तानाशाह की स्त्रियाँ फासीवाद, सत्ता और यौनिकता अमरेन्द्र कुमार शर्मा |
तानाशाही के मददगारों ! तुम किस चीज से डरते हो ? क्या लोकतंत्र का विचार तुम्हें भयभीत करता है ?
मैज्जिनी[1]
तानाशाही संरचना की निर्मिती में बेनिटो मुसोलिनी (29 जुलाई 1883-28 अप्रैल 1945), अडोल्फ़ हिटलर (20 अप्रैल 1889-30 अप्रैल 1945) से लेकर फ्रांसिस्को फ्रेंको (4 दिसंबर 1892-20 नवंबर 1975) सहित अन्य तानाशाहों ने अल्पकाल के लिए एक ऐसी राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक दुनिया का निर्माण किया जिसने पूरी तरह से युरोपियन समाज को न केवल निगल लिया बल्कि अन्य महादेशों की संरचना को प्रभावित भी किया.
मारिया एंटोनिएटा मैसिओची[2] का प्रसिद्ध निबंध ‘फीमेल सेक्सुअलिटी इन फासिस्ट आइडीओलॉजी’ तानाशाही संरचना में स्त्री की इयत्ता को एक यौन उपकरण के तौर पर बरते जाने की राजनीति को परखता है. तानाशाही संरचना के अंतर्गत सबसे ज्यादा स्त्री की राजनीतिक और आर्थिक हैसियत के साथ-साथ उसकी यौनिक हैसियत के साथ छल किया गया और इसे धोखे के साथ छुपाये रखा गया. इस संरचना ने समय- समय पर स्त्रियों को किसी भ्रष्ट जासूसों की तरह महज झाँकने, देखने, सुनने और कामुकता के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा, उन्हें प्रलोभन या दवाब के माध्यम से बुलाया जाता रहा. काम पूरा हो जाने के बाद या तो उन्हें निष्क्रिय घोषित कर दिया जाता रहा या अपनी संरचना से बर्खास्त कर दिया जाता रहा.
लगभग इसी नुक्ते से ब्रतोल्त ब्रेख्त (10 फरवरी 1898-14 अगस्त 1956) ने फासीवाद पर विचार करते हुए स्त्रियों और तानाशाही व्यवस्था के बीच मौजूद रिश्ते की तुलना एक रक्षक या दलाल और उसकी वेश्याओं के बीच के रिश्ते से की है. पुरुष उनसे लाभ कमाने के लिए उन्हें सड़कों पर रखता है और खुशी के साथ उन्हें ताकत देता है. राज्य खरीददार के रूप में कार्य करता है और स्त्रियाँ तानाशाही व्यवस्था की वेश्या बनती चली जाती हैं. 1940 में वर्जीनिया वुल्फ (25 जनवरी 1882- 28 मार्च 1941) ने पुष्टि की थी कि महिलाओं का उत्पीड़न और नाज़ीवाद द्वारा दर्शाए गए प्रतिगमन की जड़ें एक ही हैं और वह है शोषण.
आस्ट्रियन चिकित्सक और मनोविश्लेषक विल्हेम रीच (24 मार्च 1897-03 नवंबर 1957) जो तानाशाही वैचारिक अधिरचना की ताकत की जांच में सबसे अधिक स्पष्ट अध्येता रहे थे. अपनी प्रसिद्ध कृति ‘मास साइकोलॉजी ऑफ फासीवाद’ में तानाशाही वर्चस्व के सवाल को एक विशाल यौन दमन के संदर्भ में न केवल विश्लेषित किया बल्कि उस यौन दमन को स्त्री की मृत्यु से मजबूती से जुड़ाव को भी परखा.
दरअसल, जिस मानवीय संरचना में यौनिकता का आर्थिक समाजशास्त्र से संबंध है, वह पिछले कुछ सौ वर्षों के दौरान विकसित नहीं हुई है बल्कि इसके विपरीत यह उस पितृसत्तात्मक सत्तावादी सभ्यता को दर्शाता है जो हजारों वर्ष पुरानी है. विल्हेम रीच के विश्लेषणों में, यौन निषेध और दुर्बलताएं सत्तावादी परिवार के अस्तित्व के लिए सबसे महत्वपूर्ण पूर्वापेक्षाएँ हैं. हम यह जानते हैं कि निम्न मध्यम वर्ग के व्यक्ति की संरचनात्मक गठन का आवश्यक आधार धार्मिक भय की मदद से तय किया जाता रहा है. मोटे तौर पर यह भय यौन अपराध- भावनाओं से भरा हुआ रहा है और व्यक्ति की भावनाओं में गहराई से अंतर्निहित रहा जिससे मुक्ति का मार्ग धर्म में बताया गया. तानाशाही संरचना में स्त्रियों को उपभोग और दमन दोनों अर्थों में रखा गया इस तरह से स्त्रियाँ तानाशाही राज्य के पुरुषवाद की चपेट में आ गयी.
बहुत पहले, 1995 में इतालवी और यूरोपीय समाज में सतह के नीचे मौजूद फासीवादी विचारधारा के प्रभावों को रेखांकित करते हुए प्रसिद्ध इतालवी उपन्यासकार और निबंधकार अम्बर्तो इको (05 जनवरी 1032-19 फरवरी 2016) की एक किताब ‘उर-फ़ासिज़्म’ के नाम से प्रकाशित हुई. उनका एक निबंध ‘न्यूयॉर्क रिव्यू ऑफ बुक्स’ में ‘उर-फासीवाद’[3] (आंतरिक फासीवाद/शाश्वत फासीवाद) नाम से भी प्रकाशित हुआ. यह निबंध उनकी पुस्तक ‘हाउ टू स्पॉट ए फासिस्ट’ (2020) में भी शामिल है.
इस निबंध में अम्बर्तो इको ने सवाल किया था कि क्या यूरोप पर फासीवाद का प्रेत मंडरा रहा है. यह कहते हुए वह फासीवाद के वृत्त को हिटलर के नाजीवाद से अलग कर देख रहे थे. अपने निबंध में अम्बर्तो इको उन चौदह प्रमुख तत्वों या लक्षणों की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं और उन तत्वों को उस ‘तरीके’ के रूप में संदर्भित करते हैं, जो आमतौर पर फासीवादी आंदोलनों में दिखाई देते हैं. मोटे तौर पर ‘उर फासीवाद’ में, आधुनिकतावाद की अस्वीकृति, असहमति को देशद्रोह, मतभेदों का डर, एक कथानक के प्रति जुनून, चयनात्मक लोकलुभावनवाद आदि संरचित होते हैं. यह निबंध बेनिटो मुसोलिनी, अडोल्फ़ हिटलर, फ्रांसिस्को फ्रेंको सहित युरोपियन तानाशाहों के जीवन में शामिल स्त्रियों की इयत्ता और उसके दास्तान को समझने की एक कोशिश है.
पुनर्जागरण की रौशनी का पहला देश इटली राजनैतिक दार्शनिक निकोलाई मैकियावली (3 मई 1469-21 जून 1527), लोकतंत्र के हिमायती मैज्जिनी (1805-1872) और गैरीबाल्डी[4] (1807-1882) का देश है. इटली एक ऐसा देश, जहाँ आज से लगभग 422 वर्ष पूर्व चर्च और पोप के वर्चस्व, पाखंड से भरे विचार को बनाए रखने के लिए जर्दानो ब्रूनो (1548-17 फरवरी 1600) को 23 मई सन 1592 को गिरफ्तार कर कारागार की एक ऐसी कोठरी में रखा गया जिसकी छत सीसे की थी, जहाँ गर्मियों के दिन में असह्य गर्मी और उमस होती तथा जाड़ों में भयानक ठंढ और नमी हुआ करती थी. कारागार के भयानक और यातनापूर्ण जीवन के बीच ब्रूनो को आग में जिंदा जला देने और आज से लगभग 88 वर्ष पूर्व अंतोनियो ग्राम्शी (22 जनवरी 1891-27 अप्रैल1937) को राजनीतिक दुर्भिसंधियों तथा वैचारिक असहमतियों के बीच 1926 को गिरफ्तार कर, मृत्यु होने तक कारागार में नारकीय स्थितियों में रखने वाला एक हत्यारा देश रहा है.
इसी हत्यारे देश में तानाशाह बेनितो मुसोलिनी[5] (1883-1945) के जीवन में आने वाली चार स्त्रियाँ क्रमश: इडा डालेसर, राचेल मुसोलिनी, मार्गेटा सर्फाती, क्लारा पेटाकी अपनी-अपनी इयत्ताओं के साथ समाज और राजनीति से मुठभेड़ करती हुई त्रासद दास्तान रचती है जिसमें उनके आत्म का ध्वंस होता जाता है. वे स्त्रियाँ प्रेम करती हैं, रोती हैं, कलपती हैं और विषाद में होती हैं. इन चार स्त्रियों के अलावा ऐसी और दर्जनों स्त्रियाँ थीं जो न केवल मुसोलिनी के कार्यों की समर्थक थीं बल्कि उसके प्रति दीवानगी से भरी हुई थीं.
इस लेख की गतिकी में तानाशाहों के जीवन में आनेवाली स्त्रियों की दबी/दबाई इयत्ताओं को जानने-समझने का प्रयास है और साथ ही उन स्त्रियों की, जो मुसोलिनी, हिटलर सहित यूरोप के अन्य तानाशाहों के प्रति दीवानगी की हद तक प्रभावित थीं, उनकी मनो-संरचना की भी पड़ताल है. यह पड़ताल इसलिए भी जरूरी है कि जिस तरह से और जिन प्रारूपों में विगत कुछ वर्षों से राजनीतिक और सामाजिक स्तर पर फिर से यूरोप, एशिया सहित अन्य महादेशों के देशों की आंतरिक रूपबंधों में फासीवादी लक्षणों का उभार दिखलाई देने लगा है, वह मनुष्यता की संस्कृति के लिए बेहद खतरनाक है.
यह अनायास नहीं है कि मुसोलिनी की पोती रेचेल मुसोलिनी आज ब्रदर्स ऑफ़ इटली की उभरती हुई नेता मानी जा रही हैं और जिसे रोम की नगर परिषद में सदस्य के रूप में चुना गया है.
आल्प्स पर्वत के दक्षिणी-पश्चिमी भाग से निकलने वाली इटली की सबसे लंबी नदी ‘पो’ जिसकी एक लंबी नहर इटली के बड़े शहर मिलान से होकर गुजरती है. इस नदी का इटली में न केवल आर्थिक महत्त्व रहा है बल्कि सांस्कृतिक महत्त्व भी. लेकिन यह कोई नहीं जानता था कि यह नदी एक दिन तानाशाही का कोई नृशंस दौर भी देखेगा जिसमें स्त्रियाँ न केवल इस्तेमाल के वृत्त में ही दम तोड़ देंगी बल्कि युद्ध के औजार के रुप में भी तब्दील कर दी जाएंगी. मिलान शहर एक समय में तानाशाही के त्रासद वृतांत का शहर रहा है, जहाँ स्त्रियाँ अपना सबकुछ खोती हुई एक दिन गुम हो जाती थी. असल में, विश्व के जिन राष्ट्र-राज्यों की सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना में तानाशाहों, सैनिक अधिनायकों या एक ही राजनीतिक नायकों के हाथ में सत्ता या राजनीतिक शक्तियाँ रही हैं उस व्यवस्था में स्त्री की इयत्ता पर दोहरी चोट होती रही है.
इटली की फासिस्ट सरकार चर्च की सहायता से स्त्रियों को हमेशा दबाये रखने की पद्धति का विकास करती रही है. फासिस्ट सत्ता के दौर में स्त्री हमेशा दोहरे बंधनों में रहने के लिए विवश थी. उनके लिए एक ओर सरकारी प्रतिबंध था तो दूसरी ओर पारिवारिक बंधन की अटूट शृंखला. फासिस्ट व्यवस्था के दौरान इटली में यह प्रचार युद्ध की तरह प्रसारित था कि यौनिक उत्पादकता यानि की जनसँख्या कम हो रही है. मुसोलिनी ने पार्टी की महिला इकाईयों को निर्देशित किया था कि वे घर-घर जाकर महिलाओं को अधिक से अधिक बच्चे पैदा करने के लिए प्रेरित करें. स्त्रियों को लेकर फासिस्ट जर्मनी में एक दूसरी तरह की त्रासदी घटित हो रही थी. चूँकि हिटलर का फासीवाद बुर्जुआ संस्थानों के विरुद्ध था, इसलिए यहाँ अविवाहित मातृत्व को सुरक्षा प्रदान की गई थी. पितृसता और फासिस्ट सत्ता के भूगोल में स्त्री-जीवन की त्रासदी और बिडम्बनाओं के परिसर का विस्तार बहुस्तरी रहा है. वे हमेशा फासिस्ट सत्ता में एक औजार की तरह बरती गईं.
स्त्री के संदर्भ से एक बड़ी विडम्बना का उल्लेख सिमोन द बोउआर करती भी हैं,
‘औरतें युद्ध का कारण बनीं, मगर वे रणकौशल नहीं जानती थीं, उन्होंने राजनीति की धारा को कपट और साजिश की ज़रुरत पड़ने पर प्रभावित किया, मगर जगत का वास्तविक नियंत्रण उनके हाथों में कभी नहीं रहा.’[6]
बेनितो मुसोलिनी अपने फासिस्ट रणकौशल में स्त्रियों का इस्तेमाल सूक्ष्म तरीकों से करता रहा था. कई बार यह स्त्रियाँ सबकुछ जानते हुए भी विवशता में कई बार फासिस्ट रणकौशल में एक साधारण औजार की तरह स्वयं को घटित होने के लिए छोड़ देती थीं और उसी में अपनी खुशी ढूंढ लेती थीं, कुछ स्त्रियों के बोध में तानाशाह नायकत्व के गुण से भरा होता है लेकिन कुछ ऐसी स्त्रियाँ भी थीं जो प्रतिकार करती थीं और इस प्रतिकार के कारण उनकी हत्या कर दी जाती थी.
इडा डालेसर
यौनिकता और मातृत्व में घुलती त्रासदी की स्त्री
इडा डालेसर[7] (1880-1937) बेनितो मुसोलिनी के जीवन में सबसे पहले आने वाली स्त्री थी. इडा डालेसर एक ऐसी स्त्री थीं जिनके संपूर्ण जीवन की दास्तान में तानाशाही समय की अनगिनत किरचें हैं जिसे वह तानाशाही उत्पीड़न के बीच रहती हुई प्रेम से पाट देना चाहती थी. वह यह प्रेम, प्रेमी से बने पति के प्रति, अपने पुत्र के प्रति और अपने ‘स्व’ के द्वारा परिघटनीय सौंदर्य-दृष्टि में दृश्यमान कर देना चाहती थी. क्या वह ऐसा कर सकी ?
इसका उत्तर उसके जीवन-वृतांत से गुजरते हुए मिलता है. उसके जीवन-वृतांत को जानने का एक सिरा जीवन-वृतांत पर आधारित बायोपिक ‘विन्सरे’(2009) में खुलता है. ‘विन्सरे’ से गुजरते हुए हमें तानाशाही सतह पर एक स्त्री की बिखरती हुई सामाजिक दुनिया और स्त्री के ‘स्व’ की उजड़ती, टूटती हुई दुनिया दिखलाई देती है.
इस दुनिया का उल्लेख हम आगे करेंगे. पहले यह बताते चलें कि इडा डालेसर कौन थी. इडा डालेसर इटली के तानाशाह बेनितो मुसोलिनी[8] (1883-1945) की पहली पत्नी थी. इडा डालेसर एक दृष्टि संपन्न स्त्री थी. उसमें सौंदर्य बोध की महीन समझ थी, वह अपने जीवन में हमेशा समाज और मनुष्य के जीवन के लिए प्रेम को अनिवार्य तत्त्व के रूप में रेखांकित करने वाली स्त्री थी. पेरिस में रहते हुए इडा कॉस्मेटिक मेडिसिन की अध्येता थी, इसी कारण जब वह इटली आयी तो मिलान में फ्रेंच स्टाइल का अपना एक प्रसिद्ध सलून खोला.
बेनितो मुसोलनी मिलान में ही 1909 में एक पत्रकार की हैसियत से कार्य कर रहे थे. आगे चलकर वे प्रसिद्ध पत्रिका ‘अवांती’ के संपादक बने. मुसोलिनी पत्रकार की हैसियत से काम करते हुए पत्रकारिता की राजनीतिक दिशा से सहमत नहीं थे, क्योंकि उस वक्त तक मुसोलिनी समाजवादी विचार से प्रभावित थे, और चाहते थे कि प्रथम विश्वयुद्ध में इटली निरपेक्ष नहीं रहे बल्कि वह इंग्लैण्ड और फ़्रांस के साथ मिलकर युद्ध में शामिल हो. अख़बार को मुसोलिनी की यह लाइन पसंद नहीं थी इसलिए जल्द ही मुसोलिनी ने अख़बार का काम छोड़ दिया. इसी वक्त वे इडा के संपर्क में आए. बेरोजगार और अभावग्रस्त मुसोलिनी की समय-समय पर इडा अपनी सलून की कमाई से आर्थिक सहायता किया करती थी. वक्त बीतता गया.
इडा अपने काम और मुसोलिनी दोनों से प्रेम करती हुई धीरे-धीरे आगे बढ़ती जा रही थी. 1914 में दोनों ने विवाह करने का फैसला किया. विवाह के अगले वर्ष 1915 में एक बेटे का जन्म हुआ, नाम था, वेनितो अलबिनो डालेसर[9]. यही वह वक्त था, जब इडा और उसके बेटे अलबिनो के दुर्भाग्य की पटकथा लिखी जा रही थी. एक स्त्री की इयत्ता और उसके मातृत्व में त्रासदी का आसव घोला जाने वाला था. इडा जब अपने बेटे अलबिनो को पैदा करने वाली थी, मुसोलिनी, 17 दिसंबर 1915 को अपने बेटे के पैदा होने से ठीक पहले ही राचेल गुइदी[10] (1890-1979) जो आगे चलकर राचेल मुसोलिनी हुई, से दूसरी शादी कर रहा था. दरअसल, राचेल की अपनी स्थिति भी विचित्र और विशिष्ट थी. राचेल एक किसान परिवार में पैदा हुई थी. जल्द ही उसके पिता की मृत्यु हो गई और उसकी माँ अपना जीवन अकेले बिताना नहीं चाहती थीं. माँ अन्ना लोम्बार्डी जल्द ही एक विधुर एलेक्जान्द्रो मुसोलिनी[11] (1854-1910) के साथ प्रेमिका के रूप में रहने लगती है. एलेक्जान्द्रो मुसोलिनी की पत्नी रोजा माल्तोनी (1858-1905) की मृत्यु हो गई थी.
इटली के तानाशाह बेनितो मुसोलिनी रोजा माल्तोनी, जो एक शिक्षिका थी और एलेक्जान्द्रो मुसोलिनी,जो लुहार का काम करता था, का बेटा था. एलेक्जान्द्रो मुसोलिनी इटली की क्रांतिकारी धारा से जुड़ा हुआ था और इटालियन राजनीतिज्ञ एवं पत्रकार मैज्जिनीतथा इटली में रिपब्लिकन सरकार की स्थापना में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले गैरीबाल्डी को पसंद करता था, ईश्वर पर उसे यकीन नहीं था लेकिन इसके विपरीत उसकी पत्नी रोजा माल्तोनी कैथोलिक थी और ईश्वर पर अगाध विश्वास करती थी. बेनितो मुसोलिनी अपने पिता से बहुत प्रभावित था और उसके ज्यादा करीब भी था.
स्कूल शिक्षिका रोजा माल्तोनीकी ‘मेनिन्जाइटीस’ से जब मृत्यु हुई तो उसके जीवन में प्रेमिका के रूप में राचेल की माँ अन्ना लोम्बार्डी आई. अन्ना लोम्बार्डी की बेटी राचेल और एलेक्जान्द्रो मुसोलिनी का बेटा बेनितो मुसोलिनीधीरे-धीरे नजदीक आने लगे (भारतीय संदर्भ में इस रिश्ते को देखें तो यह सौतेले भाई-बहन का रिश्ता कहलाता है) और फिर आपस में दोनों ने विवाह कर लिया. हम ऊपर कह आए हैं कि ठीक इसी वक्त बेनितो मुसोलिनी की पहली पत्नी इडा अपने बेटे को जन्म दे रही थी. बेनितो मुसोलिनी में स्त्री के प्रति असंवेदनशीलता को न केवल इस घटना से समझा जा सकता है बल्कि आगे चलकर इडा के साथ धीरे-धीरे क्रूर होते व्यवहार में भी देखा जा सकता है. बेनितो मुसोलिनी में स्त्री के प्रति ‘समझ’ को इसे एक बुनियाद की तरह देखा जाना चाहिए.
राचेल गुइदी उर्फ राचेल मुसोलिनी
गृहस्थ की भट्ठी में खामोशी से जलती स्त्री
राचेल, बेनितो मुसोलिनी के जीवन में एक आदर्श पत्नी की तरह रही जब तक बेनितो मुसोलिनी जीवित रहा. राचेल और बेनितो मुसोलिनी के तीन बेटे क्रमशः वित्तोरियो, ब्रूनो, रोमानो और दो बेटी क्रमशः एडा और अन्ना मारिया हुए. सबसे छोटे बेटे रोमानो की शादी इटली की प्रसिद्ध अभिनेत्री सोफिया लोरेन की छोटी बहन मारिया से हुई थी. इन दोनों की बेटी अलेसान्द्रा मुसोलिनी की मृत्यु अभी हाल ही में 1 जुलाई 2019 को हुई है. असल में राचेल और मुसोलिनी की बड़ी बेटी एडा विवाह से पूर्व की संतान थी, एडा आजाद ख्याल स्त्री थी और अपने पिता के फासिस्ट विचार से बहुत सहमत नहीं थी. यह दिलचस्प है कि एडा अपने फासिस्ट समर्थक पति गेलियाजो सिआनो की मृत्यु के बाद एक कम्युनिस्ट के साथ रहना शुरू कर दिया था.
एडा की आत्मकथा ‘माय ट्रुथ’[12] राजनीतिक रूप से एक सजग स्त्री की कथा कहती है जो तानाशाही व्यवस्था के नाक के ठीक नीचे न केवल अपना एक स्वतंत्र अस्तित्व रखती थी बल्कि अपनी एक आजाद ख्याल दुनिया बसा रखी थी. इसी कारण अमेरिका की प्रसिद्ध पत्रिका ‘टाइम’ ने 1939 के जुलाई अंक के कवर पेज पर एडा की तस्वीर छापी थी. बहरहाल,बेनितो मुसोलिनी के सत्ता में आने के बाद राचेल उसके जीवन को घरेलु मोरचे पर संभाले रही और एक आदर्श माँ की भांति अपने बच्चों का पालन करती रही. सत्ता की चकाचौंध में भी वह अपने किसानी जीवन को कभी प्रभावित होने नहीं दिया, उसमें एक किसान की आत्मा बसा करती थी. यही कारण रहा कि बेनितो मुसोलिनी की मृत्यु के बाद राचेल अपने पैत्रिक गाँव प्रिदापियो अल्टा चली गई और वहाँ जाकर एक रेस्टोरेंट खोलकर अपना शेष जीवन जीने लगी. बहुत बाद 1975 में इटली की इटालियन रिपब्लिक सरकार ने जब राचेल को पेंशन देने का प्रस्ताव किया तो राचेल ने यह कहते हुए पेंशन लेने से इंकार कर दिया था कि चूँकि मेरे पति बेनितो मुसोलिनी को कभी कोई वेतन नहीं मिलता था इसलिए वह पेंशन पाने की हक़दार नहीं है.
एक किसान परिवार का खुदमुख्तारी स्वभाव राचेल में था और अपनी इयत्ता पर भरोसा भी. वह अपने पूरे जीवन में बेनितो मुसोलिनी से उसकी पहली पत्नी इडा डालेसर के बारे में कुछ नहीं पूछती थी. वह इडा डालेसर के समर्थन या विरोध में कभी कोई बात नहीं कहती थी. यह विचारणीय हो सकता है की क्यों एक स्त्री के तौर पर वह दूसरी स्त्री के समर्थन में कोई बात नहीं कहती, दूसरी स्त्री की त्रासदी उसके स्त्री मन को स्पर्श नहीं करती. यह अपेक्षा की जा सकती है की राचेल को इडा के हक़ में उसकी त्रासदी से मुक्ति के बारे में अपने तानशाह पति से कुछ कहना चाहिए था, कुछ करना चाहिए था. दरअसल, यह भी सच है कि तानाशाही से भरे दौर में चाहकर भी कुछ बेहतर कहना/करना कितना मुश्किल होता है. एक स्त्री के लिए तो यह मुश्किल और भी अधिक हो जाता है.
तानाशाही के दौर में अपनी मृत्यु की कीमत पर ही कुछ किया जा सकता था. राचेल के लिए यह कीमत देना संभव नहीं था क्योंकि वह हमेशा अपने पति के प्रति वफादार रहना चाहती थी और हमेशा साथ रहना चाहती थी लेकिन क्या तानशाह बेनितो मुसोलिनी राचेल के प्रति वफादार रहा ? बेनितो मुसोलिनी के अंतिम समय में क्या राचेल उसके साथ थी ? दोनों प्रश्न का उत्तर है, नहीं. हम जानते हैं कि बेनितो मुसोलिनी की मृत्यु के समय उसके साथ एक दूसरी स्त्री जो उससे लगभग 28 साल छोटी क्लारा पेटाकी[13] (1912-1945) थी. कहना चाहिए कि यदि राचेल एक तानाशाह की आदर्श पत्नी थी तो क्लारा पेटाकी एक तानाशाह की आदर्श प्रेमिका थी.
क्लारा पेटाकी
सत्ता के औजार की प्रत्यंचा पर चढ़ा दी गई स्त्री
क्लारा पेटाकी, बेनितो मुसोलिनी की तानाशाही सत्ता संरचना में मुसोलिनी के लिए एक सहायिका और प्रेमिका की भूमिका में हमेशा खरी उतरने वाली स्त्री थी. क्लारा पेटाकी की पैदाइश रोम की थी. उसके पिता फ्रांसिस्को पेटाकी एक प्राथमिक फिजिसियन थे. क्लारा की एक छोटी बहन मिरिआल डी सेव्वोलो (1923-1991) थी जो आगे चलकर एक इटालियन अभिनेत्री के रूप में जानी गई. एक भाई मार्सेलो पेटाकी था. यह वही मार्सेलो पेटाकी था जिसने अंतिम समय में बेनितो मुसोलिनी और अपनी बहन क्लारा पेटाकी को एक साथ गिरफ्तार किया था. असल में, अपनी जनता को विश्वविजय के झूठे सपने दिखाते हुए बेनिटो मुसोलिनी ने 1940 में इटली को जर्मनी की तरफ़ से दूसरे विश्व युद्ध में झोंक दिया था, लेकिन जल्द ही इटली को चौतरफ़ा हारों का सामना करना पड़ा.
मित्र राष्ट्रों की सेनाओं और देश के भीतर कम्युनिस्ट छापामारों के ज़बर्दस्त अभियान ने मुसोलिनी की सत्ता को हिला कर रख दिया था. इटली के जन मानस में तेजी से परिवर्तन हो रहा था और वे बगावत के लिए तैयार हो रहे थे. 25 अप्रैल को मुसोलिनी अपने प्रभुत्व वाले इलाके मिलान से भाग निकला. मुसोलिनी का मकसद इटली की सीमा पार करके स्विट्ज़रलैंड जाने का था. सत्ता के उत्कर्ष पर रहने वाला मुसोलिनी आज मिलान से भागते हुए अपनी पहचान छुपा रहा था और जर्मन वायुसेना की वर्दी और हेलमेट पहन रखा था. मुसोलिनी की पहचान को जर्मन वायुसेना की वर्दी और हेलमेट भी छुपा नहीं सकी. चूंकि लगभग दो दशकों से वह इटली में इतना अत्याचार कर चुका था साथ ही इटली के हर चौराहे पर अपनी तस्वीर लगा रखी थी कि हर कोई उसके चेहरे को ठीक से पहचानता था. मुसोलिनी को पहचान लिया गया और 27 अप्रैल 1945 को कोमो झील[14] जिसे लारियो के नाम से भी जाना जाता है, के उतरी-पश्चिमी तट पर स्थित डोंगों गाँव जो मिलान शहर से लगभग सत्तर किलोमीटर की दूरी है, के स्थानीय छापामारों ने मुसोलिनी और उसकी प्रेमिका क्लारा पेटाकी को गिरफ्तार कर लिया गया. इसी गिरफ्तारी के बाद इटली के दक्षिणी तट पर कोमो प्रोविंस के एक छोटे से शहर मेजेग्रा में उन दोनों को 28 अप्रैल 1945 को गोली मार दी गई थी और वहाँ से उनके शव को उठाकर मिलान शहर के मशहूर चौराहा पियाजेलो लोरेटो पर एसो नाम के पेट्रोल और गैस पंप के ठीक सामने उल्टा लटका दिया गया था.
पियाजेलो लोरेटो यह वही चौराहा था जहाँ 10 अगस्त 1944 को मुसोलिनी के लोगों ने पंद्रह लोगों को बर्बरता से मारकर उनके शवों को कई दिन लटकता छोड़ दिया था. आज इसी चौराहे पर मुसोलिनी अपनी प्रेमिका के साथ लटका हुआ था, उनके शवों पर लोग थूक रहे थे, लात मार रहे थे, पैरों से रौंद रहे थे. लटके हुए शव मार कर लटकाए हुए सूअर की तरह दिखलाई देता था इसलिए लोगों ने कहा, ‘आखिरकार मुसोलिनी सूअर बन गया’. एक स्त्री के नजरिए से देखें तो क्लारा पेटाकी की यह दुर्दशा, तानाशाही व्यवस्था से जुडने वालों की अनिवार्य दुर्दशा से जुड़ी हुई दिखलाई देती है. [15]
क्लारा पेटाकी और मुसोलिनी की दर्दनाक मौत के कई त्रासद पहलु रहे हैं जिसे बी.बी.सी. ने अपने एक वीडियो के माध्यम से प्रस्तुत भी किया है.[16] अपने समय में उत्कर्ष पर रहने वाले मुसोलिनी को उसकी मृत्यु के बाद उसके शव को एक अज्ञात कब्र में दफन कर दिया गया था. कुछ महीनों बाद1946 में फासीवादी समर्थक डोमनिको लेसीसी, जो बाद में नव-फासीवादी पार्टी में शामिल हो गया था, अपने दो दोस्तों के साथ उस कब्र को खोदकर मुसोलिनी के शव को निकाल कर लगभग सोलह सप्ताह की अवधि तक एक स्थान से दूसरे स्थान पर लेकर घूमते रहे. कभी किसी विला में, कभी किसी मठ में कभी किसी कॉन्वेंट में उसके शव को छिपाते रहे. बाद में तत्कालीन सरकार के अधिकारियों ने मुसोलिनी के शव को, जिसका एक पैर तबतक गायब हो चुका था, मिलान के नजदीक एक मठ सर्टोसा डी पाविया में ढूंढ लिया. इसके बाद अधिकारियों ने शव को सेरो मैगीगोर के छोटे से शहर में एक कैपुचिन मठ में लगभग ग्यारह वर्षों (मई 1957) तक रखा.
यह दिलचस्प है कि मुसोलिनी के शव के ठिकाने की जानकारी मुसोलिनी के परिवार से भी गुप्त रखा गया था. एडोन अल्वारो उगो नटले कैमिलो ज़ोली (16 दिसंबर 1887 – 20 फरवरी 1960) जिन्हें, मई 1957 से जुलाई 1958 तक इटली के 35वें प्रधानमंत्री बनाया गया था, वे मुसोलिनी की विधवा राचेले मुसोलिनी को जानते थे. असल में, राचेले मुसोलिनी 1957 में ही मिलान के एक कब्र से मुसोलिनी के शव को प्रेडेपियो के कब्र में दफनाने को लेकर एक याचिका दायर कर रखी थी. एडोन ज़ोली ने 30 अगस्त 1957 को मुसोलिनी के शव को प्रेडेपियो में दफनाने की व्यवस्था की थी, वहीं 1 सितंबर को उसे दफन दिया गया था. बाद में, जबएडोन ज़ोली की मृत्यु हुई तो उन्हें भी मुसोलिनी के कब्र से कुछ मीटर की दूरी पर, प्रेडैपियो में ही सैन कैसियानो के कब्रिस्तान में दफनाया गया था. यह भी जानना कम दिलचस्प नहीं है कि राचेले मुसोलिनी को 1966 में एक लिफाफा अमेरिकी राजनयिक द्वारा दिया गया जिसमें उसके पति मुसोलिनी के मस्तिष्क का एक टुकड़ा था.
अमेरिकी राजनयिक ने यह दावा किया था कि अमेरिकियों ने यह अध्ययन करने के लिए मस्तिष्क लिया था कि एक व्यक्ति तानाशाह कैसे बनता है. राचेले मुसोलिनी ने अपने पति के मस्तिष्क के अवशेष को मुसोलिनी के कब्र में रखवा दिया था. कहते हैं कि मुसोलिनी के कब्र को देखने आज भी प्रत्येक वर्ष लगभग एक लाख दर्शक आते हैं. लेकिन, मुसोलिनी के साथ जिस स्त्री क्लारा पेटाकी की मौत हुई, उसके शव का क्या हुआ, कहाँ ले जाया गया, ठीक-ठीक नहीं पता. बाद में पेटाकी के परिवार वालों ने जरूर एक मुकदमा किया और इंसाफ माँगा कि पेटाकी की हत्या गैरकानूनी है. बहरहाल, क्लारा पेटाकी के संपूर्ण जीवन और एक तानाशाह के साथ रहते हुए त्रासदीपूर्ण अंत को 1984 में ‘क्लारेटा’ नाम की बायोपिक में प्रसिद्ध इटालियन अभिनेत्री क्लौडिया कार्डिनेल (1938) के अभिनय में देखा जा सकता है साथ ही ‘मुसोलिनी: द अनटोल्ड स्टोरी’ (1985) और ‘मुसोलिनी एंड आई’ (1985) में भी क्रमशःअमेरिकी अभिनेत्री वर्जिनिया मैडसन (1961) और इटालियन अभिनेत्री बारबरा दे रोस्सी (1960) के अभिनय में एक स्त्री द्वारा अर्जित की हुई तानाशाही जीवन के स्वरूप को देखा जा सकता है.
इटली के राजनीतिज्ञ, उपन्यासकार इग्नेजिओ साईलोन (1900-1978) द्वारा किसान आंदोलन को लेकर एक महत्वपूर्ण उपन्यास ‘फॉन्टामारा’ (1933) रचा गया था. यह उपन्यास एडॉल्फ हिटलर के सत्ता में आने के कुछ ही महीनों बाद प्रकाशित हुआ था. जब पूरी दुनिया फासीवाद के पक्ष और विपक्ष में विभाजित हो रही थी उस दौरान इस उपन्यास ने फासीवाद के विरुद्ध जनमत तैयार करने में न केवल महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही थी बल्कि फासीवादी अनैतिकता और धोखे की आलोचना भी कर रही थी.
कहा जाता है कि 1930 के दशक के आखिरी वर्षों में इटली से बाहर फासीवादी विरोधी विचार के लिए इस उपन्यास को दस्तावेज की तरह प्रस्तुत किया गया था.[17] मुसोलिनी के फासिस्ट शासन के विरुद्ध इटली की जनता में एक वैचारिक उद्वेलन संभव करने का काम इस उपन्यास ने किया था. इस उपन्यास पर 1979 में इतालवी निदेशक फ्रांसिस्को रोसी ने इसी नाम से एक फिल्म भी बनाई थी.
मार्गेटा सर्फाती
फासीवादी यौनिकता के घेरे से बाहर निकल आने वाली स्त्री
राचेल मुसोलिनी और क्लारा पेटाकी जब तानाशाही रंगमंच पर मुसोलिनी के साथ उपस्थित थीं तब पृष्ठभूमि में इडा डालेसर के ‘स्त्रीत्व का वैभव’ तानाशाह मुसोलिनी की सनक से उपजी त्रासदी के अँधेरे में विलीन होती जा रही थी. इडा डालेसर की और उसके जीवन पर आधारित बायोपिक ‘विन्सरे’ तानाशाही के साये में एक स्त्री की संभव त्रासद गाथा को न केवल प्रस्तुत करती है बल्कि तानाशाही की उस संरचना को भी हमारे सामने दृश्यांकित करती है जिस संरचना में स्त्री के वजूद को केवल एक उपभोग्य वस्तु में रूपायित कर लिया जाता है. इससे पहले कि हम इडा डालेसर और उसके जीवन पर आधारित बायोपिक ‘विन्सरे’ पर बात करें, एक और स्त्री के आरेख को आपके सामने रखना चाहते हैं, जो मुसोलिनी के जीवन में क्लारा पेटाकी के आने से ठीक पहले आई थी. नाम था मार्गेटा सर्फाती[18] (1880-1961).
मार्गेटा सर्फाती को मुसोलिनी के जीवन में आई स्त्रियों की तुलना में एक भिन्न धरातल पर समझा जाना चाहिए. एक धनवान वकील और व्यवसायी पिता अमेडियो ग्रासिनी और माँ एमा लेवी की बेटी मार्गेटा सर्फाती वेनिस शहर में पैदा हुई थी. मार्गेटा कोई औपचारिक रूप से शिक्षित नहीं हुई थी. उसका शिक्षण निजी तौर पर रखे गए शिक्षक के माध्यम से हुई थी. मार्गेटा अपने शुरूआती दौर में समाजवादी विचार से प्रभावित हुई और उसके प्रभाव में मात्र अठारह वर्ष की उम्र में अपने माता-पिता का घर छोड़ दिया और अपने से तेरह वर्ष बड़े ज्यूइश वकील सेसारे सर्फाती से विवाह कर मिलान शहर आ गई. मिलान में वह कला आंदोलनों का एक प्रमुख चेहरा बन कर उभरी इससे पहले वह वेनिस में अपना जीवन एक पत्रकार के रूप में शुरू करते हुए कलाओं पर विशेष रूप से लिखने लगी थी. मार्गेटा सर्फाती वेनिस समाज के बीच एक प्रभावशाली यहूदी स्त्री (सोशलाइट) के रूप में प्रसिद्ध हुई.
जब मार्गेटा सर्फाती एक कला आलोचक के तौर पर ‘अवांती’ अख़बार में काम कर रही थी उसी दौरान अपने से तीन वर्ष छोटे मुसोलिनी से 1911 में मिली और धीरे-धीरे उन दोनों के बीच अतरंग संबंध प्रगाढ़ होते चले गए. यह उल्लेखनीय है कि ठीक उसी वक्त मुसोलिनी भी उसी अख़बार में काम कर रहे थे.इन्हीं सब संबंधों और अपने अनुभवों के आधार पर 1924 में अपने पति की मृत्यु के ठीक बाद मार्गेटा सर्फाती मुसोलिनी की जीवनी ‘द लाइफ ऑफ़ बेनेदितो मुसोलिनी’ लिखने लगी थी, जो 1925 में प्रकाशित हो कर काफी चर्चित हुई. सत्रह संस्करण और अठारह भाषाओं में अनुवाद इसके प्रमाण हैं. मार्गेटा सर्फाती 1922 से 1938 तक मुसोलिनी के फैसलों को प्रभावित करने वाली एक प्रभावशाली स्त्री चरित्र के रूप में उभरती है. खासकर इटली के बदलते परिदृश्य को देखते हुए यहूदियों को पार्टी के सदस्य बनाने की पहल मुसोलिनी ने मार्गेटा सर्फाती के सुझाव पर ही की थी. इटली का यह वही दौर है जब 1926 में साहित्य का नोबल पुरस्कार इटली की प्रसिद्ध लेखिका ग्रेजिया मारिया कोसिमा डमिआना डेलेड्डा[19] को मिल रहा था.
आगे चलकर मार्गेटा सर्फाती इटली की नेशनल फासिस्ट पार्टी की ‘प्रोपेगंडेनिस्ट’ के रूप में भी काम करती रही. 1938 के बाद मार्गेटा सर्फाती इटली छोड़कर अर्जेंटीना चली गई और वहाँ एक अख़बार ‘अल दिआरियो’ में काम करने लगी. वहाँ से फिर वह मुसोलिनी की मृत्यु के बाद 1947 में अपने देश इटली लौट आई और इटली के कला आंदोलन से जुड़कर प्रभावी भूमिका निभाई. इटली में धीरे-धीरे मार्गेटा सर्फाती काफी प्रसिद्ध हो गई थी. उसकी मृत्यु के अड़तीस वर्ष बाद 1999 में उसके जीवन पर ‘क्रेडल विल रॉक’ नाम से बायोपिक बनाई गई. इस बायोपिक में मार्गेटा सर्फाती का अभिनय करनेवाली अमेरिकी अभिनेत्री सुसान सारडॉन (1946) ने मार्गेटा सर्फाती के बारे में एक महत्वपूर्ण बात कही कि, ‘मार्गेटा सर्फाती इटली के कला आंदोलन को एक सांस्कृतिक आकर देने वाली और इटली के चित्रकारों की एक प्रभावशाली संरक्षक थी, वह मुसोलिनी के साथ जरूर सोई लेकिन उसके प्रति जवाबदेह कभी नहीं रही.’
दरअसल, मार्गेटा सर्फाती एक स्वतंत्र चिंतन करनेवाली मजबूत महिला बनकर इस कारण से उभरी कि वह अपने यहूदी होने के दर्द को जानती थी. यही कारण रहा कि मुसोलिनी के संपर्क में आकर इटली में यहूदियों के जीवन जीने के तरीकों में वह परिवर्तन ला सकी. मुसोलिनी की फासिस्ट नीतियों को देखते हुए उसका साथ देने के लिए मार्गेटा सर्फाती की आलोचना की जा सकती है, लेकिन तत्कालीन इटली में जब स्त्री और यहूदी को लेकर एक फासिस्ट हिंसक वातावरण था ऐसे समय में एक यहूदी स्त्री के तौर पर तथा उसके साथ ही इटली के कला आंदोलन को समृद्ध करने के निकष पर मार्गेटा सर्फाती की प्रशंसा की जानी चाहिए. यह मुसोलिनी के जीवन में आनेवाली तमाम स्त्रियों में एकमात्र स्त्री थी, जो मुसोलिनी के साथ रहते हुए भी अपने अस्तित्व को एक अलग पहचान दे सकी और अपनी काबिलियत का स्वतंत्र विकास कर सकी. वह भी ऐसे दौर में जब इटली में बढ़ते तानाशाही के बीच वोट देने के अधिकार के लिए किए जा रहे संघर्षों का निराशावादी दौर शुरू हो चूका था.
जहाँ आंदोलनधर्मी स्त्रियों के लिए दो ही विकल्प बच रहे थे या वे राजनीतिक भागीदारी के प्रश्न से पीछे हट जाएँ या फिर वे अपने नारीवादी संघर्ष को फासीवाद में मिला दें. ‘ला डोना’ स्त्रियों की एक प्रसिद्ध पत्रिका थी जो लोकतांत्रिक संस्था ‘ला डोना’ से प्रकाशित होती थी. 1925 में इसे सरकार द्वारा बंद कर दिया गया था. पेटिट प्रेसियन को दिए एक साक्षात्कार में मुसोलिनी ने यह स्वीकार भी किया था कि ‘महिलाओं के अधिकारों के प्रति वह सकारात्मक नहीं है.’ऐसे दौर में मार्गेटा सर्फाती यहूदी स्त्रियों के पक्ष में कई सकारात्मक कदम उठाने में कामयाब रही थी.
दो)
फिर से लौटते हैं इडा डालेसर की तरफ, और बात वहीं से शुरू करते हैं जहाँ हमने इडा को छोड़ा था. 1915 में एक बेटे वेनितो अलबिनो मुसोलिनी को जन्म देती हुई इडा ने यह कल्पना भी नहीं की थी कि एक दिन वह मुसोलिनी की पत्नी का दर्जा प्राप्त करने के लिए संघर्ष करेगी और उसका बेटा भी अपने पिता का नाम प्राप्त करने के संघर्ष में एक दिन मारा जाएगा. दरअसल, दोनों को सहजता से, नैसर्गिक रूप से जो प्राप्य था/प्राप्त होना चाहिए था, तानाशाही व्यवस्था ने उस प्राप्ति को, प्राप्ति की पहचान को निर्ममतापूर्वक न केवल छीन लिया था बल्कि ध्वस्त भी कर दिया था. इडा और उसके बेटे अलबिनो का जीवन-संघर्ष बेहद त्रासद है. इस त्रासदी को इटली के फिल्मकार मार्को बेलोचियो [20] (1939) ने अपनी बायोपिक ‘विन्सरे’ में परदे पर घटित किया है.
इस बायोपिक के कुछ दृश्य तो भारतीय मन की अंदरूनी सतह को मार्मिक तरीके से स्पर्श करते हैं. खासकर एक बेटे के लिए अपने पिता के नाम को पाने का संघर्ष और इस क्रम में उसकी अमानवीय तरीके से मृत्यु. इस मृत्यु को हत्या कहना ज्यादा ठीक होगा. तानाशाही दौर में एक माँ और बेटे की त्रासदी को बायोपिक के क्राफ्ट में देखना, शब्दों के पाठ से एक अलग तरह का अनुभव देता है. इस अनुभव को बायोपिक के संगीत में उपयोग किए जाने वाले वाद्य-यंत्र और ज्यादा सघन कर देता है. संगीत की लय कई दृश्यों में गहरी उदासी का ताना-बाना बुन देती है. बायोपिक में संगीत का यह जादू कार्टो क्रिवेली ने रचा है.
जिन लोगों ने विक्टर ह्यूगो के कालजयी उपन्यास ‘ला मेजरेबल’ पर सन 2000 में बनी टी.वी.सीरिज और नोबल पुरस्कार प्राप्त लेखक गैब्रियल गार्सिया मार्खेज के प्रसिद्ध उपन्यास पर बनी फिल्म ‘लव इन द टाइम ऑफ़ कॉलेरा’(2007) देखी है, वे इटली की अभिनेत्री जिवोना मेजोगिओर्नो (1974) के अभिनय का जादू देख चुके होंगे.
इस बायोपिक में इडा डालेसर के रूप में वह अपने अभिनय से तानाशाही समय की नृशंसता को परत-दर-परत उधेड़ देती है. प्रेम, क्रोध, पीड़ा, पागलपन के दृश्यों की काट-छांट में वह इडा के तानाशाही जीवन को जीती हुई दिखलाई देती है. जैसा कि हम पहले कह आए हैं कि इडा डालेसर कॉस्मेटिक मेडिसिन की अध्येता रही थी और इसी कारण वह इटली के मिलान में फ्रेंच स्टाइल का अपना एक प्रसिद्ध सलून खोल रखा था. इस कारण से यह अकारण नहीं है कि बायोपिक में इडा के चरित्र का अभिनय करते हुए अभिनेत्री जिवोना मेजोगिओर्नो की केश-सज्जा और उसके विन्यास पर फ्रेंच स्टाइल का प्रभाव दिखलाई देता है.
युवा मुसोलिनी की भूमिका में इटालियन अभिनेता फिलिप्पो तिमी (1974) है. इस बायोपिक की दृश्यावली हमें एक ऐसे स्थापत्य के सामने ला खड़ा कर देती है जिसकी बनावट में बीसवीं सदी के शुरूआती दशक के इतिहास और उस इतिहास में समाहित मनुष्य की वरीयताएँ, उसकी चुनी हुई पसंदगी-नापसंदगी दिखलाई देती हैं. कहना होगा कि इस बायोपिक के सिनेमेटोग्राफर डैनियल सिपीन और एडिटर फ्रांसेस्का कालवेल्ली ने बायोपिक के कैनवास को अपने दृश्यों और उसके संयोजनों से प्रथम विश्वयुद्ध से पूर्व और उसके बाद की परिस्थति, द्वितीय विश्वयुद्ध के उभार से न केवल परिचित करा देती है बल्कि इन सबके बीच इडा के माध्यम से स्त्री की दुनिया के बनने-बिगड़ने की सामाजिकी को भी दिखा देती है.
कहना न होगा कि इस सामाजिकी में तानाशाही का अर्क मिला हुआ है. परदे पर इस अर्क के लिए फिल्मकार मार्को बेलोचियो ने बेनेदितो मुसोलिनी के भाषण के ओरिजनल फुटेज का इस्तेमाल कई बार किया है. परदे पर बेनेदितो मुसोलिनी के भाषण देने की शैली को देखते हुए, तत्कालीन समय और उस समय में शामिल इटली के लोगों के मनोभावों का अनुमान लगाया जा सकता है, जो उसके भाषण सुनने के लिए विवश थे. एक अनचाही चीज को चाहे जाने का दबाव कितना त्रासद होता है, हम सहज अनुमान लगा सकते हैं. तानाशाह के जीवन में स्त्री की स्थिति, उपस्थिति और त्रासदी को समझने की राह में हम इस बायोपिक की कहानी के थोड़े तफसील में जाना चाहते हैं. उम्मीद है इस तफसील को पढ़ते हुए आपको ‘विन्सरे’ के देखे जाने का अनुभव तो होगा ही साथ ही इडा डालेसर जैसी स्त्री के जीवन में प्रेम की चाहत और उसकी तन्मयता में रहने के आग्रह के कारण उसके प्रेम और उसकी इयत्ता के विरुद्ध तानाशाह द्वारा उत्पन्न की गई त्रासदी को समझने में मदद भी मिलेगी.

Vincere
यह 1914 का मिलान है. घड़ी में 5.10 बजे की शाम है. समय देखकर मुसोलिनी घड़ी को मेज पर रखता है और अपना चुस्त और जोशीला भाषण शुरू करता है. मुसोलिनी के लिए यह दौर समाजवादी विचार से प्रभावित होने का है. कुछ देर बोलकर वह एक लंबा पॉज लेता है. इसी पॉज के क्षण में इडा डालेसर का चेहरा उभरता है. वह मंत्रमुग्ध होकर मुसोलिनी को एकटक देखती रहती है. ठीक इसके बाद परदे का परिदृश्य बदल जाता है.
परदे पर श्वेत-श्याम दृश्य फैलता चला जाता है इस फैलाव में मिलान शहर का शिल्प है. मिलान के लंबे-लंबे गुंबद, वाष्प-इंजन के चलने का दृश्य, प्राचीन चर्च, कारखाने से निकलता धुआं, मिलान की जगमगाती श्वेत-श्याम रौशनी धीरे-धीरे रंगीन होने लगती है. परदे पर एक एक छोटे से फैशन शो का दृश्य कुछ पल के लिए लहराता है. हल्के शोर-गुल की गति रूकती है और फौजी गश्त की आवाज आने लगती है. यह प्रथम विश्वयुद्ध शुरू होने के पहले की दृश्य-ध्वनि है. परदे का दृश्य सात साल पीछे 1907 में पहुँच जाता है. यह उत्तरी इटली ‘एडिगे’ नदी के किनारे बसे ट्रेन्टो नामक शहर की एक वीरान रात है. ‘पो’ नदी के बाद इटली की दूसरी सबसे लंबी नदी ‘एडिगे’ है.
इडा डालेसर शहर भींगी सड़क पर धीरे-धीरे चलती हुई एक स्त्री के जीवन की अनिवार्य तन्हाई के वास्तु-शिल्प को रचती है जो असल में तानाशाही का प्रदत्त हुआ करता है. वह परदे के आयत में धीरे-धीरे दूर होती दिखलाई देती है. दर्शक की आँख उसकी पीठ के ठीक केंद्र पर स्थिर होती जाती है. पृष्ठभूमि में किसी के भाषण देने की धीमी आवाज आ रही होती है, यह यह धीमी ध्वनि इडा डालेसर को परदे से और दूर कर देती है. और तत्काल बाद परदे पर भागते सैनिकों का दृश्य करवट लेता है. वह भाषण देने वाले को गिरफ्तार करने आई है. सैनिकों के बूटों की आवाज. भाषण की ध्वनि का पीछा करती हुई भागती जाती है. परदे पर अफरातफरी के दृश्यों का कोलाज पसरता जाता है. भागते हुए लोग और उसके पीछे दौड़ते सैनिक के बीच इडा ठिठकी हुई खड़ी रह जाती है. तभी भीड़ से एक हाथ निकलता है और उसे खींचकर इटली की भव्य वास्तु शिल्प वाली एक ऊँची दीवाल के पीछे ले जाता है. परदे पर बिना किसी कट के गतिमान दृश्य धुंधला होता चला जाता है और दूसरा चटक दृश्य उभरता है जिसमें मुसोलिनी, चेतावनी देते हुए सैनिकों को चुनौती देता हुआ दिखलाई देता है. परदे पर एक दृश्य के धुंधलके से दूसरे दृश्य का उभारना अपने प्रभाव में दर्शक पर जबरदस्त असर करता है. दृश्यों के सान्द्र को यह संपादन कला ठीक ढंग से प्रस्तुत करता है.
बायोपिक संपादन की इस कला का उपयोग हिंदी फिल्मों में कम ही दिखलाई देखा है. इडा, चुनौती देते हुए मुसोलिनी को मोहाविष्ट होकरएकटक देखती रहती है. भव्य दीवाल के पीछे का दृश्य परदे पर पुन: लौटता है. इडा और मुसोलिनी की आँखें मिलती है और परदे पर एक सुदीर्घ चुंबन का दृश्य घटित होता है. एक संभावित तानाशाह के साथ इडा डालेसर के प्रेम की यह एक शुरुआत है. दूसरी शुरुआत भी जल्द ही घटित होता है. परदे पर 2014 में मिलान की एक एकांत रात इडा और मुसोलिनी को लेकर फिर उतरती है. इस रात में शामिल है, इडा और मुसोलिनी का सुदीर्घ प्रेम-संवाद और यौन-संबंध. इस दृश्य की लंबी श्रृंखला में प्रकाश संयोजन की काट-छांट की तारीफ़ इस अर्थ में की जानी चाहिए कि इस प्रकाश संयोजन के व्यवस्थापन में आगामी तानाशाही समय की एक महीन धमक दिखलाई देती है. प्रकाश की लम्बवत और क्षैतीज काट के बीच घटित अंतरंग संबंध के बीच मुसोलिनी की कठोर आँखें किसी चीते की तरह चमकती हुई उभरती है. यह लगता है कि वह अंतरंग संबंध बनाते हुए अपनी कल्पना में इटली की सत्ता प्राप्ति की महत्त्वकांक्षा लिए अपने दल की श्रेष्ठता को जी रहा है.
अंतरंग संबंध की प्रक्रिया में इडा की देह किसी स्त्री की नहीं बल्कि मुसोलिनी की राजनीतिक महत्वाकांक्षा की जमीन जैसी लगती है. यहाँ प्रेम नहीं बल्कि प्रेम के रंग में एक ठोस क्रूरता का रंग भरा हुआ है. एक तानाशाह की संभावनाओं से भरे व्यक्ति की क्रूरता, ऐसा इसलिए भी कि ठीक इस प्रेम-दृश्य के बाद परदे पर प्रथम विश्वयुद्ध के शुरू होने और सैनिकों के मार्च की आवाज के साथ मिलान के चौराहे पर लोगों के इकट्ठा होने का दृश्य आकर लेने लगता है. लेकिन इडा इन सबसे बेख़बर तन्मय प्रेम में डूबी हुई है. दरअसल इस दृश्य को देखते हुए यह भी लगता है कि जब स्त्री प्रेम करती है तो अपने ‘होने’ की संपूर्णता में करती है. किसी भी तरह के द्वैत को स्थगित करते हुए. मुसोलिनी की तरह इडा में कोई द्वैत नहीं. फिलवक्त उसकी तन्मयता ही उसका जीवन है.
सन 1914 और उससे पहले, इटली में कुछ ऐसे विशिष्ट राजनीतिक समूह थे जो समाजवादी विचार को पसंद करते थे. मुसोलिनी जब अख़बार में काम करता था, तब वह भी समाजवादी विचार को पसंद करने वाला युवा तुर्क था. मुसोलिनी के इसी तेवर से इडा आकर्षित हुई थी. वह गाहे-बगाहे कभी पास जाकर तो कभी दूर से खिड़की पर खड़ी होकर मुसोलिनी को भाषण देते हुए मंत्रमुग्ध भाव से देखा करती थी. इडा, प्रथम विश्वयुद्ध वर्ष के आरंभिक महीनों में मुसोलिनी के साथ प्रेम में डूबी हुई स्त्री है.
वह मुसोलिनी की राजनीतिक गतिविधियों में साथ रहती है लेकिन यह साथ राजनीतिक चेतना के कारण नहीं बल्कि मुसोलिनी के प्रति प्रेम-राग के कारण. इटली में मोनार्की ख़त्म होने की घटना के बाद, इडा के हाथों उत्सास से मोनार्की से जुड़े दस्तावेजों को जलाने और इटली का राष्ट्रीय ध्वज लहराने का दृश्य रोमांचित कर जाता है. यह लगता है कि इडा अगर यह सब राजनीतिक संपन्न चेनता के साथ कर रही होती तो आनेवाले दिनों में वह एक इटली की सामाजिक दुनिया के लिए एक संभावना से भरी स्त्री होती. एक दर्शक के तौर पर इडा के चेहरे की स्निग्धता को देखते हुए यह अनुमान लगाना कठिन हो जाता है कि आने वाले समय में इस स्त्री को एक तानाशाही त्रासदी से गुजरना होगा.
वैसे भी इटली में स्त्रियों की दशा 1946 से पहले अच्छी नहीं थी. उसे वोट देने का कोई अधिकार नहीं था. 1946 के बाद चुनाव द्वारा गणतंत्र की स्थापना के बाद ही स्त्रियों को वोट देने का अधिकार प्राप्त हुआ. इडा से प्यार करते हुए ठीक उसके समानांतर मुसोलिनी राचेल को भी प्यार कर रहा था. दूसरी पत्नी राचेल इस बायोपिक के परदे पर कम समय के लिए ही कुछ दृश्यों में आती है. राचेल एक गृहस्थन की भूमिका में अपने बच्चे के साथ रहती है मुसोलिनी की राजनीतिक गतिविधियों के प्रति उदासीन रहती है. मुसोलिनी से उसे कोई शिकायत भी नहीं है. वह मुसोलिनी के पांच बच्चों की माँ बनती है. मुसोलिनी, पियानो बजाने,तलवारबाजी करने के अपने शौक के बीच इडा और राचेल की जिंदगी में आते-जाते रहता है. इडा, राचेल से दस वर्ष बड़ी थी और मुसोलिनी से तीन वर्ष बड़ी. ‘विन्सरे’ बायोपिक की गतिकी में इक्कतीसवाँ और पैंतीसवाँ मिनट बायोपिक की धुरी को एक बार घुमा देता है और स्वयं इडा डालेसर के जीवन को भी.
बायोपिक के इक्कतीसवें मिनट में इडा मुसोलिनी के घर पहुँचती है,जहाँ मुसोलिनी अपनी पत्नी राचेल और बेटी एडा के साथ रहा रहा है. मुसोलिनी तलवारबाजी के कारण घायल सोया हुआ हुआ है. इडा धीरे से उसके कमरे में पहुँचती है और प्यार करने के लिए अपना माथा झुकाती है. मुसोलिनी का साथी और उसका सचिव यह देख लेता है और कमरे में जाकर इडा को जबरदस्ती घसीट कर कमरे से निकाल देता है. मुसोलिनी ऐसा होने देता है. मुसोलिनी के कमरे में दूसरे दरवाजे से अपनी बेटी को लेकर राचेल पहुँचती है और घटनाक्रम से अनजान मुसोलिनी के सामने बेटी को कर देती है, मुसोलिनी बेटी को प्यार करता है.राचेल उसे चूम लेती है. दूसरे दरवाजे पर खड़ी इडा पीड़ा से यह सब देख रही होती है. इडा का सामना राचेल से अभी तक नहीं हुआ है. बायोपिक के कुछ दृश्यों में मुसोलिनी के साथ इडा की कामुकता को कुछ अतिरिक्त रूप से उभारा गया है जबकि वास्तविक इतिहास में कामुकता का कोई वर्णन नहीं मिलता है. दरअसल फ़िल्मकार की यह अपनी दृष्टि है, लेकिन यह दृष्टि इडा के संपूर्ण चरित्र के उठान को प्रभावित नहीं करती है. कभी-कभी इडा के संदर्भ से कामुकता से भरा दृश्य एक अतिरिक्त दृश्य की तरह लगता है.
बायोपिक की संपूर्ण बनावट और उसके कथा-प्रवाह की संरचना में इडा के कामुक दृश्यों का कोई सुसंगत तालमेल नहीं बैठता. कैमरे का लेंस जिस तरह से इडा की देह की यात्रा करता हुआ दृश्य सृजित करता है, बतौर दर्शक उस दृश्य के साथ इडा के संघर्ष की संगति नहीं बैठती. बहरहाल, इडा मुसोलिनी के व्यवहार से दुखी तो होती है लेकिन इस दुःख से मुसोलिनी को छोड़ नहीं देती है. वह अगले ही दिन मुसोलिनी के साथ सिनेमाघर जाती है, राजनीतिक गतिविधियों में वह उसके साथ खड़ी होती है. बायोपिक के पैतीसवें मिनट में परदे पर इडा की गोद में एक नवजात बच्चा का चेहरा उभरता है. यह बच्चा है वेनितो अलबिनो मुसोलिनी. परदे पर प्यार करती इडा एक बदली हुई स्त्री लगती है. मुसोलिनी के प्रति प्रेम की तन्मयता से बाहर ममत्व से भरी एक ज़िम्मेदार माँ की छवि, दर्शक के लिए अब तक देखे गए इडा की छवि से एकदम भिन्न उभरता है. अपने बच्चे को ‘सिंगल मदर’ की तरह पालती हुई संजीदा माँ की छवि में अभिनेत्री जिवोना मेजोगिओर्नो भावप्रवणता के साथ परदे पर उपस्थित हुई है.
इडा, मुसोलिनी के साथ अपनी स्मृतियों के वशीभूत हो एक दिन घायल मुसोलिनी से मिलने और उसका हालचाल पूछने फिर उसके घर जाती है. यहीं इडा की पहली बार राचेल से मुलाकात होती है. मुसोलिनी को चाहने वाली दो स्त्रियाँ पहली बार आमने-सामने होती है, हालाँकि एतिहासिक विवरणों में इसका उल्लेख नहीं मिलता है. लेकिन परदे पर यह घटित होता है. दोनों के बीच तीखी बहस होती है. पति को लेकर पारंपरिक स्त्री की इस बहस के बीच घायल पड़ा हुआ मुसोलिनी इन दोनों स्त्रियों के अभी-अभी हुए घायल मन को समझा नहीं पाता है. एक-दूसरे से आहत होती हुई स्त्रियाँ अनिवार्यत: पितृसत्तात्मक घेरे की गिरफ्त में रहने के लिए मजबूर हो जाती है.
परदे पर इटालियन भाषा में ‘EsposizioneFuturista 1917’/ ‘Il Potere Al Soviet’ बड़े-बड़े अक्षरों में उभरता है और ठीक इसके बाद परदे पर लेनिन का एक मशहूर फुटेज गतिमान हो जाता है. यह 1917 की रुसी क्रांति का समय है. लेनिन अपनी पार्टी के लहराते झंडे के बगल में खड़े मुट्ठी बांधे,हाथ लहराते भाषण दे रहे हैं. बायोपिक बढ़ती राजनीतिक हलचलों के कुछ महान क्षणों को अपने में समेटे हुए है. मुसोलिनी की भी राजनीतिक गतिविधियाँ बढ़ती जाती है और वह इडा को प्रयाप्त समय नहीं देता है. इससे खीजकर एक दिन इडा मुसोलिनी के मीटिंग स्थल पर अपने बच्चे को लेकर पहुँचती है और गुस्से में दूर से ही चिल्लाकर मुसोलिनी को पुकारती है. मुसोलिनी खिड़की से उसे देखता है और खीजकर इडा पर चलाने के लिए बंदूक तान देता है जिसे उसके साथी रोकते हैं. मुसोलिनी की आर्मी इडा और उसके बच्चे को वहाँ से दूर ले जाती है. यहाँ बायोपिक एक चक्र पूरा कर लेता है और इडा और उसके बच्चे के जीवन में त्रासदी की धमक यहीं से शुरू हो जाती है.
इटली में राजनीतिक घटनाक्रम तेजी से बदलता है और मुसोलिनी की महत्वकांक्षा और अवसरवादिता भी. 13 फरवरी 1920 को इडा और उसके बेटे को मुसोलिनी शहर से दूर एक मकान में आर्मी की निगरानी में भेज देता है. यहाँ माता-पिता के प्यार से दूर एकदम तन्हा धीरे-धीरे अलबिनो मुसोलिनी बड़ा होता है. एकतरफ बेटा वेनितो अलबिनो मुसोलिनी स्कूल जाने लगता है और दूसरी तरफ इडा एक सिलाई केंद्र के संचालन में व्यस्त हो जाती है. वहीं रहते हुए वह मुसोलिनी की गतिविधियों के बारे में ‘द पीपुल ऑफ़ इटली’ अख़बार में पढ़ती रहती है.
तो क्या यह कहा जाना चाहिए कि मुसोलिनी का संपूर्ण जीवन किसी न किसी स्त्री के चौखट पर ही पूर्णता पाता रहा था. यदि मुसोलिनी के शुरुआती जीवन को आर्थिक तौर पर ईडा डालेसर थाम न ली होती और मुसोलिनी के घर और उसके बच्चों को राचेल न संभाल रही होती, क्लारा पेटाकी यदि सत्ता प्राप्ति की रणनीतियों में सहायता न कर रही होती और मार्गेट राचेल यदि उसकी पार्टी के लिए प्रोपेगेंडा का काम नहीं कर रही होती तो मुसोलिनी उन अर्थों में नहीं पहचाना जाता जिन अर्थों में उसे आज पहचाना जाता है.
मुसोलिनी के जीवन और एक तानाशाह बनने की प्रक्रिया में इन चार स्त्रियों का बड़ा योगदान रहा है. यह गौर करने वाली बात है कि इन चार स्त्रियों ने एक ऐसे व्यक्ति का साथ दिया जो विश्व के इतिहास में फासिस्ट हत्यारा और क्रूर व्यक्ति के तौर पर जाना जाता है. मुसोलिनी के तानाशाही चरित्र के साथ स्त्रियों का साथ होना कभी-कभी यह सोचने पर विवश करता है कि क्या तानाशाह के जीवन से स्त्री का अनुपस्थित हो जाना तानाशाह की दुनिया को बदल सकता है? चार स्त्रियों की इयत्ता पर कब्ज़ा करते हुए मुसोलिनी इटली में तानाशाही सत्ता का अफसाना लिख रहा था और इस अफसाने का अंत अवश्यम्भावी था. अंत हुआ. लेकिन उन चार स्त्रियों की अपनी-अपनी इयत्ता आज भी इटली और इटली से बाहर की फिजाओं में गुम और ख़ामोश है.
संदर्भ और टिप्पणियाँ :
[1] मैजिनी (2003 संस्करण), लाला लाजपतराय, सुरेन्द्रकुमार एंड संस, दिल्ली, पृष्ठ 78
[2] मारिया एंटोनियेटा मैसिओची (23 जुलाई 1922 – 15 अप्रैल 2007) एक इतालवी पत्रकार, लेखिका, नारीवादी और राजनीतिज्ञ थीं, जो 1968 में इतालवी कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के रूप में इतालवी संसद के लिए और 1979 में रेडिकल पार्टी के उम्मीदवार के रूप में यूरोपीय संसद के लिए चुनी गई थी. मारिया एंटोनियेटा मैसिओची के प्रसिद्ध निबंध ‘फीमेल सेक्सुअलिटी इन फासिस्ट आइडीओलॉजी’ को यहाँ देखा जा सकता है- https://journals.sagepub.com/doi/abs/10.1057/fr.1979.6?journalCode=fera 14 जनवरी 2025को देखा गया.
[3]https://www.researchgate.net/publication/369230917_On_Umberto_Eco’s_How_to_Spot_a_Fascist , 10 जुलाई 2023 को देखा गया.
[4] ‘गैरीबाल्डी की तो बात ही क्या, जो आत्मा की ज्वाला को उस italvi मेघ के अंश से मिला देते हैं, जो दांते में उससे कम नहीं मिलती, जितनी मैकयावेली में है.’ – मार्क्स एंगेल्स साहित्य तथा कला (1981 हिंदी अनुवाद) प्रगति प्रकाशन, मास्को, पृष्ठ 284
[5] https://www.peoplepill.com/people/benito-mussolini/22 जुलाई 2023 को देखा गया
[6] स्त्री उपेक्षिता (2008 रिप्रिंट), सिमोन द बोउआर (हिंदी अनुवाद- प्रभा खेतान), हिंद पाकेट बुक्स, पृष्ठ 69
[7] https://www.peoplepill.com/people/ida-dalser/lists/ लिंक पर बेनेदितो मुसोलिनी से जुड़े हुए लोगों की जानकरी को देखा जा सकता है. 22 जुलाई 2020 को देखा गया
[8] https://www.peoplepill.com/people/benito-mussolini/22 जुलाई 2023 को देखा गया
[9]https://www.peoplepill.com/people/benito-albino-dalser/22 जुलाई 2023 को देखा गया
[10] https://www.peoplepill.com/people/rachele-mussolini/22 जुलाई 2023 को देखा गया
[11] https://www.peoplepill.com/people/alessandro-mussolini/26 जुलाई 2023 को देखा गया
[12] https://www.worldcat.org/title/my-truth/oclc/2373301 लिंक पर किताब के बारे में विस्तृत जानकरी को देखा जा सकता है. 30 जुलाई 2022 को देखा गया
[13] https://www.ranker.com/list/life-of-clara-petacci/melissa-sartore 04 अगस्त 2023 को देखा गया.
[14] लेक कोमो झील की आकृति अंग्रेजी के वाई वर्णमाला की तरह है. रोमन काल से ही अभिजात वर्ग के लिए एक लोकप्रिय आश्रय स्थल रहा है. आज भी इस झील के किनारे कई विला बने हुए हैं. आज यह इटली में एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल माना जाता है.
[15] यह तस्वीर यहाँ से साभार लिया गया है – By Vincenzo Carrese – www.paulfrecker.com/pictureDetails (800 × 568)https://www.the-saleroom.com/en-gb/auction-catalogues/international-autograph-auction-spain-s-l/catalogue-id-srint10011/lot-40a1043d-e770-4f5a-8bf0-afac00cbf914 (2,231 × 1,689), Public Domain, https://commons.wikimedia.org/w/index.php?curid=12790041 इस तस्वीर के अलावे एक और तस्वीर जिसमें सिर्फ मुसोलिनी और पेटाकी की तस्वीर है इस लिंक पर देखा जा सकता है- https://www.ww2online.org/image/benito-mussolini-and-clara-petacci-hanging-after-execution-milan-italy-29-april-1945
[16] https://www.youtube.com/watch?v=LP0XficNzt4 10 अगस्त 2023 को देखा गया.
[17] David Beecham (10 May 2011, Issue 63), Ignazio Silone and Fontamara, International Socialism Journal, International Socialism. Retrieved 10 May 2011, 22 अगस्त 2024 को देखा गया
[18] फ़्रन्कोइसे लिफ्रण ने 2009 में मार्गेट सर्फाती पर एक विस्तृत जीवनी लिखी है, जिसे http://infinity.wecabrio.com/2020983532-margherita-sarfatti-l-a-c-ga-c-rie-du-duce.pdf पर देखा जा सकता है. 30 जुलाई 2024 को देखा गया.
[19] https://www.literaryladiesguide.com/author-biography/grazia-deledda/ 30 जुलाई 2023 को देखा गया
[20] https://www2.bfi.org.uk/news-opinion/news-bfi/interviews/marco-bellocchio-fists-pocket 01 अगस्त 2023 को देखा गया.
‘आपातकाल : हिंदी साहित्य और पत्रकारिता’ एवं ‘आलोचना का स्वराज’ पुस्तक के लेखक और ‘एरिक हाब्स्बौम : एक वैश्विक द्रष्टा’ ‘महामारी: साहित्य समाज सत्ता और संस्कृति’ का संपादन, पाँच दर्जन से अधिक लेख, इन दिनों भारतीय और वैश्विक सिनेमा तथा साहित्य के रिश्तों पर अध्ययन . महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय |
यह आलेख एक तानाशाह के जीवन और उसके स्त्रियॉं के प्रति व्यवहार और दृष्टिकोण का आकलन करने में सफल रहा है। ऐसा कम होता है कि हम फिल्मों का सहारा लेकर किसी व्यक्तित्व को समझते हैं। इस आलेख में लेखक ने यह सफलता पूर्वक जोखिम उठाया है और फिल्म के साथ उचित असहमतियाँ भी दर्ज की हैं। हमें उस तानाशाह के जीवन में आने वाली चार स्त्रियॉं का पूरा आकलन मिलता है। आलेख का मूल स्वर पितृसत्ता की मानसिकता पर प्रश्न उठाने का रहा है।
परंतु अंत आते आते लेखक पूछते हैं, “तो क्या यह कहा जाना चाहिए कि मुसोलिनी का संपूर्ण जीवन किसी न किसी स्त्री के चौखट पर ही पूर्णता पाता रहा था.” जहाँ लेखक अपने मूल स्वर, जिसमें उनकी समानुभूति उन चारों स्त्रियॉं के साथ खड़ी होती है, से दूरी बना लेते है। यह एक और लंबे आलेख का आमंत्रण है, जिसे शायद लेखक खुद नहीं लिखना चाहते।