मैं भी अश्वत्थामा ? : सुभाष गाताडे
सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर लिखने वाले सुपरिचित लेखक, अनुवादक सुभाष गाताडे हिंदी, अंग्रेजी के साथ-साथ अपनी मातृभाषा मराठी में भी लिखते हैं. यह ‘आत्म’ अंश उनके जीवन के कुछ ऐसे प्रसंगों...
सामाजिक-राजनीतिक विषयों पर लिखने वाले सुपरिचित लेखक, अनुवादक सुभाष गाताडे हिंदी, अंग्रेजी के साथ-साथ अपनी मातृभाषा मराठी में भी लिखते हैं. यह ‘आत्म’ अंश उनके जीवन के कुछ ऐसे प्रसंगों...
हिंदी के वरिष्ठ कथाकार बटरोही के ‘तीन थोकदार’ संस्कृति, राजनीति, साहित्य और समाज के अलग-अलग क्षेत्रों की यात्रा करते हुए अपने इस दसवें हिस्से में प्रसिद्ध शिकारी जिम कॉर्बेट तक...
हिंदी के वरिष्ठ कथाकार बटरोही के ‘हम तीन थोकदार’ की नौवीं क़िस्त प्रसिद्ध लेखिका शिवानी और उनके कथा-संसार के इर्दगिर्द है. हिंदी साहित्य को बड़े पाठक वर्ग से जोड़ने में...
शैलेश मटियानी बीहड़ अनुभव के कथाकार थे,ख़ासकर पहाड़ के दुर्गम और अलक्षित जीवन और संवेदना के. आंचलिकता में वह रेणु के समानांतर थे. लेखन भी उनका विस्तृत था. उनका खुद...
हम तीन थोकदार का एक थोकदार ख़ुद इस आख्यान का लेखक है और वह किस तरह से पहाड़ के एक गाँव से निकलकर नैनीताल पहुंचता है, मुक्तिबोध से प्रभावित होता...
हिंदी के वरिष्ठ कथाकार-उपन्यासकार बटरोही इधर ‘हम तीन थोकदार’ शीर्षक से आख्यान लिख रहें हैं जिसे आप समालोचन पर क्रमश: पढ़ रहें हैं. इस आत्म और अस्मितामूलक श्रृंखला की इस...
वरिष्ठ कथाकार बटरोही इधर ‘हम तीन थोकदार’ शीर्षक से अपने समय और इसमें शामिल उस भूत को लिख रहें हैं जिसके बिना किसी का कोई वर्तमान नहीं होता. यह कथा...
वरिष्ठ कथाकार बटरोही के आख्यान ‘हम तीन थोकदार’ की यह चौथी क़िस्त थोकदारों के पुरखों की प्रचलित किम्वदंतियों, लोक-विश्वासों, इतिहास तथा गाथाओं में प्रवेश कर गयी है. बटरोही की कथा...
वरिष्ठ कथाकार बटरोही के आख्यान ‘हम तीन थोकदार’ की यह तीसरी क़िस्त है. लॉक डाउन से होते हुए बचपन, आस पड़ोस और फिर तीन थोकेदार जो अब धीरे-धीरे अपना व्यक्तित्व...
हिंदी के वरिष्ठ कथाकार लक्ष्मण सिंह बिष्ट \'बटरोही\' ने इसी २५ अप्रैल को अपना ७५ वां जन्म दिन मनाया है, उन्हें अब यह लगने लगा है कि जिस कहानी को...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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