कृष्णा सोबती: मृत्युलोक के नश्वर : अनुराधा सिंह
कृष्णा सोबती ने मुक्तिबोध के लिए लिखा है – “मुक्तिबोध के लेखकीय अस्तित्व में ब्रह्माण्ड के विशाल, विराट विस्तार का भौगोलिक अहसास और उससे उभरती, उफनती, रचनात्मक कल्पनाएँ अन्तरिक्ष, पृथ्वी...
कृष्णा सोबती ने मुक्तिबोध के लिए लिखा है – “मुक्तिबोध के लेखकीय अस्तित्व में ब्रह्माण्ड के विशाल, विराट विस्तार का भौगोलिक अहसास और उससे उभरती, उफनती, रचनात्मक कल्पनाएँ अन्तरिक्ष, पृथ्वी...
आलोचक और कथाकार राकेश बिहारी के स्तम्भ ‘भूमंडलोत्तर कहानी’ का समापन वन्दना राग की कहानी ‘ख़यालनामा’ की विवेचना से हो रहा है, इसके अंतर्गत आपने निम्न कहानियों पर आधारित आलोचनात्मक...
समकालीन कथा-साहित्य पर आधारित स्तंभ ‘भूमंडलोत्तर कहानी’ की २२ वीं कड़ी में आलोचक राकेश बिहारी ‘रश्मि शर्मा’ की कहानी ‘बंद कोठरी का दरवाजा’ की चर्चा कर रहें हैं. यह कहानी...
(अनन्य प्रकाशन, दिल्लीमूल्य 100 रुपयेपृष्ठ 136)राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जीवन और दर्शन पर अध्येताओं की दिलचस्पी कहीं से भी कम नहीं हुई है चाहे देश हो या विदेश. सत्य, अहिंसा,...
(फोटो आभार : Krishna Samiddha)नरेश सक्सेना ने कहीं लिखा है कि ‘कविता ऐसी जो बुरे वक्त में काम आए.’ तमस से प्रकाश की ओर, असत्य से सत्य की ओर उसकी...
दो भाषाओँ के बीच अनुवाद सांस्कृतिक प्रक्रिया है, मुझे लगता है कि जैसे साहित्य से उस समाज का पता चलता है उसी प्रकार जिस भाषा में अनुवाद हो रहे हैं,...
कवि विष्णु खरे की कविताओं में ‘लड़कियों के बाप’ कविता का ख़ास महत्व है, यह हिंदी की कुछ बेहतरीन कविताओं में से एक है. आज भी जब हम विष्णु खरे...
राकेश बिहारी ने समकालीन कथा-साहित्य पर अपने स्तंभ ‘भूमंडलोत्तर कहानी’ की शुरुआत लगभग चार वर्ष पूर्व समालोचन पर की थी. आज इसकी २१ वीं कड़ी योगिता यादव की कहानी ‘गलते...
कवि, आलोचक, अनुवादक, पत्रकार, संपादक और फ़िल्म कला मर्मज्ञ विष्णु खरे एक महान पाठक भी थे. उन्हें किसी नवोदित की कोई कविता पढ़कर उससे बात करने में कोई संकोच कभी...
प्रत्यक्षा की कहानी ‘बारिश के देवता’ का चयन २०१८ के ‘राजेन्द्र यादव हंस कथा सम्मान’ के लिए वरिष्ठ कथाकार उदय प्रकाश द्वारा किया गया है. हंस में प्रकाशित कहानियों में...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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