राष्ट्र, हिंदी और बहुभाषिकता : रमाशंकर सिंह
किसी भी सम्प्रभु राष्ट्र की अपनी राष्ट्र भाषा होती है/होनी चाहिए. यह पश्चिम में विकसित राष्ट्र-राज्य की मूल अवधारणाओं में ...
Home » हिंदी
किसी भी सम्प्रभु राष्ट्र की अपनी राष्ट्र भाषा होती है/होनी चाहिए. यह पश्चिम में विकसित राष्ट्र-राज्य की मूल अवधारणाओं में ...
डॉ. राजकुमार की पुस्तक ‘हिंदी की जातीय संस्कृति और औपनिवेशिकता’ भारत में अंग्रेजी राज के दरमियान निर्मित और विकसित हुए ...
समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.
सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2023 समालोचन | powered by zwantum