आलोचना

केरल में सामाजिक आंदोलन और दलित साहित्य : बजरंग बिहारी तिवारी

नवारुण प्रकाशनसी- 303 जनसत्ता अपार्टमेंट्स सेक्टर -9गाज़ियाबाद बजरंग बिहारी तिवारी आलोचना में शोध के महत्व को समझने वाले आलोचकों में हैं. स्रोतों की तलाश और विवेकपूर्ण ढंग से उनका उपयोग उनकी...

कबीर: साखी आंखी ज्ञान की : सदानंद शाही

कबीर: साखी आंखी ज्ञान की : सदानंद शाही

कबीर हिंदी साहित्य के अध्यात्म हैं. उनको पढ़ना, सुनना, गुनना मनुष्यता को औदात्य प्रदान करता है. वे किसी के नहीं हैं और इसीलिए सबके हैं. गांधी की तरह. मनुष्य जब...

उपन्यास की वैचारिक सत्ता : आशुतोष भारद्वाज

कवि, रंग-समीक्षक, अनुवादक और संपादक नेमिचन्द्र जैन (१६ अगस्त-१९१९ : २४ मार्च २००५) का यह शती वर्ष है जिसके अंतर्गत उपन्यास, कविता, रंगमंच, संस्कृति, स्मृति-व्याख्यान आदि अनेक समारोह हो रहे...

पितृ-वध : आशुतोष भारद्वाज

(sculpture by great ketelaars)पुत्र एक समय के बाद पिता बन जाता है. क्या वह पिता को अपदस्त करके पिता बनता है ? सत्ता के लिए पुत्र द्वारा पिता का वध...

सावित्रीबाई फुले की कविताई : बजरंग बिहारी तिवारी

महान सुधारक सावित्रीबाई फुले कवयित्री भी थीं. उनके मराठी में दो संग्रह प्रकाशित हुए- ‘काव्यफुले’ (१८५४) तथा ‘बावन्नकशी सुबोधरत्नाकर’ (१८९१).‘क्रांतिज्योति’ सावित्रीबाई फुले की कविताएँ औपनिवेशिक भारत में  समाजिक-धार्मिक क्रान्ति की...

उपन्यास के भारत की स्त्री (चार) : आशुतोष भारद्वाज

(Amrita Shergil : Self-portrait)‘उपन्यास के भारत की स्त्री’ के अंतर्गत अब प्रस्तुत है समापन क़िस्त ‘स्त्री का एकांत: अपूर्णता का विधान’. इससे पहले आपने पढ़ा है -(एक) ‘आरंभिका : हसरतें और...

उपन्यास के भारत की स्त्री (तीन) : आशुतोष भारद्वाज

(by DianeFeissel voilee)मुहम्मद हादी रुसवा ने ‘उमराव जान अदा’ उपन्यास में तवायफ उमराव की कथा कह दी, कम लोग जानते हैं रुसवा के दूसरे उपन्यास ‘जुनून-ए-इंतजार’ (१८९९) में इसी उमराव...

उपन्यास के भारत की स्त्री (दो) : आशुतोष भारद्वाज

(by Annem Zaidi)उपन्यासों के उदय को राष्ट्र-राज्यों की निर्मिति से जोड़ कर देखा जाता है. ‘वंदे मातरम्’ उपन्यास की ही देन है. आशुतोष भारद्वाज भारत के प्रारम्भिक उपन्यासों में स्त्री...

उपन्यास के भारत की स्त्री (एक) : आशुतोष भारद्वाज

( by Rabindranath Tagor)उपन्यासों को आधुनिक युग का महाकाव्य कहा जाता है. आधुनिकता, जनतंत्र और राष्ट्र-राज्यों के उदय से उनका गहरा नाता है, स्त्रियों की सामजिक गतिशीलता के बगैर उपन्यास संभव...

दलित साहित्य – २०१८ : बजरंग बिहारी तिवारी

हिंदी का दलित साहित्य अब कलमी पौधा न होकर एक भरा पूरा वृक्ष है. सिर्फ आत्मकथाएं नहीं, उपन्यास, कहानी, कविता, अनुवाद आलोचना सभी क्षेत्रों में आत्मविश्वास और परिपक्वता दिखती है....

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