सीरियाई गृहयुद्ध की कहानियाँ : प्रो. लोई अली ख़लील : शहादत
युद्ध चाहे गृह ही क्यों न हो, सब कुछ हमेशा के लिए बदल देता है. उसकी आग वर्षों तक जलती रहती है, धुआँ उठता रहता है, और कभी समृद्ध रहे...
युद्ध चाहे गृह ही क्यों न हो, सब कुछ हमेशा के लिए बदल देता है. उसकी आग वर्षों तक जलती रहती है, धुआँ उठता रहता है, और कभी समृद्ध रहे...
अभिनेता, निर्देशक, सिने-विद्, लेखक और अनुवादक 79 वर्षीय अरुण खोपकर का जानवरों पर लिखा गया यह अंश अद्भुत और अनूठा है. पशुओं पर लेखन वैसे भी हिंदी और अन्य भारतीय...
किसी देश और उसके समाज का आईना देखना हो तो उर्दू के मशहूर कथाकार असद मोहम्मद ख़ान की कहानी ‘संजीदा डिटेक्टिव-स्टोरी’ अवश्य पढ़नी चाहिए. 1972 में प्रकाशित यह कहानी पाकिस्तान...
जापान में दाजाया ओसामू (1909–1948) की कब्र पर हर वर्ष 19 जून को लोग एकत्र होते हैं. उत्सव मनाते हैं. और शोक व्यक्त करते हैं. यह उनके जन्म और आत्महत्या...
वरिष्ठ लेखक और अनुवादक जयप्रकाश सावंत ने स्पेनिश भाषा के प्रसिद्ध रचनाकार बोर्हेस (1899–1986) के सान्निध्य और साहित्य पर कुछ इस तरह से लिखा है कि आधुनिक साहित्य का क्लासिक...
आज़ादी के बाद इस महाक्षेत्र में तानाशाही और धार्मिक कट्टरता के विरोध के कारण फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, अहमद फ़राज़ और तसलीमा नसरीन जैसे लेखकों को निर्वासन में रहना पड़ा. तसलीमा...
2020 के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित लुइज़ ग्लुक (1943-2023) की इन कविताओं में समय, स्मृति और अस्तित्व की जटिलताओं की गहनता है. बर्फ़, नदी, पेड़, समुद्र जैसे प्रतीक जीवन और...
नॉर्वेजियन लेखक शेल आस्किल्ड्सन (Kjell Askildsen, 1929–2021) की कहानी ‘A Sudden Liberating Thought’ का प्रकाशन एक घटना है. इसे न्यूनतम अस्तित्ववाद (Minimalist Existentialism) की प्रतिनिधि रचना माना जाता है. यह...
‘एहतलाम’ को हिंदी में ‘स्वप्नदोष’ कहा जाता है. लगभग हर मर्द इस दौर से गुज़रता ही है. लेकिन न जाने इसे ‘दोष’ क्यों कहा जाता है? समकालीन हिंदुस्तानी उर्दू कहानियाँ...
आग़ा शाहिद अली (4 फ़रवरी, 1949 – 8 दिसम्बर 2001) के नौ कविता संग्रह तथा आलोचना की एक पुस्तक- ‘T.S. Eliot as Editor’ प्रकाशित है. उन्होंने फैज़ की कविताओं का...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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