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Home » कथा – गाथा : प्रेमचंद सहजवाला

कथा – गाथा : प्रेमचंद सहजवाला

चर्चित कथाकार प्रेमचंद सहजवाला का नया उपन्यास – नौकरीनामा बुद्धू का नमन प्रकाशन, दिल्ली से शीघ्र प्रकाशनाधीन है. उपन्यास के इस अंश में कार्यालयी राग अनुराग और उसकी सीमा का दिलचस्प  चित्रण है. उपन्यास : नौकरीनामा बुद्धू का : प्रेमचंद सहजवाला       आखिरी दोस्ती अमिता गई तो उसकी जगह आ गई मीता! अमिता से ‘अ’ कट […]

by arun dev
August 3, 2012
in Uncategorized
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चर्चित कथाकार प्रेमचंद सहजवाला का नया उपन्यास – नौकरीनामा बुद्धू का नमन प्रकाशन, दिल्ली से शीघ्र प्रकाशनाधीन है. उपन्यास के इस अंश में कार्यालयी राग अनुराग और उसकी सीमा का दिलचस्प  चित्रण है.


उपन्यास : नौकरीनामा बुद्धू का : प्रेमचंद सहजवाला      
आखिरी दोस्ती

अमिता गई तो उसकी जगह आ गई मीता! अमिता से ‘अ’ कट गया यानी मीता तो ऐसी महिला निकली जो समर्थ सर से कहती कि ‘सर, आप नीचे कम्प्यूटर पर जा कर अपने लेटर क्यों टाईप करते हैं! आप मुझे दे दिया कीजिये न, यही तो मेरी ड्यूटी है!’ बुद्धू को अमिता कितनी बड़ी राहत दे गई!

मीता की एक पहचान यह कि उन्हीं हिंदी कार्यक्रमों में मीता कविता प्रतियोगिता में हिस्सा लेती तो हमेशा फर्स्ट आती. वैसे सरकारी विभाग में कोई अधिक कवि ववि होते नहीं. अधिकांश यूं ही कुछ पंक्तियाँ घसीट कर आ जाते हैं. पर मीता एक प्रतिष्ठापित कवयित्री थी जिसकी कविताएं अक्सर पत्रिकाओं में भी प्रकाशित होती रहतीं और उसका एक कविता संग्रह भी निकल चुका था. मीता अति सुंदर नारी थी.  कद लंबा और बहुत स्वीट आवाज़, मधुर से उच्चारण. बालों की बनावट अति आकर्षक और ड्रेस ऐसा अप टु डेट कि आने जाने वाले उसे देखते रहने को अनायास रुक जाते. उसका मैनरिज़्म बहुत आला स्तर का, लगता ही न था कि वह एल डी सी है. अपनी सीट पर बैठी होती तो लगता जैसे बहुत अमीर घराने की कोई मालकिन वालकिन है.  और बुद्धू की उस से बहुत जल्द अच्छी सी दोस्ती हो जाना भी स्वाभाविक सा था.  जनरल सेक्शन में टिप्पिणियाँ होने लगीं कि इन दो दो बुद्धिजीवियों की अच्छी दोस्ती पनप रही है. अपने लेटर टाईप करवाने के बहाने समर्थ सर यहाँ काफी देर बैठे रहते हैं. जनरल सेक्शन में भी चार बजे के बाद लगभग हर कोई दुकान बंद कर के खिसक जाता है और मीता अकेली बैठ अपने लेटर टाईप कर रही होती या चुपचाप बहुत मूड में कोई कविता बना रही होती. उसे खिड़की से ही काफी दूर, मेन गेट के बाहर सड़क नज़र आ जाती जहाँ उसकी चार्टर्ड बस पौने छः बजे ही आ कर उसे जल्दी जल्दी आने को मानो बुलाती रहती. वह अपना पर्स समेटती फ़ौरन गेट पर पहुँच चार्टर्ड बस में बैठ जाती. वहाँ भी वह सौम्य तरीके से बैठ कर कोई मैगज़ीन खोल लेती.
बुद्धू एक दिन मीता से कहने लगा – ‘कितना बड़ा  सौभाग्य है मेरा, कि हिंदी की इतनी सुंदर कवयित्री से मेरी दोस्ती है!’
मीता बोली – ‘मतलब, कविताएँ सुंदर हैं या कवयित्री!’

‘हाहा,’ बुद्धू कहकहा लगा कर हंस पड़ा. बोला – ‘सुंदर महिला के लिए तो दरअसल कोई और ही अति सुंदर कविताएं लिखता है. पर आप इतनी मारक प्रेम कविताएं भी लिखती हैं और आप स्वयं हैं भी अतिसुंदर!…’


मीता बोली – ‘यानी मैं तो अतिसुंदर हूँ, मेरी कविताएं मारक होती हैं!’
बुद्धू मीता के चेहरे की प्रखरता को देखता रहता. कहता – ‘कोई शक?’


बुद्धू एक दिन बोला – ‘मैं देश से जुड़ी कई किताबें पसंद करता हूँ, जैसे ‘कश्मीर’ पर ‘बाबा साहेब’ पर या ‘गाँधी’ पर. आप पढ़ती हैं काव्य ही काव्य.  एक दिन चलिए न, यहाँ से ऑटो पकड़ कर जोर बाग के मशहूर ‘बुक शॉप’ में चलते हैं. आप मुझे पुस्तकें भेंट करो मैं आप को!’


मीता हंस पड़ी – ‘यहाँ दिल्ली जैसे ऑफिस में कोई किसी के साथ कहीं जाती नज़र आई न, लोग उसकी हालत खराब कर देंगे सर, अपना कामकाज ही भूल जाएंगे. सब लोग ऊंची ऊंची सैलरी वाले हो गए, पर हैं वही पुराने ज़माने के बुज़ुर्ग, हेडक्लर्किया दिमाग वाले!’


पर बुद्धू और मीता का जिस दिन बाहर जाना हुआ, वह दुर्भाग्य से बहुत अप्रिय, और शोर भरा सा दिन रहा और जाने कैसे, इतने शोरगुल में दोनों बाहर निकल सके थे; उस दिन इस विभाग के लगभग सभी नारी पुरुष बिल्डिंगों के बाहर खड़े थे और बुलंद आवाज़ों में नारे लग रहे थे – ‘सुंदरम को डिसमिस करो… सुंदरम को डिसमिस करो…’


लिफ्ट की तरफ जाने से पहले ही मीता और बुद्धू मीता वाले कमरे की खिड़कियों से चकित से नीचे देख रहे थे. मीता बोली – ‘चलिये जाने क्या बात है, नीचे तो चलें.’
दोनों लिफ्ट में आ गए और तीसरी मंज़िल पर लिफ्ट रुकी तो उसमें दो तीन पुरुष अंदर आ गए. मीता बोली – ‘क्या हो गया है?’

‘आपको पता ही नहीं? सुंदरम एक नंबर का बदमाश निकला. वो जो सामने वाली बिल्डिंग के ग्राऊंड फ्लोर में उसके साथ के सेक्शन वाली लेडी है न, जो उसके क्वार्टर के साथ वाले क्वार्टर में ही रहती है?…’ बताने वाला उत्तेजना में बता रहा था.
‘यू मीन लता!’

‘हाँ हाँ वही, उसी को सेक्शन में पकड़ का चूम लिया सुंदरम बदमाश ने!’
मीता ने बहुत आलोचनात्मक तरीके के भाव बनाए और निंदा में ही आँखें मूँद लीं. तब तक लिफ्ट का दरवाज़ा ग्राऊंड फ्लोर पर खुल गया और सब बाहर आ गए. पुरुष तेज़ तेज़ जा कर उस क्राऊड में मिले जो नारे लगा रहा था – ‘सुंदरम को डिसमिस करो… सुंदरम को…’


बुद्धू और मीता जा कर क्राऊड के किनारे किनारे खड़े हो गए, जैसे अपने मूड से बाहर निकलने की अनिवार्यता उन्हें समझ आ गई हो. पर जब उन्हें लगा कि यह प्रदर्शन काफी देर तक चलेगा और कुछ लोग तितर बितर भी होने लगे तो दोनों स्वयं भी पिछले वाले गेट से बाहर निकल आए. पीछे बचा क्राऊड अभी भी नारे लगा रहा था – ‘सुंदरम को डिसमिस करो…सुंदरम को…’ मीता लताम्मा के बारे में सोचने लगी थी, जाने कहाँ है वह.
* *

जोर बाग के ‘बुक शॉप’ वाला मालिक सरदारजी इस समय दुकान से कहीं गया था और दरबान ने बताया कि ‘थोड़ी देर में आ जाएँगे, ज़रा खान मार्केट तक गए हैं…’
मीता और बुद्धू तब तक एक बहुत सुंदर से एयर कंडीशंड रेस्तरां में बैठ गए. जोर बाग भी बहुत अमीर लोगों की कॉलोनी है. यहाँ करोड़ों करोड़ों की तो कोठियां हैं और चीज़ों के दाम आकाशीय.
मीता बोली – ‘ज़्यादा सरप्राईज़ नहीं हूँ मैं लताम्मा वाली घटना पर!’
‘मतलब?’ बुद्धू कुछ समझा नहीं.

‘मतलब क्या. जिस क्वार्टर में लताम्मा रहती है, उसमें पहले उसके फादर रहते थे. अचानक जब ऐक्सीडेंट में लताम्मा के फादर की डेथ हो गई तब सुंदरम ही हस्पताल में भागदौड़ करता रहा था. हॉस्पिटल की सब फॉर्मलिटीज़ पूरी कर के वह डेड बॉडी ले आया था लताम्मा और उसकी मां के पास. फिर लताम्मा को नौकरी दिलाने में भी सुंदरम ने कम भगदड़ नहीं की क्योंकि कभी कभी किसी की डेथ हो जाए तो उसके घर के किसी मेंबर को भी नौकरी दे देती है सरकार.  वैसे उम्र का तो बहुत फर्क है!’ कोल्ड कॉफी आ गई तो मीता का ध्यान फिलहाल आए हुए गिलासों की तरफ चला गया और वह उन ठंडे गिलासों को अँगुलियो से पकड़ पकड़ कर अपनी अँगुलियों को ठंडक पहुँचाने लगी. 

उसी प्रकार कोल्ड कॉफी के गिलास को पकड़ कर उसी तरह अपनी हथेली को ठंडाता बुद्धू बोला – ‘इस समय तो लताम्मा नज़र ही नहीं आ रही थी वहाँ?’
‘आपको पता ही नहीं चला न. कुछ लेडीज़ ने बताया कि आज बाई चांस लताम्मा और सुंदरम अपने अपने सेक्शनों में काफी जल्दी आ गए थे. आए भी साथ साथ थे. कई दिन लोगों ने देखा भी कि साथ साथ आते हैं और साथ साथ वापस जाते भी हैं अक्सर. लताम्मा तो आज क्वार्टर से सुंदरम के साथ आई और सीधी सुंदरम के सेक्शन में ही चली गई कि हमारी एक फाईल बहुत दिन से आप के यहाँ पेंडिंग है. वह तो दे दीजिए न और लताम्मा के साथ सेक्शन में पहुँचते ही सुंदरम ने क्या किया कि…’


‘उसे घेर लिया और चूम लिया…’
‘ह्म्म्म. पर अब यह हाल है कि लताम्मा सब लेडीज़ से लड़ झगड़ कर अपने क्वार्टर चली गई कि सुंदरम उसका मुजरिम है, वह ही उसे ठीक करेगी. उसकी गलती का अहसास कराएगी. इतना हंगामा करने की ज़रूरत क्या है!’
बुद्धू बोला – ‘पिछले साल भी यहाँ एक घटना घट गई थी न?’
‘ह्म्म्म. तब वो मामला और था. तब तो जो ए सी डी के के सिंह है उसकी पी.ए लिफ्ट में जा रही थी और लिफ्ट में सिर्फ प्रशासन सेक्शन का देबू था. शरीफ आदमी है और अचानक लिफ्ट में अँधेरा हो गया था. लिफ्ट फंस गई थी. अँधेरे में ही गलतफहमी गलतफहमी में देबू का हाथ उस मगरूर औरत के कपोल को टच कर गया और उस पी.ए. चन्द्रिका ने देखते देखते दफ्तर भर की लेडीज़ इकठ्ठा कर ली. देबू ने एक एक को समझाया कि वह अँधेरे में कोई अलार्म बटन ढूंढ रहा था या कोने में लटकता टेलीफोन. पर पी.ए. चन्द्रिका बड़ी मगरूर निकली. देबू का तो बेचारे का देखते देखते हो गया ट्रांसफर और चन्द्रिका इतने से भी संतुष्ट न थी और एक दिन पति को ले आई और किसी बहाने देबू को बाहर ले जा कर उसे अपने पति से पिटवाया तक!’
‘पता है, देबू की वाईफ ऑफिस आई थी, कह रही थी देबू तो कभी उसे भी हाथ नहीं लगाता, सो वह लिफ्ट में फंसी एक औरत को कैसे छेड़ेगा! हाहा…’ कह कर बुद्धू हँसने लगा पर मीता ने उसका साथ नहीं दिया.
* *

आखिर दोनों दो दो किताबें एक दूसरे को गिफ्ट कर के जोर बाग से लौट कर गेट में प्रविष्ट हुए तो पता चला कि सुंदरम का भी ट्रांसफर कर दिया गया है  लताम्मा ऐडमिनिस्ट्रेशन से लड़ने गई है कि सुंदरम का अगर ट्रांसफर हुआ तो वह रिज़ाइन कर देगी क्यों कि सुंदरम उसका दोस्त है और उसके ट्रांसफर से सुंदरम की वैवाहिक ज़िंदगी पर भी असर पड़ेगा.

गेट से बिल्डिंग की तरफ बढ़ते बढ़ते बुद्धू बोला – ‘प्यार तो अपने आप हो जाता है न. कहते हैं एफर्ट लगा के तो किया ही नहीं जाता प्यार!’

बुद्धू इतने भोलेपन से बोला कि मीता को मन ही मन तो हंसी आ गई पर बाहर से वह सख्त सी बोली – ‘इतनी घिसी पिटी बात आज के दिन कहने का मतलब? ह्म्म्म?? मैं फिर नहीं चलूँगी कभी आपके साथ समझे आप?’

‘मैं तो जनरल बात बोला था.’ बुद्धू ने फिर भोलेपन से कहा पर मीता अब सचमुच की सख्ती से बोली – ‘चुप रहना बेहतर है, समझे आप!’
कुछ ही देर बाद दोनों लिफ्ट में थे पर आज जिस क्षण से दोनों गए उस क्षण से बुद्धू की नज़र मीता के चेहरे से हट ही नहीं रही थी, ऐसा जादुई सा है उसका चेहरा! यह मीता भी लक्ष्य कर रही थी पर वह कुछ भी कहने से खुद को खूब नियंत्रित किये थी. फिर अचानक ऊपर जाती लिफ्ट में बुद्धू बोला – ‘हमने किताबें तो आदान प्रदान की, पर किताबों पर लिखा तो नहीं कि विद लव टु… लिख कर ही तो किताब गिफ्ट की जाती है न?’

मीता को सचमुच बुद्धू के बुद्धूपने पर खूब हंसी आ रही थी. पर वह होंठों को भींच कर चुप रही. पर बुद्धू उस चेहरे के प्रति अपनी भावना को न रोक सका और अचानक मीता में बौखलाहट सी पैदा करता बोला – ‘चाहे तो मेरे खिलाफ भी तुम पूरा दफ्तर इकठ्ठा कर लो, नारे लगवा लो, ट्रांसफर करा दो, पर मैं अब नहीं रह सकूंगा…’ और मीता एकदम यह देख सकते में आ गई कि बुद्धू ने तीसरी मंज़िल से विदा लेती लिफ्ट में अचानक उसकी गर्दन के गिर्द बांह का घेरा डाल कर मीता के अति सुंदर चेहरे पर एक चुंबन सा जड़ दिया. तब अगले ही क्षण मीता को इतना गुस्सा आ गया कि उसने बुद्धू की  पूना की काश्मीरा की याद ताज़ा कर दी. बल्कि काश्मीरा ने तो पर्ल होटल में सब से नज़रें बचा कर उसे बाएं हाथ से हल्का सा एक तमाचा रसीद किया था और यहाँ मीता ने इतनी ज़ोर का थप्पड़ दाएं हाथ से बुद्धू को रसीद किया कि उस थप्पड़ की आवाज़ उस बंद लिफ्ट में बुरी तरह गूँज गई.

बुद्धू कुछ दिन तो मीता से खूब डरा रहा. उसे हर समय लगता कि उसके खिलाफ भी दफ्तर में नारे लग रहे हैं. पर मीता चुपचाप उसके भेजे हुए लेटर टाईप कर के चपरासिन के हाथ उसकी सीट पर भेज देती. बुद्धू वे लेटर चेक करता और उसे लगता कि मीता शायद हर समय इसी बात की खैर मनाती होगी कि वह उसकी सीट पर अब नहीं जाता. पर एक दिन वह न रह सका और सब के बीच ही अपना अपमान करवा आया बुद्धू. जनरल सेक्शन में जा कर वह मीता के सामने चुपचाप खड़ा हो गया और अपनी वाली फाईल की तरफ देख कर अपनी बंद ज़बान से सिर्फ इतना ही कह पाया – ‘ये तीनों लेटर हो गए!’

मीता का रूप देखने लायक था. उसने क्या किया कि बुद्धू की फाईल हाथ में उठाई और बेहद अनियंत्रित से गुस्से में वह फाईल उठा कर हवा में फेंक दी. फाईल एक जगह गिरी और उसमें रखे तीनों पत्र हवा में फरफराते ज़मीन को  अलग अलग जगहों से स्पर्श करने लगे. मीता बोली ‘सर मैं क्या आप की पी.ए. हूँ कि हर समय आप ही के लेटर टाईप करती रहूँ? मेरे पास और काम नहीं है क्या? आई हेट युअर मेथड्स!!’

बुद्धू ने चुपचाप फाईल और पत्र तो उठा लिए पर सेक्शन में बैठे लोग इस तमाशे से खूब खुश से हुए वर्ना इन दोनों की दोस्ती के चर्चे भी सब की ज़बान पर थे, बल्कि सब को कई दिन से यह खलने भी लगी थी. मीता इस के पंद्रह दिन बाद बुद्धू की सीट पर आई थी, जब बुद्धू निपट अकेला था. बुद्धू के सामने मीता हाल ही में छपी कविताओं की अपनी दूसरी पुस्तक चुपचाप रखती बोली – ‘मुझे क्षमा कर दें सर, मेरा बिहेवियर उस दिन बहुत खराब था. पर मैं क्या करती? जिस प्यार की आप बात कर रहे थे, वह क्या औरतों को नहीं हो सकता? पर कितनी तो बेड़ियों में जीती हैं हम सर, कितना कुछ हो जाता है जब कोई रिश्ता अचानक किसी दिशा में आगे बढ़ने लगे. यह पूरा सिस्टम अकेला नहीं है सर, इस सिस्टम के बाहर पूरे समाज का सिस्टम है. वह यह सब बर्दाश्त नहीं करेगा. जब तक कोई परिवर्तन आएगा तब तक एक सदी बीत चुकी होगी सर. मुझे माफ कर दीजिए…’ और बुद्धू को बुरी तरह चकित करते मीता ने सचमुच उसके सामने अपने दोनों हाथ जोड़ दिये और खड़ी हो गई. फिर चुपचाप चली भी गई. इस पूरी नौकरी के दौरान शायद बुद्धू की यह आखिरी दोस्ती थी, जिसके बाद मानो वह इस पूरे सिस्टम को समझ ही गया था! बुद्धू ने वह किताब खोली, पर उसमें किताब उपहार में देने संबंधी कोई संदेश आज भी नहीं लिखा था!…
____________________________________
प्रेमचन्द सहजवाला  की एक  कहानी एडमीशन यहाँ पढ़ी जा सकती है
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