• मुखपृष्ठ
  • समालोचन
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • वैधानिक
  • संपर्क और सहयोग
No Result
View All Result
समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • बातचीत
    • संस्मरण
    • आत्म
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • अनुवाद
    • आलोचना
    • आलेख
    • समीक्षा
    • मीमांसा
    • बातचीत
    • संस्मरण
    • आत्म
    • बहसतलब
  • कला
    • पेंटिंग
    • शिल्प
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • नृत्य
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
No Result
View All Result
समालोचन

Home » रंग- राग : सुचित्रा सेन : सुशोभित सक्तावत

रंग- राग : सुचित्रा सेन : सुशोभित सक्तावत

अपनी रूप-छवि के भीतर भूमिगत नदी-सी सुचित्रा                  सुशोभित सक्तावत सुचित्रा सेन की अपरिभाषेय रूप-छवि के बारे में सोचते हुए हमेशा किसी भूमिगत नदी की याद आती है. भूमिगत धाराओं की थाह पाना तो दूर, उनकी टोह लगा पाना भी सुगम नहीं होता. आत्म-विलोपन का यही वह दुर्लभ […]

by arun dev
January 18, 2014
in Uncategorized
A A
फेसबुक पर शेयर करेंट्वीटर पर शेयर करेंव्हाट्सएप्प पर भेजें

अपनी रूप-छवि के भीतर भूमिगत नदी-सी सुचित्रा                 

सुशोभित सक्तावत





सुचित्रा सेन की अपरिभाषेय रूप-छवि के बारे में सोचते हुए हमेशा किसी भूमिगत नदी की याद आती है. भूमिगत धाराओं की थाह पाना तो दूर, उनकी टोह लगा पाना भी सुगम नहीं होता. आत्म-विलोपन का यही वह दुर्लभ गुण है, जिसने सुचित्रा सेन को एक पहेली बना दिया था. सुचित्रा ने एक बार कहा था : \’मैं एक अभिनेत्री हूं, आप मुझे परदे के सिवा और कहीं नहीं पा सकते.\’ यह सच है. आज सुचित्रा के बारे में सोचें तो पारो याद आती है, माया याद आती है, अर्चना और आरती याद आती हैं, लेकिन सुचित्रा तक हम नहीं पहुंच पाते. वे अपने भीतर बहती गुप्तधारा-सी थीं, त्वचा के तट पर उन्हें नहीं पाया जा सकता था.

सुचित्रा ने परदे पर एक अभिमानिनी नायिका के रूपक को साकार किया था. यह एक ऐसी नायिका थी, जो आत्मोत्सर्ग में सक्षम थी, किंतु इसमें भी उसका तीक्ष्ण आत्मचेतस एक अपूर्व कांति से दीपता था. \’कनुप्रिया\’ की तरह वह प्रेम करने में समर्थ थी तो उलाहना देने में भी. \’देवदास\’ में पारो की भूमिका निभाना जैसे उनकी नियति थी. पारो का आहत अहं \’देवदास\’ की अंतर्कथा है. याद करें वह दृश्य, जब पारो स्वयं को देवदास को सौंप देने के लिए उसके पास जाती है और देवदास उसे लौटा देता है. पारो का समूचा शेष-जीवन लौटने के इस क्षण का उत्तर-भाव है. याद रहे, देवदास की मृत्यु शराबनोशी से नहीं, पारो के उस अभाव से हुई थी, जिसे खुद उसने अपने एक असावधान निर्णय से रचा था. वह एक दोहरा ध्वंस था.

फिर, गुलजार की फिल्म \’आंधी\’ में सुचित्रा अभिमानिनी नायिका के इस रूपक को और आगे ले गईं. फिल्म में आरती देवी के पास एक दृढ़ देहभाषा है, जिसमें \’नो- नॉनसेंस\’ की एक लगभग एरोगेंट चेतावनी है. किंतु \’बारह बरस लंबी अमावस\’ को वह तब भी नहीं भूलती. इस लंबी अमावस के तमाम खोए हुए चंद्रमा उसकी आंखों के एक कतरे में चमकते हैं, किंतु उसका आत्माभिमान यथावत रहता है.

सन् 47 में दिबानाथ सेन से ब्याह रचाने के पांच वर्षों बाद सुचित्रा ने सिनेमा की दुनिया में प्रवेश किया और सफलतम पारी खेली. लेकिन 1978में \’प्रोणोय पाश\’ करने के बाद सिनेमा की दुनिया को उन्होंने अलविदा कहा तो उसके बाद सार्वजनिक रूप से कभी नजर नहीं आईं. वर्ष 2005 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार का प्रस्ताव उन्होंने महज इसीलिए ठुकरा दिया, क्योंकि इसके लिए उन्हें कोलकाता छोड़कर दिल्ली जाना पड़ता. राज कपूर की एक फिल्म में काम करने का प्रस्ताव इसलिए ठुकराया, क्योंकि राज कपूर द्वारा झुककर फूल देने का तरीका उन्हें पसंद नहीं आया था. सत्यजित राय उन्हें लेकर \’देवी चौधुरानी\’ बनाना चाहते थे, लेकिन सुचित्रा द्वारा इनकार करने के बाद उन्होंने यह फिल्म बनाने का विचार ही त्याग दिया! (अभिनेताओं के प्रति ऐसा आग्रह राय का शगल था. वे अकसर कहते थे कि यदि छबि बिस्वास उनकी फिल्म \’जलसाघर\’ में काम करने से इनकार कर देते तो वे यह फिल्म कभी नहीं बनाते.)

उत्तम कुमार और सुचित्रा सेन की जोड़ी एक जमाने में बांग्ला सिनेमा की सबसे लुभावनी जोड़ी थी. इन दोनों ने \’अग्निपरीक्षा\’, \’शाप मोचन\’, \’इंद्राणी\’, \’सप्तपदी\’ जैसी यादगार फिल्मों में काम किया. यह एक गर्वीला युगल था : अभिजात और आत्मबोध से भरपूर. इसकी तुलना \’अपुर संसार\’ और \’देवी\’ जैसी फिल्मों में सौमित्र चटर्जी और शर्मिला ठाकुर की जोड़ी से करें : एक सजल-माधुर्य जिनके प्रणय की अंतर्वस्तु रही. यह रोचक है कि सौमित्र चटर्जी \’चारुलता\’ और \’कापुरुष\’ में माधबी मुखर्जी के सम्मुख निष्प्रभ नजर आते हैं, जबकि उत्तम कुमार के साथ ढेरों हिट फिल्में देने वालीं सुचित्रा सेन अपनी सर्वश्रेष्ठ भूमिका का निर्वाह सौमित्र चटर्जी के समक्ष \’सात पाके बांधा\’ में करती हैं. पूछा जा सकता है कि क्या सौम्य सौमित्र और गर्वीली सुचित्रा रुपहले परदे पर एक-दूसरे के अधिक बेहतर पूरक नहीं थे? यह अकारण नहीं है कि बिमल रॉय की \’देवदास\’ में सौमित्र सरीखे ही अंतर्मुखी नायक दिलीप कुमार के समक्ष सुचित्रा की आभा निखर उठती है.

ब्रितानी फिल्म समालोचक डेरेक मैल्कमने कहा था : \’सुचित्रा के व्यक्तित्व में ऐसा जादू है कि उन्हें कैमरे के सामने अभिनय करने की आवश्यकता ही नहीं है. उनमें एक अपिरभाषेय ठहराव है.\’ कौन जाने, इस ठहराव के भीतर एक उद्दाम प्रवाह भी हो! भूमिगत धाराओं का विलुप्त हो जाना एक धोखादेह मिथक है, जिसका रंज मनाने की कोई तुक नहीं. यही कारण है कि आज सुचित्रा सेन के न रहने पर हम उनके द्वारा निभाए गए चरित्रों पारो, माया, आरती, अर्चना आदि को याद भर कर सकते हैं. इन चरित्रों को हम कभी भुला नहीं पाएंगे, और शायद इसीलिए उनके भीतर अंतर्धारा-सी मौजूद सुचित्रा सेन को भी नहीं.
___________
तेरे बिना जिंदगी से कोई शिकवा तो नही
 sushobhitsaktawat@gmail.com

ShareTweetSend
Previous Post

परख : पुस्तक परिदृश्य (२०१३) ; ओम निश्चल

Next Post

सहजि सहजि गुन रमैं : अहर्निशसागर

Related Posts

अमरकांत की कहानियाँ : आनंद पांडेय
आलोचना

अमरकांत की कहानियाँ : आनंद पांडेय

मिथकों से विज्ञान तक : पीयूष त्रिपाठी
समीक्षा

मिथकों से विज्ञान तक : पीयूष त्रिपाठी

ऋत्विक घटक का जीवन और उनका फिल्म-संसार : रविभूषण
फ़िल्म

ऋत्विक घटक का जीवन और उनका फिल्म-संसार : रविभूषण

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

समालोचन

समालोचन साहित्य, विचार और कलाओं की हिंदी की प्रतिनिधि वेब पत्रिका है. डिजिटल माध्यम में स्तरीय, विश्वसनीय, सुरुचिपूर्ण और नवोन्मेषी साहित्यिक पत्रिका की जरूरत को ध्यान में रखते हुए 'समालोचन' का प्रकाशन २०१० से प्रारम्भ हुआ, तब से यह नियमित और अनवरत है. विषयों की विविधता और दृष्टियों की बहुलता ने इसे हमारे समय की सांस्कृतिक परिघटना में बदल दिया है.

  • Privacy Policy
  • Disclaimer

सर्वाधिकार सुरक्षित © 2010-2023 समालोचन | powered by zwantum

No Result
View All Result
  • समालोचन
  • साहित्य
    • कविता
    • कथा
    • आलोचना
    • आलेख
    • अनुवाद
    • समीक्षा
    • आत्म
  • कला
    • पेंटिंग
    • फ़िल्म
    • नाटक
    • संगीत
    • शिल्प
  • वैचारिकी
    • दर्शन
    • समाज
    • इतिहास
    • विज्ञान
  • लेखक
  • गतिविधियाँ
  • विशेष
  • रचनाएँ आमंत्रित हैं
  • संपर्क और सहयोग
  • वैधानिक