लोकप्रिय संस्कृति का नफ़रती समय
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हार्पर कॉलिन्स प्रकाशन ने अंग्रेजी में एक किताब ‘एच-पॉप’ प्रकाशित की है, जो हिंदी क्षेत्र में सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर विद्यमान कुछ लोकप्रिय कलाकारों और उनकी प्रस्तुति की कई परतों की पड़ताल करती है. इसके लेखक हैं, अनेक पुरस्कारों से सम्मानित स्वतंत्र पत्रकार कुणाल पुरोहित. इन्होंने व्यापक शोध करते हुए कुछ हिन्दी के ‘पॉप सितारों’ के बारे में विस्तृत जानकारी रोचक परंतु तथ्यात्मक कथा शैली में प्रस्तुत की है. वे अपने पाठकों के सामने हिंदुत्व से लबालब ‘पॉप संस्कृति’ के खतरनाक परिणामों को उदाहरणों के साथ प्रस्तुत करते हैं.
किताब के पिछले पन्ने पर लिखा है,
“क्या कोई गाना किसी की जान ले सकता है?
क्या कोई कविता दंगा करा सकती है?
या क्या कोई किताब लोगों को आपस में बाँट सकती है?
मुख्यधारा के शहरी मीडिया की आंखों से परे, देश के धूल भरे गांवों में लोकप्रिय संस्कृति का एक ‘ब्रांड’ इंटरनेट और उसके बाहर लाखों लोगों की कल्पनाओं को चुपचाप निगलता रहा है. ज़हरीले शब्दों वाले आकर्षक गीतों से लेकर कवि सम्मेलनों में प्रस्तुत कविताओं तक, ‘ब्रेकिंग न्यूज़’ के ब्रांडेड चैनलों से लेकर सोशल मीडिया पर प्रभावशाली लोगों द्वारा प्रभावित किए जाने तक, ऐतिहासिक घटनाओं को तोड़-मरोड़ने से लेकर लगातार झूठ दोहराने वाली किताबों तक, ‘हिंदुत्व पॉप’ या ‘एच-पॉप’ हिंदुत्व की जड़ों को कट्टर बनाकर उसे सामाजिक स्वीकार्यता दिलवा रहा है. बहुत चतुराई के साथ हिंदू धर्म को एक लोकप्रिय संस्कृति में तब्दील कर यह ’एच-पॉप’ ‘इस्लामोफोबिया’ को आसानी से फैला रहा है. यह चुपचाप अपने आलोचकों को बदनाम करने और अल्पसंख्यकों को फँसाने का जाल रच रहा है.’’
(किताब के पिछले पृष्ठ से)
कुणाल पुरोहित आगे लिखते हैं,
“एच-पॉप इतना लोकप्रिय क्यों है और किसके कारण? इसके ‘सितारे’ और दर्शक कौन हैं? इसे बनाने और प्रसारित करने में पैसा, प्रयास और संसाधन कौन लगा रहा है? इससे बीजेपी और प्रधानमंत्री की लोकप्रियता पर क्या असर पड़ रहा है? इसके अलावा वह कैसा भारत बनाना चाहता है?’’
इन्हीं सवालों का जवाब देने के लिए कुणाल पुरोहित ने देश के अलग-अलग ’एच-पॉप स्टार्स’ से मुलाकात की. उनके साथ खुलकर बातचीत की.
“मैंने उनके काम को पढ़ा है, देखा है, अध्ययन किया है और अपनी पुस्तक में मैंने दिलचस्प और जानकारीपूर्ण तरीके से एक साहसिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है. इन्हें हम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर देख और सुन सकते हैं. ये सभी लेखक, कवि, गायक, प्रकाशक, वक्ता, मार्गदर्शक, जो हिंदुत्व के प्रति बहुत भावुक हैं और साथ ही इसके बाजार-मूल्य से भी पूरी तरह परिचित हैं, विभिन्न भूमिकाओं में अपना सब कुछ झोंक रहे हैं, दिन-रात हिंदुत्व के विचारों को बो रहे हैं और उसकी फसल काट रहे हैं.”
किताब को तीन अध्यायों में बांटा गया है. ये अध्याय मुख्य रूप से तीन कलाकारों की रचनात्मक प्रस्तुतियों की वर्णनात्मक और विश्लेषणात्मक जानकारी उदाहरण सहित प्रदान करते हैं.
पहला भाग है, मारक बीट्स, ज़हर बुझे शब्द: कवि सिंह; दूसरा भाग है, हथियार के रूप में कविता : कमल आग्नेय और तीसरा भाग है, सांस्कृतिक युद्ध का बिगुल फूँकने वाला : संदीप देव.
इसके अलावा अंत में समूची जानकारी के संदर्भ और उनके लिंक दिए गए हैं.
इन तीन कलाकारों को किसने और कैसे प्रभावित किया? अपनी लोकप्रियता बढ़ाकर और अपने प्रशंसकों पर नजर रखते हुए लगातार नए गाने, कविताएं, किताबें, गायन और यूट्यूब पर वीडियो अपलोड करके वे किस तरह काम कर रहे हैं, इसका विस्तृत वर्णन किया है. इन कलाकारों को अपने विचारों, शब्दों, आवाज, भावनाओं पर पूरा भरोसा है. किसी भी तर्क, तथ्य, विद्वतापूर्ण शोध को नजरंदाज करना इन पॉप स्टार्स की सबसे बड़ी विशेषता है. उनके लेखन और प्रस्तुति का आधार ‘किसी’ से भी ‘जब’ और ‘जो कुछ’ भी सुना हुआ है या जो भी उनका ‘प्रत्यक्ष अनुभव’ है, उसी पर आधारित होता है इसलिए उसमें वस्तुनिष्ठता, तथ्यात्मकता और तर्क की कोई गुंजाइश नहीं होती.
इन ‘स्टार्स’ की एक और विशेषता यह है कि उनके कुछ दृढ़ विश्वास होते हैं और कुछ तयशुदा दुश्मन भी होते हैं इसलिए जब कोई घटना घटती है तो वे उन दुश्मनों पर हमला बोल देते हैं. उन्हें घटना के कार्य-कारण संबंधों से कोई लेना-देना नहीं होता.
कुणाल पुरोहित ने आम लोगों पर सोशल मीडिया के गहरे प्रभाव का भी सार प्रस्तुत किया है. वे लिखते हैं कि देश में इंटरनेट और मोबाइल व्यापक रूप से उपलब्ध हो जाने के बाद जनसंचार की दिशाएँ बहुत व्यापक और खुली हो गईं हैं. पुरोहित के मुताबिक, भारत में मोबाइल पर म्यूज़िक वीडियो सबसे ज्यादा प्रभावी हैं. भारत में मोबाइल इंटरनेट की कीमतें दुनिया में सबसे सस्ती हैं, इसलिए मोबाइल स्क्रीन पर ऑनलाइन वीडियो की खपत भी पूरे देश में सबसे ज्यादा है. 2018 में हमारे देश में 266 मिलियन ऑनलाइन वीडियो दर्शक थे, जिनकी संख्या 2020 में 350 मिलियन हो गई. यह बढ़ोत्तरी चीन और इंडोनेशिया की तुलना में लगभग दोगुनी है. डेटा से पता चलता है कि प्रत्येक व्यक्ति एक स्मार्ट फोन पर औसतन 5 घंटे के समय में एक घंटे से अधिक सिर्फ़ वीडियो देखता है. सस्ती दरों के कारण अधिकांश देशवासी नई सूचनाओं के लिए सर्च इंजन के रूप में यूट्यूब पर ही जाते हैं.
(किंडल संस्करण, पृ.सं.73)
कवि-कमल-संदीप जैसे ‘हिंदुत्ववादी सितारों’ को इस बात का अंदाज़ा इसलिए है क्योंकि वे जानते हैं कि हमारे देश में ज्यादातर लोग किसी भी घटना के बाद नवीनतम जानकारी पाने के लिए यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर (अब एक्स) पर जाते हैं. वे नियमित समाचार या चर्चा देखने और सुनने के बजाय तुरंत अपने पसंदीदा यूट्यूबर या पॉडकास्टर का वीडियो देखना पसंद करते हैं. कुल मिलाकर भारतीय लोग वीडियो सामग्री के लिए लालायित रहते हैं. वे लंबे, जानकारीपूर्ण कार्यक्रमों के बजाय सिर्फ़ ऑनलाइन वीडियो देखकर अपनी राय बनाना चाहते हैं.
(किंडल संस्करण, पृ.सं.74)
पिछले कुछ वर्षों में, लोकप्रिय संस्कृति पर प्रचार का उन्मादी नशीला स्वरूप हावी हो गया है. जब ‘शॉर्टकट’ में मिले हुए विचार, गीत, भाषण, बीट्स और शब्द हमारे कानों और आंखों से लगातार टकराते हुए हमें अपनी मदहोश गिरफ़्त में ले लेते हैं, तब इंसान इंसान नहीं रह जाता, ‘शिकार’ बन जाता है. जब किसी गद्य, पद्य या बीट्स का अनजाने में भी इस ‘शिकार’ की रगों में प्रवेश होता है तो उसके दिल-दिमाग में भड़काने वाले अर्थ और संकेत ‘उन दूसरों’ के प्रति क्रोध, घृणा, संदेह, आक्रोश, असहिष्णुता का तूफान पैदा कर देते हैं. लाखों लोग, जो इस लोकप्रिय संस्कृति का शिकार हो जाते हैं, वे ऐसे व्यवहार करने लगते हैं जैसे कि उन पर कोई भूत सवार हो गया हो! यही लोकप्रिय संस्कृति राजनेताओं के लिए उपजाऊ जमीन तैयार करती है, जिसमें आपसी नफरत और ‘वोट बैंक’ की फसल और विभाजन के बीज बोए जाते हैं. यही तस्वीर हमें देश के कोने-कोने में उभरती हुई दिखाई देती है. कुणाल पुरोहित ने अपनी किताब में ढेरों उदाहरण देकर इस भयावह वास्तविकता की एक तस्वीर उकेरी है.
पुस्तक के अंदर के पन्ने पर मशहूर लेखक रामचन्द्र गुहा ने अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा है,
“हम अब तक यही मानते आए हैं कि कविता और संगीत ऐसी कलाएं हैं, जो मनोरंजन करने के साथ मानव-जीवन को समृद्ध करती हैं, लेकिन कुणाल पुरोहित की यह मौलिक और प्रभावशाली किताब साबित करती है कि इनका इस्तेमाल लोगों के दिलों में नफरत और घृणा पैदा करने के लिए भी किया जा सकता है. जहां तक मेरी जानकारी है, यह पहली मौलिक पुस्तक है, जो हिंदू दक्षिणपंथियों द्वारा लोकप्रिय संस्कृति के दुरुपयोग को उचित जांच और शोध के साथ प्रस्तुत करती है. पुरोहित अनेक कलाकारों के साथ प्रत्यक्ष बातचीत करते हैं और अपनी रिपोर्ट में दिखाते हैं कि कैसे वे अपनी भावनाओं और शब्दों के माध्यम से धार्मिक अल्पसंख्यकों को राक्षसी और अमानवीय बना रहे हैं. यह पुस्तक एक शक्तिशाली, आकर्षक, मौलिक, ज्ञानवर्धक और साहसिक अन्वेषण है जो उन उन्मादी विचारों को प्रकाश में लाती है, जो हमारे सार्वजनिक जीवन में प्रमुख स्थान बना चुके हैं.’’
इसी पेज पर वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई ने लिखा है,
“पॉप संस्कृति हिंदू राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने का एक हथियार बन गई है. कुणाल पुरोहित उस काले सच को सामने लाते हैं, जो लगातार नफरत की मशीन को ईंधन मुहैया करता रहता है. यह पुस्तक उन लोगों को जरूर पढ़नी चाहिए जो धार्मिक-राजनीतिक आंदोलन के डरावने लेकिन वास्तविक सांस्कृतिक आधार के बारे में जानना चाहते हैं. ठोस ज़मीनी रिपोर्टिंग पर आधारित यह आंखें खोल देने वाली किताब पाठक को एक ‘नए’ भारत का दर्शन करवाएगी, जो संगीत, कविता और किताबों द्वारा भी विभाजित हो रहा है.’’
पुस्तक में एक स्थान पर कुणाल पुरोहित लिखते हैं,
“अधिकांश सांप्रदायिक तनावों को अस्थायी ध्यान भटकाने वाला कहकर खारिज कर दिया जाता है, लेकिन ’एच-पॉप’ एक अलग सच्चाई उजागर करता है.”
साम्प्रदायिकता अब एक नियमित और रोजमर्रा की वास्तविकता बन गई है. सात राज्यों में चार साल तक यात्रा करने के बाद कुणाल पुरोहित को पता चला कि हिंदुत्ववादी संगीत, कविता और साहित्य ने इन विचारों को कितना लोकप्रिय और आसान बना दिया है! आम भारतीयों को कितनी आसानी से कट्टर बना दिया है! समाज के ताने-बाने में साम्प्रदायिकता का कितना महीन जाल बुना गया है!
पहला अध्याय
मारक बीट्स, ज़हर बुझे शब्द : कवि सिंह
महीनों के अवलोकन के बाद, कुणाल पुरोहित को एहसास हुआ कि घृणाजन्य अपराध अचानक नहीं होते, बल्कि इसके पीछे ऐसे कई कारक होते हैं, जो धीरे-धीरे विकसित होते हैं. उन्होंने लिखा है, ‘मीडिया में अचानक घटने वाली हिंसा की खबरें देखकर पता नहीं चलता कि हिंसा का ये विस्फोट आखि़र क्यों हुआ हैं! लेकिन ध्यान से देखने पर पता चलता है कि इस तरह के विस्फोट के मूल में धर्म और जाति के बारे में फर्जी खबरों और सामग्री की निरंतर आपूर्ति है. हिंदुत्ववादी पॉप संस्कृति सांप्रदायिकता की आग को जलाए रखने के लिए लगातार सामग्री तैयार करती रहती है.’
(किंडल संस्करण पृष्ठ 14)
नफरत आधारित हिंसा के लिए हमेशा दंगे या नफरत भरे भाषण ही ज़िम्मेदार नहीं होते, बल्कि लगातार प्रसारित होने वाले गानों, कविताओं या किताबों के ज़रिये जानबूझकर खड़े किए गए दुश्मन के प्रति गुस्से और डर से हिंदू कट्टरता को बढ़ावा मिलता है. उन्हीं बातों को बार-बार दोहराया जाता है. अतः धीरे-धीरे बढ़ती इस प्रकार की साम्प्रदायिकता को गंभीरता से लेना होगा. यह समय तेजी से बदलते भारत को समझने का है.
(किंडल संस्करण पृष्ठ 15)
जैसा कि पहले उल्लेख किया गया है, पुस्तक तीन मुख्य भागों में विभाजित है. पहला भाग कवि सिंह के बारे में है, जो एक गायिका और कवयित्री है, जो घातक बीट्स की तर्ज़ पर ज़हरीले शब्दों और विचारों को सतत प्रसारित करती रहती है. यह एक लड़की की कहानी है. महज 25 साल की कवि सिंह ने 2019 में अपनी जिंदगी में पहली बार गाना गाया था. मगर उसके बाद उसके लगभग अस्सी गाने लगातार रिकॉर्ड किए गए और अभी भी यह क्रम जारी है. कवि सिंह की स्थिर आवाज में आत्मविश्वास झलकता है और उसकी आकर्षक पोशाक उसका ट्रेडमार्क है. कुर्ता-पैजामा, नेहरू जैकेट, सिर पर पगड़ी पहने वह अपनी उम्र से कहीं ज़्यादा बड़ी दिखती है. उसे इस बात पर गर्व है कि वह एक मिशन के रूप में यह महान कार्य कर रही है. उन देशवासियों में देशभक्ति जगाने का काम कर रही है, जो अपने पारंपरिक मूल्यों को भूल गए हैं. उसका मानना है कि देश के लिए सबसे बड़ा ख़तरा मुसलमानों की बढ़ती संख्या है. वे अपनी जनसंख्या बढ़ाकर गुप्त रूप से हिंदूओं को मारना चाहते हैं.
कुणाल पुरोहित ने कई दिनों तक कवि और उसके पिता रामकेश से बातचीत की और उनके ’हिंदुत्व’ के सफर के बारे में जाना. दोनों में से किसी को भी कभी नहीं लगता कि उनका यह काम गलत है. वे अपना काम पूरी निष्ठा से कर रहे हैं. इसमें व्यावसायिकता, प्रसिद्धि और धन का केंद्रीय आकर्षण भी शामिल है.
जनवरी 2019 में, पिता रामकेश जीवनपुरवाला ने अचानक लड़की को गुनगुनाते हुए सुना और महसूस किया कि वह एक सफल गायिका बन सकती है. वे स्वयं एक लोकप्रिय हरियाणवी गायक, अभिनेता और निर्देशक थे. उन्होंने कवि का एक गाना स्टूडियो में रिकॉर्ड किया और उसका ऑडियो सुनने के बाद उन्हें स्पष्ट रूप से एहसास हुआ कि ‘ये तो एकदम फिट है’! (किंडल संस्करण पृष्ठ 20) फिर संयोग देखिए,
14 फरवरी 2019 को पुलवामा में विस्फोटक से भरी एक कार ने अर्धसैनिक बलों के काफिले को टक्कर मार दी. 40 जवान शहीद हो गए. इस घटना पर रामकेश के हरियाणवी दोस्त आजाद सिंह खांडा खैरी ने एक कविता लिखी थी. रामकेश ने तुरंत प्रयोग के तौर पर कवि से इस गीत को गवाने का निर्णय लिया. उन्होंने तुरंत करनाल में एक स्टूडियो बुक किया और बाप-बेटी ने मिलकर एक घंटे में गाना रिकॉर्ड कर लिया. कविता इतनी विवादास्पद और ध्रुवीकरण करने वाली थी कि इसका ऑडियो वायरल होते ही यह तुरंत हिट हो गई. इसके बाद रामकेश ने उसी गाने पर कवि का वीडियो बनाकर यूट्यूब पर जारी किया, वह भी काफी लोकप्रिय हुआ. पुलवामा के सुरक्षा मुद्दों से आंखें मूंद कर, 40 जवानों की मौत का जिम्मेदार कौन, आदि जैसे सवालों को दबाकर घटना का पूरा ध्यान कश्मीरी मुसलमानों पर केंद्रित कर दिया गया था. फलस्वरूप कई राज्यों में मुसलमानों के खिलाफ गुस्सा, आक्रोश और हिंसा भड़क उठी. उस गाने की कुछ पंक्तियाँ हैं,
दुश्मन घर में बैठे हैं, तुम कोसते रहो पड़ोसी को,
जो छुरी बगल में रखते हैं, तुम मार दो ना उस दोषी को.
इस धोखे के हमले में जो अपनों का काम नहीं होता,
पुलवामा में उन वीरों का ये अंज़ाम नहीं होता.
(किंडल संस्करण पृष्ठ 21)
इस गाने को मिले जबरदस्त रिस्पॉन्स को देखकर रामकेश और कवि को यकीन हो गया कि ‘कवि अब स्टार बन गई है.’
(किंडल संस्करण पृष्ठ 22)
पुरोहित लिखते हैं कि जब इस प्रकार के भड़काऊ और समस्यामूलक शब्दों तथा विचारों को उत्तेजक स्वर और धुन के साथ गाया जाता है, तो वे एक अलग शक्तिशाली रूप धारण कर लेते हैं और श्रोताओं के लिए ख़तरनाक स्तर तक आकर्षक होते हैं.
(किंडल संस्करण पृष्ठ 23)
पुलवामा गाने के ठीक 20 दिन बाद कवि का एक और देशभक्ति गाना वायरल हो गया. इसमें भारत जातिवाद, अशिक्षा, भ्रूणहत्या जैसी अनेक सामाजिक समस्याओं को दूर कर ‘विश्व गुरु’ बनने वाला है, लेकिन उसके लिए सभी को ‘वंदे मातरम’ कहना होगा, इस बात पर ज़ोर दिया गया था. आगामी लोकसभा चुनाव को देखते हुए पंद्रह दिन बाद अप्रत्यक्ष रूप से चुनौती देने वाला एक और गाना ‘मतदान’ आया,
‘जिसके चालचलन में ना हो किसी किस्म का खोट,
जो नहीं मारता किसी जनता की भावना पे चोट.’
उसके तुरंत बाद अगला गाना आया ‘जय जवान, जय किसान’. मई 2019 में रामकेश का लिखा गाना ‘भारत की गौरव गाथा’ वायरल हुआ. इस गाने में सीधे तौर पर राजनीतिक और सांप्रदायिक मुद्दे नहीं थे, बल्कि रामायण-महाभारत की घटनाएं चुनी गई थीं. इन गानों पर जनता की प्रतिक्रिया कम मिली, लेकिन सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने वाले, दूसरों के प्रति नफरत, विरोध और हिंसा पैदा करने वाले गाने तेजी से लोकप्रिय हो गए. ऐसा ही एक गाना रामनवमी जुलूस के दौरान काफी लोकप्रिय हुआ था,
अगर छुआ मंदिर तो तुझे दिखा देंगे
तुझको तेरी औकात बता देंगे.
इधर उट्ठी जो आँख तुम्हारी,
चमकेगी तलवार कटारी.
खून से इस धरती को नहला देंगे,
हम तुझको तेरी औकात बता देंगे.
वंदे मातरम गाना होगा,
वरना यहाँ से जाना होगा.
नहीं गए तो जबरन तुझे भगा देंगे,
हम तुझको तेरी औकात बता देंगे.
(किं.सं., पृ. 24)
कई स्थानीय और ऐतिहासिक जटिल विषयों और घटनाओं पर बेहद सरल शब्दों और शैली में लिखे गए और उत्तेजक आवाज में गाए गए ये गीत लोगों को आसानी से दुराग्रही बना देते हैं. ऐसे गाने लिखने, उनकी धुन बनाने, स्टूडियो में रिकॉर्ड करने और पास की किसी लोकेशन पर शूटिंग के लिए जाने में उन्हें ज्यादा वक्त नहीं लगता था. ऐसे गीत ‘हिन्दू राष्ट्र की स्थापना’ और भाजपा शासन के प्रति उत्साह पैदा करने में बहुत सहायक हुए हैं. इन गीतों में यह संदेश छिपा हुआ होता है कि ‘हिंदू ख़तरे में हैं और उन्हें अपने भीतरी और बाहरी शत्रुओं से आक्रामक होकर लड़ना ज़रूरी है.’
5 अगस्त 2019 को सुबह 11 बजे संविधान से अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35-ए को खत्म करने का ऐलान किया गया. रामकेश ने इस सुनहरे अवसर का लाभ उठाया. उन्हें एहसास हुआ कि लोग अब इस विषय के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक होंगे. रामकेश ने तुरंत गाना लिखा और शाम 4 बजे तक ऑडियो और वीडियो शूटिंग पूरी कर ली. अगली सुबह यह नया गाना भी यूट्यूब पर वायरल हो गया. इस गाने का शीर्षक था ‘सच्ची दिवाली’,
सत्तर साल से लगी बीमारी, आज उसका इलाज हुआ
हुआ अंधेरा दूर देश का, आज है रोशन ताज हुआ.
ना अब पत्थर बरसे, ना खुशी की राह को मूँदेंगे
अब कश्मीर की घाटी में श्रीराम के नारे गूँजेंगे.
(किं.सं. पृ. 54)
अधिसूचना की घोषणा का विरोध करने वालों और इसका समर्थन करने वालों के बीच स्पष्ट विभाजन रेखा खींचने वाली पंक्तियाँ भी लिखी गयीं,
देशभक्त हैं झूम रहे, गद्दारों की आँख में पानी है
जो देश मिटाना चाहते थे, वो आज बैठकर रोएँगे.
(किं.सं. पृ. 54)
‘सारी दुनिया देख रही आज भारत का जलवा है.’
इस गाने को महज दो घंटे में 8,50,000 व्यूज़ मिले. कवि सिंह एक बार फिर ‘स्टार’ बन गई.
(किं.सं. पृ. 54-55)
कुणाल पुरोहित ने यह भी बताया है कि इस प्रकार के संगीत में, केवल दो महिला गायक, लक्ष्मी दुबे और कवि सिंह ही हैं, जो पुरुष गायकों की भीड़ से अलग दिखती हैं. आक्रामक और हिंसक पुरुषों की दुनिया में, ये गायिकाएँ मर्दानी भेष धारण करके हिंदुत्व का आह्वान करती हैं. कवि सिंह द्वारा गाये गये अधिकांश गीत रामकेश द्वारा लिखे गए हैं, लेकिन बाद में कवि ने स्वयं भी गीत लिखना शुरू कर दिया था. उसका मानना था कि भगवान ने उसे हिंदू हितों की सेवा करने का वरदान दिया है. इसलिए वह बहुत गंभीरता से लिखती और गाती है.
कवि सिंह का हिंदू-मुस्लिम शत्रुता पर दृढ़ विश्वास है. वह दोनों की तुलना करते हुए कहती है कि हिंदू आत्मसंतुष्ट होते हैं. वे अपना पेट भरने के लिए केवल नौकरियों पर ध्यान देते हैं, लेकिन मुसलमानों का ध्यान अपनी जनसंख्या बढ़ाने, हिंदूओं को मारने और बिना कोई काम किये सब कुछ लूट लेने पर होता है. कवि मुसलमानों को ‘वे’ कहकर संबोधित करती है. उसे और उसके जैसे अन्य लोगों को अपने विश्वास का समर्थन करने के लिए कहीं भी किसी प्रकार के ‘डाटा’ की आवश्यकता नहीं होती.
दो साल के अंदर कवि सिंह ने हरेक विवादित मुद्दे पर गाना गाया है. जनवरी 2020 में नागरिकता कानून पर उसके गाने ‘सच्चे हिंदुस्तानी- जनसंख्या कानून लाओ, देश बचाओ,’ में प्रदर्शनकारियों को देशद्रोही कहा गया था.
कवि सिंह फेसबुक और इंस्टाग्राम पर काफी एक्टिव रहती है. वह न केवल गाने के माध्यम से, बल्कि उसमें व्यक्त विचारों पर भी अपना नजरिया व्यक्त करती है. उसके करीब आठ लाख फॉलोअर्स हैं. वह लिखती है कि ‘वे’ कभी नहीं बदल सकते, इसलिए हिंदूओं को ही खुद को तैयार करना होगा, हिंदूओं को ‘शस्त्र’ और ‘शास्त्र’ दोनों का ज्ञान हासिल करना होगा. ‘यही हमारी संस्कृति है, यह हमारे सनातन धर्म की संस्कृति है. (किं.सं. पृ. 34)
उसकी इस तरह की पोस्ट को 57000 लाइक्स और 250000 व्यूज़ मिले थे. ये श्रोता अधिकतर उसकी राय के प्रति समर्थन व्यक्त करते थे.
मुसलमानों के प्रति नफरत और कट्टर हिंदुत्व का इंजेक्शन इंटरनेट के माध्यम से आम आदमी की नसों में इसी तरह रचा-बसा दिया गया. कवि सिंह का एक गाना है, जिसका सरकारी आंकड़ों से दूर दूर तक कोई लेना-देना नहीं है,
कुछ लोगों की तो साज़िश है,
हम बच्चे खूब बनाएँगे.
जब संख्या हुई हमसे ज़्यादा,
फिर अपनी बात मनवाएँगे.
कवि सिंह बस अपना देश,
धरम बचाना चाहती है.
मेरा हिंदुस्तान हो विश्वगुरु,
बस यही ख्वाब सजाती है.
इनको बाहर निकालो तुम,
अपना देश बचा लो तुम.
(किं.सं. पृ. 69)
कवि सिंह अब अकेले अपने गाने लिखती है और उन्हें यूट्यूब और सोशल मीडिया पर अपलोड करती है. 2024 के चुनाव में उसकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा काफ़ी ऊँची है.
पिछले महीने ही उसका नया गाना ‘अयोध्या जाऊंगी सखी मैं अयोध्या जाऊंगी’ उसके यूट्यूब चैनल पर रिलीज़ हुआ है. मासूम चेहरे वाली यह लड़की अपने शब्दों, पंक्तियों, विचारों और आवाज़ से लाखों लोगों तक ‘हिंदुत्व पॉप की ज़हरीली संस्कृति’ फैला रही है.
दूसरा अध्याय
हथियार के रूप में कविता : कमल आग्नेय
पत्रकार और अंग्रेजी पुस्तक ‘एच-पॉप’ के लेखक कुणाल पुरोहित की मुलाकात 2017 में उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर गाजियाबाद में एक कवि सम्मेलन के दौरान हिंदी कवि कमल आग्नेय से हुई. उस सम्मेलन में मंच पर भगवा कुर्ता और उसी रंग का गमछा पहनने वाला वह सबसे कम उम्र का कवि था. कमल आग्नेय का मूल नाम कमल वर्मा है.
कुणाल पुरोहित का कथन है कि राजनीतिक और धार्मिक स्तर पर लोगों को भड़काने में कविता की भूमिका को नज़रअंदाज़ किया जाता रहा है. कविता लोगों को प्रभावित करने का बहुत प्रभावी माध्यम हो सकती है.
(किं.सं. पृ. 111)
कोई कवि जब कवि सम्मेलनों में या सामाजिक और डिजिटल मंचों पर अपनी भावपूर्ण नाटकीय आवाज़ में ऐसी कविताएं प्रस्तुत करता है, जो दर्शकों की भावनाओं और विचारों को उद्वेलित करती हैं, तो इसका गहरा प्रभाव पड़ता है. कमल आग्नेय जैसे अनेक कवि यह कार्य कर रहे हैं. पहले देश के स्वतंत्रता संग्राम में लोगों की सामूहिक भावनाओं और विचारों को आंदोलित करने और फिर समानता स्थापित करने का काम कई कवियों और शायरों ने किया था. लेकिन दोनों के इरादों में ज़मीन-आसमान का अंतर है.
कमल उन कुछ दक्षिणपंथी हिंदी कवियों में से एक है, जिनकी कविताओं में ‘हिंदुत्व’ लबालब भरा होता है. कमल आग्नेय 2017 से ही हिंदुत्व-विचारों का प्रसार अनेक तरीकों से कर रहा है. उसका सबसे पसंदीदा तरीका है- हिंदुत्व के नए ‘दुश्मनों’ की पहचान करना और उन पर लगातार उग्र भाषा में आरोप लगाना. कमल आग्नेय और उसके जैसे कवि श्रोताओं के दिलों में हमेशा नफरत और गुस्से को जलाए रखने के लिए तत्पर रहते हैं. उनके पसंदीदा दुश्मन हैं- मुस्लिम, भाजपा के राजनीतिक आलोचक, आंदोलन करने वाले तार्किक छात्र, तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए आंदोलन करने वाले किसान, सीएए का विरोध करने वाली महिलाएं, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू जैसे लोग, बॉलीवुड के मुस्लिम अभिनेता आदि आदि.
कमल आग्नेय का पहले सबसे पसंदीदा विषय था गांधीजी की निंदा करना. वह उनके कार्यों को तोड़मरोड़कर प्रस्तुत करता था तथा गोडसे व सावरकर जैसे व्यक्तियों के घृणित कार्यों का महिमामंडन करता था. उदाहरण के लिए ये दो पंक्तियाँ देखें,
हिंदु अरमानों की जलती एक चिता थे गांधीजी
कौरव का साथ निभाने वाले भीष्मपिता थे गांधी जी
(किं.सं.पृ.104)
वह हिंदू राष्ट्र के निर्माण के लिए जल्दी से जल्दी इतिहास का पुनर्लेखन करना चाहता था. इसके लिए वह इतिहास के विभिन्न व्यक्तियों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करता है, खासकर हिंदूओं और मुसलमानों या उदारवादियों और कट्टरपंथियों को. वह हिंदुत्व की दृष्टि से ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तियों का महिमामंडन और अपमान कर उन्हें विकृत तरीके से चित्रित करता है. वह सभी स्वतंत्रता सेनानियों के परस्पर संबंधों की गहराई को जानने की जहमत बिल्कुल नहीं उठाता, बल्कि “अंधभक्तिपूर्वक हिंदुत्व फैलाने के उद्देश्य से लोगों के दिल-दिमाग़ में ज़हर बोना” चाहता है. वह चन्द्रशेखर आज़ाद और नेहरू की तुलना विषैले शब्दों में करता है और पूछता है कि आज़ादी की लड़ाई के बाद नेहरू को तो प्रधानमंत्री बना दिया गया, लेकिन चन्द्रशेखर आज़ाद को ‘क्या मिला?’ महज 24 साल की उम्र में उन्हें अंग्रेजों की गोली का शिकार बनना पड़ा.
नारियों के जेवर को, नर के कलेवर को क्या मिला
नेताजी सुभाष जैसे तेवर को क्या मिला
जिन्ना को मिला पाक, नेहरु को हिंद,
कोई तो बताए चंद्रशेखर को क्या मिला?
(किं.सं.पृ.141)
ऐसी तुलना करते वक्त वह एक व्यक्ति विशेष की प्रशंसा करता है और दूसरे के ऐतिहासिक योगदान को पूरी तरह नजरंदाज कर देता है. ऐसा करने के लिए वह ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़ते-मरोड़ते हुए तथाकथित परस्पर विरोधी विचारों का जाल इस तरह बुनता है कि सुनने वाले एक के प्रति घृणा और दूसरे के प्रति सहानुभूति से अभिभूत हो जाते हैं. ऐसी कहानियों का कभी भी ठोस संदर्भ और कार्य-कारण संबंध वह नहीं देता.
कमल आग्नेय के एक कवि सम्मेलन का वाकया सुनाते हुए कुणाल पुरोहित ने लिखा है, ‘माइक के सामने खड़े होकर उसने अपने दर्शकों को बताया कि वह पिछले दो वर्षों से एक कविता पर काम कर रहा है.’ इस कवि सम्मेलन का आयोजन कट्टर हिंदू राष्ट्रवादी यति नरसिंहानंद द्वारा किया गया था.
इस कवि सम्मेलन में कमल ने गांधी और गोडसे पर एक लंबी कविता प्रस्तुत की थी, जिसमें उसने साबित किया था कि गोडसे ने गांधी को गोली मारकर देश पर अहसान ही किया है. कुछ पंक्तियाँ देखिये,
‘गांधी जी का प्रेम अमर था, केवल चाँद-सितारे से’
इससे आगे कमल ने आज़ादी के वक़्त हुए देश के विभाजन पर एकांगी दृष्टि से प्रहार करते हुए कहा,
‘रेलों में काट-काटकर, भेज रहे थे पाकिस्तानी
टोपी के लिए दुखी थे, पर धोती की एक ना मानी
सत्य-अहिंसा का ये नाटक बस केवल हिंदू पर था’
गांधी जी की हत्या को सही ठहराते हुए उस समय का वर्णन करते हुए वह कहता है,
‘उस दिन नाथू के महाक्रोध का पानी सर से ऊपर था,
गया प्रार्थना सभा में करने गांधी को अंतिम प्रणाम
ऐसी गोली मारी उनको, कि याद आ गए श्री राम.’
(किं.सं.पृ.104-105)
ये पंक्तियाँ सुनकर दर्शकों ने तालियों, ठहाकों और हर्ष-ध्वनि के साथ उसकी बातों का समर्थन किया, जिससे कमल और भी उत्साहित हो गया और उसने गोडसे के काम को न केवल उचित, बल्कि आवश्यक बताकर उस पर मुहर लगा दी.
‘अगर गोडसे की गोली उतरी ना होती सीने में,
तो हर हिन्दू पढ़ता नमाज़, मक्का और मदीने में.
मूक अहिंसा के कारण भारत का आँचल फट जाता,
गांधी जीवित होते तो फिर देश दोबारा बँट जाता.
(किं.सं.पृ.107)
तीस साल का यह युवक कविता और डिजिटल प्लेटफॉर्म का ज़बर्दस्त उपयोग करते हुए लगातार राजनीतिक दुष्प्रचार कर रहा है. उसने अपनी आकर्षक भाषा और घातक विचारों से भारत के उत्तर, पश्चिम और पूर्वी हिन्दी भाषी क्षेत्रों के सैकड़ों गांवों और शहरों को मंत्रमुग्ध कर दिया है. कमल आग्नेय को अनेक विशेषणों से सम्मानित करते हुए कवि सम्मेलनों में आमंत्रित किया जाता रहा है. कुणाल पुरोहित ने इसका एक उदाहरण प्रस्तुत किया है,
“हिंदू धर्म के लिए, सनातन धर्म के लिए, अपने देश के लिए… वेदों और उपनिषदों पर लगातार काम करके उन्हें अपनी कविता के माध्यम से देश भर तक पहुंचाने वाले कमल आग्नेय जी!”
(किं.सं.पृ.162)
इतना सम्मान पाने के बाद किसे नशा नहीं होगा?
सोशल मीडिया के आगमन से पहले कवि सम्मेलन में उपस्थित सैकड़ों श्रोताओं को भावविभोर करने वाली ऐसी ही उत्तेजक कविताएँ कवि प्रस्तुत किया करते थे. यूट्यूब और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के आगमन के बाद ये कविताएं हजारों-लाखों लोगों के दिल-दिमाग में आसानी से उतर रही हैं. ‘कवि सम्मेलन’ नाम के एक चैनल के करीब सत्तर लाख फॉलोअर्स हैं और अब तक इसके वीडियोज़ को करीब एक करोड़ दस लाख लोग देख और सुन चुके हैं. दूसरा एक चैनल है, ‘हाईटेक कवि सम्मेलन’, इसके भी लाखों फॉलोअर्स और दर्शक हैं. ऐसा ही एक चैनल है ‘नमोकार चैनल्स प्राइवेट लिमिटेड’ जो पहले दिल्ली के लक्ष्मी नगर इलाके में दो बीएचके के घर में संचालित होता था. यह चैनल 2016 से ही कवियों को ऑनलाइन कविता प्रस्तुत करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा था. गोडसे पर कमल की कविता सबसे पहले इसी नमोकार चैनल पर प्रसारित हुई थी और कविता ख़त्म होने तक इसे सत्रह लाख व्यूज़ मिल चुके थे.
(किं.सं.पृ.120)
1980 के दशक में राम जन्मभूमि प्रकरण में दक्षिणपंथी विचारधारा फैलाने के लिए ऐसी उत्तेजक पंक्तियाँ बहुत उपयोगी साबित हुई थीं,
‘रामलला हम आएंगे, मंदिर वहीं बनाएंगे.’
कमल ने भी लिखा,
‘अपना तो किसी गैर से भी बैर नहीं है,
किंतु राम के विरोधियों की खैर नहीं है.
राम जन्मभूमि का ये केस छोड़ दीजिए,
अन्यथा ये राम जी का देश छोड़ दीजिए.’
(किं.सं.पृ.194)
कमल ने एक कवि सम्मेलन में तथाकथित राष्ट्रवादी भावनाओं को भड़काने वाली कविता ‘यहां राष्ट्रवाद का पर्व छिड़ जाना चाहिए’ लॉन्च की और श्रोताओं की उत्साहपूर्ण प्रतिक्रिया देखकर उकसाना जारी रखा. इसी तरह, जब तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का दिल्ली में धरना चल रहा था, एक व्यक्ति ने 26 जनवरी 2023 को लाल किले पर निशान साहिब का झंडा फहरा दिया, गोदी मीडिया ने तिल का ताड बना दिया. इधर कमल ने भी तुरंत किसानों को दोषी ठहराते हुए दर्शकों को उकसाया,
‘घोड़े बिगड़ जाएँ तो नाल खींच लीजिये,
हाथों से शिकारियों का जाल खींच लीजिये,
खींचा है जिसने लाल किले से तिरंगा,
दिल्ली वालों उसकी खाल खींच लीजिए.’
(किं.सं.पृ.139-40)
इन पंक्तियों पर दर्शकों ने तालियां बजाकर और उत्तेजक नारे लगाकर सभागृह को सिर पर उठा लिया. कमल की कविताएँ और उनकी प्रस्तुति एक कथावाचक की तरह जीवंत और रोमांचक होती है. इससे सुनने वालों की भावनाएं तुरंत आंदोलित हो जाती हैं और वे उसके जाल में आसानी से फंस जाते हैं. उसके पसंदीदा विषय थे और अब भी हैं- जेएनयू, धारा 370, टुकड़े-टुकड़े गैंग, पाकिस्तान, आदि आदि. उसे मुसलमानों से ‘भारत माता की जय’ और ‘जय श्री राम’ कहलवाना एकदम ज़रूरी लगता है. वह अपने श्रोताओं से कहता है,
‘बंजर ज़मीन पर कभी गुलिस्ताँ नहीं हो सकता,
जो भारत माता की जय ना बोले, वो कभी भाई नहीं हो सकता.’
(किं.सं.पृ.144)
साथ ही वह मौजूद लोगों को अपने साथ हाथ लहराते हुए नारे लगाने के लिए आमंत्रित करता है और लोग खुशी और उत्तेजना से भरकर जैसा वह कहता जाता है, वैसा करते जाते हैं. पूरे सभागार में उथली देशभक्ति की आंधियाँ चलने लगती हैं. विडम्बना यह है कि इन घटनाओं को मनमाना रंग देकर वह प्रधानमंत्री को भी ललकारते हुए कहने से नहीं चूकता,
‘मोदी जी अब भूल ना जाना किये देश के वादों को
सबक सिखा दो अब अफजल की इन नाजायज औलादों को.’
(किं.सं.पृ.146)
कमल आग्नेय जैसे कवि पैसे और शोहरत के साथ-साथ जनता की वाहवाही के भी आदी हो जाते हैं और अधिक से अधिक आक्रामक भाषा का प्रयोग करने लगते हैं. उनका फोकस ‘हिंदुत्व’, ‘राष्ट्रवाद’ जैसे विषयों पर कविताएं पेश कर खुद को अवसरवादी राजनीतिक क्षेत्र में उपयोगी साबित करना होता है. कुणाल पुरोहित ने इस अध्याय में कमल आग्नेय के अलावा कुछ और समविचारी कवियों के बारे में भी जानकारी दी है. पहले अध्याय में वर्णित कवि सिंह की तरह शिखा सिंह भी एक प्रखर राजनीतिक कवयित्री हैं. उसके अलावा दक्षिणपंथी कवि सम्मेलनों में आकाश, हेमन्त पांडे, अभय निर्भीक आदि भी लोकप्रिय कवि हैं. हेमंत पांडे और निर्भीक बाद में भाजपा में शामिल हो गए और पार्टी में ‘कला और संस्कृति’ पर ‘ब्रेनस्टॉर्मिंग’ करते हुए पार्टी की लोकप्रियता बढ़ाने में मददगार रहे हैं.
2017 में संपन्न हुए उत्तर प्रदेश के चुनावों से ही राजनीतिक ‘जंग’ जीतने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ चढ़कर होने लगा था. पार्टी की सोशल मीडिया मशीनरी पूरी ताकत से काम करने लगी थी. पुरोहित जी ने आंकड़े प्रस्तुत करते हुए बताया है कि उस वक्त उत्तर प्रदेश पार्टी के पास 1.7 लाख कार्यकर्ता थे, जिन्हें स्मार्टफोन मुहैया किए गए थे. वह मतदाताओं के लिए लगातार डिजिटल सामग्री तैयार कर रहे थे. उन दिनों अलग-अलग विधानसभा क्षेत्रों के लिए एक साथ कई तरह के अभियान चलाए जा रहे थे.
उस समय कमल आग्नेय ने ‘कमल का कमाल’ नाम से एक वीडियो सीरीज शुरू की थी, जिसमें वह हास्य-व्यंग्य के साथ बीजेपी विरोधी शख्सियतों पर परोक्ष हमले किया करता था. वह अपनी समूची लेखन और रचनात्मक प्रतिभा इस बात पर फ़ोकस करता था कि किस तरह उनकी हँसी उड़वायी जाए, किस तरह उनकी लोकप्रियता का ग्राफ नीचे गिराया जाए!
वह अखिलेश यादव को ‘टिप्पू’, राहुल गांधी को ‘पप्पू’ और मायावती को ‘बहनजी’ कहकर हँसी उड़ाया करता था. इसके साथ ही बैकग्राउंड में साउंड-इफेक्ट्स, म्यूज़िक, दर्शकों की तालियों के साथ ’लाफ्टर ट्रैक’ का इस्तेमाल पूरे वीडियो को दिलचस्प बना देता था. पूरी श्रृंखला बहुत शातिराना तरीक़े से तैयार की गई थी. इसमें हालाँकि बीजेपी का नाम या प्रशंसा कहीं सम्मिलित नहीं थी, परंतु सभी विपक्षी दलों और व्यक्तियों का मज़ाक़ बनाकर अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी का पक्षपोषण ही किया गया था.
(किं.सं.पृ.196)
इस कैरियर से कमल को भरपूर शोहरत और पैसा मिलने लगा था.
2022-23 में संपन्न हुए किसान आंदोलन के दौरान पंजाब-राजस्थान-उत्तर प्रदेश के जाट-मुस्लिम सौहार्द में दरार डालने की भरपूर कोशिशें की गई थीं. उस समय का एक क़िस्सा कुणाल पुरोहित ने बयाँ किया है.
कमल आग्नेय को एक वरिष्ठ नेता ने बुलाया और कहा कि वह तीन हिंदू जाट नायकों- गोकुल जाट, जोगराज गुर्जर और रामप्यारी गुर्जरानी के बारे में लिखवाना चाहते हैं. इन नायकों (जिनमें एक जानबूझकर नायिका चुनी गई थी) के ऐतिहासिक महत्व (जिसका इतिहास में कोई प्रमाण नहीं है) को इस तरह बढ़ा-चढ़ाकर बताया जाना है कि उन्होंने ‘मुस्लिम’ सेना से लड़ते हुए अपना पूरा जीवन बलिदान कर दिया. किसान आंदोलन का समय ऐसी घटनाओं का प्रचार-प्रसार करने, प्रदर्शनकारियों को जाट, हिंदू और अन्य वर्गों में विभाजित करने के लिए बहुत उपजाऊ समय था. बाद में इसमें तैमूरलंग भी शामिल हो गया. कमल आग्नेय ने उस समय कविता लिखी थी,
तैमूरलंग की आँधी हिंदू दीप बुझाने आई थी
प्यासी तलवारें दिल्ली से आगे जाने वाली थीं
हरिद्वार के मंदिर तोड़े जाने की तैयारी थी
लेकिन उन पर वीर हिंदुओं की सेनाएँ भारी थीं
सारे सैनिक देश-धर्म पे लड़ जाने के लायक थे,
जोगराज सिंह गुर्जर उनके अद्भुत सेना नायक थे.
(किं.सं.पृ.204)
उसने आगे लिखा,
इसीलिए वीर गुर्जरो जागो,
यहाँ एकदम सही मुहुरत है,
इस देश धर्म को आज तुम्हारी
फिर से बड़ी ज़रूरत है.
(किं.सं.पृ.204)
पार्टी की आईटीसेल ने 2022 के चुनाव से दो दिन पहले इस कविता का वीडियो वायरल किया. व्हाट्सएप के अलावा वह अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स, जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, शेयरचैट, ट्विटर (अब एक्स) आदि के माध्यम से अनगिनत लोगों तक पहुंचा. अगले ही दिन कमल आग्नेय पर संदेशों और स्क्रीन शॉट्स की बारिश होने लगी. मशहूर बॉलीवुड एक्ट्रेस कंगना राणावत ने इस वीडियो को अपने निजी फेसबुक पेज पर एक अपील के साथ शेयर किया था. उसके साढ़े सात लाख फॉलोअर्स की वजह से कमल के वीडियो की लोकप्रियता को एकदम उछाल मिला. 10 मार्च 2022 को चुनाव परिणाम सुनते ही कमल आग्नेय की खुशी दोगुनी हो गई क्योंकि इस जीत में उसकी भी हिस्सेदारी थी. लेकिन कुछ ही दिनों बाद कमल का उत्साह कम होने लगा था. उसने चुनाव के लिए जो अथाह मेहनत की थी, उसकी तुलना में उसकी झोली में कुछ खास नहीं गिरा. उसे लाल किले या अमृत महोत्सव के कवि सम्मेलन में निमंत्रण की उम्मीद थी, लेकिन उसकी इस आशा पर तुषारापात हुआ.
इसके बाद अचानक उसके पिता की मृत्यु हो गई, जिन्होंने बचपन से ही उसमें कविता के प्रति प्रेम जगाया था. इस अचानक झटके से वह बिखर गया. वह गाँव चला गया. काफी समय तक गाँव में रहने के कारण उसकी आर्थिक स्थिति खराब होती चली गई. काफ़ी दिनों बाद वह सम्हला. 2023 के मध्य में उसने सुदर्शन न्यूज़ जैसे चैनल के लिए काम करना शुरू कर दिया. इसी बीच उसे मध्य प्रदेश के छतरपुर स्थित बागेश्वर धाम से काव्य पाठ का निमंत्रण मिला और वह हिंदूओं की ‘घर वापसी’ के लिए सक्रिय हो गया
तीसरा अध्याय
सांस्कृतिक युद्ध का बिगुल फूँकने वाला
संदीप देव
कुणाल पुरोहित द्वारा लिखित अंग्रेजी किताब ’एच-पॉप’ के तीसरे अध्याय का शीर्षक है– ‘फाइटिंग अ कल्चरल वॉर : संदीप देव’. उपर्युक्त वर्णित हिंदुत्ववादी गायकों और कवियों की तरह, संदीप देव भी सनातन धर्म का कट्टर अनुयायी है. कुणाल पुरोहित और संदीप देव की मुलाकात का बैकग्राउंड काफी दिलचस्प है. पुरोहित के लंदन स्थित चाचा ‘हिंदू स्वयंसेवक संघ’ (आरएसएस की विदेशी शाखा) के करीबी थे. उन्होंने एक भारतीय पत्रकार की आर्थिक मदद करने का फैसला किया था. उन्होंने कुणाल पुरोहित को बताया कि वे काफी समय से उसका काम देख रहे हैं. लेकिन उसे पैसे भेजने से पहले वे पुरोहित की राय जानना चाहते थे. अपने चाचा के फोन कॉल के बाद पुरोहित की मुलाकात 46 वर्षीय संदीप देव से हुई.
संदीप देव पहले सिर्फ एक पत्रकार था, जो बाद में लेखक, प्रकाशक और फिर यूट्यूबर भी बन गया. अब वह अपने आप को पूर्ण हिंदू राष्ट्रवादी बताता है, जो हिंदुत्व की स्थापना के लिए निष्पक्ष रूप से पत्रकारिता कर रहा है. उसका ‘कपोत’ नामक एक प्रकाशन और वितरण गृह है, जिसमें कट्टर और व्यंग्यात्मक हिंदू राष्ट्रवादी विचारों की किताबें छापी जाती हैं. इसमें इतिहास, राजनीति, धर्म से लेकर अध्यात्म तक की किताबें शामिल हैं. इनमें ऐसे विचारों की वकालत की गई है, जो वर्तमान हिंदुत्ववादी राजनीति के अनुकूल हैं, चाहे वे सफ़ेद झूठ ही क्यों न हों! संदीप देव की अपनी वेबसाइट भी है. इसमें ‘वास्तविकता का अनावरण और अब्राह्मणवादी धर्म’ नामक एक खंड है, जिसमें निम्नलिखित विषयों की किताबें उपलब्ध हैं-
‘लव जिहाद’, ‘धर्मांतरण की सच्ची कहानियां’, ’मुस्लिम आक्रमणकारियों से लड़ने वाले हिंदू नायक’, ’ कौन कहता है अकबर महान था?’ आदि आदि. इस खंड में गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या का समर्थन करने वाली अनेक पुस्तकों का समावेश किया गया है. इस खंड में नेहरू, गांधी तथा कांग्रेस के स्वतंत्रता संग्राम के अनेक नेताओं की चरित्र-हत्या करने वाली किताबें भी हैं.
(कि.सं. पृ. 220)
संदीप देव के अनुसार, किताबें इतिहास को अपने दृष्टिकोण के अनुसार फिर से लिखने, अपनी बहुआयामी रणनीति को एक साथ कई लोगों तक पहुंचाने का एक महत्वपूर्ण माध्यम हैं. इनके ज़रिए लोगों के बीच हिंदू राष्ट्रवाद, दूसरे धर्मों के प्रति डर और नफरत का प्रचार आसानी से किया जा सकता है. पुस्तकें किसी व्यक्ति के चरित्र का निर्माण करने, उसमें हिंदू नैतिकता के मूल्यों को विकसित करने और उसे हिंदू धर्म का योद्धा बनाने का काम आसानी से कर सकती हैं. अमेजॉन जैसी ’विदेशी’ ई-कॉमर्स वेबसाइटों का उपयोग करने के बजाय, संदीप देव और उनके भाई ने अपनी खुद की ‘देशी’ वेबसाइट बनाई; जिसके माध्यम से वे किताबों के अलावा पूजा सामग्री और सभी प्रकार की घरेलू वस्तुएँ बेचते हैं. वे इस बात के प्रति सावधान रहते हैं कि बेचे जाने वाले माल से संदीप की ‘हिंदू योद्धा’ की छवि और भी सुदृढ़ हो सके.
संदीप देव खुद को हिंदुत्व का सांस्कृतिक योद्धा और आध्यात्मिक गुरु का मिश्रण मानता है. कुणाल पुरोहित ने लिखा है,
‘संदीप का सपना हिंदुत्व के इस सांस्कृतिक युद्ध को हजारों छोटे-बड़े गांवों तक पहुंचाना है. इसके लिए वह वहां किताबों की दुकानें, पुस्तकालय, वाचनालय खोलने की सोच रहा है. इसके अलावा वह युवाओं के लिए ’शास्त्र और शस्त्र’ दोनों का प्रशिक्षण ज़रूरी मानता है. वह सांस्कृतिक युद्ध में ’शत्रु’ का सामना करने के लिए अपने धर्म का ज्ञान और शारीरिक शक्ति विकसित करना आवश्यक मानता है. मेरे चाचा जैसे आप्रवासी भारतीय इस सबके लिए आवश्यक धन विदेश से उपलब्ध करा रहे हैं.’
(कि.सं. पृ. 222-223)
संदीप देव जैसे कई यूट्यूबर्स हैं, जो राजनीतिक, कूटनीतिक, सांप्रदायिक सामग्री से लेकर समसामयिक ज्वलंत घटनाओं का हिंदू दक्षिणपंथी दृष्टिकोण के अनुसार विश्लेषण करके जनमानस तैयार करने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं. ये लोग अपने श्रोताओं में क्रोध, भय, घृणा, घमंड जैसी तमाम भावनाओं को पनपाते हैं, उन्हें खाद-पानी देकर भड़काते हैं. यह ’प्रभावशाली’ (इंफ्ल्यूएंसर) समूह पार्टी के लिए उपजाऊ ज़मीन तैयार करता है. यह समूह प्रत्येक विषय को मनमाफ़िक मोड़ देने के काम में माहिर है.
अमेरिकी कंपनी ‘सोशल ब्लेड’ का कहना है कि संदीप देव के यूट्यूब चैनल की आय लगभग पच्चीस लाख डॉलर्स प्रति वर्ष है. इस उदाहरण से आकर्षित होकर कुछ यूट्यूबर हिंदू धर्म को बढ़ावा देने वाली सामग्री तैयार करने के लिए कटिबद्ध हैं. उनके मुख्य शत्रु मुसलमान और ईसाई हैं. कोविड-19 के प्रसार के लिए मुसलमानों को ज़िम्मेदार ठहराने की झूठी अफ़वाह फैलाने वाली घटना इस संदर्भ में उल्लेखनीय है. साथ ही आम आदमी पार्टी और आंबेडकरी पार्टियों को इन्होंने ‘म्लेच्छ’ या ईसाइयों से विदेशी मदद लेने वाला घोषित कर दिया था.
पाकिस्तान और चीन के बारे में झूठी अफवाहें फैलाने में भी इन ‘इंफ्ल्युएंसर्स’ का बड़ा हाथ होता है. वे ‘नरेटिव सेट’ करने में ‘गोदी मीडिया’ के एंकरों से होड़ लेते रहे हैं.
संदीप देव अपने दर्शकों से हिंदुत्व की रक्षा के लिए इस ‘सांस्कृतिक युद्ध’ में शामिल होने की अपील करता है. वह उनसे अपने अनेक वीडियो के अंत में पूछता है कि वे आखिर हिंदुत्व के लिए क्या कर रहे हैं? उनसे किसी जवाब का इंतज़ार किये बिना वह अपने प्रकाशन, वेबसाइट, यूट्यूब चैनल की जानकारी देते हुए दर्शकों को बताता है कि वह किस तरह हिंदुत्व की रक्षा के लिए दिन-रात काम कर रहा है, लेकिन अधिकांश लोग कुछ नहीं कर रहे हैं!
दर्शकों के मन में इस तरह की अपराधी भावना पैदा करते हुए, वह उन्हें एक सरल समाधान बताकर अपने वीडियो को समाप्त करता है कि वे उसे पैसा भेजकर ‘हिंदुत्व के युद्ध’ में मदद कर सकते हैं. वह उनके लिए लड़ने वाला योद्धा है. संदीप देव नित नए ‘नरेटिव’ गढ़ने में सिद्धहस्त है. उसका एक नरेटिव बहुत दिलचस्प (?) है.
आदि शंकराचार्य ने वज्रयानी बौद्धों के ‘पंच मकारों’ से संघर्ष किया था; वे थे- मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन. इन्हें पराजित कर आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की स्थापना की. संदीप देव का मानना था कि अब इस सनातन धर्म के रथ का पहिया कीचड़ में फंस गया है. उसे बाहर निकालने के लिए हिंदुत्ववादियों को अब नए ‘पंच मक्कारों’ (उसने ‘मकार’ की जगह ‘मक्कार’ शब्द का इस्तेमाल किया है, यानी धोखेबाज या झूठा) से लड़ना होगा. ये आधुनिक ‘पांच मक्कार’ हैं-
मसीहावाद (मिशनरी),
मार्क्सवाद,
माओवाद (टुकड़े-टुकड़े/अर्बन-नक्सल/देशद्रोही),
मैकालेवाद (शिक्षा का पश्चिमीकरण) और
मोहम्मदवाद (लव जिहाद).
इसके बारे में विस्तार से बोलते हुए वह अपने वीडियोज़ में दर्शकों से सवाल करता है, ‘उस समय आदि शंकराचार्य ने ‘पंच मकारों’ पर विजय प्राप्त की थी, अब इन ‘पंच मक्कारों’ पर कौन विजय प्राप्त करेगा?’ ( कि.सं. पृ. 260-61)
वह इस तरह के सवाल करता ज़रूर है, मगर अधिकांश सवालों का कोई जवाब नहीं देता.
2021 की शुरुआत में संदीप देव ने देखा कि ओटीटी प्लेटफॉर्म (नेटफ्लिक्स और अमेजॉन प्राइम) पर दर्शकों की संख्या अचानक तेजी से बढ़ी है. उसे चिंता हुई कि ये पश्चिमी ओटीटी प्लेटफॉर्म्स मनोरंजन के नाम पर ‘हमारे’ लोगों को क्या ‘परोस’ रहे हैं! उसने ओटीटी पर कंटेंट जांचने के लिए अपना वीडियो खत्म करने के बाद हर रात एक फिल्म या वेब शो देखना शुरू कर दिया. कुछ ही दिनों में उसने यह घोषित कर दिया कि उपर्युक्त ओटीटी प्लेटफॉर्म पर परोसी जा रही समूची सामग्री भारतीय समाज के सांस्कृतिक मूल्यों के लिए ख़तरनाक़ है. उसने आरोप लगाया कि सभी कार्यक्रमों में भारतीय परिवार व्यवस्था का विकृत चित्र खींचा जा रहा है. उसने निष्कर्ष निकालते हुए कहा कि ‘वे’ लोग भारत को नष्ट करने के लिए कटिबद्ध हैं. कुणाल पुरोहित ने संदीप देव के शब्दों को दोहराते हुए लिखा है,
“भारत में परिवार सबसे बुनियादी व्यवस्था है. इसलिए ‘वे लोग’ पहले परिवार, फिर जाति, फिर धर्म, फिर हमारे समाज और अंत में देश पर चोट करेंगे.”
इस समस्या का एकमात्र समाधान उसे यह मिला कि उसे अपना खुद का हिन्दुत्ववादी ओटीटी प्लेटफॉर्म शुरू करना चाहिए. लेकिन इसके लिए फंड की ज़रूरत होगी. उसने तुरंत अपने अनुयायियों से अपील की कि, सांस्कृतिक युद्ध में हरेक मोर्चे पर दुश्मन से लड़ने के लिए तैयार रहना होगा.
(कि.सं. पृ. 266-267)
उसका यह सपना संभवतः अभी पूरा नहीं हुआ है.
कुणाल पुरोहित ने अपनी किताब ’एच-पॉप’ में कवि सिंह, कमल आग्नेय और संदीप देव, इन तीन पॉप सांस्कृतिक सितारों के निजी जीवन और काम के बारे में विस्तार से लिखा है. इस किताब का समूचा लेखन लेखक की ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ पर आधारित है. कवि सिंह, कमल आग्नेय और संदीप देव और उनके जैसे अनगिनत अन्य हिंदुत्ववादी सांस्कृतिक ‘सितारों’ के वीडियोज़, किताबें, सोशल मीडिया पोस्ट आदि देखकर हम समझ सकते हैं कि हमारे समाज में सांप्रदायिक नफ़रत की जड़ें कितनी गहरी और भीतर तक कितनी दूर तक फैली हुई हैं. समानता, समता, भाईचारा, सामाजिक न्याय, प्रेम, दया, करुणा जैसे मानवीय मूल्यों के लिए सांस्कृतिक आंदोलन करने वाले संस्कृतिकर्मियों को कुणाल पुरोहित द्वारा लिखित यह पुस्तक ‘एच-पॉप’ अवश्य पढ़नी चाहिए.
यह किताब यहाँ से खरीद सकते हैं.
उषा वैरागकर आठले
सन् 1985 से निरंतर मराठी से हिंदी अनुवाद; लगभग 10 अनूदित किताबें एवं अनेक लेख प्रकाशित. |
पढ़ते हुए भयभीत हो गया हूँ । ये त्रयी कहीं से भी देश की ‘सेवा’ नहीं कर रही । नफ़रतों भरे गीत और भाषण तथा इनके वीडियो वायरल होने से इनको करोड़ों रुपये की आमदनी हो रही है । यह अंक पढ़कर यक़ीन हो गया है कि सकारात्मक दृष्टिकोण के सृजनकर्ता ही नहीं नकारात्मक और नफ़रतों भरे दिमाग़ भी fertile होते हैं । H-Pop ने सनातन धर्म, उपनिषदों और आदि शंकराचार्य के विचारों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत किया है । यह घोर अपराध है । औसत से भी नीचे बुद्धि रखने वाले इनके श्रोता बन गये हैं ।
यह सिलसिला कब रुकेगा ।
बहुत ही अच्छा सारांश और अच्छी समीक्षा है। किताब मैने पढ़ी है और इसे पढ़ कर प्रभावित हुई। ऊषा वैरागकर ने बड़ी मेहनत से लिखा है यह लेख। उनको बधाई
आलेख लम्बा है लेकिन पढ़ लिया। समझ नहीं आ रहा क्या लिखूँ ? वैसे नफरत का माहौल तैयार करने में इस तरह की कला और कलाकार के योगदान से ज़्यादातर लोग वाक़िफ़ है। और सबसे बड़ी बात यह कि आलेख या किताब पढ़ेंगे भी वहीं लोग जो ऐसी नफ़रत की बातो की वजह , इतिहास और भूगोल जानते है। तो कहने का तात्पर यह है कि यू ट्यूब और whatsapp से दो-चार मिनट में ज्ञान पाने वाले तो इस तरफ झाँकने से रहें। सवाल फिर वहीं….गिने चुने लोग यह जानकर क्या करे ? किताब मेहनत और हिम्मत से लिखी गई होगी, लेकिन वह क्या वहाँ तक पहुँच पायेगी जहाँ उसे पहुंचना चाहिये? किताब के लेखक ने समय को हिम्मत से दर्ज किया है आगे ज़्यादा कुछ नहीं तो शोध के काम जरूर आयेगी।
किताब का हिन्दी अनुवाद आएगा क्या
विषैली खेती की प्रक्रिया को उषा वैरागकर ने ठीक से प्रस्तुत किया है।
लेखक और समीक्षक दोनों को शुक्रिया।
किताब में झाँकने के लिए जो तीन प्रश्न दिये गये हैं कि क्या कोई गीत जान ले सकता है आदि… यह आलेख शुरू करने से पहले उन तीन प्रश्नों को बिल्कुल नहीं समझ पाया था। क्योंकि हम कविता का अर्थ ही जीवन देने वाली शक्ति या रोशन करने वाली शक्ति के रूप में समझते हैं। क्या कविता विध्वंस फैला सकती है, क्या ज्ञान संकीर्णता फैला सकता है, क्या संगीत उन्माद और हिंसा भरा हो सकता है…??? तो यह किताब (यह आलेख भी) साबित करती है कि हाँ ऐसा हो सकता है। क्योंकि ये तीन स्टार लोग कुछ लोगों की नज़र में कलाकार हो गए होंगे, मगर कलाकार की आत्मा कैसी होती है, उससे ये वंचित हैं। हालांकि इन तीनों का या इन जैसे कई H POPS का उद्देश्य स्पष्ट है इसलिए उनको इसका कोई अफ़सोस नहीं कि कलाकार याने सर्जक का कोई गुण उनमें नही है। सरस्वती के रास्ते के एकदम उल्टे रास्ते के वे पथिक हैं। कुणाल जी ने बहुत ही अनोखा या विरल शोध किया है। अभी तक यह तो सुना, जाना था कि सोशल मीडिया पर झूठ परोसा जा रहा है, जो मानवता को खंडित कर रहा है। पर उसके पीछे कौन लोग होते होंगे ये सवाल एक आम आदमी के लिए हमेशा एक सवाल ही रहा था। कुणाल जी ने एकदम सामने ला खड़ा कर दिया। बल्कि कठघरे में ही खड़ा कर दिया। बहुत भयानक लगा यह सब पढ़ते हुए। बहुत चिंता में डाल दिया। लेकिन इस किताब को एक निष्पत्ति की तरह या एक हासिल की तरह देखा जाना चाहिए। निश्चित ही यह भंडाफोड़ करती है। सरेआम पर्दाफाश करती है। इसलिए यह किताब जन जन तक पंहुचना चाहिए।
कलाकार के सृजन मूल्य क्या होना चाहिए, इसके प्रति भी आगाह करती है यह किताब। कृतज्ञता ही कहना चाहूंगा लेखक के प्रति।
श्री आठले जी को भी हार्दिक आभार कि अपनी विस्तृत समीक्षा द्वारा उन्होंने एक बिरली पुस्तक की ओर ध्यान खींचा। समालोचन के प्रति शुक्रिया।