वरिष्ठ लेखक और अनुवादक यादवेन्द्र विश्व साहित्य से नायब पृष्ठों को अनूदित कर हिंदी के पाठकों के समक्ष सृजन और विचारों के नये आयाम प्रस्तुत करते रहते हैं.
कोरोना ने भयानक नरसंहार किया जो उससे बच गये वो कोरोना सिंड्रोम से पीड़ित हैं उन्हें कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. कोरोना ने सामाजिक स्तर पर भी दूरी पैदा की है, इस अलगाव से बचने के लिए बहुत से लोगों ने कोरोना को स्वीकार नहीं किया और उसे बुखार या कुछ ऐसा ही नाम देते है, जैसे वह कोई अपयश हो.
जापना के हिरोशिमा पर जब अमेरिका ने परमाणु बम्ब गिराए तब जो लोग बचे रह गये वह आजीवन कई तरह की समस्याओं से ग्रस्त रहे. उन्हें सामाजिक तौर पर स्वीकार नहीं किया गया. कोरोना भी किसी बम से कम है क्या ?
अलगाव की पीड़ा बड़ी होती है. आइये जापानी कथाकार मसुजी इबुसे की कालजयी कृति ब्लेक रेन के इन मार्मिक अंशों को पढ़ते हैं.
हिरोशिमा में जन्मे मसुजी इबुसे (1898-1993) जापान के बड़े साहित्यकारों में शुमार किए जाते हैं. बचपन में उन्हें स्कूल की पढ़ाई रास नहीं आई और उन्होंने घर पर चीनी साहित्य का अध्ययन किया पर उनका झुकाव और पेंटिंग की तरफ था. वे पश्चिमी साहित्य से बहुत प्रभावित थे और शेक्सपियर, टॉलस्टाय, चेखव तथा अनेक फ्रांसीसी लेखक उनके खास प्रिय लेखक थे.
1966 में उन्होंने “ब्लैक रेन” उपन्यास लिखा जिसे जापान के सर्वोच्च साहित्यिक सम्मानों से विभूषित किया गया. हालांकि हिरोशिमा पर एटम बम गिराए जाने के समय इबुसे स्वयं हिरोशिमा में उपस्थित नहीं थे लेकिन उन्होंने इस उपन्यास के लिए बहुत परिश्रम से लोगों के संस्मरण, डायरी और चिट्ठियों का उपयोग किया.
01/1965 से 09/1966 के बीच ‘शिंचो‘ नामक पत्रिका में धारावाहिक रूप में ‘द नीसेज मैरेज‘ शीर्षक से छपा था यह उपन्यास पर जब यह किताब के रूप में छपने गया तो जापान पर एटम बम की व्यापक चर्चा के मद्देनजर यह शीर्षक बदल कर ‘द ब्लैक रेन‘ कर दिया गया.
पूरा उपन्यास वास्तविक दस्तावेजों, संस्मरणों और तथ्यों पर आधारित है यहां तक कि कई बार पात्रों के नाम भी यथावत रख दिए गए हैं. उपन्यास की मुख्य पात्र यासुको भी कल्पना से निर्मित कोई किरदार नहीं है बल्कि इस युवा स्त्री के बारे में लेखक को किसी भरोसेमंद आदमी ने बड़े विस्तार से बताया था.
यह कोई आश्चर्य नहीं है कि यासुको की ऐसी परिस्थिति में घिरने के बाद भी लंबी उम्र प्राप्त करने वाले शोसो कावामोतो ने अपने सार्वजनिक वक्तव्य में बार-बार अपनी शादी न हो पाने के ऐसे ही कारणों का जिक्र किया है जिस कारण उपन्यास की नायिका यासुको की शादी बार-बार टूटती रही. कावामोतो के पास एटम बम के विकिरण से प्रभावित होने का हिबाकुशा हेल्थ सर्टिफिकेट उनकी शादी नहीं होने देता और वे आजीवन अविवाहित रहते हैं.
यादवेन्द्र
मसुजी इबुसे
काली बरसात
अनुवाद यादवेंद्र
पिछले कई सालों से कोबाताके गाँव के शिगेमत्सु शिजुमा को एहसास था कि भतीजी यासुको उसके कंधों पर बोझ है. और यह बोझ इतनी जल्दी उसका पीछा छोड़ने वाला नहीं है. यासुको को अपने घर पर साथ रखकर उसने दोहरी नहीं बल्कि तिहरी जिम्मेदारी उठा ली है. उसकी शादी के लिए निकट भविष्य में कोई अच्छा लड़का मिलना दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था. इसमें सबसे बड़ी बाधा एक अफवाह बन कर खड़ी थी- वह यह थी कि युद्ध समाप्त होने के समय यासुको हिरोशिमा के सेकेंड मिडल स्कूल सर्विस कॉर्प्स की किचन में काम कर रही थी. इस अफवाह के चलते कोबाताके गाँव के लोगों को अंदेशा था कि वह भी विकिरण से पैदा हुई बीमारी का शिकार हुई है हालाँकि वह स्कूल हिरोशिमा शहर से करीब सौ मील दूर स्थित था. उन्हें लगता है कि शिगेमत्सु और उसकी पत्नी जानबूझकर सच्चाई पर परदा डालने की कोशिश कर रहे हैं. यही कारण है कि कोई यासुको से शादी करने को तैयार नहीं होता था. जो कोई भी शादी के लिए आगे आता, गाँव में पड़ोसियों से पूछताछ करने पर इस अफवाह के चलते पीछे हट जाता.
6 अगस्त की सुबह हिरोशिमा के उस स्कूल के सर्विस कॉर्प्स के बच्चे तेमा ब्रिज या शहर के पश्चिमी हिस्से के किसी पुल पर दिए जा रहे किसी ख़ास भाषण को ध्यान लगा कर सुन रहे थे कि तभी शहर पर एटम बम गिरा. पल भर में खुले आसमान के नीचे खड़े बच्चे सिर से पाँव तक जलकर खाक हो गए लेकिन उनका टीचर उन्हें एक देशभक्ति गीत गाने का हुकुम देता रहा- “लेट मी बिनीथ द वेव्स”. गीत पूरा होने के बाद उसने उन्हें अपनी अपनी जगह पर लौट जाने का हुकुम दिया. वह खुद भी बुरी तरह से जल चुका था और दौड़ता हुआ बगल की नदी में कूद गया – और उस समय नदी ज्वार के कारण लबालब भरी हुई थी. अपने टीचर को ऐसा करते देख मैदान में इकट्ठे सभी बच्चों ने जान बचाने को एक साथ नदी में छलांग लगा दी. सिर्फ एक बच्चा ऐसा था जो इस दुर्घटना का गवाह बन के अपने घर पहुँच पाया लेकिन वह भी- ऐसा कहा जाता है- बहुत पहले ही मर चुका था.
यह संभव है कि यासुको के बारे में फैली अफवाह कोबाताके गाँव के ही एक निवासी ने फैलाई हो जो बमबारी के वक्त हिरोशिमा में था और वहाँ से जिंदा गाँव लौट आया था. लेकिन यासुको के बमबारी के वक्त हिरोशिमा के सेकंड मिडिल स्कूल के किचन में उपस्थित होने की कहानी पूरी तरह से बकवास और मनगढ़ंत थी. वास्तविकता यह थी कि वह उस समय स्कूल में नहीं बल्कि हिरोशिमा के बाहर फुरूची शहर में जापान टेक्सटाइल कंपनी में मैनेजर मिस्टर फुजिता की रिसेप्शनिस्ट और मैसेंजर का काम कर रही थी. जापान टेक्सटाइल कंपनी और सेकंड मिडिल स्कूल के बीच किसी भी तरह का कोई तार नहीं जुड़ता था.
स्कूल तो स्कूल, सर्विस कॉर्प्स के साथ भी जापान टेक्सटाइल कंपनी के कोई भी सूत्र नहीं जुड़ते थे. दूर-दूर तक देखें तो सिर्फ एक कड़ी इन दोनों के बीच जुड़ती थी- यदि उसे कड़ी कहा जा सके- उस स्कूल का एक विद्यार्थी जो उत्तरी चीन में सेना में एक अफसर है, ने यासुको को शुक्रिया के तौर पर एक गिफ्ट पार्सल भेजा था जिसमें उसके लिए लिखी गई लंबी चिट्ठी के साथ उसकी खुद की लिखी पाँच छह कविताएँ थीं. जब यासुको ने उन्हें घर में दिखाया तो चाची शिगेको उन्हें पढ़ते हुए शर्म से लाल हो गई (उसकी उम्र में उसका ऐसा शर्माना अस्वाभाविक लग रहा था) और बोल पड़ी : “यासुको, इन्हें ही लोग शायद प्रेम कविता कहते हैं.”
जब तक लड़ाई जारी रही सेना के आदेश से गैर जिम्मेदार अफवाहों को फैलने से बलपूर्वक दबाया जाता रहा पर युद्ध की समाप्ति के बाद हर किस्म की बेसिर पैर की अफवाहें और किस्से कहानियाँ बेरोक टोक फैलाई जाने लगीं.
हालॉकि अधिकांश अफवाहें और किस्से कहानियाँ समय के साथ लोगों के स्मृति पटल से धुल पुंछ गईं- अच्छा होता कि यासुको के बारे में जो अफवाहें फैली थीं वह भी उसी तरह विस्मृत हो जातीं लेकिन वास्तव में ऐसा हुआ नहीं. शादी के बारे में पता करते-करते जब भी कोई उसके गाँव तक पहुँचता तो वही पुरानी बातें फिर से दोहराई जातीं कि बमबारी के समय यासुको हिरोशिमा सेकंड मिडल स्कूल सर्विस कॉर्प्स स्कूल के किचन में काम कर रही थी.
(२)
यासुको किसी भी तरह से बीमार नहीं कही जा सकती थी. उसकी एक सम्मानित डॉक्टर ने पूरी जाँच की और बमबारी से प्रभावित लोगों की नियमित जाँच के लिए नियुक्त डॉक्टरों के दल के सामने भी वह विस्तृत जाँच पड़ताल के लिए उपस्थित हुई थी. जाँच में सब कुछ पूरी तरह से सामान्य आया था- कॉर्पसल काउंट, पैरासाइट्स, यूरीन, सेडीमेंटेशन, स्टेथोस्कॉपी, हियरिंग इत्यादि. युद्ध की समाप्ति के चार साल नौ महीने बाद यह मौका आया कि यासुको का हाथ माँगने आए युवक को सच बताया जा सके. विवाह का इच्छुक युवक यमानो गाँव के एक खानदानी परिवार का सदस्य था जिसने कहीं किसी समय यासुको को देखा और पसंद आने पर एक मध्यस्थ के जरिए शादी का प्रस्ताव भेजा. यासुको को इस प्रस्ताव पर कोई आपत्ति नहीं थी. शिगेमत्सु ने इस बार यासुको को लेकर फैलाई जाती अफवाह को अनिष्ट बन कर बीच में न आने देने का फैसला किया और एक प्रतिष्ठित डॉक्टर से यासुको के शारीरिक स्वास्थ्य का सर्टिफिकेट हासिल कर लिया. वह सर्टिफिकेट उसने बातचीत के पहले ही शादी के मध्यस्थ को डाक से भेज दिया.
“इस बार सब कुछ ठीक-ठाक होगा”, उसने खुद को सुनाते हुए यह बात कही.
“किसी बात के लिए दोहरी तसल्ली कर लेने में हर्ज क्या है. आजकल लोग शादी करने से पहले एक दूसरे का हेल्थ सर्टिफिकेट देख परख लेते हैं. हम भी यदि ऐसा करें तो मुझे पक्का यकीन है कि वे इसका बुरा नहीं मानेंगे. हमारी मध्यस्थ एक रिटायर्ड फौजी ऑफिसर की पत्नी है इसलिए उसे आधुनिक तौर-तरीकों का ज्यादा पता होगा. देखना, इस बार पहले जैसा नहीं होगा- सब एकदम चाक-चौबंद होगा.”
पर इस बार हो उल्टा गया, शिगेमत्सु ने दिमाग कम लगाया और सावधानी ज्यादा बरती. ऐसा लगता है कि मध्यस्थ गाँव के किसी निवासी से या तो मिली होगी या संपर्क में आई होगी. उसने एक चिट्ठी लिखकर यह कहा कि हिरोशिमा में बम गिरने से लेकर गाँव लौटने तक यासुको कहाँ कहाँ गई इसकी जानकारी भेजिए. उसने लिखा कि यह सिर्फ मेरी अपनी जानकारी के लिए चाहिए, किसी और के या भावी पति के साथ साझा करने को नहीं… और यह भी लिखा कि लड़के ने अपनी तरफ से इस बारे में कोई जानकारी नहीं माँगी है.
शिगेमत्सु को महसूस हुआ उसके ऊपर एक और जिम्मेदारी आन पड़ी है. चिट्ठी उसकी पत्नी ने पढ़ी और चुपचाप बगैर एक शब्द बोले जाकर यासुको को पकड़ा दी. उसके बाद वह मुँह लटका कर थोड़ी देर वहीं बैठी रही फिर उठकर कमरे में चली गई. यासुको भी चिट्ठी पढ़ने के बाद उसके पीछे पीछे कमरे में गई. थोड़ी देर बाद शिगेमत्सु दबे पाँव कमरे की तरफ गया और अंदर झाँक कर देखा- उसकी पत्नी यासुको के कंधे पर सिर रखे बैठी थी और दोनों औरतें सुबक सुबक कर रो रही थीं.
“चलो मान लेता हूँ मैं गलत था लेकिन यह कितना अपमानजनक है कि लोग कानाफूसी करते हैं इस के चलते किसी को स्थायी रूप से अपंग या बीमार करार दे दिया जाए. जिसको जो कहना हो कहता रहे मेरी बला से. हमें इससे ऊपर उठना होगाा. हम कोई न कोई रास्ता निकाल ही लेंगे. मेरे शब्दों को याद रखना, देखना रास्ता कैसे निकलता है.”, शिगेमत्सु ने सुना कर कहा.
“जैसे ही इन पहाड़ियों के पीछे इंद्रधनुष उगेगा एक चमत्कार होगा… इंद्रधनुष उगने दो, देखना पल भर में यासुको रोग मुक्त हो जाएगी.” वह खुद को तसल्ली देने के लिए यह कहा करता था हालांकि अंदर ही अंदर उसके मन में यह स्पष्ट था कि यह चमत्कार वास्तव में कभी नहीं होने वाला.
बोल तो गया वह लेकिन अंदर से उसे भी मालूम था यह उसने सिर्फ़ अपने आप को आश्वस्त करने के लिए और बेहतर महसूस कराने के लिए कहा है.
थके और बोझिल कदमों से यासुको चलती हुई अलमारी तक गई और अंदर के खाने से एक बड़ी सी डायरी निकाल कर बगैर कुछ बोले चाचा शिगेमत्सु के हाथ में थमा दिया. यह उसकी 1945 की व्यक्तिगत डायरी थी और इसके आवरण पर एक दूसरे को काटते हुए दो झंडे बने हुए थे- एक राष्ट्रीय ध्वज और दूसरा नौसेना द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला राइजिंग सन फ्लैग. हिरोशिमा के चंदामासी में रहते हुए उसने हर रोज रात में खाने के बाद उसी टेबल पर बैठकर यह डायरी लिखी थी. इसमें उसने एक दिन भी नागा नहीं होने दिया था चाहे वह दिन भर काम करके कितनी भी थक गई हो.
हफ्ते के चार या पाँच दिन बहुत संक्षेप में वह पाँच छह लाइनों में दिनभर की मुख्य घटनाओं का विवरण लिख लेती थी और बाकी के दो दिनों में वह इत्मीनान से बैठकर पूरे हफ्ते के बारे में विस्तार से डायरी में लिखा करती. दरअसल डायरी लिखने में वह अपने चाचा का अनुकरण कर रही थी जो उन्होंने सालों साल तक हर परिस्थिति में न सिर्फ जारी रखा बल्कि अपनी भतीजी को सिखाया भी.
गहरे उधेड़बुन में फँसे शिगेमत्सु के दिमाग में अचानक यह आया कि क्यों न यासुको की डायरी का प्रासंगिक अंश कॉपी करके शादी में मध्यस्थता कर रही महिला तक पहुँचा दिया जाए. इसके बाद उन्होंने 5 अगस्त से शुरू करके कई दिनों तक का डायरी का अंश अलग कागज पर लिखना शुरू किया.
5/अगस्त
फैक्ट्री मैनेजर मि. फुजीता को यह अर्जी लिखकर दी कि मैं कल अनुपस्थित रहूँगी और वहाँ से सीधे घर चली गई- गाँव पर घर के कुछ सामान भेजने थे उनकी तैयारी के लिए.
चाची शिगेको के महँगे किमोनो (गर्मी और सर्दी दोनों के- इनमें से पीला वाला सिल्क का किमोनो मेरी परदादी का था जो वे पहली दफा दुल्हन बनके पहन कर हमारे घर आई थीं और यह बहुत कीमती था)
गर्मी में पहने जाने वाले चार किमोनो
चाचा शिगेमत्सु का गरम कोट
कुछ फॉर्मल किमोनो और हावरी
2 गरम सूट
एक शर्ट
एक टाई
चाचा का ग्रेजुएशन डिप्लोमा
सर्दियों और गर्मियों में पहनने वाले मेरे फॉर्मल किमोनो
दो कमरबंद
मेरा खुद का ग्रेजुएशन डिप्लोमा
इन सब को एक चटाई में मैंने लपेट दिया और ऐसे थैले में रख दिया जिससे अपने कंधे पर मैं खुद लादकर ले जा सकूँ. तीन सेर चावल, अपनी डायरी, कलम, अपनी सील, मर्क्यूरोक्रोम और तिकोने आकार का बैंडेज.
(इसके आगे शिगेमत्सु ने लिख कर जोड़ा: हमारा यह सारा सामान बाद में युद्ध की समाप्ति के एक साल बाद गाँव से वापस भेज दिया गया और अब इस्तेमाल करके खत्म हो चुका है.)
आधी रात में हवाई हमले की चेतावनी दी गई और बी 29 हवाई जहाजों का एक दस्ता हमारे आकाश में चक्कर मार कर बगैर कुछ किए चला गया. रात 3:00 बजे तक सब कुछ शांत रहा, कुछ नहीं हुआ. जब चाचा शिगेमत्सु पहरे की अपनी ड्यूटी पूरी कर के लौटे तो बताया कि उन्हें पता चला है कि एक दिन पहले बी 29 जहाजों ने शहर के ऊपर ढेर सारे इश्तिहार फेंके थे जिसमें लिखा था:
“यह मत सोचना कि हम फुचु माची के ऊपर हमला करना भूल गए हैं. हम जल्दी ही वहाँ पहुँचने वाले हैं.”
वैसे ऊपर से देखने पर यह भाषा विनम्र लगती थी लेकिन इसमें धमकी के स्वर भी पूरे पूरे शामिल थे.
यह सुनकर मैं सोचने लगी, क्या वे सचमुच फुचु के ऊपर बम गिराएँगे? यामानाशी से आया कोई व्यक्ति बता रहा था कि बी29 विमानों ने कोफू पर हवाई हमला करने से पहले इसी तरह के इश्तिहार गिराए थे- खास बात यह थी कि ये इश्तिहार महँगे चिकने आर्ट पेपर पर छापे गए थे. इश्तिहारों में यह भी लिखा हुआ था साइपन या किसी दूसरे द्वीप में जो अमेरिकी सेना के कब्जे में था, जापानी लोग बड़े आराम से रह रहे हैं और उनके पास खाने पीने को पर्याप्त मात्रा में चीजें उपलब्ध हैं. आजकल तो हिरोशिमा शहर में बहुत ढूँढ़ने पर भी आर्ट पेपर देखने को नहीं मिलेगा. 3:30 बजे सो गई.
6/अगस्त
सुबह 4:30 बजे मिस्टर नोजिमा अपना ट्रक लेकर आए जिससे मुझे अपने सामानों को साथ लेकर गाँव जाना था. फुरू में खूब धमाके और आग की लपटें मिलीं – हिरोशिमा शहर के ऊपर काले धुएँ की इतनी मोटी परत दिखाई दी लगा जैसे कोई ज्वालामुखी फूट पड़ा हो. लौटते हुए हम मियाजू की तरफ से आए, फिर मियूकी पुल तक नाव से.चाची शिगेको को कोई चोट नहीं लगी थी पर चाचा शिगेमत्सु का चेहरा चोटिल दिख रहा था. ऐसा लग रहा था कि कोई अभूतपूर्व आपदा आई है लेकिन पूरी तरह से कोई विश्वसनीय जानकारी नहीं मिल रही थी. घर पूरी तरह से ध्वस्त नहीं हुआ था बल्कि 15 डिग्री झुक गया है इसलिए डायरी में यह सब मैं हवाई हमले से बचाव के लिए बनाए गए शेल्टर के दरवाजे पर खड़ी होकर लिख रही हूँ .
9/अगस्त की (विस्तृत) डायरी
आसमान और बाहर का माहौल देखकर ऐसा लग रहा था जैसे रात होने लगी है लेकिन जब मैं घर लौटने लगी तो यह पता चला कि अंधेरा रात के कारण नहीं बल्कि आसमान पर छाए काले धुएँ से बने बादलों के कारण है. चाचा और चाची मुझे लेकर परेशान थे और ढूँढ़ने के लिए बाहर निकल रहे थे. जिस समय बम गिरा उस समय मेरे चाचा शिगेमत्सु योकोगावा रेलवे स्टेशन पर थे और बमबारी में उनका बायाँ गाल बुरी तरह से चोटिल हो गया. हमारा घर बुरी तरह से टूट फूट गया और एक तरफ झुक गया लेकिन चाची शिगेको बची रहीं, उन्हें कोई चोट नहीं लगी.
मुझे अपने बारे में तब तक कुछ पता नहीं चला जब तक चाचा ने यह नहीं बताया कि मेरी चमड़ी ऐसी लग रही है जैसे उस पर किसी ने ढेर सारा कीचड़ उड़ेल दिया हो. मैंने सफेद रंग की आधी बाजू की शर्ट पहनी हुई थी, उस पर भी ऐसे ही कीचड़ उड़ेला हुआ लग रहा था- यहाँ तक कि उसके धागे भी उधड़ गए थे. जब मैंने आईने में खुद को देखा तब मुझे पता चला कि जहाँ मैंने हवाई हमले से बचने के लिए हैट पहना हुआ था उसको छोड़ कर शरीर का कोई हिस्सा ऐसा नहीं था जो कीचड़ से लथपथ न दिखाई दे.
मुझे ध्यान आया कि जब हमें मि नोजिमा ने नाव पर बैठाया उसी समय अचानक आसमान से काली बूँदों की बारिश का झोंका हमारे ऊपर पड़ा. मुझे लगता है उस समय दिन के दस बजे होंगे. गरजते बरसते काले बादल शहर के दिशा से हमारी तरफ तेजी से बढ़ रहे थे. और बादलों से गिरती बूँदें किसी फाउंटेन पेन से गिरती काली रोशनाई की गोल-गोल बूँदों जैसी थीं.
लेकिन यह बरसात देर तक टिकी नहीं, जल्दी ही बंद हो गई. बूँदें बर्फ़ जैसी इतनी ठंडी थीं कि गर्मी का मध्य होने पर भी बूँदों के शरीर पर पड़ते ही सिहरन हो जाती थी. ऐसी हालत में मैं एकदम सकते में थी समझ नहीं आ रहा था क्या करना चाहिए. बस एक ही बात ध्यान आ रही थी कि नाव पर चढ़ने से पहले जब मैं ट्रक में बैठी थी बरसात तभी शुरू हो गई थी. बूँदों का झोंका आ रहा था जा रहा था जैसे वह मेरा धीरज परख रहा हो… वह किसी छलिये सा लुका छुपी का खेल खेल रहा था.
रास्ते में झरने के पास रुक कर मैंने अपने हाथ धोए लेकिन साबुन से रगड़ रगड़ कर धोने के बाद भी चमड़ी के ऊपर से कीचड़नुमा चीज हटी नहीं… लगता था जैसे चमड़े से पूरी तरह से चिपक गई हो. बड़ा अजीब सा लग रहा था. घर आने पर मैंने चाचा शिगेमत्सु को दिखाया तो वह बोले:” हो सकता है यह तेल हो जो बम से निकलकर चमड़े पर चिपक गया हो- मुझे लगता है उन्होंने उस दिन जहाज से तेल बम गिराया था.” उन्होंने मेरे चेहरे को नजदीक से आकर देखा तो कहा:” हो सकता है कि यह विषैली गैस हो जो देखने में कीचड़ जैसी लगती हो पर इसमें गोंद जैसा चिपचिपापन ज्यादा हो. देख कर तो लगता है कि वह जरूर विषैली गैस वाला बम होगा.”
9 अगस्त की यासुको की डायरी यहाँ खत्म हो जाती है. उसे लगा कि पत्नी का सुझाव मानते हुए यदि वह इस डायरी का काली बरसात वाला प्रसंग हटा कर अलग कर दे तो बेहतर होगा लेकिन यदि लड़के के घर वाले मेरी भेजी डायरी प्रमाणित करने के लिए मध्यस्थ के पास भेजें… और आगे वह यासुको की असल डायरी हमसे मिलान करने के लिए माँग ले तब क्या होगा. उसने हिसाब लगाया कि 6 अगस्त को आठ बज जाने के कुछ समय बाद यासुको बम गिरने के केंद्र से 10किलोमीटर से ज्यादा दूर रही होगी. वह स्वयं बमबारी के केंद्र से 2 किलोमीटर दूर योकोगावा स्टेशन पर था और उसके गाल इसके धमाके से जल गए थे हालॉकि वह जिंदा बच गया था. उसने सुन रखा था कि ऐसे भी कुछ लोग हैं जो बमबारी के वक्त उसके केंद्र के आसपास ही थे लेकिन जो घायल होने से बच गए थे, पर अब सामान्य विवाहित जीवन बिता रहे हैं.
“क्या यह सही होगा कि हम यासुकॊ की डायरी का वह हिस्सा उड़ा दें जिसमें उसने काली बरसात का जिक्र किया है? इसके बारे में आज लोगों से तुम बात करो तो वे तरह-तरह के मजाक बनाएँगे. दरअसल उस समय किसी को नहीं मालूम था कि पानी की इन बूँदों में कुछ विषैला भी है लेकिन आज तो इनके बारे में हर कोई सब कुछ जानता है. यदि वह हिस्सा निकालकर हम डायरी मध्यस्थ को दें तो उनके मन में कोई शक शुबहा तो नहीं हो जाएगा? उसने उस तारीख की डायरी में ऊपर भी लिखा है कि बरसात हो रही थी और वह उसमें भींग गई थी.”, शिगेको ने शंका जाहिर की.
(जापानी से जॉन बेस्टर के अंग्रेजी अनुवाद पर आधारित)
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यादवेन्द्र का जन्म 1957 आरा, बिहार में हुआ, बनारस, आरा और भागलपुर में बचपन और युवावस्था बीती और बाद में नौकरी के लगभग चालीस साल रुड़की में बीते. जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व वाले 1974 के छात्र आंदोलन में सक्रिय भागीदारी. नुक्कड़ नाटकों और पत्रकारिता से सामाजिक सक्रियता की शुरुआत. 1980 से लेकर जून 2017 तक रुड़की के केन्द्रीय भवन अनुसन्धान संस्थान में वैज्ञानिक से निदेशक तक का सफर पूरा किया. कई महत्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में विज्ञान सहित विभिन्न विषयों पर प्रचुर लेखन. विदेशी समाजों की कविता, कहानियों और फिल्मों में विशेष रुचि-अंग्रेजी से कई महत्वपूर्ण अनुवाद. २०१९ में संभावना से ‘स्याही की गमक’(अनुवाद) प्रकाशित. साहित्य के अलावा यायावरी, सिनेमा और फोटोग्राफी का शौक.
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