हिटलर की गिरफ़्त में निर्देशिका विजय शर्मा |
वैसे तो लीडरशिप के कई प्रकार हैं, पर मोटे तौर पर इसे दो मुख्य भाग में विभाजित किया जा सकता है. सकारात्मक लीडरशिप तथा नकारात्मक लीडरशिप. सकारात्मक लीडरशिप पर फिर कभी. नकारात्मक लीडरशिप भी बहुत प्रभावशाली व्यक्तित्व का परिणाम होती है. उसके पास भी करिश्मा होता है, लोग उसकी चकाचौंध में आसानी से आ जाते हैं. वह बहुत प्रभावशाली वक्ता होता है. भाषा का चमत्कार पैदा करना उसे आता है. वह अपनी वक्तव्य कला का उपयोग लोगों को अपने स्वार्थी लक्ष्य का माध्यम बनाने के लिए करता है. लोगों को अपने जाल में फंसा कर, उनका शोषण कर अपनी स्वार्थ सिद्धि करता है. उसे लोगों का अपमान करने में, उन्हें नष्ट करने में कोई गुरेज नहीं होता है. पर वह निर्माण नहीं विध्वंस करता है, लोगों का विनाश, चीजों का विनाश. इतिहास और वर्तमान में दुनिया भर में तमाम नकारात्मक लीडर हुए हैं. ये तानाशाह जिंदगी भर ऐश करते हैं, मगर इनका अंत बड़ा त्रासद होता है. अडोल्फ़ हिटलर एक ऐसा ही नकारात्मक लीडर था, जिसने अपनी महत्वाकांक्षा के कारण दुनिया को तबाह कर दिया. जिसकी गिरफ़्त में न मालूम कितने युवा, बुद्धिजीवी आए और उसके पागलपन में होम हुए.
कई किशोर प्रारंभ में हिटलर के करिश्मा से चकित हो कर उससे प्रभावित थे. उनमें से कई को जब हिटलर की असलियत पता चली तो उन्होंने उसके प्रति विद्रोह किया और फिर अपने काम में उसके कारनामों का कच्चा चिट्ठा खोलते रहे. नोबेल पुरस्कृत उपन्यासकार गुंटर ग्रास ऐसे ही व्यक्ति थे. मगर कुछ लोग ताजिंदगी उसकी चमक-दमक से बाहर न आ सके और अफ़सोस हुआ, पर सारी उम्र उसके लिए काम करते रहे, तब भी जब वह उन्हें गिरफ़्तार कर सता रहा था. ऐसी ही एक सिने-निर्देशक हुई है लेनी रिफ़ेंस्थाल. बहुत बाद में उसने भी अफ़सोस किया. मगर तब तक बहुत देर हो चुकी थी.
बहुत सारी फ़िल्में हिटलर और उसके काम के प्रचार-प्रसार के लिए बनाने वाली जर्मन सिने-निर्देशक लेनी रिफ़ेंस्थाल का काम काफ़ी विवादास्पद रहा. जन्म के समय उसका पूरा नाम हेलेन बेर्था अमाली रिफ़ेंस्थाल था, उसका जन्म 22 अगस्त 1902 में बर्लिन में बेर्था तथा अल्फ़्रेड रिफ़ेंस्थाल के घर हुआ. वह एथलीट थी, बारह साल की उम्र में जिमनास्टिक एवं स्वीमिंग क्लब जाने लगी थी. असल में उसके जीवन का प्रारंभ एक प्रयोग से हुआ. वह मंच पर नाचने का अनुभव करना चाहती थी. नृत्यांगना के रूप में उसकी ढेर सारी सफलता ने फ़िल्मों के लिए उसकी राह खोल दी. उसने सिने-निर्देशक आर्नोल्ड फ़ैंक का ध्यानाकर्षित किया और उसकी कुछ फ़िल्मों में अभिनय किया. लेनी ने 10 फ़िल्मों में अभिनय किया, कुछ में सह-निर्देशन भी. आर्नोर्ड के सह-निर्देशन में उसने 1926 में ‘द होली माउंटेंन’ बनाई, इसमें उसने मुख्य भूमिका की. इस फ़िल्म के बाद खूबसूरत लेनी की माँग फ़िल्म जगत में बढ़ गई. आर्नोल्ड फ़ैंक उसका मेंटर बन गया और जल्द ही वह अभिनय से सिने-निर्देशन के क्षेत्र में उतर गई 14 फ़िल्मों का निर्देशन किया, इसमें साह-निर्देशित फ़िल्में भी शामिल हैं.
उसके अभिनय की बानगी ड्रामा, रहस्य एवं फ़ंतासी फ़िल्म ‘द ब्लू लाइट’ में मिलती है. फ़िल्म उसने बेला बलाश के सात मिल कर निर्देशित की. 1932 में पहाड़ों की यात्रा की रहस्यमयी, रोमांटिक गाथा पर ‘द ब्लू लाइट’ बनी. इसमें लेनी रिफ़ेंस्थाल ने इटली की एक आदर्शवादी लड़की युंटा की भूमिका निभाई. युंटा कठिन चढ़ाई के बाद उस जादुई चोटी पर पहुँचती है, जहाँ क्रिस्टल से चमकीली नीली रौशनी निकलती है. वहाँ के मिथक के अनुसार उस चोटी पर जाने वाला मृत्यु को प्राप्त होता है. मगर युंटा वहाँ जाकर रौशनी के मूल को देखती है. फ़िल्म को 1934 का अमेरिका के नेशनल बोर्ड ऑफ़ रिव्यू का सर्वोच्च सम्मान (विदेशी फ़िल्म) प्राप्त हुआ. 1951 में उसने ‘द ब्लू लाइट’ को पुन: एडिट किया जो 1952 में प्रदर्शित हुई.
इसी समय हिटलर सत्ता में आया था. हिटलर ने सत्ता में आने पर लेनी को 1933 में न्यूरेम्बर्ग में होने वाली नाजी पार्टी की रैली को कैमराबद्ध करने को कहा, आज यह फ़िल्म ‘विक्ट्री ऑफ़ फ़ेथ’ उपलब्ध नहीं है. पर 1934 की रैली डॉक्यूमेंट्री फ़िल्म ‘द ट्रैयम्फ़ ऑफ़ द विल’ उपलब्ध है. इसने उन्हें पूरे यूरोप में प्रसिद्ध कर दिया. हिटलर ने लेनी रिफ़ेंस्थाल को इस फ़िल्म को बनाने के लिए भी कहा था. हिटलर-नाज़ी आदर्शों का गुणगान करती, यह हिटलर की प्रोपेगंडा फ़िल्मों में शीर्ष पर मानी जाती है. फ़िल्म को 1935 का द जर्मन फ़िल्म प्राइज़ तथा 1937 में इंटरनेशनल ग्रैंड प्री मिला.
मगर इसी डॉक्यूमेंट्री के भूत ने ताजिंदगी लेनी का पीछा किया. क्योंकि इस फ़िल्म के साथ नाजी क्रूर अत्याचार जुड़ा था. मरने से कुछ पहले उसने एक साक्षात्कार में कहा था, यदि उसे मालूम होता कि ‘द ट्रैयम्फ़ ऑफ़ द विल’ उसका आजीवन पीछा करेगी तो उसने इसे कभी नहीं बनाया होता. सारी दुनिया में उसकी थू-थू हुई, पचास साल वह कोई और फ़िल्म न बना सकी.

जर्मन आर्म्ड फ़ोर्स को संतुष्ट करने के लिए लेनी रिफ़ेंस्थाल ने 1935 में ‘डे ऑफ़ फ़्रीडम: आवर आर्म्ड फ़ोर्सेस’ एक लघु फ़िल्म बनाई. अगले साल उन्हें 1936 के ओलंपिक खेलों पर दो भाग में फ़िल्म बनाने का काम भी मिला. उस साल ये खेल जर्मनी में हुए थे. ‘ओलंपिया’ नाम से ये फ़िल्में दो भाग (पहले भाग ‘फ़ेस्टीवल ऑफ़ नेशन्स’, दूसरा भाग ‘फ़ेस्टीवल ऑफ़ ब्यूटी’ नाम से) में बनी. दो साल बाद 1938 में जाकर इनका प्रदर्शन हुआ. दूसरे भाग की फ़िल्म ‘फ़ेस्टीवल ऑफ़ ब्यूटी’ अपनी कलात्मकता के लिए सराही गई.
एक समय आया जब लेनी ने चालीस के दशक में बर्लिन छोड़ दिया और कुछ लोगों के साथ हिचहाइकिंग पर निकल गई. उसने अपनी माँ तक पहुँचने की कोशिश की. पर उसे अमेरिकी ट्रुप ने कस्टडी में ले लिया. उसने निकल भागने का प्रयास किया, परन्तु पकड़ी गई. फिर जब वह साइकिल से अपने घर पहुँची तो पता चला कि अमेरिकी ट्रुप्स ने उसका घर जब्त कर लिया है. कहा जाता है कि अमेरिकी ट्रुप्स ने उसके साथ कोई बुरा व्यवहार नहीं किया.
इसके बाद काफ़ी समय तक लेनी के बुरे दिन चले. अठारहवीं सदी के स्पैनिश ऑपेरा के आधार पर उसने ‘लोलैंड’ बनाई, जिसे बनने के बीच 1944 में रोक दिया गया. इसी समय उसके पिता और भाई की मृत्यु हुई. वह खुद भी काफ़ी बीमार पड़ गई, इसी समय उसने जर्मन आर्मी के एक मेजर पीटर जेकब से शादी की. लेकिन इसी समय से हिटलर ने उसे निगरानी में रख दिया. बाद में ‘हिटलर्स फ़िल्म गॉडेस’ के नाम से जानी जाने वाली लेनी रिफ़ेंस्थाल को गिरफ़्तार करके जेल में डाल दिया गया, लेकिन बाद में दोषमुक्त कर रिहा कर दिया गया. 1945 से 1948 तक लगातार उसे जर्मनी के किसी-न-किसी कैंप में रखा गया.
जो नुकसान होना था, सो हो चुका था. खूबसूरत लेनी रिफ़ेंस्थाल दोबारा फ़िल्म जगत में अपने पैर न जमा सकी, उस समय की फ़िल्म बिरादरी ने उसका बॉयकॉट कर दिया. उसके अनुसार उसने अर्नेस्ट हेमिंग्वे का ‘ग्रीन हिल्स ऑफ़ अफ़्रीका’ पढ़ा था और उससे प्रभावित हो वह 1955 में सुडान जाने के लिए तैयार हो गई. अगले साल वह वहाँ गई और कई महीनों तक न्युबा लोगों के बीच रही. उसने 1972 से 1997 के बीच तीन किताबें लिखीं. ये किताबें मुख्य रूप से फ़ोटोग्राफ़िक लेख है, जिसमें उसने अफ़्रीकी लोगों एवं उसकी संस्कृति के विलीन होने का दस्तावेजीकरण किया है. कदाचित यह उसका सर्वोत्तम कार्य है, उस पर लगे नस्लवाद के आरोप का उत्तर. यह आरोप उसके ‘ओलम्पिया पार्ट वन: फ़ेस्टिवल ऑफ़ द नेशन्स’ के निर्देशन पर लगा था.
वह अपने काम में लगी रही, अफ़्रीका गई और गुलाम व्यापार पर एक रंगीन डॉक्यूमेंट्री ‘ब्लैक कार्गो’ बनाई, अगले पंद्रह सालों में स्पेन में रह कर तीन स्क्रीनप्ले लिखे, और अपनी फ़िल्म ‘ओलम्पिया’ ले कर जर्मनी का दौरा किया. उसने ‘द लास्ट ऑफ़ द न्युबा’ नाम से ढेरों फ़ोटोग्राफ़ प्रकाशित किए. लंदन टाइम्स ने 1972 में म्यूनिख में होने वाले ओलंपिक खेलों को कवर करने का काम उसे सौंपा. 1974 वह कोलोराडो में फ़िल्म समारोह में गई, उसे वहाँ से नाज़ी विरोधियों ने उठा लिया. ‘पीपुल ऑफ़ काऊ’ नाम से 1976 में उसने फ़ोटोग्राफ़ का एक और भाग प्रकाशित किया. स्कूबा डाइविंग सीख कर उसने पानी के भीतर के कोरल जीवन पर फ़ोटोग्राफ़ी की और ‘कोरल गार्डेन्स’ नाम से प्रकाशित किया. 1976 में कैनडा में होने वाले मॉंट्रियल ओलम्पिक गेम्स में वह गेस्ट ऑफ़ ऑनर थी.

कहने को लेनी भले ही विवादास्पद रही हो मगर उसने फ़िल्म निर्माण में कई अनोखे प्रयोग किए. वह बहुत साहसी तथा कुशल सिने-निर्देशक थी. उसने खुद कैमरे की कई नई तकनीक विकसित की. उसने कैमरे को रेल पर रखा ताकि वह दौड़ने वाले की गति के अनुसार शूटिंग कर सके. उस समय ज़ूम लेंस नहीं आए थे और कैमरे की आवाज़ या रेल की आवाज फ़िल्म में नहीं आनी चाहिए, इसलिए उसने ऐसे कैमरे का विकास करवाया जिनसे क्लोज-अप में भी कैमरे का शोर न रिकॉर्ड हो. घुड़सवारी को फ़िल्माने के लिए उसने ऑटोमैटिक कैमरे को एक बैग में रख दिया और कैमरे के चारों ओर के खाली स्थान को पक्षियों के पंख से भर दिया. इस बैग को उसने एक दूसरे घोड़े की काठी पर रखा और इस तरह घुड़सवारी को कुशलता से कैमरे में कैद कर लिया.
इसी तरह उसने ऑटोमैटिक कैमरों को गुबारों से जोड़ कर हवा में स्टेडियम के ऊपर उड़ा दिया ताकि होने वाले कार्यक्रमों की खूब बारीकी से फ़ोटोग्राफ़ी हो सके. उद्घाटन समारोह के समय उसने सिर के ऊपर से जहाज से शॉट् लेने की योजना बनाई थी मगर वर्षा के कारण यह कार्य सफ़ल न हो सका. उसने एक अन्य प्रयोग किया, पानी के नीचे की शूटिंग के लिए विशेष तरह के कैमरा का प्रयोग. तैराकी के लिए छोटे कैमरे को रबर राफ़्ट में जोड़ कर तैराक के साथ-साथ घुमाया-तैराया और फ़ोटोग्राफ़ी की. इन्हीं सब नए प्रयोगों के लिए फ़िल्म इतिहास में लेनी रिफ़ेंस्थाल को सदा याद किया जाएगा.
अपने फ़िल्मीं जुनून के कारण उसने झूठ भी बोला. 1973 में गहरे समुद्र में जाने के लिए लाइसेंस प्राप्त करने के लिए लेनी ने अपनी उम्र गलत बताई. प्रशांत महासागर में डीप-डाइविंग के दौरान एक शार्क ने तीन बार उस पर हमला किया. यह बात एक टीवी डॉक्यूमेंट्री में 2002 में दिखाई गई है. ऐसे ही जब वह 2000 में 97 साल की उम्र में सुडान में शूटिंग कर रही थी, हेलिकॉप्टर हादसे में उसकी कई पसलियाँ टूट गईं और फेफड़े को भी नुकसान पहुँचा, उसे कई सप्ताह अस्पताल में गुजारने पड़े.
लेनी रिफ़ेंस्थाल जुनूनी, जुझारू और साहसी महिला थी. वह 100 साल की हुई तो उसने गहरे समुद्र में गोताखोरी पर ‘अंडरवाटर इंप्रेशंस’ प्रदर्शित की. इस सिलसिले में उसकी किताबें– कोरल गार्डेन्स’, ‘वंडर अंडर वाटर’ तथा ‘अंडर वाटर इंप्रेशंस’ हैं.
कुछ लोगों का मानना है, ‘लो लैंड’ लेनी का हिटलर को सिनेमैटिक उत्तर था, इसमें वह हिटलर और उसके साम्राज्य को नकारती है. मगर यही फ़िल्म उसके लिए बड़ी मुसीबत बन कर आई. इसमें वह 20वीं सदी के यूरोप को केंद्र में रख कर एक डॉन्सर के जीवन को दिखाती है. यह स्त्री एक साथ दो लोगों के प्रेम में है. दोनों आदमियों के स्वभाव-वर्ग में जमीन आसमान का फर्क है. एक प्रेमी विनीत गरेड़िया है और दूसरा शाही मार्कीज. लेनी ने स्वयं इसमें भूमिका भी निभाई है. द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान इसे बनाना काफ़ी कठिन था. लेनी सच में दो के प्रेम में थी, हिटलर और प्रकृति.
समीक्षक इसे ‘द ब्लू लाइट’ से भी बेहतर बताते हैं. पहाड़ पर किए गए एक्शन बहुत खूबसूरत बन पड़े हैं. इसमें एक संदेश भी है, ‘वाटर फ़ॉर द पेजेंट्स-पेजेंट्स बिफ़ोर द नेस्टी रिच नोबलमैन’.
जर्मन निर्देशक रे म्यूलर ने 1993 में उसकी जीवनी पर एक फ़िल्म ‘द वंडरफ़ुल, हॉरीबल लाइफ़ ऑफ़ लेनी रिफ़ेंस्थाल’ बनाई. उसी साल उसकी आत्मकथा, ‘लेनी रिफ़ेंस्थाल: ए बायोग्राफ़ी’ प्रकाशित हुई. कुल चार पुरस्कार पाने वाली लेनी रिफ़ेंस्थाल पर 2000 में जोडी फ़ोस्टर फ़िल्म बनाना चाहती थीं मगर उसका खूब विरोध हुआ, कहा गया भले ही वह हिटलर से आकर्षित थी और उसके ‘इनर सर्किल’ की अंतिम बची सदस्य थी, मगर होलोकास्ट में उसकी भूमिका से कभी इंकार नहीं किया जा सकता है. अंतत: जूडी फ़ोस्टर का यह प्रोजेक्ट आगे न बढ़ सका. इसी तरह 2007 में ब्रिटिश स्क्रीनराइटर रुपर्ट वाल्टर्स लेनी की जिंदगी पर एक फ़िल्म बनाना चाहते थे, जिसमें वे लेनी की भूमिका जूडी फ़ोस्टर से कराना चाहते थे मगर लेनी ने इसकी इजाजत नहीं दी. लेनी चाहती थी कि उसकी भूमिका शैरोन स्टोन को दी जाए, जूडी को नहीं. अंतत: यह फ़िल्म भी नहीं बनी. 2011 में स्टेवेन सोडेर्बर्ग ने भी उस पर फ़िल्म बनानी चाही, मगर प्रोजेक्ट की आर्थिक सफलता को लेकर वे आश्वस्त नहीं थे, अत: विचार त्याग दिया. मरने के कुछ समय पूर्व उसने एक साक्षात्कार में बीबीसी को बताया,
‘मैं उन लाखों लोगों में थी जो सोचते थे कि हिटलर के पास सब बातों का उत्तर है. हमने केवल अच्छी बातें देखीं, हमने आने वाली बुरी बातों को नहीं देखा.’
अंतिम बार लेनी रिफ़ेंस्थाल ने 1944 में हिटलर को देखा था, यह उस साल का 21 मार्च का दिन था. इसी दिन उसने पीटर जैकब से शादी की थी. दो साल बाद दोनों का तलाक हो गया. लेनी रिफ़ेंस्थाल ने अपने 101वें जन्मदिन पर अपने 61 साल के बॉयफ़्रेंड होर्स्ट केट्नर से 22 अगस्त 2003 में शादी की. वे उस समय से साथ थे जब वह साठ साल की और वह 20 साल का था.
101 वर्ष की उम्र में इस जुझारू और कर्मठ फ़िल्म निर्देशक का सोते हुए 8 सितम्बर 2003 को जर्मनी के बैवारिया में निधन हो गया. असल में यूरोप के फ़िल्म जगत का ध्यान खींचने वाली लेनी रिफ़ेंस्थाल कैंसर से मरी.
समीक्षक उसकी सिने-कला की तारीफ़ करते हैं. फ़िल्म विशेषज्ञ मार्क ने अपनी किताब ‘द स्टोरी ऑफ़ फ़िल्म दैट’ में लिखा है,
‘ऑर्सन वेल्स एवं एल्फ़्रेड हिचकॉक के बाद लेनी रिफ़ेंस्थाल उस युग की पश्चिमी फ़िल्म निर्देशकों में सर्वाधिक तकनीक प्रतिभा थी.’
प्रसिद्ध यहूदी-अमेरिकन फ़िल्म समीक्षक पाउलीन कील के अनुसार,
‘द ट्रैयम्फ़ ऑफ़ द वि’ एवं ‘ओलम्पिया’ किसी स्त्री द्वारा निर्देशित दो महान फ़िल्में हैं.’
विशेषज्ञ उसकी कला की प्रशंसा करते नहीं थकते हैं. द टेलीग्राफ़ के चार्ल्स मूर ने लिखा,
‘शायद वह 20वीं सदी की सर्वाधिक प्रतिभाशालनी सिने-निर्देशक थी. नाजी जर्मनी की प्रशंसा में फ़िल्म बनाने के कारण सर्वाधिक बदनाम भी.’
गैरी मरिस उसे अतुलनीय उपहार वाला कलाकार मानता है, पुरुष वर्चस्व वाले उद्योग क्षेत्र में स्त्री. वह महानता में उसकी तुलना ऑर्सन वेल्स से करता है.
उसको लेकर विवाद थमते नजर नहीं आते हैं. फ़िल्मी पत्रकार सैंड्रा स्मिथ कहती हैं, उसको लेकर विचार विभाजित हैं, कुछ लोग उसे युवा, प्रतिभावान, महत्वाकांक्षी जो घटनाओं की ऐसी तरंग में बह गई जिसे वह समझती नहीं थी और कुछ लोग जो विश्वास करते हैं कि वह अवसरवादी, हृदयहीन थी एवं नाजियों से जुड़ी हुई थी.
लेनी पर कई केस चले थे, करीब 50 केस में उसे बरी किया गया. उसके और नाजी पार्टी के वास्तविक संबंध सदैव अस्पष्ट रहे. वह कहती थी, ‘उसने क्या किया है?’ पर यह कहती, ‘मेरे मरने तक लोग कहते रहेंगे लेनी नाजी है.’ और जब 2004 के ऑस्कर के ‘इन मेमोरियम’ क्रम में अकादमी ने लेनी रिफ़ेंस्थाल को समाहित किया तो अकादमी की खूब आलोचना हुई. इस निर्णय के विषय में पत्रकार मैनोला डैर्गिस ने लिखा,
‘मुझे मालूम नहीं वे विवादास्पद होने का प्रयास कर रहे थे अथवा उदार हो रहे थे या मात्र बेवकूफ़ हैं.’
आदमी जाने-अनजाने ऐसे काम कर जाता है, जो उसे विवादास्पद बनाते हैं लेनी रिफ़ेंस्थाल ऐसा ही व्यक्तित्व है.
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