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बहसतलब (८ ) आलोचना का संकट : कितना वास्तविक :: गंगा सहाय मीणा

  आलोचना का संकट : कितना वास्‍तविक  गंगा सहाय मीणायुवा आलोचक और टिप्पणीकार गंगा सहाय मीणा ने आलोचना के संकट पर बहस को आगे बढाते हुए  प्रारम्भिक आलोचना के सरोकारों...

बहस तलब : रचना और आलोचना का सवाल : ७ सुशील कृष्ण गोरे

रचना और आलोचना पर बहसतलब के अंतर्गत सुशील कृष्ण गोरे का लेख. सुशील एक अनुवादक के साथ साथ  समकालीन विमर्श में गहरी रूचि रखने वाले समीक्षक भी हैं. Text और...

कथा – गाथा : अथ श्री संकल्प कथा : विमलेश त्रिपाठी

विमलेश त्रिपाठी : ७ अप्रैल १९७७, बक्सर, (बिहार)प्रेसिडेंसी कॉलेज, कोलकाता से स्नातकोत्तर, कलकत्ता विश्वविद्यालय में शोधरतदेश की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में कविता, कहानी, समीक्षा, लेख  और अनुवाद आदि  हम...

सहजि सहजि गुन रमैं : रंजना जायसवाल

क्यों लिखती हूँ मैं              रंजना जायसवाल हर रचनाकार की एक आकांक्षा होती है. सामान्य लोगों की तरह दुनियावी आकांक्षा नहीं. वह आकांक्षा है -...

सहजि सहजि गुन रमैं : सुमन केशरी

सुमन केशरी के पहले कविता संग्रह ‘याज्ञवल्क्य से बहस’ से हिंदी कविता में मिथकों की पुनर्वापसी हुई है. मिथक जातीय चेतना के भरे हुए ऐसे सन्दूक होते हैं जिन्हें जब...

कथा- गाथा :: सईद अय्यूब

पेंटिग : Farida Batoolयुवा कथाकार सईद अय्यूब के पास कहानी की ज़मीन है, कहने का अपना अंदाज़ और अन्त तक दिलचस्पी बनाए रखने का हुनर भी है. गरज कि एक...

सहजि सहजि गुन रमैं :: राकेश श्रीमाल

मुंबई में अपने चित्रकार मित्रों के साथ  राकेश श्रीमाल (left)बुखार के एकांत सेराकेश श्रीमालपिछले समूचे वर्ष मेरी तबियत एकाधिक बार असहज हुई. बुखार से नहीं, अन्‍य कारणों से. मैं बुखार...

सहजि सहजि गुन रमैं : निर्मला पुतुल

निर्मला पुतुल ख्यातनाम हैं. निर्मला के काव्य संसार में आदिवासी स्त्री अस्मिता के सरोकार नगाड़े की तरह बजते हैं. यह ऐसी पुकार है जिसने हिंदी कविता का भूगोल बदल दिया...

बहसतलब : रचना और आलोचना का सवाल :५ : गणेश पाण्डेय

“आज हिंदी की मार्क्सवादी आलोचना का विकास न अतीत के गुणगान से संभव है न चालीस के दशक के स्तालिनवादी मान्यताओं के पुनर्कथन और पुनरावृति से. जरूरत है समकालीन सामाजिक...

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