गूँगी रुलाई का कोरस: रणेन्द्र
रणेंद्र के तीसरे अप्रकाशित उपन्यास ‘गूँगी रुलाई का कोरस’ के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं. ‘ग्लोबल गाँव के देवता’ और ‘गायब होता देश’ से चर्चित, प्रशंसित रणेंद्र के इस तीसरे...
रणेंद्र के तीसरे अप्रकाशित उपन्यास ‘गूँगी रुलाई का कोरस’ के कुछ अंश यहाँ प्रस्तुत हैं. ‘ग्लोबल गाँव के देवता’ और ‘गायब होता देश’ से चर्चित, प्रशंसित रणेंद्र के इस तीसरे...
ख़रीद फ़रोख़्त का जो यह ऑन लाइन व्यवसाय है, जो हर जगह पसरा है यहाँ तक कि आप दिवंगत के लिए शोक संदेश लिख रहे थे और बगल में किसी...
प्रचण्ड प्रवीर जो भी लिखते हैं उसमें दर्शन की सुदृढ़ भावभूमि अवश्य होती है वैसे वह पेशे से केमिकल इंजीनियर हैं. उनका एक उपन्यास, हिंदी और अंग्रेजी में एक एक...
किसी भी भारतीय लेखक के लिए पांच दशकों का सक्रिय रचनात्मक जीवन आसन नहीं होता, ख़ासकर हिंदी का कथाकार जो आजीविका के लिए तमाम दूसरे कर्मों पर निर्भर रहता है....
ज़ोम्बी चलता फिरता मृत मानव शरीर है जिसे तांत्रिक प्रक्रियाओं द्वारा जीवित किया जाता है पर वह शव की ही तरह व्यवहार करता है उसमें स्वतंत्र सोच या विवेक का...
नरेश गोस्वामी की कहानियाँ आप समालोचन पर पढ़ते आ रहें हैं, आम नागरिक की लाचारी और डर को जिस तरह से वह लगातार लिख रहे हैं, वैसा अब तक देखने...
एक सच्ची कहानी किस तरह एक राजनीतिक मंतव्य भी है इसे इस कहानी को पढ़ते हुए आप महसूस कर सकते हैं. नरेश गोस्वामी डॉक्टर की सलाह पर सुबह की सैर...
‘गुलमेहंदी की झाड़ियाँ’, ‘भूगोल के दरवाजे पर’, ‘जंगल में दर्पण’ (कहानी संग्रह), लौटती नहीं जो हंसी (उपन्यास) आदि के लेखक तरुण भटनागर आदिवासी पृष्ठभूमि पर लिखी कहानियों के लिए जाने...
अकादमिक दुनिया को आधार बनाकर हिंदी में कम ही कहानियाँ लिखी गयीं हैं उनमें से कथाकार देवेन्द्र की कहानी ‘नालंदा पर गिद्ध’ अविस्मरणीय है. ज्ञान के कथित पीठ महीन कूटनीति...
पत्रकार और लेखिका अणु शक्ति सिंह की यह कहानी आकार में छोटी भले ही हो, असर गहरा करती है. अकेलेपन और उदासी की सफ़ेद रौशनी से यह कहानी स्त्री को...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2023 समालोचन | powered by zwantum