पंजाबी भाषा के चर्चित कवि गुरप्रीत की चौदह कविताओं का हिंदी अनुवाद रुस्तम सिंह ने कवि की मदद से किया है. हिंदी के पाठकों के लिए इतर भाषाओँ के साहित्य का प्रमाणिक अनुवाद समालोचन प्रस्तुत करता रहा है, इसी सिलसिले में गुरप्रीत की ये कविताएँ हैं. विषय को कविताओं में बरतने का तरीका सधा हुआ […]
पंजाबी भाषा के चर्चित कवि गुरप्रीत की चौदह कविताओं का हिंदी अनुवाद रुस्तम सिंह ने कवि की मदद से किया है.
हिंदी के पाठकों के लिए इतर भाषाओँ के साहित्य का प्रमाणिक अनुवाद समालोचन प्रस्तुत करता रहा है, इसी सिलसिले में गुरप्रीत की ये कविताएँ हैं. विषय को कविताओं में बरतने का तरीका सधा हुआ है. ये कविताएँ बड़ी गहरी हैं और इनमें मनुष्यता की गर्माहट है. हिंदी में महाकवि ग़ालिब पर अच्छी–बुरी तमाम कविताएँ लिखी गयीं, पर इस कवि की ‘ग़ालिब की हवेली’ कविता बांध लेती है. एक कवि को दूसरे कवि से इसी तरह मिलना चाहिए.
गुरप्रीत की इन कविताओं के लिए कवि रुस्तम का आभार.
गुरप्रीत की कविताएँ
(पंजाबी से अनुवाद : कवि और रुस्तम सिंह द्वारा)
रातकीगाड़ी
अभी-अभीगयीहै
रातकीगाड़ी
मैं गाड़ीपरनहीं
उसकीकूकपरचढ़ता हूँ
मेरेभीतरहैं
असंख्यस्टेशन
मैंकभी
किसीपरउतरताहूँ
कभी किसी पर
पत्थर
एकदिन
नदीकिनारेपड़ेपत्थरसे
पूछताहूँ
बननाचाहोगे
किसीकलाकारकेहाथों
एककलाकृति
फिर तुझेरखाजाएगा
किसीआर्टगैलरीमें
दूर-दूर सेआयेंगेलोगतुझेदेखने
लिखेजायेंगे
तेरेरंगरूपआकारपरअसंख्य लेख
पत्थरहिलताहै
ना ना
मुझेपत्थरहीरहने दो
हिलतापत्थर
इतना कोमल
इतनातोमैंनेकभी
फूलभीनहींदेखा
ग़ालिबकीहवेली
मैं औरमित्रकासिमगली में
ग़ालिब की हवेली केसामने
हवेलीबन्दथी
शायदचौकीदारका
मननहींहोगा
हवेलीकोखोलनेका
चौकीदार, मन और ग़ालिबमिलकर
ऐसाकुछसहजहीकरसकते हैं
हवेली केसाथवालेचुबारेसे
उतराएकआदमीऔरबोला —
हवेली कोउसजीने सेदेखलो
उसनेसीढ़ी कीतरफइशाराकिया
जिस सेवोउतरकरआयाथा
ग़ालिब की हवेलीकोदेखनेकेलिए
सीढ़ियों परचढ़नाकितनाज़रूरीहै
पूरेनौवर्षरहे ग़ालिबसाहबयहाँ
और पूरे नौमहीनेवो अपनीमाँकीकोखमें
बहुतसेलोगइस हवेली को
देखनेआतेहैं
थोड़ेदिनपहलेएकअफ्रीकनआया
सीधाअफ्रीकासे
केवलग़ालिब की हवेलीदेखने
देखते-देखते रोने लगा
कितनासमयरोता रहा
औरजातेसमय
इस हवेली कीमिट्टीअपनेसाथलेगया
चुबारे सेउतरकर आया आदमी
बता रहा था
एक साँस में सब कुछ
मैं देख रहा था उस अफ्रीकन केपैर
उसकेआंसुओं केशीशेमें सेअपना-आप
कहाँ-कहाँ जाते हैं पैर
पैर उनसभीजगहजानाचाहतेहैं
जहाँ-जहाँ जाना चाहते हैंआंसू
मुझेआंखसेटपकाहरआंसू
ग़ालिब की हवेलीलगताहै.
मार्चकी एकसवेर
तार परलटकरहे हैं
अभी
धोये
कमीज़
आधीबाजूके
महीनपतले
हल्केरंगोंके
पास का वृक्ष
खुश होता है
सोचता है
मेरी तरह
किसी और शय पर भी
आते हैं पत्ते नये.
कामरेड
सबसे प्यारा शब्द कामरेड है
कभी-कभार
कहताहूँ अपने-आपको
कामरेड
मेरेभीतरजागताहै
एकछोटासाकार्लमार्क्स
इससंसारकोबदलनाचाहता
जेनीकेलिएप्यारकविताएँलिखता
आखिरकेदिनोंमेंबेचनापड़ा
जेनी कोअपनाबिस्तरतक
फिर भीउसेधरतीपरसोना
किसीगलीचे सेकमनहींलगा
लो ! मैंकहताहूँ
अपने-आप कोकामरेड
लांघताहूँ अपने-आप को
लिखता हूँ एक और कविता
जेनी कोआदरदेने के लिए…
कविता दर कविता
सफरमेंहूँमैं …
पक्षियों कोपत्र
मैंनेपक्षियों कोपत्रलिखनाहै
मैंनेपक्षियों कोपत्रलिखनाहै
मैंनेपक्षियों कोपत्रलिखनाहै
मैंनेपक्षियों कोपत्रलिखनाहै
मैंनेपक्षियों कोपत्रलिखनाहै
मैंनेपक्षियों कोपत्रलिखनाहै
मैंनेपक्षियों कोपत्रलिखनाहै
मैंनेपक्षियों कोपत्रलिखनाहै
लाखोंकरोड़ोंअरबोंखरबोंबारलिखकरभी
नहींलिखहोनामेरेसे
पक्षियों कोपत्र.
प्यार
मैं कहीं भी जाऊँ
मेरे पैरों तले बिछी होती है
धरती
मैं धरती को प्यार करता हूँ
या धरती करती है मुझे
क्या इसी का नाम है प्यार
मैं कहीं भी जाऊँ
मेरे सर पर तना होता है
आकाश
मैं आकाश को प्यार करता हूँ
या आकाश करता है मुझे
प्यार धरती करती है आकाश को
आकाश धरती को
मैं इन दोनों के बीच
कौन हूँ
कहीं इन दोनों का
प्यार तो नहीं.
ख्याल
अभी तेरा ख्याल आया
मिल गयी तू
तू मिली
और कहने लगी
अभी तेरा ख्याल आया
और मिल गया तू
हँसते-हँसते
आया दोनों को ख्याल
अगर न होता ख्याल
तो इस संसार में
कोई कैसे मिलता
एक-दूसरे को…
नींद
क्या हाल है
हरनाम*आपका
थोड़ा समय पहले
मैं आपकी हथेली से
उठाकर ठहाका आपका
सब से बच-बचाकर
ले आया
उस बच्चे के पास
जो गयीरात तक
साफ कर रहा है
अपने छोटे-छोटे हाथों से
बड़े-बड़े बर्तन
मुझे लगता है
इस तरह शायद
बच जाएँ उसके हाथ
घिस जानेसे
यह जो नींदभटकरही है
ख़यालमें
ज़रूरइस बच्चे कीहोगी
क्या हाल है
हरनाम आपका …
*पंजाबीकाअनोखाकवि, जिसकेमूड-स्केपअभी भीअसमझे हैं.
पिता
अपने-आप को बेच
शाम को वापस आता घर
पिता
होता सालम-साबुत
हम सभी के बीच बैठा
शहर की कितनी ही इमारतों में
ईंट-ईंट हो चिने जाने के बावजूद
अजीब है
पिता के सब्र कादरिया
कई बार उछल जाता है
छोटे-से कंकर से भी
और कई बार बहता रहता है
शांत
तूफानीऋतु में भी
हमारेलिए बहुत कुछ होता है
पिता कीजेबमें
हरीपत्तियोंजैसा
साँसों की तरह
घर आजकल
और भी बहुत कुछ लगता है
पिता को
पिता तो पिता है
कोईअदाकारनहीं
हमारेसामनेज़ाहिर हो हीजातीहै
यहबात
किबाज़ारमें
घटतीजा रही है
उसकीकीमत
पिता कोचिन्ताहै
माँ केसपनोंकी
हमारीचाहतोंकी
औरहमेंचिन्ता है
पिता की
दिनों-दिनकमहोती
कीमत की…
आदि काल से लिखी जाती कविता
बहुत पहले
किसी युग में
लगवाया था मेरे दादा जी ने
अपनी पसन्द का
एक खूबसूरत दरवाज़ा
फिर किसी युग में उखाड़ दिया था
मेरे पिता ने वो दरवाज़ा
लगवा लिया था
अपनी पसन्द का एक नया दरवाज़ा
घर के मुख्य-द्वार पर लगा
अब मुझे भी पसन्द नहीं
वो दरवाज़ा.
मकबूलफ़िदाहुसैन
एकबच्चाफेंकताहै
मेरी ओर
रंग-बिरंगीगेंद
तीनटिप्पेखा
वोगयी
वो गयी
मैंहँसताहूँअपने-आपपर
गेंद कोकैचकरनेकेलिए
बच्चाहोनापड़ेगा
०
नंगेपैरोंकासफ़र
ख़त्मनहींहोगा
यहरहेगाहमेशा के लिए
लम्बेबुर्श का एकसिरा
आकाशमेंचिमनियाँटाँगता
दूसराधरतीकोरँगताहै
वोजबभीऑंखेंबन्दकरता
मिट्टीका तोता उड़ानभरता
कागज़ पर पेंट की हुई लड़की
हँसने लगती
०
नंगे पैरों के सफ़र में
मिली होतीधूल-मिट्टी कीमहक
जलतेपैरों के तले
फैल जाती हरे रंग कीछाया
सर्दी के दिनों मेंधूपहोजाती गलीचा
नंगे पैर नहीं डाले जा सकते
किसी पिंजरे में
नंगे पैरों का हर कदम
स्वतंत्र लिपि कास्वतंत्र वरण
पढ़ने के लिए नंगा होना पड़ेगा
मैंडरजाता
०
एकबारउसकीदोस्तने
तोहफे केतौरपरदिये दोजोड़ीबूट
नर्मलैदर
कहाउसने
बाज़ारचलतेहैं
पहनोयह बूट
पहनलिया उसने
एक पैर मेंभूरा
दूसरे मेंकाला
कलाकारकीयात्राहै यह
०
शुरूआत रंगो कीथी
औरअन्त भी
हो गये रंग
रंगोंपरकोईमुकदमा नहीं होसकता
हदों-सरहदोंकाक्याअर्थरंगोंके लिए
संसारके किसीकोने में
बनारहाहोगा कोईबच्चासियाही
संसार के किसी कोने में
अभी बना रहा होगा
कोई बच्चा
अपने नन्हे हाथों से
नीले काले घुग्गू घोड़े
रंगों की कोई कब्र नहीं होती.
अन्त नहीं
मैंतितलीपरलिखताहूँएककविता
दूरपहाड़ोंसे
लुढ़कतापत्थरएक
मेरेपैरोंकेपासआटिका
मैं पत्थर पर लिखता हूँ एक कविता
बुलातीहैमहकमुझे
देखता हूँपीछे
पंखुड़ीखोलगुलाब
झूम रहाथाटहनी केसाथ
मैंफूलपर लिखता हूँ एक कविता
उठानेलगाकदम
कमीज़कीकन्नीमेंफँसे
काँटोंनेरोकलियामुझे
टूटनजायेंकाँटे
बच-बचाकर निकालता हूँ
काँटों सेबाहर
कुर्ताअपना
मैं काँटों पर लिखता हूँ एक कविता
मेरेअन्दर सेआती हैएकआवाज़
कभीभीखत्मनहींहोगीधरती कीकविता.
बिम्ब बनता मिटता
मैं चला जा रहा था
भीड़ भरे बाज़ार में
शायद कुछ खरीदने
शायद कुछ बेचने
अचानक एक हाथ
मेरे कन्धे पर आ टिका
जैसे कोई बच्चा
फूल को छू रहा हो
वृक्ष एक हरा-भरा
हाथमिलानेके लिए
निकालताहै मेरी तरफ
अपना हाथ
मैंपहलीबारमहसूसकर रहा था
हाथ मिलानेकीगर्माहट
वोमेराहाल-चालपूछकर
फिर मिलने कावचनदे
चलदिया
उसकाघरकहाँ होगा
किसीनदीकेकिनारे
खेत-खलिहानकेबीच
किसीघनेजंगलमें
सब्जीकाथैला
कन्धेपरलटका
घर की ओरचलते
सोचता हूँ मैं
थोडासमयऔरबैठेरहनाचाहिएथामुझे
स्टेशनकीबेंचपर.
___________ गुरप्रीत (जन्म १९६८) इस समय के पंजाबी के महत्वपूर्ण कवि हैं. अब तक उनके चार कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं. अन्तिम संग्रह २०१६ में प्रकाशित हुआ. इसके इलावा उन्होंने दो पुस्तकों का सम्पादन भी किया है. उन्हें प्रोफेसर मोहन सिंह माहर कविता पुरस्कार (१९९६) और प्रोफेसर जोगा सिंह यादगारी कविता पुरस्कार (२०१३) प्राप्त हुए हैं. वे पंजाब के एक छोटे शहर मानसा में रहते हैं.