बारिश के देवता: प्रत्यक्षा
बारिश के देवता प्रत्यक्षा लगातार बारिश हो रही थी. झमझम. फोन की घँटी बेतहाशा बजती है. हलो हलो ? हलो डॉक्यूमेंटस नहीं मिले.. कोई उधर से चीख रहा है...
बारिश के देवता प्रत्यक्षा लगातार बारिश हो रही थी. झमझम. फोन की घँटी बेतहाशा बजती है. हलो हलो ? हलो डॉक्यूमेंटस नहीं मिले.. कोई उधर से चीख रहा है...
कृति : Egon Schieleराकेश बिहारी आलोचक के साथ साथ हिंदी के समर्थ कथाकार भी हैं. उनके दो कहानी संग्रह- ‘वह सपने बेचता था’ तथा ‘गौरतलब कहानियाँ’ प्रकाशित हैं. प्रस्तुत कहानी...
(Suttee by James Atkinson, 1831)समकालीन हिंदी कथा-साहित्य पर आधारित स्तम्भ, ‘भूमंडलोत्तर कहानी’ के अंतर्गत आशुतोष की कहानी – ‘अगिन असनान’ की विवेचना आप आज पढ़ेंगे. यह कहानी ‘सती’ के बहाने समाज...
कथाकार किरण सिंह की कहानी ‘संझा’ दो लिंगों में विभक्त समाज में उभय लिंग (ट्रांसजेंडर) की त्रासद उपस्थिति की विडम्बनात्मक कथा है. इसे ‘रमाकांत स्मृति पुरस्कार’ और प्रथम ‘हंस कथा...
अज्ञेय सम्पूर्ण रचनाकार थे. कवि, उपन्यासकार, कहानीकार, संपादक, पत्रकार, गद्य लेखक आदि, अपनी बहुज्ञता और विविधता में जयशंकर प्रसाद की याद दिलाते हुए. उनकी एक प्रसिद्ध कहानी है गैंग्रीन जो...
कथाकार तरुण भटनागर के शीघ्र प्रकाश्य उपन्यास ‘कफ़स’ में एक चरित्र है- अदीब. जब वह पैदा हुआ तब उसके शरीर में औरत और आदमी दोनों के जननांग थे. उसके पिता...
युवा कथा आलोचक राकेश बिहारी के स्तम्भ ‘भूमंडलोत्तर कहानी विमर्श’ के अंतर्गत आपने- 1. ‘लापता नत्थू उर्फ दुनिया न माने’ (रवि बुले)2. ‘शिफ्ट+ कंट्रोल+आल्ट = डिलीट’...
कथा-सम्राट प्रेमचंद की कालजयी कहानी ‘कफन’ उनकी अंतिम कहानी भी है. यह मूल रूप में उर्दू में लिखी गयी थी. ‘जामिया मिल्लिया इस्लामिया’की पत्रिका ‘जामिया’के दिसम्बर, १९३५ के अंक में...
प्रज्ञासाहित्य का मूल कार्य यह है कि वह तमाम अच्छे–बुरे बदलावों के बीच और उनके तीक्ष्ण–तिक्त प्रभावों के मध्य आम आदमी के पास आता-जाता रहता है. उन्हें देखता, परखता, महसूस...
हंस के संपादक और कथाकार राजेन्द्र यादव की स्मृति में उनके जन्म दिन (२८ अगस्त) के अवसर पर \"राजेन्द्र यादव हंस कथा-सम्मान\" हर वर्ष हंस में ही प्रकाशित कहानियों में...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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