• मुखपृष्ठ
  • समालोचन
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • संस्मरण
    • आत्म
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • संस्मरण
    • आत्म
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
No Result
View All Result
समालोचन

Home » अन्यत्र : शरद ऋतु में सिट्जेज : सुषमा नैथानी

अन्यत्र : शरद ऋतु में सिट्जेज : सुषमा नैथानी

सुषमा नैथानी पेशे से वैज्ञानिक हैं, कविताएं लिखती हैं और घुमक्कड़ी में अथाह जिज्ञासा रखती हैं. स्पेन के सैलानी कस्बे सिट्जेज में वे कुछ दिन रहीं हैं. इस यात्रा से जुड़े रोचक वृत्तांत इस यात्रा-संस्मरण मे दर्ज हैं.      

by arun dev
November 7, 2019
in अन्यत्र
A A
अन्यत्र : शरद ऋतु में सिट्जेज : सुषमा नैथानी

(Sushma Naithani, in Maricel Museum, Sitges 2019)

फेसबुक पर शेयर करेंट्वीटर पर शेयर करेंव्हाट्सएप्प पर भेजें

शरद ऋतु में सिट्जेज                                      

सुषमा नैथानी

  बार्सीलोना से क़रीब 35 किमी. की दूरी पर बसे सिट्जेज को ‘ज़्वेल ऑफ़ मेडिटरेनियन’ का ख़िताब हासिल है. शहर की पीठ ग्राफ़ नेशनल पार्क की पहाड़ियों पर टिकी है, और आँगन में भूमध्यसागर का तट हिलोर मारता है. यूरोप के सबसे सुंदर और साफ़ सुथरे 18समुद्रतट वाले इस क़स्बे में– 26,000 बाशिंदे रहते हैं, जिनमें से 35% स्पेन के अलावा अन्य देशों के हैं. सदाबहार सुहाना मौसम, और अच्छी धूप से सराबोर सिट्जेज  हर उम्र के लोगों के बीच लोकप्रिय है. वर्षभर यहाँ टूरिस्टों का मेला लगा रहता है. वसंत में यहाँ कार्निवाल की रौनक़ देखते बनती है और गर्मी के सीज़न में पैर रखने को जगह नहीं मिलती. मेरा यहाँ आना शरद ऋतु में ‘प्लांट जीनोम एवोल्यूशन’ की वार्षिक कॉन्फ़्रेन्स के सिलसिले में होता है. पिछले कुछ वर्षों से यह कॉन्फ़्रेन्स ‘मेलिया सिट्जेज’ होटेल में अक्टूबर के पहले हफ़्ते में होती है, जब मई से सितम्बर तक का अति व्यस्त टुरिस्ट सीज़न बीत जाता है, और रहने की जगह, होटल सस्ते में मिल जाते हैं.


बार्सीलोना से सिट्जेज ट्रेन या बस से जाया जा सकता है. बार्सीलोना एयरपोर्ट के टर्मिनल 2 से RENFE train R2 Nord लेकर पहले स्टॉप El Prat de Llobregat पर उतरना होता है, और फिर सिट्जेस के लिए टेरागोना की तरफ़ जाने वाली train R2 लेकर छ्ठे स्टेशन पर उतरना पड़ता है. सफ़र क़रीब आधे घंटे का है, 7-8 यूरो के आसपास किराया. ट्रेन से जाने का फ़ायदा यह है कि 2-3 घंटे बार्सीलोना घूमकर फिर सिट्जेस जाया जा सकता है. दूसरा विकल्प टर्मिनल 1 से मोनोबस लेने का हैं जिसका टिकट 7 यूरो का है. दिन के उजाले में अंडरग्राउंड ट्रेन की अपेक्षा बस का सफ़र बेहतर रहता है. आधे घंटे में बस ग्राफ़ नेशनल पार्क की हरीभरी ख़ूबसूरत छोटी पहाड़ियों और समुद्रतट के बीच से होती हुई सिट्जेज के मुख्य बाज़ार में उतार देती है जहाँ से कहीं भी पैदल पहुँचा जा सकता है. 

मैं सिर्फ़ बैक़पेक लेकर चलती हों तो सीधे होटल पहुँचने की जल्दी नहीं होती, और बाज़ार की एक टहल के बाद ही होटल का रूख करती हूँ. यहाँ रेस्टोरेंटस आठ बजे के बाद ही डिनर सर्व करते हैं. तो पहले दिन जेटलेग से जूझते हुए और लम्बी यात्रा की थकान के का ख़याल करते हुए मैं ग्रोसरी स्टोर से ताज़ा फल, दही आदि ख़रीदकर ही होटेल जाती हूँ, ताकि डिनर के लिये बाहर निकलने की हिम्मत न हो तो फल खाकर सो जाऊँ. मुझे शाम 5-6 बजे के बीच डिनर खाने की आदत है. आमतौर पर अमेरिका में लोग जल्दी डिनर खाते हैं, लेकिन स्पेन में दोपहर 3-5 बजे के बीच सभी दुकाने बंद हो जाती हैं और दोपहर की 2-3 घंटे की नींद (सियस्ता) के बाद फिर लोग जागते हैं, शाम पाँच-छः के बाज़ार खुलता हैं जो रात 2 बजे के आसपास बंद होता है.

2017 और फिर 2019 में मेरा सिट्जेज में कुल 6-7 दिन रहना हुआ है. कॉन्फ़्रेन्स इतवार शाम को शुरू होती है तो पहला दिन घूमने को मिल जाता है और बाक़ी दिन 9-5 बजे के इतर सुबह-शाम का समय. अधिकतर खरामा-खरामा शाम को टहलते हुए ही इस जगह से मेरा परिचय हुआ. पहले से कोई प्रायोजित टूर नहीं है, फ़ोन ज़ेब में रहता है, लेकिन डेटा बंद रहता है. नई पीढ़ी आजकल गूगल मैप पर ही निर्भर रहती है, लेकिन मैं पुराने ज़माने का तरीक़ा अपनाती हूँ. काग़ज़ का नक़्शा, अपनी यादाश्त और फिर लोगों की सदाशयता के भरोसे किसी नए शहर को ढूँढना. होता यह है कि रास्ता भूल जाती हूँ तो उसी बहाने 2-3 लोगों से बात हो जाती है, उनकी मुस्कराहट, उनका अपना ख़ास लहजा मेरे हिस्से आता है. भटक गए और कोई न मिला तो वापस लौटकर कोई लैंडमार्क खोज लिया या नक़्शा देख लिया. इससे मेरा काम चल जाता है. मेरा घूमने का तरीक़ा यही है: शहर में गुम होना, फिर उसे पा लेना.


पहली नज़र में मुझे सिट्जेज बार्सीलोना के सबर्ब से ज़्यादा नहीं लगा, लेकिन बाद में जानकर हैरान हुई कि इस इलाक़े में लोगों की बसावट पुरानी है. पहली सदी के आसपास यहाँ दो गाँव थे जहाँ मछुआरे, अंगूर की खेती करने वाले किसान, और नफ़ीस शराब बनानेवाले कारीगर बस गए थे, और कालांतर में यह रोमन साम्राज्य का हिस्सा भी रहा. 12वीं सदी के आसपास यह इलाक़ा सिट्जेज परिवार की स्टेट बन गया, फिर 19वीं सदी के मध्य तक कई परिवारों और संस्थाओं के बीच इसका स्वामित्व बँटा तो एक स्वायत क़स्बा उभरने लगा. 19वीं सदी के आख़िर में यहाँ के कुछ लोग क्यूबा और अमेरिका गये और वहाँ से पैसा बनाकर लौटने पर उन्होंने कई ख़ूबसूरत कोठियाँ बनवाई. फिर होटल, रिज़ॉर्ट का सिलसिला चला और यह टूरिस्टी शहर बस गया.

 

चर्च और सीमेटरी

जैसा सभी यूरोपीय शहरों में होता है, सिट्जेस में भी सबसे ऊँची इमारत शहर का प्रमुख चर्च है,  San Bartolomé i Santa Tecla का चर्च– 40 मीटर ऊँचा, क़िले की तरह मज़बूत, लाइटहाऊस सरीखा समुद्रतट से लगा है. सिट्जेस की फ़ोटो में इसकी उपस्थिति ट्रेडमार्क जैसी है. वर्तमान चर्च की इमारत 17वीं सदी में बनी  है. पहले भी इस जगह पर 12वीं सदी में बना एक चर्च ही था. यहाँ 1317 और 1322 ईस्वी की दो पुरानी गोथिक समाधियाँ हैं जो पुराने चर्च का हिस्सा थीं और अब नए चर्च में संजो ली गयी हैं. चर्च की प्रमुख झाँकी में संत बारथोलोमेव और संत टेकला साथ-साथ दिखाई देते हैं. इसी तरह की एक पेंटिंग चर्च के बाहर परिसर में भी है. लुडिया के निवासी संत बारथोलोमेव ईसा मसीह के चुनिंदा 12 शिष्यों में से एक थे जिन्हें गोस्पल का प्रचार करने की ज़िम्मेदारी दी गयी थी, उनकी मृत्यु जर्मनी में हुई और फ़्रैंकफ़्रट में उनकी क़ब्र है. संत टेकला ईसा के एक अन्य शिष्य पॉल की अनुयायी मानी जाती हैं. टेकला का  जन्म तुर्की में हुआ था, शायद मृत्यु भी वहीं हुई. मालूम नहीं कि सचमुच में इन दो संतों की मुलाक़ात हुई या नहीं. 


चर्च परिसर से भूमध्यसागर का सबसे अच्छा नज़ारा दिखता है, इसकी मज़बूत दीवारों से सागर की लहरें पूरे वेग से लगातार टकराती, फिर-फिर वापस लौटती रहती हैं. जब मैं चर्च के भीतर पहुँची तो वहाँ संडे मास लगभग ख़त्म होने को था, 30-40लोग बैठे थे, और टूरिस्ट आ-जा रहे थे. 2-3 मिनट के बाद बिशप ने हाथ उठाकर ‘हालेलूया’ कहा और फिर कैटेलन में संक्षिप्त गान के साथ प्रार्थना सभा समाप्त हुई. चर्च से लगा हुआ सेंट सेबेस्टियन तट है, आमतौर पर बाल-बच्चे वाले परिवार यहाँ डेरा डाले रहते हैं, और किनारे-किनारे कुछ रेस्तराँ और आइसक्रीम पार्लर हैं. ज़रा सी फूटपाथ की जगह पर कुछ अफ़्रीकी या देशी-बांग्लादेशी छोटे-मोटे खिलोने और चादरें बेच रहे हैं. सामने ऊँची चारदीवारी से घिरी सेंट सेबेस्टियन सीमेटरी (El Cementerio de Sant Sebastià de Sitges) है, और इसका अहाता बड़ा खुला, साफ़-सुथरा है, टहलते हुए या बैठकर समंदर को देखा-सुना जा सकता है, या घाम तापा जा सकता है. 

मैं 2017 में बिना सोचे समझे सीमेटरी की चारदीवारी के भीतर घुसी थी. वहाँ ज़मीन पर बड़े पादरियों, संतों, और अमीरों की क़ब्रें है, और चारों तरफ की बहुमंज़िला चारदीवारी में अनगिनत आले हैं, जिनमें सामान्य लोगों के अस्थिकलश या ताबूत के भीतर अस्थियाँ रखी हुई हैं. गिनो तो गिन सकते हो कि एक ताबूत के ऊपर 20 अन्य ताबूत रखे हुए हैं, या ताबूत के साइज़ के आले बने हैं. किसी ट्रेवलर ने अपने ब्लॉग पर इस सीमेटरी के बारे में लिखा था कि यहाँ आना एक आध्यात्मिक अनुभव रहा, लेकिन मेरा मन बेचैन हो गया है. शाम घिरने को थी, चारों ओर नीरव शांति थी, और सहसा मुझे क़ब्रगाह के बीचों-बीच हज़ारों कंकालों, से घिरी होने का अहसास हुआ. मन ख़राब हो गया और जल्द से जल्द नहा लेने की इच्छा हुई. पहली बार अहसास हुआ कि सीधे मिट्टी में दबा देना या फिर लाश को जला देना बेहतर विकल्प है. इस तरह आलों में टके रहने का क्या तुक?  बहादुर शाह ज़फ़र का शेर याद आया “दो गज़ ज़मीन भी मिल न सकी, कू-ए-यार में”.

2019 एक दोस्त इस सीमेटरी के भीतर जाने को उत्सुक हुई, तो मैंने उसे अपना क़िस्सा सुनाया. बातचीत में पता चला कि सीमेटरी के भीतर क्रेमेशन की सुविधा है.(शायद इमारत के भीतरी हिस्से में है) और आलों में जो कलश या ताबूत हैं उनमें राख ही है, ऐसी डरने की बात नहीं है. यही होता है, किसी अपरिचित संस्कृति या धार्मिक कर्मकांड के बारे में जो पहले इमप्रेशंस हमारे मन में आते हैं वह हमारे अपने निजी संस्कार की सीमा से उपजते हैं. तार्किक या रेशनल मानस पीछे रहता है, शायद इसीलिए कहा जाता है कि जल्दबाज़ी में जो ‘अन्य’ हैं, जिस चीज़ से आप अपरिचित हैं, उसके बारे में राय नहीं बनानी चाहिए. रुककर अपने तार्किक मानस को और अज्ञान को टटोलना चाहिए. मनुष्य अपनी प्राथमिक इंस्टिंकट को साधते हुए ही सभ्य हुआ है, नहीं तो उसकी जो बेसिक इंस्टिंकट हैं दूसरे जानवरों से अलग नहीं हैं. दो साल बाद, अब समझ सकती हूँ कि किसी अन्य के लिए सेंट सेबेस्टियन सीमेटरी में आना शांति और अध्यात्म का अनुभव हो सकता है.

 

म्यूज़ियम्स, गलियाँ और तट

चर्च से ओल्डटाउन की गलियों का सिलसिला खुलता है, या कह सकते हैं सब रास्ते यहीं आकर ख़त्म होते हैं. शहर में सांस्कृतिक गतिविधियों की शुरुआत यहाँ लेखक, कवि, और चित्रकार सन्तियागो रसीनोल (Santiago Rusiñol; 1861-1931) के आने के बाद शुरू हुईं. संतियागो रसिनोल का घर उनके देहांत के बाद, 1933 में, संग्रहालय (Cau Ferrat Museum) में बदल दिया गया है. यहाँ  रसिनोल की पेंटिंग्स, उनका फ़र्नीचर व उनकी एकत्र की हुई सामग्री हैं. 



रसिनोल की सरपरस्ती में इस इलाक़े में दो पुरातात्विक खुदाइयों को अंजाम दिया गया था, जिनमें मिली सामग्री, विशेष रूप से पॉटरी यहाँ मौजूद है. रसिनोल के अतिसाधारण शयन कक्ष में पलंग के सिरहाने एक तरफ़ ईसा की काष्ठ की बनी प्रतिमा टँगी है और दूसरी तरफ़ बंदूक़. सामने एक कोने में हाथ-मुँह धोने के लिए सिंक लगी है. बेडरूम के अंदर सिंक मैंने इसके पहले वियना के समर पैलेस के भीतर राजकुमार-राजकुमारियों के कक्ष में भी देखी थीं. यूरोप में या दुनिया में पहले कहीं भी रोज़-रोज़ नहाने का चलन नहीं ही था, हाथ-मुँह धोकर ही काम चल जाता था.



दुमंज़िले में,  इस घर की रसोई में फल और सब्ज़ियों के पैटर्न की ख़ूबसूरत टाइल्स लगी है. अमेरिका में पुराने सामान की गराज सेल में इनसे मिलते-जुलते डिज़ायन की क्रोकरी मुझे कई बार दिखी है. लेकिन कहाँ सोचा था कि अब लगभग डेटेड हो चुके, वह किसी समय के पॉप्युलर डिज़ायन, स्पेन के किसी आर्टिस्ट ने पहले-पहल बनाए थे. संभवत: उनमें से कुछ रसिनोल के हैं. कपड़ों में या घर के सामान में बहुतायत में यहाँ-वहाँ जो कई डिज़ायन नज़र आ जाते हैं, दरअसल वह कहीं से उठाकर बाज़ार लाता है. टी-शर्ट, पजामों, स्कार्फ़, साड़ी से लेकर मेजपोश पर बहुलता से मौजूद बाटिक प्रिंट के बारे में ही  हम कब  सोचते हैं कि बाली या अफ़्रीका के किसी गाँव में किसी ने वह बनाये थे, और बाक़ी सब उसी की नक़ल है या राजस्थानी-गुजराती चुनरी प्रिंट का पोल्का डॉट्स से सम्बंध? बाज़ार में उपलब्ध डिज़ायनों की जन्मपत्री संग्रहालयों में ही मिलती है.



रसिनोल के इस घर से जुड़ी हुई इमारत पहले एक अस्पताल थी  जिसे अब मार्सेल संग्रहालय (Museu de Maricel) में बदल दिया गया है. यहाँ 5 जुलाई से 13अक्टूबर, 2019 तक  Realism (s) in Catalonia (1917-1936) पर एक प्रदर्शनी चल रही है. पिकासो, और डाली की पेंटिग्स विशेष रूप से इस मौक़े पर लाई गई हैं. इस संग्रहालय के स्थायी संग्रह में 10वीं से  21वीं सदी तक की पेंटिग्स मौजूद है, जिनमें से कुछ दुर्लभ पुरानी पेंटिग्स और स्कल्पचर हैं. मुझे नोटिस करने लायक ईसा मसीह की मूर्तियाँ और पेंटिंग्स लगी. इटालियन और फ़्रेंच स्कूल की पेंटिग्स की तुलना में स्पेन की पेंटिंग्स में ईसा मसीह सफ़ेद की बजाय भूरी रंगत के हैं, उनका चेहरा अपेक्षाकृत अधिक पतला और लम्बा है, और स्पानी लोगों से मिलता-जुलता है. यह उसी तरह है जैसे बुद्ध का चीन में चेहरा किसी चीनी से मिलता है, हिंदुस्तान में हिंदुस्तानी से, और इंडोनेशिया में वहाँ के लोगों से मिलता है. मनुष्य अपने भगवान को भी अपने ही रूप-रंग में ढालकर स्वीकार करता है.


क्लासिक पेंटिग्स के इतर यहाँ कैटलन मोडर्निस्ट पेंटिंग्स का अच्छा संग्रह है. यह क़स्बा स्पेन की मुख्यधारा की संस्कृति के बरक्स एक काउंटर कल्चर के केंद्र के रूप में भी जाना जाता है और स्पेन के फ़ासिस्ट शासक फ़्रांसिस्को फ़्रैंको के विरोध का सिट्जेज मुख्य केंद्र रहा है. मोडर्निस्ट पेंटिंग्स अपने राजनैतिक मिज़ाज के लिए अलग से पहचानी जा सकती हैं.


मार्सेल म्यूज़ियम के आहाते में कोई गिटार पर एक ख़ुशनुमा धुन बजा रहा है और फिर कोई दूसरा एक कोने में वायलिन पर कोई उदास धुन. एक बुज़ुर्ग दम्पति मुझसे अपनी फ़ोटो खींचने की गुज़ारिश करते हैं, और फिर बदले में मेरी फ़ोटो भी खींच देतें हैं. मार्सेल संग्रहालय के सामने मार्सेल पैलेस है, जिसके भीतर सिर्फ़ इतवार को ही जाना संभव हो सकता है. लेकिन उसके लिए 11 बजे से पहले एक लाइन में खड़ा होना पड़ता है. वहाँ पहले 25 लोगों को एंट्री मिलती है जिन्हें एक टूर गाईड ले जाता है. उसके बाद बाक़ी लोग फिर अगले इतवार तक इंतज़ार कर सकते हैं. भीतर जाने को नहीं मिला और अगले इतवार से पहले ही मैं इस शहर से चली जाऊँगी. यही हाल रुसिनोल लायब्रेरी का भी हुआ जो सिर्फ़ दिन में 3-5 बजे के बीच ही खुलती है तो वहाँ झाँकना भी रह गया. रोमांटिक म्यूज़ियम भी फ़िलहाल रिपेयर के लिए बंद है. यह अगली बार तक सिट्जेज शहर पर मेरा उधार रहेगा.


अधिकतर बूढ़े-बूढ़ियाँ शांति के साथ घूम रहे हैं, शहर इत्मीनान की साँस ले रहा है. ठंड नहीं है और सर्दी भी नहीं, सहन करने लायक मीठी धूप है और सुबह शाम कुछ ठंडी खुनक़ हवा में. ओल्डटाउन संकरी गलियों, 1889 में बने टाउन हॉल Casa de la Vila, म्युनिसिपल मार्केट Casa Bacardi आदि के सामने टहलते हुए इन्ही प्यारे, मीठे बूढ़े-बूढ़ियों ने मेरे फ़ोटो खींचे और मैंने उनके. मुझे धूप बहुत अपनी लग रही है और लोग भी अपनापे से भरे, बड़े सज्जन लोग. कोई घर, एक गली, छोटी दुकान, सब कलात्मक. किस तरह की सभ्यता है यह कि कला जीवन का ऐसा सघन हिस्सा है, साधारण जीवन में सौंदर्यबोध का ऐसा परिष्कार कहाँ से आया है?

2017 में एक दिन होटेल से निकलकर रेल की पटरियों के किनारे चलते हुए कई मोहल्लों के बीच से होते हुए सिटी सेंटर पहुँची. वहाँ ट्रेन स्टेशन है और सामने इंफ़ोरमेशन सेंटर. वापस लौटते समय रेल ट्रैक से समांतर समुद्रतट पर चलते हुए आई और मेरे होटल के ठीक नीचे जो तट है वहाँ  रुकी तो पाया यह न्यूड बीच है. इस सरप्राइज़ को हैंडल करने को मैं तैयार नहीं थी, सो चुपचाप वापस लौट गयी. किसी तरह की अप्रिय घटना/ कोई फ़ब्ती/ कोई ग़लत व्यवहार मेरे हिस्से नहीं आया. सोचती हूँ तो लगता है कि यह अप्रत्याशित अनुभव भी एक मायने में बुरा न रहा. उलट कर देखें तो बेहद शालीन अनुभव ही रहा. इस बात की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती कि 20-30 नंगे पुरुष जहाँ खड़े हो वहाँ से कोई औरत सहज ही टहलती हुई चली जायेगी और कोई नोटिस भी न करेगा. भारत में  लड़कियों के लिए निर्भय होकर सार्वजनिक स्थलों में घूमना भी सम्भव नहीं हो पाता. कपड़े पहनने से या नंगे रहने से सेक्सुअल हिंसा का कुछ लेना देना नहीं है, यह सब बाहरी चीज़ें हैं, असल चीज़ तो मनुष्य का दिमाग़ ही है.


समंदर से तीन घंटे गुफ़्तगू का कुछ मौक़ा स्पेशल कोंफ़्रेंस डिनर के समय  Restaurante Can Laury Peix में मिला. समुद्र में तैरती किसी बड़ी नाव की शक्ल का यह रेस्टोरेंट Port D’Aiguadolç में है, चारों तरफ़ सचमुच की नाव, स्टीमर इत्यादि से यह घिरा हुआ है तो प्रतीत होता है कि यह भी कोई नाव है सागर किनारे लगी हुई. यहाँ विशेषरूप से सी-फ़ूड अच्छा मिलता है. मेन्यू में क्लेम्स (सीपीयाँ), सलाद, फ़्राइड आलू, ऑलिव, और डेज़र्ट था, रेड और वाइट वाईन थी और कावा भी. बाक़ी दिन कुछ लोकल छोटे बीचसाइड रेस्टोरेंट में डिनर के लिए गई. मज़े की बात यह है कि यहाँ क़रीब 10-12 छोटे-छोटे रेस्टोरेंट हैं, कोई इटलियन, चीनी, हिंदुस्तानी, मेक्सिकन आदि, लेकिन जब एक इटेलियन रेस्टोरेंट के अंदर गई तो वेटर ने कहाँ कि यहाँ जितने भी अग़ल-बग़ल के रेस्टोरेंट है किसी के भी मेन्यू से में ऑर्डर कर सकती हूँ, सब एक ही बिज़नेस का हिस्सा है. 

पहले दिन अकेले गई थी तो लोकल बास मछली और रोस्टेड वेज़ीटेबल ऑर्डर की. लगभग बग़ल की सटी हुई सीट पर दो डच महिलायें बैठी थीं. उन्होंने जो खाना ओर्डर किया था वह उन्हें पसंद नहीं आया तो मुझसे पूछा क्या खा रही हो? और स्वाद में कैसा है और फिर बातचीत का सिलसिला निकला और हम लोग साथ बैठ गए. दोनों महिलायें माँ-बेटी थीं जो साथ स्पेन घूमने आई थीं. मुझे लगा काश मैं भी अपनी माँ के साथ आई होती. फिर अकेले टहलते हुए चर्च के परिसर तक गई, पानी में झिलमिलाती रोशनी, रात का गहरा नीलापन, और ख़ामोशी जो पूरे लैंडस्केप पर तारी हो गयी थी उसकी संगत में होटल लौटी. समंदर अब ज़्यादा दूर तक नहीं दिखता लेकिन उसकी गर्जना दिन के मुक़ाबिले  कई गुना बढ़ गई है. विदा ली तो भूमध्यसागर से कहा कि कभी दुबारा इस शहर आना पड़ा तब दोस्ती होगी, अभी तो यहाँ से बिना भीगे निकल रही हूँ.

दुबारा 2019 में जाने का मौक़ा मिला तो तीन तटों पर कुछ 15-15 मिनट का समय बिताया, गुनगुनी रेत पर कुछ देर नंगे पाँव चली, घुटनों तक भीगी. चैन से बच्चों को खेलते और लोगों को समंदर का मज़ा लेते देखा. मैं सोचती रही कि अगली दफ़े ऐसे ही बिना कामकाज के अपने बच्चों के साथ आऊँगी और दिनभर ऐसे ही अलसाती हुई यहीं पड़ी रहूँगी, कोई किताब पढ़ते हुए. पानी अक्टूबर के महीने में भी ठंडा नहीं है, उसका स्पर्श पैसिफ़िक या अटलांटिक के पानी की तरह बर्फ़ीला नहीं है, गंध अलग है. एक ख़ास तरह की मुलामियत है, वेरी इनवाईटिंग. अच्छी नमकीन हवा और लहरों का अनवरत उठना-गिरना, सब मन को ख़ुश करने को काफ़ी है. 20 साल पहले अमेरिका जाने की बजाय इस तरफ़ भी रूख कर ही सकती थी. एक नई भाषा सीखनी पड़ती लेकिन जीवन में कितनी धूप रहती. अमेरिकी नोर्थ में 4-5 अंधेरे महीनों में जैसी जद्दोजहद करनी पड़ती है, उससे मुक्त रहती. जब युवा होते हैं तो कहीं भी जाने से पहले कहाँ कुछ सोचते हैं, कहीं भी मौक़ा मिले जाने को तैयार रहते हैं. शिकागो, आयोवा, न्यूयॉर्क में बीते  10 सालों में कितनी बर्फ़बारी, ठंड, आधी-तूफ़ान सब झेला. पिछले दस वर्ष मैं बर्फ़बारी और्र वैसी ठंड से कुछ राहत है लेकिन ओरेगन में जिस क़दर बारिश और अंधेरा रहता है, वह सर्दी के मौसम में धूप के लिए तरसा देता है.

मेरा जन्म हिमालय में हुआ तो दुनियाभर के पहाड़ मुझे अपने लगते हैं, उनसे सीधा कनेक्ट बन जाता है. समंदर से मेरी दोस्ती बहुत बाद में हुई. भारत में तो कभी समंदर देखा नहीं. दो दफ़े बम्बई गयी, लेकिन एक बार भाभा अनुसंधान केंद्र के भीतर ही सीमीत रही, दूसरी दफ़े दो फ़्लाइट के बीच के 3-4 घंटे एयरपोर्ट के आस-पास बीते. न्यूयॉर्क और न्यूजर्सी में अटलांटिक महासागर के कुछ तटों पर जाना हुआ, लेकिन पानी बहुत ठंडा रहा. यही हाल पैसिफ़िक का है. पानी में गरमी के मौसम में भी आसानी से बहुत देर तक रहा नहीं जा सकता है. इस मायने में सेन डियागो और कैलीफ़ोर्निया के तट बेहतर हैं और यहीं समंदर की संगत मुझे अच्छी लगती है. लेकिन मेडिटेरेनियन का यह इलाक़ा तो अब तक देखे सब जगहों से अच्छा है, बड़े साफ़-सुथरे, और बिल्कुल  प्राकृतिक समुद्र तट, न कोई दुकान, न फ़ालतू का कोई कंस्ट्रक्शन, न कोई मेला-ठेला. सिट्जेज के अनुभव के बाद मेरे दिल में समंदर के खारे पानी के लिए एक मुहब्बत भरी जगह निकल आई है. 

जाते-जाते, होटल से चेकआउट करने के पहले, जूते हाथ में लिए सबसे नज़दीकी तट तक चली गई. एक बड़ी लहर आई और मेरे हाथ में पकड़े जूते, और शॉर्ट्स सब भीग गये. उसका गिला क्या, मैं संकोच में थी, समंदर ने ही अलविदा कहने से पहले गले लगा दिया. कुछ देर गरम रेत पर चलना अच्छा लगा. मेरी देखादेखी में एक चीनी औरत अपने दो बच्चों के साथ इस बीच पर उतर आई. कुछ देर बाद, धूप और ख़ुशी की याद के साथ अपना सामान उठाया और सिट्जेज को अलविदा कहा. इस दफ़े मेरे सामने निमंत्रण था तो कुछ ना-नुकूर के बाद ही मैं आने को राज़ी हुई. लेकिन अब बहुत ढेर सी ख़ुशी को क्लेम करके लौट रही हूँ. कल से यहाँ शरद का स्पेशल फ़िल्म फ़ेस्टिवल शुरू हो रहा है. वाइनरीज़ देखना भी न हुआ. आधे घंटे की दूरी पर रोमन स्थापत्य का शहर टैरागोना है, और नज़दीक ही मोंसरेत मोनेस्ट्री जो देखी जा सकती थी. यह सब फिर कभी आने का बहाना बनेगा.

_____________________

डा. सुषमा नैथानी ऑरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी, कोरवालिस, अमेरिका में वनस्पति विज्ञान की रिसर्च असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हैं. वह साहित्य, संगीत और घुम्मक्कड़ी में गहरी रुचि रखती हैं, और हिंदी व अंग्रेज़ी दोनों भाषाओं में लिखती हैं. 2011 में हिंदी में काव्य संकलन ‘उड़ते हैं अबाबील’ (2011) और ‘धूप में ही मिलेगी छाँह कहीं’ (2019) प्रकाशित. कुछ कविताएँ व लेख पब्लिक एजेंडा, कादम्बिनी, पहाड़, हंस, आउट्लुक, आदि हिंदी पत्रिकाओं में प्रकाशित.
sushma.naithani@gmail.com

Tags: SitgesSpainसिट्जेज
ShareTweetSend
Previous Post

अम्बर में अबाबील (उदय प्रकाश) : संतोष अर्श

Next Post

सुशील मानव की कविताएं

Related Posts

No Content Available

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

समालोचन

समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

  • Privacy Policy
  • Disclaimer

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2023 समालोचन | powered by zwantum

No Result
View All Result
  • समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • आलोचना
    • आलेख
    • अनुवाद
    • समीक्षा
    • आत्म
  • कला
    • पेंटिंग
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • शिल्प
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • संपर्क और सहयोग
  • वैधानिक