बटरोही : हम तीन थोकदार (समापन क़िस्त)
वरिष्ठ कथाकार लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’ ने २५ अप्रैल २०२० को अपना ७५ वां जन्म दिन मनाते हुए यह सोचा कि क्यों न एक ऐसा वृत्तांत रचा जाए जो जितनी...
वरिष्ठ कथाकार लक्ष्मण सिंह बिष्ट ‘बटरोही’ ने २५ अप्रैल २०२० को अपना ७५ वां जन्म दिन मनाते हुए यह सोचा कि क्यों न एक ऐसा वृत्तांत रचा जाए जो जितनी...
सुभाष गाताडे राजनीतिक और सामाजिक विषयों पर लिखते हैं. माँ पर लिखा यह स्मृति-आलेख मार्मिक है और भाषा भी तदनुसार संवेदनशील है. जिसे हम साधारण का सौन्दर्य कहते हैं उसकी...
ज़ाहिर है जयशंकर प्रसाद (३० जनवरी,१८९०- १४ जनवरी,१९३७) ने उसके बाद भी अपनी आत्मकथा नहीं लिखी. हाँ उनके विषय में उनके मित्रों ने बहुत कुछ लिखा है. उनके निधन के...
सुभाष गाताडे हिंदी और मराठी के जाने माने लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. समालोचन के लिए इधर अपने जीवन-प्रसंगों पर लिख रहें हैं. उनके आत्म का पहला हिस्सा ‘मैं भी...
उत्तराखंड की संस्कृति, समाज और साहित्य पर आधारित वरिष्ठ कथाकार बटरोही का स्तम्भ ‘हम तीन थोकदार’ आप समालोचन पर पढ़ रहे हैं. इस बीच महामारी कोरोना की चपेट में आकर...
अनंत ब्रह्मांड में पृथ्वी पर निवास करने वाला मनुष्य अपनी सोच और संवेदना की सीमा का असीमित विस्तार कर सकता है. लेकिन आज वह सिमट कर ख़ुद मैं क़ैद हो...
सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर लिखने वाले सुपरिचित लेखक, अनुवादक सुभाष गाताडे हिंदी, अंग्रेजी के साथ-साथ अपनी मातृभाषा मराठी में भी लिखते हैं. यह ‘आत्म’ अंश उनके जीवन के कुछ ऐसे प्रसंगों...
हिंदी के वरिष्ठ कथाकार बटरोही के ‘तीन थोकदार’ संस्कृति, राजनीति, साहित्य और समाज के अलग-अलग क्षेत्रों की यात्रा करते हुए अपने इस दसवें हिस्से में प्रसिद्ध शिकारी जिम कॉर्बेट तक...
हिंदी के वरिष्ठ कथाकार बटरोही के ‘हम तीन थोकदार’ की नौवीं क़िस्त प्रसिद्ध लेखिका शिवानी और उनके कथा-संसार के इर्दगिर्द है. हिंदी साहित्य को बड़े पाठक वर्ग से जोड़ने में...
शैलेश मटियानी बीहड़ अनुभव के कथाकार थे,ख़ासकर पहाड़ के दुर्गम और अलक्षित जीवन और संवेदना के. आंचलिकता में वह रेणु के समानांतर थे. लेखन भी उनका विस्तृत था. उनका खुद...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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