आलेख

आवाज़ की जगह : १: प्रभात रंजन और सीतामढ़ी

युवा कवि आलोचक  गिरिराज ने अपनी पसन्द के कहानीकारों पर लिखते रहने का वायदा किया है. शुरुआत  प्रभात रंजन से. गिरिराज की समूची उपस्थिति ही साहित्य के लिए आह्लादकारी है....

मगध : सुबोध शुक्ल

मगध : सुबोध शुक्ल

श्रीकान्त वर्मा का कविता संग्रह मगध (१९८४ में प्रकाशित) अभी भी आलोचकों के लिए चुनौती है, ऐसी जनप्रियता कम कविता संग्रहों को मिली है. युवा आलोचक सुबोध शुक्ल का भाष्य...

नामवर सिंह : जगदीश्वर चतुर्वेदी   

नामवर सिंह : जगदीश्वर चतुर्वेदी   

हिंदी के सर्वाधिक चर्चित आलोचक नामवर सिंह ८६ वर्ष के हो गए हैं. समकालीन हिंदी साहित्य को जिस एक व्यक्ति ने सबसे अधिक प्रभावित किया उसका नाम नामवर सिंह है....

सबद भेद : चंद्रकुँवर बर्त्वाल

सबद भेद : चंद्रकुँवर बर्त्वाल

चंद्रकुंवर बर्त्वाल बतौर कवि छायावाद के वैभव काल में समाने आते हैं. उनकी कविताओं में जहां छायावाद की समृद्धि है वहीं छायावाद को अतिक्रमित करती हुई अलग काव्य प्रवृत्ति भी...

त्रिलोचन : संसार को ‘जनपद’ बनाती कविता : सुबोध शुक्ल

त्रिलोचन : संसार को ‘जनपद’ बनाती कविता : सुबोध शुक्ल

भूखे दुखे और कला से अनजान जनपद के जन–कवि त्रिलोचन की रचनाधर्मिता और वैचारिक यात्रा को समझने की एक गम्भीर कोशिश यहाँ युवा आलोचक सुबोध ने की है. एक दृष्टि...

मैनेजर पाण्डेय: भारत में जनतंत्र का सच

मैनेजर पाण्डेय: भारत में जनतंत्र का सच

हिंदी का आलोचना-साहित्य गंभीर और विस्तृत है. यह अपने समय और समाज से गहरे जुड़ा है. इसके परिसर में देसी–परदेशी बहस-मुबाहिसे चलते रहते हैं. यह जनतांत्रिक हुई है और इसमें...

पूर्वोत्तर और हिंदी : गोपाल प्रधान

हिंदी से पूर्व–उत्तर की भाषाओं के रिश्तों पर केंद्रित गोपाल प्रधान का यह आलेख गम्भीरता से हिंदी साहित्य में पूर्व–उत्तर की उपस्थिति की भी पड़ताल करता है.    पूर्वोत्तर और हिंदी...

अज्ञेय : परम्परा,प्रयोग और आधुनिकता : परितोष कुमार मणि

रघुवीर सहाय ने अज्ञेय के लिए एक सुंदर वाक्य लिखा है कि मानव मन को खंडित करने वाली पराधीनता के प्रतिकूल अज्ञेय की मानव – अस्मिता और गरिमा की प्रतीतियाँ...

केदारनाथ अग्रवाल: नंद भारद्वाज

जन्म शताब्दी वर्ष : केदारनाथ अग्रवालकेदारनाथ अग्रवाल प्रेम,प्रकृति और मित्रता के कवि हैं, मनुष्यविरोधी राजनीति को समझने वाले  एक सचेत वैचारिक कवि. उनकी एक कविता के सहारे कहा जाए तो...

भाष्य : भूल गलती : गोपाल प्रधान

भाष्य के अंतर्गत परम्परा के पुनर्पाठ की सोच है. उसके विश्लेषण और नये सन्दर्भ में उनके पुनर्वास की कोशिश है. इसकी शुरुआत युवा आलोचक गोपाल प्रधान के मुक्तिबोध की भूल-गलती...

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