रैदास बानी का काव्यान्तरणसदानन्द शाही |
1.
जैसे चंदन-पानी
मुझे राम नाम की रट लग गयी है
भला यह कैसे छूटे!
हम और तुम अभिन्न जो हैं
प्रभु जी!
तुम चन्दन हो और हम पानी हैं
हमारे अंग-अंग में
तुम्हारी बास (ऐसे ही) समायी हुई है
जैसे घुलमिल जाते हैं
चंदन -पानी
प्रभु जी!
तुम तो सघन वन हो और हम उसमें रहने वाले मोर हैं
जैसे चकोर देखता है चन्द्रमा को
वैसे ही हम तुम्हें देखते रहते हैं
अपलक
प्रभु जी!
तुम दीपक हो और हम बाती हैं
दिन रात जलती रहती है
हमारी ज्योति
प्रभु जी!
तुम मोती हो और हम धागा हैं
तुम हमारे में ऐसे गुँथे हुए हो
जैसे सोने में मिल गया हो
सुहागा
प्रभु जी!
तुम स्वामी हो और हम दास हैं
बस्स यही और ऐसी ही है
रैदास की भक्ति.
मूल रैदास बानी, सम्पादक -शुकदेव सिंह पद 6,पृ 46 |
अर्थ: मुझे राम नाम की रट लग गयी है,भला अब कैसे छूटेगी. (अर्थात् यह नहीं छूट सकती,क्योंकि) प्रभु जी! तुम चन्दन हो और हम पानी हैं. तुम्हारी बास हमारे अंग-अंग में समायी हुई है. प्रभु जी! तुम सघन वन हो और हम उसमें रहने वाले मोर हैं. जैसे चकोर चन्द्रमा को देखता है, वैसे ही हम तुम्हें देखते रहते हैं. प्रभु जी! तुम दीपक हो और हम बाती हैं, जिसकी ज्योति दिन रात जलती रहती है. प्रभु जी! तुम मोती हो और हम धागा हैं. (हम ऐसे मिल गये हैं) जैसे सोने में सुहागा मिल जाता है. प्रभु जी! तुम स्वामी हो और हम दास हैं (मैं और कुछ नहीं जानता,बस) रैदास की भक्ति ऐसी ही है.
2.
जीवन ऐसा संवर गया है
हम तो अमर हो गये हैं
(अब) हम क्यों कर मरेंगे!
त्याग दी है हमने
संसार की झूठी माया
मन में (केवल)सत्य-स्वरूप धरेंगे
यह जो कुछ दिख रहा है
सब माया का फन्दा है
(अब )उसकी रस्सी को कतर देंगे
अनेक बार जन्म लिया
मरे अनेक बार
दोबारा हम इस भँवर में नहीं पड़ेंगे
यह नाम की नाव मिली है
खेवनहार गुरु राम मिले हैं
नाम लेते ही पार उतरेंगे
पिछले जन्म में बहुत से पाप किए
हम उन्हें पीछे छोड़ देंगे
रैदास कहता है
अब कुछ ऐसा बन गया है
जीवन ऐसा संवर गया है
फिर उस भँवर में नहीं पड़ेंगे .
मूल अमर भये हम काहे कूं मरि हैंl रैदास बानी, सम्पादक-शुकदेव सिंह पद 8 पृ 48 |
अर्थ: हम अब अमर हो गये हैं ,हम क्यों मरेंगे?हमने संसार की झूठी माया त्याग दी है. मन में (केवल)सत्य-स्वरूप धारण करेंगे. जो कुछ दिखाई दे रहा है वह सब माया का फन्दा है. उस (फन्दे)की रस्सी को काट देंगे. अनेक बार जन्म लिया और अनेक बार मृत्यु हुई.फिर इस भँवर(जंजाल) में नहीं पड़ेंगे. नाम (रूपी) नाव मिली है, खेवनहार गुरु राम हैं,नाम लेते ही पार उतर जायेंगे. पिछले जन्म में बहुत पाप किए थे,वे सब पीछे छूट जायेंगे. रैदास कहता है-अब कुछ ऐसा बन गया है कि फिर उस भँवर में नहीं पड़ेंगे .
3.
बहुत शुभ हैं आज का दिन
आज के दिन की बलिहारी लेता हूँ
(क्योंकि) आज मेरे घर
राजा राम के प्यारे( प्रियजन)आए हैं
मेरा घर गुलज़ार हो गया है
मेरा आँगन पवित्र हो गया है
हरिजन बैठे हरि के यश का गायन कर रहे हैं
मैं उनको दंडवत करता हूँ
उनके पाँव धोता हूँ
मेरा तन मन धन
सब न्योछावर है
उनके उपर
सब मिल बैठकर कथा कहते हैं
सब मिलजुल कर अर्थ विचार रहे हैं
रैदास कहते हैं
बड़े भाग्य से हरिजन मिलते हैं
और जन्म जन्म के बंधन काट देते हैं.
मूल आजु दिवस लेऊं बलिहारा’l रैदास बानी,सम्पादक: शुकदेव सिंह पद 13 पृ 54 |
अर्थ: आज के दिन की बलिहारी लेता हूँ ,क्योंकि मेरे घर राजा राम जी के प्रिय जन आये हैं.हरिजन बैठ कर हरि का यश गा रहे हैं(इससे) मेरा घर आँगन पवित्र हो गया है. मैं उनको दंडवत करता हूँ,उनके पाँव धोता हूँ. मैं उनके उप्र तन मन धन तीनों न्यौछावर करता हूँ .वे कथा कहते हैं और अर्थ विचार करते हैं.वे स्वयं मुक्त हैं तथा औरों की मुक्ति का उपाय करते हैं.रैदास कहते हैं- जब प्रभु के दास मिल जातें हैं जन्म जन्म के बंधन से मुक्ति मिल जाती है.
4
हे राजा राम !
मैं रात दिन तुम्हारे गुन गाता (रहता)हूँ
निरन्तर तुम्हारा चिन्तन करने के बावजूद
नहीं ख़त्म होती मेरी चिंता
वह जाती ही नहीं!
रात दिन इसी अंदेशे से मरा जाता हूँ
कि आख़िर
तुम चिंतामणि* हो या नहीं
अपने भक्तों के लिए
क्या -क्या नहीं किया तुमने
हमारी बारी आने पर ही
क्यों बलहीन हो जाते हो तुम
आखिर क्यों?
कहाँ चली जाती है
तुम्हारी सारी सामर्थ्य
रैदास कहता है
(पूछता है रैदास)
क्या यह दास का ही अपराध है
क्या मैंने वैसी (ठीक से )भक्ति नहीं साधी
कि तुम द्रवित हो सको!
*चितामणि: ऐसी मणि को कहते हैं जिसके होने से सारी चिंताएँ मिट जाती हैं. भक्ति कविता में भगवान को या भगवन्नाम को चिंतामणि कहा गया है.
मूल
इहै अंदेसो राम राइ रैनि दिन मोरे, निस बासुर गुन गांऊ तोरेl रैदास बानी ,शुकदेव सिंह पद 18 पृ 59 |
अर्थ: हे राजा राम! मुझे रात दिन यही अंदेशा रहता है, मैं रात दिन तुम्हारे गुन गाता (रहता)हूँ. निरन्तर तुम्हारा चिन्तन करने के बावजूद मेरी चिंता नहीं ख़त्म होती ,(मैं सोचता हूं ) तुम चिंतामणि हो कि नहीं! अपने भक्तों के लिए तुमने क्या -क्या नहीं किया किन्तु हमारी बारी आते ही बलहीन हो गये .(आखिर क्यों?) रैदास कहता है – क्या यह दास का ही अपराध है?क्या मैंने वैसी (ठीक से)भक्ति नहीं की कि तुम द्रवित हो सको!
5
कहें तो कैसे कहें
यह ऐसा कुछ (विलक्षण) अनुभव है
कहें तो कैसे कहें
कहने में नहीं आता
साहब मिलता है
और तुम्हें विलग कर देता है
सब में है वह हरि
हरि में है वह सब
हरि को जिसने अपना जान लिया
उसका कोई दूसरा सखी नहीं है
यह जानने वाला (ही) सयाना है
संग में बाज़ीगर रचा हुआ है
फिर भी बाजी का मर्म नहीं समझ में आता
बाजी झूठ है
बाजीगर सत्य
इसे जान गया हूँ
भरोसा हो गया है मुझे
मन थिर हो जाता है
फिर तो कोई और विकल्प नहीं सूझता
जानने वाले इसे जानते हैं
रैदास कहता है
विमल विवेक का (यह) सुख
सहज स्वरूप से ही सँभारा जायेगा
मूल ऐसो कछु अनुभौ कहत न आवै, साहब मिलै तौको बिलगावै l रैदास बानी ,शुकदेव सिंह पद-25 पृ 66 |
अर्थ: यह ऐसा कुछ (विलक्षण) अनुभव है जो कहने में नहीं आता. जब साहब मिलता है तो तुम्हें विलग कर देता है. सब में वह हरि है और सब उस हरि में हैं. हरि को जिसने अपना जान लिया है उसका कोई दूसरा सखी नहीं है. यह जिसने जान लिया वही सयाना है. संग में बाज़ीगर रचा हुआ है,फिर भी बाजी का मर्म समझ में नहीं आता है. बाजी झूठ है बाजीगर सत्य है. इसे जान गया हूँ और मुझे भरोसा हो गया है .मन थिर हो जाने पर कोई और विकल्प नहीं सूझता. जानने वाले इस तथ्य को जानते हैं . रैदास कहते हैं विमल विवेक के सुख से सहज स्वरूप सँभल जायेगा.
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बहुत अच्छा सार्थक काव्यांतरण .
मूल पाठ और काव्यांतरण के साथ अर्थ देने की आवश्यकता नहीं थी. अरुण जी और सदानंद जी दोनों को बधाई🙏
यह बेहद महत्वपूर्ण और उल्लेखनीय कार्य है। इस तरह के बहुत से काम किए और करवाए जाने चाहिए। इसे समालोचन पर प्रस्तुत करने के लिए आपको साधुवाद देता हूं। सदानंद शाही बधाई के पात्र हैं।
शाही जी का अनुवाद अद्भुत है । रैदास के पद के साथ रूपान्तरण को पढ़ने से कविता ज्यादा समझ में आती है ।