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Home » बाबुषा : पूर्व-कथन

बाबुषा : पूर्व-कथन

   कविता भाषा में लिखी जाती है, भाषा समुदाय की गतिविधियों के समुच्चय का प्रतिफल है. उसमें स्मृतियों से लेकर सपने तक समाएं हुए हैं. दार्शनिक इस सामुदायिक गतिविधियों के प्रकटन के केंद्र की तलाश करते हैं, मूढ़ धर्माधिकारी उसे ईश्वर आदि कहकर सरलीकरण का रास्ता अख्तियार कर अंतत: भाषा को जकड़ देते हैं. भाषा […]

by arun dev
March 24, 2018
in Uncategorized
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कविता भाषा में लिखी जाती है, भाषा समुदाय की गतिविधियों के समुच्चय का प्रतिफल है. उसमें स्मृतियों से लेकर सपने तक समाएं हुए हैं. दार्शनिक इस सामुदायिक गतिविधियों के प्रकटन के केंद्र की तलाश करते हैं, मूढ़ धर्माधिकारी उसे ईश्वर आदि कहकर सरलीकरण का रास्ता अख्तियार कर अंतत: भाषा को जकड़ देते हैं. भाषा ही यथार्थ निर्मित करती है. जो भाषा में है वही यथार्थ है.  कवि भाषा को इस लायक बनाता है कि वह और भी कुछ देख सके. एक तरह से वह भाषा का कारीगर है. कविताओं में यह भी देखा जाना चाहिए कि भाषा में कितनी जान है और कविता किस अछूते दृश्य की ओर इशारा कर रही है.
  
बाबुषा को आप उनकी काव्य- यात्रा के आरम्भ से ही समालोचन पर पढ़ते रहे हैं. उनकी सिग्नेचर कविता ‘ब्रेक-अप’ यहीं प्रकाशित हुई थी. २१ वीं सदी की कविता के स्वरों में उनका अपना एक अलग सुर है. पढ़ते हैं उनकी  कविता – ‘पूर्व-कथन’

बाबुषा की कविता                          
     पूर्व-कथन

[ अंतर ]

और कितनी ही बार बताया तुम्हें
कि हाथों में दास्ताने और चेहरे पर मास्क पहन कर प्रवेश करते हैं लैब में
विज्ञान संकाय के विद्यार्थी
ख़ुद को महफ़ूज़ रखते हुए मिलाते-घोलते या पलटते
परखनलियों का रंगीन पानी
नोटबुक में क़रीने से दर्ज करते एक्सपेरिमेंट
वह,
जो काग़ज़ में दर्ज इबारतें फाड़ता-उड़ाता
प्रयोगों में हाथ जला बैठता;
दरअसल वह; विज्ञान का विद्यार्थी है
इसे याद रखना-
विज्ञान संकाय का होना, विज्ञान का होना नहीं है
मेरे बच्चो,
विज्ञान संकाय का घंटा बीतता है पथरीली चहारदीवारियों के बीच
विज्ञान का अर्थ और अभिप्राय उन दीवारों के बाहर
पथरीले जीवन में संपन्न होता है.

कथन-1

[ जीवनी के बाहर ]
सापेक्षता के सिद्धांत से नहीं फूटती
आइन्श्टाइन के वायलिन की अलौकिक धुन
न ही \’पेल ब्लूडॉट\’ के व्याख्याकार सेगन ने किसी खगोलशाला में
पृथ्वीवासियों के लिए आविष्कृत किया मनुष्यता का फ़ॉर्मूला
कल्पना चावला ने घेरा जितना भी आकाश
उससे कम (और कमतर) नहीं मैरी ओलिवर की कल्पना में
वह निष्पक्ष विस्तार
आइन्श्टाइन या सेगन अपनी जीवनी में नहीं मिलते
वे जीवन में मिलते हैं
मेरे बच्चो,
साइंसदानों से विज्ञान संकाय की कक्षा में भर मत मिलना
इनसे मिलना विज्ञान में; उतार कर दास्ताने
अपने सुरक्षा कवच उतार कर मिलना.

कथन-2

[ हंस और बकरियाँ ]
स्पेस,
किसी अहमक बरेदी के चाचा स्टीफ़न हॉकिंग का खेत है ? तो रहा आए.
किसी आवारा असदुल्लाह ख़ाँ ग़ालिब की बदतमीज़ भतीजी छोड़ती रहेगी
उनके खेतों में अपनी बकरियाँ.
सुन रहे हो  ?
अबे ! क्या-क्या हँकालोगे ?
भूख ? कि इनके दाने की तलाश ? कि इनकी प्यास ?
ये बकरियाँ गाभिन हैं
इनके भ्रूण में विकसित हो रहा नवजात ग्रह
इन्हें पानी को पूछो
पूछो; इनसे हरे नरम पात- खली-चुनी को पूछो
चाचा के अनहद खेत की रखवाली में मत गलो
ग़ालिब की भतीजी की गीली गाली में गलो
तुम जब अपने डंडे को तेल पिलाते हो
डंडे के डर को धता बताते, सुदूर अंतरिक्ष में उड़ जाते मालवा के हंस
किसी अज्ञात समुद्र की टोह लेने
खोजने धवल मोती
जीवनियों के बाहर सुध-बुध खो बैठते आइन्श्टाइन और सेगन
भरे जोबन में आकाश गंगाएँ जोगन हुई जाती हैं जब कुमार गन्धर्व
अपने काँधे से टिका लेते तानपुरा
एक हाथ उठा कर आकाश थाम लेते हैं
टेक लेते सुर
ब्रह्मलीन
कभी खेत में उतर जाते हंस मोती चरने
कभी उड़तीं समुद्र में बकरियाँ
चुगतीं पानी में चारा.

उत्तर-कथन

[ दमकना और टिमटिमाना ]
एक पाँव पर अडिग खड़ा ध्रुव जानता है
उत्तर की रग-रग
रग-रग का उत्तर वह जानता है.
साँवले प्रश्नों के देता उजले उत्तर
केवल ब्रह्म-मुहूर्त में.
दिप-दिप दमकता
अडोल
सघन तम से जूझते
सघन तम साध के पक्के सात ऋषि
बूझते धरती थामे रहते रात भर आकाश
टिमटिमाते प्रश्न चिह्न बन
वह,
जो दमकता है
जान पाता मात्र उत्तर के उजास को
टिमटिमाते पुंज चीन्ह लेते उजाले-अँधेले की सत्ता बराबरी से;
मद्धिम लौ में
कौन भीगा
मध्य-रात्रि जलने वाली कंदील के आँसुओं से ?
कौन पहुँचा आकाश के अंतिम छोर में बँधी गाँठ खोलने ?
किसके काँधे पर टँगी गठरी है पृथ्वी ?
सप्तऋषि गुनगुनाते तम और प्रकाश
मद्धम लय में
कभी खींच लेते उजियारे के प्राण
कभी रूखे अँधेले को सींच देते.

बाबुषा
baabusha@gmail.com
________________
बाबुषा की लम्बी कविता \’ब्रेक-अप\’.

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