हिंदी में कामकाज: राहुल राजेश
हिंदी केवल साहित्य की भाषा नहीं है वह कामकाज की भी भाषा है, हिंदी के समक्ष जब हम चुनौतियों की चिंता करें तब हिंदी की इस भूमिका को भी गम्भीरता...
हिंदी केवल साहित्य की भाषा नहीं है वह कामकाज की भी भाषा है, हिंदी के समक्ष जब हम चुनौतियों की चिंता करें तब हिंदी की इस भूमिका को भी गम्भीरता...
भूमंडलोत्तर कहानियों के चयन और आलोचना के क्रम में इस बार अपर्णा मनोज की कहानी ‘नीला घर’ पर आलोचक राकेश बिहारी का आलेख- ‘नीला घर के बहाने’समालोचन प्रस्तुत कर रहा...
भूमंडलोत्तर कहानियों के चयन और चर्चा के क्रम में इस बार विमल चंद्र पाण्डेय की चर्चित कहानी ‘उत्तर प्रदेश की खिड़की’ पर आलोचक राकेश बिहारी का आलेख- ‘प्रेम, राजनीति और...
महान संपादक आचार्य महावीरप्रसाद द्विवेदी को १९३३ में काशी नागरी प्रचारिणी सभा की ओर से एक अभिनंदन ग्रन्थ भेंट किया गया जिसमें देश–विदेश के साहित्यकारों– मनीषियों के लेख संकलित थे....
व्याख्यान सुनने (यहाँ पढने) का फायदा यह है कि आप एक बैठकी में ही व्याख्याता के वर्षों के अध्ययन, शोध और निष्कर्षों से सामना कर पाते हैं. व्याख्यान अगर नामवर...
हिंदी के श्रेष्ठ उपन्यासों में फणीश्वरनाथ रेणु का उपन्यास ‘मैला आँचल’ स्वीकृत है. १९५४ में प्रकाशित यह उपन्यास अपनी चेतना, आंचलिक–रागात्मकता, रोचकता, मार्मिकता और लोक-संस्कृति के लिए आज भी पढ़ा...
भूमंडलोत्तर कहानी की विवेचना क्रम में इस बार आलोचक राकेश बिहारी ने जयश्री रॉय की कहानियों में ‘कायान्तर’ का चयन किया है और उसकी व्याख्या करते हुए उसमें भारतीय समाज...
माधव हाड़ा की आलोचना पुस्तक ‘पचरंग चोला पहर सखी री’ जो भक्तिकाल की कवयित्री मीरा बाई के जीवन और समाज पर आधारित है, इस वर्ष वाणी प्रकाशन से प्रकाशित हुई...
लोठार लुत्से (Lothar Lutze) सिर्फ अनुवादक नहीं थे, वह भाषाओं के बीच पुल थे, साहित्य संवाहक थे, संस्कृतियों के जीवंत प्रवाह थे. इस जर्मन भाषा के विद्वान का ८७ वर्ष...
clare parkस्त्रियाँ पैदा नहीं होती, समाज उन्हें निर्मित करता है. बायोलाजिकल विभेद से अलग जो भी अंतर एक स्त्री को किसी पुरुष से अलग करता है उसका निर्माण समाज सदियों...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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