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Home » अभिव्यक्ति की आज़ादी और आलोचनात्मक विवेक पर जारी हमले

अभिव्यक्ति की आज़ादी और आलोचनात्मक विवेक पर जारी हमले

\”The Making of India\”, Naresh Kapuria / via SAHMAT देश में उन्माद का वातावरण सकारण पैदा किया जा रहा है, जिससे कि जनता अपनी रोज़मर्रा की परेशानियों और उनके पीछे के उत्तरदायी कारणों को भूलकर छद्म किस्म की उत्तेजना में घिरी रहे. स्वाधीन चेतना और विवेक पर लगातार हमले हो रहे हैं.  आज असहमत होना देशद्रोही […]

by arun dev
October 6, 2016
in Uncategorized
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\”The Making of India\”, Naresh Kapuria / via SAHMAT
देश में उन्माद का वातावरण सकारण पैदा किया जा रहा है, जिससे कि जनता अपनी रोज़मर्रा की परेशानियों और उनके पीछे के उत्तरदायी कारणों को भूलकर छद्म किस्म की उत्तेजना में घिरी रहे. स्वाधीन चेतना और विवेक पर लगातार हमले हो रहे हैं. 
आज असहमत होना देशद्रोही होने का पर्याय हो गया है. मीडिया हठी और बर्बर मानसकिता का सौदागर बन चुका है. ऐसे में आलोचनात्मक चेतना के पोषण की सबसे अधिक जरूरत है.

समालोचन हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय में ‘द्रौपदी’ के मंचन को लेकर हुए हंगामें और इंदौर में इप्टा के राष्ट्रीय सम्मलेन में तोड़-फोड़ की कोशिश का पुरजोर विरोध करता है. और जनवादी लेखक संघ के  इस बयान के साथ खड़ा है.
______________________________


अभिव्यक्ति की आज़ादी और आलोचनात्मक विवेक  पर  जारी हमलों के ख़िलाफ़  एकजुट हों!




हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय में ‘द्रौपदी’ के मंचन को लेकर खड़ा किया गया हंगामा और इंदौर में इप्टा के राष्ट्रीय सम्मलेन में तोड़-फोड़ की कोशिश — हाल की ये दोनों घटनाएं बताती हैं कि राष्ट्रवादी उन्माद फैलाकर आलोचनात्मक आवाजों को दबा देने की नीति पर आरएसएस और उससे जुड़े अनगिनत संगठन लगातार, अपनी पूरी आक्रामकता के साथ सक्रिय हैं.
हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय में विगत 21 सितम्बर को महाश्वेता देवी को श्रद्धांजलि देते हुए उनकी विश्व-प्रसिद्ध कहानी ‘द्रौपदी’ का मंचन किया गया. यह कहानी कई विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रम में है और इसका नाट्य-रूपांतरण/मंचन भी अनेक समूहों द्वारा अनेक रूपों में किया जा चुका है. ‘महाभारत’ की द्रौपदी की याद दिलाती इस कहानी की मुख्य पात्र, दोपदी मांझी नामक आदिवासी स्त्री, सेना के जवानों के हाथों बलात्कार का शिकार होने के बाद उनके दिए कपड़े पहनने से इनकार कर देती है जो वस्तुतः अपनी देह को लेकर शर्मिन्दा और अपमानित होने से इनकार करना है. उसकी नग्नता उसके आत्मसम्मान का उद्घोष बनकर पूरे राज्यतंत्र को शर्मिन्दा करती है. जुलाई में दिवंगत हुईं महाश्वेता देवी को याद करते हुए इसी कहानी का मंचन हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय में किया गया. मंचन के दौरान शान्ति रही और नाटक को भरपूर सराहना मिली, लेकिन उसके बाद अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के लोगों ने भारतीय सेना को बदनाम करने की साज़िश बताकर इस मंचन के विरोध में हंगामा शुरू किया. आस-पास के इलाकों में अफवाहें फैलाकर समर्थन जुटाया गया, महाश्वेता देवी को राष्ट्रविरोधी लेखिका के रूप में प्रचारित किया गया, कुलपति के पुतले फूंके गए और विश्वविद्यालय प्रशासन के सामने यह मांग रखी गयी कि नाट्य-मंचन की इस ‘देशद्रोही’ गतिविधि के लिए ज़िम्मेदार लोगों के खिलाफ कार्रवाई की जाए. असर यह हुआ विश्वविद्यालय ने नाटक के मंचन से जुड़े शिक्षकों पर एक जांच कमेटी बिठा दी, जबकि इस मंचन के लिए न सिर्फ विश्वविद्यालय प्रशासन से पूर्व-अनुमति ली गयी थी बल्कि वहाँ मौजूद अधिकारियों ने मंचन की भूरि-भूरि प्रशंसा भी की थी.

अब अंग्रेज़ी विभाग के प्राध्यापक, सुश्री सनेहसता और श्री मनोज कुमार कार्रवाई के निशाने पर हैं और आरएसएस के आतंक का असर विश्वविद्यालय प्रशासन से लेकर शिक्षक समुदाय तक की किनाराकशी के रूप में दिख रहा है. दोनों शिक्षकों के खिलाफ आरएसएस का दुष्प्रचार-अभियान पूरे जोर-शोर से जारी है. ज़ाहिर है, उनकी कोशिश है कि इनके ख़िलाफ़ लोगों की भावनाएं भड़का कर इन पर दंडात्मक कारवाई के लिए विश्वविद्यालय को मजबूर किया जाए और यह सुनिश्चित किया जाए कि विश्वविद्यालय में आलोचनात्मक विवेक के लिए कोई जगह न बचे.
इसी कड़ी में 4 अक्टूबर को इंदौर में इप्टा के राष्ट्रीय सम्मलेन के तीसरे दिन हिन्दुत्ववादियों ने मंच पर चढ़कर हंगामा किया और इस पूरे आयोजन को राष्ट्रविरोधी देशद्रोही गतिविधि बताते हुए नारे लगाए. आयोजन-स्थल से खदेड़े जाने के बाद उन्होंने पत्थर भी फेंके जिससे इप्टा के एक कार्यकर्ता का सर फट गया. उनका आरोप यह था कि प्रसिद्ध फिल्मकार एम एस सथ्यू (‘गरम हवा’ के निर्देशक) ने अपने उदघाटन भाषण में पाकिस्तान में भारतीय सेना के घुसने की आलोचना करके राष्ट्र के खिलाफ काम किया है. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि वहाँ पिछले दो दिनों से चल रही नाट्य-प्रस्तुतियां राष्ट्रविरोधी और जातिवादी हैं. आरएसएस के मालवा प्रान्त के प्रचार प्रमुख प्रवीण काबरा ने यह बयान दिया कि ‘वे (इप्टा वाले) जन्मजात राष्ट्रविरोधी हैं.’ यह आयोजन-स्थल पर किये गए आपराधिक हंगामे का औचित्य साबित करने का तर्क था.

ये दोनों घटनाएं राष्ट्रवादी उन्माद फैलाकर आलोचनात्मक आवाजों का दमन करने की हिन्दुत्ववादी साज़िशों की ताज़ा कड़ियाँ हैं. जनवादी लेखक संघ इनकी भर्त्सना करता है और हरियाणा केन्द्रीय विश्वविद्यालय के शिक्षकों तथा इप्टा के साथियों के साथ अपनी एकजुटता व्यक्त करता है. पिछले साल अक्टूबर और नवम्बर के महीनों में लेखकों-संस्कृतिकर्मियों ने असहिष्णुता के इस माहौल के खिलाफ अपने सृजन-कर्म से बाहर जाकर अभिव्यक्ति के अन्य रूपों का भी सहारा लिया था. पुरस्कार वापस किये गए थे, सड़कों पर उतर कर नारे लगाए गए थे, अकादमियों पर सरकारी धमकियों के बरखिलाफ अपनी स्वात्तता बहाल करने/रखने का दबाव बनाया गया था. लेखकों, संस्कृतिकर्मियों, इतिहासकारों, वैज्ञानिकों और फ़िल्मकारों की उस मुहिम का सन्देश राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक पर प्रसारित हुआ था. ऐसी ही मुहिम की ज़रूरत दुबारा सामने है. हम लेखकों-संस्कृतिकर्मियों से अपील करते हैं कि इस माहौल के विरोध में अपनी आवाज़ बुलंद करें और अभिव्यक्ति की आज़ादी पर होने वाले हमलों का सीधा प्रतिकार करने के लिए एकजुट हों.
______________
जनवादी लेखक संघ
मुरली मनोहर प्रसाद सिंह (महासचिव)
संजीव कुमार (उप-महासचिव)

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