. मोबाइल पर सबकुछ खाली समय में लिख डाला और एक प्रतिष्ठित मैगजीन को भेज दिया इस पदनाम के साथ कि, “जयहिंद निषाद हेल्फर इन देलही.”
एक दिन कैंटिन से वह समोसे लेकर जा रहा था कि उसके परिचित की एक लड़की वहाँ मिल गई. उसने देखते ही कहा कि तुम जयहिंद हो ना? उसने झेंपते हुए कहा कि हाँ तुम सोनम हो ना?
सोनम- “हाँ तुमने भी पहचान ही लिया.”
जयहिंद-“लेकिन तुम मुझे पहचान कैसे गई?”
सोनम-“अरे तुम्हें देखा तो लगा कि कोई तो याद आ रहा है. कौन है यह. फिर मैंने पकड़ ही लिया कि यह तो जयहिंद है.”
जयहिंद-“अच्छा ठीक है फिर तो. कोई तो पहचाना इस अजनबी दुनिया में.
सोनम- “वैसे तुम यहाँ क्या कर रहे हो?”
जयहिंद-“कुछ नहींं बस वही इतिहास वाली बिल्डिंग है ना! जहाँ ढेर सारी किताबें हैं. वहीं कुछ काम कर रहा हूँ.”
सोनम-“तो तुमने इतने गंदे मतलब कि यह सफेद-सफेद क्या लगा है तुम्हारे कपड़ों पर?”
जयहिंद-“अरे कुछ नहींं. बस दाग हैं.”
सोनम-“क्या तुम वहाँ किताबें ढूंढ रहे थे. इतनी खराब स्थिति है क्या वहाँ की?
जयहिंद-“अरे नहींं मैं तो.”
सोनम-“नहींं तुम रहने दो. जब से यह सरकार आई है वह तो जे.एन.यू को बर्बाद कर देना चाहती है. अब देखो न वहाँ कैसी हालत होगी जहाँ तुम किताबें ढूंढ रहे थे.”
जयहिंद-“अरे मैं तो वहाँ काम कर रहा हूँ.”
सोनम-“काम! शोध का काम न?”
जयहिंद-“अरे नहींं. मैं पीओपी का काम कर रहा हूँ. वहाँ कुछ बन रहा है ऑफिस जैसा- उसी में काम करता हूँ. हाँ और यह सफेदी जैसे दाग पीओपी के हैं.”
सोनम-“तुम झूठ बोल रहे हो ना?”
जयहिंद-“मैं झूठ क्यूं बोलूंगा.”
सोनम-“नहींं तुम झूठ बोल रहे हो?”
जयहिंद-“आओ चलो मेरे साथ, मैं तुम्हें दिखाता हूँ.”
वह उसके साथ चलने लगी. दोनों बिल्डिंग में पहुंचे. घोड़ी पर बैठे सागर चाचा इंतजार कर रहे थे. घोड़ी से यह न समझियेगा कि जानवर है. अरे वह लकड़ी की बनी होती है. जिस पर लोहे या बांस के फट्टे बांस बांधकर रखे जाते हैं. उसको रख देने के बाद चाल बन जाती है. मतलब की अब काम शुरू कर सकते हैं. पहुंचते ही उसने कहा कि चाचा लीजिए चाय पीजिए और समोसे खाइए. और यह है मेरी दोस्त सोनम. तो सोनम कैसा लगा मेरा मजाक? वह अवाक रह गई कि ऐसा कैसे हो सकता है. उसने कहा कि क्यों नहींं हो सकता है. कहाँ लिखा है कि पीएच.डी. करने वाला मजदूरी नहींं कर सकता. सोनम को विश्वास ही नहींं हो रहा था. उसने कहा कि देखो मेरा सिर चकरा रहा है तुम सही-सही बताओ कि बात क्या है?
वह हँसने लगा. उसने कहा कि तुम्हें हँसी आ रही है. जयहिंद ने कहा कि फिर क्या मैं रोऊं. सोनम यह दुनिया हमको बहुत रुला चुकी है. अब हँसने का समय है. जमकर हँसने का. तुम पागल तो नहींं हो गए हो? कौन करता है ऐसा. इतना बढ़िया कैरियर था तुम्हारा. क्या-क्या नहींं लिखा तुमने. कविता-कहानी-लेख-शोध आलेख-संस्मरण और न जाने कितने काम किए तुमने. इतने पुरस्कार मिले तुम्हें. फिर यह क्यों? वह हँसता रहा और बोला कि मैं अपनी आत्मकथा लिख रहा हूँ. तुम सुनना चाहोगी. क्या बक रहे हो तुम? उसने माथे पर अपना सिर दबाते हुए कहा. हाँ सच में मैं अपनी आत्मकथा लिख रहा हूँ. देखोगी? दिखाओ कहाँ है तुम्हारी आत्मकथा?
उसने पास में रखे बोरे से पीओपी निकाली. पानी में डाला और हाथ से मिलाने के बाद अपना हाथ उसके आगे कर दिया. देखो न कितनी सुंदर आत्मकथा लिखी है मैंने. तो तुमने पढ़ाई छोड़ दी? हाँ लेकिन इसमें इतना आश्चर्य की क्या बात है. हाँ मैं जानता हूँ कि मैं क्या कर रहा हूँ. देखो मुझे पढ़ाई ने बहुत दुःख दिए हैं. होता-जाता कुछ नहींं. पढ़ ही तो रहा था न लेकिन कुछ लोगों को यह बुरा लगा कि मैं क्यों पढ़ रहा हूँ. उनको मेरे पढ़ने से नहींं- मेरे वहाँ होने भर से डर लगता था. फिर उन्होंने अपने डर को खत्म कर दिया और मैं यहाँ आ गया अपनी दुनिया में. वह दुनिया जिसे छोड़कर मैं पढ़ने गया था.
अब मैं अपनी दुनिया में वापस आ गया हूँ. मुझे अच्छा लग रहा है. अब मुझे नींद अच्छी आती है. पहले की तरह दुनियाभर का प्रपंच नहींं करना पड़ता है. बस आओ. बोरी खोलो और मसाला बनाओ. बस इतना-सा काम. इसमें न तो कोई राजनीति है, न कोई मेरे ख़िलाफ़ षड्यंत्र करने वाला. मेरी हालत वैसी है जैसे जुते हुए बैल की होती है. मुझे याद है मेरे बड़े पिता जी हरवाही करते थे. हमारे घर एक बैल था. बहुत सुंदर. सफेद-सा. मैं अकसर उसके ऊपर बैठ जाता और उसे सहलाता. फिर वह सो जाता. जानती हो मुझे सहलाना भी नहींं पड़ता है. बस कहीं भी गिर जाऊं- कसम से बहुत मस्त नींद आती है.
अरे तुम्हें ज़रा भी अंदाजा है कि तुम क्या कह रहे हो? उसने एक आह भरी और चली गई.
उसने कहा कि चाचा मसाला तैयार है ऊपर रख दूं? चाचा ने कहा कि हाँ रख दो. उसने उठाकर उसे घोड़ी पर रखा. बाहर देखा तो सैकड़ों छात्र नारेबाज़ी करते हुए कहीं चले जा रहे थे- इंक़लाब ज़िन्दाबाद. लेकर रहेंगे आज़ादी. विश्वविद्यालय प्रशासन हाय-हाय. वह उन्हें आँखों से ओझल होते देखता रहा. उसकी आँखों में सपने तैरते हुए बूंद बनकर टप से गिरे और पीओपी में समा गए.
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गोविन्द निषाद आज़मगढ़ (उत्तर प्रदेश), की कविताएँ, कहानियाँ और लेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं. वे रचनात्मक लेखन और शोध, दोनों क्षेत्रों में समान रूप से सक्रिय और रेखांकित करने योग्य हैं. वर्तमान में वे जी.बी. पन्त सामाजिक विज्ञान संस्थान, इलाहाबाद में शोधरत हैं. |




विश्वविद्यालय परिसर की राजनीति के अनेकानेक अंतरविरोधों में से एक को कुछ हद तक उजागर करती सशक्त कहानी.ज्ञान की दुनिया सुंदर है,पर दुर्भाग्यवश उच्चशिक्षा संस्थानों का माहौल लगातार ख़राब होता जा रहा है, जिसे लम्बे समय तक परिसरों में अध्ययन- अध्यापन न करने वाले लोग समझ ही नहीं सकते. सच तो यह है कि सम्पूर्णता में चित्रण के लिए परिसर की विषम परिस्थिति कहानी के बजाय उपन्यास लेखन की दरकार रखती है.
कहानीकार को साधुवाद.
संपादक महोदय को वर्तनी की अशुद्धियों को लेकर थोड़ा कष्ट करना चाहिए यथावत कॉपी पेस्ट करने के पहले।
शुक्रिया। कई बार वर्तनी की अशुद्धियां रह जाती हैं। बेहतर होता वे कहां कहां हैं यह बताते, ठीक करने में सुविधा रहती । फिर भी एक बार इसे और देखूंगा।
जयहिंद के मजदूर बनने और अपनी जातिगत दुनिया के दायरे में फिर से लौट आने और बौद्धिक जगत की बजाय परिवार के बीच संबल पाने की कहानी आजकल के लगभग हर अकादमिक जीव के जीवन की वास्तविकता है। जय हिंद के जीवन में रैगिंग का कलंक यह बदलाव लेकर आता है, अन्यों के जीवन में दूसरे कई कारण बन ही जाते हैं। आज के विश्वविद्यालयी परिवेश और अकादमिक जीवन के यथार्थ को कहानी में पिरोना और इस तरह कि पढ़ते हुए वह कहानी नहीं बल्कि हकीकत ही लगे कि जैसे कोई बौद्धिक जीवन- जगत की परत दर परत खोल रहा हो और घर के बगल के बड़े वाले नाले में नवंबर की तीखी धूप में सड़ रहे मरे हुए जीव-जन्तुओं और कचरे की संधाड़ नाक में भरी जा रही हो! कहानी में कथ्य पर आते हुए जो भटकन है वह भी शानदार है, धोनी और पहली प्रेमिका! यह भटकन पाठक को एक पूरा स्पेस देती है और घूमते-रमते हुए वह घटना के ऐसे मोड़ पर पहुंचता है जहां कुछ अप्रत्याशित होता है, लेकिन नाटकीय नहीं लगता। रैगिंग के प्रसंग की पूर्व-पीठिका पुर-दुरुस्त है। कई सामयिक राजनीतिक घटनाओं का जिक्र है लेकिन वह थोपा हुआ नहीं लगता। ‘पीओपी में भीगा हुआ हाथ जय हिंद की आत्मकथा है,’ इतनी सुंदर अभिव्यक्ति, इतनी मार्मिक घनीभूत संवेदना और दृढ़ आत्मविश्वास को प्रस्तुत करता बिंब, याद नहीं कि कब ऐसी अभिव्यक्ति पढ़ने मिली थी। कहानी का अंत आते -आते साबिर हक्का की कविता ‘सरकार’ की यह पंक्तियां,
“फिर भी उस लड़के के लिए यह दुनिया कोई बहुत ज़्यादा बदली नहीं है, जो स्कूल की सारी किताबों के पहले पन्ने पर अपनी तस्वीर छपी देखना चाहता था” अनायास ही याद आ जाती हैं ।
जहां तक रोहिणी जी के प्रश्न का मुद्दा है तो शायद कौतूहल और सवाल की बेचैनी दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, और कहानीपन के निर्धारण में इन दोनों की कोई अनिवार्य भूमिका हो ही, यह भी शायद जरूरी नहीं। आयशा आरफ़ीन की कहानी ‘स्वाहा’ में कौतूहल और सवाल की बेचैनी का द्वंद शायद इसलिए खड़ा होता है क्योंकि वहां किस्सागोई पर नाटकियता हावी है। गोविंद की कहानी में बहुत कुछ अप्रत्याशित घटता है लेकिन वह नाटककीय नहीं लगता। एक त्रासद मोड़ पर खत्म होने के बावजूद कहानी एक आत्मविश्वास से भर देती है। पीओपी घोलते हुए रीज़ले के नोट्स लेने वाला जयहिंद ही हमारे देश का भविष्य है, और निश्चित रूप से वह ही इस हिंदुस्तान को सारे जहां से अच्छा बना सकता है। कहानी सवालों की बजाय एक राह दिखाती है। हालांकि दोनों कहानी अपने तौर पर बेहद खूबसूरत हैं, और तुलना का कोई मतलब नहीं।
गोविंद और आयशा को इन बेहतरीन कहानियों के लिए ढेर सारा स्नेह।
स्वाहा में कौतूहल भी है और सवालों की बेचैनी भी। किन्तु इस कहानी में आए अंतराल पाठकों को चुनौती देती है, उन्हें इस अंतराल को भरने के लिए आमंत्रित करती है, ऐसा बहुत कम कहानी में होता है। जेम्स ज्वायस की कहानी द सिस्टर्स भी कुछ इसी तरह की कहानी है, जो पाठकों को अंतराल भरने में सहभागी बनने हेतु आमंत्रित करती है।
कल्पना मानव ज्ञान की आधारशिला है। विज्ञान और साहित्य—दोनों ही क्षेत्रों में कल्पना ने निरंतर नवीनता, सृजनशीलता और प्रगति को संभव बनाया है। वैज्ञानिक आविष्कारों की प्रेरणा और साहित्यिक रचनाओं की संवेदनशीलता, दोनों का मूल स्रोत कल्पना ही रही है। यही कारण है कि कल्पना को ज्ञान-विकास का प्रेरक तत्व माना गया है।
किन्तु, जब यही कल्पना कुंठित, पूर्वाग्रही या व्यक्तिगत द्वेष से संचालित हो जाती है, तो उसका प्रभाव विज्ञान और साहित्य दोनों पर प्रतिकूल पड़ता है। विज्ञान का मूल उद्देश्य है वस्तुनिष्ठता तथा सत्य की खोज। यदि शोधकर्ता की कल्पना संकीर्ण मानसिकता से निर्देशित हो, तो उसका अनुसंधान पक्षपातपूर्ण निष्कर्षों और विकृत तथ्यों में परिणत होता है। यह स्थिति न केवल वैज्ञानिक प्रक्रिया को अविश्वसनीय बनाती है, बल्कि उसके सामाजिक महत्व को भी सीमित कर देती है।
साहित्य का ध्येय है जीवन के विविध आयामों को उजागर करना और मानवीय अनुभवों को संवेदनशील अभिव्यक्ति प्रदान करना। किंतु जब साहित्यकार की कल्पना संकुचित होकर व्यक्तिगत कटाक्ष, व्यंग्य अथवा असंतुलित टिप्पणी तक सिमट जाए, तो साहित्य अपनी गरिमा और सार्वभौमिकता खो बैठता है। ऐसी रचनाएँ आलोचनात्मक विमर्श के बजाय व्यक्तिगत पूर्वाग्रह का दस्तावेज़ बनकर रह जाती हैं।
अतः यह स्पष्ट है कि कल्पना का स्वस्थ, निष्पक्ष और रचनात्मक स्वरूप ही विज्ञान और साहित्य को सशक्त बना सकता है। यदि कल्पना कुंठित हो जाए, तो वह दोनों क्षेत्रों की आत्मा को कमजोर करती है और उन्हें अपने उच्च उद्देश्य से भटका देती है। विज्ञान और साहित्य की प्रामाणिकता तथा सामाजिक उपयोगिता बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि कल्पना को व्यक्तिगत पक्षपात से मुक्त रखकर व्यापक दृष्टिकोण से पोषित किया जाए।
और यही स्थिति इस कहानी में भी देखने को मिलती है।
कहानी का पात्र –
आपका अहीर – वही “बकलोल” है, जिसे यह भ्रम है कि वह बहुत कुछ जानता है, जबकि वस्तुतः उसे कुछ नहीं आता। इस प्रकार का चित्रण साहित्य की गंभीरता को कम करता है और लेखक की कुंठित कल्पना को उजागर करता है।
इन महोदय का तो काम ही, आधा-अधूरा लिखकर अपनी दुकान चलाना है।
और ज़रा देखिए इस मानसिक विकृति से उपजी कल्पनाओं पर आधारित कहानी को—जहाँ स्वयं को “जय हिन्द” कहकर अत्यधिक पढ़ा-लिखा, सज्जन और महान व्यक्ति दिखाने का प्रयास किया जा रहा है। यह सब सुनकर तो ऐसा प्रतीत होता है मानो कोई “अपने ही मुँह मियाँ मिट्ठू” बनने की जिद में लगा हो।
भाई साहब, बेहतर होगा कि अपनी इन मानसिक कल्पनाओं को सँभालकर उचित स्थान पर प्रयोग करें, ताकि उनका सही और सार्थक उपयोग हो सके।