राजेश खन्ना अब हमारे बीच नहीं हैं. सितारे हमारे बीच से कहीं जाते नहीं. उनकी चमक सदिओं सदिओं बनी रहती है. पत्रकार लेखक वेद उनियाल ने राजेश खन्ना के विविध जीवन प्रसंगों, उनकी फिल्मों, उनका राजनीति में आना और फिर मोहभंग सबको इस लेख में समझा और सहेजा है. राजेश के न होने पर राजेश के होने का मतलब समझ में आता है. राजेश खन्ना पर एक जरूरी आलेख.
राजेश खन्ना ::
फिर भी मेरा मन प्यासा ….
वेद विलास उनियाल
राजेशखन्ना अनायास हीराजनीति में आए. मैंजानता था कि मुंबई मेंकांग्रेसी नेता औरबेस्ट कमेटी केपूर्व अध्यक्ष रामजनकसिंह से उनकीनिकटता है. मैंने उनसेकहां था किकभी काका सेतो मिलवाइए. राजेशखन्ना नई दिल्लीलोकसभा का उपचुनावजीत गए थे. टीवीपर उनके जीतनेकी खबरें चलरही थीं. उस दिन, रात नौबजे के आसपासरामजनकजी का फोनआया, “क्या काकासे मिलना है.” मैंने कहा, “जरूर”. उन्होंने कहा, “तो फिरघर पर आजाओ,\”. मैं चौंका, \”वे चुनावजीते हैं. टीवी उन्हेंदिल्ली में दिखारहा है.\” उन्होंनेकहा, \”मैंकह रहा हूंकि काका सेमिलने आ जाओ. आजही मिलोगे.\” साथही यह भीकहा कि काकाचुपचाप आ रहेहैं, किसीसे कहना नहीं. आजसमय नहीं देपाएंगे. मैं उसी क्षणउनके घर केलिए निकल गया.
वेमुझे मुंबई कीघूमती सड़कों सेयहां –वहांसे किसी जगहले गए. इतना पताथा कि वहआशीर्वाद नहीं था. वहांकुछ लोग बाहरलॉन में थे. हम अंदरएक कक्ष मेंबैठ गए. करीब एक घंटेका इंतजार करनापड़ा. तभी अंदर सेरामजनक सिंह आएऔर मुझे अपनेसाथ ले गए. देखा, एक व्यक्ति पीठ किएहुए बैठा है. झकसफेद कु्र्ता पहनेहै. मैं जान रहाथा कि यहीराजेश खन्ना है. वहमुड़े़ और फिरचिरपरिचित शैली मेंकहा, कहिए, क्या कहनाहै आपको, वो जिसअदा से बोले, वह अंदाजमुझे बरसों पीछेउन्हीं दिनों मेंले गया. मुझे लगाफिल्मों में इसीखास अंदाज मेंही अपने संवादोंको बोलते थेकाका. मैने उन्हें जीतकी शुभकामना दी, तो बड़ेअदब से शुक्रियाकहा. उनके हर हावभावसे नजाकत झलकरही थी. यह सबदिखावटी या ओढ़ाहुआ नहीं था. मैंमहसूस कर रहाथा कि उन्हेंयह अंदाज, नजाकत, अदाजो भी कहिए, सब ईश्वर सेमिला है. मैंने उनसेकहा, आपसे बात करनेका मन था. औरआपको देखने काभी मन था. “ देखनेका ? ” उन्होंनेबड़ी गौर सेमेरी तरफ देखा. मैंने उन्हेंबताया कि अपनेस्कूली दिनों मेंआप हमारे लिएक्या थे. आज पहलीबार सामने देखरहे हैं तोबड़ा अच्छा लगरहा है. उन्हें यहभी बताया किकिस तरह वोगीत मन मेंछाए हुए थेजो उन परफिल्माए गए थे. जिनपर वे इशारेनुमा अभिनय करतेथे. हम ज्यादा नहीं, कुछ देरही वहां रहेथे. वे जताना नहींभूले थे किबहुत मुश्किल सीटपर जीत करआए हैं. राजनीति मेंआ चुके थे, शत्रुघ्नसिन्हा को हराकरसांसद भी बनगए थे, लेकिन उतनी देरमें उन्हें देखकर एक बारभी नहीं लगाकि वे नेताबन गए हैं.
आगेभी कभी नहींलगा. पता नहीं सहीथा गलत, मैंने उनसे यहभी पूछ लियाथा कि आपऔर डिंपल वैसाथ–साथक्यों नहीं रहतेहैं. जवाब भी वैसाही था. उन्होंने कहा, आपके मनमें अच्छी बातआई है. अब कहींकोई गिला नहींहै. मिल भी रहेहैं. बाहर निकलने के लिए कुछ कदमआगे बढ़े हीथे, किआवाज आई, “ जरा, सुनो” मैंउनके पास गया. वही पलक झपकाकरपूछा, : \” बॉबी कितनी बारदेखी है? “इस छोटी–सी मगर एकअच्छी मुलाकात केसाथ वहां सेनिकले.
सुपर स्टारहोना क्या है? इसे सबसेपहले राजेश खन्नासे ही जानाऔर महसूस कियागया. अपने दौर में क्या युवा, क्या बच्चे, हर किसीपर उनका जादूछाया रहा. अभिनय तोदिलीप कुमार केपास था, रुपहले पर्दे पर निर्दोष, मासूम प्यार राजकपूरने किया था और रोमांसके साथ जीनादेवानंद को हीआता था. इस त्रयीके बाद कुछसितारों के बीचसे राजेश खन्नाइस तरह सामनेआए कि लोगबस उनकी एकझलक पा लेनाचाहते थे. एक नहींउनकी कई फिल्मेंसुपरहिट हुईं. एक सिलसिला–सा बनगया. बच्चों ने \”हाथी मेरे साथी\” ही नहींदेखीं, \”आराधना\” भी देखी. युवाओं ने\”आन मिलोसजना\” ही नहींदेखी, बाबूमोशाय वाली \”आंनंद\” भी देखी. \”आराधना\”, \”दोरास्ते\”, \” सफर\”, \”कटी पतंग\”, \”दाग\” सेलेकर प्रेमकहानी\” तकउनके नाम परही सिनेमा हालमें हाउस फुलके बोर्ड लगजाते थे. वे हरतरफ नजर आरहे थे. फिल्म केपोस्टरों में, किशोर कुमार केगीतों में, शर्मिला टैगौरऔर मुमताजके साथ फिल्मकी रोमांटिक जोड़ीबनाने में. कभी \”ये शाम मस्तानी\” गाने पर सीटीबजाते हुए. बात केवलकलात्मकता या अभिनयकी होती तोदूसरे कई उनसेआगे निकले होते, पर उनकाग्लैंमर लोगों केमन पर इसतरह छाया कि उन्होंने एक पल निहारनेके लिए घंटोंइंतजार किया. फिल्में आतीरहीं, जातीरहीं, लेकिनसिनेमा हाल तोतभी गुलजार हुएजब राजेश खन्नाकी कोई फिल्मआई. इसे उनकी अदाकहिए या नफासत, वे सबकेचेहते कलाकार होगए. वह भी तबजबकि ज्यादा नहीं, मात्र छहबरस तक उनकाही राज था.
राजेशखन्ना हर तरहसे पसंद आए. कभीउन्होंने तिरछी नेपालीटोपी पहनी, कभी गुरु कुर्ता. उन्होंनेकुर्ता पेंट पहनातो वह भीफैशन बन गया. बड़ीमोरी वाली पेंट\”बालबाटम\” भीउनके साथ चलनमें आ गयाथा. साधना ने हीखास तौर पर अपने बालोंको नहीं संवारा, उन्होंने भीबालों के बीचों–बीच इसतरह मांग निकालीकि युवाओंके बाल उसीतरह संवरने लगे. आंखेंमिचकाना, एकखास अदा सेबाईँ तरफ आधाघूमते हुए शरीरको हल्का–सा लहराना औरनजाकत से मुस्करानाउनकी इन अदाओंपर लोग रीझगए, दीवानेहो गए. अभिनय तोसभी करते थे, पर अदाराजेश खन्ना केपास ही थी. लेकिनपता नहीं वोकैसा सम्मोहन थाकि बच्चे भीउस फिल्म कोजरूर देखा करतेथे जिसमें राजेशखन्ना हीरो होतेथे. सही मायनों मेंवे एक हीरोकी तरह हीरहे.
उनकीधीरे–धीरे अपनेसंवादों को कहनेकी शैली मौलिकही रही है. दशकबीत गए परआज भी मनमें घुमड़ती हैवो आवाज… बाबू मोशाय. उनकी संवादअदायगी का एकखास अंदाज रहाहै. याद आताहै उनका कहना, \” पुष्पा आई हेट टियर्स.\”
उनदिनों राजेश खन्नाकी पहली फिल्म\”हाथी मेरेसाथी\” देखीथी. उन दिनों छोटेकस्बों, शहरोंमें भी कोईभी नई फिल्मतीन–चारसाल के बादआया करती थी. हां! फिल्मों केआने से पहलेउसके गीत खूबचर्चित हो जातेथे. जब किसी फिल्मका टाइटिल ही\”हाथी मेरेसाथी\” हो तो बचपन मेंउसके प्रति रोमांचितहोना स्वाभाविक था. ऊपर से अक्सरयहां–वहां इसफिल्म के गानेभी सुनाई देतेथे. बहुत कौतूहल थाइस फिल्म केलिए. तब इस बातसे कोई सरोकार नहींथा कि यहफिल्म वन्यजीवों केप्रति मानवीय संवेदना जगाने केलिए बनी है. बिल्कुलइसी तरह जैसे\”मेरा नामजोकर\” मेंबच्चों को केवलजोकर से हीमतलब था, राजकपूर का राजूजोकर जमाने से क्या कहनाचाहता है, यह दर्शन तोबड़ों के लिएथा. बच्चों के लिएतो वह सर्कसका रंग–बिरंगे कपड़े पहने. ऊंची टोपीलगाए हुए एकजोकर है. जो जानवरोंसे भी खेलताहै, औरअपनी हरकतों सेसबको हंसाता है. दोबातों ने \”हाथी मेरे साथी\” के लिएआकर्षण जगाया था. यहपता लगा थाकि हाथीफुटबॉल भी खेलताहै. तरह–तरह केकरतब करता है. औरफिर हीरो तोराजेश खन्ना थेही.
\”हाथी मेरे साथी\” फिल्म लगीतो सिनेमा हॉल के एकबड़े पोस्टर नेउत्सुकता जगा दीथी. उसमें देखा, लड़की कारमें बैठी हुईहै और हाथीउसकी लाल रंगकी गाड़ी कोरस्से से आगेखींच रहा है. बहुतउत्साह से देखीथी वह फिल्म. पोस्टरवाला दृश्य भीफिल्म में था. मगरआखिरी दृश्य नेउदास कर दियाथा. राजू के दोस्तहाथी पर किसीने गोली चलाईथी. \”रामू हाथी\” के शव परफूल मालाएं चढ़ाईजा रही थीं. औरपार्श्व में गीतचल रहा था, \”नफरत कीदु्निया को छोड़के.\” दक्षिण के एकफिल्मकार तिरुमूघम दवेर ने इससंवेदनशील विषय परफिल्म बनाई थी. इतनापता था किरामू हाथी किसीसर्कस से आयाहै. वह राजेश खन्नाका ही नहीं, बच्चों काभी दोस्त बनगया था. बहुत कुछइसके बाद हीराजेश खन्ना कीफिल्में पसंद आनेलगी थीं. सही मायनोंमें फिल्म केदो हीरो थे, रामूहाथी और राजेशखन्ना.
फिल्मोंमें राजेश खन्नाको लेकर जोगीत फिल्माए जातेथे, उनकीखूब धूम रहतीथी. जब उनका स्टारडमनहीं रहा, तब भी उनकीपुरानी पिक्चरें लगतीतो बड़े शौकसे देखा जाताथा. छोटे कस्बे औरशहरों के लिएवे किसी नईफिल्म की तरहही होतीं. प्रेमनगर\”, “आपकी कसम\” , “प्रेम कहानी जैसीफिल्में इसी श्रृंखला में देखीथीं. हां राजेश खन्नाका जो क्रेजबचपन में मनमें बन गयाथा उसके चलते अंमर प्रेम\”, “आराधना\”, “दाग\”, “कटीपंतंग\”, “रोटी\”, आप कीकसम जैसीपुरानी हो चुकीफिल्में देखी थीं. भारतीयसिने दर्शकों केलिए तब वेसुपर स्टार नहींरह गए थे, डिंपल सेशादी भी करचुके थे, लेकिन अपने लिएवह सुपर स्टारही थे. दूसरे जहांअमिताभ बच्चन कीफिल्में देखते , मैं राजेश खन्नाकी कहीं, कोई फिल्मलगती तो उसेजरूर देखता. ऐसे हीकई फिल्में स्कूलकॉलेज के समय मेंदेखी. इसी तरह \”आनंद \” को बहुतगौर से देखा. महसूसकिया कि इसेअभिनय की दृष्टिसे राजेश खन्नाकी सबसे यादरखी जाने वालीफिल्म कहा जासकता है.
फिल्मोंकी दुनिया मेंट्यूनिंग का बड़ामहत्व है. राजेश खन्नाके लिए किशोरदा की आवाजही फबी. याद कीजिएवह किशोर काभी जमाना थाऔर राजेश खन्नाका भी. हर जुबानपर किशोर केगीत थे. और उनगीतों में लोगराजेश खन्ना कीछवि देखते थे. रूपतेरा मस्ताना\” , “मेरे सपनोंकी रानी कबआएगी तू\”, “ये शाम मस्तानी\”, “ मेरी प्यारी बहनियां बनेगी दुल्हनियां“ “जिंदगीके सफर\”, ये जोमुहब्बत है\”, “मेरे दिल मेंआज क्या है\”, ये क्याहुआ\”, “चिंगारी कोईभड़के\”, “चल चलमेरे हाथी जैसेगीत सुने जातेहैं तो राजेशखन्ना की छविसामने आ जातीहै. उन पर फिल्मायेगए रोमांटिक युगलगीतों को भी किशोर नेऐसे मस्ती सेगाया कि चारोंतरफ बहार–सी आ गई. खूबबजते रहे वोयुगल तराने \”छुपगए सारे नजारे,\” \”अच्छा तोहम चलते हैं\” \”जय जयशिवशंकर, \”रंगरंग के फूलखिले.\” जैसे गीतोंमें बस किशोरही थे. और उसआवाज पर फिल्ममें अभिनय करते–गाते राजेशखन्ना सबको बेहदपसंद आ रहेथे. ऐसा भी नहींकि वह कोईअजब डांस करतेहों. बल्कि वह गीतोंपर तो वहअपने अभिनय कोदोहराते हुए दिखतेथे. पर फिर भीकोई बात थीकि वे उससमय सबके चेहतेथे.
कहतेहैं कि जबआराधना बन रहीथी कि किशोरकुमार गानों कीरिकॉर्डिंग से पहलेफिल्म के निर्देशकशक्ति सांमंत नेकहा था किवह पहले हीरोको देखना चाहते हैं. राजेश खन्नाजब उनके घरपहुंचे तो किशोर ही दरवाजे परआए! उनकी तरफ घूरकरदेखा, कहा कुछ नहीं. बसयही परिचय था. राजेशखन्ना अपने हीअंदाज से मिलेथे. और किशोर कोलगा था किवे उनके लिएगा सकते हैं.
फिरतो सिलसिला हीचल पड़ा. यह भीकहा जाता हैकि कई बारकिशोर किसी गीतको गाने कोलेकर आनाकानी करतेथे, तोराजेश खन्ना हीउन्हें मनाते थे. इनदोनों का साथफिल्म रसिकों केलिए बहार बनकर आया. हर जगहकिशोर के गानेगुनगुनाए जाने लगे. हरजगह राजेश खन्नाकी बातें होनेलगी.
राजेशखन्ना के उसदौर को यादकरते हुए आरडीबर्मन का संगीतभी मन मेंछाने लगता है. आराधनाका संगीत एसडीबर्मन का है. लेकिनउसमें उनके बेटेका स्पर्श नजरआता है. इस फिल्ममें राजेश खन्नाके मिजाज केअऩुरूप गीतों केलिए धुन बनी. जिसखास अंदाज मेंराजेश आते, चलते, बोलते, उसी के अऩुरूपधुनों को सजायागया. \”रूप तेरा मस्ताना,\” \”मेरे सपनोंकी रानी\” गीततो ऐसे बनेहैं जो राजेशखन्ना को हीअभिव्यक्त करते हैं. बादकी फिल्मों मेंकिशोर और राजेशखन्ना की शोहरतके लिए आरडीबर्मन का संगीतको भी श्रेयमिलता रहा. \”कटी पतंग\”, \”महबूबा\”, अमर प्रेम\”, \”आप कीकसम\” इसीश्रेणी की फिल्मेंथी. आरडी ने किशोरऔर राजेश खन्नादोनों के मिजाजको बखूबी भांपाथा. आराधना में आरडी बर्मन के संगीत की झलक भी साफ दीखती है. \”मेरेसपनों की रानी\” गीत मेंस्वयं उन्होंने माउथआर्गन बजाया था.
राजेशखन्ना पर फिल्माएगए इस गीतमें माउथआर्गन इस तरहबजा कि युवाओंकी जेब मेंमाउथ आर्गन दिखनेलगा. इससे पहले माउथआर्गन से एसडी बर्मन केसगीत पर हीबेहद सुरीली धुनसुनी गई थी, \” है अपनादिल तो आवारा.\” तब भी पंचम ने माउथ आर्गन बजाया था . फिरलक्ष्मीकांत–प्यारेलालआए तो लगाराजेश खन्ना केलिए ही आए. राजेशखन्ना के सुपरस्टार वाले दिन, और संगीतमें लक्ष्मीकांत प्यारेलालका दौर. आनंद बख्शीने आम बोलचालके शब्दों परगीत लिखने शुरूकिए. हाथी मेरे साथी\”, “दुश्मन\”, “आन मिलो सजना\”, “सच्चा झूठा\”, दाग\”, प्रेमनगर ऐसी फिल्मेंहैं, जिनकागीत–संगीत राजेशखन्ना के अभिनयको चमकाता रहा. किशोर की यूडलिंग तो लगा राजेश खन्ना के लिए ही है.
मुमताज. शर्मिला टैगौर के साथउनकी जोड़ी खूबजमी. खासकर मुमताज तोउनकी पड़ोसी भीथी. दोनों ने आठफिल्में कीं. राजेश और मुमताज जिन फिल्मों मेंआए, उन्हें खासी शोहरतमिली. दोनों एक साथचमके और एकसाथ सफल फिल्मोंका सिंलसिला चला. हालांकिदोनों के अभिनयको किसी भीलिहाज से विलक्षणनहीं कहा जासकता. लेकिन लोगोंको दोनों कीरोमांटिक जोड़ी खूबभा गई. फिर दोनोंके अपने घरभी बस गए. कहतेहैं कि राजेशखन्ना ने मुमताजसे कहा थाकि वह इतनीजल्दी घर नबसाए, कुछबेहतर फिल्में उसकेपास हैं, और कुछ उसकाइंतजार कर रहीहैं. पर राहें अलगहो गईं. हालांकि उसनेअपनी अधूरी फिल्मोंकी शूटिंग पूरीकी. दो रास्ते , रोटी\”, प्रेमकहानी\”, “आपकीकसम फिल्में सुपरहिट रहीं. मुमताज राजेशखन्ना के दौरकी यादों केसाथ ये फिल्मेंबाद में सिनेमाहालों में आईं.
गालोंमें डिंपल औरतीखे नैन नक्शोंवाली बेहदनाजुक–सी शर्मिलाटैगोर में संभ्रांतकिस्म का सौंदर्यदिखा. वे बंगाल के एकनामी परिवार सेवह फिल्म जगतमें आई थीं. मुंमताज हों याशर्मिला टैगोर सबने राजेशखन्ना की अपारशोहरत के किस्सेसुनाए हैं. मुमताज ने कभी कहा था किएक बार मद्रास केएक होटल केप्रांगण में आधीरात तक भीकरीब छह सौलड़कियां राजेश खन्नाकी एक झलकदेखने के लिएबेताब थीं.
शर्मिलाने कहा किकई बार तो स्टूडियो की गैलरी केदोनों तरफ लड़कियांलाइन बनाकर खड़ीहोतीं. उनके हाथों मेंराजेश खन्ना केफोटो होते. वे उन्हेंछूने का प्रयासकरतीं. उनके कपड़े तकखींचतीं. ऐसे में राजेशखन्ना की स्टाइलदेखने लायक होती. वहअक्सर लड़कियों कीतरफ देख इसतरह आगे बढ़जाते जैसे कुछजान ही नरहे हों. यह भीउनकी अदा थी. अपनेसमय की दोजानी–मानी हीरोइनेंजब उनके स्टारडमके ऐसे किस्सेसबको बता रहीहों तो समझाजा सकता हैकि राजेश खन्नाके वे कैसेदिन रहे होंगे.
मुंबईमें वे कुलएक दो मौकोपर नजर आए. जहांभी उन्हें देखता, कहीं सेपुराने हीरो कीतरह नहीं दिखे. काकाको तब भीलोग बड़े उत्साहसे देखा करतेथे. मुंबई के आयकर विभागमें एक बारआए तो वहांकी कैंटीन मेंबैठे रहे. लोग उनकेपास आए. इन्हींकाका के बारेकभी कहा जाताथा कि होटलोंके लान मेंखड़ी लड़कियां छहछह घंटे उनकीएक झलक पानेके लिए इंतजारकरती थीं. यह भीसुना कि उनकीसफेद कार परलड़कियां लाल लिपस्टिकसे चुंबन केचिह्न छोड़ देतीथीं. हर तरफ उनकाजलवा था. पर क्यामजाल कि कोईउनसे मिल सके. एकअद्द आटोग्राफ तकके लिए तरसजाते थे लोग. उनकेस्टारडम की अपनीरौनक थी. तब राजेशखन्ना उन लोगोंकी तरफ ज्यादानजर नहीं फेरतेथे, जोइंतजार में घंटोबिता देते थे.
कोई उन्हेंअड़ियल कहता, कोई गुरूर सेभरा हुआ. कोई कहताकि ये तोस्ट्रगल थे तबभी आलीशान कारमें बैठकर निर्माताओंसे मिलने जातेथे. सफलता कीचकाचौंध में तोऐसा मिजाज होनाही था. कुछ उनकेआसपास के चमचोंको कोसते. कहा जाताथा कि आमलोगों की बाततो दूर, तब वे ब़ड़ेनिर्माता–निर्देशकों कोभी लिफ्ट नहींदेते थे. जो फिल्मेमिलनी थीं, वे अमिताभ कोमिल गई. लेकिन फिरभी सब उन्हेंदेखना चाहते थे, मिलना चाहतेथे. कुछ भीहो, कहायह भी जाताहै कि सफलतादेखी तो राजेशखन्ना ने देखी. राजनीतिमें आकर वेबदल सकते थे. लेकिनइस मोड़ परभी वे बहुतफासले बना करचले. आखिर फिल्मों केसफर से राजनीति कासफर बहुत अलगहोता है. राजेश खन्नाराजनीति के सफरके नायक नहींबन पाए.
कोई उन्हेंअड़ियल कहता, कोई गुरूर सेभरा हुआ. कोई कहताकि ये तोस्ट्रगल थे तबभी आलीशान कारमें बैठकर निर्माताओंसे मिलने जातेथे. सफलता कीचकाचौंध में तोऐसा मिजाज होनाही था. कुछ उनकेआसपास के चमचोंको कोसते. कहा जाताथा कि आमलोगों की बाततो दूर, तब वे ब़ड़ेनिर्माता–निर्देशकों कोभी लिफ्ट नहींदेते थे. जो फिल्मेमिलनी थीं, वे अमिताभ कोमिल गई. लेकिन फिरभी सब उन्हेंदेखना चाहते थे, मिलना चाहतेथे. कुछ भीहो, कहायह भी जाताहै कि सफलतादेखी तो राजेशखन्ना ने देखी. राजनीतिमें आकर वेबदल सकते थे. लेकिनइस मोड़ परभी वे बहुतफासले बना करचले. आखिर फिल्मों केसफर से राजनीति कासफर बहुत अलगहोता है. राजेश खन्नाराजनीति के सफरके नायक नहींबन पाए.
न जाने क्यों गीतकारों ने जिंदगी के बहुत से तराने उनके लिए लिखे. \”जिंदगी कैसी है पहेली,\” \” जिंदगी एक सफर है सुहाना,\” \”जिंदगी के सफर में गुजर जाते हैं,\”. उनकी जिंदगी भी रहस्य की तरह रही. कभी सतरंगी रोशनी बनकर जगमगाई. कभी इतनी धूंधली कि नजर भी न आई. स्टारडम, चकाचौंध, शादी, फिर एकाएक उनका ओछल हो जाना, जो भी हुआ सब पलक झपकते ही हुआ.
राजेशखन्ना की कईछवियां देखीं. पर एकछवि बिल्कुल नहींभाई थी. \”आप कीकसम\” के आखिरीदृश्यों में उन्हेंअसहाय–सा देखाथा. कमजोर, जमानेके ठुकराए हुए, बिखरे बाल, पथराईआंखे. फिल्म की कहानीराजेश खन्ना कोइस रूप मेंदिखा रही थी. लेकिनपता नहीं क्योंउन्हें परदे परइस तरह देखनाभी अच्छा नहींलगा था. उनकी स्टाइलिशअदा को देखतेहुए यही लगताथा कि राजेशखन्ना यह चोलाअभी उतार करफेंक देंगे औरफिर अपनी रोंमांटिकअदाओं में सिरझुकाकर नायिका सेकहेंगे \”आई हेट टियर्स\”. पर नियति तो अपनीही चाल सेचलती है. वे राजनीति में आएजरूर लेकिन सिमटेहुए रहे. कहीं कोईहलचल नहीं. ऐसे ही टीवी पर एक पंखे की माडलिंग करते हुएदिखे. पुराने राजेश खन्नानहीं, वही उनकेरुके– रुके से कदम, बढ़ती उम्रका अहसास. तब मनकचोटता रहा. मन उन्हेंइस तरह सेनहीं देखना चाहता. उनकाजिक्र भर तोवही पुरानी छविसामने आती है. वहीमन में रहनीभी चाहिए. वही राजेशखन्ना जो हरचीज नजाकत सेकरते थे, जिन्होंने डिंपल कपाड़िया से शादीका इजहार करनेके लिए चांदनीरात चुनी थी, समुद्र की लहरों के सामने मन की बात कही थी.
उनके अभिनय ने लोगों को रोमांस करना सिखाया. उनकी मोहक अदायगी, अभिनेत्रियों को रिझाने की कोशिश, चंचल आँखे और डांस करने की स्टाइल सब कुछ अलग था. वे संवेदनशील प्रेम के प्रतीक बने. पर जिंदगी उनके पहेली ही बनी रही. शौहरत की बुलंदी भी देखी और जिंदगी का तन्हा पल भी झेला. न जाने क्यों जिंदगी शब्द उन पर फिल्माएं गीतों में भी कई बार आया, जिंदगी कैसी है पहेली, जिंदगी का सफर है, ये कैसा सफर, जिंदगी इक सफर है सुहाना. गीत ही नहीं, फिल्म आनंद में उनका चर्चित डॉयलाग भी जिंदगी के दर्शन पर ही था. बाबु मोशाय जिंदगी और मौत ऊपर वाले के हाथ में है. जहापनाह.. उसे न तो आप बदल सकते हैं ना मैं. . हम सब रंगमंच की कठपुतलियां हैं.
जब इन शब्दों को लिख रहा हूं, तो यह बात मायूस कर रही हैं कि अब वे नहीं रहे. मुंबई में लोग उन्हें आखिरी विदाई देने के लिए उमड़ पड़े हैं. उन्होंने दूसरों के लिए जिंदगी के सुरीले सपने
चुने और इस जिंदगी के दूर चले गए.
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वेद उनियाल की राजनीति, पत्रकारिता, खेल, गीत- संगीत, नृत्य और फिल्मों से जुडी चर्चित हस्तिओं पर सुन मेरे बन्धु शीर्षक से एक किताब जल्दी ही प्रकाशित होने वाली है.
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक
अमर उजाला से जुड़े हैं.
ई पता : vedvilas@gmail.com