२०१९ के साहित्य के नोबेल पुरस्कार के लिए जब ओल्गा टोकार्चूक (Olga Tokarczuk) के नाम की घोषणा हुई तो पहली प्रतिक्रिया यही थी कि अरे इन्हें तो २०१८ का बुकर (इंटरनेशनल) पुरस्कार मिला था. जिस तरह से ‘सलमान रुश्दी’ से भारतीय परिचित हैं ओल्गा से नहीं. रुश्दी भी इस सम्मान के लिए एक संभावित उम्मीदवार थे. वे पन्द्रहवीं लेखिका (स्त्री) हैं जिन्हें यह पुरस्कार मिला है.
उनके व्यक्तित्व, कृतित्व, बुकर और नोबेल पुरस्कारों पर विस्तार से चर्चा कर रहीं हैं विजय शर्मा
फ़्लाइट्स : घुमक्कड़ी को नोबेल
2018 का मैन बुकर इंटरनेशनल पुरस्कार जिसे मिला उसे 2018 का नोबेल पुरस्कार (इस साल 2019 में) भी मिला. इसे कहते हैं छप्पर फ़ाड़ कर मिलना. जी हाँ, मैं साहित्य के नोबेल पुरस्कार की 15वीं स्त्री और पोलिश की पाँचवें नोबेल विजेता की बात कर रही हूँ. समय के साथ नोबेल समिति के दृष्टिकोण में बदलाव हुआ है अब उन्हें स्त्री रचनाकार भी नजर आने लगी हैं.
‘‘जब मैंने ‘फ़्लाइट्स’ पर काम करना शुरु किया, मैं उपन्यास की एक नई शैली खोज रही थी.’’ कहना है 2018 की मैन बुकर इंटरनेशनल पुरस्कृत साहित्यकार का. वे अपने कार्य को खगोलीय रूपक देना पसंद करती हैं और इसकी व्याख्या करती हुई कहती हैं कि जैसे प्राचीन लोग आकाश में तारे देखते थे और उन्हें विभिन्न समूहों में बाँटते का तरीका खोजते थे, उन्हें जीवों या अंकों के आकार से संबंधित करते थे, उनका भिन्न-भिन्न अर्थ निकालते थे, उसी तरह वे अपने उपन्यासों को ‘तारामंडल उपन्यास’ कहना पसंद करती हैं. उनके उपन्यास पढ़ने के लिए पाठक का संस्कारित होना आवश्यक है. 2018 की मैन बुकर इंटरनेशनल व नोबेल पुरस्कार विजेता हैं, ओल्गा टोकार्चूक और उनकी जिस किताब को मैन बुकर इंटरनेशनल पुरस्कार के लिए चुना गया था, उसका नाम है, ‘फ़्लाइट्स’. मूल पोलिश भाषा में 2008 में प्रकाशित उपन्यास का नाम है, ‘बेगुनी’ (Bieguni) जिसका अर्थ होता है, घुमक्कड़, बंजारा, यायावर, जिप्सी. इंग्लिश अनुवादक ने इसे नाम दिया, ‘फ़्लाइट्स’.
मैन बुकर इंटरनेशनल प्राइज़ की शुरुआत 2005 में हुई. 2015 तक यह पुरस्कार द्विवर्षीय था और जीवित लेखक के कार्य को मिलता था (किसी एक किताब को अलग से नहीं), इंग्लिश में प्रकाशित या सामान्य तौर पर इंग्लिश अनुवाद में उपलब्ध कार्य को. निर्णायक स्वयं किताबें चुनते थे. 2016 से यह पुरस्कार वार्षिक हो गया है और लेखक की किसी एक पुस्तक को दिया जाने लगा है. इंग्लिश में अनुवाद होना, ब्रिटेन में प्रकाशन, शर्त अभी भी है. हाँ, अब 50,000 पाउंड की राशि लेखक और अनुवादक में बराबर बँट जाती है. अनुवादकों के लिए यह एक गौरवपूर्ण बात है. हाँ, शॉर्टलिस्टेड लेखक तथा अनुवादक को भी 1,000 पाउंड मिलता है. अर्थात पुरस्कार की कुल राशि अब 62,000 पाउंड है. निर्णायक मार्च महीने में 12-13 किताबें चुनते हैं और उसमें से 6 की शॉर्टलिस्ट एप्रिल में प्रकाशित होती है. जून 2019 से माइकेल मोरिट्ज़ के बी ई तथा उनकी पत्नी हेरिएट हेमैन का चैरिटेबल फ़ाउंडेशन ‘क्रैंकस्टार्ट’ द बुकर प्राइज़ तथा दि इंडरनेशनल बुकर प्राइज़ के नए सपोर्टर होंगे.
फ़िट्ज़कैराल्डो एडीशन्स द्वारा प्रकाशित ओल्गा टोकार्चूक के उपन्यास ‘फ़्लाइट्स’ को जेनीफ़र क्रोफ़्ट ने इंग्लिश में अनुवादित किया है. वे पोलिश, स्पैनिश और उक्रेनियन भाषा से इंग्लिश में अनुवाद करती हैं. पोलिश और अर्जेंटीना की साहित्यिक संस्कृति बहुत भिन्न है. अर्जेंटीना के लेखक बहुत स्वतंत्र होते हैं, जबकि पोलिश भाषा के लेखक कई सदियों की परम्परा से बँधे हुए, करीब-करीब दास जैसे हैं. ऐसा है क्योंकि उनके इतिहास भिन्न-भिन्न हैं. प्रथम विश्व युद्ध के बाद से पोलिश भाषा-साहित्य का मुख्य प्रोजेक्ट राष्ट्र का पुनर्निर्माण रहा है. सोवियत शासन के दौरान बहुत सारे उत्तम लेखकों ने देश बाहर रह कर लेखन किया. दोनों ही देश कैथोलिक देश हैं लेकिन दोनों की संस्कृति बहुत अलग-अलग है. लेकिन कुछ दिनों पूर्व यह विडम्बना है कि पोलैंड में पोलिश साहित्यिक लेखकों को प्रमोट करने का अनुदान का बजट काम कर दिया गया था इसीलिए ओल्गा की अनुवादक जेनीफ़र क्रोफ़्ट को अमेरिका पीईएन ने ओल्गा के ‘द बूक्स ऑफ़ जेकब’ के लिए ट्रांसलेशन फ़ंड ग्रांट मुहैय्या कराया ताकि किताब इंग्लिश भाषी पाठकों के समक्ष आ सके. जेनीफ़र क्रोफ़्ट को ओल्गा टोकार्चूक के काम का अनुवाद करना बहुत अच्छा लगता है, क्योंकि ओल्गा टोकार्चूक अपने चरित्रों से मनोवैज्ञानिक तरीके से व्यवहार करती हैं, उनका काम बहुत सटीक और प्रभावकारी है.
ओल्गा टोकार्चूक पोलैंड के सुलेशो नामक स्थान में 29 जनवरी, 1962 को जन्मी. उनके दो कहानी संग्रह और आठ उपन्यास प्रकाशित हैं. उनके साहित्य का विश्व की कई भाषाओं में अनुवाद हुआ है. उनका कहना है कि ‘फ़्लाइट्स’ बहुत सटीक लिखा गया है. यदि उन्हें यह फ़िर से लिखना पड़े तो भी वे उसको तनिक भी नहीं बदलेंगी. उन्हें पोलैंड के सर्वोच्च सम्मा न नाइके अवार्ड से दो बार (2008 तथा 2015 में) नवाजा जा चुका है. इसके साथ उन्हें बहुत सारे अन्य पुरस्कार-सम्मान प्राप्त हुए हैं. अब मैन बुकर इंटरनेशनल तथा नोबेल प्राइज़ प्राप्त होने से पूरी दुनिया से उन्हें बधाइयाँ मिल रही हैं जाहिर-सी बात है, उनके पाठकों की संख्या में अभूतपूर्व इजाफ़ा होगा.
निर्णायकों के अनुसार, ‘फ़्लाइट्स’ लगातार चलती रहने वाली समकालीन जीवन शैली है जिसका सार है, निरंतर चलते रहना, यह कभी अपने शरीर के बाहर नहीं जाने के बारे में भी है – शरीर जो स्वयं गतिशील है और अंतत: मरणशील है. यह किताब बंजारापन के बारे में है, यह पलायन के बारे में है, जगह-जगह लगातार यात्रा में होने के बारे में है और एयरपोर्ट्स पर जीने के बारे में है. इसके साथ ही हम एक शरीर में रहते हैं और शरीर का अंत मृत्यु में है, जिससे बच नहीं सकते हैं. साथ ही यह आश्चर्यजनक रूप से खिलंदड़ी है, विट तथा विडम्बना से परिपूर्ण.’ ओल्गा टोकार्चूक बुकर से नवाजी जाने वाली पहली पोलिश लेखक हैं.
टोकार्चूक विभिन्न अल्पसंख्यकों को स्वर देती हैं और खुद को सेंट्रल यूरोपियन लेखक मानती हैं जो पोलिश भाषा में लिखती हैं . 2017 के लंदन बुक फ़ेयर के ‘बाजार का फ़ोकस’ पोलिश भाषा थी. पुस्तक मेले में पोलैंड के पाँच पुरस्कृत साहित्यकार मौजूद थे. छठवीं भी वहाँ थी हालाँकि उनका पुरस्कार तब गर्भ में था. उस मेले में उन्होंने जो बात कही उससे हलचल मच गई. ओल्गा टोकार्चूक ने कहा कि वे भाषा को एक उपकरण की भाँति व्यवहृत करती हैं, काँटा-छुरी की तरह जब आपको यथार्थ खाना हो. ‘यूरोज़ीन’ में उन्होंने पोलिश भाषा के इतिहास, व्याकरण और उसकी यात्रा पर विस्तार से लिखा है.
अब ओल्गा टोकार्चूक के उपन्यास ‘द बुक्स ऑफ़ जैकब’ का जेनीफ़र क्रोफ़्ट द्वारा किया अनुवाद आ चुका है. 15 साल से ओल्गा के काम की अनुवादक होने के साथ-साथ उनकी मित्र भी हैं. उनके अनुसार इंग्लिश कार्य को अमेरिका तथा इंग्लैंड में प्रकाशित कराना टेढ़ी खीर रहा है. प्रकाशक ‘फ़्लाइट्स’ को प्रकाशित करने में हिचकिचा रहे थे. हिन्दी में उनकी कहानियों का एक संग्रह ‘कमरे तथा अन्य कहानियाँ’ नाम से प्रकाशित है.
2019 में ज्योंहि उन्हें 2018 का नोबेल दिए जाने की घोषणा हुई व्रोकोला शहर के अधिकारियों ने घोषणा की, इस वीकेंड में जो भी ओल्गा की किताब ले कर चलेगा वह पब्लिक ट्रांसपोर्ट में मुफ़्त यात्रा कर सकेगा. कुछ दिन पूर्व इस शहर ने उन्हें ऑनरेरी नागरिक बनाया है. वे अपना समय इस शहर और क्रैजानाव में बिताती हैं. नोबेल समिति ने उन्हें नोबेल दिए जाने की अनुशंसा में कहा,
‘ऐसी कथनात्मक कल्पनाओं के लिए जो विशाल भावातिरेक के साथ सीमाओं को लाँघते हुए जीवन की विधि को प्रस्तुत करता है.’
‘फ़्लाइट्स’ इक्कीसवीं सदी में यात्रा का और मानव शरीर-रचना का उपन्यास है. शरीर के अंगों को सुरक्षित रखने के विज्ञान से संबंधित इस उपन्यास में अलग-अलग कहानियाँ हैं जो आपस में संबंधित भी हैं. ओल्गा कहती हैं कि हम अपने शरीर के विषय में कितना कम जानते हैं. एक कहानी सत्रहवीं सदी के वास्तविक डच शरीर-विच्छेदन वैज्ञानिक फ़िलिप वेर्हेयिन की है जो अपनी विच्छेदित टाँग के चित्र बनाता है और इस प्रक्रिया में एचिलस टेन्डन को खोज निकालता है. अट्ठारहवीं सदी से एक कहानी है जिसमें उत्तरी अफ़्रीका में जन्में दास और ऑस्ट्रेलिया के कोर्ट में रहने वाले को मरने के बाद उसकी बेटी इस बात का जबरदस्त विरोध के बावजूद भुस भर कर प्रदर्शन के लिए रख दिया गया है. यहाँ शॉपिन का दिल है जिसे उसकी बहन एक मर्तबान (जार) में कस कर बंद कर अपने स्कर्ट में छिपा कर पेरिस से वार्सा ले जा रही है ताकि उसे वहाँ, उसके प्रिय स्थान में दफ़नाया जा सके. आज के उथल-पुथल वाले समय में एक पत्नी अपने एक बहुत उम्र दराज प्रोफ़ेसर पति के साथ यात्रा कर रही है जो यूनानी टापुओं पर क्रूज शिप पर एक कोर्स पढ़ा रहा है. एक पोलिश स्त्री जो किशोरावस्था में न्यू ज़ीलैंड प्रवास पर चली आई है, उसे पोलैंड लौटना है ताकि वह हाईस्कूल के अपने प्रेमी को जहर दे कर समाप्त कर सके क्योंकि वह अब लाइलाज बीमारी से ग्रसित है. एक युवा पति अपनी पत्नी और बच्चे के रहस्यमय ढ़ंग से गायब होने के कारण धीरे-धीरे पागलपन की ओर सरक रहा है और जिसकी पत्नी और बच्चा जैसे रहस्यमय तरीके से गयब हुए थे वैसे ही लौट आते हैं बिना कोई कारण बताए. उपन्यास आधुनिकता की सतह के पार जा कर मानव के स्वभाव की गहराइयों की सैर कराता है. हम धरती पर दूर-दूर तक घूम आते हैं यहाँ तक की चाँद पर भी चले जाते हैं मगर अपने ही जिगर के आकार को नहीं जानते हैं.
‘मोबी डिक’ को अपना पसंददीदा उपन्यास मानने वाली उपन्यासकार को इस बात से आश्चर्य होता है कि कैसे लोग शरीर से प्रारंभ कर शरीर विज्ञान तक पहुँचे. ‘फ़्लाइट्स’ छोटी-छोटी कहानियों का संग्रह है जो अंतर्गुंफ़ित हैं. ‘द वर्ल्ड इन योर हैड’, ‘योर हैड इन द वर्ल्ड’, ‘कैबिनेट ऑफ़ क्यूरिओसिटीज’, ‘एवरीव्हेयर एंड नोव्हेयर’, ‘द साइकॉलॉजी ऑफ़ एन आइइलैंड’, ‘बेली डान्स’, ‘प्लेन ऑफ़ प्रोफ़्लीगेट्स’, ‘एयर सिकनेस बैग्स’, तथा ‘एम्पीथियेटर इन स्लीप’ इसके विभिन्न भागों के उपशीर्षक हैं. उनकी रचनाओं में मिथकीय लहजा अनायास ही आ जाता है. ओल्गा के अनुसार हम एक ऐसी सनकी दुनिया में रह रहे हैं जहाँ उपन्यास की पुनर्परिभाषा आवश्यक है, आज शुरु से आखीर तक एकरैखीय शैली में कहानी कहना असंभव है.
नोवा रुडा के नजदीक एक छोटे से गाँव में रहने वाली ओल्गा टोकार्चूक के माता-पिता दोनों ही साहित्य के शिक्षक रहे हैं. उनके पिता पोलैंड के उस भाग से आए शरणार्थी थे जो आज युक्रेन का हिस्सा है. ये जिस टापू में रहते थे वहाँ वामपंथ के बौद्धिक रहते थे मगर ये लोग कम्युनिस्ट नहीं थे. ओल्गा साहित्य रचने के अलावा दूसरों के साथ मिल कर अपने घर के नजदीक साहित्यिक समारोह भी मनाती हैं, एक निजी प्रकाशन गृह ‘रुटा’ चलाती हैं. वे ‘द ग्रीन’ पोलिटिकल पार्टी की सदस्य हैं तथा वामपंथी विचारों का पोषण करती हैं. ‘तारामंडल उपन्यास’ (कॉस्टेलेशन नॉवेल) का प्रारंभ उनके 2003 में लिखे उपन्यास ‘हाउस ऑफ़ डे, हाउस ऑफ़ नाइट’ से हुई जिसका इंग्लिश अनुवाद 2008 में आया. 1996 में उनका उपन्यास ‘प्राइमेवल एंड अदर टाइम्स’ प्रकाशित हुआ जिसका इंग्लिश अनुवाद 2009 में प्रकाशित हुआ. इंग्लिश में भले ही ओल्गा टोकार्चूक की ख्याति अब हो रही हो लेकिन अपने देश में एक्टिविस्ट ओल्गा बहुत पहले से सेलेब्रेटी और कॉन्ट्रोवर्सियल रही हैं. उनके मुँह से निकले शब्द अखबारों की हेडलाइन्स बनते हैं. घोषित नारीवादी एवं शाकाहारी ओल्गा स्वयं को वे देशभक्त मानती हैं, उनका कहना है कि आज समय आ गया है जब हमें यहूदियों का पोलैंड के साथ संबंध देखना है.
मनोविज्ञान को अपने लेखकीय कार्य की प्रेरणा मानने वाली ओल्गा ने लिखना प्रारंभ करने के पूर्व वार्सा यूनिवर्सिटी से मनोविज्ञान में शिक्षा प्राप्त की. वे स्वयं को काएल जुंग का शिष्य मानती हैं. शिक्षा के बाद उन्होंने एक संस्थान में युवाओं की व्यावहारिक समस्याओं के लिए थेरिपिस्ट का काम प्रारंभ किया लेकिन शीघ्र ही उन्होंने यह काम छोड़ दिया, उन्हें लगा कि वे खुद अपने मरीजों से अधिक न्यूरोटिक हैं. असल में वे अपने एक मरीज के साथ काम कर रही थीं और तब उन्हें लगा कि वे मरीज से ज्यादा परेशान हैं, और पाँच साल के बाद वे यह काम छोड़ कर लिखने की ओर मुड़ गई. उन्होंने अपने साथी मनोवैज्ञनिक से शादी की और उनका एक बेटा है.
इसके बाद वे पूरे समय भाषा को एक मिशन की तरह प्रयोग करने के लिए लिखने में जुट गईं. उनका काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ और जल्द ही ‘द जर्नी ऑफ़ द पीपुल ऑफ़ द बुक’ नाम से एक उपन्यास भी. यह उपन्यास 17वीं सदी के फ़्रांस में स्थापित है और इसके लिए उन्हें डेब्यू बेस्ट लेखक का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ. अपनी उम्र के तीसरे दशक के मध्य में उन्हें लगा कि एक ब्रेक की जरूरत है, उन्हें घूमना चाहिए. कम्युनिस्ट शासन के दमन से छुटकारा पाने का यह एक अच्छा उपाय था. वे निकल पड़ीं. तायवान से ले कर न्यू ज़ीलैंड तक की उन्होंने यात्राएँ कीं. इन्हीं यात्राओं का प्रतिफ़ल है ‘फ़्लाइट्स’. उनके लेखन पर कई अन्य लेखकों के अलावा मिलान कुंडेरा का प्रभाव माना जाता है.
बचपन में टेबल के नीचे छुप कर दूसरों की बात सुनने वाली ओल्गा टोकार्चूक को जब नोवा रुडा की सम्मानित नागरिकता प्रदान की गई तो ‘नोवा रुडा पेट्रिओट्स एसोशिएशन’ ने उन पर आक्रमण किया और चाहा कि उनसे यह सम्मान वापस ले लिया जाए. इन लोगों का मानना है कि ओल्गा ने पोलिश राष्ट्र का नाम कलंकित किया है. उन्हें देशद्रोही माना. 900 पन्नों के उपन्यास ‘द बुक्स ऑफ़ जेकब’ के बाद उन्हें मारने की धमकियाँ मिलने लगीं. स्थिति इतनी बिगड़ गई कि उनके प्रकाशक को उनकी सुरक्षा के लिए बॉडीगार्ड रखने पड़े. इस उपन्यास के बारे में उनका कहना है, उन्होंने इतिहास के उस अध्याय को खोला जो कई दृष्टियों से निषिद्ध था. जिसे कैथोलिक, यहूदियों तथा कम्युनिस्टों ने छिपा रखा था. इस उपन्यास को लिखने के लिए उन्होंने आठ लंबे साल शोध किया.
कुछ दिनों के बाद वे एक अन्य विवाद में फ़ँस गई. उनके 2009 के उपन्यास ‘ड्राइव योर प्लॉ ओवर द बोन्स ऑफ़ द डेड’ पर पोकोट (इंग्लिश में स्पूर) नाम से एक फ़िल्म बनी. इसे बर्लिन फ़िल्म फ़ेस्टिवल में दिखाया गया और इसे सिल्वर बेयर का सम्मान मिला. इसकी पटकथा स्वयं उन्होंने फ़िल्म निर्देशक एज्निस्ज़्का हॉलैंड के साथ मिल कर लिखी है. इस फ़िल्म को पोलिश न्यूज एजेंसी ने ईसाइयत के खिलाफ़ और पर्यावरण आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली कहा. इसमें सुदूर गाँव में रहने वाली एक सनकी वृद्धा की जिंदगी को उथल-पुथल होते दिखाया गया है. असल में जब यह स्त्री पहले एक पड़ौसी, फ़िर पुलिस चीफ़ और इसके बाद एक बड़े स्थानीय व्यक्ति को वह बुरी तरह चीथ कर मरा हुआ पाती है तो उसकी जिंदगी में भूचाल आ जाता है.
लेखन को हथियार मानने वाली ओल्गा का पुरस्कृत उपन्यास ‘फ़्लाइट्स’ बताता है, कैसे यायावरी और उसके विपरीत स्थिरता से संबंध बनाया जाता है. इसी को ले कर कहानियाँ रची गई हैं. रूसी अनुष्का समर्पित गृहिणी है, अपने बीमार बेटे की सेवा में लगी हुई, प्रेम विहीन दाम्पत्य में फ़ँसी हुई. वह एक अंधेरे-हताशा भरे सोवियत अपार्टमेंट में रहती है. सप्ताह में एक दिन उसकी सास बच्चे की देखभाल के लिए आती है तो वह घर के कई काम निपटाने शहर जाती है. एक बार वह अपनी अपंग जिंदगी से भाग निकलती है लेकिन उड़ान भरने के बाद उसे मालूम नहीं है कहाँ जाए. गृहविहीन वह कई दिन मेट्रो में चक्कर लगाती रहती है. उपन्यास ऐसी ही अलग-अलग तरह की यात्राओं से परिपूर्ण है. ऐसी ही एक पर्दानशीन स्त्री एकालाप करती रहती है. उसका स्वर बहुत शक्तिशाली है. शायद इसीलिए इस लेखिका को ‘थिंकिंग’ उपन्यासकार की श्रेणी में रखा जाता है. उपन्यास में मेन्गेले जैसा डॉक्टर ब्लाऊ है जिसे शरीर के अंगों को काटना भाता है. अगर उसका बस चलता तो वह भिन्न दुनिया बनाता जहाँ आत्मा मर्त्य होती, क्या काम है आत्मा का? क्यों चाहिए होती है यह हमें? और शरीर अमर्त्य होता.
‘लिखने के बिना मैं जिंदा नहीं रह सकती हूँ, क्योंकि और कुछ नहीं कर सकती हूँ’, ‘लिखने के साथ जिम्मेदारी आती है.’ कहना है ओल्गा का. ओल्गा टोकार्चूक हमारे संशयग्रस्त भविष्य में नजरे गड़ाये हुए हैं जहाँ हम तेजी से भाग रहे हैं. उनके अनुसार वे यहूदियों के साथ पोलैंड के रिश्ते को नई रोशनी में देखना चाहती हैं. चाहती हैं, लोग स्वीकारें कि उनके भीतर यहूदी रक्त है, पोलिश संस्कृति मिश्रण है. उन्हें लगता है कि समाज दो भाग में विभक्त है, लोग जो पढ़ सकते हैं, लोग जो नहीं पढ़ सकते हैं. उनके अनुसार आज लोग यात्राएँ कर रहे हैं, विदेशों में बस रहे हैं. आर्थिक कारणों तथा इंटरनेट देश की सीमाओं को नहीं स्वीकारता है. हम घर बैठे ही विभिन्न नेटवर्क प्रोवाइडरों के बीच घूमते रहते हैं. उनके अनुसार आप ‘फ़्लाइट्स’ को पुराने यूरोप के एक गीत की भाँति भी पढ़ सकते हैं. एक अनाम स्त्री के साथ बेचैनी के साथ दुनिया की यात्रा कर सकते हैं. उपन्यासकार ने मानव शरीर संरक्षण के बारे खूब ज्ञान इकट्ठा किया है. उनकी यह यात्री जिस स्थान पर जाती है वहाँ के म्युजियम में संरक्षित मानव शरीर, भ्रूण को देखना नहीं भूलती है. वे शरीर संरक्षण के बारे में भी काफ़ी कुछ बताती हैं. ओल्गा की किताबें मिश्रित संस्कृति, पोलैंड का सर्वोत्तम इश्तेहार हैं. अब उन्हें नोबेल मिला है तो उन पर नए सिरे से काम होगा.
अब नोबेल की ख्याति विवादास्पद रचनाकारों को पुरस्कृत करने के लिए भी होने लगी है. 2019 के लिए पीटर हैंडके को साहित्य का पुरस्क्राक दिया है, वे भी बहुत विवादित रहे हैं. उन्होंने पहले खुद भी नोबेल पुरस्कार की आलोचना करते हुए 2014 में कहा था कि साहित्य का नोबेल पुरस्कार बंद हो जाना चाहिए क्योंकि जिसको भी ये मिलता है, लगता है मानो, उसको संत की झूठी उपाधि मिल जाती है. और अब यह संत की झूठी उपाधि पा कर वे कैसा अनुभव कार रहे हैं जानना रोचक होगा. खैर, समालोचन के माध्यम से दोनों विजेताओं – ओल्गा टोकार्चूक तथा पीटर हैंडके को बधाई!
विजय शर्मा