कोरोना ने विश्व और भारत में जो कत्लेआम मचा रखा है उसकी चपेट में साहित्य और कला जगत के बहुत से मूर्धन्य आ गये हैं और यह सिलसिला पता नहीं कब समाप्त होगा. उनमें से किसी पर भी अभी ढंग से स्मृति-लेख नहीं लिखा जा सका है.
भयानक व्यर्थता-बोध का एहसास तारी है? क्या लिखा जाए और किसके लिए लिखा जाए. यह सब मनुष्य के लिए ही है और जब मनुष्य ही संकट में हो तो क्या राज्य, क्या धर्म और क्या समाज?
‘सपरिवार’ उष्म एहसास है लेकिन जब आप कोरोना से सपरिवार घिर गये हैं तो यह त्रासद हो जाता है, यह महामारी पहले सबको सबसे अलग करती है फिर वध करती है.
यह शख्स भी इसकी चपेट में आ गया था. आपकी शुभकामनाओं से अब बाहर आ गया हूँ. मेरे जैसे न जाने कितने लोग निर्वासन में हैं और ऐसे में कुछ बेहतर पढ़ने को मिले तो हौसला बढ़ता है. हालंकि अभी थकान अटूट है फिर भी के पाठकों के लिए यह अद्भुत कहानी समालोचन प्रस्तुत कर रहा है.
आप अपना और दूसरों का ख्याल रखें यह संकट काल है.
इज़ाबेल अलेंदे
न्यायाधीश की पत्नी
अनुवाद: सुशांत सुप्रिय
निकोलस विडल यह बात हमेशा से जानता था कि उसकी मृत्यु का कारण कोई स्त्री बनेगी. जिस दिन उसका जन्म हुआ था, उसी दिन इसकी भविष्यवाणी कर दी गई थी. इस बात की पुष्टि किराने की दुकान चलाने वाली महिला ने भी कर दी थी, जब कॉफ़ी पीते हुए एकमात्र बार उसने उस महिला से अपनी क़िस्मत के बारे में बताने के लिए कहा था. लेकिन उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि वह स्त्री न्यायाधीश हिडेल्गो की पत्नी कैसिल्डा होगी. उसने उस स्त्री को पहली बार तब देखा था जब वह न्यायाधीश से ब्याह करने के लिए उस शहर में आई थी. वह स्त्री उसे आकर्षक नहीं लगी थी; वह ऐसी स्त्रियों को चाहता था जो श्यामला और निर्लज्ज होती थीं. लज्जालु आँखों व कोमल उँगलियों वाली यह पारभासी युवती किसी पुरुष को आनंद देने के अयोग्य प्रतीत होती थी. यह युवती उसे मुट्ठी भर राख की तरह अवास्तविक लग रही थी.
निकोलस अपनी क़िस्मत बहुत अच्छी तरह जानता था, इसलिए स्त्रियों के मामले में वह सतर्क और सावधान था. जीवन भर वह किसी भी तरह के भावनात्मक लगाव से दूर भागता रहा. उसने अपने हृदय को कठोर बना लिया था ताकि वह किसी भी स्त्री के प्रेम में न पड़े. वह अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए स्त्रियों के साथ जल्दबाज़ी में स्थापित किए गए यौन-सम्बन्धों तक सीमित रहा. उसे कैसिल्डा इतनी उपेक्षणीय और दूरस्थ लगी कि उसने उससे मिलने-जुलने में कोई सावधानी नहीं बरती. और जब निर्धारित पल आया, वह उस भविष्यवाणी को बिल्कुल भूल गया जिसे सम्मुख रख कर ही वह उस दिन तक अपने सारे निर्णय लेता रहा था. अपने दो आदमियों के साथ वह राजधानी में जिस भवन की छत पर सिकुड़ कर बैठा था, वहाँ से उसने उस युवती को उसके ब्याह वाले दिन कार से उतरते हुए देखा. उस युवती के साथ उसके परिवार के आधा दर्जन लोग थे. वे सभी उसके जैसे नाज़ुक और निस्तेज थे. वे सभी ब्याह के समारोह के दौरान खुद को पंखा झलते हुए संत्रास से भरे बैठे रहे और फिर कभी वहाँ न लौटने के लिए वापस चले गए.
शहर के अन्य नागरिकों की तरह विडल को भी पक्का विश्वास था कि नई दुल्हन शहर के मारक मौसम को नहीं झेल पाएगी और जल्दी ही शहर की वृद्धाएँ उसे दफ़्न करने का बंदोबस्त कर रही होंगी. यदि किसी तरह वह युवती उस गर्मी और धूल से बच भी गई जो त्वचा को झुलसा देती थी और सीधे हृदय पर वार करती थी , तो वह अवश्य ही अपने पति के वीभत्स हास्य और ब्याह से पहले की उसकी विक्षिप्त सनक की वजह से मृत्यु को प्राप्त होगी. जज हिडेल्गो की उम्र अपनी पत्नी से बहुत ज़्यादा थी. उसे बरसों से अकेले सोने की आदत थी. इसलिए वह यह नहीं जानता था कि उसे अपनी पत्नी को कैसे ख़ुश करना है. वह बेहद कठोर और हठधर्मी था और क़ानून को सख़्ती से लागू करने के दौरान कई बार वह अन्याय कर बैठता था. इसलिए समूचे राज्य में लोग उससे डरते थे. अपने फ़र्ज़ का पालन करने के दौरान वह सहृदयता के किसी भी तर्काधार की उपेक्षा कर देता था. इसलिए वह किसी मुर्गी चुराने वाले को भी उसी कठोरता से दंडित करता था जितनी कठोरता से वह साज़िश के तहत किसी की हत्या करने वाले के विरुद्ध कार्रवाई करता था.
हिडेल्गो बिल्कुल काले कपड़े पहनता था ताकि सभी को उसकी ज़िम्मेदारियों की प्रतिष्ठा का ध्यान रहे. इस शहर की धूल और गर्द के बावजूद उसके जूते इतने चमकते थे जैसे उन्हें मोम से पॉलिश किया गया हो. ऐसा व्यक्ति ब्याह करने के लिए नहीं बना होता— गपशप करने वाले लोग यह कहते. लेकिन उन दोनों के ब्याह के बारे में उनकी भविष्यवाणियाँ फलीभूत नहीं हुईं. इसके ठीक विपरीत कैसिल्डा सकुशलता से तीन बार गर्भवती हुई और संतुष्ट प्रतीत होती थी. हर रविवार वह अपने पति के साथ गिरिजाघर में बारह बजे की प्रार्थना-सभा में उपस्थित रहती थी. स्पेन का दुपट्टा ओढ़े वह बिल्कुल अविचलित लगती थी. कभी न समाप्त होने वाली गर्मियों का उस पर कोई असर नहीं होता था. किसी छाया की तरह वह विवर्ण प्रतीत होती थी. किसी ने भी कैसिल्डा से एक भीरु अभिवादन के अलावा कभी भी और कुछ नहीं सुना था. न ही किसी ने सिर हिलाने और क्षणिक मुस्कान के अलावा उस युवती का कभी भी कोई निर्भीक इशारा देखा था. वह बेहद हल्की प्रतीत होती थी जैसे लापरवाही के एक पल में वह भौतिकता से दूर हो गई हो. वह ऐसा प्रभाव देती थी जैसे वह वहाँ मौजूद ही न हो. इसलिए न्यायाधीश पर उसके ज़बर्दस्त प्रभाव को देख कर सभी आश्चर्यचकित रह जाते थे. उसके प्रभाव के अधीन न्यायाधीश में बहुत सारे विचित्र परिवर्तन देखे जा सकते थे.
हालाँकि उसका चेहरा अब भी शोकमय और रूखा था, अदालत में उसके फ़ैसलों ने अलग क़िस्म का मोड़ ले लिया. अदालत में आश्चर्यचकित रह गए मौजूद लोगों के सामने उसने अपने मालिक के घर चोरी करने वाले एक लड़के को बरी कर दिया. उसने अपने निर्णय के पक्ष में दलील दी कि तीन वर्षों तक उसके मालिक ने उसे बहुत कम वेतन दिया था. इसलिए जो धन-राशि लड़के ने चुराई थी , वह एक तरह का मुआवज़ा था. इसी तरह न्यायाधीश हिडेल्गो ने विवाह के बाद भी अवैध यौन-सम्बन्ध रखने वाली एक महिला को दंड देने से इंकार कर दिया. दलील में उसने यह कहा कि उस महिला के पति को अपनी पत्नी से यौन-सम्बन्धों में नैतिक ईमानदारी की माँग करने का कोई हक़ नहीं था क्योंकि वह स्वयं एक रखेल रखता था.
गपशप मारने वाले लोगों का कहना था कि अपने घर की चौखट लाँघते ही न्यायाधीश हिडेल्गो पूरी तरह बदल जाता था. वह अपने विषादमय कपड़े उतार फेंकता था, अपने बच्चों के साथ खेलता और हँसता था तथा किसी बाँके छैले की तरह कैसिल्डा के साथ मस्ती करता था. किंतु इन अफ़वाहों की कभी पुष्टि नहीं हुई. कारण जो भी रहा हो, न्यायाधीश की नई परोपकारिता का श्रेय उसकी पत्नी कैसिल्डा को मिला. हिडेल्गो की प्रतिष्ठा में इज़ाफ़ा हुआ. लेकिन निकोलस विडल इन सब बातों से उदासीन रहा क्योंकि वह क़ानून के घेरे से परे था. उसे पक्का यक़ीन था कि जिस दिन उसे हथकड़ियों और बेड़ियों में जकड़ कर न्यायाधीश के सामने लाया जाएगा, वह उस पर कोई दया नहीं करेगा. उसने उस सम्मानित महिला कैसिल्डा के बारे में उड़ रही अफ़वाहों पर कोई ध्यान नहीं दिया. दूरी से कुछ बार उसने उस महिला को देखा था. इससे उसके ज़हन में उस महिला की एक धुँधली भुतहा छवि के रूप में पुष्टि होती थी.
विडल का जन्म तीस वर्ष पहले शहर के एकमात्र वेश्यालय के एक बिना खिड़की वाले कमरे में हुआ था. उसकी माँ का नाम जुआना ला त्रिस्ते था और उसका पिता अज्ञात था. इस दुनिया में उसका कोई काम नहीं था और उसकी उदास माँ यह बात जानती थी. इसलिए उसने गर्भपात करने के लिए जड़ी-बूटियों, तथा प्रजनन-नलिका को सज्जीदार पानी से धोने जैसे अन्य क्रूर तरीक़ों का इस्तेमाल किया, किंतु वह नन्हा जीव अपनी जगह पर डटा रहा. बरसों बाद जुआना ला त्रिस्ते ने अपने बेटे के दूसरों से इतना अलग होने के बारे में सोचा तो उसने यह महसूस किया कि गर्भपात करने के उसके प्रचंड तरीक़ों ने उस नन्हे जीव को नष्ट कर देने की बजाए उसे ज़माने की कठिनाई झेलने के लिए तैयार कर दिया था. वह लोहे की कठोरता को भी सहने के योग्य बन गया था. जैसे ही उसका जन्म हुआ, दाई ने उसे रोशनी की ओर उठाया और यह पाया कि शिशु के चार चूचुक थे.
“बेचारा शिशु,” उस दाई ने भविष्यवाणी की.
“एक स्त्री इसकी मृत्यु का कारण बनेगी.”
उसे ऐसे मामलों का लम्बा अनुभव था.
ये शब्द लड़के के सीने पर विकलांगता के बोझ-से थे. किसी स्त्री का प्यार मिलने पर उसका जीवन शायद कम दुःखद होता. उसके जन्म से पहले ही उसे नष्ट कर देने के अनगिनत प्रयासों के एवज़ में उसकी माँ ने उसके लिए एक भला-सा सुनाई देने वाला पहला नाम और एक सम्मानित कुलनाम चुना. लेकिन राजकुमारों-सा यह नाम भी उस घातक अपशकुन को भगाने के लिए पर्याप्त न था. दस वर्ष का होते-होते लड़के के चेहरे पर असंख्य झगड़ों के दौरान लगे चाकुओं के अनगिनत निशान मौजूद हो गए. इसके कुछ समय के बाद उसने क़ानून से भगोड़े के रूप में अपना जीवन शुरू कर दिया था. बीस वर्ष की आयु में वह डाकुओं का दु:साहसी सरग़ना बन चुका था. हिंसा की आदत ने उसकी मांसपेशियों को मज़बूत बना दिया था. सड़कों पर लूट-मार करके वह क्रूर बन चुका था. और स्त्री का प्रेम मिलने पर मृत्यु हो जाने के भय ने उस अभिशप्त की आँखों का भाव एक ख़ास तरह का बना दिया था. शहर में जो भी उसे देखता था वह क़सम खा कर कह सकता था कि वह जुआना ला त्रिस्ते का बेटा था क्योंकि अपनी माँ की तरह उसकी आँखें भी बिन बहे आँसुओं से भरी थीं.
जब कभी उस इलाक़े में कोई कांड हो जाता तो नागरिकों के विरोध को शांत करने के लिए हथियारबंद सिपाही निकोलस विडल को ढूँढ़ निकालने के उद्देश्य से अपने प्रशिक्षित कुत्तों के साथ निकल पड़ते. लेकिन पहाड़ी इलाक़े तक कुछ चक्कर लगाने के बाद वे ख़ाली हाथ लौट आते. दरअसल वे उसे पकड़ना ही नहीं चाहते थे क्योंकि वे उससे युद्ध करने से कतराते थे. उसके गिरोह के कारनामों ने पूरे इलाक़े में उसके नाम का सिक्का जमा दिया था. यहाँ तक कि बड़े-बड़े ज़मींदार उसे अपने इलाक़े से दूर रखने के लिए बहुत सारी रक़म देते थे. इन ‘चंदों’की मदद से उसके गिरोह के लोग आराम से रह सकते थे, किंतु निकोलस विडल उन्हें मार-काट के हिंसक कामों में लगाए रखता था ताकि उनकी युद्ध करने की आदत को ज़ंग न लग जाए तथा उनकी कुख्याति कम न हो जाए. किसी की हिम्मत नहीं होती थी कि वह निकोलस विडल और उसके गिरोह के विरुद्ध खड़ा हो सके. एक-दो बार न्यायाधीश हिडेल्गो ने सरकार से सैनिक भेज कर उसके सिपाहियों की मदद करने की माँग की थी, किंतु कुछ निष्फल अभियानों के बाद वे सैनिक भी अपने शिविर में लौट गए थे और निकोलस विडल के विद्रोही वापस अपनी करतूतों में व्यस्त हो गए थे.
केवल एक बार निकोलस विडल क़ानून के शिकंजे में फँसने के क़रीब आया था. लेकिन कोई भी भावना महसूस न कर सकने के कारण वह बच गया. निकोलस विडल को क़ानून की पकड़ से बाहर देख कर न्यायाधीश हिडेल्गो हताश हो गया था. इसलिए उसने नैतिकता को परे हटा कर विडल को फँसाने के लिए एक चाल चली. न्यायाधीश को पता था कि क़ानून की निगाह में वह एक जघन्य हरकत करने जा रहा था किंतु दो बुराइयों में से उसने एक को चुना जो उसे कम बुरी लगी. एकमात्र प्रलोभन जो उसे सूझा वह विडल की माँ जुआना ला त्रिस्ते थी क्योंकि उसके परिवार में कोई और नहीं था, न ही उसकी कोई ज्ञात प्रेमिका थी. न्यायाधीश ने उसे वेश्यालय से उठवा लिया जहाँ वह फ़र्श और शौचालयों को साफ़ करने में अपना समय बिता रही थी क्योंकि इन दिनों ग्राहक उसकी तुच्छ सेवा के लिए पैसे देने के लिए तैयार नहीं थे. उसे एक बड़े-से पिंजरे में डाल कर प्लाज़ा दे अरमान के केंद्र में रख दिया गया. पिंजरे में उसे केवल एक मटका पीने का पानी दिया गया.
“जब उसका पीने का पानी ख़त्म हो जाएगा तो वह प्यास से तड़प कर चिल्लाएगी. तब उसका बेटा विडल उसे बचाने ज़रूर आएगा और मैं सैनिकों के साथ उसके आने की प्रतीक्षा कर रहा हूँगा.”
ऐसी यातना भगोड़े गुलामों के समय के बाद से अप्रचलित हो चुकी थी. इससे पहले कि उसकी माँ मटके में रखे पानी की अंतिम बूँद पी पाती, निकोलस विडल के कानों में उसकी यातना की ख़बर पहुँच चुकी थी. उसके गिरोह के सदस्य देखते रहे जबकि उसने शांतिपूर्वक उनके सामने यह ख़बर सुनी. उस एकाकी चेहरे के आवेगहीन मुखौटे पर कोई भावना व्यक्त नहीं हुई. वह शांतिपूर्वक अपने तने हुए चाकू की धार तेज़ करता रहा. पिछले कई वर्षों से उसने अपनी माँ जुआना ला त्रिस्ते को देखा भी नहीं था. उसके ज़हन में उसके बचपन की एक भी सुखद याद दर्ज नहीं थी. लेकिन यह भावना का प्रश्न नहीं था बल्कि यह तो मान-सम्मान पर आँच आने की बात थी. कोई भी व्यक्ति ऐसा अपमान नहीं सह सकता था— उसके गिरोह के सदस्यों ने सोचा. उन्होंने अपने हथियारों और घोड़ों को तैयार किया ताकि ज़रूरत पड़ने पर वे सब घात लगा कर बैठे न्यायाधीश के सैनिकों का मुक़ाबला करने के लिए जा सकें. उन्हें अपने प्राणों की प्रवाह नहीं थी. किंतु उनके गिरोह के सरग़ना ने जल्दबाज़ी करने का कोई संकेत नहीं दिया.
जैसे-जैसे समय बीतता गया, उसके गिरोह के सदस्यों में तनाव बढ़ता गया. पसीने से तरबतर उन्होंने आपस में निगाहें मिलाईं लेकिन कुछ भी बोलने की उनकी हिम्मत नहीं हुई. अपने घोड़ों को कमंद से पकड़े, अपनी रिवाल्वरों पर हाथ रखे प्रतीक्षा करते-करते वे थक गए. रात हो गई और उस ख़ेमे में निकोलस विडल ही एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जो चैन की नींद सोया. सुबह तड़के उसके गिरोह के सदस्यों की राय बँटी हुई थी. कुछ को भरोसा हो गया कि विडल उनकी कल्पना से अधिक बेरहम था. दूसरों का मानना था कि उनके गिरोह का सरग़ना अपनी माँ को बचाने की शानदार योजना बना रहा था. उसमें साहस की कमी होगी, यह बात किसी ने नहीं सोची क्योंकि पूर्व में उसने कई बार अपने साहस का परिचय दिया था. दोपहर होते-होते उनसे यह अनिश्चितता और नहीं सही गई. वे सभी विडल से पूछने के लिए गए कि इस के बारे में वह क्या करने वाला था.
“कुछ भी नहीं.” उसने कहा.
“लेकिन तब आपकी माँ का क्या होगा? “
“हम देखेंगे, किस में ज़्यादा मर्दानगी है! \”
बिना विचलित हुए निकोलस विडल ने जवाब दिया.
तीसरा दिन होते-होते जुआना ला त्रिस्ते ने रोना बंद कर दिया था, न ही वह पानी के लिए चीख रही थी. उसकी जीभ सूख कर अकड़ गई थी और उसके शब्द गले में ही दम तोड़ रहे थे. पेट में पड़े भ्रूण की तरह वह अपने पैर अपने सीने से लगाए पिंजरे में पड़ी हुई थी. उसकी आँखें भावशून्य थीं. पानी के अभाव में उसके होंठ सूजे और फटे हुए थे. नीम-बेहोशी की हालत में वह किसी जानवर की तरह कराह रही थी और बाक़ी बचे समय में उसे नर्क के दु:स्वप्न आ रहे थे. चार हथियारबंद सिपाही यह सुनिश्चित करने के लिए वहाँ तैनात थे कि कोई भी नागरिक उसे पानी न दे.
उस महिला का कराहना पूरे शहर में सुना जा सकता था. बंद दरवाज़ों और बंद खिड़कियों की दरारों में से हो कर वे कराहें घरों में प्रवेश कर रही थीं. हवा इस कार्य में सहयोग दे रही थी. वे कराहें घरों के कोनों से चिपकी हुई थीं. कुत्ते उन्हें अपने भौंकने में दोहरा रहे थे. नवजात शिशु उन कराहों की वजह से असहज महसूस कर रहे थे. उन कराहों को सुनकर लोगों की नसें तन जाती थीं. न्यायाधीश चौक से हो कर लोगों के लगातार गुजरने को नहीं रोक पाया था. वे लोग उस बूढ़ी महिला से सहानुभूति व्यक्त कर रहे थे. शहर की सभी वेश्याएँ उस सताई जा रही वृद्धा के समर्थन में हड़ताल पर चली गई थीं. खदानों में काम करने वाले श्रमिकों का वह वेतन-दिवस था. शनिवार को ये श्रमिक वेश्यालयों में जाया करते थे किंतु इस बार पैसे खर्च करके दिल बहलाने के लिए शहर में यह सुविधा उपलब्ध नहीं थी. पूरे शहर में केवल पिंजरे में पड़ी बूढ़ी औरत की दर्द भरी कराहों की चर्चा थी. नदी से लेकर राजमार्ग तक हर ओर उसके कराहने की आवाज़ मौजूद थी.
शहर के पादरी ने कुछ ख़ास लोगों के साथ न्यायाधीश हिडेल्गो से मुलाक़ात की और उसे ईसाई धर्म में परोपकार के मूल्य की महत्ता के बारे में बताया. पादरी ने न्यायाधीश से अपील की कि वह निर्दोष वृद्धा को शहादत देने की बजाए उसे पिंजरे से मुक्त कर दे. किंतु न्यायाधीश ने उनकी और बातें सुनने से इनकार कर दिया और दूसरे कमरे में जा कर उसने दरवाज़ा बंद कर लिया. जाते-जाते उसने शर्त लगाई कि एक दिन के भीतर विडल उसके जाल में फँस जाएगा. तब शहर के ख़ास लोगों ने इस के बारे में न्यायाधीश की पत्नी श्रीमती कैसिल्डा से बात करने का फ़ैसला किया.
न्यायाधीश की पत्नी ने अपने घर की अँधेरी बैठक में उन सब लोगों से मुलाक़ात की. वह चुपचाप उनकी दलीलें सुनती रही जबकि रिवाज़ के अनुसार उसकी निगाहें नीचे झुकी हुई थीं. उसका पति तीन दिनों से घर नहीं लौटा था. वह चौक पर पिंजरे के पास ही अपने दफ़्तर में बंद था. और मूर्खता भरे दृढ़ निश्चय से वह निकोलस विडल के वहाँ आने की प्रतीक्षा कर रहा था. बिना खिड़की पर गए भी कैसिल्डा को पता था कि वहाँ बाहर क्या हो रहा था. चौक पर पिंजरे में बंद उस वृद्धा की कराहों की आवाज़ कैसिल्डा के घर के बड़े-बड़े कमरों में भी प्रवेश कर चुकी थी. जब सभी आगंतुक लौट गए तो कैसिल्डा ने अपने बच्चों को बाहर जाने के कपड़े पहनाए और उनके साथ चौक की दिशा में निकल पड़ी. उसने जुआना ला त्रिस्ते के लिए एक टोकरी में खाना रखा हुआ था और एक बोतल में पीने का पानी. जब वह पिंजरे के पास आई तो सैनिकों ने उसे देख लिया और उसके वहाँ आने की मंशा भाँप ली. लेकिन उन्हें स्पष्ट निर्देश दिए गए थे और उन्होंने अपनी बंदूकें आगे करके कैसिल्डा को रोक दिया. जब उसने सैनिकों की बग़ल से गुज़र कर आगे बढ़ना चाहा तो एक सैनिक ने उसकी बाँह पकड़ ली. भीड़ आशा से भर कर उसे देखने लगी पर उसके बच्चे अब रोने लगे थे.
न्यायाधीश हिडेल्गो चौक पर स्थित अपने दफ़्तर में था. पूरे शहर में वह एकमात्र ऐसा व्यक्ति था जिसने अपने कान में रुई नहीं ठूँसी हुई थी क्योंकि उसका पूरा ध्यान घात लगा कर किए जाने वाले हमले पर स्थित था. उसने अपना पूरा ध्यान निकोलस विडल और उसके गिरोह के घोड़ों के आने की आवाज़ों पर केंद्रित किया हुआ था. तीन दिनों और तीन रातों तक उसने उस वृद्धा के रोने-बिलखने और कराहने की आवाज़ों को सुना था. इस पूरे समय में उसने लोगों द्वारा उसे दी गई गालियाँ भी सुनी थीं. लेकिन जब उसने अपने बच्चों के रोने की आवाज़ें सुनीं तो वह समझ गया कि वह अपनी सहनशक्ति की अंतिम सीमा पर पहुँच गया था. वह बुधवार से उगी हुई अपनी दाढ़ी लिए हुए न्यायालय ले बाहर निकल आया. उसकी आँखें लाल थीं. वह पूरी तरह से थक चुका था और हार का बोझ उसके कंधों पर मौजूद था. सड़क पार करके वह चौक तक आया और अपनी पत्नी की ओर चलने लगा. उन्होंने दु:ख भरी आँखों से एक-दूसरे की ओर देखा. सात वर्षों में यह पहली बार हुआ था जब उस स्त्री ने अपने पति का यूँ सामना किया था. और यह पूरे शहर के सामने हुआ था. न्यायाधीश हिडेल्गो ने अपनी पत्नी के हाथों में से खाने की टोकरी और पानी की बोतल ले ली. वह पिंजरे का दरवाज़ा खोलकर क़ैदी वृद्धा को खाना-पानी देने के लिए अंदर चला गया.
“मैंने तुम्हें कहा था, मेरे मुक़ाबले वह कहीं नहीं ठहरता!”
निकोलस विडल ने जब इस सारी घटना के बारे में सुना तो उसने हँसकर अपने गिरोह के सदस्यों से कहा.
लेकिन उसकी हँसी अगले ही दिन शोक में बदल गई जब उसे बताया गया कि उसकी माँ जुआना ला त्रिस्ते ने वेश्यालय के बिजली के खम्भे से लटक कर आत्म-हत्या कर ली. उसने अपना पूरा जीवन उसी वेश्यालय में बिताया था. दरअसल वह इस शर्म से उबर नहीं पाई कि उसके बेटे ने उसे शहर के बीच चौराहे पर पिंजरे में बंदी हालत में अकेला छोड़ दिया था और उसे बचाने नहीं आया था.
विडल ने क़सम खाई कि न्यायाधीश के दिन अब पूरे हो गए हैं. उसने योजना बनाई कि वह रात होते ही शहर पर हमला कर देगा. वह अचानक हमला करके न्यायाधीश को बंदी बना लेना चाहता था. उसकी योजना न्यायाधीश को एक शानदार तमाशे के तहत मार डालने की थी. फिर वह उसकी लाश को उसी पिंजरे में डाल कर लौट जाता ताकि पूरा शहर न्यायाधीश की लाश की दुर्गति देखता. किंतु उसे पता चला कि हिडेल्गो और उसका पूरा परिवार कुछ दिनों के लिए तट पर मौजूद एक स्वास्थ्य-केंद्र पर चले गए थे. हिडेल्गो उसके हाथों हुई अपनी पराजय से इसी तरह उबरना चाह रहा था.
निकोलस विडल उससे बदला लेने के लिए उसके पीछे आ रहा है, यह खबर न्यायाधीश हिडेल्गो को तब मिली जब वह तट के रास्ते में एक सराय में ठहरा हुआ था. सैनिकों की टुकड़ी के बिना वह जगह न्यायाधीश व उसके परिवार को पर्याप्त सुरक्षा नहीं प्रदान कर सकती थी. किंतु न्यायाधीश अपने परिवार के साथ कई घंटे पहले निकला था और उसकी कार विडल के घोड़ों से तेज चलती थी. न्यायाधीश आकलन करके इस नतीजे पर पहुँचा कि वह सही समय पर दूसरे शहर पहुँच कर वहाँ मौजूद और सैनिकों की मदद ले सकेगा. अपनी पत्नी और बच्चों को कार में बिठा कर वह तेज़ी से कार चलाते हुए अगले शहर के लिए निकल पड़ा. वह समय रहते ही वहाँ पहुँच जाता लेकिन यह तो विधि का विधान था कि उस दिन निकोलस विडल की मुलाक़ात उस महिला से होनी ही थी जिससे बच कर वह सारी उम्र भागता रहा था.
कई रातों तक न सो पाने के कारण, शहर के निवासियों की उसके प्रति शत्रुता के कारण, विडल के हाथों अपनी पराजय के कारण और अपनी और अपने परिवार की जान बचाने के लिए भागते रहने के कारण उपजे तनाव से न्यायाधीश का हृदय बहुत कमज़ोर हो चुका था. गाड़ी चलाते हुए ही उसे दिल का ज़ोरदार दौरा पड़ा और वह चल बसा. बिना चालक की कार एक पेड़ से टकरा कर लुढ़की और फिर रुक गई. श्रीमती कैसिल्डा को यह महसूस करने में एक-दो मिनट लग गए कि आख़िर हुआ क्या है. चूँकि उसका पति वृद्ध था, कैसिल्डा ने कई बार यह सोचा था कि यदि वह विधवा हो गई तो क्या होगा. किंतु उसने कभी यह नहीं सोचा था कि उसका पति उसे शत्रुओं के रहम पर छोड़ जाएगा. वह यह सब सोचने के लिए नहीं रुकी क्योंकि उसे अपने बच्चों का जीवन बचाने के लिए जल्दी ही कुछ करना था. उसने आस-पास मदद के लिए निगाह दौड़ाई. वह हताशा से लगभग रो ही पड़ी थी. उस उजाड़, बियाबान इलाक़े में दूर-दूर तक कहीं कोई इंसान नहीं था. वहाँ केवल बंजर पहाड़ और तपता हुआ सफ़ेद सूरज मौजूद थे. लेकिन ध्यान से देखने पर उसे कुछ दूरी पर एक गुफ़ा नज़र आई. वह अपने दो बच्चों के साथ गुफ़ा की ओर दौड़ पड़ी जबकि तीसरा छोटा बच्चा उसकी स्कर्ट पकड़ कर किसी तरह साथ-साथ भाग रहा था.
कैसिल्डा ने तीन बार गुफ़ा के मुहाने की चढ़ाई चढ़ी. एक-एक करके वह अपने तीनों बच्चों को गुफ़ा में ले गई. यह गुफ़ा उन पहाड़ों में मौजूद कई प्राकृतिक गुफ़ाओं में से एक थी. उसने गुफ़ा के भीतर जा कर यह सुनिश्चित किया कि वहाँ कोई जानवर मौजूद नहीं था. फिर बिना आँसू बहाए उसने बच्चों को चूम कर गुफ़ा के भीतर सुरक्षित बैठा दिया.
“कुछ ही घंटों में सैनिक तुम्हें ढूँढ़ते हुए यहाँ आ जाएंगे. तब तक कुछ भी हो जाए, गुफ़ा से बाहर मत आना. यदि मेरी चीखें सुनो, तब भी बाहर मत आना. समझ गए ?”
उसने बच्चों को समझाया.
बच्चे डर कर एक-दूसरे से चिपक गए. विदा लेने वाली एक अंतिम निगाह के साथ कैसिल्डा ढलान पर से नीचे उतर आई. वह कार तक पहुँची. उसने अपने मृत पति की खुली रह गई आँखें बंद कर दीं, अपने कपड़ों को ठीक किया और प्रतीक्षा करने के लिए वहीं बैठ गई. उसे यह नहीं पता था कि निकोलस विडल के गिरोह में कितने सदस्य थे. पर उसने प्रार्थना की कि वे संख्या में अधिक हों. वे संख्या में जितने अधिक होंगे, वे उससे मज़े लेने के लिए उतना ही अधिक समय लेंगे. उसने अपने हृदय को मजबूत किया और सोचने लगी कि उन सभी डाकुओं के उस पर एक-एक करके किए गए आघात से उसे मरने में कितना समय लगेगा. उसने चाहा कि वह कामुक और मज़बूत हो जाए ताकि वह ज़्यादा समय तक उन कामुक लुटेरों के प्रहार को झेल सके और इस तरह उसके बच्चों को बचने के लिए अधिक समय मिल जाए.
उसे ज़्यादा देर तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी. उसने जल्दी ही क्षितिज पर धूल का ग़ुबार देखा और दौड़ते हुए घोड़े की पदचाप सुनी. उसने अपने दाँत कस कर बंद कर लिए. उलझन में पड़ कर उसने देखा कि उससे कुछ मीटर दूर एक अकेला घुड़सवार पिस्तौल हाथ में पकड़े उसे ही देख रहा था. उसके चेहरे पर पड़े चाकुओं के निशान से वह पहचान गई कि वही निकोलस विडल था. उसने अकेले ही न्यायाधीश हिडेल्गो का पीछा करने का फ़ैसला किया था. यह उन दोनों के बीच निपटाने का एक निजी मामला था , इसलिए वह अपने गिरोह के सदस्यों को लेकर नहीं आया था. कैसिल्डा समझ गई कि अब धीरे-धीरे मरने की बजाए उसे ज़्यादा मुश्किल काम करना पड़ेगा.
न्यायाधीश पर एक निगाह डालते ही विडल समझ गया कि वह मौत की लम्बी नींद सो गया है और अब वह किसी भी तरह के दंड से दूर जा चुका है. लेकिन वहाँ कम होती रोशनी में तैरती-सी हुई उसकी पत्नी मौजूद थी. कैसिल्डा ने विडल से निगाहें नहीं चुराईं. न ही वह विडल को देखकर हिचकी. विडल रुक गया. जीवन में पहली बार कोई बिना डरे उसका सामना कर रही थी. कई पलों तक वे दोनों चुपचाप एक-दूसरे को देखते रहे. दरअसल वे एक-दूसरे की शक्ति को तथा अपनी दृढ़ता को नाप रहे थे. दोनों समझ गए कि आज उनका सामना एक तगड़े प्रतिद्वन्द्वी से हुआ है. निकोलस विडल ने रिवॉल्वर हटा लिया और कैसिल्डा मुस्कुराई.
न्यायाधीश की पत्नी ने अगले कुछ घंटों के हर पल पर पकड़ हासिल कर ली. उसने इंसानी सभ्यता की शुरुआत से प्रचलित हर तरह की मनमोहक और लुभावनी अदाएँ निकोलस विडल पर इस्तेमाल कीं. उसने कई नई तरह की मोहक अदाएँ भी दिखाईं ताकि वह विडल को पूरी तरह से संतुष्ट कर सके और उसके हर सपने पर खरी उतरे. उसने विडल की देह को हर प्रकार का आनंद दिया और एक प्रवीण संगीतज्ञ की तरह वह देह के हर साज को कुशलता से बजाती गई. उसमें हर प्रकार के छल-कपट का परिष्कार देखा जा सकता था.
दोनों को अहसास हो गया था कि इस खेल में दाँव पर उनका जीवन लगा हुआ था. इस जागरूकता ने उनकी आकस्मिक भेंट को एक तीव्रता प्रदान कर दी थी. निकोलस विडल अपने जन्म के समय से ही प्यार से भागता आया था. उसने कभी भी आत्मीयता, कोमलता, गुप्त हँसी, इन्द्रियों के सुख और एक प्रेमी के आनंद को महसूस नहीं किया था. हर मिनट के साथ सैनिक उनके क़रीब आते जा रहे थे. वे गोलियाँ चला कर विडल को मार डालते. लेकिन विडल इस विलक्षण महिला के भी बहुत क़रीब पहुँच चुका था. इसलिए उसने सैनिकों के बदले में वे उपहार ख़ुशी से स्वीकार कर लिये जो यह महिला उसे दे रही थी. कैसिल्डा एक सुशील और संकोची महिला थी. उसका विवाह एक सीधे-सादे वृद्ध से हुआ था जिसने उसे कभी नग्नावस्था में भी नहीं देखा था. उस पूरी यादगार दोपहर में वह भूली नहीं कि उसका मुख्य उद्देश्य ज़्यादा-से-ज़्यादा समय बर्बाद करना था ताकि सैनिक वहाँ समय रहते पहुँच जाए और उसके बच्चों की जान बच जाए. लेकिन आनंद की अनुभूति के किसी बिंदु पर उसने अपने तन-मन की गाँठें खोल दीं और अपनी कामुकता पर उसे अचंभा हुआ. बल्कि वह विडल का आभारी महसूस करने लगी. यही वह समय था जब उसे दूर से सैनिकों के आने की आवाज़ सुनाई दी. उसने विडल को भाग कर पहाड़ों में छिप कर अपनी जान बचाने के लिए कहा. लेकिन निकोलस विडल ने उसे अपनी बाँहों में भरे रहने को प्राथमिकता दी. उसने उस स्त्री को अंतिम बार चूमा. इस तरह वह भविष्यवाणी सच साबित हो गई जिसने उसके भाग्य को दिशा दी थी.
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सुशांत सुप्रिय
विश्व की चर्चित कहानियाँ ( 2017) , विश्व की श्रेष्ठ कहानियाँ ( 2017) , विश्व की कालजयी कहानियाँ (2017), विश्व की अप्रतिम कहानियाँ ( 2019), श्रेष्ठ लातिन अमेरिकी कहानियाँ (2019), इस छोर से उस छोर तक (2020) आदि अनुवाद की पुस्तकें प्रकाशित.
ई-मेल : sushant1968@gmail.com