जिन शुरुआती बच्चों ने उस फूले हुए अँधेरे और चिकने उभार को समुद्र में से अपनी ओर आते हुए देखा, उन्होंने सोचा कि वह ज़रूर दुश्मन का जहाज़ होगा. फिर उन्होंने पाया कि उस पर कोई झंडा या पाल नहीं लगा था, इसलिए उन्हें लगा कि वह कोई व्हेल मछली होगी. लेकिन जब वह किनारे पर आ कर लगा और उन्होंने उस पर लगे समुद्री खर-पतवार के गुच्छे, जेलीफ़िश के जाल, मछलियों के अवशेष और पानी में तैरने वाले जहाज़ के टुकड़ों को हटाया तब जा कर उन्हें पता चला कि दरअसल वह एक डूबा हुआ आदमी था.
पूरी दोपहर बच्चे उससे खेलते रहे. कभी वे उसे तट की रेत में दबा देते, कभी बाहर निकाल लेते. पर संयोग से किसी बड़े आदमी ने उसे देख लिया और पूरे गाँव में यह चौंकाने वाली सूचना फैला दी. जो लोग उसे उठा कर क़रीब के घर में ले गए, उन्होंने यह पाया कि वह उनकी जानकारी में आए किसी भी अन्य मरे हुए आदमी से ज़्यादा भारी था. वह लगभग किसी घोड़े जितना भारी था, और उन्होंने एक-दूसरे से कहा कि शायद वह काफ़ी अरसे से तैर रहा था, इसलिए पानी उसकी हड्डियों में घुस गया था. जब उन्होंने उसे ज़मीन पर लेटाया तब उन्होंने कहा कि वह अन्य सभी लोगों से ज़्यादा लम्बा था क्योंकि कमरे में उसके लिए मुश्किल से जगह बन पाई. पर उन्होंने सोचा कि शायद मृत्यु के बाद भी बढ़ते रहने की योग्यता कुछ डूब गए लोगों की प्रवृत्ति का हिस्सा थी.
उसमें समुद्र की गंध रच-बस गई थी और केवल उसका आकार ही यह बता पा रहा था कि वह किसी इंसान की लाश थी, क्योंकि मृतक एक अजनबी था, यह बताने के लिए उन्हें उसके चेहरे को साफ़ करने की भी ज़रूरत नहीं पड़ी. गाँव में लकड़ी के केवल बीस मकान थे जिनमें पत्थरों के आँगन थे, जहाँ कोई फूल नहीं उगे थे. ये मकान मरुभूमि जैसे एक अंतरीप के अंत में बने हुए थे. वहाँ ज़मीन की इतनी कमी थी कि माँओं को हरदम डर लगा रहता कि तेज़ हवाएँ उनके बच्चों को समुद्र में उड़ा ले जाएँगी. इतने बरसों में थोड़े से मृतकों को निपटाने के लिए उन्हें खड़ी चट्टान से समुद्र में फेंक दिया जाता था. लेकिन समुद्र शांत और उदार था, और सभी लोग सात नावों में अँट जाते थे. इसलिए जब उन्हें डूबा हुआ आदमी मिला तो यह जानने के लिए कि वे सभी वहाँ मौजूद थे, उन्हें केवल एक-दूसरे को देखना भर था.
उस रात वे सब काम पर समुद्र में नहीं गए. जहाँ पुरुष यह पता करने निकल गए कि पड़ोस के गाँवों में से कोई लापता तो नहीं है, वहीं महिलाएँ डूबे हुए आदमी की देखभाल करने के लिए उसी मकान में रह गईं. उन्होंने घास के फाहों से उसकी देह पर लगी मिट्टी को साफ़ किया. पानी में डूबे रहने के कारण जो छोटे-छोटे कंकड़-पत्थर उसके बालों में उलझ गए थे, उन्होंने उनको भी हटाया. फिर उन्होंने मछलियों के शल्क हटाने वाले उपकरणों से उसकी त्वचा पर जमी परतों और पपड़ियों को खुरचा. जब वे यह सब कर रही थीं तो उन्होंने पाया कि उसकी देह में लिपटी वनस्पतियाँ गहरे पानी और दूर-दराज़ के समुद्रों से आई थीं. उसके कपड़े चिथड़ों-जैसी हालत में थे. लगता था जैसे वह प्रवालों की भूल-भुलैया में से बहकर वहाँ पहुँचा था.
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गैबरिएल गार्सिया मार्केज़ |
उन्होंने इस बात पर भी ध्यान दिया कि मृत होते हुए भी वह बेहद गरिमामय लग रहा था. समुद्र में डूब गए अन्य लोगों की तरह वह एकाकी नहीं लग रहा था. नदियों में डूब गए लोगों की तरह वह मरियल और ज़रूरतमंद भी नहीं लग रहा था. लेकिन असल में वह किस क़िस्म का आदमी था, यह बात उन्हें उसकी देह की पूरी सफ़ाई करने के बाद ही पता चली, और तब यह देखकर वे विस्मित हो गईं. आज तक उन्होंने जितने लोग देखे थे, वह उन सभी से ज़्यादा लम्बा, हट्टा-कट्टा और ओजस्वी था. हालाँकि वे सब हैरानी से उसे निहार रही थीं, पर उसकी क़द-काठी और उसके रूप की कल्पना कर पाना उनके लिए सम्भव नहीं था.
उसे लेटाने के लिए उन्हें पूरे गाँव में उतना लम्बा बिस्तर नहीं मिला, न ही उन्हें कोई ऐसी मज़बूत मेज़ ही मिली जो अंत्येष्टि से पहले की रात उसके ‘जागरण‘ संस्कार के समय उसे लेटाने के काम आती. गाँव के सबसे लम्बे लोगों की पतलूनें उसे छोटी पड़ गईं, सबसे मोटे लोगों की क़मीज़ें उसे नहीं आईं, और सबसे बड़े पैरों के जूते भी उसके पैरों की नाप से छोटे निकले. उसके विशाल आकार और रूप से मोहित हो कर गाँव की महिलाओं ने एक नाव की पाल से उसकी पतलून, और किसी दुल्हन के शानदार कपड़ों से उसकी क़मीज़ बनाने का निश्चय किया ताकि वह मृत्यु के बाद भी गरिमामय बना रहे. जब वे एक गोल घेरे में बैठकर बीच-बीच में लाश को देखते हुए कपड़े सिल रही थीं, तब उन्हें लगा जैसे इस रात से पहले हवा कभी स्थिर नहीं थी, न ही समुद्र कभी इतना अशांत था, और उन्होंने मान लिया कि इन परिवर्तनों का मृतक से कुछ-न-कुछ लेना-देना था.
उन्होंने सोचा कि यदि यह प्रतापी व्यक्ति उनके गाँव में रहा होता तो उसके भव्य मकान के दरवाज़े सबसे चौड़े होते, छत सबसे ऊँची होती, फ़र्श सबसे मज़बूत होती, पलंग को किसी जहाज़ के ढाँचे के बीच के हिस्से में लोहे की कीलें ठोककर बनाया गया होता, और उसकी पत्नी सबसे प्रसन्न स्त्री होती. उन्होंने सोचा कि उस आदमी का रुतबा ऐसा होता कि वह महज़ उनके नाम लेकर ही समुद्र के अंदर की मछलियों को पानी से बाहर बुला लेता. उस आदमी ने अपनी ज़मीन पर इतनी ज़्यादा मेहनत की होती कि पत्थरों के बीच से फूट कर फ़व्वारे निकल आते, जिससे वह खड़ी चट्टानों पर फूलों के पौधे उगा सकता. उन्होंने चुपके-से अपने मर्दों की तुलना उस आदमी से की, और इस नतीजे पर पहुँचीं कि जो काम वह आदमी एक ही रात में कर देता, उस काम को उनके मर्द जीवन भर मेहनत करके भी न कर पाते. मन-ही-मन उन्होंने अपने मर्दों को पृथ्वी पर मौजूद सबसे कमज़ोर, सबसे निकृष्ट और सबसे बेकार जीव मान कर ख़ारिज कर दिया. वे सभी महिलाएँ अपनी अनोखी कल्पनाओं की भूलभुलैया में विचर रही थीं, जब उनमें से सबसे बड़ी उम्र की महिला ने एक लम्बी साँस ली. सबसे बड़ी उम्र की महिला होने के कारण उसने डूबे हुए आदमी को कामवासना से देखने की बजाए दयालु दृष्टि से देखा था. वह बोली — “इसका चेहरा तो एस्टेबैन नाम के आदमी से मिलता-जुलता है.”
यह सच था. उनमें से अधिकांश महिलाओं के लिए उसके चेहरे को केवल एक बार और देखने भर की ज़रूरत थी. वे यह जान गई थीं कि उसका और कोई नाम हो ही नहीं सकता था. उनमें से कम-उम्र और ज़्यादा हठी महिलाएँ फिर भी कुछ घंटों तक भ्रम की स्थिति में बनी रहीं. उन्हें लगा कि यदि वे उसे पूरे कपड़े और चमड़े के बढ़िया जूते पहना कर फूलों के बीच लेटा दें तो शायद वह लौटैरोनाम से जाना जाए. पर यह एक अहंकारी भ्रम था. महिलाओं के पास ज़्यादा कपड़ा नहीं था. कपड़ों की कटाई और सिलाई अच्छी तरह नहीं हुई थी, जिसके कारण वह पैंट उस आदमी को बहुत छोटी पड़ रही थी. उसके सीने में मौजूद छिपी ताकत की वजह से उसकी क़मीज़ के बटन खिंच कर बार-बार खुल जाते थे.
मध्य-रात्रि के बाद हवा का वेग कम हो गया, और समुद्र फिर से अपनी बुधवार वाली निद्रालु अवस्था में चला गया. उस नीरव सन्नाटे ने सारी शंकाएँ दूर कर दीं– वह एस्टेबैन ही था. महिलाओं ने उसे कपड़े पहनाए थे, उसके बाल सँवारे थे, उसके नाखूनों को काटा था और उसकी दाढ़ी बनाई थी. जब उन्हीं महिलाओं को यह पता चला कि अब उस आदमी को ज़मीन पर घसीट कर ले जाया जाएगा, तो करुणा और खेद से उनके रोंगटे खड़े हो गए. और तब जा कर वे सब यह समझ पाईं कि जो विशाल आकार उसे मृत्यु के बाद भी दुख दे रहा था, जीवन में उसने उसे कितना दुखी किया होगा.
अब वे उसके जीवन की कल्पना कर सकती थीं — अपने विशाल आकार के कारण वह दरवाज़ों के बीच में से झुककर निकलने के लिए अभिशप्त रहा होगा, उसका सिर बार-बार छत की आड़ी शहतीरों से टकरा कर फूट जाता होगा. किसी के यहाँ जाने पर उसे देर तक खड़े रहना पड़ता होगा. सील मछली जैसे उसके मुलायम गुलाबी हाथ यह नहीं जानते होंगे कि उन्हें क्या करना है. उधर गृह-स्वामिनी खुद डरी होने के बावजूद अपनी सबसे मज़बूत कुर्सी आगे करते हुए उससे बैठने का आग्रह करती होगी — ” बैठिए न , एस्टेबैन जी ! “ लेकिन वह मुस्कराते हुए दीवार के सहारे खड़ा रहता होगा — “आप तकलीफ़ न करें , भाभीजी. मैं यहाँ ठीक हूँ.” हालाँकि उसकी एड़ियाँ दुख रही होतीं और जब भी वह किसी के यहाँ जाता, तब बार-बार यही क्रम दोहराने के कारण उसकी पीठ में भी दर्द होता — “आप तकलीफ़ न करें. मैं यहाँ ठीक हूँ.” पर वह ऐसा केवल कुर्सी के टूटने की शर्मिंदगी से बचने के लिए कहता. और शायद वह कभी नहीं जान पाता था कि वही लोग जो उससे कहते थे — “नहीं जाओ, एस्टेबैन, कम-से-कम कॉफ़ी के बनने तक तो रुक जाओ “ , वही लोग बाद में फुसफुसा कर एक-दूसरे से कहते थे — “शुक्र है, वह बड़ा-सा बुद्धू आदमी चला गया. वह रूपवान बेवकूफ़ चला गया ! “
उस रूपवान आदमी के शव के बगल में बैठी महिलाएँ सुबह होने से थोड़ा पहले यही सब सोच रही थीं. बाद में उन्होंने उसके चेहरे को एक रुमाल से ढँक दिया ताकि रोशनी से उसे कोई तकलीफ़ न हो. इस समय वह इतना अरक्षित, सदा से मृत और उन महिलाओं के अपने मर्दों जैसा लग रहा था कि वे सभी यह देखकर रोने लगीं. वह एक कम उम्र की स्त्री थी जिसने रोने की शुरुआत की. फिर दूसरी महिलाएँ भी रुदन में शामिल हो गईं. वे लम्बी साँसें भर रही थीं और विलाप कर रही थीं. वे जितना ज़्यादा सुबकतीं, उतनी ही ज़्यादा उनकी रोने की इच्छा बलवती होती जाती. दरअसल वह डूबा हुआ आदमी अब पूरी तरह से एस्टेबैन लगने लगा था. इसलिए वे बहुत ज़्यादा रोती रहीं क्योंकि वह पूरी पृथ्वी पर सर्वाधिक दीन-हीन, सर्वाधिक शांत और सर्वाधिक कृपालु आदमी लग रहा था, बेचारा एस्टेबैन. इसलिए जब गाँव के मर्द इस ख़बर के साथ लौटे कि वह डूबा हुआ आदमी पड़ोस के किसी गाँव का निवासी नहीं था, तो आँसुओं के बीच महिलाओं के मन में उल्लास की रेखा खिंच गई. “शुक्र है परमात्मा का, ” वे सब लम्बी साँसें ले कर बोलीं, “ यह डूबा हुआ आदमी हमारा अपना है.”
गाँव के मर्दों को लगा कि यह सारा दिखावा महिलाओं का छिछोरापन था. वे रात के समय पूछताछ करने के मुश्किल काम की वजह से थक चुके थे. वह एक शुष्क दिन था और हवा बिलकुल नहीं चल रही थी. वे केवल यह चाहते थे कि सूरज के सिर पर चढ़ आने से पहले वे नवागंतुक की लाश को हमेशा के लिए ठिकाने लगाने की परेशानी से मुक्त हो जाएँ. उन्होंने बचे हुए मस्तूलों के सामने के हिस्से और बरछेनुमा बाँसों से एक कामचलाऊ अर्थी बनाई, जिसे उन्होंने पालों के कपड़े से बाँध दिया ताकि वह खड़ी चट्टान तक पहुँचने तक शव का भार उठा सके. वे उस आदमी के शव को एक मालवाहक जहाज़ के लंगर के साथ बाँध देना चाहते थे, ताकि वह गहरी लहरों में भी आसानी से डूब जाए. उस गहराई में मछलियाँ भी अँधी होती हैं और गोताखोर गृह-विरही हो कर काल के गर्त में समा जाते हैं. वे लोग यह नहीं चाहते थे कि लहरों के थपेड़े उस आदमी के शव को भी वैसे ही वापस तट पर ले आएँ, जैसे अन्य शवों के साथ हुआ था.
लेकिन गाँव के मर्द जितनी जल्दी यह काम निपटाना चाहते , गाँव की महिलाएँ समय बरबाद करने के उतने ही तरीके ढूँढ़ लेतीं. वे अपनी छातियों पर समुद्र से बचाव की तावीज़ें बाँधे हुई थीं, और घबराई हुई मुर्ग़ियों की तरह इधर-उधर चोंच मारती फिर रही थीं. एक ओर उन में से कुछ महिलाएँ उस डूबे हुए आदमी के कंधों पर अच्छे शगुन का धार्मिक लबादा डालने में व्यस्त दिख रही थीं, दूसरी ओर कुछ अन्य महिलाएँ उसकी कलाई पर दिशा-सूचक यंत्र बाँध रही थीं. ” ऐ, वहाँ से हटो , रास्ते से हटो, देखो, तुम्हारी वजह से मैं डूबे हुए आदमी पर लगभग गिर ही गया था ” जैसे शोर-शराबे के बाद गाँव के मर्दों को औरतों की नीयत पर संदेह होने लगा. वे बुड़बुड़ाने लगे कि एक अपरिचित व्यक्ति को अंतिम यात्रा के लिए इतना ज़्यादा सजाने-सँवारने की क्या ज़रूरत है, क्योंकि शव के साथ आप कितनी भी धार्मिक रस्में अदा कर लें, अंत में तो लाश को शार्क मछलियों के मुँह का निवाला ही बनना है. पर महिलाएँ इधर-उधर दौड़ते-भागते और टकराते हुए भी उस डूबे आदमी पर स्मृति-चिह्नों के टुकड़े बाँधती रहीं. वे अब रो तो नहीं रही थीं, पर गहरी साँसें ज़रूर ले रही थीं. यह सब देखकर गाँव के मर्दों का ग़ुस्सा फूट पड़ा, क्योंकि किसी डूबे हुए नगण्य आदमी की बह कर आई ठंडी लाश पर इतना बतंगड़ पहले कब हुआ था? उनमें से एक महिला डूबे हुए आदमी की देख-भाल में दिखाई जा रही इतनी कमी से अपमानित महसूस कर रही थी. तब उसने मृत व्यक्ति के चेहरे पर पड़ा रुमाल हटा दिया. उसके गरिमामय चेहरे को देखकर गाँव के मर्द भी विस्मित रह गए.
वह वाकई एस्टेबैन था. उनके द्वारा पहचाने जाने के लिए उसका नाम दोहराए जाने की ज़रूरत नहीं थी. यदि उन्हें उसका नाम सर वाल्टर रेलिघ बताया गया होता तो वे भी उसके अमेरिकी लहज़े से प्रभावित हुए होते. उन्होंने भी उसके कंधे पर बैठे तोते और वहीं टँगी नरभक्षियों को मारने वाली चौड़ी नाल की पुरानी बंदूक़ को देखा होता. किंतु विश्व में एस्टेबैन कोई विलक्षण ही हो सकता था, और वह वहाँ पड़ा था — व्हेल मछली की तरह फैला हुआ. उसके पैरों में जूते नहीं थे, और उसने किसी बच्चे की नाप की पतलून पहन रखी थी. उसके कड़े नाखूनों को किसी चाकू से ही काटा जा सका था.
वह शर्मिंदा महसूस कर रहा है, यह जानने के लिए उन्हें केवल उसके चेहरे से रुमाल को उठाना भर था. यदि वह इतना बड़ा या भारी या रूपवान था तो यह उसकी ग़लती नहीं थी. यदि वह जानता कि उसके साथ यह सब होने वाला है तो वह ज़्यादा सावधानी से अपने डूबने की जगह चुनता. यह बात मैं पूरी गम्भीरता से कह रहा हूँ. यदि यह सब ताम-झाम मुझे पसंद नहीं, तो ऐसे में लोगों को परेशानी से बचाने के लिए मैं तो किसी जहाज़ का लंगर अपने गले में डालकर किसी खड़ी चट्टान से लड़खड़ाते हुए नीचे कूद जाता. जैसा कि गाँव के मर्द कह रहे थे, एक गंदी, ठंडी लाश की वजह से वे सब परेशान हो रहे थे जबकि उससे उनका कोई लेना-देना नहीं था.
लेकिन डूबे हुए आदमी के आचरण में इतनी सच्चाई थी कि सबसे ज़्यादा शक्की मर्द — वे जो अपनी समुद्र-यात्राओं की अंतहीन रातों की कटुता में यह भय महसूस करते थे कि उनकी ग़ैर-मौजूदगी में उनकी स्त्रियाँ उनके सपने देखते हुए थक जाएँगी, और डूबे हुए लोगों के सपने देखने लगेंगी– वे और उनसे भी ज़्यादा निष्ठुर लोग एस्टेबैन की सच्चाई देखकर भीतर तक काँप उठे.
और इस तरह से उन्होंने एक डूबे हुए परित्यक्त आदमी की इतनी शानदार अंत्येष्टि की, जो उनकी कल्पना के अनुरूप थी. कुछ महिलाएँ अंत्येष्टि के लिए फूल लेने पड़ोस के गाँवों में गई थीं. वे अपने साथ और महिलाओं को भी ले आईं जिन्हें डूबे हुए आदमी के बारे में बताई गई बातों पर यक़ीन नहीं था. साथ लाई गई महिलाओं ने जब डूबे हुए आदमी को देखा तो वे और फूल लाने के लिए वापस अपने गाँवों में गईं. वे अपने साथ और ज़्यादा महिलाओं को ले आईं. यह क्रम तब तक चलता रहा जब तक वहाँ इतने फूल और इतनी महिलाएँ नहीं हो गईं कि वहाँ चलने-फिरने की जगह भी नहीं बची. अंतिम समय में उन्हें डूबे हुए आदमी को एक अनाथ के रूप में लहरों के हवाले करते हुए तकलीफ़ हुई. इसलिए अपने सर्वोत्तम लोगों में से उन्होंने उस डूबे हुए आदमी के माता, पिता, चाचा, चाची, और भाई-बहनों का चुनाव किया, जिससे उसकी वजह से गाँव के सभी लोग आपस में रिश्तेदार बन गए.
कुछ नाविकों ने दूर कहीं रोने की आवाज़ें सुनीं और वे समुद्र में रास्ता भूल गए. लोगों ने तो यहाँ तक सुना कि उनमें से एक नाविक ने खुद को मुख्य मस्तूल से बँधवा लिया क्योंकि उसने उन मोहिनियों (Sirens) के बारे में पौराणिक कथाएँ सुन रखी थीं जिनके सम्मोहक गीत सुन कर नाविक रास्ता भटक कर मारे जाते थे.
लोग उसकी अर्थी को कंधे पर उठा कर ढलान वाली खड़ी चट्टानों तक ले जाने का सौभाग्य पाने के लिए आपस में लड़ रहे थे. उसी समय उन पुरुषों और महिलाओं को पहली बार अपनी गलियों के सूनेपन, अपने आँगनों की शुष्कता और अपने सपनों की संकीर्णता का शिद्दत से अहसास हुआ , क्योंकि उनके सामने डूबे हुए आदमी की भव्यता और उसका सौंदर्य था. उन्होंने उसे किसी लंगर के साथ बाँधे बिना समुद्र के हवाले कर दिया, ताकि यदि वह वापस आना चाहे तो आ सके और जब आना चाहे, तब आ सके. वे सभी सदियों जितने लम्बे पलों तक अपनी साँसें रोके खड़े रहे, जितना समय उसकी देह को उस अगाध गर्त्त में गिरने में लगा.
यह जानने के लिए उन्हें एक-दूसरे को देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी कि अब वे सभी मौजूद नहीं थे, कि अब कभी वे सभी मौजूद होंगे भी नहीं. लेकिन वे यह भी जानते थे कि उस समय के बाद सब कुछ अलग होगा. उनके घरों के दरवाज़े पहले से ज़्यादा चौड़े होंगे, उनकी छतें ज़्यादा ऊँची होंगी और उनके फ़र्श ज़्यादा मज़बूत होंगे ताकि एस्टेबैन की याद बिना शहतीरों से टकराए हर कहीं आ-जा सके. तब भविष्य में कोई फुसफुसा कर यह नहीं कहेगा –“अरे, वह बड़ा-सा आदमी चल बसा. बुरा हुआ. अरे , वह रूपवान बुद्धू गुज़र गया.” ऐसा इसलिए क्योंकि एस्टेबैन की याद को अनादि-अनंत तक सुरक्षित रखने के लिए वे सभी अपने मकानों के सामने के हिस्से को चमकीले रंगों में रंग देने वाले थे. सोतों की खोज में वे सभी हाड़तोड़ मेहनत करके पत्थरों के बीच खुदाई करने वाले थे ताकि खड़ी चट्टानों पर फूल उगाए जा सकें.
भविष्य में जब खुले सागर से आती बगीचों की गंध से विचलित विशाल समुद्री जहाज़ों के यात्री सुबह के समय उठेंगे, तब जहाज़ का कप्तान अपनी वर्दी पहने उनके पास आएगा. उसके पास तारों की स्थिति जानने वाला उपकरण होगा, जो उसे ध्रुवतारे के बारे में बताएगा. उसकी वर्दी पर युद्धों में नाम कमाने के लिए मिले तमग़ों की क़तारें होंगी. क्षितिज पर नज़र आते गुलाबों के अंतरीप की ओर इशारा करते हुए वह चौदह भाषाओं में कहेगा — उधर देखिए, जहाँ हवा इतनी शांत है कि वह क्यारियों में सोने चली गई है, उधर वहाँ , जहाँ सूरज इतना चमकीला है कि सूरजमुखी के फूल यह नहीं जानते कि वे किस ओर झुकें , जी हाँ, वही एस्टेबैन का गाँव है.
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Estevanico : (implicitly, by the name “Esteban” given to the drowned man)
Lautaro : (Lautaro was military figure in the Arauco War, a conflict in the mid 1500s between colonizing Spaniards and the natives of what is now Chile. He was a leader of a native Mapuche people.
Sir Walter Raleigh : an English explorer in the late 1500s.
Odysseus and the Sirens (implicitly) : Greek mythical figures seen in Homer’s Odyssey. The sirens were mythical creatures, half-woman and half-bird, who sang in beautiful voices to lure sailors off their course to a rocky death. Odysseus, the hero of Homer’s tale, famously tied himself to the mast as his ship sailed past the island of the sirens (while the rest of his men were forced to plug up their ears), thus becoming the only mortal man to have ever heard the sirens and lived to tell the tale.
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सुशांत सुप्रिय
A-5001 , गौड़ ग्रीन सिटी, वैभव खंड, इंदिरापुरम,
ग़ाज़ियाबाद –201014 (उ. प्र.)
मो : 8512070086
ई-मेल : sushant1968@gmail.com