मैला आँचल: लोकवृत्त का कथा-आख्यान: कमलानंद झा
कालजयी कृतियों के समय के साथ नए आयाम सामने आते रहते हैं. जो संकेत लेखक ने छोड़े थे वे घटित ...
Home » रणेंद्र
कालजयी कृतियों के समय के साथ नए आयाम सामने आते रहते हैं. जो संकेत लेखक ने छोड़े थे वे घटित ...
वरिष्ठ आलोचक विजय बहादुर सिंह ने शास्त्रीय संगीत के साझे घरानों पर लिखे गये रणेंद्र के तीसरे उपन्यास- ‘गूँगी रुलाई ...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2022 समालोचन | powered by zwantum