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Home » रोशनी का सफ़र (संगीता गुप्ता) : ज्योतिष जोशी

रोशनी का सफ़र (संगीता गुप्ता) : ज्योतिष जोशी

कवयित्री और चित्रकार संगीता गुप्ता (जन्म- २५ मई १९५८, गोरखपुर) का संग्रह ‘रोशनी का सफ़र’ कविता और पेंटिग दोनों की किताब है. हिंदी में ऐसी किताबें मुश्किल से छपती हैं. कविताएँ और पेंटिग आमने सामने हैं तो कई जगह रंग और शब्द साथ-साथ हैं. प्रस्तुत है इस संग्रह पर आलोचक और कला मर्मग्य ज्योतिष जोशी […]

by arun dev
December 28, 2019
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कवयित्री और चित्रकार संगीता गुप्ता (जन्म- २५ मई १९५८, गोरखपुर) का संग्रह ‘रोशनी का सफ़र’ कविता और पेंटिग दोनों की किताब है. हिंदी में ऐसी किताबें मुश्किल से छपती हैं. कविताएँ और पेंटिग आमने सामने हैं तो कई जगह रंग और शब्द साथ-साथ हैं.


प्रस्तुत है इस संग्रह पर आलोचक और कला मर्मग्य ज्योतिष जोशी की टिप्पणी. 


प्रेम और प्रतीक्षा का विन्यास                                   
ज्योतिष जोशी


(ज्योतिष जोशी)




संगीता गुप्ता जितनी संवेदनशील कवयित्री हैं, उतनी ही भाव प्रवण चित्रकार भी. उनके कई कविता संग्रह प्रकाशित हैं  जिनमें-


मुसव्विर का ख्याल,
बेपरवाह रूह,
एकम,
स्पर्श के गुलमोहर,
वीव्ज ऑफ टाइम,
प्रतिनाद,
समुद्र से लौटती नदी,
इस पार उस पार,
नागफनी के जंगल और
अंतस से आदि शामिल हैं. लगभग 35 एकल प्रदर्शनियाँ उनके नाम  हैं तो 200 से अधिक समूह प्रदर्शनियों में भी वे भागीदारी कर चुकी हैं. संगीता सात वृत्त चित्रों का निर्देशन कर चुकी हैं और उनकी कई कृतियों के अनुवाद विदेशी भाषाओं में  हो चुके हैं.

कला और कविता को एक साथ जीते और साधते हुए संगीता ने जहां कविता में प्रेम प्रतीक्षा, मौन और पल-पल स्पंदित होते हृदय की ध्वनियों को शब्द दिए हैं, वहीं अपने अमूर्त चित्रों में वे एकांत, निविड़ता और जीवन के अछोर विस्तार के सूनेपन को आंका है. कविता में वे जिस भाव को व्यक्त करती हैं, कला में उन्हीं भावों को अमूर्तन में आंकती हैं. इस तरह उनकी कला और कविता में यथार्थ को अतिक्रमित करने वाली अनुभूति का संप्रेषण होता है जिसका संबंध मनुष्य के अंतर से है, उसके भाव जगत से है. जिस तरह उनके अमूर्तन अंतर्जगत के राग-विराग के नर्तन और उसके धीमे संगीत को रंगों में उठाते हैं, उसी तरह उनकी कविताएं जीवन के अनन्य पलों में पल रही प्रतीक्षा और प्रेम में पसीज रहे क्षणों को शब्द देती हैं. उनकी दोनों ही विधाओं में अंतर का संगीत बजता है. रंग और  शब्द अन्तर ध्वनियों को पकड़ पाने का माध्यम हैं और उनके स्पंदन को एक भाव देने का समर्पित प्रयत्न, जिसमें संगीता बहुत प्रभावित करती है.
\’रोशनी का सफर\’ उनका नवीनतम काव्य संकलन है. इसमें उनकी कला और कविता का सुंदर संयोजन है. छोटी-छोटी कविताओं के साथ उनके चित्र जहां कविता की अंतरंगता को दर्शाते हैं, वहीं समभाव में घटित दोनों  माध्यम व्यक्ति के मनोभाव में तरंगायित संवेदनों  को स्वर देते हैं. इस संग्रह में इकसठ कविताएं हैं जिन्हें वे नज़्म नाम से ही संबोधित करती हैं और  इतनी ही चित्रकृतियाँ भी. यह कविताएं उनके जीवन के  सर्वथा कठिन समय में रची गई हैं जिनके बारे में  वे लिखती हैं –

\’परिवार से घिरे रहकर भी एक अजीब वीरानी का एहसास, उदास और दहशतज़दा मैं खुद को समेटने में जुटती हूं. बस घर और अस्पताल के बीच कभी-कभी स्टूडियो में रंगों को धीरे से छू भर लिया है. यह 61 सीढ़ियों का सफर है. आपसे साझा कर रही हूं इकसठ चित्र, जो इस दौर में मेरा हौसला -अफजाई करते रहे हैं. साथ हैं इकसठ नज़्में, जो कागज के सीने पर उकेरे थे.\’
यह कलाकार और कवयित्री का आत्म कथ्य है जिससे पता चलता है कि बीमार हालत में अस्पताल में पड़ी रह कर घर की स्मृति, वीरानी जगह में अभिशप्त रहने का दंश, जीवन के  थम जाने का अज्ञात भय और सब कुछ के सियाह  हो जाने की तकलीफ- इन नज़्मों और चित्रों का विषय हैं. पर  रचना का सच यही है कि वह एक विशेष क्षण की अभिव्यक्ति होने के बावजूद जीवन के उस सातत्य को, उसके अंतर्भाव और उस मानस को आकार देती है जो  सर्जक की चेतना में हमेशा उपस्थित रहते हैं. इस तरह रचना एक क्षण, एक घटना या एक समय में रची जाकर उसके समग्र विस्तार को पकड़ती है. इस मायने में संगीता की यह कविताएं समूचे जीवन बोध के उजास में खिल उठी हैं जिसमें आगत-अनागत के बीच फंसे व्यक्ति की प्रतीक्षा और जीवन- राग,  दोनों की  वत्सलता हृदय को छू लेती है.
\’निभा सका न जो कांटों से
हक नहीं गुलाब पर\’ 
कहने वाली संगीता लिखती हैं –

\’जमीन की तरह मैं भी रोशनी के सफर पर हूं ख्वाहिश है
रोशनी की रफ्तार से चलूं
और वक्त थम जाए जिस्म से परे
रूह निकल जाए मुसलसल
जमीन की तरह
मैं भी
रोशनी के सफर पर हूं .\’
रोशनी के इस सफर में संगीता के हौसले बुलंद हैं , जिंदगी की तकलीफों और अपने जद्दोजहद को जानने के बावजूद उनके हौसले में कमी नहीं आई है-
\’पिंजरा छोड़कर उड़ने वालों का ठिकाना कोई नहीं
उनका मसीहा
सिर्फ आसमान होता है
आसमान तक पहुंचने का
हौसला हो और
रास्ते के जद्दोजहद से
बेखौफ हो तो उड़ना
एक दिन वक्त और आसमान
दोनों तुम्हारे होंगे.\’

पर इस सफर का मूल स्वर प्रेम है जिसका भाव है प्रतीक्षा. अपने मूल स्वर में संगीता गहरे उतरती हैं और अपने अनन्य अनुरक्ति में दूर तक बहा ले जाती हैं-

\’एक पल दे दो
अपना मुझे
जो मेरी जिंदगी से लंबा हो \’

या –

\’बेखुदी में बारहा जिस्म की हदों को छोड़
रूह तेरी रूह से मिल आती है
कई दफा रूह तेरी
मेरे साथ चली आती है
तुझे इल्म नहीं शायद
तू मुझसे जुदा नहीं तेरी रूह मुझमें बसती है. \’

संगीता का प्रेम आत्मिक प्रेम है जो देह को विलग करता है और आत्म से आत्म को जोड़ता है. इसमें इच्छाएं बेचैन नहीं करतीं, वह फूलों की तरह गमकती हैं और प्रतीक्षा-  ऐसा भाव जिसमें बार बार जीते रहने की पुकार है.  इसमें प्रिय के आने भर का संदेश उसे मायने दे देता है –
(संगीता गुप्ता)
\’तुम्हारा आना
एक सदी के
इंतिजार को
मायने दे गया.\’

ऐसा नहीं कि यहां तड़प नहीं है, मनुहार  नहीं, या एक  गहरी उदासी नहीं है, पर प्रिय की बेरुखी को भी जी लेने और उसे अपने में समो लेने की रागमयता के कारण वेदना कवयित्री के अनन्य भाव को नहीं तोड़ पाती. प्रेम की यही वत्सलता संग्रह को रोशन करती है जिसके सफर में कवयित्री को कभी तन्हाई का एहसास भी नहीं होता. इसी उम्मीद को यह नज़्म पुख्ता आधार देती है-
\’तेरा ख्याल आता है नज़्म आती है
तू साथ साथ चलता है फ़क़त तेरा जिस्म
तेरा है
रूह तो  सिर्फ मेरी है.\’
छोटे-छोटे वाक्यों में गहरे जीवन  मर्म से भरी कविताएं प्रेम के सत्व और उसकी अनुभूति को जिस तरलता से व्यक्त करती हैं उससे उसकी मार्मिकता बढ़ जाती है.

इन कविताओं के साथ-साथ दिए गए अमूर्त चित्रों में भी यही लाघव है. चित्र फलक पर मटमैले और धूसर रंगों में उभरे धब्बों, नामालूम से बने वृत्त,  आकाश को भेदते और भरते हुए अनेकानेक  रूपों में रंगों के नर्तन समूह अमूर्तन को एक विन्यास देते हैं और उसे एक अंतर लय में ढालते हैं. मन के भाव संचरण, उदासी, प्रतीक्षा और प्रेम की पीर के उच्छवास गहरे होकर मन पर उतरते हैं. वीरान सी स्थितियों के भीतर एक उम्मीद कहीं-कहीं रंगों के पैबस्तों में झांकती सी प्रतीत होती है . लगता है जैसे हमारे अंतर के सूने प्रदेश में अचानक कोई आभा सी उठ आई हो. संगीता के संयोजन में आंतरिक चैतन्य है जिसे कभी मॉन्द्रिया ने जीवन कहा था. यह अमूर्तन का प्राणतत्व है जो कलाकार के भीतर के रहस्य को  भावक के चित्त से जा मिलाता है.
कह सकते हैं कि \’रोशनी का सफर\’ संगीता गुप्ता की कविताओं में व्यक्त प्रेमपरकता  और उसकी स्निग्ध प्रतीक्षा उनके अमूर्त चित्रों में भी उसी लय और सघनता के साथ उपस्थित हैं और एक तरह से वे एक दूसरे को थामते भी हैं. शब्द और रंग की लयकारी में भाव जगत का यह प्राकट्य निश्चय ही हमें भाव – समृद्ध करता है. \’रोशनी का सफर\’  कविता और कला के समन्वय से एक पठनीय और संग्रहणी कृति बन पाई है, इसमें संदेह नहीं है.
___________________
रोशनी का सफ़र
(संगीता गुप्ता की कविताएं और चित्र)
प्रकाशक – पृथ्वी फाइन आर्ट एंड कल्चरल सेंटर,
124, हंस भवन, 1, बहादुर शाह जफर मार्ग, नई दिल्ली- 110002
मूल्य-1000 ₹
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