गैब्रिएल गार्सिया मार्खेज़
सुश्री फ़ोर्ब्स की सुखद गर्मियाँ
सुशांत सुप्रिय
जब दोपहर में हम मकान पर वापस लौटे तो हमने एक विशाल समुद्री साँप को दरवाज़े के चौखटे पर गले से कील से जड़ा हुआ पाया. वह साँप काला और चमकीला था. अपनी अब भी चमकदार आँखों और खुले जबड़े में मौजूद आरे जैसे दाँतों की वजह से यह साँप किसी कंजर के अभिशाप की तरह लग रहा था. उस समय मैं लगभग नौ वर्ष का था और सन्निपात जैसे हालात में देखे गए उस दृश्य के कारण मैं इतना ज़्यादा डर गया कि कुछ देर के लिए मेरी घिग्घी बँध गई. लेकिन मुझसे दो वर्ष छोटा मेरा भाई ऑक्सीजन टैंक, नक़ाब और मीनपक्ष (fins) फेंक कर डर के मारे चिल्लाता हुआ वहाँ से भाग खड़ा हुआ.
पत्थर की सीढ़ियों पर खड़ी सुश्री फ़ोर्ब्स ने उस आवाज़ को सुना. ये पथरीली सीढ़ियाँ चट्टानों के साथ-साथ चलती हुई गोदी से घर तक आती थीं. ज़र्द चेहरा लिए वे दौड़ती और हाँफती हुई हमारे पास आईं. लेकिन जैसे ही उन्हें दरवाज़े पर कील से जड़ा वह विशाल साँप दिखा, वे हमारे भयभीत होने का कारण समझ गईं. वे हमेशा कहती थीं कि जब दो बच्चे इकट्ठे होते हैं तो एक के अकेले किए गए कारनामे के लिए वे दोनों ही ज़िम्मेदार होते हैं. इसलिए मेरे भाई के चीखने-चिल्लाने पर उन्होंने हम दोनों को ज़ोर से डाँटा और हमारे आत्म-नियंत्रण में कमी के कारण वे हमें देर तक फटकार लगाती रहीं. वे जर्मन भाषा में हमें डाँट रही थीं, न कि अंग्रेज़ी में, जिसमें हमें पढ़ाने के अनुबंध पर उन्होंने हस्ताक्षर किए थे. शायद ऐसा इसलिए था क्योंकि वे भी उस विशाल साँप को देखकर डर गई थीं, लेकिन वे इस बात को स्वीकार नहीं करना चाहती थीं. पर जैसे ही वे थोड़ा सहज हुईं, वे वापस अपनी कठोर अंग्रेज़ी और शैक्षणिक सनक पर लौट आईं.
“इसे ‘मुरेएना हेलेना’ कहते हैं,” उन्होंने हमें बताया. “यह जानवर प्राचीन ग्रीक-वासियों के लिए पवित्र था.”
तभी अचानक स्थानीय लड़का ओरेस्ते एगेव पौधों के पीछे नज़र आया. वह हमें गहरे पानी में तैरना सिखाता था. अपने माथे पर उसने गोताखोरी वाला नक़ाब पहन रखा था. साथ ही उसने तैरने की एक छोटी पोशाक पहनी हुई थी. उसकी कमरबंद में विभिन्न आकारों के छह चाकू बँधे हुए थे. दरअसल पानी के भीतर अपने शिकार से भिड़ते समय वह उन पर बेहद क़रीब से वार करता था. वह लगभग बीस वर्ष का था और वह ज़मीन पर समय बिताने की बजाए अपना अधिकांश समय पानी के भीतर समुद्र-तल पर बिताता था. वह अपनी देह पर हमेशा इंजन का तेल मल लेता था जिसके कारण वह पानी के भीतर किसी समुद्री जीव जैसा दिखता था. जब सुश्री फ़ोर्ब्स ने उसे पहली बार देखा तो उन्होंने मेरे माता-पिता को बताया कि उससे सुंदर इंसान की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. लेकिन उसकी सुंदरता भी उसे सुश्री फ़ोर्ब्स की सख़्ती से नहीं बचा पाई. उसे भी इतालवी भाषा में उनकी झिड़की सहनी पड़ी क्योंकि उसने मोरे ईल को दरवाज़े पर टाँग दिया था. उसका एकमात्र उद्देश्य यही था कि हम बच्चे उस विशाल सर्पाकार जीव को देख कर डर जाएँ. तब सुश्री फ़ोर्ब्स ने उसे उस जीव को वहाँ से उतार कर हटा देने के लिए कहा. उनकी आवाज़ में उस पौराणिक जीव के लिए सम्मान का भाव था. फिर उन्होंने हमें भोजन करने के लिए कपड़े बदल कर आने का आदेश दिया.
हमने बिना देर किए ऐसा ही किया. हम कोशिश करते रहे कि हमसे कोई गलती न हो. सुश्री फ़ोर्ब्स के अधीन दो हफ़्ते बिताने के बाद हम समझ गए थे कि जीने से अधिक मुश्किल और कुछ नहीं था. गुसलखाने की मद्धिम रोशनी में नहाते समय मैं जान गया कि मेरा छोटा भाई अब भी उसी मोरे ईल के बारे में सोच रहा था. “उसकी आँखें लोगों की तरह थीं,” उसने कहा. मैं उससे सहमत था लेकिन मैंने इसके ठीक विपरीत बात कही और कपड़े धोने तक मैं बातचीत का विषय बदलने में कामयाब हो गया. लेकिन जब मैं स्नान करने के बाद गुसलखाने से बाहर आया तो छोटे भाई ने मुझे रुक कर साथ चलने के लिए कहा.
“अभी तो दिन का समय है.” मैं बोला.
मैंने पर्दे हटा दिए. वह अगस्त के बीच का महीना था और खिड़की में से आप द्वीप के दूसरी ओर तक का समूचा पथरीला मैदान देख सकते थे. सूरज जैसे बीच आकाश में रुका हुआ था.
“इसलिए नहीं. दरअसल मैं डर जाने से डर रहा हूँ.” छोटा भाई बोला.
लेकिन जब हम भोजन की मेज़ तक आए तो वह शांत हो चुका था. उसने इतने ध्यान से सब कुछ किया कि सुश्री फ़ोर्ब्स ने विशेष रूप से उसकी तारीफ़ की और उसे हफ़्ते के ‘अच्छे व्यवहार‘ वाली तालिका में दो अंक प्राप्त हुए. दूसरी ओर उसी तालिका से मेरे पाँच में से दो अंक कट गए. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मुझे देर हो रही थी और मैं बिल्कुल अंत में भाग कर भोजन-कक्ष में पहुँचा, जिसके कारण मेरी साँस चढ़ी हुई थी. तालिका में अपने नाम के नीचे पचास अंक जुड़ने पर हमें दुगनी मिठाई मिलती थी. लेकिन हम दोनों भाइयों में से किसी के भी पंद्रह से ज़्यादा अंक नहीं जुड़े थे. यह वाक़ई अफ़सोस की बात थी क्योंकि सुश्री फ़ोर्ब्स के द्वारा बनाई गई मिठाइयों से ज़्यादा स्वादिष्ट चीज़ हमें फिर कभी खाने के लिए नहीं मिली.
भोजन शुरू करने से पहले हम सब खड़े होकर प्रार्थना करते थे. सुश्री फ़ोर्ब्स कैथोलिक धर्म को मानने वाली महिला नहीं थीं लेकिन उनके करार में यह लिखा हुआ था कि उन्हें दिन में छह बार प्रार्थना करनी होगी. उन्होंने करार की शर्त पूरी करने के लिए हमारी प्रार्थना सीख ली थी. उसके बाद हम तीनों बैठ जाते और हम अपनी साँस रोके रहते जबकि सुश्री फ़ोर्ब्स हमारे पूरे आचरण पर विचार करतीं. जब उन्हें सब कुछ बिल्कुल सही लगता, तभी वे घंटी बजाती थीं. तब रसोइया फ़ुल्विया फ़लैमिनिया गर्मियों का घृणास्पद सेवइयों का शोरबा ले कर कक्ष में आती.
शुरू में जब हम अपने माता-पिता के साथ होते थे, तब भोजन करना किसी त्योहार की तरह होता था. फ़ुल्विया फ़्लैमिनिया मेज़ के चारों ओर खिलखिलाते हुए हमें खाना परोस रही होती. वहाँ फैली अव्यवस्था से हम ख़ुश हो जाते. फिर वह हमारे साथ बैठ कर सबकी थाली में से कुछ-न-कुछ ले कर खाती. लेकिन जब से सुश्री फ़ोर्ब्स ने हमारी क़िस्मत की ज़िम्मेदारी सँभाल ली थी, वह एक मनहूस चुप्पी के साथ खाना परोसती थी जहाँ हमें केवल परात में शोरबे के उबलने की आवाज़ आती थी. हम अपनी रीढ़ की हड्डियाँ कुर्सियों पर टिकाए, दस बार दाईं और दस बार बाईं ओर से खाना चबाते रहते थे. हमारी आँखें उस सख़्त, निरुत्साही, ठंडी महिला पर टिकी रहतीं जो हमें शिष्टाचार के रटे हुए नियम सुनाती रहती. यह सब लगभग रविवार की सामूहिक प्रार्थना की तरह होता लेकिन यहाँ प्रार्थना-गीत की सान्त्वना नहीं होती.
जिस दिन हमें अपने दरवाज़े से टँगी मोरे ईल मिली, सुश्री फ़ोर्ब्स ने हमारे देश भक्तिपूर्ण दायित्वों के बारे में हमसे बात की. शोरबे के बाद फ़ुल्विया फ़्लैमिनिया हमारे लिए खुशबूदार, गर्म कबाब के कतले ले कर आई. वह जैसे हमारी शिक्षिका की आवाज़ से विरल बना दी गई हवा पर तैर रही थी. मुझे ज़मीन पर या हवा में किसी और खाद्य-पदार्थ की बजाए मछली ज़्यादा पसंद है और गुआकैमायाल के हमारे घर की याद आते ही मुझे चैन आ गया. लेकिन मेरे भाई ने चखे बिना ही उस व्यंजन को खाने से इनकार कर दिया.
“मुझे यह पसंद नहीं.” उसने कहा.
सुश्री फ़ोर्ब्स ने अपना प्रवचन बीच में रोक दिया.
“तुम यह कैसे कह सकते हो? तुमने अभी इसे चखा भी नहीं.”
उन्होंने आँखों के इशारे से रसोइये को धमकी दी लेकिन तब तक देर हो चुकी थी.
“मोरे विश्व की सर्वश्रेष्ठ मछली होती है, मेरे बच्चे.” फ़ुल्विया फ़्लैमिनिया ने कहा. “चख कर देखो तो सही.”
सुश्री फ़ोर्ब्स शांत बनी रहीं. उन्होंने अपने बेदर्द तरीक़े से हमें बताया कि पुरातन काल में मोरे ईल राजाओं द्वारा खाए जाने वाला एक स्वादिष्ट व्यंजन था. यहाँ तक कि योद्धा भी इसके पित्त को खाने के लिए आपस में लड़ते थे. माना जाता था कि इसे खाने से योद्धाओं में अलौकिक साहस का संचार होता था. फिर उन्होंने थोड़े समय में अपनी पुरानी बात को दोहराया कि अच्छा स्वाद महसूस करना स्वाभाविक योग्यता नहीं है. इसे किसी ख़ास उम्र में सिखाया नहीं जाता, बल्कि यह तो बचपन से आरोपित किया जाता है. इसलिए हमारे पास उसे नहीं खाने का कोई वैध कारण नहीं. मैंने पहले भी मोरे ईल का स्वाद चखा हुआ था. तब मैं यह भी नहीं जानता था कि वह क्या है. इसलिए मैं इस विरोधाभास को हमेशा के लिए याद रख सका: यह चिकना और फीके स्वाद वाला था, लेकिन दरवाज़े के चौखटे पर टाँग दिए गए साँप की छवि मेरी भूख से ज़्यादा विवश करने वाली थी. मेरे भाई ने पहला कौर खाने का भरपूर प्रयास किया पर वह इसे सहन नहीं कर सका. उसने उल्टी कर दी.
“तुम गुसलखाने में जाओगे और खुद को साफ़ करके दोबारा यहाँ लौट कर खाना खाओगे,”
सुश्री फ़ोर्ब्स ने शांत बने रहते हुए कहा.
मैंने भाई के लिए तीव्र व्यथा महसूस की क्योंकि मैं जानता था कि उसे पूरे मकान को पार करके उस प्रारम्भिक अँधेरे में गुसलखाने में अकेले रहना कितना मुश्किल लगता था. लेकिन वह जल्दी ही एक साफ़-सुथरी क़मीज़ पहन कर वापस लौट आया. उसका रंग पीला पड़ गया था और वह हल्का-सा काँप रहा था. उसने सफ़ाई से सम्बंधित सुश्री फ़ोर्ब्स की कठोर निगाहों को ठीक से बर्दाश्त किया. तब सुश्री फ़ोर्ब्स ने मोरे ईल का एक टुकड़ा काटा और हमें खाना जारी रखने के लिए कहा. मैंने किसी तरह दूसरा टुकड़ा मुँह में डाला लेकिन मेरे भाई ने छुरी-काँटे को हाथ भी नहीं लगाया.
“मैं इसे नहीं खाऊँगा.” उसने कहा.
उसकी दृढ़ता इतनी स्पष्ट थी कि सुश्री फ़ोर्ब्स अपनी बात से पीछे हट गईं.
“ठीक है,” उन्होंने कहा , “लेकिन आज तुम्हें कोई मिठाई नहीं मिलेगी.”
मेरे भाई को मिली राहत ने मुझ में भी साहस भर दिया. खाना ख़त्म करने पर छुरी-काँटे को प्लेट में जैसे रखना सुश्री फ़ोर्ब्स ने हमें सिखाया था, मैंने ठीक वैसे ही किया और बोला, “मैं भी मिठाई नहीं खाऊँगा.”
“और तुम दोनों टेलीविजन नहीं देखोगे.” उन्होंने कहा.
“और हम दोनों टेलीविजन नहीं देखेंगे.” मैंने कहा.
सुश्री फ़ोर्ब्स ने अपना रुमाल मेज़ पर रखा और हम तीनों प्रार्थना करने के लिए खड़े हो गए. फिर उन्होंने इस चेतावनी के साथ हमें हमारे शयन-कक्ष में भेज दिया कि उनके भोजन समाप्त कर लेने तक हमें सो जाना है. हमारे सभी ‘अच्छे व्यवहार‘ वाले अंक रद्द कर दिए गए. जब हम बीस अंक और अर्जित कर लेते, तभी हमें उनकी बनाई क्रीम-केक, वनीला की सुगंधित कचौरियाँ, और आलूबुख़ारे की उत्कृष्ट पेस्ट्री फिर से खाने के लिए मिलनी थी.
जल्द ही या बाद में हमें अवकाश तो मिलना ही था. पूरे साल हम सिसिली के दक्षिणी छोर पर स्थित पैंटेलेरिया द्वीप पर आज़ादी की गर्मियों की प्रतीक्षा करते रहे. पहले कुछ महीने, जब हमारे माता-पिता यहाँ मौजूद थे तब हमें ख़ूब मज़ा आया था. मैं अब भी वे दिन किसी सपने की तरह याद करता हूँ : ज्वालामुखी के पत्थरों से भरे धूप में तपता हुआ मैदान, अनंत समुद्र, ईंटों तक चूने से पुता मकान. जब रात में हवा नहीं चलती तब आप खिड़कियों में से अफ़्रीका के प्रकाश-स्तम्भों की चमकदार रोशनी की किरणों को देख सकते थे. अपने पिता के साथ द्वीप के चारों ओर के समुद्र के सुप्त तल पर खोज-बीन करते हुए हमने पीले रंग के टॉरपीडो की एक क़तार ढूँढ़ निकाली थी. वे पिछले युद्ध के समय से समुद्र-तल में आधे धँसे पड़े हुए थे. हम एक मीटर ऊँचे ग्रीस के एक दोहत्थे कलश को वहाँ से ढूँढ़ कर ऊपर ले आए थे. वहाँ गहराई में कुछ फूलमालाएँ थीं और अति-प्राचीन शराब की बोतलों के तल में थोड़ी ज़हरीली शराब भी मौजूद थी. वहाँ हमने गर्म पानी में स्नान भी किया था और वहाँ उबलते हुए पानी में इतनी घनी भाफ़ थी गोया आप उस पर चल सकते थे.
लेकिन हमारे लिए सबसे ज़्यादा चौँधिया देने वाला रहस्योद्घाटन तो स्वयं फ़ुल्विया फ़्लैमिनिया थी. वह किसी हँसमुख धर्माध्यक्ष की तरह लगती थी और जब वह चलती थी तो बहुत-सी उनींदी बिल्लियाँ उसके आगे-पीछे घूमती रहती थीं. लेकिन उसका कहना था कि वह बिल्लियों के प्रति किसी स्नेह की वजह से उन्हें सहन नहीं करती थी बल्कि ख़ूँख़ार चूहों द्वारा काट खाए जाने से खुद को बचाने के लिए ऐसा करती थी. हमारे माता-पिता रात में टेलीविजन पर वयस्कों के लिए दिखाए जाने वाले कार्यक्रम देखने में व्यस्त रहते थे. उस समय फ़ुल्विया फ़्लैमिनिया हमें हमारे घर से सौ मीटर से भी कम दूरी पर स्थित अपने घर ले जाती थी. तब वह हमें टूनिस से बह कर आने वाली हवाओं के साथ सुनाई देने वाली दूरस्थ बड़बड़ाहट, गीतों और रुदन की आवाज़ों में फ़र्क़ करना सिखाती थी.
उसका पति उससे उम्र में बहुत छोटा था. वह गर्मियों में द्वीप के दूसरी ओर स्थित पर्यटकों से भरे होटलों में काम करता था और रात में केवल सोने के लिए घर आता था. ओरेस्टे अपने माता-पिता के साथ वहाँ से थोड़ी दूर ही रहता था. रात में वह हमेशा मछलियों की मालाएँ और समुद्री झींगों से भरी टोकरियाँ लिए हुए दिखाई देता था, जिन्हें वह रसोई में टाँग देता था. फ़ुल्विया फ़्लैमिनिया का पति उन्हें अगले दिन होटलों में बेच देता था. फिर ओरेस्टे अपने माथे पर गोताखोरी वाली पथ-प्रदर्शक बत्तियाँ बाँध कर हमें खेत के ख़रगोशों जितने बड़े चूहे पकड़ने के लिए ले जाता था. ये चूहे रसोई से निकलने वाली बची-ख़ुशी जूठन की ताक में वहाँ घूमते रहते थे. कभी-कभी हम अपने माता-पिता के सो जाने के बाद वापस घर आते थे. तब बची-खुची जूठन के लिए आँगन में चूहे इतना शोरगुल मचा रहे होते थे कि हमारा सोना दूभर हो जाता था. लेकिन यह मुसीबत भी हमारी सुखद गर्मियों का एक जादुई अंश थी.
एक जर्मन शिक्षिका की सेवा लेने का निर्णय केवल मेरे पिता ही कर सकते थे. वे एक कैरेबियाई देश के लेखक थे जिनमें योग्यता कम थी, परिकल्पना अधिक. उनकी आँखें यूरोप के प्रताप की राख से चौंधियाई हुई थीं. पिता अपनी किताबों और वास्तविक जीवन में भी अपनी उत्पत्ति के प्रति क्षमायाचना का भाव रखते थे. उन्होंने इस मोह-माया के आगे घुटने टेक दिए थे और वे चाहते थे कि उनके बच्चों में उनके अपने अतीत का लेशमात्र भी अंश न रहे. मेरी माँ अब भी उतनी ही विनीत थीं जितना वे अल्टा गुआज़िरा में शिक्षिका के रूप में काम करने वाले दिनों में रही थीं. उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि उनके पति को कोई ऐसा विचार भी सूझ सकता है जो शुभ और समयोचित से कम हो. इसलिए वे दोनों अपने हृदय से नहीं पूछ सकते थे कि हम बच्चों का जीवन डोर्टमंड की एक हवलदार महिला के अधीन कैसा हो जाएगा. एक ऐसी महिला जो यूरोपीय समाज की सबसे प्राचीन और बासी आदतें जबरदस्ती हमें सिखाने पर तुली हुई थी. किंतु दूसरी ओर वे तथा चालीस अन्य फ़ैशनप्रिय लेखक एजियन समुद्र में स्थित द्वीपों पर पाँच हफ़्तों के सांस्कृतिक मिलन का मज़ा ले रहे थे.
सुश्री फ़ोर्ब्स पैलेरमो से आने वाली नियत नाव से जुलाई के अंतिम शनिवार के दिन आईं. जैसे ही हमने उन्हें देखा, हम समझ गए कि हमारे मौज-मस्ती के दिन अब ख़त्म हो गए. वे गर्मी के मौसम में आईं और उन्होंने सैनिकों वाले जूते पहने हुए थे. उनकी कोट के गरेबान की ‘लौट’ का कुछ अंश ढँका हुआ था और टोपी के नीचे उनके बाल पुरुषों जैसे कटे हुए थे. उनमें से बंदर के पेशाब की गँध आ रही थी.
“सभी यूरोपीय लोगों से गर्मियों में ऐसी ही गंध आती है” हमारे पिता ने हमें बताया.
“यह सभ्यता की गंध है.” किंतु अपनी सैनिक वेश-भूषा के बावजूद सुश्री फ़ोर्ब्स में एक बेचारगी का भाव था. वे हमारे भीतर थोड़ी करुणा जगा सकती थीं यदि हम थोड़ी बड़ी उम्र के होते या वे थोड़े नरम स्वभाव की होतीं.
हमारी तो दुनिया ही बदल गई. समुद्र में हमारी कल्पना की उड़ान के छह घंटे अब एक कष्टदायक घंटे के बार-बार दोहराव जैसे हो कर रह गए. जब हम अपने माता-पिता के साथ थे, तब हमें ओरेस्टे के साथ तैरने के लिए पूरा समय मिलता था. हम उसकी हिम्मत और कला की दाद देते थे. वह खून और स्याही से गंदले हुए पानी में ऑक्टोपस के अपने पर्यावरण में बिना किसी अन्य हथियार के, केवल एक चाकू लेकर उनसे भिड़ जाता था. वह अब भी हमेशा की तरह अपनी इंजन वाली नाव ले कर ग्यारह बजे हमारे पास पहुँच जाता था. किंतु सुश्री फ़ोर्ब्स उसे उतना समय ही हमारे साथ बिताने देती थीं जितना हमें गहरे पानी में गोताखोरी सिखाने के लिए पर्याप्त होता था. उन्होंने हमें रात में फ़ुल्विया फ़्लैमिनिया के घर जाने से मना कर दिया था क्योंकि उन्हें नौकरों के साथ अधिक घनिष्ठता पसंद नहीं थी. जो घंटे हम पहले चूहों का शिकार करते हुए बिताया करते थे, अब हमें वे घंटे शेक्सपियर के नाटकों का विश्लेषणात्मक अध्ययन करते हुए बिताने पड़ते थे. हमें आँगनों से आम चुराने और गुआकैमायाल की बेहद गर्म सड़कों पर कुत्तों को पत्थर से मारने की आदत थी. किंतु अब कठोर अनुशासन में हम जो राजकुमारों जैसा जीवन जी रहे थे, वह हमारे लिए किसी यातना से कम नहीं था.
लेकिन हमें जल्दी ही यह पता चल गया कि सुश्री फ़ोर्ब्स जितनी सख़्ती हमारे साथ बरतती थीं, उतनी सख़्त वे खुद के साथ क़तई नहीं थीं. यह उनके प्रभुत्व में पहली दरार थी. शुरू में वे सैनिक वेश-भूषा में समुद्र-तट पर एक रंगबिरंगी छतरी के नीचे लेटी रहती थीं. वे वहाँ शिलर के गाथा-गीत पढ़ती रहती थीं, जबकि उस समय ओरेस्टे हमें गोताखोरी सिखाया करता था. और फिर कई घंटों तक वे हमें सही व्यवहार के बारे में सैद्धांतिक व्याख्यान देती थीं जब तक कि दोपहर के भोजन का समय नहीं हो जाता था.
एक दिन उन्होंने ओरेस्टे से कहा कि वह उन्हें अपनी नाव पर होटल की उन दुकानों तक ले चले जहाँ पर्यटक आते थे. वे अपने साथ स्नान करते समय पहनने वाला छोटा-सा काला, चमकीला वस्त्र ले कर लौटीं. किंतु उन्होंने कभी पानी में प्रवेश नहीं किया. हम तैर रहे होते जबकि वे समुद्र-तट पर धूप-स्नान का मज़ा लेतीं. वे अपने बदन से निकलने वाले पसीने को एक तौलिये से पोंछ देतीं पर स्नान करने के लिए नहीं जातीं. तीन दिनों के बाद वे एक उबले हुए समुद्री झींगे जैसी लगने लगीं और उनकी सभ्यता की गंध में साँस लेना हमारे लिए असहनीय हो गया था.
रात में वे अपनी भावनाओं को खुली छूट दे देती थीं. जब से वे यहाँ आई थीं, तभी से हमें रात में मकान के कमरों में किसी के चलने की आवाज़ सुनाई देती थीं. जैसे कोई अँधेरे कमरों में रास्ता टटोल रहा हो. मेरा छोटा भाई इस विचार से डर जाता था कि ज़रूर समुद्र में डूब गए किसी व्यक्ति की रूह मकान में भटक रही है. हमने इनकी कहानियाँ फ़ुल्विया फ़्लैमिनिया से सुनी थीं. लेकिन जल्दी ही हमने पाया कि वह दरअसल सुश्री फ़ोर्ब्स थीं जो रात में एक अकेली महिला का जीवन जीती थीं. एक ऐसी महिला जिसके व्यवहार की वे दिन में स्वयं निंदा करेंगी. एक दिन सुबह पौ फटने के समय हमने जल्दी उठ कर उन्हें रसोई में आश्चर्यचकित कर दिया. दरअसल वे वहाँ किसी विद्यालय की बालिका जैसी रात्रिकालीन पोशाक में भोजन के अंत में परोसी जाने वाली अपनी शानदार मिठाइयाँ बना रही थीं. उनके चेहरे और पूरी देह पर आटा लगा हुआ था और वे इतनी बेफ़िक्री से एक गिलास में पुर्तगाली शराब पी रही थीं कि यह देखकर वास्तविक सुश्री फ़ोर्ब्स को आघात पहुँचता.
तब तक हम यह जान गए थे कि जब हम सोने के लिए बिस्तर पर चले जाते थे तो वे अपने शयन-कक्ष में नहीं जाती थीं बल्कि गोपनीय तरीक़े से अकेले में समुद्र में तैरने चली जाती थीं. कभी-कभी वे बैठक में देर तक जगी रह कर टेलीविजन पर आवाज़ बंद करके ऐसी फ़िल्में देखती थीं जिन्हें देखना नाबालिगों के लिए प्रतिबंधित था. अन्य रातों में वे पूरा केक खा जाती थीं, यहाँ तक कि बोतल की उस विशिष्ट शराब को भी पी जाती थीं जिसे पिता ने बड़ी लगन से ख़ास मौक़ों के लिए बचा कर रखा हुआ था.
सादगी और आत्म-संयम अपनाने की अपनी सीख के विरुद्ध जा कर सुश्री फ़ोर्ब्स एक अनियंत्रित सनक के तहत सब कुछ डकार जाया करती थीं. बाद में हमने उन्हें अपने कमरे में खुद से बातें करते हुए सुना. हमने उन्हें जर्मन भाषा में लय में ‘डाइ युंगफ़्राउ वॉन ओरलीन्स’ के पूरे उद्धरणों का पाठ करते हुए सुना. हमने उन्हें गीत गाते हुए और अपने बिस्तर पर सुबह तक सिसकते हुए सुना. फिर वह सुबह के नाश्ते के लिए उपस्थित हो जातीं. उनकी आँखें आँसुओं की वजह से सूजी हुई होतीं. वे पहले से अधिक उदास लगतीं.
मेरा भाई और मैं तब जितने दुखी थे, उससे अधिक दुखी कभी नहीं हुए, लेकिन मैं उन्हें अंत तक सहने के लिए तैयार था. दरअसल मैं जानता था कि हम कुछ भी करें, अंत में हमें उनकी बात माननी ही पड़ेगी. लेकिन मेरा छोटा भाई अपने व्यक्तित्व की सम्पूर्ण ऊर्जा के साथ उनका विरोध करता था. इसलिए प्रसन्नता की वे गर्मियाँ हमारे लिए नारकीय बन गईं. मोरे ईल की घटना तो ताबूत में अंतिम कील साबित हुई. उसी रात जब हम अपने बिस्तर पर लेट कर उस सुप्त मकान में सुश्री फ़ोर्ब्स के लगातार कमरों में आने-जाने की आवाज़ें सुन रहे थे, मेरे भाई ने अपने भीतर भरी सारी घृणा निकाल कर बाहर रख दी.
“मैं उन्हें जान से मार दूँगा.” उसने कहा.
मैं हैरान हो गया. मेरी हैरानी छोटे भाई के इस निर्णय को ले कर नहीं थी. मैं इसलिए हैरान हो गया क्योंकि रात के भोजन के समय से मैं भी यही सोच रहा था. किंतु मैंने भाई को ऐसा करने से मना किया.
“वे तुम्हारा सिर काट डालेंगे” मैंने उससे कहा.
“सिसिली में उनके पास कर्तन-यंत्र नहीं है,” उसने कहा. “इसके अलावा उन्हें यह पता ही नहीं चलेगा कि किसने उन्हें मारा.”
मैंने समुद्र-तल से निकाल कर बाहर लाए गए उस दोहत्थे कलश के बारे में सोचा जिसके तल पर घातक शराब अब भी मौजूद थी. मेरे पिता ने इस कलश को सम्हाल कर रखा था क्योंकि वे इसमें मौजूद शराब का विश्लेषण करके ज़हर की प्रकृति के बारे में जानना चाहते थे. उनके मुताबिक़ केवल समय बीतने की वजह से यह शराब ज़हरीली हो गई हो, ऐसा नहीं था. सुश्री फ़ोर्ब्स को वह शराब पिला देना बेहद आसान होगा और कोई सोच भी नहीं सकेगा कि वह कोई दुर्घटना या आत्म-हत्या नहीं थी. सुबह पौ फटने के समय हमने सुश्री फ़ोर्ब्स के थक कर बिस्तर पर लुढ़कने की आवाज़ सुनी. सारी रात जगे रहने के कारण वे थकान से चूर हो चुकी थीं. तब हमने कलश की ज़हरीली शराब को पिता की विशिष्ट शराब की बोतल में भर दिया. जहाँ तक हमने सुना था, उतनी ज़हरीली शराब एक घोड़े को मारने के लिए पर्याप्त थी.
हमने ठीक नौ बजे रसोई में सुबह का नाश्ता किया. सुश्री फ़ोर्ब्स ने स्वयं नाश्ते का वह सामान ला कर हमें खाने के लिए दिया जिसे फ़ुल्विया फ़्लैमिनिया सुबह-सुबह बना कर रसोई में रख गई थी. शराब की बोतल में हमारे द्वारा शराब बदल देने के दो दिन बाद जब हम नाश्ता कर रहे थे, मेरे छोटे भाई ने मायूस दृष्टि से मुझे बताया कि ज़हरीली शराब की उस बोतल को अब तक छुआ भी नहीं गया था. वह शुक्रवार की सुबह थी और वह बोतल अगले दो दिन भी अनछुई पड़ी रही. फिर मंगलवार की रात में सुश्री फ़ोर्ब्स ने उस बोतल की आधी ज़हरीली शराब टेलीविजन पर कामुक फ़िल्में देखते हुए पी डाली.
किंतु बुधवार को वे पहले की तरह ही ठीक समय पर हमारे साथ सुबह का नाश्ता करने के लिए आईं. हमेशा की तरह उनका चेहरा बता रहा था कि उनकी रात अच्छी नहीं कटी थी. मोटे शीशे वाले चश्मे के पीछे मौजूद उनकी आँखें हमेशा की तरह ही आशंकित और बेचैन लग रही थीं. और वे तब और घबराई हुई लगने लगीं जब उन्हें मेज़ पर जर्मनी का डाक-टिकट लगा हुआ एक लिफ़ाफ़ा दिख गया. वे कॉफ़ी पीते हुए वह पत्र पढ़ती रहीं, हालाँकि उन्होंने कई बार हमें बताया था कि खाना खाते समय हमें कोई और काम नहीं करना चाहिए. जब वे वह पत्र पढ़ रही थीं तो हमें ऐसा लगा जैसे हम लिखे हुए शब्दों से निकलने वाली रोशनी की कौंध को उनके चेहरे पर प्रतिबिंबित देख रहे हों. फिर उन्होंने लिफ़ाफ़े पर लगी जर्मन टिकटें उखाड़ लीं और मेज़ पर एक ओर रख दीं ताकि फ़ुल्विया फ़्लैमिनिया वे टिकटें अपने पति के लिए ले जा सके. वह डाक-टिकटें एकत्र करता था. हालाँकि उस दिन उनका शुरुआती अनुभव अच्छा नहीं रहा था, लेकिन इसके बावजूद वे समुद्र की गहराइयों की खोज में हमारे साथ रहीं. उस दिन हम समुद्र में तब तक गोताखोरी करते रहे जब तक हमारे ऑक्सीजन की टंकियों में मौजूद हवा ख़त्म नहीं होने लगी. उस दिन हम अच्छे व्यवहार के बारे में उनसे सीख लिए बिना ही घर चले गए. उस दिन सुश्री फ़ोर्ब्स न केवल सारा दिन रंगीन मनोदशा में रहीं बल्कि रात के भोजन के समय वे और अधिक जोश से भरी हुई लगीं. लेकिन मेरा भाई अपनी हताशा को और अधिक सहन नहीं कर सका. जैसे ही हमें भोजन शुरू करने का आदेश मिला, उसने एक भड़काऊ हरकत के साथ सेवइयों के शोरबे के कटोरे को पीछे धकेल दिया.
“यह कीड़े वाला पानी मेरी तबीयत ख़राब कर देता है,” उसने कहा. यह ऐसा था जैसे उसने मेज़ पर एक हथगोला फेंक दिया हो. सुश्री फ़ोर्ब्स का रंग पीला पड़ गया. उनके होंठ तब तक दबाव में कस गए जब तक उस काल्पनिक धमाके का धुआँ छँट नहीं गया. उनके चश्मे के शीशे आँसुओं से धुँधले हो गए. उन्होंने अपना चश्मा उतारा, अपने रुमाल से चश्मे के शीशे को पोंछा और एक लज्जास्पद हार की कड़वाहट के साथ रुमाल को मेज़ पर रखा. फिर वे खड़ी हो गईं.
“तुम लोगों का जो जी में आए, वह करो. अब यहाँ मेरा कोई अस्तित्व नहीं है.”
सात बजे के बाद से उन्होंने खुद को अपने कमरे में बंद कर लिया. लेकिन अर्द्ध-रात्रि से पहले उन्होंने सोचा कि हम सब सो गए थे. तब हमने उन्हें किसी स्कूली छात्रा की रात्रिकालीन पोशाक जैसे कपड़े पहने, आधा चॉकलेट-केक और बोतल में बची चार अंगुल ज़हरीली शराब को अपने शयन-कक्ष में ले जाते हुए देखा. मुझे उनके प्रति सहानुभूति की थरथराहट महसूस हुई.
“बेचारी सुश्री फ़ोर्ब्स,” मेरे मुँह से निकला. लेकिन मेरा छोटा भाई अब भी पहले वाली मनोदशा में ही था. “यदि वे आज रात नहीं मरीं तो बेचारे हम.” उसने कहा.
उस रात वे देर तक खुद से बातें करती रहीं. ज़ोर-ज़ोर से शिलर की कविताओं का पाठ करती रहीं. ऐसा लग रहा था जैसे पागलपन के दौरे की वजह से वे उन्मत्त हो गई हों. उनकी अंतिम चीख़ सारे मकान में गूँज गई. फिर उन्होंने अपनी आत्मा की अतल गहराइयों से निकलने वाली कई आहें भरीं और परास्त होकर बिस्तर पर गिर गईं, गोया वे इधर-उधर बहता कोई जहाज़ हों जो लगातार एक उदास भोंपू बजा रहा हो.
पिछली रात के तनाव से अब भी ग्रस्त जब हम सुबह उठे तो पर्दों के बीच से छनकर धूप कमरे के भीतर आ रही थी. किंतु ऐसा लग रहा था जैसे पूरा मकान किसी तालाब में डूबा हुआ हो. तब हमने पाया कि लगभग दस बज गए थे, लेकिन हमें सुश्री फ़ोर्ब्स की सुबह की दिनचर्या के मुताबिक़ नहीं जगाया गया था. हमें शौचालय में पानी के बहने की आवाज़ नहीं सुनाई दी. हमें नाली के पास टोंटी के चलने की आवाज़ नहीं सुनाई दी. हमें सुश्री फ़ोर्ब्स के कमरे में से पर्दों के खींचे जाने की कोई आवाज़ नहीं सुनाई दी. उनके चलने पर उनके जूतों की कठोर ठक्-ठक् की भी कोई आवाज़ हमें नहीं आई. हमने अपने दरवाज़े पर उनके हाथों की तीन दस्तक की आवाज़ भी नहीं सुनी. मेरे छोटे भाई ने अपनी साँस रोककर दीवार से अपना कान लगा दिया ताकि बग़ल वाले कमरे से आती जीवन की धीमी-सी आवाज़ को भी वह सुन सके. अंत में उसने आज़ादी की साँस ली.
“हाँ, सही है,” उसने कहा. “आप केवल समुद्र की लहरों की आवाज़ सुन सकते हैं.”
ग्यारह बजे से कुछ पहले हमने सुबह का अपना नाश्ता बना लिया. इससे पहले कि फ़ुल्विया फ़्लैमिनिया बिल्लियों की फ़ौज के साथ मकान की सफ़ाई करने के लिए आती, हम ऑक्सीजन की चार टंकियाँ ले कर समुद्र-तट पर पहुँच गए. ओरेस्टे पहले से ही गोदी पर मौजूद था. उसने छह पाउंड की एक मछली पकड़ ली थी जिसकी आँखों के पास सुनहरी धारियाँ थीं. वह उसकी आँतें निकाल रहा था. हमने उसे बताया कि हमने ग्यारह बजे तक सुश्री फ़ोर्ब्स की प्रतीक्षा की थी. चूकि वे तब भी सो रही थीं, हमने निर्णय लिया कि हम स्वयं ही समुद्र-तट पर चले आएंगे. हमने उसे यह भी बताया कि पिछली रात खाना खाने के समय उन्हें रोने का दौरा पड़ा था. शायद वे रात में ठीक से सो नहीं पाई थीं, इसलिए वे अब भी बिस्तर पर आराम कर रही थीं.
जैसी कि हमें उम्मीद थी, ओरेस्टे की रुचि यह सब सुनने में नहीं थी. अगले एक घंटे तक समुद्र-तल पर नायाब चीज़ें खोजने के समय वह हमारे साथ रहा. फिर उसने हमें दोपहर के भोजन के लिए वापस मकान पर लौट जाने के लिए कहा. और वह अपनी नाव ले कर सुनहरी धारी वाली मछली को पर्यटकों से भरे होटलों में बेचने के लिए चला गया. पत्थर की सीढ़ियों पर पहुँच कर हम उसकी दिशा में तब तक हाथ हिलाते रहे जब तक कि उसकी नाव खड़ी चट्टान के दूसरी ओर ओझल नहीं हो गई. उसे यह लगा होगा कि अब हम सीढ़ियाँ चढ़ कर मकान में चले जाएंगे. पर हमने अपनी ऑक्सीजन की टंकियाँ लीं और बिना किसी की अनुमति के समुद्र में फिर से गोताखोरी करने लगे.
उस दिन आकाश बादलों से ढँका हुआ था और क्षितिज पर उमड़ते-घुमड़ते काले बादलों के गर्जन की आवाज़ सुनी जा सकती थी. किंतु समुद्र साफ़-सुथरा और सपाट था और उसकी अपनी रोशनी पर्याप्त थी. हम पानी की सतह पर पैंटेलेरिया प्रकाश-स्तम्भ की ओर एक सीधी रेखा में तैरते चले गए. फिर हम वहाँ दाईं ओर मुड़े और हमने सौ मीटर की दूरी और तय की. ठीक इस जगह पर हमने पानी के भीतर गोता लगाया. यह हमारे अंदाज़े से वह जगह थी जहाँ हमने गर्मियों के शुरू में समुद्र-तट पर गोताखोरी करते हुए जहाज़ को नष्ट कर देने वाले गोले पड़े हुए देखे थे. वे टॉरपीडो अब भी वहीं पड़े हुए थे : छह टॉरपीडो. वे पीले रंग में रंगे हुए थे और उन पर लिखी हुई क्रम-संख्या अब भी अक्षुण्ण थी. वे ज्वालामुखी वाले समुद्र-तल पर इतने साबुत थे कि यह आकस्मिक नहीं लगता था. हम प्रकाश-स्तम्भ के इर्द-गिर्द पानी में चक्कर लगाते रहे. दरअसल हम वहाँ वह डूब गया शहर ढूँढ़ रहे थे जिसके बारे में फ़ुल्विया फ़्लैमिनिया हमें अक्सर बताया करती थी. उसकी बातें हमें विस्मित कर देती थीं. लेकिन हमें वह डूबा हुआ शहर वहाँ नहीं मिला. दो घंटे बाद हमें पूरा यक़ीन हो चुका था कि अब यहाँ समुद्र-तल पर ढूँढे़ जाने के लिए कोई रहस्यमयी चीज़ नहीं बची थी. तब बहुत कम ऑक्सीजन बची होने के कारण हम हाँफ़ते हुए ऊपर पानी की सतह पर लौट आए.
जब हम समुद्र में तैर रहे थे, वहाँ गर्मियों में अक्सर आ जाने वाला तूफ़ान आ गया. समुद्र में ऊँची लहरें उठने लगीं. खून की प्यासी चिड़ियों का एक समूह वहाँ आ पहुँचा. ये चिड़ियाँ क्रोधी स्वर में चीख रही थीं और समुद्र-तट पर तड़प रही मरती हुई मछलियों पर झपट्टे मार रही थीं. लेकिन सुश्री फ़ोर्ब्स की अनुपस्थिति में दोपहर की रोशनी हमें बिल्कुल नई लग रही थी और जीवन वाक़ई अच्छा लग रहा था. जब हम तेज हवा से जूझते हुए बड़ी चट्टान को काट कर बनाई गई सीढ़ियाँ चढ़ कर ऊपर आए, हमें अपने मकान के आगे लोगों की भीड़ दिखी. पुलिस की दो गाड़ियाँ भी मुख्य द्वार के पास ही खड़ी थीं. पहली बार हमें अपने किए का अहसास हुआ. मेरा छोटा भाई डर के मारे काँपने लगा और वह मुड़ कर वहाँ से भाग जाना चाहता था.
“मैं वहाँ भीतर नहीं जा रहा हूँ.” उसने कहा.
दूसरी ओर मेरे मन में यह भ्रामक धारणा थी कि यदि हम मृत देह को देखने जाएंगे तो कोई हम पर शक नहीं करेगा.
“आराम से रहो,” मैंने उससे कहा. “एक गहरी साँस लो और केवल एक बात सोचो : हमें इसके बारे में कुछ भी नहीं पता है.”
वहाँ किसी ने भी हमारी ओर ध्यान नहीं दिया. हमने गोताखोरी में इस्तेमाल की हुई अपनी टंकियाँ, नक़ाब तथा मीनपक्ष दरवाज़े पर ही छोड़ दिए और हम बग़ल वाले बरामदे में चले गए. वहाँ दो लोग एक तख़्ते के बग़ल में बैठकर सिगरेट पी रहे थे. तब हमने पाया कि पिछले दरवाज़े के बाहर अस्पताल ले जाने वाली एक गाड़ी खड़ी थी और वहाँ कई बंदूकधारी सैनिक भी मौजूद थे. बैठक में इलाक़े की औरतें दीवार से लगी कुर्सियों पर बैठ कर उपभाषा में प्रार्थना कर रही थीं जबकि उनके पुरुष आँगन में भीड़ की शक्ल में खड़े हो कर मृत्यु को छोड़कर अन्य सभी विषयों पर बातचीत कर रहे थे. मैंने अपने छोटे भाई के ठंडे हाथ और ज़ोर से दबाए और हमने पिछले दरवाज़े से मकान में प्रवेश किया. हमारे शयन-कक्ष का द्वार खुला हुआ था और वह ठीक उसी अवस्था में था जैसा हम उसे सुबह छोड़ कर गए थे..
हमारे कमरे के बग़ल में स्थित सुश्री फ़ोर्ब्स के कमरे के द्वार पर एक बंदूक़धारी सुरक्षाकर्मी तैनात था, लेकिन उस कमरे का दरवाजा खुला हुआ था. हम भारी मन से उस कमरे की ओर बढ़े. इससे पहले कि हमें उस कमरे में ध्यान से झाँकने का अवसर मिलता, फ़ुल्विया फ़लैमिनिया बिजली की गति से रसोई में से बाहर आई और उसने एक डरावनी चीख के साथ उस कमरे का दरवाज़ा बंद कर दिया.
“ईश्वर के लिए, छोटे बच्चों, उनकी ओर मत देखो!”
पर तब तक देर हो चुकी थी. अपने शेष जीवन में हम वह दृश्य कभी नहीं भूल पाएंगे जो हमने तेज़ी से गुजरने वाले पल में देखा. साधारण कपड़े पहने दो लोग बिस्तर से दीवार तक की दूरी नाप रहे थे. एक और व्यक्ति श्वेत-श्याम कैमरे से तस्वीरें खींच रहा था. बिस्तर पर सिलवटें पड़ी हुई थीं. किंतु सुश्री फ़ोर्ब्स उस पर नहीं थीं. वह सूखे खून के ताल में फ़र्श पर नग्न पड़ी हुई थीं. पूरे फ़र्श पर खून के निशान थे और उनकी देह पर छुरे के कई घाव थे. उनकी देह पर कटने के सत्ताईस जानलेवा निशान थे. घावों की संख्या और हमले की निर्दयता देख कर यह अंदाज़ा लगाया जा सकता था कि यह उन्मादी हमला किसी अतृप्त प्रेमी द्वारा किया गया होगा. सुश्री फ़ोर्ब्स ने भी बिना चिल्लाए या रोए हुए इस हमले को उसी भावावेश से सहा होगा.
संभवतः उस समय वे किसी सैनिक की सुंदर आवाज़ में जर्मन कवि शिलर की कविताओं का पाठ कर रही होंगी. तब उन्हें यह पता चल गया होगा कि अपनी सुखद गर्मियों की क़ीमत उन्हें ऐसे चुकानी पड़ेगी.
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सुशांत सुप्रिय
(जन्म: 28 मार्च, 1968)
कहानी संग्रह–
हत्यारे ( 2010 ), हे राम ( 2013 ), दलदल ( 2015 ), ग़ौरतलब कहानियाँ (2017), पिता के नाम (2017), मैं कैसे हँसूँ (2019), पाँचवीं दिशा (2020)
कविता संग्रह–
इस रूट की सभी लाइनें व्यस्त हैं (2015) , अयोध्या से गुजरात तक (2017) , कुछ समुदाय हुआ करते हैं (2019)
अनुवाद–
विश्व की चर्चित कहानियाँ ( 2017) , विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ ( 2017) , विश्व की कालजयी कहानियाँ (2017), विश्व की अप्रतिम कहानियाँ ( 2019), श्रेष्ठ लातिन अमेरिकी कहानियाँ (2019), इस छोर से उस छोर तक (2020).
अंग्रेज़ी व पंजाबी में भी लेखन–
अंग्रेज़ी में काव्य-संग्रह ‘इन गाँधीज़ कंट्री ‘ प्रकाशित तथा अंग्रेज़ी कथा-संग्रह ‘द फ़िफ़्थ डायरेक्शन ‘ प्रकाशनाधीन.
संप्रति : लोक सभा सचिवालय, नई दिल्ली में अधिकारी.
ई-मेल : sushant1968@gmail.com
मोबाइल : 8512070086
दरअसल मुझे अंग्रेज़ी अनुवाद से भी अच्छा लगा यह हिंदी अनुवाद। यह ख़ासियत कुछ तो हिंदी की होगी लेकिन मुझे लगता है सुशांत का अपना लहजा भी ख़ास है जो खड़ी बोली की सीमाओं को लांघने का ज़बरदस्त प्रयास करता है।
कुछ अनुवाद लकड़ी और पत्थर के बने हुए लगता है। इस अनुवाद में जलीय प्रतीति होती है। जैसे इंजन का तेल मलकर कोई पानी में उतर गया हो।
बधाई समालोचन को। और सुशांत को।