मैथ्यू अर्नाल्ड ने कहा था, ‘कविता, जीवन की आलोचना है.’ कहा जा सकता है कि रघुवीर सहाय ने जीवन भर अपनी कविताओं में यही किया. जीवन की विभिन्न विसंगतियों को वे बड़े व्यंजक रूप में और कारुणिक प्रभाव के साथ चित्रित करते रहे. वहीं, गद्य की प्रकट-अप्रकट कोई लय, उनके कविताओं में गीतात्मकता उत्पन्न करती है और तदनुरूप उनमें एक ख़ास तरह की प्रभावशीलता आ जाती है. पत्रकारिता, उनका कर्म रहा और इसका स्पष्ट और समुचित उपयोग उन्होंने अपने कविता सहित साहित्य की कई विधाओं में किया. रघुवीर सहाय का जन्म 09 दिसंबर 1929 को हुआ और उनकी मृत्यु 30 दिसंबर 1990 को हुई. 61 वर्ष की उनकी कुल उम्र रही. उन्होंने हिंदी पत्रकारिता और साहित्य को कई स्तरों पर समृद्ध किया. वे रंगमंच और अनुवाद के कार्यों से भी गहरे जुड़े रहे.
दिसंबर 2020 माह को ‘जनसुलभ पुस्तकालय’ ने रघुवीर सहाय की स्मृति को समर्पित किया. उनपर ‘एकाग्र’ का आयोजन किया गया, जिसमें कुल 14 कार्यक्रम हुए. उनके जन्मदिन के सप्ताह में शृंखला की शुरुआत उनके जन्मदिन (09 दिसंबर) से हुई. इसी महीने आनेवाली उनकी पुण्यतिथि के सप्ताह में आयोजित विभिन्न कार्यक्रमों के साथ पूरी शृंखला का समापन उनकी पुण्यतिथि (30 दिसंबर) को हुआ.
सभी वक्ताओं का सार संक्षेप यहाँ प्रस्तुत है.
अर्पण कुमार
१.
त्रिलोक दीप
रघुवीर सहाय (09/12/1929-30/12/1990) पर वक्तव्य-शृंखला की शुरुआत त्रिलोक दीप के संस्मरणात्मक वक्तव्य (दि. 09/12/2020) से हुई. उन्होंने रघुवीर सहाय से अपनी पहली मुलाक़ात को याद करते हुए बताया कि ‘इकोनोमिक टाइम्स’ के सत्येंद्र सिंह ने कैसे उन्हें रघुवीर सहाय से मिलवाया था. तब रघुवीर ‘नवभारत टाइम्स’ में थे. उन्होंने बताया कि रघुवीर सहाय की रिपोर्टिंग कभी सपाट नहीं रही. उन्होंने उन दिनों को याद करते हुए कहा कि कैसे ‘दिनमान’ सीमित सुविधाओं के साथ प्रकाशित होती थी. वह हैंड कंपोजिग का ज़माना था. फिर फर्मे बना करते थे. ‘दिनमान’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ भी हैंड-कंपोजिंग से ही चलते थे. एक दिन का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि कोई स्टॉफ़ पेज को ओ.के. करना भूल गया था. उन दिनों हर घर पर टेलीफ़ोन नहीं हुआ करता था. रघुवीर सहाय तब चाणक्यपुरी, नई दिल्ली में रहा करते थे. उनके घर में फ़ोन था. उन्हें फ़ोन करके बुलाया गया. वे आए और कंपोजिटर के स्टूल पर जाकर सहजतापूर्वक बैठ गए और पेज को ओके किया. ‘दिनमान’ के संपादक के रूप में ऐसी कई रोचक और सादगी से भरी उनसे जुड़ी घटनाओं का उन्होंने ज़िक्र किया.
२.
रमेशचंद्र शाह
दिनांक 10/12/2020 को रघुवीर सहाय के कविता-संग्रह ‘लोग भूल गए हैं’ के बहाने से रमेशचंद्र शाह का वक्तव्य रहा. शाह ने रेखांकित किया कि सहाय ने किस तरह हिंदी कविता का मुहावरा बदल कर रख दिया. उन्होंने सोदाहरण बताया कि ‘एक दिन रेल में’ शीर्षक कविता में सबकी जानी-पहचानी घटना घटती है. मगर कविता के अंत में कुछ दूसरी बातें हो जाती हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि रघुवीर सहाय की कविताएँ अपने समय में ताज़गी ली हुई कविताएँ हैं. उनका कवि किसी समस्या को सरलीकृत नहीं करता, बल्कि वह जड़ों तक जाता है. उन्होंने माना कि रघुवीर के ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ संग्रह ने हिंदी साहित्य में हलचल मचा दी थी. मगर ‘लोग भूल गए हैं’ शीर्षक संग्रह में कवि का विकास दिखता है. आज की राजनीतिक परिस्थिति में रघुवीर की कविताएँ प्रासंगिक हैं. अपने लोगों की बेचारगी से उत्पन्न जो पीड़ा और गुस्सा उन कविताओं में है, वह पीड़ित विवेक-चेतना की अभिव्यक्ति है. आज भी बदले हुए परिवेश में उनकी कविताएँ पूरी तरह मुखर और प्रासंगिक हैं.
३.
विनोद भारद्वाज
11 दिसंबर 2020 को विनोद भारद्वाज ने रघुवीर सहाय पर केंद्रित अपना संस्मरणात्मक वक्तव्य दिया, जिनमें ‘दिनमान’ से जुड़े कई संस्मरण उन्होंने सुनाए. रघुवीर सहाय से रही अपनी निकटता और अपने जीवन में उनके महत्व को उन्होंने विशेष रूप से रेखांकित किया. ‘दिनमान’ में बतौर पत्रकार आने (17 दिसंबर 1973) के अपने प्रसंग का उन्होंने विस्तार से ज़िक्र किया. उन्होंने ‘दिनमान’ के स्तंभों की स्तरीयता और विविधता का विस्तारपूर्वक उल्लेख किया. उन्होंने बताया कि रघुवीर सहाय की पुस्तक ‘दिल्ली मेरा परदेस’ (1976 में प्रकाशित), ‘धर्मयुग’ में प्रकाशित उनके कॉलम का ही संकलन है. वे सुंदरलाल के नाम से ‘दिल्ली की डायरी’ नाम का वह कॉलम (1960-1963 के बीच) \’धर्मयुग\’ में लिखा करते थे. अपने जीवन के कई महत्वपूर्ण निर्णयों में विनोद भारद्वाज ने रघुवीर सहाय के योगदान को निःसकोच स्वीकारते हुए उनके व्यक्तित्व के कई पक्षों पर बातचीत की. उन्होंने बताया कि रघुवीर सहाय उनके प्रिय कवि हैं और ऐसा उनकी भाषा के कारण विशेष रूप से है. वे सरकार नहीं बल्कि व्यवस्था से बहस किया करते थे.
४.
हेमा सिंह
रघुवीर सहाय की दूसरी पुत्री और रंगकर्मी हेमा सिंह ने रघुवीर सहाय के रंगमंच से संबंधित कार्यों के बारे में दिनांक 12 दिसंबर 2020 को बातचीत की. उन्होंने ‘कविता-आवृत्ति’ में उनके द्वारा किए गए प्रयोग पर बातचीत की. उन्होंने रघुवीर सहाय के बहुमुखी व्यक्तित्व को रेखांकित किया और रंगमंच और अनुवाद के क्षेत्र में उनके योगदान की चर्चा की. उन्होंने दुहराया कि रघुवीर सहाय ने पाँच बाल रेडियो-नाटक लिखे थे, जो लखनऊ रेडियो से प्रसारित हुए. उन्होंने नाटकों में गीत लिखे, टी.वी. के लिए स्क्रीप्ट लिखा. उन्होंने अपने पिता को अपना सबसे बड़ा आलोचक माना और जीवन में आगे बढ़ने के लिए उनके द्वारा प्रदत्त प्रेरणा को बड़ी आत्मीयता से याद किया. उन्होंने याद किया कि बचपन में किए जानेवाले उनके नाटकों को वे कैसे प्रोत्साहित किया करते थे. हेमा ने बताया कि यशपाल के नाटक ‘नशे नशे की बात’ में रघुवीर सहाय ने अभिनय भी किया था. उन्होंने उल्लेख किया कि ‘दिनमान’ में उन्होंने ‘नटकही’ के अंतर्गत शृंखलाबद्ध रूप में तीन छोटे-छोटे नाटक लिखे, जो आज भी प्रासंगिक हैं. 1958 में \’एशियन थिएटर इंस्टीट्यूट\’(जो बाद में \’राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय\’,एन.एस.डी. के रूप में परिवर्तित हुआ) बना और जहाँ कम समय के लिए ही सही, रघुवीर सहाय, रिसर्च ऑफिसर रहे. कठपुतलियों पर काम किया. बाद में भी वे एन.एस.डी. से किसी-न-किसी रूप में जुड़े रहे. हेमा ने स्पष्ट किया कि रघुवीर किस तरह साहित्य और नाटक के बीच सेतु की तरह थे. ‘अनुवाद’ विधा पर रघुवीर सहाय के विचारों को भी उन्होंने उद्धृत किया. हेमा ने याद किया कि रघुवीर सहाय कैसे अपनी कविताओं और नाट्य –रूपांतरणों का बड़ा प्रभावी पाठ किया करते थे. अपने संबोधन के अंत में उन्होंने रघुवीर सहाय की कविताओं का सफल पाठ किया.
५.
प्रो. उदयभानु पांडेय
प्रो. उदयभानु पांडेय का रघुवीर सहाय की स्मृतियों पर केंद्रित वक्तव्य 14 दिसंबर 2020 को हुआ. एक कार्यक्रम में रघुवीर सहाय असम के कार्बी आंगलांग ज़िले के ज़िला-मुख्यालय डिफू गए थे. विदित है कि असम साहित्य सभा का 49वाँ अधिवेशन डिफू में हुआ. वे उस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित थे. तब वे वहाँ कुछ दिन ठहरे थे. उदयभानु का यह संस्मरण मुख्यतः उनके उसी प्रवास पर केंद्रित है. उन्होंने बच्चों के प्रति रघुवीर सहाय के स्नेह को विशेष रूप से रेखांकित किया. उन्होंने रघुवीर सहाय के साहित्यिक उत्साह की भी चर्चा की. उन्होंने बताया कि भूपेन हजारिका के संगीत के वे कितने बड़े प्रशंसक थे. प्रो. पांडेय ने बताया कि डब्ल्यू. एच. ऑडेन की भाषा की तरह का अर्थगांभीर्य उनकी कविताओं में है. उन्होंने ज़ोर दिया कि उनकी कविताओं की भाषा का संगीत (‘यूफ़नी’) कैसे अलग से हमारा ध्यान आकर्षित करता है.
६.
मदन सोनी
इसके बाद इस शृंखला के दूसरे खंड की शुरुआत हुई. उनकी पुण्यतिथि के सप्ताह में शेष कार्यक्रम हुए. दिनांक 26/12/2020, शनिवार को रघुवीर सहाय के कवि पक्ष पर केंद्रित अपने आलेख ‘कविता और हिस्सेदारी’ का पाठ मदन सोनी ने किया. उन्होंने स्पष्ट किया कि वक्तव्य, रघुवीर सहाय की कविता का प्रवेश द्वार नहीं है, बल्कि उसकी अतर्वस्तु है. रघुवीर की कविताओं में बार-बार आते लोक और लोकतंत्र को लक्षित करते हुए उन्होंने उनकी कविताओं के कई उद्धरण दिए और बताया कि लोकतंत्र, उनकी कविता का प्रमुख और आवर्ती तत्व है. मदन सोनी ने स्पष्ट किया कि रघुवीर सहाय का कवि पीड़ित अन्य के साथ वही संबंध बनाता है जो वह आक्रामक सत्ता के साथ बनाता है. उन्हें कई जगहों पर रघुवीर सहाय की कविताओं में सता का सरलीकरण भी दिखता है. उन्होंने बताया कि रघुवीर सहाय त्रास-बोध के नहीं बल्कि त्रास-बोध के कारण के कवि हैं. अन्य के प्रति उन्मुखता, करुणा, उनका स्वभाव नहीं है, बल्कि उनकी बाधा है. अन्य के प्रति उन्मुख होना उनके स्वभाव के विपरीत की यात्रा है. उनकी कविताओं में किसी निस्संग व्यक्ति की हिस्सेदारी है. उन्होंने बताया कि ‘सीढ़ियों पर धूप में’ संग्रह में अपेक्षाकृत रागात्मकता अधिक है. सत्ता के साथ रघुवीर का संबंध द्वैतपूर्ण है. सत्ता का विरोध करते हुए उनकी कविता, सत्ता का प्रतिरूप बन जाती है. उन्हें लगता है कि रघुवीर, शब्द के अर्थ को नियंत्रित करना चाहते हैं.
७.
राजेश जोशी
दिनांक 27/12/2020 को राजेश जोशी ने रघुवीर सहाय की कविताई पर अपना वक्तव्य दिया. उन्होंने उनकी कविता ‘हँसो, हँसो, ज़ल्दी हँसो’ के पाठ से अपने संवाद का आरंभ किया. रघुवीर सहाय की रचनाओं पर मनमोहन, शमशेर बहादुर सिंह, अरुण कमल और विजय कुमार के विचारों को उन्होंने उद्धृत किया. राजेश जोशी ने स्वीकारा कि उनके लिखे निबंध, टिप्पणियाँ, कहानियाँ उन्हें प्रिय हैं. रघुवीर के यहाँ जो कहा जा रहा है, उसके अतिरिक्त उसे कैसे कहा जा रहा है- इसपर भी ध्यान देने की ज़रूरत है. उन्होंने बताया कि रघुवीर सहाय की कविताओं में निश्चय नहीं बल्कि संशय है. अगर हम उनके वाक्य की बनावट को समझ लें तो उनकी कविता भी समझ पाएँगे. रघुवीर सहाय, भाषा के प्रवाह को झटके से रोकते हैं.
राजेश ने बताया कि रघुवीर के यहाँ भय की भाषा में सत्ता के विरोध का एक साहस है. उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके यहाँ ट्रैजेडी, कॉमेडी और कॉमेडी, ट्रैजेडी की तरह आती है. रघुवीर सहाय के यहाँ ‘रामदास’ जैसी कविता है, जिसमें सामान्य मनुष्य की ट्रेजेडी है. रघुवीर सहाय का संघर्ष मुक्तिबोध के संघर्ष का-सा है, हालाँकि दोनों में अंतर है. उनके यहाँ वैचारिक स्तर पर संघर्ष कम है. रघुवीर की सामाजिकता, आंतरिक सामाजिकता है. उनके यहाँ जनता कई-कई रूपों में आती है.
राजेश जोशी ने बताया कि नई कविता के अज्ञेय और मुक्तोबोध से रघुवीर कैसे कुछ भिन्न नज़र आते हैं. उनमें यथार्थ के सच का अन्वेषण है. उनकी हल्की-फुल्की दिखती कविताओं में करुणा के भाव है. उनके यहाँ कई तरह के प्रयोग दिखते हैं. ‘लोग भूल गए हैं’ कविता-संग्रह को पढ़ते हुए ऐसा लगता है, जैसे कोई काव्य-निबंध पढ़ा जा रहा हो. ‘हँसो, हँसो, ज़ल्दी हँसो’ संग्रह में राजनीतिक हिंसा और अन्याय का हवाला है. राजेश ने बताया कि रघुवीर सहाय और नागार्जुन में कई चीज़ें आसपास दिखती हैं. हाँ, आशा और उम्मीद रघुवीर सहाय की कविताओं में कुछ कम दिखती हैं. मगर, यह निराशा कुछ अन्य समकालीनों से भिन्न निराशा है. उन्होंने बताया कि रघुवीर सहाय की कविताओं के अंतर्पाठ को समझने के लिए उस निराशा को समझने की ज़रूरत है जो निष्क्रियता की ओर नहीं बल्कि सक्रियता की ओर जाती हैं.
8.
मंजरी जोशी
दिनांक 28/12/2020 को मंजरी जोशी का भी संस्मरणात्मक वक्तव्य रहा. वे रघुवीर सहाय की पहली संतान हैं. मंजरी ने अपने पिता को याद करते हुए कहा कि एक शब्द पूछने पर कैसे वे उससे जुड़े बहुत सारे संदर्भ बताया करते थे. उन्होंने स्वीकारा कि तब की सीखी वे चीज़ें अब काफ़ी काम आती हैं. उन्होंने अपने कार्यों के ब्यौरे देते हुए बताया कि उनके पापा, उनके कार्य के सबसे पहले आलोचक हुआ करते थे. वे दूसरे समाचार वाचकों की त्रुटियों पर भी नज़र रहते थे. किस समाचार वाचक ने कौन सा शब्द ग़लत उच्चारित किया, किसने भोंडे क़िस्म के कपड़े पहने जैसी बारीकियों पर भी उनकी नज़र रहा करती थी. उन दिनों अख़बारों, पत्रिकाओं में टीवी न्यूज़ की समीक्षा छपा करती थी. उन्होंने याद किया कि समीक्षा के उद्देश्य से उनके पापा उनके समाचार-वाचन को रिकॉर्ड कर दिया करते थे. उन्होंने माना कि किसी को सतही तौर पर न देखकर गहराई से देखने का स्वभाव उन्होंने अपने पापा से सीखा है. उन्होंने रघुवीर सहाय की सहृदयता के कई क़िस्से सुनाए. अपने संबोधन के अंत में उन्होंने रघुवीर सहाय की कुछ कविताएँ भी प्रस्तुत कीं. उन्होंने बताया कि कैसे वे कविता पढ़कर उसे गुनने को कहा करते थे. यही चीज़ वे बाक़ी कालकारों से भी कहा करते थे. मंजरी ने बताया कि ‘कविता-आवृत्ति’ में काम करनेवाले उस समय के कई कलाकार आज टीवी धारावाहिकों में सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं.
९.
हेमंत जोशी
उसी दिन, हेमंत जोशी का वक्तव्य हुआ. उन्होंने, रघुवीर सहाय के संपादक, अनुवादक पक्ष पर बात की. उनसे अपनी पहली मुलाक़ात से लेकर उनके बड़े दामाद बनने तक की अपनी यात्रा के कई प्रसग, उन्होंने साझा किए. उनके अंदर सहजता का गुण था और वे अपने बच्चों के प्रति बड़े जागरूक थे. एक केयरिंग पिता की उनकी कई छवियों को हेमंत ने उकेरा. उन्होंने बताया कि कैसे उनके द्वारा अनूदित कविताओं को रघुवीर सहाय, ‘दिनमान’ में छापा करते थे. हेमंत ने बताया कि संबंधों से परे जाकर वे किसी का आत्मविश्वास बढ़ाया करते थे. वे अपने से मिलनेवाले किसी व्यक्ति के भीतर की संभावनाओं को उभारने का काम किया करते थे. सड़क पर अपने साथ छोले-भठूरे खाने की घटना के हवाले से हेमंत ने बताया कि वे कैसे किसी प्रदर्शन-भाव से मुक्त थे और शायद इसलिए ही कई बार साधारण चीज़ों में भी पूरी गहराई से प्रवेश कर पाते थे. उन्होंने अपने वक्तव्य के अंत में कहा कि रघुवीर सहाय, अंतिम दम तक अपने कर्तव्यों के प्रति सजग रहे और अंततः वे (कहीं-न-कहीं) अपने मोर्चे पर ही शहीद हुए. उनका जाना, व्यक्ति-स्वातंत्र्य के लिए लड़नेवालों की एक कड़ी के टूटने जैसा है. हेमंत जोशी ने उन्हें याद किया और कहा कि रघुवीर सहाय आज भी उनलोगों के साथ हैं, जो समतामूलक, न्यायप्रिय और विचारवान समाज बनाना चाहते हैं.
१०.
विष्णु नागर
29 दिसंबर 2020 को रघुवीर सहाय के जीवनीकार विष्णु नागर का और ‘रघुवीर सहाय रचनावली’ के संपादक सुरेश शर्मा का वक्तव्य रहा. विष्णु नागर ने रघुवीर सहाय की जीवनी ‘असहमति में उठा एक हाथ’ के रचाव से जुड़ी कई बातें बताईं. ‘दिनमान’ से रघुवीर के लगाव और वहाँ से हटाए जाने का उनपर पड़ने वाले प्रभाव का भी उन्होंने ज़िक्र किया. विष्णु ने बताया कि रघुवीर, किस तरह कविता को रंगमंच पर लाते रहे. ‘प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया’ के सदस्य के रूप में उनके कार्यों को भी विष्णु ने याद किया और बताया कि किस तरह वे अपनी अंतिम साँस तक कार्य करते रहे. विष्णु ने माना कि शमशेर, नागार्जुन, त्रिलोचन के बाद रघुवीर सहाय, किस तरह उनकी पीढ़ी के आदर्श रहे. उन्होंने कविता में बिल्कुल नए ढंग से काम किया. ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ की कविताएँ, अपने पूर्ववर्ती कवियों की कविताओं के प्रभाव से भिन्नता ली हुई कविताएँ हैं, जिसका एक बड़े पाठक समुदाय ने भरपूर स्वागत किया. विष्णु नागर ने रघुवीर सहाय से ‘दिनमान’ में हुई अपनी मुलाक़ात का विस्तार से ज़िक्र किया. बाद में ‘दिनमान’ में लिखने का उनका सिलसिला शुरू हुआ. उन्होंने बतया कि हर नए लेखक से उनका उदारता भरा ऐसा ही व्यवहार हुआ करता था. उन्होंने मंगलेश डबराल, असगर वजाहत, यादवेंद्र, उर्मिलेश आदि कई लोगों को उन्होंने ‘दिनमान’ में काम दिए. वे जितने बड़े कवि थे, उतने ही बड़े संपादक. दिनमान की जो अंतिम छाप है, वह रघुवीर सहाय के संपादन में निकलनेवाले ‘दिनमान’ की ही छाप है. उन्होंने अज्ञेय के साथ रघुवीर सहाय के संबंधों पर भी बातचीत की.
११.
सुरेश शर्मा
सुरेश शर्मा ने ‘रघुवीर सहाय रचनावली’ के बहाने सिलसिलेवार रूप में इसके अलग-अलग खंडों को समेटते हुए अपना वक्तव्य रखा. उन्होंने रघुवीर के विभिन्न लेखकीय–पक्षों पर अपनी बातें रखीं. उन्होंने बताया कि किस तरह 1989 में रघुवीर सहाय से उनकी रचनावली के प्रकाशन पर उनसे बातचीत हुई थी. यह रचनावली, सहाय जी के लेखन की ही तरह ही नवीनता ली हुई है. उन्होंने बताया कि रघुवीर जी का अनुभव-जगत कितना विस्तृत और बहुस्तरीय है. सुरेश ने कहा कि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के बाद, विषयवस्तु के विस्तार की उनकी परंपरा को सही मायने में रघुवीर सहाय आगे बढ़ाते हैं. सामाजिक परिवर्तन में कविता की भूमिका को रघुवीर ने रेखांकित किया और उन्होंने कविता के स्वरूप और उद्देश्य को बदला. दरअसल, उनकी कविता का सौंदर्य-शास्त्र, ख़बर का सौंदर्य-शास्त्र है. उनकी कविताएँ ख़बरधर्मी हैं. सुरेश शर्मा ने इसे और स्पष्ट करते हुए कहा कि रघुवीर अपनी ख़बरों में घटित यथार्थ को प्रस्तुत करते हैं, वहीं अपनी कविताओं में संभव यथार्थ की बात करते हैं. रचनावली में उनकी पहली कविता से अंतिम कविता तक रखी गई है. शुरू में बच्चन के प्रभाव में दिखते रघुवीर, कालांतर में कैसे अपने लिए एक नई दुनिया रचते हैं. बाद में सुरेश ने, रघुवीर के पत्रकार, कहानीकार, अनुवादक , संस्मरणकार, निबंधकार, समीक्षाकार पक्ष पर कुछ ज़रूरी बातें कीं. सुरेश ने रेखांकित किया कि रघुवीर सहाय ने किस तरह बिल्कुल भिन्न रूप में संस्मरण लिखे. अज्ञेय, फणीश्वरनाथ रेणु, यशपाल, भुवनेश्वर, आदि पर लिखे उनके संस्मरण बड़े महत्वपूर्ण और रोचक हैं.
१२.
गौरी रिचर्डस
30/12/2020 को गौरी रिचर्डस और वसंत सहाय के संस्मरणात्मक वक्तव्य रहे. वे क्रमशः रघुवीर सहाय की तीसरी और चौथी संतान हैं. दोनों वर्तमान में अमेरिका में रह रहे हैं. इसी दिन अशोक वाजपेयी का समाहार-वक्तव्य रहा. गौरी रिचर्ड्स ने बताया कि कैसे उन सभी लोगों को रघुवीर सहाय के साथ रहते हुए कितना कुछ सीखने को मिला. उन्होंने सोदाहरण बताया कि उनके पिता किस तरह वातावरण के अनुकूल कविता रच दिया करते थे और रोते हुए बच्चे को हँसा दिया करते थे. उन्होंने याद किया कि वे अपने पूरे परिवार सहित भोजन करने से पहले प्रार्थना किया करते थे. उस घर में हर समय अच्छी हिंदी सुनने को मिलती थी. गौरी ने ज़िक्र किया कि विदेश से लौट कर आने के बाद वे वहाँ का जीवंत वर्णन प्रस्तुत किया करते थे. उन्होंने बताया कि रघुवीर सहाय ने सपरिवार यूरोप जाने की योजना बनायी थी, जो कभी पूरी नहीं हो पाई. उन्होंने भावुक मन से अपने पिता को याद करते हुए कहा कि वे बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के साथ उनके मनोरंजन का भी पूरा ध्यान रखते थे. थिएटर, रामलीला, बाल भवन, चिल्डर्न पार्क, प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया, कनॉट प्लेस आदि कई जगहों पर वे परिवारजनों को ले जाया करते थे. शनिवार-इतवार को वे लोग कनॉट प्लेस जाया करते थे. वहाँ की रौनक उन्हें पसंद थी. इस अवसर पर गौरी रिचर्ड्स के नौजवान पुत्र नेविन रिचर्डस ने अपने नाना (रघुवीर सहाय) की कुछ कविताओं का पाठ किया.
१३.
वसंत सहाय
उसी दिन, रघुवीर सहाय के पुत्र वसंत सहाय ने रघुवीर सहाय पर संस्मरणात्मक वक्तव्य दिया. उन्होंने अपने पिता की कई कविताओं यथा ‘अगर कहीं मैं तोता होता’, ‘आओ जल भरे बर्तन में झाँकें’, ‘पढ़िए गीता’ शीर्षक कविताओं का पाठ किया. उन्होंने अपनी पसंद की उनकी कुछ और कविताएँ भी सुनाईं. उन्होंने रघुवीर सहाय के कविता-संग्रह ‘हँसो, हँसो, ज़ल्दी हँसो’ के प्रकाशन की बात करते हुए याद किया कि जब वह किताब छपनेवाली थी, तब वे संभवतः सातवीं क्लास में थे. उनका आर्ट में कुछ विशेष शौक़ नहीं था. तभी एक दिन रघुवीर सहाय उनके पास आए और उनसे बोले, ‘वसंत, एक आदमी का चित्र बना दो, जो भाग रहा हो. उसका एक पैर ज़मीन पर और एक पैर हवा में हो.’
वसंत ने बतलाया कि यह उनके पिता से मिली शिक्षा ही है कि उन्हें काफ़ी कम उम्र से भागने और दौड़ने के बीच का अंतर मालूम है. उन्होंने चित्र बनाया और रघुवीर जी ने उस चित्र को अपनी पुस्तक के कवर पर जगह दी. वसंत ने दांपत्य में प्रेम-भाव पर पर आधारित रघुवीर सहाय की कुछ कविताओं की भी चर्चा की, जिनमें ‘स्वीकार’, ‘उपन्यास लिखना’ सरीखी कविताएँ हैं. उन्होंने सोदाहरण बताया कि रघुवीर सहाय किस तरह जीवन को संपूर्णता में जीने की हसरत रखा करते थे. उन्हें पेड़ के नीचे बैठे नाई से बाल कटवाने में भी कोई ऐतराज़ नहीं होता था. यह उनके लिए वैसे ही स्वाभाविक बात हुआ करती थी, जिस तरह सैलून में जाकर किसी के लिए बाल कटवाना. उन्होंने याद किया कि रघुवीर सहाय ने एक दिन मुहल्ले में घर के सामने से हारमोनियम बजाते हुए निकल रहे किसी कलाकार को अपने पास बुलाया था, उसका गाना सुना और उसे रिकॉर्ड किया. अपने पिता की प्रेरणा से सिखी गए अपने बाँसुरी-वादन पर भी उन्होंने बात की और अंत में कार्यक्रम का एक सुरीला समापन करते हुए बाँसुरी वादन भी किया.
१४.
अशोक वाजपेयी
उसी दिन रघुवीर सहाय के ऊपर केंद्रित इस वक्तव्य-शृंखला का समाहार अशोक वाजपेयी के वक्तव्य से हुआ. उन्होंने उनसे जुड़े कई महत्वपूर्ण संस्मरणों के साथ उनकी कविताओं पर बात की. अशोक ने बताया कि कैसे उनके आलोचक की शुरुआत, रघुवीर सहाय के कविता-संग्रह पर लिखने से हुई. उन्होंने याद किया कि ‘पूर्वग्रह’ पत्रिका में 1976 में रघुवीर सहाय से लंबा इंटरव्यू लिया. ‘नई कहानी’ आंदोलन के लेखकों ने रघुवीर सहाय जैसे लेखकों को कवि-कथाकार कहकर झटक दिया, जबकि सच्चाई यह है कि उनकी कहानियों में सचमुच नई कहानी के तत्व है. अशोक ने उनकी ‘खेल’ शीर्षक कहानी का विशेष रूप से ज़िक्र करते हुए कहा कि कैसे इस कहानी में डामर में फँसी चिड़िया का संघर्ष मानवीय संघर्ष का रूपक बन जाता है.
अशोक वाजपेयी ने रघुवीर सहाय की ‘बड़ी हो रही है लड़की’ कविता की इन पंक्तियों को उद्धृत किया :-
एक और ही युग होगा
जिसमें ताक़त ही ताक़त होगी
और चीख न होगी
रघुवीर की इस कविता को उन्होंने मुक्तिबोध की ‘अंधेरे में’ शीर्षक कविता के साथ जोड़ते हुए कहा कि जैसे समय ऐसी कविताओं को सही सिद्ध करने का इंतज़ार कर रहा हो. एक कवि के रूप में रघुवीर सहाय के कवि के विकास पर उन्होंने कई महत्वपूर्ण बातें कहीं.
अशोक वाजपेयी ने बताया कि पत्रकारिता के अनुभव को रघुवीर सहाय ने किस सफलता के साथ कविता में ढालने का काम किया. उनकी कविताओं में लोकतांत्रिक समकक्षता देखने को मिलती है. रघुवीर सहाय की कविता में इतिहास नही है, किन्हीं पुराने मिथकों की गूँज नहीं है. रघुवीर निरंतर वर्तमान के कवि हैं| रोज़मर्रा की ज़्यादातर अलक्षित चीज़ों में वे अन्याय को देखते हैं. उन्होंने रचनात्मकता का अपना अध्यात्म बनाया है. अशोक ने बताया कि रघुवीर, नितांत समसामयिकता के एक बड़े कवि हैं. अशोक वाजपेयी ने कहा कि रघुवीर सहाय की कविताओं के दुष्प्रभाव में यह भी हुआ कि कविता में स्मृति गायब हुई. उन्होंने ध्यान दिलाया कि शमशेर की कविताओं के साथ हम कैसे सपने देखते हैं, वहीं शुद्ध स्वप्नशीलता , रघुवीर की कविता से ग़ायब है. मगर वहाँ भूले हुए सपने को उकसाने की चेष्टा है. वे कविताएँ पवित्र भय को अलक्षित और अनन्वेषित छोड़ देती हैं. रघुवीर, कविता को लाचारी और निरुपायता से मुक्त करने का माध्यम मानते थे. रघुवीर ने सत्ता पर लोकतांत्रिक चौकसी को कविता का धर्म बनाया. आज़ादी के बाद के साहित्य में सत्ता को केंद्र में रखा गया, जहाँ सता एक केंद्रीय रूपक है.
अशोक वाजपेयी ने रेखांकित किया कि रघुवीर सहाय ने किस तरह अपनी दुनिया को काफ़ी फैलाया. वे एक बड़े ऐन्द्रिक कवि रहे. उनके यहाँ हिस्सेदारी और गवाही दोनों है. कविता हिस्सेदार है या गवाह है या वह हिस्सेदार गवाह है, यह कहना कठिन है. मगर कविता, कठिन काम तो करती ही है. कवि गवाह है, मुज़रिम नहीं. रघुवीर के कवि-पक्ष के कुछ और कोणों पर विचार करते हुए अशोक ने कहा कि वे भाषा को इस तरह बरतते रहे कि उन्होंने गद्य के उपकरणो को कविता के उपकरणों में ढाल दिया. गद्य कविता का सहचर है. मैथिलीशरण गुप्त ने भी तो गद्य को कविता में ढाला.
अशोक वाजपेयी ने रेखांकित किया कि छंद पर इतने अधिकार के बावजूद रघुवीर सहाय ने गद्य की छांदिकता को पहचाना. उन्होंने बताया कि कैसे एक बड़े कवि को कुछ पूर्वाभास हो जाता है. लोकतंत्र के जो बुनियादी मूल्य हैं, सबसे अधिक कटौती उनमें ही हुई . अन्याय एक दैनिक आचरण बन गया . यह रघुवीर के कवि की सफलता है कि उनकी कविताएँ किस तरह स्वतंत्रता, समता और न्याय के पक्ष में खड़ी होती हैं. उन्होंने स्पष्ट किया कि वे अंतःकरण के योद्धा नहीं बल्कि सेनापति हैं. अंतःकरण के साहस और नवाचार की बिरादरी में रघुवीर सहाय से बहुत कुछ सीखा जा सकता है.
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रघुवीर सहाय पर केंद्रित आज ये सभी 14 वक्तव्य ‘जनसुलभ पुस्तकालय’ के फ़ेसबुक पेज और उसके यू ट्यूब चैनल पर उपलब्ध हैं. कोई कभी भी इन्हें सुन सकता है. और रघुवीर सहाय जैसे एक युगांतरकारी रचनाकार के विविध आयामों की फ़र्स्ट-हैंड जानकारी ले सकता है. इन उद्बोधनों के माध्यम से ऐसी कई बातें आ पाई हैं जो इनके अध्येताओं, आलोचकों और इनपर काम करनेवाले शोधार्थियों के लिए उपयोगी और महत्वपूर्ण हो सकती हैं. कहा जा सकता है कि कोई काम जब किसी शृंखलाबद्ध रूप में इस तरह सुचारु रूप से संपन्न होता है तब निश्चय ही कुछ संतोष का अनुभव होता है.
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अर्पण कुमार
संयोजक
जनसुलभ पुस्तकालय
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