वरिष्ठ आलोचक प्रो. नामवर सिंह हिंदी के बेहतरीन वक्ताओं में से हैं. उनके सम्बोधन के सम्मोहन से हम सब परिचित हैं. इधर बातचीत की सूक्ति शैली में उनके कुछ रोचक और अपनी ख़ास शैली के साक्षात्कार आए हैं. संदीप अवस्थी ने इसी शैली में नामवर जी से बातचीत की है.
बुद्ध की तरह कुछ प्रश्नों के उत्तर में वह मौन भी हैं और कहना न होगा यह मौन अधिक मुखरित हैं. कहते हैं बुद्ध ने आनन्द से प्रश्नों के उत्तर में मौन के विकल्प की छूट ली थी. उनका एक मौन ईश्वर के अस्त्तित्व पर भी है.
साक्षात्कार की शुरुआत में नामवर जी ने मुस्कुराते हुए कहा ask me no question i will tell you no lie.. और सबके चेहरों पर मुस्कराहट छा गई. फिर उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा मैं परीक्षार्थी भी रहा हूँ और परीक्षक भी इसलिए दोनों की लाचारियों को जानता हूँ, देखिये उत्तर के लिए विकल्प दिए जाते हैं..
प्रिय पुस्तक
:
प्रिय व्यक्ति
प्रिय व्यक्ति समय समय पर बदलता रहा है. १९४१ में गाँधी जी को देखा था उनकी ऐसी गहरी छाप पड़ी उससे पहले जब मैं प्राईमरी दर्जा में पढता था सन १९३४ में कमालपुर में जीप में आये थे.
प्रिय गीत :
छापक पेड़ छिबलिया छाप पड़ी पतवन
प्रिय फिल्म :
किस्मत, अशोक कुमार अभिनेता वाली
प्रांत :
उत्तर प्रदेश
शहर :
वाराणसी /बनारस
गाँव:
जीअन पुर
लेखक (पुराना) :
हजारी प्रसाद द्विवेदी
(नया) :
मुक्तिबोध
मुक्तिबोध
विधा :
कविता
भोजन :
सत्तू
पेय पदार्थ :
ठंडाई
पोशाक :
कुरता
खरा वाक्य :
क्रिया केवलम उत्तरम
प्रिय शब्द :
तात (व्यंग्य में )
बचुवा (प्यार से)
क्रोध में कहा वाक्य :
क्रोध में चुप हो जाता हूँ
प्रिय राजनैतिक व्यवस्था :
लोक नायक जो लोक का हो
प्रिय दोस्त :
मार्कण्डेय सिंह (वह स्कूल के दिनों से मेरे सहपाठी थे.. बाद में आई. पी. एस. बने
आज भी जिनकी याद आती है :
पिता तुल्य कामता प्रसाद विद्यार्थी
कोई लम्हा जिसे दोबारा जीना चाहते हैं :
बी. एच. यू. में अध्यापन का पहला वक्तव्य १९५१-५२ में
आलोचक लेखक न होते तो :
तो कवि ही होता
साहित्यकारों को सक्रिय राजनीति में आना चाहिए :
नहीं
प्रिय सपना :
किसी आदमी की आँख में आंसू न आये
कौन लोग पसंद नहीं आते :
चापलूस
कौन सा शहर पसंद नहीं :
जो देखा नहीं
पुस्तक :
जिसे पढ़ा नहीं, जिसे खरीदने का मन न हो
नापसंद भोजन :
आलू
कौन सा देश नापसंद है :
कोई नहीं
नापसंद व्यवस्था :
बी. जे. पी., मोदीवादी व्यवस्था
स्त्रियों को कितनी आज़ादी :
स्त्रियों की आजादी की कोई सीमा नहीं होती, बचपन में तुलसीदास जी की एक पंक्ति सुनकर मैंने अध्यापक से कहा ये पाठ मत पढ़ाईये इसमें नारी की स्वतन्त्रता को लेकर तुलसीदास जी ने ये कहा है
महावृष्टि चली फूटी क्यारी
जिमी स्वतंत्र होई बिगिड़ेह नारी
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यह बातचीत कवयित्री लीना मल्होत्रा राव के सहयोग से है. (जुलाई २०१२)
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