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समालोचन

Home » मयंक पटेल की कविताएँ

मयंक पटेल की कविताएँ

किसी भी साहित्यिक पत्रिका के लिए यह संतोष का विषय हो सकता है कि एकदम नयी पीढ़ी हिंदी साहित्य में रुचि ले रही है, कविताएं लिख रही है और बेहतर लिख रही है. अमृत रंजन, विनिता यादव, वसु गंधर्व, अस्मिता पाठक, विशाखा राजुरकर, वल्लरी, बीहू आनंद आदि कुछ ऐसे नाम हैं, ये सभी लोग समालोचन पर प्रकाशित हो चुके हैं. इसी क्रम में मध्य-प्रदेश क्षिप्रा से मयंक पटेल की कविताएँ प्रस्तुत हैं. ये कविताएँ संदीप नाइक के सौजन्य से प्राप्त हुईं हैं.

by arun dev
July 24, 2021
in कविता, साहित्य
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मयंक पटेल की कविताएँ
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मयंक पटेल की कविताएँ

संदीप नाइक  

‘मयंक पटेल, देवास जिले के ग्राम क्षिप्रा से आते है और अभी उन्होंने कक्षा बारहवीं पास की है- उम्र मात्र उन्नीस बरस है, परन्तु वे जिस सघन अनुभूति और धैर्य से कविता लिखते है वह चकित करता है.  मयंक का रचना संसार आसपास की घटनाओं और अपने जीवन के नजरिये को व्यक्त करता है.  वे छोटी कवितायें लिखकर अनूठे बिम्ब रचते है और लगभग हर बार चमत्कृत करते हैं.
समालोचन ने इधर नए और उभरते हुए कवियों के लिए एक स्पेस बनाया है, इस उम्मीद के साथ कि ये कवि अपनी सिर्फ बातही नहीं रखें बल्कि कविता के वृहद् पटल पर सशक्त उपस्थिति भी दर्ज करें.  पिछले दिनों हमने भोपाल की बीहू की रचनाएँ  पढ़ीं थीं.’ 

 

 

1)

मेरे लिए ईश्वर प्रेम है
उस बालक के लिए ईश्वर रोटी है
हम दोनों में एक समानता है
ईश्वर के अभाव में हम दोनों मर जाते है

ईश्वर कण कण में व्याप्त है
मुझमें, तुझमें, सब में
मुझे प्रेम चाहिए
उसे रोटी चाहिए
हम दोनों को ईश्वर चाहिए

ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना
मैं हूँ , वो है, हम सब है

मेरी सर्वश्रेष्ठ रचना प्रेम कविताएं है
उसकी सर्वश्रेष्ठ रचना उसके सपने है
हम दोनों की सर्वश्रेष्ठ रचनाएं सिर्फ़ कल्पनाएं है

प्रेम का अभाव मुझे खा जाता है
रोटी का अभाव उसे खा जाता है
ईश्वर का अभाव ईश्वर को खा जाता है

हम दोनों अब नास्तिक है.

 

2)

दुख मावठे की तरह होता है
अचानक बरस पड़ता है
लोग कुछ समझ पाते
उससे पहले भीग चुके होते है

मैं भी पूरा भीग चुका हूँ
बूंदें हर एक अंग को छूकर बह चुकी है
पल भर के लिए मानो
यह संसार आपसे भिन्न हो चुका है

दुखों का स्मरण मात्र ही
मनुष्य को खा जाता है

जिस पर दुख आन पड़ा है
वह मृत्यु में सुख खोजता है
वह चाहता है कि
काश ! वह दुख का साक्षी ना होकर
दुख का कारण होता

सबसे पीड़ादायक है दुखों को भुलाना
पहले जो स्मृतियां सुख की अनुभूति करवाती थी
आज वहीं पीड़ा का घर बन चुकी हैं

मैं दुख में भीगा
अपने सूखने का इंतजार कर रहा हूँ

जब-जब हवा मुझसे टकराती है
तब तब पूरा बदन स्मृतियों से अकड़ जाता है

कैसे यह स्मृतियां
जीवन मरण के खेल बीच
अपना मूल्य बदल लेती है (?)

यह दुखों से सूखने की प्रक्रिया
मुझे अंदर तक सूखा देगी.

 

3)

मैं कोई कवि नहीं हूँ,
न ही मैं लिखता हूँ
अपने प्रिय के लिए ,

मैं नव यौवन को उकसाता हूँ
मैं प्रेम मायाजाल बुन रहा हूँ
मैं चाहता हूँ
कि तुम भी इस छलावे से भ्रमित हो

जितनी मेरे हाथों में रेखाएं नहीं है
उससे अधिक मेरे हृदय पे दरारें पड़ चुकी है
मेरा ह्रदय अब टूट चुका है

जैसे खंडित मूर्ति में ईश्वर वास नहीं करते
वैसे ही इस खंडित ह्रदय से प्रेम पलायन कर चुका है

मैं यह धोका इसलिए बुन रहा हूँ
कि तुम समझ पाओ
प्रेम भौतिकवाद नहीं है
न ही प्रेम किसी की जरूरत पूर्ण करने से प्राप्त होता है

प्रेम,
प्रेम त्याग चाहता है
प्रेम तपस्या चाहता है
प्रेम तर्पण चाहता है

ईश्वरीय प्रेम प्राप्त करने के लिए
ईश्वरीय गुण होना आवश्यक है
और यह इस जन्म तो संभव नहीं

अंततः
मैं कविताएँ इसलिए लिखता हूँ
कि तुम अपने आप को ईश्वर न समझ बैठो
तुम भी छले जाओ प्रेम में
जैसे मैं छला गया था

प्रेम कभी किसी को शून्य
की तरफ़ नहीं ले जाता ,
प्रेम अस्तित्व है ईश्वर का.

 

4.

ताकता सूर्य को एक टक
सोचता मैं मन ही मन
काश! मैं कर सकता इसका तेज कम
या ओढ़ा देता कोई पर्दा
जिससे हो सके इसका प्रकाश कम

हाथ में घड़ी थामें
मैं घुमाया करता उसके कांटो को
सोचता कि बदल पाता
समय को अपने हिसाब से
जैसे बदलता मैं इन कांटो को
और झट से सुबह को शाम कर देता

देखता जब मैं रेत, पत्थर
हर वो एक चीज़
जो बड़ी बड़ी अट्टालिकाओं को
बनाने में इस्तेमाल की जाएं
सोचत कि यह सब अदृश्य हो जाएं

जैसे नदी, पेड़, पहाड़ आदि
सब प्राकृतिक है
वैसे ही अट्टालिकाएं भी
प्राकृतिक होती

भरी दोपहरी में ,
निर्माण स्थल पर बैठा मैं ,
ताकता बोझ उठाएं मेरी माँ को
तब कोस रहा होता मैं
सूर्य के तेज को ,
रेत पत्थर के बोझ को ,
समय की धीमी चाल को ,
पर नहीं कोसता मैं पूंजीवाद को

मैं नहीं समझता पूंजीवाद को ,
ना ही मेरी माँ जानती है
हम समझते है तो सिर्फ़
भूख को

दाल रोटी की जरूरत में ,
हम शोषण को ही
रोजगार समझ बैठते हैं.

 

5)

स्याही
जब पन्नों पर उतर जाएं
तब यह सदियों तक स्मरण की जाएं
और जब गुस्से से छिड़क दी जाएं
तब यह विरोध कहलाएं

पुष्प
जब प्रेमियों द्वारा दिया जाएं
तब यह प्रेम कहलाएं
और जब अर्थी पर चढ़ाया जाएं
तब यह दुःख दर्शाएं

अग्नि
जब दीपक में जले
तब उजाला कर जाएं
और जब श्मशान में जले
तब सब राख कर जाएं

पत्थर
जब किसी पे फेंक दिया जाएं
तब यह हथियार कहलाएं
और जब आस्था से पूजा जाएं
तब भगवान बन जाएं

मैं
जब कविताएँ लिखूं
तब लिखते ही जाएं
और जब कविताएँ जियूं
तब कतरा कतरा मरता ही जाऊं.

 

6)

मैं बनना चाहूंगा वो
जो मंदिर के द्वार पे चढ़े
मस्ज़िद के मज़ार पे चढ़े
प्रेमी प्रेमिकाओं की किताब में मिले
घर के बगीचों में जो खिले
बुढ़िया के ठेले पे बिके
गुड़िया को तोहफे में जो मिले
वर वधू के हार में जड़े
अर्थी के ऊपर जो चढ़े

मैं बनना चाहूंगा प्रेम, आस्था, सुख और दुख सभी का प्रतीक
मैं बनना चाहूंगा एक फूल.

 

7)

दो देशों के बीच युद्ध छिड़ा
ख़ूब बम गोले बरसाए गए
युद्ध ग्यारह हफ़्तों तक चला
युद्ध का नतीजा निकला
फलाना देश विजेता घोषित हुआ

जो देश विजय रहा
वहां की आवाम हार गयी
हार गयी अपनों की हत्या से
हार गयी भुखमरी से
हार गयी आय के अभाव से
हार गयी छतों के उजड़ने से

युद्ध तबाही का पर्याय है
नतीजा कुछ भी रहे तबाही निश्चित है

युद्ध सिर्फ और सिर्फ राजनीतिक
कुर्सियां ही गरम कर सकता है

यह कहना बड़ा सरल है
कि फलाना देश के लिए शहीद हुआ
परंतु सत्ता के सिद्धान्तों से परे
मैं जोर जोर से यह कहूँगा कि
सत्ता की साँसे जीवित रखने के लिए
फलाने की हत्या हुई

मैं फाड़ दूंगा सत्ता की किताबें
मैं निष्कासित कर दूंगा सरकारे
मैं जला दूंगा सारे हथियार

फ़िर मैं ज़ालिम को एक गुलाब दूंगा
और कहूँगा कि अगर
एक हथियार हज़ारों जाने ले सकता हैं
तो फ़िर एक गुलाब हज़ारों जाने बचा भी सकता है .

______

मयंक पटेल
क्षिप्रा, जिला देवास मप्र
सम्पर्क: 8305710078
mayanksandeeppatel@gmailcom

Tags: मयंक पटेलसंदीप नाइक
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Comments 6

  1. Anonymous says:
    4 years ago

    मयंक की कविताएं भीतर गहरे उतरती हैं. सघन अनुभूति और संवेदनशील कवि. आपने ठीक कहा वे आसपास बिखरे जीवन से कविताएं बुनते हैं. मयंक तुम काव्य यात्रा के लंबी दूरी तय करने वाले पथिक हो। बधाई तुम्हें. आभार समालोचन का नए नए मोती चुन रहा है।

    Reply
  2. सारंग उपाध्याय says:
    4 years ago

    अद्भुत कविताएं. सघन अनुभूति और संवेदनशील बिम्ब. आपने ठीक कहा- इन कविताओं से आसपास का जीवन झांक रहा है. अभिव्यक्ति बेहद अलग है वह भी इतनी कम उम्र में. यह काव्य यात्री लम्बी दूरी के लिए है। मेरी शुभकामनाएं और आभार समालोचन का जो ऐसे सुंदर और नायाब मोती चुनकर सामने ला रहा है।

    Reply
    • Anonymous says:
      4 years ago

      शुभकामनाएं मयंक भाई….

      Reply
  3. दयाशंकर शरण says:
    4 years ago

    कहीं-कहीं कुछ पंक्तियों में कवित्त है, बाकी सब कच्ची उम्र की कच्ची अभिव्यक्ति है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कोंपल ही धीरे-धीरे एक वृक्ष में बदलता है। इसलिए इस संभावनाशील किशोर कवि को बधाई एवं समालोचन को भी जो नई पौध तैयार करने में लगी है।

    Reply
  4. प्रयाग शुक्ल says:
    4 years ago

    मै युवा कवियों की कविताएं हमेशा चाव से पढता हूँ। आगे बढ़कर कई बार उनसे सम्पर्क भी करता हूँ। पर इधर यह भी लगने लगा है कि कथनो वक्तव्यों सूक्तियो की भरमार होने
    लगी है।और इन्ही को कविता के लिए अक्सर पर्याप्त मान लिया जाता है।
    कविता कुछ तो नैसर्गिक भी होती ही है। उसका भाव अनुभाव बुना हुआ होता है।वह एक अन्य धरातल पर ले जाती है।अपनी ध्वनियों मे हमारे भीतर एक गूंज पैदा करती है।कविता के एक सामान्य पाठक की तरह यही मेरा अनुभव रहा है।
    पर मै गलत भी हो सकता हूं।

    Reply
  5. Prem Kumar Shaw says:
    4 years ago

    पढ़ना शुरू किया तो पढ़ता गया। किसी भी कवि या कवयित्री के लिए पाठक को बांध कर रखना सबसे महत्वपूर्ण होता है। युवा कवि मयंक पटेल इसमें सफल रहे हैं। कविताएं काफी उम्दा और जीवनानुभूति से पूर्ण है। उन्हें बधाई और शुभकामनाएँ 🌻

    Reply

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