एक रात का सत्य
विलियम सरोयान
अनुवाद : निर्मल वर्मा
वह दिन ऐसा ही था- नीली धुंध, बीती हुई स्मृतियों और गीतों का दिन. मैं दुपहर भर अपने कमरे में बैठा रहा और पुराने रिकॉर्ड सुनता रहा. हर जगह रोशनी से अधिक अँधेरा था और मैं बैठा-बैठा उस गीत को याद करता रहा जो एक बार मैंने बस में एक लड़की को सुनाया था. कुछ लमहों के लिए हम एक दूसरे से मुहब्बत करने लगे थे. टोपेका पहुँचते ही वह बस से उतर गयी और फिर मैंने उसे कभी नहीं देखा.
मैंने उसे चूमा था. वह रो रही थी. मुहब्बत की बेबस पीड़ा तले मैं टूट गया था. वह अगस्त की जवान रात थी और में जिन्दगी में पहली बार न्यूयॉर्क जा रहा था. में अधीर हो उठा था क्योंकि वह अपने रास्ते जा रही थी और मैं अपने.
आज धुंध की इस सूनी दुपहर को मैं कमरे में बैठा-बैठा यही सोचता रहा कि कैसे कोई एक राह पकड़ लेता है और अन्य सब परिचित लोग दूसरी राहों पर चले जाते हैं; हर ज़िन्दगी का अपना अलग रास्ता है और हर घड़ी कहीं न कहीं कोई युवक मर जाता है. कुछ लोग हमेशा रास्ता तय करते-करते ख़त्म हो जाते हैं. कहने को यह दुनिया छोटी-सी हो गयी है किन्तु इस ज़िन्दगी में यदि किसी से दुबारा मिलना न हो सके तो फिर कभी मिलना नहीं होता. यदि तुम वापिस मुड़ कर उनमें से एक-एक को ढूंढ़ निकालो तो भी वे तुम्हें मरे हुए ही मिलेंगे क्योंकि कोई भी ऐसी राह नहीं है जो मृत्यु की ओर नहीं जाती.
जब बस टोपेका पहुँची तो वह नीचे उतर गयी और कोने से मुड़ कर आँखों से ओझल हो गयी. मैंने उसे फिर कभी नहीं देखा. मैं बहुत-सी लड़कियों से मिला हूँ, जो उतनी ही सुन्दर थीं जितनी वह, किन्तु उस जैसी कोई नहीं थी; उसके कोमल और उदास स्वर जैसा किसी का स्वर नहीं था, जिस तरह वह रोयी थी, उस तरह आज तक मैंने किसी को रोते नहीं देखा; जिस तरह उसको उदास पाया था, फिर कभी ज़िन्दगी में उतना उदास किसी और को न देख पाऊँगा
अमरीका की वह रात सब रातों से अलग थी.
आज चाहे वह अधिक सुन्दर हो, लेकिन उस रात की उदासी फिर कभी नहीं आयेगी और फिर वह या कोई और उस रात की तरह नहीं रो सकेगा, और फिर जो उसे चूमेगा वह उस रात की तरह मुहब्बत में टूट नहीं जाएगा. यह सब अमरीका की एक रात की पूँजी है, जो अब खो गयी है और कभी नहीं मिलेगी. उस रात की यह स्मृति सदियों में होने वाली छोटी-छोटी घटनाओं से जुड़ी है- जो अपने में कितनी अर्थहीन और नगण्य क्यों न रही हों, किन्तु जो उसे मेरे पास, मेरी सीट पर ले आयीं थी. यह केवल उन अजानी घटनाओं का परिणाम था, कि हम दोनों अचानक उस दिन मिल गये थे और उसके जाने के बाद भी मैं उसकी प्रतीक्षा करता रहा था.
वह आयी और मेरे निकट बैठ गयी. मैं समझ गया कि इतने वर्षों से मैं केवल उसी की प्रतीक्षा करता रहा हूँ. किन्तु जब टोपेका में वह बस से उतर कर चली गयी, मैं वहीं बैठा रहा और तीन दिन बाद न्यूयॉर्क पहुँच गया.
सिर्फ इतना भर ही हुआ. किन्तु मेरा कुछ है जो आज तक अमरीका की उस दूर, गर्म रात में सिमट कर रह गया है.
जब दिन का अँधेरा रात के अँधेरे में घुल गया, मैंने हैट पहना और घर से बाहर निकल आया. कुहरे को चीरता हुआ मैं शहर की ओर चलने लगा. मेरा दिल एक ख़ामोश कुत्ते की तरह मेरे संग-संग आ रहा था. शहर में मुझे मरे हुए चन्द लोग मिले, जो मेरे दोस्त हैं. हँसी के ठहाकों के संग- जो फफक-फफक कर रोने से कहीं ज्यादा कड़वे और दर्दनाक थे- हमने रेस्तराँ में खाया पिया, गप्पें मारी और गीत गाये और इस बीच मुझे उस लड़की के रोने की बेहोश हिचकियाँ याद आती रहीं क्योंकि कुछ छोटी-छोटी घटनाओं से लिपटे वर्ष हमें बरबस एक दूसरे के नजदीक घसीट लाए थे और मेरा अबोध दिल बार-बार मुझ से कह रहा था कि मैं केवल उसके संग रहूँ और कहीं न जाऊँ, कह रहा था कि और कहीं भी जाना शेष नहीं रह गया है.
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(कल्पना से साभार, पृष्ठ संख्या ९५- ९६, दिसंबर’ ५७)
This was a day of fog and remembrance of old days and old songs. I sat in the house all afternoon listening to the songs. It was darker everywhere than light and I remembered a song I sang to a girl on a bus once. For a while there we were in love, but when the bus reached Topeka, she got off and I never saw her again. In the middle of the night when I kissed her, she began to cry and I got sick with the sickness of love. That was a young night in August, and I was on my way to New York for the first time in my life. I got sick because I was going my way and she was going hers. All this day of fog I sat in the house remembering the way a man’s life goes one way and all the other lives another, each of them going its own way, and a certain number of young people dying all the time. A certain number of them going along and dying. If you don’t see them again they are dead even if it is a small world: even if you go back and look for each of them and find them you find them dead because any way any of them, go is a way that kills. The bus came to Topeka and she got off and walked around a corner and I never saw her again. I saw many others, many of them as lovely as she, but never another like her, never another with that sadness and loveliness of voice, and never another who wept as she wept. There never will be another with her sadness. There never will be an American night like that again. She herself may be lovelier now than then but there will never be another sadness of night like that and never again will she or anyone else weep that way and no man who kisses her will grow sick with the sickness of the love of that night. All of it belongs to a night in America which is lost and can never be found. All of it belongs to the centuries of small accidents, all trivial, all insignificant, which brought her to the seat beside me, and all the small accidents which placed me there, waiting for her. She came and sat beside me, and I knew the waiting of all the years had been for her, but when she got off the bus in Topeka I stayed on and three days later I reached New York. That’s all that happened except that something of myself is still there in that warm, faraway, American night. When the darkness of day became the darkness of night I put on my hat and left the house. I walked through the fog to the city, my heart following me like a big patient dog, and in the city I found some of the dead who are my friends, and in laughter more deathly and grievous than the bitterest weeping we ate and drank and talked and sang and all that I remembered was the loveliness of her weeping because the years of small accidents had brought us together, and the foolishness of my heart telling me to stay with her and go nowhere, telling me there was nowhere to go. Saroyan, W. Selected Short Stories. Moscow, 1975, pp.241-243. Courtesy : https://studfile.net/ |
मनोज मोहन वरिष्ठ पत्रकार व लेखक. वर्तमान में सीएसडीएस की पत्रिका प्रतिमान: समय समाज संस्कृति के सहायक संपादक. |
विलियम सरोयान की यह कहानी ने जिसमें अनेक विधाओं की सहमतिपूर्ण गूँज है, एक फाँस की तरह गड़ जाती है। मार्मिकता जैसे उनका व्याकरण है। ‘ह्युमन काॅमेडी’ और उस पर बनी दो फ़िल्में पुष्टि कर देंगी कि अंत तक आते-आते आँसुओं का सब्र टूट जाता है। आर्मेनिया के संदर्भ में एक गद्य का टुकड़ा है जो कविता की तरह ही याद किया जाता है। निर्मल जी का अनुवाद प्रवाही है।
काफ़ी समय बाद इतनी सुन्दर और मार्मिक कहानी पढ़ी है। कहानी में जो उदास और धुँधला सा वातावरण कहानीकार ने बनाया है वह अदभुत है। लेखक का स्पर्श हल्का है और साथ ही उसमें आश्चर्यजनक गहराई भी है। कहानी में एक नास्टैल्जिया है जो जीवन के उड़ते हुए क्षणों को एक हल्की सी, उन्हें धीमे से छूती हुई सी दार्शनिक नज़र से देखता है। यह एक उदास दार्शनिकता है जो उस पर मनन करती है जो कभी पकड़ में नहीं आता। यह कहानी प्रेम के प्रति उदासीन हो चुके व्यक्ति के लिए उसे एक बार फिर वांछनीय बना देती है और चुम्बन जैसी दैहिक और अक़्सर इरोटिक चीज़ को सुन्दरता और उदासी से भर देती है।
अनुवाद तो अच्छा है ही।
Kahani pe ek behad rochak comment.Ji Rusta ji.
कितना कुछ कहती है यह छोटी से कहानी । पढ़ते हुए अपने जीवन का पूरा अतीत सिमट आता है स्मृतियों में । हम नए सिरे से जीवन की उन तमाम घटनाओं को एकबारगी से देखने लगते हैं । हम भी कभी इसी तरह उठकर, उतर कर चल पड़े थे एकाकी अथवा कोई हमारा हाथ छुड़ाकर चला गया था और हम बेबस देखते रहे थे ।
यह कहानी अपनी व्यंजना में बहुत बड़ी है और हमारी चेतना को झकझोर देती है । इसका काल खंड कोई बड़ा समय नहीं कुछेक क्षणों का ही है लेकिन उसकी व्याप्ति बहुत बड़ी है ।
इस अच्छी कहानी को साझा करने के लिए आपका अभिनंदन ।
बहुत मर्मस्पर्शि कहानी है और निर्मल जी का अनुवाद भी मूल कहानी का आस्वादन करवाने में सफल होती है।
बहुत सुंदर और मर्मस्पर्शी कहानी। इसके अनुवाद में निर्मल वर्मा की भाषा का जादू सहज ही देखा जा सकता है। मनोज मोहन का आभार।
क्षणिक जीवन क्षण भर में सदा के लिए परिवर्तित हो जाता है ओर जीवन भर की उदासी छोड़ जाता है। कुछ पल अपने विस्तार में पूरा जीवन होते हैं। मार्मिक, अविस्मरणीय कहानी, लाजवाब अनुवाद। मनोज मोहन, निर्मल वर्मा तथा समालोचन का आभार । अरुण देव जी आपका धन्यवाद इसे उपलब्ध कराने हेतु।
“और कहीं भी जाना शेष नहीं रह गया है”
दिल को छू लेने वाली कहानी है। कहानी छोटी है लेकिन दिल के अमीक गोशों को इक बनाम उदासी से भर गई। कहानी में तारीकी है लेकिन रौशनी के दरीचे खोलती हुई। निर्मल वर्मा का तर्जुमा कहानी की दिलकशी को क़ायम रख सका है।
बहुत सुंदर कुछ। यह उपलब्ध करवाने के लिए धन्यवाद।
बहुत धीमी रफ़्तार का यह पाठ कई जगहों पर पाठक के भीतर ठहर जाता है, इस लिहाज़ से कहानी बहुत बड़ी है। कहानी में प्रेम और उदासी परस्पर साथ चलते हैं और किन्ही जगहों पर इतने घुल मिल जाते हैं कि पहचानना मुश्किल है कि हृदय में जो कौंध है, वह प्रेम से उपजी उदासी की है या उदासी से उपजे प्रेम की। यहां किसी से मिलने की हड़बड़ी के साथ कहीं पहुंचने के स्थान पर किसी के लौटने का एक लंबा इंतज़ार है। आपने सुंदर अनुवाद के साथ यह कहानी विशेष है।
दिन का अँधेरा रात में मिल गया था । टोपेका की याद में न्यूयार्क तक पहुँचना nostalgia है ।
एक फिल्म है, “the adjustment bureau” . इस कहानी से शायद बहुत जुड़ती है. फिल्म फ्री विल के इर्द गिर्द है. खैर, कहानी बढ़िया है.