सरमद और कृष्ण कल्पित की कविता : शंभु गुप्त
(Sarmad Shahid : painting by Sadequain)‘मंसूर की ख़ता न थी साकी ने सब कियाइतनी कड़ी पिला दी कि दीवाना कर दिया.’ दीवाने चुनौती पेश करते रहते हैं, कभी मंसूर की...
(Sarmad Shahid : painting by Sadequain)‘मंसूर की ख़ता न थी साकी ने सब कियाइतनी कड़ी पिला दी कि दीवाना कर दिया.’ दीवाने चुनौती पेश करते रहते हैं, कभी मंसूर की...
समालोचन में प्रकाशित इधर पांच कवियों में- लाल्टू पंजाब से अधिक बंगाल के हैं, हैदराबाद में रहते हैं. रंजना अरगडे मराठी हैं,गुजरात में वर्षों रहने के बाद अब भोपाल में रह...
कोरोना समय में मजदूरों को यह जो जगह-जगह से खदेड़ा गया जिसे पलायन जैसे नरम शब्द से ढँक दिया गया है, मनुष्य इतिहास की बड़ी त्रासदी है. दुनिया वैसी ही...
कविता सृजन के साथ स्मृतियों को सहेजती है वह शब्दों को संरक्षित भी करती है. शब्द जिनसे होकर हम संस्कृति तक पहुंचते हैं. कविता के लिए \'दातुली\' केवल \'हंसिया\' भर नहीं है...
कथ्य अपना शिल्प तलाश लेता है, जैसा समय है और जिन नुकीले संकटों से हम जूझ रहें हैं, उन्हें व्यक्त करने के लिए कविता-कथा की प्रदत्त शैली में बड़े तोड़-फोड़...
रंजना अरगडे का कवि शमशेरबहादुर सिंह पर आलोचनात्मक कार्य महत्वपूर्ण माना जाता है. इधर वे सृजनात्मक लेखन की तरफ उन्मुख हुई हैं. ‘खिड़कियाँ, झरोखे और लड़कियाँ’ उनकी लम्बी कविता है...
प्रमोद जयपुर में रहते हैं. वे बच्चों के लिए भी लिखते हैं. उनकी लिखी बच्चों की कहानियों की कुछ किताबें बच्चों के लिए काम करने वाली गैर लाभकारी संस्था \'रूम टू...
वरिष्ठ कवि लीलाधर मंडलोई इधर आप्रवासी कविताओं पर कार्य कर रहें हैं. उन्होंने विश्व के कई कवियों का हिंदी में अनुवाद किया है. चीन की अमेरिका में रहने वाली कवयित्री...
कवि यतीश कुमार ने इधर ध्यान खींचा है, कविता के शिल्प के प्रति सतर्क हैं. लगातार प्रयोग कर रहें हैं और अपने को मांज भी रहें हैं. कथ्य अपने जीवन...
(पिकासो)वरिष्ठ कवि विजय कुमार की लम्बी कविता ‘तालाबंदी में किसी अज्ञात की खोज’ इस समय का मार्मिक, तीक्ष्ण, बेधक आख्यान है. यह समय-संकट अस्तित्व का ही नहीं नैतिकता का भी...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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