अनिर्णय की त्रासदी
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इस राज्य में कुछ सड़ रहा है.
राज्य की सड़न को सीमित नहीं किया जा सकता. वह सब तरफ़ फैलती है. हवा, पानी, प्रकाश, मिट्टी, आकाश में फैलती हुई नागरिकों की सड़न तक पहुँच जाती है. वह इच्छाओं, दिशाओं, नैतिकताओं, दर्शन और धर्म को भी अपने आधिपत्य में ले लेती है. वह कर्क रोग की तरह प्रसारित होती है. माँसपेशियों में, नसों में, तंत्रिकाओं में. फिर हत्यारा सम्राट राजकीय शोक मनाता है. नगाड़े की चोट पर कहता है कि प्रजा राजकीय हत्या को हत्या न माने, प्राकृतिक मृत्यु मानकर मातम मनाए. शामिल शोक से ही संदेश जाएगा कि राज्य में एकता है.
फिर राजा याद दिलाता है कि असीम काल तक शोक नहीं मनाया जा सकता. यह महान राज्य है, इसका झंडा लंबे समय तक शोक में झुका नहीं रह सकता. मृत्यु और जीवन, दोनों ही उत्सव हैं. इसलिए राजाज्ञा है: विषाद समाप्त. प्रसन्नता प्रारंभ. पुराने सम्राट की मृत्यु हुए दो मास बीत गए. अब ख़ुशी का अवसर उपस्थित है. नये सम्राट का परिणयोत्सव है. मंगलाचरण है. जो चला गया, वह जा चुका है. पूर्व राजा पूर्वज हुए. जो हैं, वे सामने हैं. और अभी रहेंगे. इसलिए नृप कहे आनंद तो आनंद. मातम तो मातम.
राजा से डरो. याद रखो, वह भाई को मारकर आया है. उसके इतिहास से डरो. वह वर्तमान में भी इतिहास घटित कर सकता है. भाई को भाई मार सकता है. यह पहली बार नहीं हुआ है. याद करो, कैन ने ऐबल को मारा. समर्थन में और भी कथाएँ हैं. स्मृतियाँ हैं. इतिहास है. वह आदर्श हो न हो, उदाहरण तो है. कथा है. मिथक है. तर्क है. यह राज्यारोहण का उत्सव है.
(दो)
हैमलेट, तुम जान चुके हो कि हत्यारा सम्राट ही शोक और उत्सव एक साथ संभव कर सकता है. वही है जो एक आँख से ख़ुशी के और दूसरी आँख से दुख के आँसू छलकाने का समवर्ती जादू कर सकता है. वही है जो सिसकते हुए अपनी उपलब्धियाँ गिना सकता है. तुम्हारा शोक असहाय है. अपने पिता के शोक में तुम अकेले पड़ गए हो. तुम्हारी ममतामयी माँ भी इस में शामिल नहीं है. और तुम, जो गुज़र गया, उसे धूल में खोजते नहीं रह सकते. जो ख़ाक में मिल गया, उसे कल्पनाओं में, आकाशवाणियों और प्रेतयोनियों में नहीं खोजा जा सकता. यह शोक करने का तरीक़ा नहीं है. बदला लेने का तरीक़ा हो सकता है. लेकिन इसके लिए तुम्हारे हृदय और मस्तिष्क का संबंध कायम रहना चाहिए. उनके बीच संचार व्यवस्था बनी रहना चाहिए. मस्तिष्क में विद्यमान तीसरा नेत्र खुला रहे.
यह तुम्हारा अकेले का अकेलापन नहीं है. यह संबंधों का अकेलापन है. यह कालिमा से भरा जाल है. हर तरफ़ सत्ता का अँधेरा है. तब काली पोशाक पहनकर शोक करना व्यर्थ है. किसी पहनावे से कहीं बड़ा तुम्हारा दुख है. उसे बाहरी चीज़ें अभिव्यक्त नहीं कर सकेंगी. हैमलेट, तुमसे लोग कहेंगे कि एक दिन सभी के पिता मरते हैं . इस तरह शोकमग्नता व्यर्थ है. पुरुषोचित नहीं. अतार्किक है. लेकिन हैमलेट, यह सांत्वना नहीं है, इसका कोई अन्यथा निमित्त है. क्योंकि वे लोग शोक नहीं, उत्सव मनाना चाहते हैं. संगीत में, मदिरा में, आमोद में डूब जाना चाहते हैं. रक्त की परछाईं को, मय की लालिमा में विलीन कर देना चाहते हैं.
चाहो तो तुम नये राजा से कह सकते हो कि तुम सम्राट हो और अब मेरी माँ के पति हो, तुम्हें शोक मनाने की भला क्या ज़रूरत. मेरी माँ तुम्हारी रानी है. कृतघ्न. और मैं बस, शोकाकुल पुत्र हूँ. लेकिन हैमलेट, तुम कुछ कहोगे, कुछ नहीं कहोगे.
तुम संशय में हो. असमंजस में हो.
यही दुखांतिका है.
अब यह क़िला भी बंदीगृह है. इस में सिर्फ़ साँय-साँय है. यहाँ वे लोग निवास कर रहे हैं जो मारे जाएँगे. तुम बाहर जाओगे तो भी तुम मारे जाओगे. तुम राजकुमार हो. सुरक्षा में जितना ख़तरा है, उतना सुरक्षा के घेरे के बाहर भी. लक्ष्मण रेखाएँ अप्रभावी हैं. सुरक्षा धोखा है. राजसत्ता के लिए की गई एक बीज हत्या, अंतत: अपराध के विशाल बरगद में बदल जाती है. तुम्हारे पिता असमय चले गये परंतु वे तुम्हारे भीतर विद्यमान है और तुमसे संवाद करते हैं. तुम उनसे बात करते हो जैसे किसी जीवित प्रेत से. यह स्वप्न है, फंतासी है या नीच ट्रैज़ेडी. लेकिन सच्ची त्रासदी तो तुम्हारी दुबिधा में निवास करती है. अनिर्णय से बड़ी त्रासदी क्या हो सकती है, हैमलेट?
(तीन)
जो तुम्हारा पिता नहीं, तुम्हारे पिता का बधिक है, वह विश्वास दिलाता है कि मैं पिता हूँ. पितातुल्य हूँ. तुम इस राज्य के युवराज हो. क्या तुम हत्यारे के उत्तराधिकारी हो गए हो? तुम रंज में हो, संदेहग्रस्त हो, चुप रहते हो. वे इसे तुम्हारी सहमति मानते हैं. वे तुम्हारे हृदय का दुख नहीं समझते. उन्हें तुम्हारी पीड़ा नहीं, निष्ठा चाहिए. उन्हें उनके प्रति और राज्य के प्रति संशयरहित दृष्टि चाहिए. आज्ञाकारिता चाहिए.
ओस फूलों पर, पत्तों पर, दूर्वा पर अटकती है, सुंदर लगती है. पत्थरों पर नहीं. तुम अपनी तकलीफ़ की ठोस चट्टान को, ओस की बूँद में कैसे बदल सकते हो. यह असंभव है. तुम ख़ून की बूँद को शबनम का क़तरा कैसे कह सकते हो. तुम समझ चुके हो कि अब सब कुछ निस्सार है. बेहतरी की आशा, कठिन आशा है. यह तक्षक तुम्हारा पिता कैसे बन सकता है. तुम्हारे यशस्वी पिता और इस अपघाती राजा की तुलना कैसे हो सकती है. वह एक चमकता सूर्य था और यह एक बुझी हुई कंदील. इसमें से उजाला नहीं, धुआँ उठता है.
तुम माँ की तरफ़ देखते हो और एक ही ख़याल आता है- दुर्बलता, तुम्हारा नाम स्त्री है. वासना प्रबल है. प्रेम असत्य है. आँसू झूठे हैं. कामना सत्य है. महत्वाकांक्षा सर्वोपरि है. पति की मृत्यु के दो माह के भीतर विवाह. अभी तो आँसुओं का नमक भी नहीं सूखा है. यह तो किसी कपट की त्वरा है. यह छल की गति है. यह लालसा की रफ़्तार है. यह तो चंचलता है. यहाँ षडयंत्र का आवास है. हैमलेट, तुम्हारे प्रति चिंता दिखाई जा रही है, जो प्रेम दर्शाया जा रहा है, वह तुम्हारे सात्विक संदेह को क्लीव बनाने के लिए है. तुम्हारा असंदिग्ध समर्थन पाने के लिए है. पतित के निष्टकंटक राज्य के लिए है. तुम यहाँ, सत्ता के लाक्षागृह में सुरक्षित नहीं हो. तुम्हारा विश्वविद्यालय, तुम्हारी औपचारिक शिक्षा भी छूट गई है. अब पागलपन की ओट, मानसिक विचलन का अभिनय तुम्हारा कवच हो सकता है. चुनौती है कि तुम्हें अन्न में लगे घुन को मारना है. और अन्न के दानों को बचाना है. यह होगा नहीं.
तुम तलवार की नोक से पंखुड़ी कैसे उठाओगे.
(चार)
विडंबना की इस राह पर तुम्हारे हाथ से तुम्हारा प्रेम भी विलग हो जाएगा. तुम राजा की आँख की किरकिरी हो. तुम पर संकट विशेष है. तुम्हें मारे जाने के लिए तर्क गढ़े जा रहे हैं. अफ़वाहों का उत्पादन चल रहा है. तुम्हें नासमझ और अपरिपक्व सिद्ध किया जा रहा है. कि तुम अपना निर्माण नहीं कर सकते. तुम कोई निर्णय नहीं ले सकते. तुम्हें बुद्धि विक्षेप है. तुम बौड़म हो. तुम प्रेम में प्रेम से नहीं, हठ से काम लेते हो. तुम्हारा प्रेमपत्र ज़ाहिर हो गया है. तुम्हारी प्रिया को भयभीत किया जा रहा है. कि युवराज की प्रेम-प्रतिज्ञाएँ विश्वसनीय नहीं होतीं. प्रेयसी की प्रशंसा में कहे गए वाक्य, उपमाएँ, रूपक सब छद्म के छंद है. छद्मालंकार हैं. उन पर भरोसा मत करो. हैमलेट, तुम अपनी प्रेमिका के लिए भी संकट हो गए हो. तुम भावनाओं में बह जाते हो और अपने अंतर को गोपनीय नहीं रख पाते.
तुम्हें शिक्षा देनेवाला कोई मार्गदर्शी अभिभावक भी नहीं है. जो बता सके कि युवराज को कान खुले रखना चाहिए और आवाज़ पर लगाम देना चाहिए. तुम आवेश में अपशब्द कहने से नहीं चूकते. तुम इंगित कर देते हो कि तुम प्रतिकार की अग्नि में ज्वलंत हो. तुम कोमल ह्दय को मर्मभेदी शब्दों से चोट पहुँचाते हो कि वह अपने चेहरे पर एक और चेहरा लगाकर रखती है. उसे कटु वचनों से अनलंकृत करते हो. तुम प्रेमाकुल मन में साहस भरने की बजाय, उसमें अपनी दुबिधाएँ अंतरित कर देते हो. यहाँ तक कि अपना वह मतिभ्रम भी, जो तुम्हारे लिए अभिनय है, लेकिन उसके लिए वही वास्तविक संसार बन जाएगा. वही उसकी मृत्यु.
पाल पर बैठी हवाएँ तुम्हारी प्रतीक्षा कर रही हैं.
तुम उन हवाओं के भरोसे हो जिन पर तुम्हारा कोई वश नहीं.
पीछे छूटती लहरों के पास केवल शोकगीत रह जाता है.
(पाँच)
तुम्हारे पिता का नाम तुम्हारे नाम में उत्तरजीविता की तरह शामिल है- हैमलेट. उसी पिता का रक्त बहा दिया गया है लेकिन उसका एक अंश अभी तुम्हारी शिराओं में बह रहा है. तुम्हें संज्ञान है कि भाई ने दरअसल सम्राट को मारा है. तुम्हारे पिता भूपति नहीं होते तो वे नहीं मारे जाते. एक संभावित नरेश ही दूसरे नरेश को मारता है. और आश्वस्त करता है कि राजा पालनहार है. यह उलटबाँसी है.
त्रासदी है कि उसने तुम्हारी माँ का वरण कर लिया है. तुम्हारी माँ ने ख़ुद समर्पण कर दिया है, जैसे सहमति से कोई अपना ही अपहरण होने दे. वह मल्लिका बनी रहना चाहती है और तुम्हारी माँ भी. माँ शोकग्रस्त नहीं है, पुत्र शोकग्रस्त है. देखो, मृत्युभोज और स्नेह-भोज एक साथ रख दिए गए हैं. मानो चिता की अग्नि पर बनाया भोजन परिणयोत्सव में परोसा जा रहा है. एक ही वाद्ययंत्र से उत्सव गान और शोक गीत बजाए जा रहे हैं. यह बधाई आयोजन है या श्रद्धांजलि सभा. मानो यह कोषागार की नयी मितव्ययिता का कोई मज़ाक़ है. प्रहसन है. उपहास है. यह तो सफ़ेद चादर से ख़ून के तसले को ढाँपना है. यह त्रासदियों की शृंखला है.
अब यह राज्य, षडयंत्रकारी मद्यपों के देश के रूप में ख्याति प्राप्त करेगा. यहाँ मय के बहाने विष के प्याले पेश किए जाते हैं. ज़हर इस राज्य का राष्ट्रीय पेय है. इस देश की राजगद्दी एक राजशैया में बदल गई है. अश्लीलता, अपवित्रता और वासनामयी विलासिता की साक्षी. इसका जीवन दुस्वप्नों से अधिक डरावना है. अप्रत्याशित है. कँटीली झाड़ियों और लताओं की तरह उलझा है. इस जीवन से उठकर कोई जाग नहीं सकता. यह निद्रा नहीं है. यह स्वप्न नहीं है.
(छह)
अब चलना है तो आँखें खोलकर चलना होगा. पलक झपकने के अंतराल में भी धोखा हो सकता है. तुम सीधे सम्राट के खि़लाफ़ हो, हैमलेट. तुम्हारी गतिविधि, तुम्हारा प्रेम, तुम्हारा अवसाद, तुम्हारा विवेक, सब पागलपन के खाँचे में रख दिया जाएगा. तुम पर केवल संदेह होगा. तुम पर केवल निगरानी रखी जाएगी. तुम्हारे पक्ष में केवल दो बातें हैं: तुम्हारे दुख की आश्वस्ति. और उनके सुख की अनाश्वस्ति.
यदि तुम बुद्धिमान हो तो बुद्धि में साहस का समावेश करो. वही केन्द्रक होगा, वही निर्णायक. लेकिन तुम उधेड़बुन में रहते हो. करूँ कि न करूँ. यह हो कि न हो. यह हो सकता है या नहीं. ‘टू बी ऑर नॉट टू बी’. यही आफ़त है. यही दुनिया भर में अवसाद की जड़ है. दुचित्तापन संकटों का जनक है. कहने को यह तुम्हारी व्यक्तिगत त्रासदी है लेकिन परिणाम सबको भुगतना पड़ेगा. वह दूरगामी होगा. वह किलों को खंडहरों में बदल देगा. हिमखंडों को समुद्र में. समुद्रों को तूफ़ान में.
तुम्हारी यह महान किंकर्त्तव्यविमूढ़ता. न तुम ठीक तरह आत्महंता हो सकते हो, न ठीक समय पर वार कर सकते हो. तुम दुबिधा को इस तरह पाल रहे हो कि वह चिरायु हो जाए. नियंत्रक और दुशासक बन जाए. धीरे-धीरे वह चट्टान बन जाएगी और तुम्हारे ऊपर ही धसकेगी. मलबे में से केवल तुम्हारी कराह सुनाई देगी. क्या तुम्हारी तथाकथित चेतना, अच्छाई, नैतिकता और क्षमाशीलता तुम्हें कायर बना रही है? सच यह है कि तुम्हारी वीरता में असमंजस का निवास हो गया है.
तुम ठोस कदम लेने के पहले कोई नाटक करना चाहते हो.
ठीक है. नष्ट करने और होने के कई तरीक़े हैं.
(सात)
कलाकार अपने समय के वाचक होते हैं. आशा है कि यह नाटिका जिसे तुम महल में आयोजित कर रहे हो, राजा की चेतना को अपराध बोध की तरफ़ ले जा सके. उसके अवचेतन को उजागर कर दे. और रक्तहीन पश्चाताप संभव हो. लेकिन अति अभिनय के ख़तरे हैं. तब यह नाटक केवल शोरगुल रह जाएगा. मर्म छूट जाएगा. आकार की जगह निराकार रह जाएगा. इसलिए शब्दों की क्रिया से संगति बनी रहना चाहिए. विचार रहित शब्द व्यर्थ हैं. शब्द और विचार के अंतराल गहरी खाई है तो सब कुछ उसी में गिर जाएगा.
भाव के बिना भंगिमा विकलांग हो जाती है. तुम्हारे इस नाट्य का अभिधात्मक अर्थ अपेक्षित है. यह कला का दाँव है. यह जीवन का दाँव है. यह व्यंजना भी है लेकिन जीवन के भीतर जीवन का नाटक है. नाटक के भीतर नाटक है. यह किए जा चुके कृत्यों की पुनर्रचना है. यह आरोप पत्र है और सुनवाई भी. यह उसके खिलाफ़ है जो राजा है. और न्यायाधीश भी. यह ख़तरनाक युग्म है.
हैमलेट, तुम ठीक कह रहे हो कि कलाकार विद्रूपता का पुनर्मंचन करते समय, कथ्य को कुहासे में न डालें. उसे नेपथ्य से बाहर लाएँ. यह प्रयास त्रासद हो सकता है. इस नाटक में यह संभावना है. लेकिन अब कालिमा को काली पोशाक में दिखने दो. स्त्री को मोहिनी रहने दो. बधिक सम्राट, तुम अपनी मल्लिका के साथ दर्शकों में हो. अब वही वारदात मंचित होनेवाली है जो यथार्थ में हो चुकी है. वही समक्ष होगा. इससे डरना मत. कठोर सत्य सामने आते ही आँखों के आगे अँधेरा छा जाता है. रोशनी में रोशनी नहीं दिखती. राजन, तुम्हारे हत्यारे कृत्य को इस नाटिका ने उजागर कर दिया है. भृकुटियों को शिथिल कर लो.
जो परदे के पीछे था अब चौपाल पर है.
एक दिन हर मंच से यवनिका उठ जाती है.
सम्राट, तुम अब पश्चाताप में हो और क्षमा चाहते हो. तुम कथाओं को याद करते हो कि जब पहली बार भाई ने भाई को मारा. अपने ही बंधु की पत्नी का हरण किया. उसके बाद जैसे यह दुनिया, भाई द्वारा भाई को मारने की सभ्यता हो गई. तुम उसके नये संवाहक हो. उसी ख़ून से लथपथ तुम्हारे हाथ में वह सूजन है जिसे तुम दिनचर्या में रोज़ अनुभव करते हो. यह महत्वाकांक्षा का शोथ है. यह अपराध की चोटग्रस्त अनश्वर नीलिमा है. लेकिन कोई शोकाकुल हृदय तुम्हें क्षमा नहीं कर पाएगा. तुम्हें प्रार्थनारत देखकर हैमलेट तुम्हें मार भी नहीं पा रहा है. वह दुबिधा के ज्वर में है. और तुम हैमलेट की पीड़ा नहीं समझ रहे. तुम केवल उससे आशंकित हो, भयभीत हो. लेकिन इस से कोई त्राण नहीं मिलेगा. न तुम्हें, न तुम्हारे साम्राज्य को.
(आठ)
क्या हैमलेट, नीरो जैसा पतित, अधम और हत्यारा हो जाएगा? नहीं. वह व्यथित है, पातक नहीं. लेकिन उसे अपनी तकलीफ़ का निस्तार तो करना होगा. अपनी माँ के सामने अपने दुख के थक्के विरेचित करना होंगे. दुर्वचन कहना पड़ें तो कहना होंगे. उसके हृदय में बन गए व्रण की यही चिकित्सा है. यही शल्यक्रिया है. माँ, तुम केवल सम्राज्ञी हो. तुमने प्रेम को, विवाह को, संगिनी होने को लज्जित कर दिया है. सज्जा करने की चाह में अपने माथे पर फूल की जगह अंगार रख लिया है. तुम्हारे मृत पति, मेरे पिता की क्या किसी से तुलना मुमकिन है. जिन्होंने तुम्हें आजीवन कभी मुरझाने नहीं दिया. अब तुम खर-पतवार में खाद डालोगी तो वह पूरे बाग़ीचे को खा जाएगी.
मेरी कठोर ज़बान का उत्तर तुम्हारी चुप्पी कैसे हो सकती है? तुम जानती हो कि यही नरेश इस राज्य के उज्ज्वल सम्राट का हत्यारा है. तुम अब उसकी अंकशायिनी मत बनो. अच्छाई का पक्ष लेने के लिए बुराई के प्रति क्रूर होना ही पड़ता है. मैं तो यह भी नहीं समझ पा रहा हूँ कि कौन अपना है. कौन पराया. मेरे शब्द तुम्हारा सीना चाक़ कर रहे होंगे लेकिन तुम अपने हृदय के बुरे हिस्से को विस्मृत कर दो और उन धमनियों को याद रखो जो अच्छा ख़ून प्रवाहित करती हैं.
लेकिन जो छिपकर घात कर रहा है, जो षड्यंत्र कर रहा है, जिसने धोखा किया, जो धोखा दे रहा है, देखो माँ, वह धोखे में मारा भी जा सकता है. यह त्रासदी होगी.
और कई त्रासदियों की शुरुआत.
(नौ)
हैमलेट, तुम्हारी प्रेमिल इच्छाएँ युवावस्था में ही कुम्हला गईं. कुछ फूल वियोग में सदैव के लिए निर्जीव और अजैविक हो जाते हैं. वंध्य. उनके पौधे किसी मृदा में नहीं पनपते. कोई ज़मीन उनके लिए उर्वर नहीं रह जाती. एक वनस्पति, एक झाड़ी को पल्लवित होने के लिए भी एक छोटी-सी जलधारा चाहिए. फिर शायद वहाँ कोई उपवन पनप सके. और अन्य जीवन को भी आश्रय मिल सके. लेकिन वह जलधारा सूख गई है.
अश्रुधारा उसका विकल्प हो नहीं सकती.
तुम यहाँ उस क़ब्र की खुदाई देख रहे हो जिसमें तुम्हारा प्रेम दफ़न होगा. तुम्हारे हिस्से केवल आक्षेप आएगा. कुछ लोग जो पहले से ही सड़े हुए थे, यहाँ आकर तेज़ गति से गल जाते हैं. बाक़ी युगों तक प्रतीक्षा करते हैं. यह पृथ्वी ऐसी ही क़ब्रों से पटी पड़ी है जिनमें हर किसी का प्रेम दफ़न है. हैमलेट, कंकाल के अवशेषों को देखते हुए तुम दार्शनिक होकर क्या करोगे. तुम विवश, विफल प्रेमी हो. यह बड़ी उपाधि है. तुम जानते हो, तुम्हारे भीतर एक नदी है मगर उसके किनारे नुकीली चट्टानों से बने हैं. और सँकरे हैं. वह तुम्हारे अंतर की घाटी में फँसी है. वह हाँफती है. और वाष्पित होती है. भीतर केवल रेत झिलमिलाती है. तुमने जिसे असीम प्यार किया है, उसी की हत्या का कलंक तुम्हारे सिर पर है. तुम्हारे स्पष्टीकरण व्यर्थ हैं. मगर धीरज रखो, तुम्हारे अपराधियों पर तलवारों की बिजली गिरेगी. लेकिन अभी तो तुम्हारे प्रेम की क़ब्र पर मिट्टी गिर रही है.
क़ब्र के कीड़े अनश्वर हैं.
(दस)
हम क्या हैं, हम बहुत थोड़ा ही जान सकते हैं. हम क्या हो जाएंगे, हमें यह बिल्कुल नहीं पता. अनुभव इतना ही बता सकते हैं कि दुख चोरों की तरह चुपचाप नहीं आते. वे सेना की तरह आते हैं. पलटन के साथ. क़दमताल करते हुए. उन्हें किसी का ख़ौफ़ नहीं. वे खुद ख़ौफ़ का पर्याय हैं. वे अपराजेय हैं. उनके साथ आप केवल रहना सीख सकते हैं. वही बचाव है. वे रौंदते हुए आते हैं. कुचलते हुए जाते हैं. दुख से प्रताड़ित लोग इतिहास बनते हैं, फिर मिथक बन जाते हैं. वे फुसफुसाहटों और अफ़वाहों में जीवित रहने लगते हैं. हैमलेट, तुम दुबिधा का मिथक बन जाओगे. तुम सदैव उस मन में रहोगे जो संशयग्रस्त है.
और राजन, तुम सीढ़ियों से ऊपर चढ़ रहे हो मगर देखो, तुम नीचे आ रहे हो. या नीचे जा रहे हो. तुम ऊँचाई पर नहीं, रसातल में मिलोगे. ये सीढ़ियाँ हैं, ये ऊपर की तरफ़ जाती हैं लेकिन किसी को ऊपर नहीं ले जातीं. ये धोखे की नसेनियाँ हैं. ठीक बीच में या कठिन ऊँचाई पर पहुँचकर तुम लड़खड़ाकर गिरोगे. ये असाध्यता की सीढ़ियाँ हैं. हालाँकि तुम अपना कपट नहीं छोड़ेगे. वह तुम्हारे राजत्व का हिस्सा है. उत्प्रेरक साथी है.
तुम आपराधिक नरेश हो.
तुम अपने किरीट को बचाने के लिए लोगों को दुष्प्रेरणा दोगे. बदनीयती दोगे. निश्चलता तुम्हारा आसान शिकार होगी. दुखित होने के लिए सिर्फ़ चेहरा नहीं, एक हृदय भी चाहिए. तुम भावनाओं का उपयोग करोगे और कहोगे कि ग़लत राह चलो, राजा का अभयदान तुम्हारे साथ है. आशंकित राजतंत्र इसी तरह चलता है. तुम अपने युवराज की हत्या के लिए उसके मित्र को ही शत्रु बनाओगे. उकसाओगे. प्रशिक्षित करोगे. लेकिन तुम उन लोगों में हो जो किसी के दुख में दुखी नहीं होते. अवसर खोजते हैं. तुम्हारी कायरता कहती है कि जो काम खड्ग नहीं कर सकता, कपट कर सकता है. धोखा बहुधारी तलवार है. और राजसत्ता के समर्थन से की गई हत्या दुर्घटना में बदल जाती है. या प्राकृतिक मृत्यु में. और गौरव का विषय बना दी जाती है.
(ग्यारह)
हैमलेट, तुम अपने मित्र के साथ यह द्वंद्व, यह मृत्यु युद्ध मत करो. वह बरगलाया हुआ है. इस चुनौती में षड्यंत्र है. छल है. ज़हर बुझी तलवार है. और बच गए तो विष का चषक है. लेकिन अब तुम वहाँ तक आ गए हो जहाँ चेतावनियों का भाष्य समझ नहीं आता. साधारण भाषा भी दुर्बोध हो जाती है. कोई इशारा करता है कि यह दाँव मत खेलो तो उसकी तुम उपेक्षा करते हो. तुम भूल रहे हो कि यदि कोई कार्य करने का मन नहीं तो उसे नहीं करना चाहिए. मन की बात मत कहो. लेकिन मन की बात तो सुनो. जो अशुभ की आशंका का उपहास करते हैं, अशुभ उनकी प्रतीक्षा करता है. तुम्हारे अति आत्मविश्वास में असावधानी शरीक है.
तुम घेर लिए गए हो. सबके मुखौटे हट गए हैं.
दुखित माँ ने तुम्हारे लिए आरक्षित विष पी लिया है. माँ मय और विष का फर्क जानती है. वह तुम्हें बचा नहीं सकती, लेकिन मर तो सकती है. हैमलेट, कूट-युक्तियों की गठरी खुल गई है. अब तुम्हारे पास सब कुछ नष्ट करने के अलावा कोई विकल्प नहीं. सच्ची त्रासदी वही है जो किसी को नहीं बख़्शती. जितनी भी मौतें होना है, जितनी भी हत्याएँ होना हैं, अपनों की, परायों की, सब जान चुके हैं कि राजा ही इसका उत्तरदायी है. राजा ही यमदूत है. बाज़ी पलट गई है. तुम्हारे संशय, तुम्हारा दुचित्तापन भी कम दोषी नहीं. सिंहासन उन के लिए हैं जो पहले से मृतक हैं. या मृतक होने की राह पर हैं. यह सिंहासनों की त्रासदी है.
अब संसार में एक दुखद कथा और जुड़ जाएगी.
बाक़ी सब तरफ़ चुप्पी पसर जाएगी.
एक और त्रासदी के पहले की शांति.
Hamlet, 1948/ Director- Lawrence Olivier
कुमार अंबुज |
समय, सत्ता और जीवन की विद्रूपता को उजागर करता, व्यक्ति के अंतर्द्वंद, उसके अनिर्णय से उत्पन्न त्रासदी को अत्यंत गहनता से वर्णित करता हमेशा की तरह बेहतरीन आलेख। कुमार अम्बुज जी को और समालोचन को धन्यवाद।
आज के संदर्भ में भी इसका पुनर्पाठ प्रभावी और प्रासंगिक है,यह आलेख स्वयं इस तथ्य की पुष्टि करता है। इसके लिए कु अंम्बुज को साधुवाद ! विश्व सिनेमा से उनकी यह श्रृंखला हम जैसों के लिए जिन्होंने बाहर की फिल्में बहुत कम देखी हैं,अत्यंत मूल्यवान है।
नाटक भी पढ़ा है और फिल्म भी देखी थी। कुमार अंबुज ने हैमलेट के अंतर्द्वंद, मर्मान्तक पीड़ा और संशयों को सूक्ष्म संवेदना से जिस काव्यात्मक भाषा में अभिव्यक्त किया है वह दुर्लभ है।
यूँ समालोचन के सभी लेखकों कुमार अंबुज मेरे लिए बहुत महत्वपूर्ण हो चुके है और फ़िल्मों के लगभग दूर रहने वाला मैं, अब रुचि लेने लगा हूँ|
इस आलेख को पढ़कर अजब मन हुआ है| एक तो महान लेखन, उस पर बेहतरीन फ़िल्म, उस पर अस अस कर देने वाला कुमार अंबुज जैसा कवि दर्शक| प्रेरक है कि मारक है?
मुझे अपने क्षमता पर संदेह है कि मेरे पास वो समझदार आँखें हैं कि यह फ़िल्म देख पाऊँ|
यहाँ अशोक अग्रवाल जी कि टिप्पणी पढ़ रहा हूँ; “नाटक भी पढ़ा है और फिल्म भी देखी थी। कुमार अंबुज ने हैमलेट के अंतर्द्वंद, मर्मान्तक पीड़ा और संशयों को सूक्ष्म संवेदना से जिस काव्यात्मक भाषा में अभिव्यक्त किया है वह दुर्लभ है।”
ईश्वर, मेरी आँखों में कुछ अंश उस सूक्ष्म संवेदना का पैदा होने दे| नई समझ के लिए मेरी चाह दिन ब दिन मजबूत हो रही है|
प्रिय अंबुज
अभी हैमलेट की आप द्वारा की गयी प्रस्तुति पढ़ी।एक साँस में।हैमलेट पर हिन्दी में इतना विचारप्रवण भावोष्ण लेख दूसरा नहीं है।हिन्दी में पढ़ते हुए हैमलेट के नये अर्थ खुले।वे ही पंक्तियाँ इतनी नयी लगीं।आपकी भाषा तपे हुए लौह छड़ सी है जिससे आत्मा में फफोले उठते हैं।अप्रतिम।काश मैं ऐसा लिख पाता।न तो बधाई कह सकता न आभार।
अरुण कमल
हैमलेट की इतनी सुंदर और मार्मिक व्याख्या पढ़कर दंग रह गया। यह लेख बहुत कुछ सोचने को विवश करता है। कोई रचना ऐसे ही महान और कालजयी नहीं बनती। उसमे छिपा शाश्वत सत्य और दर्शन उसे युगों के पार ले जाते हैं। कुमार अंबुज और समालोचन को तहेदिल से बधाई।
ललन चतुर्वेदी
विलक्षण प्रस्तुति।
सर हिंदी सिनेमा में विशाल भारद्वाज ने इसी नाटक पर एक फिल्म बनाई थी जिसका नाम था “हैदर” कृपया उस पर भी अपना रिव्यू दीजिए