रंग-राग : मंटो जल बिच मीन पियासी रे : यादवेन्द्र
सआदत हसन मन्टो (११ मई १९१२- १९५५) उर्दू ही नहीं विश्व के कुछ बड़े कथाकारों में से एक हैं, बटवारे के बाद पाकिस्तान चले गये, जहाँ मुफलिसी और गुमनामी में...
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सआदत हसन मन्टो (११ मई १९१२- १९५५) उर्दू ही नहीं विश्व के कुछ बड़े कथाकारों में से एक हैं, बटवारे के बाद पाकिस्तान चले गये, जहाँ मुफलिसी और गुमनामी में...
हिंदी कविता की दुनिया में बिलकुल नयी पीढ़ी दस्तक दे रही है. कुछ दिनों पहले आपने समालोचन पर ही अस्मिता पाठक की कविताएँ उत्साह से पढ़ी थीं. आज १५ वर्षीय...
बोधि प्रकाशन की कवि ‘दीपक अरोड़ा स्मृति पांडुलिपि प्रकाशन योजना’ के अंतर्गत इस वर्ष के चयनित कवि हैं, अखिलेश श्रीवास्तव और सुदर्शन शर्मा. अखिलेश की कविताएँ आप समालोचन पर पढ़...
हिंदी–दिवस की शुभकामनाएं. हिंदी को जन की आकांक्षाओं, उम्मीदों और अनुभवों की संवाहिका बनने के साथ ही, तकनीकी रूप सक्षम भी बनना है. इस अवसर पर समालोचन विगत वर्षों से...
मुक्तिबोध को स्मरण करते हुए आपने आशुतोष भारद्वाज का आलेख ‘अनुपस्थिति के साये’ पढ़ा. इस क्रम में अध्येता अमरेन्द्र कुमार शर्मा का यह आलेख आपके सम्मुख प्रस्तुत है. मुक्तिबोध की...
प्रचण्ड प्रवीर की कहानियों में अक्सर कथा के साथ कुछ ‘बुद्धि-विलास’ के सूत्र भी रहते हैं. वह अपनी कथा की जमीन को पुष्ट करने के लिए दर्शन या प्राचीन साहित्य से...
हिंदी के महत्वपूर्ण कथाकार उदय प्रकाश की चर्चित कथा-कृति ‘मोहनदास’ में डर के इतने रंग शिप्रा ने खोज़ निकाले हैं कि इन्हें पढ़ते हुए भय लगता है. एक सीधे, सच्चे...
(by david-lambertino)साहित्य में शामिल होने का रास्ता यह है कि प्रसिद्ध पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ छपें, छपती रहें, महत्वपूर्ण किसी प्रकाशक से आपका संग्रह निकले. विमोचन आदि हो, समीक्षाएं छपें...
भारतरत्न भार्गव का दूसरा कविता संग्रह ‘घिसी चप्पल की कील’ संभावना प्रकाशन से इसी वर्ष (२०१८) प्रकाशित हुआ है. उनका पहला संग्रह \'दृश्यों की धार\' १९८६ में प्रकाशित हुआ था. नए संग्रह...
सीरिया के कवि, पत्रकार फराज अहमद बेरकदर (जन्म: १९५१) को एकाधिकारवादी सत्ता के विरोधी होने के आरोप में १९८७ में गिरफ्तार कर लिया गया, लम्बी यातना के बाद १९९३ में कोर्ट...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
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