त्रिलोचन : संसार को ‘जनपद’ बनाती कविता : सुबोध शुक्ल
भूखे दुखे और कला से अनजान जनपद के जन–कवि त्रिलोचन की रचनाधर्मिता और वैचारिक यात्रा को समझने की एक गम्भीर कोशिश यहाँ युवा आलोचक सुबोध ने की है. एक दृष्टि...
भूखे दुखे और कला से अनजान जनपद के जन–कवि त्रिलोचन की रचनाधर्मिता और वैचारिक यात्रा को समझने की एक गम्भीर कोशिश यहाँ युवा आलोचक सुबोध ने की है. एक दृष्टि...
हिंदी का आलोचना-साहित्य गंभीर और विस्तृत है. यह अपने समय और समाज से गहरे जुड़ा है. इसके परिसर में देसी–परदेशी बहस-मुबाहिसे चलते रहते हैं. यह जनतांत्रिक हुई है और इसमें...
हिंदी से पूर्व–उत्तर की भाषाओं के रिश्तों पर केंद्रित गोपाल प्रधान का यह आलेख गम्भीरता से हिंदी साहित्य में पूर्व–उत्तर की उपस्थिति की भी पड़ताल करता है. पूर्वोत्तर और हिंदी...
रघुवीर सहाय ने अज्ञेय के लिए एक सुंदर वाक्य लिखा है कि मानव मन को खंडित करने वाली पराधीनता के प्रतिकूल अज्ञेय की मानव – अस्मिता और गरिमा की प्रतीतियाँ...
जन्म शताब्दी वर्ष : केदारनाथ अग्रवालकेदारनाथ अग्रवाल प्रेम,प्रकृति और मित्रता के कवि हैं, मनुष्यविरोधी राजनीति को समझने वाले एक सचेत वैचारिक कवि. उनकी एक कविता के सहारे कहा जाए तो...
भाष्य के अंतर्गत परम्परा के पुनर्पाठ की सोच है. उसके विश्लेषण और नये सन्दर्भ में उनके पुनर्वास की कोशिश है. इसकी शुरुआत युवा आलोचक गोपाल प्रधान के मुक्तिबोध की भूल-गलती...
पुखराज जाँगिड़समकालीनता और देवीशंकर अवस्थी (देवीशंकर अवस्थी के जन्म दिन पर ख़ास)रचना पर विचारधारा और रचनाकार के अत्यधिक प्रभाव के क्या नतीजे होते है इसका परिणाम समकालीन आलोचना की बदहाली...
बाजार और साहित्यप्रभात कुमार मिश्रसाहित्य आज का हिन्दी समाज एक ऐसा समाज है जिसमें एक तरफ वैश्वीकरण का शोर है तो दूसरी तरफ स्कूलों की ढहती इमारतें हैं, एक तरफ...
गोपाल प्रधान : १ जनवरी,१९६५, गाजीपुर (उत्तर –प्रदेश) उच्च शिक्षा : BHU और JNU से आलोचना : छायावादयुगीन साहित्यिक वाद – विवाद, हिंदी नवरत्न, चेखवअनुवाद : Philosophy of Education by...
भारत जैसे उपनिवेश रहे देशों की आधुनिक सभ्यता अनूदित सभ्यता है. अनुवाद के लिए चुनाव और उसकी प्रस्तुतीकरण के कई पाठ हैं. भारत में आधुनिकता और अनुवाद सहोदर हैं. ईस्ट...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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