राहुल राजेश
बसंत !!!
अहा! बसंत यानी उल्लास का महीना! उमंग का महीना! सौंदर्य का महीना! मधुमास का महीना! प्रेम का महीना! मोहब्बत का महीना!! बसंत यानी ऋतुओं में सबसे चमकदार नगीना!!
मीठो, मादक, रंगीलो बसंत आयो रे!
जैसे फलों का राजा आम है, वैसे ही ऋतुओं का राजा बसंत है! इसलिए तो बसंत को ऋतुराज बसंत कहा जाता है! जैसे प्रेम सबसे मीठा होता है, सबसे मादक होता है, वैसे ही बसंत सबसे मीठा होता है, सबसे मादक होता है! जैसे आम सबसे रसीला होता है, वैसे ही बसंत भी सबसे रसीला होता है, सबसे रंगीला होता है!!
इसलिए तो बसंत का नाम सुनते ही मन कह उठता है- बसंत एशे छे! बसंत एशे छे!! बसंत आयो रे! मीठो, रंगीलो बसंत आयो रे! मोहक, मादक, मलंग बसंत आयो रे! सबपे मस्ती छायो रे!!
सचमुच, बसंत का नाम सुनते ही मन उल्लास से भर जाता है! उमंग से भर जाता है! आवेग से भर जाता है! प्रेमोल्लास से, प्रेमावेग से अंग-अंग थिरकने लगता है! मन में, तन में, आँखों में, मुस्कुराहटों में मादकता भर जाती है, मस्ती भर जाती है! बसंत का महीना होता ही ऐसा है!!
फरवरी बोले तो फुल्लटुस्स बसंत!
आप कहेंगे, बसंत तो ऋतु है, मौसम है! तो इसे मैं महीना क्यों कह रहा हूँ?
आप जरा वर्ष के महीनों पर गौर करें! आधुनिक चलन के अनुसार दिसंबर साल का आखिरी महीना होता है और जनवरी में नया साल शुरू होता है. तो दिसंबर जहाँ साल को अलविदा कहने का महीना होता है, वहीं जनवरी नए साल के मुबारकबाद देने का महीना होता है!
और जनवरी के बाद जो महीना आता है, वह फरवरी का महीना होता है! फरवरी यानी जनवरी और मार्च के बीच का महीना. यानी हेमंत-शिशिर और ग्रीष्म की संधि का महीना! यानी बसंत का महीना!
जनवरी बीतते-बीतते सर्दी अपनी रजाई समेटने लगती है. और मार्च के आते ही गर्मी अपने पाँव पसारने लगती है!
तो बस फरवरी का ही एक ऐसा महीना होता है, जब सर्दी और गर्मी दोनों की छुट्टी होती है! और बसंत बड़े ठाठ से फरवरी के महीने को अपना महीना बना लेता है!!
बसंत बोले तो बिंदास मोहब्बत का महीना!
अमूमन फरवरी में बसंत अपने पूरे शबाब पर रहता है.
पूरी प्रकृति भी शीत की ठिठुरन से बाहर निकल कर, अंगड़ाइयाँ भरने लगती है! नई कोंपलें फूटने लगती हैं. सारे पेड़-पौधे फिर से, नए सिरे से हरियाने लगते हैं. यहाँ तक कि जर्जर ठूँठ भी हरियाने लगता है! पुराने पीले पत्ते झरने लगते हैं और उनकी जगह नए हरे पत्ते उगने लगते हैं. घर की बगिया में पतली-पतली डंठलों पर तितली की तरह पीले-पीले गेंदे के फूल खुलकर झूमने-नाचने लगते हैं. और खेतों में सरसों के पीले-पीले फूल से लेकर जंगलों में पलाश के अग्निपुष्प तक दहकने लगते हैं! घर-आँगन से लेकर वन- प्रांतर तक नव्यता की भव्यता से चमकने लगते हैं! और इसके साथ ही चहुंओर नवीनता का, नूतनता का संचार भी करते जाते हैं! कि उठो, अपने पुरानेपन को उतार फेंको. खुद को मांजो. खुद को नया करो! नवीनता धारण करो!
सिर्फ रंग-रूप में ही नहीं बल्कि विचारों में भी, आचरण में भी, रिश्तों में भी, प्रेम में भी, मुस्कान में भी नवीनता धारण करो! हाव-भाव-स्वभाव – सबमें नूतनता लाओ! और यह नवीनता, यह नूतनता तब आएगी, जब हम बिंदास होकर अपना मन खोलेंगे, बेलौस होकर मोहब्बत में डूब जाएंगे! मुहब्बत पूरी दुनिया से, मुहब्बत पूरी कायनात से!
मुहब्बत जर्रे-जर्रे से! इस कदर मोहब्बत हो जाए खुद से और सबसे कि आपका रोम-रोम, आपका कण-कण बेलौस, बिंदास कह उठ्ठे- हाँ, हमको मोहब्बत है! हाँ, हमको मोहब्बत है!!
बाजार के लिए बसंत माने वैलेंटाइन डे! पर आपके लिए?
मोहब्बत की बात चली है तो जरा बाजार की बात भी कर ही लें!
बाजार के लिए बसंत माने वैलेंटाइन डे! वैलेंटाइन डे माने फेस्टिवल ऑफ लव! पर जरा ठहरिए! इस प्रेम के पर्व को बाजार के उकसावे पर नहीं, अपने मन के उकसावे पर मनाइए! बाजार की भाषा में नहीं, बसंत की भाषा में मनाइए! इस प्रेम के उत्सव को, इस प्रेम के उल्लास को, इस प्रेम के रास को बाजार के रंग-ढंग में नहीं, अपने रंग-ढंग में मनाइए!!
हरेक आदमी बिल्कुल अलग, बिल्कुल अनूठे ढंग से प्रेम करता है! बिल्कुल अपनी तरह से प्रेम जताता है, प्रेम पाता है! प्रेम जताने, प्रेम पाने का उसका यह ढंग बिल्कुल अनोखा होता है; हरेक से सबसे अलग, अद्वितीय होता है! और आपके प्रेम की यह अद्वितीयता, आपके प्रेम का यह अनोखापन, आपके प्रेम का यह अलहदापन आपको तब महसूस होगा, जब आप अपने प्रेम को बाजार में नहीं, बसंत में घटित होने का अद्भुत अवसर देंगे!!
यकीन मानिए, यदि आपका प्रेम बाजार में नहीं, आपके अंदर घटित होता है; बाजार में नहीं, बसंत में घटित होता है तो इस प्रेम की आभा, इस प्रेम की चमक, इस प्रेम की ऊष्मा, इस प्रेम की ऊर्जा कुछ अलग, अनूठी ही होगी, जो बाजार में लाख ढूँढने पर भी नहीं मिलेगा!
और यह भी यकीन मानिए, यदि बसंत सिर्फ बाहर नहीं, सिर्फ प्रकृति में नहीं; वरन आपके अंदर, आपके विचार में, आपके वाणी-व्यवहार में घटित हो जाता है; बसंत आपके तन-मन में उतर आता है तो प्रेम का यह अद्भुत उत्सव आपको ताउम्र बसंत का, ताजगी का, उल्लास का, उमंग का एहसास कराता रहेगा और आप ताउम्र इस प्रेम के प्रकाश से प्रकाशमान होते रहेंगे! बाजार का क्या है! उसे तो इस दिन भी कार्ड ही बेचना है! जैसे ब डे कार्ड, वैसे वैलेंटाइन डे कार्ड!!
पूरा बसंत ही प्रेम का उत्सव है!
सच कहें तो पूरा बसंत का महीना ही उत्सव का महीना होता है! बसंत पंचमी से लेकर रंग पंचमी तक! वैलेंटाइन डे उर्फ़ प्रेमोत्सव से लेकर बसंतोत्सव तक! केवल पूरी प्रकृति ही नहीं, हम सब भी पूरे बसंत, बासंती रंग-ढंग में डूब जाते हैं! बसंत यानी फरवरी! फरवरी यानी माघ-फागुन! और माघ-फागुन यानी सरस्वती पूजा और होली!
बसंत में आम के पेड़ों पर आम के मंजर आने लगते हैं. कोयल आम की डालियों पर कूकने लगती हैं. बेर के फल हाट-बाजारों में बिकने लगते हैं. बस यह बसंत का महीना ही होता है, जब बेर जैसे मामूली फल भी थोड़ी ठसक और ठाठ से हाट-बाज़ारों से लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के चमचमाते मॉल में सज जाते हैं! हर घर की पूजा की थाली में सज जाते हैं! बसंत में ही पीले रंग की आभा और महत्ता कुछ और बढ़ जाती है!!
यह बसंत का महीना ही होता है जब बसंत पंचमी के दिन घर से लेकर स्कूल-कॉलेजों तक, घर से लेकर बाज़ारों तक, गलियों से लेकर चौबारों तक खासकर नन्ही-नन्ही बच्चियाँ और लड़कियाँ साड़ी पहनकर बिंदास निकाल आती हैं और अपने बालसुलभ सौंदर्य और नवयौवन की आभा से पूरे परिवेश को उत्सवी और उल्लसित कर देती हैं! बसंत इस दिन उनको इधर से उधर उड़ती-तैरती रंग-बिरंगी तितलियों में तब्दील कर देता है!!
सचमुच, बसंत ही एकमात्र ऐसी ऋतु है, बसंत ही एकमात्र ऐसा महीना है जिसमें एक साथ विद्या, प्रेम और रंगों के इतने उन्मुक्त उत्सव मनाए जाते हैं! इसका गूढ़ आशय यही है कि बसंत ही जीवन का एकमात्र ऐसा उत्सव है, जिसमें जीवन के राग और रंग सबसे मीठे और मुखर होते हैं! जिसमें प्रेम के रंग सबसे गहरे चढ़ते हैं! जिसमें प्रेम का रंग सबसे गाढ़ा होता है! जिसमें बच्चे, बूढ़े, जवान- सब पर एक साथ, एक समान नयेपन और प्रेम का रंग चढ़ता है! इसलिए इस बसंत वैलेंटाइन डे नहीं, पूरा महीना प्रेम का उत्सव मनाइए!!
सिर्फ इक तारीख में क्यों बंधे?
बाजार ने प्रेम के लिए बस एक तारीख मुकर्रर कर रखी है. पर प्रकृति ने तो हमें पूरा एक मौसम ही सौंप दिया है! बसंत का मौसम! मधुमास का मौसम! पर भला हम सिर्फ इक तारीख में क्यों बंधे? सिर्फ एक महीने में क्यों बंधे? आइए, इस बार हम पूरा महीना, पूरा साल, पूरी उम्र, पूरा जीवन ही प्रेम के नाम कर दें, बसंत के नाम कर दें! और हरदम के लिए, उम्र भर के लिए हरा हो जाएँ, जवां हो जाएँ, नवा हो जाएँ!!!
बसंत
धरती जब रजस्वला होती है
वर्षा ऋतु आती है
और
पूरी प्रकृति हरी-भरी हो जाती है
जब धरती यौवन धारण करती है
श्रृंगार करती है
बसंत उतरता है!
(राहुल राजेश)