उम्बर्तो एको
हिंसा की ‘शानदार’ परंपरा और लेखक
जितेन्द्र भाटिया
मैं जिसके हाथ में इक फूल देके आया थाउसी के हाथ का पत्थर मेरी तलाश में है
आग लेकर हाथ में पगले जलाता है किसेजब न ये बस्ती रहेगी तू कहाँ रह जाएगा
पहली चीज
‘‘तुम्हें यहाँ काम करते हुए पांच साल होने को आए. इन पांच सालों में किसी ने तुमसे कोई सवाल नहीं किया है. हमने तुमपर पूरा विश्वास दिखाया है. लेकिन अब हम तुम्हारी बात के भरोसे बैठे नहीं रह सकते. अब हमें ख़ुद अपनी आँखों से देखना होगा कि क्या हो रहा है.’’
जनरल की गंभीर आवाज़ में एक गहरी चेतावनी थी.
‘‘आपने बड़े नाजुक मौके पर मुझे घेर लिया, जनरल! मेरा इरादा अभी कुछ और रुकने का था, लेकिन अब मैं अजीब दुविधा में हूँ. दरअसल, मैंने एक चीज़ बनायी है…’’ काह की आवाज़ एक मानीखेज फुसफुसाहट में बदल गयी, ‘‘एक बहुत बड़ी चीज! और सूरज भगवान की कसम, लोगों को इसके बारे में बताना ज़रूरी है…’’
हाथ के इशारे से उसने जनरल को गुफ़ा के अंदरूनी हिस्से में आने को कहा, जहाँ दीवार की एक फांक के भीतर से बाहर की रोशनी का एक सरिया नीचे चट्टान पर गिर रहा था. और तब काह ने उसे वह चीज दिखाई.
वह बादाम की शक्ल की एक चपटी चीज थी, जिसकी सतह पर किसी बड़े से हीरे की तरह कई कोने बने हुए थे. लेकिन लगभग धातु की तरह चमकने वाली वह चीज़ पारदर्शी नहीं थी.
“अच्छा!’’ जनरल ने कुछ चकराकर कहा, ‘‘यह तो पत्थर लगता है!’’
प्रोफेसर की घनी भौंहों से ढंकी नीली आँखों में एक चालाकी भरी चमक उभर आयी. ‘‘हाँ, यह पत्थर ही है!’’ उसने कहा, ‘‘लेकिन दूसरे पत्थरों की तरह यह पत्थर ज़मीन पर ढेर में पड़े रहने के लिए नहीं है. यह पत्थर मुट्ठी में भींचे जाने के लिए है!’’
‘‘मुट्ठी में?’’
‘‘भींचे जाने के लिए, जनरल! इस पत्थर में वह सारी शक्ति है, जिसका इंसान ने अब तक सिर्फ़ सपना ही देखा है! इसमें हज़ारों आदमियों के बराबर ताकत है. देखिए…’’
अपनी हाथ की उंगलियों को मोड़कर उसने उस पत्थर के चारों ओर इस तरह कसा कि वह उसके हाथ की गिरफ्त में आ गया. अब उसका भोंथरा हिस्सा उसकी हथेली में क़ैद था और नुकीला भाग उसके हाथ के घूमने के साथ नीचे या ऊपर या जनरल की दिशा में घूम सकता था. प्रोफेसर ने अपनी बाँह को तेज़ी से घुमाया तो पत्थर हवा में एक वक्र रेखा बनाकर रह गया. प्रोफेसर ने अपनी बाँह को ऊपर-नीचे किया तो पत्थर की नोक चट्टान की सतह से जा टकरायी. और तब एक चमत्कार हुआ. उस नोक ने चट्टान को बेधा, उसमें खरोंच बनायी और उसमें से कुछ बारीक कण छील निकाले. प्रोफेसर के बार-बार इस प्रक्रिया को दुहराने के साथ वह नोक चट्टान को तोड़कर उसमें छेद बनाती चली गयी और आख़िरकार उसका एक टुकड़ा टूटकर अलग हो गया.
अपनी सांस रोके खड़ा जनरल आँखें फाड़कर देखता जा रहा था. ‘‘कमाल है!’’ उसने थूक निगलते हुए बुदबुदाहट भरे स्वर में कहा.
‘‘यह तो कुछ भी नहीं है जनरल!’’ प्रोफेसर ने विजय भाव से छाती फुलाई. ‘‘बेशक अपने ख़ाली हाथों से इस चट्टान पर चोट कर आप इसपर खरोंच तक नहीं ला सकते थे. लेकिन अब आगे देखिए!’’ एक कोने से उसने एक बड़ा-सा, सख़्त और अभेद्य नारियल उठाकर जनरल के हाथों में दे दिया.
‘‘चलिए!’’ उसने चुनौती भरे स्वर में कहा, ‘‘आप दोनों हाथों का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसे तोड़कर दिखाइए!’’
‘‘मज़ाक मत करो, काह!’’ जनरल घबरा गया, ‘‘तुम अच्छी तरह जानते हो कि यह नामुमकिन है. हममें से कोई ऐसा नहीं कर सकता! सिर्फ़ कोई डायनोसॉर ही इसे अपने पैर तले कुचलकर तोड़ सकता है. सिर्फ़ डायनोसॉर ही इसका गूदा खा सकते हैं, इसका पानी पी सकते हैं…’’
‘‘हाँ, लेकिन अब हम भी ऐसा कर सकते हैं!’’ प्रोफेसर ने उत्तेजना भरी ख़ुशी में कहा, ‘‘देखिए!’’
उसने नारियल को चट्टान में बने छेद के भीतर टिका दिया. फिर उसने उसी पत्थर को उल्टी तरफ़ से हाथ में इस तरह थामा कि नोक वाला सिरा इस बार उसकी हथेली में था. उसका हाथ एक बार फिर तेज़ी के साथ घूमता हुआ बिना किसी ख़ास ताकत के, पत्थर के भोथरे हिस्से समेत नारियल पर जा गिरा. वार के पड़ते ही नारियल फटकर टुकड़े-टुकड़े हो गया. उसका पानी चट्टान पर बह निकला और छेद में फैले छोटे-छोटे टुकड़ों के भीतर से झांकता झक्क सफ़ेद, ठंडा गूदा सामने आ गया. जनरल ने ललचाए हाथों से एक टुकड़े को झपटकर अपने मुंह में डाल लिया. फिर वह स्तब्ध भाव से कभी उस चट्टान, कभी काह और कभी साबुत नारियल के उन असंभाव्य अवशेषों की ओर देखता रह गया.
‘‘सूरज देव की कसम, काह! यह तो कमाल की चीज है. इस चीज़ से इंसान की ताकत कई सौ गुना बढ़ जाएगी. अब वह डाइनोसॉरों के साथ बराबरी का मुक़ाबला कर सकेगा. अब वह इन चट्टानों और दरख़्तों का शहंशाह बन सकता है. अब उसके पास एक नहीं, एक क्यों, सौ-सौ हाथ और हो गए हैं. लेकिन यह कमाल की चीज़ तुम्हें मिली कहाँ से?’’
‘‘बनाया है? मतलब?’’
‘‘तुम्हारा दिमाग़ ठिकाने पर नहीं है!’’ जनरल ने कांपते हुए कहा, ‘‘ज़रूर यह आसमान से नीचे गिरी होगी. सूरज भगवान का कोई दूत या हवाओं का कोई प्रेत इसे यहाँ लाया होगा, जो चीज पहले नहीं थी, उसे कोई इंसान कैसे बना सकता है?’’
‘‘बना सकता है, जनरल!’’ काह ने अविचलित भाव से कहा, ‘‘एक पत्थर को लेकर उसपर दूसरे पत्थर से चोट की जाए तो आख़िरकार उस पत्थर को मनचाही शक्ल दी जा सकती है. उसे इस तरह तराशा जा सकता है कि वह हाथों में आसानी से पकड़ा जा सके. और इस तरह के पत्थर को हाथ में लेकर उससे आप इससे भी बड़े और नुकीले दूसरे पत्थर बना सकते हैं. मैं यह करके देख चुका हूँ…’’
‘‘हमें सभी को इसके बारे में बताना होगा, काह! सारे कबीले को इसकी ख़बर होनी चाहिए. हम अब बहुत ताकतवर हो जाएंगे. तुम्हारी समझ में कुछ आया? अब हम भालू का मुक़ाबला कर सकेंगे. भालू के पास पंजे और नाख़ून हैं तो हमारे पास यह चीज़ है. इससे पहले कि वह हमपर झपटे, हम उसके टुकड़े-टुकड़े कर उसका खात्मा कर सकते हैं. इससे हम सांप को मार सकते हैं, कछुए की पीठ तोड़ सकते हैं… और, और… अरे, …इससे तो हम… हम दूसरे इंसान को भी ख़त्म कर सकते हैं!’’
अपने विचार की अनगिनत संभावनाओं से जनरल चित्रावत-सा खड़ा रह गया था. फिर कुछ देर बाद जब उसने दुबारा बोलना शुरू किया तो उसकी आंखां में एक कुटिल चमक उभर आयी थी.
‘‘इसके बूते पर हम कोआम कबीले पर हमला बोलेंगे. वे हमसे ज़्यादा और अधिक ताकतवर हैं. लेकिन अब हम उन्हें अपने कब्जे में कर लेंगे. हम उनके कबीले के आख़िरी इंसान तक को मौत के घाट उतार देंगे. तुम समझ रहे हो, काह?’’
जनरल ने काह को कंधों से झिंझोड़ते हुए कहा, ‘‘अब हमारी विजय को कोई नहीं रोक सकता!’’
लेकिन काह किसी बहुत गहरी चिंता में डूब गया लगता था. काफ़ी देर बाद उसने दबे स्वर में कुछ हिचकिचाहट के साथ बोलना शुरू किया,
‘‘मुझे इसी का डर था जनरल! इसीलिए मैं यह चीज आपको दिखाना नहीं चाहता था. मुझे पता है कि मेरा यह आविष्कार कितना भयानक है. मैं जानता हूँ कि इससे सारी दुनिया बदल जाएगी. शक्ति का इतना ख़ौफ़नाक स्रोत इससे पहले इस धरती पर नहीं देखा गया है. इसीलिए मैं इसके बारे में बताने से डर रहा था. ऐसे हथियार को साथ लेकर युद्ध करने का मतलब ही होगा आत्महत्या! कोआम कबीला भी बहुत जल्दी इसे बनाने का तरीका सीख जाएगा और तब अगली लड़ाई में हम और कोआम, दोनों मारे जाएँगे, कोई भी विजेता नहीं होगा. मैंने सोचा था कि इस चीज से अमन और तरक्की फैलेगी. लेकिन अब मैं जान रहा हूँ कि यह कितनी ख़तरनाक है. इसलिए मैं इसे नष्ट कर देना चाहता हूँ!’’
‘‘नहीं, नहीं!’’ काह ने कहा, ‘‘इसे नष्ट करना ही ठीक होगा!’’
‘‘तुम एक बुज़दिल उदारवादी ही नहीं, परले सिरे के गधे भी हो.’’ जनरल गुस्से से लाल-पीला होता चला गया. ‘‘मुझे तो लगता है कि तुम उनके हाथों के पिट्ठू बनते जा रहे हो. मानव एकता का पाठ पढ़ाने वाले उस बेवक़ूफ़ बुड्ढे और बाकी दूसरे बुद्धिजीवियों की तरह तुम भी कोआमी समर्थक ही निकले. तुम्हारी तो सूरज भगवान में आस्था ही नहीं है!’’
काह के ज़िस्म में एक सिहरन सी दौड़ गयी. फिर अपनी घनी भौंहों तले उदास हो आयी आँखों को चुराते हुए उसने गर्दन झुका ली. ‘‘मुझे पता था कि आख़िरकार यही होकर रहेगा. आप जानते हैं कि मैं कोआमी समर्थक नहीं हूँ. सूरज भगवान के पांचवें नियम का पालन करते हुए मैं आपके आरोप को अस्वीकार करता हूँ, फिर चाहे इसके बदले मुझे सारी प्रेतात्माओं का कोप ही क्यों न झेलना पड़े. आपके जो जी में आए कीजिए, जनरल, लेकिन यह चीज़ गुफ़ा से बाहर नहीं जाएगी!’’
‘‘जाएगी और अभी जाएगी!’’ जनरल जुनून में चिल्लाया, ‘‘हमारे कबीले के सम्मान के लिए, इस सभ्यता की रक्षा की ख़ातिर और शांति तथा समृद्धि की बहाली के लिए इसे जाना ही होगा…’’ और उसने अपने अपने दाहिने हाथ में उस चीज़ को उसी तरह पकड़ लिया जैसा उसने कुछ समय पहले काह को करते देखा था. और फिर पूरी ताकत, गुस्से और घृणा के साथ उसने उसे उसी तरह प्रोफेसर की खोपड़ी पर दे मारा.
आघात से काह की खोपड़ी फट गयी और उसके मुँह से ख़ून का एक सैलाब बह निकला. निःशब्द वह ज़मीन पर ढलक गया और उसके चारों ओर की चट्टान लाल रंग में नहा गयी.
जनरल ने चमत्कृत भाव से अपने हाथों में थमी उस चीज की ओर देखा और फिर उसके चेहरे पर विजय की जो मुसकराहट उभरी, उसमें निर्ममता, हैवानियत और घृणा के अलावा कुछ नहीं था. ’’और कोई है?’’ उसने गरज कर कहा, ‘‘जिसकी मौत उसे बुला रही हो?’’
‘‘जो आज्ञा महान स्दा!’’ ग्रू ने कहा, ‘‘मैं अब आपको प्रेम, उत्तेजना और मौत की एक ऐसी कहानी सुनाऊँगा जो पिछली सदी की है और जिसका शीर्षक है… वानर कुल का भेद उर्फ विलुप्त कड़ी का रहस्य…’’
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सोचो साथ क्या जाएगा
जितेन्द्र भाटिया
विश्व साहित्य संकलन (पहला और दूसरा खंड)
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